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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वैश्विक खाद्य संकट पर भारत की प्रतिक्रिया

  • 01 Apr 2022
  • 13 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 31/03/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “India’s food response as ‘Vasudhaiva Kutumbakam’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत द्वारा ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के दृष्टिकोण के अनुरूप वैश्विक खाद्य संकट के प्रबंधन में दी गई सहायता के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

वैश्विक भुखमरी में वृद्धि हो रही है जो जलवायु संकट, महामारी के आघात, संघर्ष, गरीबी और असमानता जैसे घटकों से प्रेरित है। लाखों लोग भुखमरी में जी रहे हैं और लाखों लोगों की पर्याप्त भोजन तक पहुँच नहीं है।

वैश्विक खाद्य संकट के बीच भारत ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की अपनी धारणा को साकार करते हुए कई खाद्य-असुरक्षित देशों के लिये संकट के समय के मित्र के रूप में उभरा है। पिछले दशकों में भारत सहायता की आवश्यकता रखने वाले देश से विभिन्न देशों को सहायता प्रदान करने वाले देश में रूप में परिणत हो गया है।

वैश्विक भुखमरी परिदृश्य 

  • वर्ष 2019 में दुनिया भर में 650 मिलियन लोग चरम भुखमरी से पीड़ित थे और वर्ष 2014 की तुलना में उनकी संख्या में 43 मिलियन की वृद्धि हुई थी।
    • महामारी के उभार के बाद से भुखमरी के कगार पर रहने वाले लोगों की संख्या एक वर्ष पहले के 135 मिलियन से दोगुनी होकर 270 मिलियन हो गई है।
  • वर्तमान में वर्ष 2015 की तुलना में अधिक लोग भुखमरी के शिकार हैं, जबकि उल्लेखनीय है कि 2015 में भारत सहित संयुक्त राष्ट्र के अन्य सदस्य देशों ने सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) पर सहमति व्यक्त की थी जो लोगों के लिये और पृथ्वी के लिये, वर्तमान के लिये और भविष्य में, शांति एवं समृद्धि के लिये एक साझा खाका प्रदान करते हैं।
  • कुपोषण का वैश्विक बोझ बहुत अधिक बना हुआ है, जहाँ लगभग 150 मिलियन बच्चे स्टंटिंग के शिकार हैं, लगभग 50 मिलियन बच्चे वेस्टिंग से ग्रस्त हैं, और हर दूसरा बच्चा (और दो मिलियन वयस्क) सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी से पीड़ित हैं।
    • तत्काल खाद्य सहायता की आवश्यकता रखने वाले लोगों की संख्या वर्ष 2021 में 270 मिलियन अनुमानित थी, जिसमें अफगानिस्तान में जारी संकट और यूक्रेन में चल रहे युद्ध के कारण उल्लेखनीय वृद्धि होगी।

‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भारतीय अवधारणा 

  • भारतीय पारंपरिक दार्शनिक दृष्टिकोण में निहित ‘वसुधैव कुटुंबकम’ (यानी ‘पृथ्वी एक परिवार है’) की अवधारणा ने संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा संकटों की सामूहिक प्रकृति और उस पर आवश्यक सुसंगत प्रतिक्रिया की आवश्यकता को रेखांकित करने के क्रम में उद्धृत किये जाने के बाद से पिछले 75 वर्षों में वृहत प्रासंगिकता प्राप्त कर ली है। 
    • इस अवधारणा में निहित है कि विविध राष्ट्र एक समूह की रचना करते हैं और चिंता एवं मानवता के साझा संबंध से मुँह नहीं मोड़ सकते।
  • वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत विश्व को एक परिवार के रूप में देखता है और इस तरह न केवल वैश्विक शांति, सहयोग, पर्यावरण संरक्षण के लिये बल्कि बढ़ती वैश्विक भुखमरी से मुकाबले और किसी को पीछे नहीं छोड़ने के रूप में मानवीय प्रतिक्रिया के लिये भी इस अवधारणा की प्रासंगिकता को रेखांकित किया था।

खाद्य संकट के संदर्भ में भारत के विज़न की पूर्ति 

  • संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (UN World Food Programme- UN WFP) के माध्यम से अफगानिस्तान के लोगों के लिये भारत की हालिया और जारी मानवीय खाद्य सहायता मानवीय संकटों के प्रति इसकी प्रतिबद्धता और प्रशंसनीय प्रयासों का उदाहरण है।
    • भारत अपनी प्रतिबद्धता के अनुरूप पाकिस्तान के माध्यम से अफगानिस्तान को गेहूँ के रूप में 50,000 मीट्रिक टन (MT) खाद्य सहायता भेज रहा है।
    • यह देखते हुए कि वर्ष 2022 में अफगानिस्तान की लगभग आधी आबादी (22.8 मिलियन लोग) के खाद्य असुरक्षित होने की आशंका है (जिसमें 8.7 मिलियन लोग अकाल जैसी स्थितियों का जोखिम रखते हैं), भारत की यह सहायता अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • पिछले दो वर्षों में भारत ने प्राकृतिक आपदाओं और कोविड-19 महामारी से उबरने के लिये अफ्रीका और मध्य पूर्व/पश्चिम एशिया के कई देशों को सहायता प्रदान की है।

खाद्य पर्याप्तता के मामले में भारत की स्थिति

  • हरित क्रांति के बाद से भारत ने खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक प्रेरक यात्रा के साथ खाद्य उत्पादन में भारी प्रगति दर्ज की है।
    • वर्ष 2020 में भारत ने 300 मिलियन टन से अधिक खाद्यान्न का उत्पादन किया और 100 मिलियन टन के खाद्य भंडार का निर्माण किया था।
    • वर्ष 2021 में भारत ने रिकॉर्ड 20 मिलियन टन चावल और गेहूँ का निर्यात किया।
  • संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन 2021 ने भी खाद्य की भारी कमी वाले देश से अधिशेष खाद्य उत्पादक देश में परिणत होने की भारत की सुदीर्घ यात्रा को रेखांकित किया जो एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अन्य विकासशील देशों के लिये कई मूल्यवान सबक प्रदान करता है।
    • वर्ष 1991 से 2015 के बीच की अवधि में कृषि का विविधीकरण हुआ जहाँ कृषि फसलों से आगे बढ़ते हुए बागवानी, डेयरी, पशुपालन और मत्स्य क्षेत्रों पर वृहत ध्यान दिया गया।

देश के भीतर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की परिकल्पना

  • खाद्य के मामले में समानता लाने के भारत के सबसे बड़े योगदानों में से एक इसका राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 है जो लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS), मध्याह्न भोजन (MDM) और एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) को आधार प्रदान करता है।
    • वर्तमान में भारत के खाद्य सुरक्षा जाल (food safety nets) सामूहिक रूप से एक बिलियन से अधिक लोगों को दायरे में लेते हैं।
  • खाद्य सुरक्षा जाल और समावेशन सार्वजनिक खरीद और बफर स्टॉक नीति से जुड़े हुए हैं।
    • वर्ष 2008-2012 के वैश्विक खाद्य संकट के दौरान और हाल ही में कोविड-19 महामारी के समय खाद्यान्न के बड़े भंडार के साथ TDPS ने हाशिए पर स्थित और कमज़ोर परिवारों के लिये जीवनरेखा की भूमिका निभाई।
  • NFSA के दायरे में आने वाले 800 मिलियन लाभार्थियों को महामारी-प्रेरित आर्थिक कठिनाइयों से राहत प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 2020 में शुरू की गई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) को सितंबर 2022 तक छह माह के लिये और बढ़ा दिया गया है।

भारत का स्वयं का भुखमरी परिदृश्य 

  • खाद्य और कृषि रिपोर्ट, 2018 में कहा गया है कि भारत में विश्व के 821 मिलियन कुपोषित लोगों में से 195.9 मिलियन का वास है जो विश्व में भुखमरी से ग्रस्त लोगों में से लगभग 24% का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • भारत में अल्पपोषण की व्यापकता 14.8% है जो वैश्विक और एशियाई दोनों औसतों से अधिक है।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण द्वारा वर्ष 2017 में बताया गया था कि देश में लगभग 19 करोड़ लोग हर रात खाली पेट सोने को विवश हैं।
  • इसके अतिरिक्त, सबसे चौंकाने वाला आँकड़ा इस रूप में सामने आया कि देश में हर दिन लगभग 4500 बच्चे पाँच वर्ष की आयु से पहले भुखमरी और कुपोषण के कारण मर जाते हैं। इस प्रकार देश में भुखमरी से अकेले बच्चों की ही हर साल तीन लाख से अधिक मौतें होती हैं।
  • भारत 116 देशों के वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) 2021 में 101वें स्थान पर फिसल गया है, जो वर्ष 2020 में 94वें स्थान पर रहा था।

आगे की राह 

  • वैश्विक शांति की ओर: मानवीय खाद्य सहायता और साझेदारियाँ जो खाद्य सुरक्षा जाल और लचीली आजीविका के माध्यम से सुदृढ़ नीतिगत नवाचारों के सृजन में मदद करती हैं, वैश्विक शांति की दिशा में योगदान देंगी।
    • भारत को खाद्य आपात स्थिति और खाद्य असुरक्षा से जूझ रहे अपने पड़ोसी देशों एवं अन्य देशों को सहायता प्रदान करना जारी रखना चाहिये जो इसके विकास प्रक्षेप-वक्र के साथ ही दूसरे देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने में योगदान करेगा।
  • भारत-WFP साझेदारी: भारत ने भुखमरी और कुपोषण को दूर करने में बड़ी प्रगति की है, लेकिन वैश्विक स्तर पर शून्य भुखमरी और खाद्य समानता के लक्ष्य को पूरा करने के लिये अभी बहुत कुछ किये जाने की ज़रूरत है।
    • पाँच दशकों से भी अधिक समय से WFP भारत के साथ साझेदारी कर रहा है और एक प्राप्तकर्ता से एक दाता के रूप में परिणत होने की इसकी यात्रा का साक्षी रहा है।
    • विश्व की सबसे बड़ी मानवीय एजेंसी के रूप में WFP और सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत इस साझेदारी का लाभ उठाकर खाद्य आपात स्थिति को संबोधित करने एवं मानवीय प्रतिक्रिया को सशक्त करने में योगदान दे सकते हैं, जहाँ ‘किसी को भी पीछे न छोड़ने’ और ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना की पुष्टि होगी।
  • देश से भुखमरी मिटाना: हालाँकि दूसरे देशों की मदद करने में भारत का प्रयास सराहनीय है, लेकिन भारत की स्वयं की भुखमरी की समस्या पर ध्यान देना भी आवश्यक है।
    • सरकार को पोषण से जुड़ी योजनाओं में धन का शीघ्र वितरण और धन का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
    • खाद्य असुरक्षा में तेज़ वृद्धि सरकार द्वारा देश में खाद्य सुरक्षा की स्थिति की नियमित निगरानी के लिये प्रणालियाँ स्थापित करने की तत्काल आवश्यकता का संकेत देती है।
    • इसके साथ ही, स्वास्थ्य, जल, स्वच्छता आदि से संबंधित योजनाओं का उचित क्रियान्वयन भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पोषण केवल भोजन की उपलब्धता भर तक सीमित विषय नहीं है।

अभ्यास प्रश्न: ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के अपने दृष्टिकोण के अनुरूप भारत ने वैश्विक खाद्य संकट के प्रबंधन में किस प्रकार सहायता की है। चर्चा कीजिये। 

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