शासन व्यवस्था
विश्व खाद्य दिवस
- 16 Oct 2019
- 7 min read
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:
विश्व खाद्य दिवस, राष्ट्रीय पोषण माह, ग्लोबल हंगर इंडेक्स
मेन्स के लिये:
राष्ट्रीय पोषण अभियान, भारत में कुपोषण के कारण और इससे निपटने के उपाय
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री द्वारा अपने मन की बात कार्यक्रम के संबोधन में सितंबर 2019 को ‘राष्ट्रीय पोषण माह’ के रूप में मनाने का आह्वान किया गया।
प्रमुख बिंदु
- विश्व खाद्य दिवस 16 अक्तूबर को विश्व स्तर पर मनाया जाता है।वर्ष 2019 के लिये इसकी थीम हमारा कार्य हमारा भविष्य, स्वस्थ आहार दुनिया को वर्ष 2030 तक भूख से मुक्त बनाने के लिये है।
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य महिलाओं और बच्चों को कुपोषण से मुक्ति और एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय पोषण अभियान के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाना है।
भारत की स्थिति
- वाशिंगटन विश्वविद्यालय द्वारा ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ स्टडी-2017 (Burden of Disease Study-2019) के अनुसार, भारत में मृत्यु और विकलांगता के प्रमुख कारणों में कुपोषण एक मुख्य कारण है।
- खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) के अनुसार भारत में लगभग 194.4 मिलियन लोग (कुल जनसंख्या का 14.5%) अल्पपोषित हैं।
- ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2018 में भारत ने 103वीं रैंक हासिल की थी जबकि वर्ष 2019 में इसकी स्थिति में केवल एक स्थान का सुधार हुआ है तथा यह 102वें स्थान पर पहुँच गया है जो कि एक दयनीय स्थिति है।
- इस इंडेक्स को जारी करने के 4 मानदंड हैं।
- चाइल्ड स्टन्टिंग (Child Stunting)- 5 वर्ष तक की आयु के अनुसार उनकी लंबाई का कम होना।
- चाइल्ड वेस्टिंग (Child Wasting) - 5 वर्ष तक की आयु के बच्चों में उनकी लंबाई के अनुसार वज़न का कम होना
- बाल मृत्यु दर
- अल्पपोषण (Under Nutrition)
राष्ट्रीय पोषण अभियान
- इस मिशन को भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा नीति आयोग द्वारा संयुक्त रूप से वर्ष 2017-2018 में शुरू किया था।
- मिशन का लक्ष्य कुपोषण और जन्म के समय बच्चों का वज़न कम होने संबंधी समस्याओं को प्रत्येक वर्ष 2 प्रतिशत तक कम करना है।
- इसके साथ ही कुपोषण के उन्मूलन से संबंधित सभी मौजूदा योजनाओं एवं कार्यक्रमों को एकजुट कर एक बेहतर और समन्वित मंच प्रदान करना है।
भारत में कुपोषण की समस्या क्यों?
- स्वस्थ आहार भोजन और पोषण आपूर्ति हेतु एक आवश्यक तत्त्व है
- भारत में पिछले कुछ सालों में काफी हद तक खाद्य उपभोग के पैटर्न में बदलाव आया है जहाँ पहले खाद्य उपभोग में विविधता के लिये पारंपरिक अनाज (ज्वार, जौ, बाजरा आदि) उपयोग में लाया जाता था, वहीँ वर्तमान में इनका उपभोग कम हो गया है।
- पारंपरिक अनाज, फल और अन्य सब्जियों के उत्पादन में कमी के कारण इनकी खपत भी कम हुई जिससे खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रभावित हुई।
- हालाँकि आज़ादी के बाद से खाद्यान्न उत्पादन में 5 गुना बढ़ोतरी हुई है। लेकिन कुपोषण का मुद्दा अभी भी चुनौती बना हुआ है।
- भारत में भुखमरी की समस्या वास्तव में खाद्य की उपलब्धता न होने के कारण ही नहीं बल्कि देश में मांग और आपूर्ति के बीच अंतराल भी एक मुख्य समस्या है।
- जनसंख्या के कुछ वर्गों की खरीद क्षमता में कमी भी एक प्रमुख समस्या है क्योंकि ये वर्ग पोषक खाद्य पदार्थों जैसे- दूध, फल, मांस, मछली, अंडा आदि खरीदने में समर्थ नहीं हैं।
खाद्य और कृषि संगठन
(Food and Agriculture Organization-FAO)
- संयुक्त राष्ट्र संघ तंत्र की सबसे बड़ी विशेषज्ञता प्राप्त एजेंसियों में से एक है जिसकी स्थापना वर्ष 1945 में कृषि उत्पादकता और ग्रामीण आबादी के जीवन निर्वाह की स्थिति में सुधार करते हुए पोषण तथा जीवन स्तर को उन्नत बनाने के उद्देश्य के साथ की गई थी।
- खाद्य और कृषि संगठन का मुख्यालय रोम, इटली में है।
आगे की राह
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली ( Public Distribution System-PDS) में खाद्य आपूर्ति और पोषण हेतु नए प्रकार के खाद्य आइटम शामिल किये जा सकते हैं।
- बड़े किसानों हेतु कृषि प्रणाली में खाद्यान्न विविधता को बढ़ावा देने के लिये सरकार को नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है।
- SDG-30 की प्राप्ति के लिये कृषि पर फोकस करने की आवश्यकता है।
- MSP के माध्यम से किसानों की क्षमता बढ़ाने की ज़रूरत है। कृषि क्षेत्र में अधिक निवेश, कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे- कोल्ड स्टोरेज, मंडियों तक सड़क का निर्माण, कृषि बाज़ार तथा मंडियों के बीच आपसी संपर्क स्थापित करने की ज़रूरत है।
- सप्लाई चेन तथा कोल्ड स्टोरेज में निवेश के लिये निजी कंपनियों को आगे आना चाहिये।
एजेंडा 2030 क्या है?
- वर्ष 2015 से शुरू संयुक्त राष्ट्र महासभा की 70वीं बैठक में अगले 15 वर्षों के लिये सतत् विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals-SDG) निर्धारित किये गए थे।
- उल्लेखनीय है कि 2000-2015 तक की अवधि के लिये सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों (Millennium Development Goals-MDG) की प्राप्ति की योजना बनाई गई थी जिनकी समयावधि वर्ष 2015 में पूरी हो चुकी है।
- तत्पश्चात्, आने वाले वर्षों के लिये औपचारिक तौर पर एक नया एजेंडा (SDG-2030) को सभी सदस्य राष्ट्रों ने अंगीकृत किया था।