डेली न्यूज़ (01 Jun, 2023)



संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना हेतु भारत की प्रतिबद्धता

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन, UNPK संचालन में महिलाओं के लिये भारत-आसियान पहल, संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

मेन्स के लिये:

विवादों को हल करने और शांति को बढ़ावा देने में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन की भूमिका, भारत का योगदान, UNPK संचालन में महिलाओं के लिये भारत-आसियान पहल

चर्चा में क्यों?  

भारतीय सेना ने 29 मई को संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों के 75वें अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर नई दिल्ली में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की।

  • इस दिन का महत्त्व इसलिये भी है क्योंकि यह वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र के पहले शांति मिशन की वर्षगाँठ का प्रतीक है।
  • इसके अतिरिक्त वर्ष 2023 में भारत ने रक्षा क्षेत्र में आसियान के साथ सहयोग के रूप में दो पहलों का अनावरण किया जिन्हें विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया की महिला कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। 

UNPK अभियानों में महिलाओं के लिये भारत-आसियान पहल:

  • 'UNPK (United Nations Peacekeeping) अभियानों में महिलाओं के लिये भारत-आसियान पहल', संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) के बीच एक सहयोगी प्रयास को संदर्भित करती है।
  • यह पहल आसियान सदस्य देशों की उन महिला कर्मियों को प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करने पर केंद्रित है जो शांति सैनिकों के रूप में सेवा करने में रुचि रखती हैं।
  • इसके तहत भारत ने दो विशिष्ट पहलों की घोषणा की है:
    • नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर यूनाइटेड नेशंस पीसकीपिंग (CUNPK) में विशेष पाठ्यक्रम आयोजित करना। इस पाठ्यक्रम के तहत आसियान देशों की महिला शांति सैनिकों को शांति अभियानों हेतु लक्षित प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
      • इसका उद्देश्य उन्हें UNPK मिशनों में प्रभावी ढंग से योगदान के लिये आवश्यक कौशल और ज्ञान से परिपूर्ण करना है
    • आसियान की महिला अधिकारियों के लिये टेबल टॉप एक्सरसाइज़ में संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों के समक्ष आने वाले विभिन्न परिदृश्यों और चुनौतियों के पहलुओं को शामिल किया जाएगा, जिससे प्रतिभागियों को UNPK संचालन हेतु अपनी समझ तथा तैयारियों को बढ़ाने में मदद मिलेगी।

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना: 

  • परिचय: 
    • संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियोजित एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है जो देशों को संघर्ष से शांति के मार्ग पर नेविगेट करने में मदद करता है।
    • इसमें संघर्ष या राजनीतिक अस्थिरता से प्रभावित क्षेत्रों में सैन्य, पुलिस कर्मियों और नागरिकों की तैनाती शामिल है।
    • संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना का प्राथमिक उद्देश्य शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करना, नागरिकों की रक्षा तथा स्थिर शासन संरचनाओं की बहाली का समर्थन करना है।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के संयुक्त प्रयास हेतु संयुक्त राष्ट्र महासभा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, सचिवालय, सेना तथा पुलिस एवं मेज़बान सरकारों को एक साथ लाता है।
  • पहला मिशन:
    • पहला संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन मई 1948 में स्थापित किया गया था, जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इज़रायल और उसके अरब पड़ोसियों के बीच युद्धविराम समझौते की निगरानी के लिये संयुक्त राष्ट्र ट्रूस सुपरविज़न आर्गेनाइज़ेशन (United Nations Truce Supervision Organization- UNTSO) बनाने हेतु मध्य पूर्व में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षकों की तैनाती को अधिकृत किया था। 
  • अधिदेश:  
    • ऑपरेशन/अभियान के आधार पर अधिदेशों में भिन्नता होती हैं, लेकिन उनमें प्रायः  निम्नलिखित तत्त्वों में से कुछ या सभी शामिल होते हैं:
      • युद्धविराम, शांति समझौते और सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी करना।
      • नागरिकों की रक्षा करना, विशेष रूप से उनकी जिन्हें शारीरिक रूप से क्षति पहुँचने का जोखिम का अधिक हो।
      • राजनीतिक संवाद, सुलह और समर्थन एवं चुनाव की सुविधा।
      • कानून का शासन, सुरक्षा संस्थानों का निर्माण और मानवाधिकारों को बढ़ावा देना।
      • मानवीय सहायता प्रदान करना, शरणार्थी पुनः एकीकरण का समर्थन करना और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देना।
  • सिद्धांत:  
    • पक्षों की सहमति:
      • शांति स्थापना कार्यों के लिये संघर्ष में शामिल मुख्य पक्षों की सहमति की आवश्यकता होती है।
        • सहमति के बिना एक शांति स्थापना अभियान, संघर्ष का पक्ष बनने और अपनी शांति स्थापना की भूमिका से विचलित होने का जोखिम उठाता है।
    • निष्पक्षता:
      • शांति सैनिकों को संघर्ष के पक्षकारों के साथ अपने व्यवहार में निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिये।
      • निष्पक्षता का अर्थ तटस्थता नहीं है; शांति सैनिकों को अपने जनादेश को सक्रिय रूप से निष्पादित करना चाहिये और अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों को बनाए रखना चाहिये।
    • आत्मरक्षा और जनादेश की रक्षा को छोड़कर बल का प्रयोग न करना:
      • शांति अभियानों में बल का उपयोग तब तक नहीं किया जाना चाहिये जब तक कि आत्मरक्षा या उनके जनादेश को बनाए रखने के लिये इसकी आवश्यकता न हो।
      • सुरक्षा परिषद के सभी पक्षकारों की सहमति और अनुमोदन एवं मेज़बान देश की सहमति के पश्चात् "मज़बूत" शांति व्यवस्था बल के उपयोग की अनुमति दी जाती है।
  • उपलब्धियाँ:
    • वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना के बाद से इसने कई देशों में संघर्षों को समाप्त करने और सुलह को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
      • कंबोडिया, अल सल्वाडोर, मोज़ाम्बिक और नामीबिया जैसे स्थानों में सफल शांति मिशन चलाए गए हैं।
      • इन कार्रवाइयों ने स्थिरता बहाल करने, लोकतांत्रिक शासन में परिवर्तन को सक्षम करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने पर सकारात्मक प्रभाव डाला।

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में भारत का योगदान:

  • सेना का योगदान:
    • यूनाइटेड नेशंस पीसकीपिंग ऑपरेशंस में योगदान देने की भारत की समृद्ध विरासत रही है। यह वैश्विक स्तर पर विभिन्न शांति अभियानों के लिये सैनिकों, चिकित्सा कर्मियों और इंजीनियरों को तैनात करने के साथ सबसे बड़े सैन्य-योगदान करने वाले देशों में से एक है।
      • अब तक के शांति अभियानों में भारत के लगभग 2,75,000 सैनिकों ने योगदान दिया है।
  • जनहानि:
    • भारतीय सैनिकों ने संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में सेवा प्रदान करते हुए महत्त्वपूर्ण बलिदान दिये हैं, जिसमें 179 सैनिकों ने ड्यूटी के दौरान अपनी जान गँवाई है। 
  • प्रशिक्षण और बुनियादी ढाँचा:
    • भारतीय सेना ने नई दिल्ली में सेंटर फॉर यूनाइटेड नेशंस पीसकीपिंग (CUNPK) की स्थापना की है। 
      • यह केंद्र शांति अभियानों में प्रतिवर्ष 12,000 से अधिक सैनिकों को विशेष प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ ही संभावित शांति रक्षकों एवं प्रशिक्षकों के लिये राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय पाठ्यक्रमों की मेज़बानी करता है। 
      • CUNPK सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने एवं शांति रक्षकों की क्षमता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • शांति स्थापना में महिलाएँ:
    • भारत ने शांति अभियानों में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिये सक्रिय कदम उठाए हैं।
      • भारत ने कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र संगठन स्थिरीकरण मिशन तथा अबेई के लिये संयुक्त राष्ट्र अंतरिम सुरक्षा बल में महिला दल को तैनात किया है, जो लाइबेरिया के बाद दूसरा सबसे बड़ा महिला सैनिकों का दल है।  
      • भारत ने संयुक्त राष्ट्र डिसएंगेजमेंट आब्ज़र्वर फोर्स में महिला सैन्य पुलिस और विभिन्न मिशनों में महिला अधिकारियों एवं सैन्य पर्यवेक्षकों को भी तैनात किया है। 

स्रोत: द हिंदू


हंगर हॉटस्पॉट: FAO-WFP

प्रिलिम्स के लिये:

हंगर हॉटस्पॉट्स, FAO, WFP, चरम मौसम, खाद्य असुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, अल नीनो

मेन्स के लिये:

हंगर हॉटस्पॉट्स:  FAO, WFP तीव्र खाद्य असुरक्षा पर प्रारंभिक चेतावनी

चर्चा में क्यों? 

खाद्य और कृषि संगठन (FAO) तथा विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, हंगर हॉटस्पॉट:  FAO, WFP तीव्र खाद्य असुरक्षा पर प्रारंभिक चेतावनी, भारत के पड़ोसी देश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और म्याँमार दुनिया में हंगर हॉटस्पॉट के केंद्र हैं। 

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:

  • अति उच्च चिंता वाले हॉटस्पॉट: 
    • 22 देशों में 18 क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ तीव्र खाद्य असुरक्षा परिमाण और गंभीरता बढ़ सकती है।
    • पाकिस्तान, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, इथियोपिया, केन्या, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और सीरियाई अरब गणराज्य बहुत अधिक चिंता वाले हॉटस्पॉट हैं।
    • इन सभी हॉटस्पॉट्स में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, साथ ही बिगड़ते हालातों के साथ आने वाले महीनों में स्थितियों के और तेज़ होने की उम्मीद है।
  • उच्च चिंता वाले देश:
    • अफगानिस्तान, नाइजीरिया, सोमालिया, दक्षिण सूडान और यमन में  चिंता का स्तर उच्चतम बना हुआ है।
      • हैती, साहेल (बुर्किना फासो और माली) तथा सूडान भुखमरी के उच्चतम स्तर तक पहुँच गए है। हाल ही में सूडान संघर्ष के कारण यह स्थिति हैती के साथ-साथ बुर्किना फासो और माली में लोगों के आंदोलन तथा वस्तुओं पर कड़े प्रतिबंधों की वजह से उत्पन्न हुई है। 
  • भुखमरी की संभावना: 
    • सभी हॉटस्पॉट्स पर आबादी उच्चतम स्तर पर भुखमरी का सामना कर रही है या इसके भुखमरी का सामना करने का अनुमान है। आबादी पहले से ही खाद्य असुरक्षा और अन्य गंभीर कारकों का सामना कर रही है जो विनाशकारी स्थितियों की ओर ले जाता है।
  • नए उभरते संघर्ष: 
    • नए उभरते संघर्षों की संभावना वैश्विक संघर्ष प्रवृत्तियों को बढ़ावा देगी और कई पड़ोसी देशों को प्रभावित करेगी, विशेष रूप से सूडान संघर्ष।
    • अनेक भुखमरी वाले क्षेत्रों में विस्फोटक हथियारों और घेराबंदी की रणनीति लोगों को तीव्र खाद्य असुरक्षा के भयावह स्तर की ओर ले रही है
  • खराब मौसम: 
    • कुछ देशों और क्षेत्रों में भारी बारिश, उष्णकटिबंधीय तूफान, चक्रवात, बाढ़, सूखा तथा अत्यधिक जलवायु परिवर्तनशीलता जैसे अत्यंत खराब मौसम महत्त्वपूर्ण कारक बने हुए हैं।  
    • मई 2023 के पूर्वानुमान में वर्ष 2023 में मई से जुलाई तक की अवधि में अल नीनो के प्रभाव की संभावना 82% होने का अनुमान लगाया है, जिसमें कई हॉटस्पॉट में भुखमरी होने की संभावना भी व्यक्त की गई है।
  • आर्थिक आघात: 
    • गहराते आर्थिक आघात ने निम्न और मध्यम आय वर्ग के देशों में संकट को और अधिक गहरा कर दिया है।

सिफारिशें: 

ऐसे हॉटस्पॉट्स जहाँ भुखमरी के अधिक गंभीर होने का खतरा है, जीवन और आजीविका को बचाने, भुखमरी एवं इससे होने वाली मौतों को रोकने के लिये जून से नवंबर 2023 तक तत्काल मानवीय कार्रवाई किये जाने की आवश्यकता है।

  • पूर्वानुमानों और उत्पादन पर उनके प्रभाव की निरंतर निगरानी की जानी चाहिये।
  • आजीविका की रक्षा करने और भोजन तक पहुँच बढ़ाने के लिये सभी 18 भुखमरी वाले हॉटस्पॉट्स  में तत्काल अधिक सहायता प्रदान किये जाने की आवश्यकता है।
  • तीव्र खाद्य असुरक्षा और कुपोषण को रोकने के उपाय करना
  • अत्यधिक संकटग्रस्त हॉटस्पॉट में भविष्य में भुखमरी और मौतों को रोकने के लिये मानवीय सहायता प्रदान की जानी चाहिये।

खाद्य और कृषि संगठन (FAO):

विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP):

  • WFP जीवन की रक्षा एवं जीवन में बदलाव, आपातस्थिति में खाद्य सहायता प्रदान करने और पोषण में सुधार तथा लचीलापन लाने हेतु समुदायों के साथ काम करने वाला एक अग्रणी मानवीय संगठन है। 
  • इसका मुख्यालय रोम, इटली में है और इसकी स्थापना वर्ष 1961 में FAO तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा की गई थी।
  • यह संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास समूह (UNSDG) का सदस्य भी है, जो सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को पूरा करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और संगठनों का एक गठबंधन है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने वर्ष 2030 तक भुखमरी को समाप्त करने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और पोषण में सुधार करने का संकल्प लिया है।
  • WFP, 120 से अधिक देशों और क्षेत्रों में संघर्ष के कारण विस्थापित हुए एवं आपदाओं के कारण निराश्रित हुए लोगों के लिये जीवन रक्षक खाद्य उपलब्ध करवाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. FAO पारंपरिक कृषि प्रणालियों को 'सार्वभौमिक रूप से महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (Globally Important System- GIAHS) की हैसियत प्रदान करता है। इस पहल का संपूर्ण लक्ष्य क्या है? (2016)

  1. अभिनिर्धारित GIAHS के स्थानीय समुदायों को आधुनिक प्रौद्योगिकी, आधुनिक कृषि प्रणाली का प्रशिक्षण एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना जिससे उनकी कृषि उत्पादकता अत्यधिक बढ़ जाए।
  2. पारितंत्र-अनुकूली परंपरागत कृषि पद्धतियाँ और उनसे संबंधित परिदृश्य (लैंडस्केप), कृषि जैवविविधता तथा स्थानीय समुदायों के ज्ञानतंत्र का अभिनिर्धारण एवं संरक्षण करना।
  3. इस प्रकार चिह्नित अभिनिर्धारित GIAHS के सभी भिन्न-भिन्न कृषि उत्पादों को भौगोलिक सूचक (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) की हैसियत प्रदान करना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


एवरग्रीनिंग लोन

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), तनावग्रस्त ऋण, पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG)  मानदंड, संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (ARC)

मेन्स के लिये:

एवरग्रीनिंग लोन, एवरग्रीनिंग लोन के लिये उपयोगी दृष्टिकोण

चर्चा में क्यों : 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर ने हाल ही में बैंक बोर्डों को संबोधित किया तथा बैंकों द्वारा अति-आक्रामक विकास रणनीतियों को अपनाने और एवरग्रीनिंग लोन में संलग्न होने के बारे में चिंता व्यक्त की।

एवरग्रीनिंग लोन: 

  • परिचय:  
    • एवरग्रीनिंग लोन, ज़ोंबी ऋण का एक रूप है, यह एक उधारकर्त्ता, जो वर्तमान में प्राप्त ऋणों को चुकाने में असमर्थ है, को नए या अतिरिक्त ऋण देने का एक तरीका है, जिससे गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA) या बैड लोन्स की वास्तविक स्थिति को छुपाया जाता है।
  • एवरग्रीनिंग लोन के लिये प्रयुक्त दृष्टिकोण:
    •  NPAs के रूप में वर्गीकृत करने से बचने के लिये दो उधारदाताओं के बीच ऋण या ऋण उपकरणों को बेचना और खरीदना
    • अच्छे कर्ज़दारों के डिफॉल्ट को छिपाने के लिये तनावग्रस्त कर्ज़दारों के साथ संरचित सौदे करने पर सहमति व्यक्त करना।
    • उधारकर्त्ताओं के पुनर्भुगतान दायित्वों को समायोजित करने के लिये आंतरिक या कार्यालयी खातों का उपयोग करना।
    • तनावग्रस्त उधारकर्त्ताओं या संबंधित संस्थाओं को पहले के ऋणों के भुगतान की तारीख के आस-पास नए ऋणों का नवीनीकरण या वितरण करना।
  • प्रभाव:  
    • एवरग्रीनिंग लोन बैंकों की परिसंपत्ति की गुणवत्ता और लाभप्रदता की गलत धारणा बना सकते हैं और दबावयुक्त परिसंपत्तियों की पहचान और उनके समाधान में देरी कर सकते हैं।
    • यह ऋण अनुशासन के साथ उधारकर्त्ताओं के बीच नैतिक जोखिम को भी कम कर सकता है तथा जमाकर्त्ताओं, निवेशकों और नियामकों के विश्वास को समाप्त कर सकता है।

गैर-निष्पादित परिसंपत्ति: 

  • NPA उन ऋणों या अग्रिमों के वर्गीकरण को संदर्भित करता है जो डिफाल्ट रूप से हैं या मूलधन या ब्याज के निर्धारित भुगतान पर बकाया हैं।
  • बैंकों को गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों को उस अवधि के आधार पर निम्नलिखित तीन श्रेणियों में वर्गीकृत करने की आवश्यकता होती है, जिसके लिये परिसंपत्ति गैर-निष्पादित रही है और देय राशि की वसूली होनी है:
    • सब-स्टैंडर्ड एसेट्स: यह कोई एसेट्स 12 महीने या उससे कम समय तक गैर-निष्पादित परिसंपत्ति रहता है, वह सब-स्टैंडर्ड एसेट्स कहलाता है।
    • डाउटफुल एसेट्स: यह एक ऐसी परिसंपत्ति है जो 12 महीनों से अधिक समय तक गैर-निष्पादित है
    • लॉस एसेट्स: ऐसी परिसंपत्तियाँ जो संग्रहणीय नहीं हैं और जहाँ वसूली की बहुत कम या कोई उम्मीद नहीं है तथा जिसे पूरी तरह से बट्टे खाते में डालने की आवश्यकता है।
  • लोन राइट-ऑफ बनाम एवरग्रीनिंग:  
    • ऋणों के पर्याप्त प्रावधान करने के बाद बैंकों की बैलेंस शीट से सभी बैड लोन को हटाने की एक प्रक्रिया को लोन राइट-ऑफ कहा जाता है। लोन राइट-ऑफ का मतलब यह नहीं है कि कर्ज़दार अपने पुनर्भुगतान दायित्वों से मुक्त हो गया है या बैंक ने वसूली करना बंद कर दिया हैं। बैंकों की बैलेंस शीट को अच्छा दिखाने और सही वित्तीय स्थिति को दर्शाने के लिये लोन राइट-ऑफ किया जाता है। 
      •  राइट-ऑफ अभ्यास ने बैंकों को पिछले पाँच वर्षों में 10,09,510 करोड़ रुपए (123.86 बिलियन डॉलर) की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों या डिफॉल्टेड ऋणों को कम करने में सक्षम बनाया है।
      •  दूसरी ओर, एवरग्रीनिंग लोन, एक ऐसे उधारकर्त्ता को नए या अतिरिक्त ऋण देने की एक प्रक्रिया है जो मौजूदा ऋणों को चुकाने में असमर्थ है, जिससे गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA) या बैड लोन्स की सही स्थिति को छिपाया जाता है।
  • RBI की पहल:  
    • RBI ने बैंकों को अत्यधिक आक्रामक विकास रणनीतियों, उत्पादों के कम या अधिक मूल्य निर्धारण, जमा या क्रेडिट प्रोफाइल में एकाग्रता या विविधीकरण की कमी को अपनाने के प्रति आगाह किया है, जो उच्च जोखिम और कमज़ोरियों को उजागर कर सकता है।
    • RBI ने बैंकिंग क्षेत्र को समर्थन देने के लिये विभिन्न उपायों को भी लागू किया है, जिसमें तरलता सहायता प्रदान करना, विनियामक सहनशीलता, परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (ARC) की स्थापना और समाधान ढाँचा शामिल है।
      • हालाँकि RBI ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि यदि बैंक अपने जोखिम प्रबंधन और शासन प्रथाओं में सुधार नहीं करते हैं तो ये उपाय अपर्याप्त हैं।
    • कई बैंकों ने अपने ग्राहक को जानें (KYC), ग्राहक शिकायत निवारण, धोखाधड़ी रिपोर्टिंग आदि से संबंधित विभिन्न मानदंडों का उल्लंघन करने पर RBI द्वारा लगाए गए दंड का सामना किया है।
      • भारतीय रिज़र्व बैंक ने अभिशासन संबंधी मुद्दों के कारण कुछ महत्त्वपूर्ण निजी क्षेत्र के बैंकों के विरुद्ध पर्यवेक्षी कार्रवाई भी की है।

नोट: संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी एक विशेष वित्तीय संस्थान है जो बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों की गैर-निष्पादित संपत्तियों (NPA) को प्राप्त करने तथा हल करने में सक्षम है। बैंकिंग क्षेत्र में NPA की बढ़ती समस्या की प्रतिक्रिया के रूप में 1990 के दशक के अंत में ARC को भारत में पेश किया गया था।

एवरग्रीनिंग लोन का नियंत्रण:  

  • उन्नत जोखिम मूल्यांकन:  वित्तीय संस्थानों को उधारकर्त्ताओं की साख का सटीक मूल्यांकन करने के लिये मज़बूत जोखिम मूल्यांकन प्रथाओं को अपनाना चाहिये।
    • इसमें पूरी तरह से सावधानी बरतना, चुकौती क्षमता का विश्लेषण करना और उधारकर्त्ता के व्यवसाय मॉडल की व्यवहार्यता का आकलन करना शामिल है। संभावित जोखिमों की सटीक पहचान करके ऋणदाता सर्वकालिक ऋणों की आवश्यकता से बच सकते हैं। 
  • पारदर्शी रिपोर्टिंग और प्रकटीकरण: एवरग्रीनिंग लोन को रोकने में पारदर्शिता महत्त्वपूर्ण है। उधारदाताओं को गैर-निष्पादित ऋण (NPL) और ऋण पुनर्गठन सहित अपने ऋण पोर्टफोलियो पर सटीक एवं समय पर जानकारी प्रदान करनी चाहिये।
    • स्पष्ट और पारदर्शी प्रकटीकरण आवश्यकताएँ नियामकों, निवेशकों तथा अन्य हितधारकों को बैंकों की वित्तीय स्थिति का आकलन करने एवं किसी भी संभावित सर्वकालिकता प्रथाओं की पहचान करने में सक्षम बनाती हैं। 
  • परिसंपत्ति देयता प्रबंधन:  एसेट-लायबिलिटी मैनेजमेंट (ALM) के महत्त्व पर ज़ोर देने की आवश्यकता है।
    • ALM  में संपत्ति और देनदारियों, ब्याज़ दर में उतार-चढ़ाव तथा अन्य बाज़ार जोखिमों के बीच परिपक्वता बेमेल से उत्पन्न होने वाले संभावित जोखिमों का आकलन एवं निगरानी करना शामिल है।
    • बैंकों को सलाह दी गई है कि सोशल मीडिया पर ऐसी किसी भी गलत सूचना या अफवाह को दूर करने के लिये मीडिया से तुरंत बातचीत करें, जिससे जमाकर्त्ताओं में हलचल पैदा हो सकती है। 
  • ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) मानदंड: बैंकों को ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) मानदंडों का पालन करने की आवश्यकता है क्योंकि वे निवेशकों और हितधारकों के लिये तेज़ी से प्रासंगिक होते जा रहे हैं।
    • बैंकों को स्थायी व्यवसाय प्रथाओं को अपनाना चाहिये, अपने ESG प्रदर्शन का खुलासा करना चाहिये और जलवायु परिवर्तन तथा सामाजिक कल्याण पर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ अपनी उधार नीतियों को संरेखित करना चाहिये।
    • ESG लक्ष्य, कंपनी के संचालन हेतु मानकों का एक समूह (Set) है जो कंपनियों को बेहतर शासन, नैतिक प्रथाओं, पर्यावरण के अनुकूल उपायों तथा सामाजिक उत्तरदायित्व का पालन कराने पर बल देता है।
  • पी.जे. नायक समिति की सिफारिशें:
    • भारत में बैंकों बोर्डों के शासन की समीक्षा समिति के अनुसार, जहाँ भी RBI द्वारा किसी बैंक में महत्त्वपूर्ण एवरग्रीनिंग का पता लगाया जाता है, तो संबंधित अधिकारियों तथा सभी पूर्णकालिक निदेशकों पर निवेशित स्टॉक विकल्पों को रद्द कर एवं मौद्रिक बोनस वापस लेने (क्लॉ-बैक/Claw-Back) के माध्यम से ज़ुर्माना लगाया जाना चाहिये तथा ऑडिट समिति के अध्यक्ष को बोर्ड द्वारा पद से हटाया जाना चाहिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रश्न. भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकिंग के शासन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. पिछले दशक में भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पूंजी प्रवाह में लगातार वृद्धि हुई है। 
  2. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को व्यवस्थित करने के लिये भारतीय स्टेट बैंक के साथ सहयोगी बैंकों का विलय प्रभावित हुआ है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


लद्दाख में प्राचीन जलवायु रहस्य का अनावरण

प्रिलिम्स के लिये:

विहिमनदन, मानसून, अंतः उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ), अल नीनो, हिमालयी क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन

मेन्स के लिये:

जलवायु अनुसंधान में लद्दाख का महत्त्व

चर्चा में क्यों?  

वैज्ञानिकों ने लगभग 19.6 से 6.1 हज़ार वर्ष पहले अंतिम विहिमनदन अवधि के दौरान जलवायु परिवर्तन को समझने में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है।  

  • लद्दाख में सिंधु नदी घाटी में प्राचीन झीलों से तलछट जमाव का अध्ययन करके वैज्ञानिकों ने जलवायु रिकॉर्ड का पुनर्निर्माण किया है तथा इस क्षेत्र के जलवायु इतिहास पर प्रकाश डाला है।

शोध के प्रमुख निष्कर्ष:  

  •  अनुसंधान क्रियाविधि:  
    • वैज्ञानिकों ने सिंधु नदी के किनारे 3287 मीटर की ऊँचाई पर पाई गई 18 मीटर मोटी तलछट जमाव के नमूने लिये।
    • शोधकर्त्ताओं ने रंग, बनावट, कण का आकार, कण की संरचना, कुल ऑर्गेनिक कार्बन और चुंबकीय मापदंडों जैसी भौतिक विशेषताओं की जाँच करते हुए नमूनों का सावधानीपूर्वक प्रयोगशाला में गहन विश्लेषण किया।
      • इन मापदंडों का उपयोग पैलियोलेक तलछट जमाव से पिछली जलवायु स्थितियों के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिये किया गया था।
  • जलवायु विकास से संबंधित प्रमुख निष्कर्ष: 
    • 19.6 से 11.1 हज़ार वर्ष पहले के बीच पश्चिमी परिसंचरण के प्रभाव के कारण ठंडी शुष्क जलवायु इस क्षेत्र पर हावी थी
    • 11.1 से 7.5 हज़ार वर्ष पहले मानसूनी दबाव जलवायु का प्राथमिक चालक बन गया जिस कारण मानसून की एक मज़बूत अवधि देखी गई।
    • बाद में कक्षीय रूप से नियंत्रित सौर आतपन ने इंटर ट्रॉपिकल कन्वर्ज़ेंस ज़ोन (ITCZ) की स्थिति और वायुमंडलीय परिसंचरण की परिवर्तनशीलता को प्रभावित करके जलवायु को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • मध्य-होलोसीन (7.5 से 6.1 हजार वर्ष पूर्व) के दौरान पछुआ हवाओं ने ताकत हासिल कर ली, जो घटते सूर्यातप, कमज़ोर मानसून और अल नीनो गतिविधियों में वृद्धि के साथ मेल खाता था।
    • यह अध्ययन उच्च रेज़ोल्यूशन और सटीकता के साथ पुरातन जलवायु विविधताओं (पृथ्वी की जलवायु में अतीत में होने वाले भू-वैज्ञानिक परिवर्तन) के पुनर्निर्माण के लिये तलछट के विविध भौतिक मापदंडों का उपयोग करने की क्षमता को भी प्रदर्शित करता है।

जलवायु अनुसंधान में लद्दाख का महत्त्व:

  • उच्च ऊँचाई वाला वातावरण: ट्रांस-हिमालय में स्थित लद्दाख क्षेत्र उत्तरी अटलांटिक और मानसून बलों के बीच एक पर्यावरणीय सीमा के रूप में कार्य करता है।
    • यह क्षेत्र अत्यधिक तापमान, कम ऑक्सीजन स्तर और शुष्क परिस्थितियों की विशेषता है।
    • जलवायु की गतिशीलता और ऐसे उच्च ऊँचाई वाले वातावरण में परिवर्तन का अध्ययन करने से वैज्ञानिकों को दुनिया भर में समान क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है।
  • वायुमंडलीय परिसंचरण का अध्ययन करने हेतु आदर्श:  इसकी भौगोलिक स्थिति इसे पश्चिमी हवाओं और भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून सहित वायुमंडलीय परिसंचरण में विविधताओं का अध्ययन करने के लिये आदर्श बनाती है।
    • ग्लोबल वार्मिंग और क्षेत्रीय जलवायु पैटर्न के लिये इसके प्रभाव के संदर्भ में इन वायुमंडलीय परिसंचरणों की परिवर्तनशीलता को समझना महत्त्वपूर्ण है।
    • तलछटी साक्ष्य : इस क्षेत्र में तलछटी साक्ष्य बड़ी मात्रा में मौजूद हैं जिनका उपयोग प्राचीन जलवायु को समझने के लिये किया जा सकता है। 
  • दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन:  
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि झीलों में निरंतर अवसादन दर देखी जाती है और तलछट की भौतिक एवं रासायनिक विशेषताओं को संरक्षित करती है जो पिछले पर्यावरणीय परिस्थितियों को दर्शाती हैं। 
  • ग्लेशियल रिट्रीट/हिमनद का पीछे हटना: लद्दाख सहित हिमालयी क्षेत्र कई हिमनदों का घर है जो सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के लिये ताज़े जल के महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करते हैं।   
    • जलवायु परिवर्तन से इन हिमनदों के पीछे हटने (निवर्तन) में तेज़ी लाई है, जिससे जल सुरक्षा, नदी के प्रवाह पैटर्न में बदलाव एवं स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र तथा समुदायों पर संभावित प्रभावों के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं। 
      • लद्दाख हिमनद परिवर्तनों की निगरानी और ग्लेशियल रिट्रीट के परिणामों का अध्ययन करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करता है। 
    • इसके अलावा एक हिमनद से अंतर-हिमनदी जलवायु अवधि में संक्रमण बड़े पैमाने पर जलवायु पुनर्गठन पर ज़ोर देता है। इस संक्रमणकालीन चरण के दौरान गतिशीलता को समझना जलवायु विकास को समझने के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
      • लद्दाख जैसे पहाड़ी क्षेत्र विशेष रूप से अपनी अनूठी भू-आकृति संबंधी विशेषताओं के कारण इन परिवर्तनों के लिये अतिसंवेदनशील हैं।

पश्चिमी परिसंचरण:

  • यह दोनों गोलार्द्धों के मध्य अक्षांशों में प्रबल पवनों के पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाह को संदर्भित करता है।
  • यह पृथ्वी के घूर्णन तथा भूमध्य रेखा और ध्रुवों के बीच तापमान के अंतर के कारण होता है। पश्चिमी पवनें मौसम पैटर्न तथा क्षेत्रों में गर्मी, नमी एवं प्रदूषकों के परिवहन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

कक्षीय रूप से नियंत्रित सौर आतपन: 

  • यह सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा में परिवर्तन के कारण पृथ्वी पर प्राप्त होने वाले सौर विकिरण की मात्रा में भिन्नता को संदर्भित करता है।
  • ये कक्षीय विविधताएँ दीर्घावधि (जैसे दसियों हज़ार वर्ष) में होती हैं तथा जलवायु पैटर्न को प्रभावित कर सकती हैं।

अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र:

  • ITCZ भूमध्य रेखा के पास एक निम्न दबाव क्षेत्र है जहाँ उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध से आने वाली व्यापारिक पवनें मिलती हैं।
  • यह प्रचुर वर्षा की विशेषता है और उष्णकटिबंधीय वर्षावनों तथा मानसून प्रणालियों के निर्माण के लिये ज़िम्मेदार है।
    • ITCZ बदलते मौसम के साथ सूर्य की चरम स्थिति के बाद उत्तर और दक्षिण की ओर पलायन करता है।

अल-नीनो गतिविधियाँ: 

  • अल-नीनो एक जलवायु घटना है जो उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में होती है। इसमें समुद्र की सतह के तापमान का गर्म होना, वायुमंडलीय परिसंचरण और मौसम प्रणालियों के सामान्य पैटर्न को बाधित करना शामिल है।
  • अल-नीनो की घटनाओं के दौरान व्यापारिक पवनें कमज़ोर हो जाती हैं और पश्चिमी प्रशांत महासागर से गर्म जल पूर्व की ओर बहता है जिससे वैश्विक स्तर पर वर्षा के पैटर्न में बदलाव होता है। अल-नीनो का मौसम, कृषि, मत्स्य पालन तथा पारिस्थितिक तंत्र पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित ‘इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (2017)

  1. IOD परिघटना, उष्णकटिबंधीय पश्चिमी हिंद महासागर एवं उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर के बीच सागर पृष्ठ तापमान के अंतर से विशेषित होती है।
  2. IOD परिघटना मानसून पर अल-नीनो के असर को प्रभावित कर सकती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b) 


प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2019) 

  हिमनद         नदी

बंदरपूँछ          : यमुना
2. बारा शिग्री   : चेनाब
3. मिलाम       : मंदाकिनी
4. सियाचिन     : नुब्रा
5. जेमू          : मानस

उपर्युक्त में से कौन-से युग्म सही सुमेलित हैं?

(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2 और 5   
(d) केवल 3 और 5

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • हिमालय के गढ़वाल मंडल में यमुना नदी द्रोणी का एक महत्त्वपूर्ण हिमनद है, जिसे बंदरपूँछ के नाम से जाना जाता है। यह हिमनद बंदरपूँछ पश्चिम, खतलिंग चोटी और बंदरपूँछ चोटी के उत्तरी ढलानों पर 12 किमी. तक विस्तृत है, यह हिमनद तीन हिमगह्वर (सर्क) द्वारा निर्मित होता है जो बाद में यमुना नदी में मिलता है। अत: युग्म 1 सही सुमेलित है।
  • बारा शिग्री हिमाचल प्रदेश की चंद्र घाटी के लाहौल स्पीति क्षेत्र में स्थित सबसे बड़ा हिमनद है। जो कि लगभग 30 किलोमीटर तक विस्तृत है एवं गंगोत्री के बाद हिमालय का दूसरा सबसे विस्तृत हिमनद है। इसका प्रवाह उत्तर की ओर है और यह चिनाब नदी को जल प्रदान करता है। अतः युग्म 2 सही सुमेलित  है।
  • उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले के मुनस्यारी में मिलम हिमनद गोरी गंगा नदी का स्रोत है, न कि मंदाकिनी नदी का। गोरी गंगा भी काली नदी की एक महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है। अतः युग्म 3 सही सुमेलित नहीं है।
  • लगभग 5,400 मीटर (17,700 फीट) की ऊँचाई पर कश्मीर में अवस्थित सियाचिन हिमनद एक निषिद्ध क्षेत्र है। अत्यधिक कम ऊँचाई पर इस हिमनद का प्रभाव सौम्य है: यह नुब्रा नदी का स्रोत है, जो सिंधु नदी की एक सहायक नदी है, जो कि पाकिस्तान में प्रवाहित होती हुई अरब सागर में  मिलती है। अतः युग्म 4 सही सुमेलित है।
  • ज़ेमू हिमनद सिक्किम में अवस्थित है एवं पूर्वी हिमालय का सबसे बड़ा हिमनद है। यह कंचनजंगा के आधार पर अवस्थित है और मानस नदी के स्रोतों में से एक है, न कि तीस्ता नदी का। तीस्ता ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी है। अतः युग्म 5 सही सुमेलित नहीं है।

मेन्स:

प्रश्न. विश्व की प्रमुख पर्वत शृंखलाओं के संरेखण का संक्षिप्त उल्लेख कीजिये तथा उनके स्थानीय मौसम पर पड़े प्रभावों का सोदाहरण वर्णन कीजिये। (2021) 

प्रश्न. असामान्य जलवायवी घटनाओं में से अधिकांश अल नीनो प्रभाव के परिणाम के तौर पर स्पष्ट की जाती हैं। क्या आप सहमत हैं? (2014) 

स्रोत: पी.आई.बी.


परिसीमन

प्रिलिम्स के लिये:

परिसीमन, परिसीमन आयोग अधिनियम, 1952, भारतीय संविधान, परिसीमन आयोग, 15वाँ वित्त आयोग, भारत निर्वाचन आयोग (ECI)

मेन्स के लिये:

परिसीमन की आवश्यकता एवं संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

दक्षिणी राज्यों के कई राजनेता जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के विरोध में आवाज़ उठा रहे हैं, जिसे वे अनुचित मानते हैं।  

  • जनसंख्या नियंत्रण नीतियों का पालन करने वाले दक्षिणी राज्य अब जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में अपनी सफलता के बावजूद संभावित नुकसान का सामना कर रहे हैं। 

 परिसीमन: 

  • परिचय: 
    • परिसीमन का अर्थ है विधायी निकाय वाले देश या प्रांत में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण करने की प्रक्रिया।
      • लोकसभा (LS) और विधानसभा (LS) के लिये परिसीमन स्थानीय निकायों से अलग है। 
    • परिसीमन आयोग अधिनियम वर्ष 1952 में अधिनियमित किया गया था।
    • 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के आधार पर चार बार वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोगों का गठन किया गया है।
    • पहला परिसीमन अभ्यास वर्ष 1950-51 में राष्ट्रपति (चुनाव आयोग की मदद से) द्वारा किया गया था।
  • इतिहास: 
    • लोकसभा की राज्यवार संरचना में परिवर्तन लाने वाला अंतिम परिसीमन वर्ष 1976 में पूरा हुआ और यह वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया।
    • भारत का संविधान यह आज्ञापित करता है कि लोकसभा में सीटों का आवंटन प्रत्येक राज्य की जनसंख्या के आधार पर होना चाहिये ताकि सीटों का जनसंख्या से अनुपात सभी राज्यों में लगभग सामान हो। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक व्यक्ति के वोट का भारांक लगभग समान हो, भले ही वे किसी भी राज्य में रहते हों।
      • हालाँकि इस प्रावधान का अर्थ यह था कि जनसंख्या नियंत्रण में कम दिलचस्पी लेने वाले राज्यों को संसद में अधिक संख्या में सीटें मिल सकती हैं।
    • इस तरह के परिणामों से बचने के लिये संविधान में संशोधन किया गया। 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 ने वर्ष 1971 के परिसीमन के आधार पर वर्ष 2000 तक के लिये राज्यों में लोकसभा में सीटों के आवंटन और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन पर रोक लगा दी।
    • 84वें संशोधन अधिनियम, 2001 ने सरकार को वर्ष 1991 की जनगणना के जनसंख्या आँकड़ों के आधार पर राज्यों में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्समायोजन और युक्तिकरण का अधिकार दिया।
    • 87वें संशोधन अधिनियम, 2003 में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का प्रावधान वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर किया गया, न कि वर्ष 1991 की जनगणना के आधार पर।
      • हालाँकि यह लोकसभा में प्रत्येक राज्य को आवंटित सीटों की संख्या में बदलाव किये बिना किया जा सकता है।
  • आवश्यकता:
    • जनसंख्या के समान वर्गों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान करने हेतु।
    • भौगोलिक क्षेत्रों के उचित विभाजन हेतु ताकि चुनाव में एक राजनीतिक दल को दूसरों पर फायदा न हो।
    • "एक वोट एक मूल्य" के सिद्धांत का पालन करने हेतु।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 82 के तहत संसद प्रत्येक जनगणना के बाद एक परिसीमन अधिनियम बनाती है।
    • अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।

परिसीमन संबंधी चिंताएँ:

  • क्षेत्रीय असमानता:   
    • निर्णायक कारक के रूप में जनसंख्या के कारण लोकसभा में भारत के उत्तर और दक्षिणी भाग के बीच प्रतिनिधित्व में असमानता है।
    • केवल जनसंख्या पर आधारित परिसीमन दक्षिणी राज्यों द्वारा जनसंख्या नियंत्रण में की गई प्रगति की अवहेलना करता है और संघीय ढाँचे में असमानताओं का कारण बनता है।
      • देश की जनसंख्या का केवल 18% होने के बावजूद दक्षिणी राज्य देश के सकल घरेलू उत्पाद में 35% योगदान करते हैं।
    • उत्तरी राज्य जनसंख्या नियंत्रण को प्राथमिकता नहीं देते हैं तथा उच्च जनसंख्या वृद्धि के कारण परिसीमन प्रक्रिया में उन्हें लाभ मिलने की उम्मीद है।
  • अपर्याप्त वित्तपोषण:  
    • 15वें वित्त आयोग द्वारा 2011 की जनगणना को अपनी सिफारिश के आधार के रूप में उपयोग करने के बाद दक्षिणी राज्यों के संसद में वित्तपोषण और प्रतिनिधित्व खोने के बारे में चिंता जताई गई।
    • इससे पहले 1971 की जनगणना को राज्यों को वित्तपोषण और कर विचलन सिफारिशों के आधार के रूप में उपयोग किया गया था।
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को प्रभावित करना:
    • सीटों के निर्धारित परिसीमन और पुनः आवंटन के परिणामस्वरूप न केवल दक्षिणी राज्यों के लिये सीटों की हानि हो सकती है बल्कि उत्तर में अपने आधार के साथ राजनीतिक दलों के लिये सत्ता में वृद्धि भी हो सकती है।
      • यह संभवतः उत्तर की ओर और दक्षिण से दूर शक्ति का स्थानांतरण कर सकता है।
    • यह अभ्यास प्रत्येक राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के लिये आरक्षित सीटों के विभाजन को भी प्रभावित करेगा (अनुच्छेद 330 और 332 के तहत)।

परिसीमन आयोग

  • गठन:
    • परिसीमन आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है तथा भारत निर्वाचन आयोग के सहयोग से कार्य करता है।
  • संरचना:
    • सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश
    • मुख्य निर्वाचन आयुक्त
    • संबंधित राज्य के निर्वाचन आयुक्त
  • कार्य:
    • सभी निर्वाचन क्षेत्रों की जनसंख्या को लगभग बराबर करने के लिये निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं का निर्धारण करना।
    • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षित सीटों की पहचान करना, जहाँ उनकी जनसंख्या अपेक्षाकृत अधिक है।
  • शक्तियाँ:
    • आयोग के सदस्यों के बीच मतभेद के मामले में बहुमत की राय प्रबल होती है।
    • भारत में परिसीमन आयोग एक उच्च-शक्ति प्राप्त निकाय है, जिसके आदेशों को कानून का संरक्षण प्राप्त होता है और किसी भी न्यायालय के समक्ष इस पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है।

आगे की राह 

  • वर्ष 2031 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं को फिर से परिभाषित करने हेतु एक परिसीमन आयोग का गठन किया जाना चाहिये। परिसीमन आयोग द्वारा की गई जनसंख्या सिफारिशों के आधार पर राज्यों को छोटे राज्यों में विभाजित करने के लिये एक राज्य पुनर्गठन अधिनियम बनाया जाना चाहिये।
  • पिछले परिसीमन अभ्यास ने बताया कि भारत की जनसंख्या में वृद्धि हुई है तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व में परिणामी विषमता को दूर करने की आवश्यकता पर बल दिया है।
  • परिसीमन की कसौटी के रूप में केवल जनसंख्या पर निर्भर रहने के बजाय अन्य कारकों जैसे कि विकास संकेतक, मानव विकास सूचकांक और परिवार नियोजन कार्यक्रमों को लागू करने के प्रयासों पर विचार करना चाहिये। यह राज्यों की ज़रूरतों और उपलब्धियों का अधिक व्यापक एवं न्यायसंगत प्रतिनिधित्व प्रदान करेगा।
  • जिन राज्यों ने प्रभावी ढंग से परिवार नियोजन कार्यक्रमों को लागू किया है उनके प्रयासों की सराहना और पुरस्कृत किया जाना चाहिये।
  • संतुलित दृष्टिकोण को शामिल करने के लिये निधियों के हस्तांतरण के दिशा-निर्देशों की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिये। 
  • विलय के लिये प्रस्तावित क्षेत्रों की विकास क्षमता और जनसंख्या में उनकी वृद्धि को परिसीमन अभ्यास के मानदंड के रूप में देखा जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. परिसीमन आयोग के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. परिसीमन आयोग के आदेश को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
  2.  जब परिसीमन आयोग के आदेश लोकसभा या राज्य विधानसभा के समक्ष रखे जाते हैं, तो वे आदेशों में कोई संशोधन नहीं कर सकते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

स्रोत: द हिंदू


तंबाकू की खेती और खाद्य असुरक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), तंबाकू, खाद्य और कृषि संगठन, तंबाकू नियंत्रण पर फ्रेमवर्क कन्वेंशन, विश्व खाद्य कार्यक्रम, विश्व तंबाकू निषेध दिवस, इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट अध्यादेश के निषेध का प्रचार, 2019

मेन्स के लिये:

वैश्विक खाद्य संकट पर तंबाकू की खेती का प्रभाव

चर्चा में क्यों?  

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने तंबाकू की खेती के बजाय खाद्य उत्पादन को प्राथमिकता देने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए एक नई रिपोर्ट जारी की है।

  • रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया गया है कि विश्व भर में लगभग 349 मिलियन लोग वर्तमान में गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, जबकि मूल्यवान उपजाऊ भूमि पर तंबाकू की खेती का वर्चस्व है। अपनी फसलों को प्रतिस्थापित करने के प्रयासों में तंबाकू उद्योग का हस्तक्षेप वैश्विक खाद्य संकट में वृद्धि कर रहा है।
  • साथ ही हर साल 31 मई को मनाया जाने वाला विश्व तंबाकू निषेध दिवस (World No Tobacco Day) वैश्विक तंबाकू महामारी के खिलाफ चल रहे अभियान की याद दिलाता है। वर्ष 2023 के लिये इस दिवस की थीम है “खाद्य उगाएँ, तंबाकू नहीं”(Grow food, not tobacco)।

नोट: खाद्य असुरक्षा एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करती है जहाँ व्यक्तियों या समुदायों के पास पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन की विश्वसनीय उपलब्धता, पहुँच, सामर्थ्य नहीं है जो कि एक सक्रिय और स्वस्थ जीवन के लिये उनकी आहार संबंधी ज़रूरतों और प्राथमिकताओं को पूरा करता है।

तंबाकू की खेती से संबंधित वैश्विक खाद्य संकट:

  • भूमि उपयोग प्रतियोगिता: खाद्य उत्पादन और तंबाकू की खेती दोनों के लिये भूमि की आवश्यकता होती है। 
    • तंबाकू की खेती 124 से अधिक देशों में प्रचलित है, जो महत्त्वपूर्ण कृषि भूमि पर कब्ज़ा कर रही है इस भूमि का उपयोग खाद्य उत्पादन के लिये किया जा सकता है।
    • कृषि योग्य भूमि के लिये यह प्रतियोगिता खाद्य उत्पादन को सीमित कर सकती है तथा  वैश्विक खाद्य संकट को और अधिक बढ़ा सकती है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ खाद्य सुरक्षा पहले से ही एक चुनौती है।
    • संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (FAO) भी विश्व भर के विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ती खाद्य असुरक्षा की चेतावनी दे रहा है।
  • संसाधन विचलन: तंबाकू की खेती के लिये जल, उर्वरक और श्रम सहित महत्त्वपूर्ण मात्रा में संसाधनों की आवश्यकता होती है।
    • तंबाकू उत्पादन के लिये इन संसाधनों के विचलन के परिणामस्वरूप खाद्य फसलों की सीमित उपलब्धता हो सकती है, जिससे कृषि उत्पादकता और भोजन की कमी हो सकती है। 
  • वित्तीय प्रभाव: तंबाकू की खेती किसानों के लिये आर्थिक रूप से लाभदायक हो सकती है जिससे वे खाद्य फसलों की तुलना में तंबाकू की खेती को प्राथमिकता देते हैं।
    • तंबाकू जैसी नकदी फसलों के लिये यह वरीयता प्रधान खाद्य फसलें उगाने के प्रोत्साहन को कम कर सकती है जो भूख और खाद्य सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिये आवश्यक है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: तंबाकू की खेती के तरीकों के प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं।
    • वनों की कटाई, मृदा क्षरण और जल प्रदूषण प्राय: तंबाकू की खेती से संबंधित होते हैं। ये पर्यावरणीय प्रभाव स्थायी खाद्य उत्पादन के लिये आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता को और अधिक प्रभावित कर सकते हैं।
  • स्वास्थ्य परिणाम: तंबाकू का उपयोग एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है जिससे दुनिया भर में कई बीमारियाँ और अकाल मृत्यु की घटनाएँ होती हैं। तंबाकू की खेती किसानों के लिये गंभीर स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न करती है जिसमें कीटनाशकों के संपर्क में आना तथा त्वचा के माध्यम से निकोटीन का अवशोषण शामिल है।
    • तंबाकू से संबंधित बीमारियों के स्वास्थ्य संबंधी परिणाम अप्रत्यक्ष रूप से खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर सकते हैं:
      • उत्पादक श्रमबल की संख्या में कमी लाकर 
      • स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर अतिरिक्त बोझ डालकर
      • संसाधनों को भोजन/खाद्य से संबंधित पहलों से दूर करके
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, तंबाकू का उपयोग प्रत्येक वर्ष 8 मिलियन से अधिक लोगों की मृत्यु का कारण बनता है और लाखों लोग अप्रत्यक्ष रूप से इसके धुएं के संपर्क में आते हैं।

नोट: निकोटिन तंबाकू के पौधे (निकोटियाना टैबैकम) और नाइटशेड प्रजाति के कुछ अन्य पौधों की पत्तियों में पाया जाने वाला एक रासायनिक यौगिक है। यह अल्कलॉइड है जो शामक और उत्तेजक दोनों है।

भारत में तंबाकू की खपत 

  • स्थिति:
    • तंबाकू का उपयोग कई गैर-संचारी रोगों जैसे- कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह और पुरानी फेफड़ों की बीमारियों के लिये एक प्रमुख जोखिम कारक के रूप में जाना जाता है। भारत में लगभग 27% कैंसर तंबाकू के उपयोग के कारण होता है।
      • चीन के बाद भारत तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और उत्पादक भी है।
    • ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे इंडिया 2016-17 के अनुसार, भारत में लगभग 267 मिलियन वयस्क (15 वर्ष और उससे अधिक) (सभी वयस्कों का 29%) तंबाकू का उपभोग करते हैं।
  • तंबाकू पर नियंत्रण के लिये भारतीय पहल:
    • ई-सिगरेट निषेध अध्यादेश, 2019 की घोषणा ई-सिगरेट के उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण, भंडारण और विज्ञापन पर रोक लगाती है।
    • भारत सरकार ने नेशनल टोबैको क्विटलाइन सर्विसेज़ (NTQLS) की शुरुआत की, जिसका एकमात्र उद्देश्य तंबाकू की समाप्ति के लिये टेलीफोन आधारित सूचना, सलाह, समर्थन और रेफरल प्रदान करना है।
    • भारत के केंद्रीय वित्त मंत्री ने बजट 2023-24 में सिगरेट पर राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक शुल्क (NCCD) में 16% की वृद्धि की घोषणा की।
    •  केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने स्‍ट्रीम सामग्री के दौरान तंबाकू से संबंधित स्‍वास्‍थ्‍य चेतावनी प्रदर्शित करने के लिये ओवर-द-टॉप (OTT) प्‍लेटफॉर्मों की आवश्‍यकता वाले नए नियमों की घोषणा की है।
      • OTT प्लेटफॉर्म को तंबाकू उत्पादों या उनके उपयोग को प्रदर्शित करने वाले कार्यक्रमों की शुरुआत और मध्य में तंबाकू विरोधी स्वास्थ्य स्पॉट संलग्न करना चाहिये।
      • भारत में टेलीविज़न एवं फिल्मों के लिये हेल्थ स्पॉट और तंबाकू से संबंधित चेतावनियाँ पहले से ही अनिवार्य हैं।

तंबाकू की कृषि को संबोधित करने हेतु WHO द्वारा किये गए कार्य:

  • WHO तंबाकू नियंत्रण पर फ्रेमवर्क अभिसमय (WHO-FCTC) के महत्त्व पर ज़ोर देता है, जो तंबाकू की खपत एवं इसके प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने के उद्देश्य से पहला अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
  • WHO ने तंबाकू मुक्त कृषि पहल शुरू करने के लिये संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) तथा विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के साथ भागीदारी की है, जिसका उद्देश्य केन्या और जाम्बिया जैसे देशों में किसानों को वैकल्पिक फसलों की खेती के लिये माइक्रोक्रेडिट ऋण, ज्ञान एवं प्रशिक्षण के माध्यम से सहायता प्रदान करना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस