विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
इलेक्ट्रॉनिक्स: वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में भारत की भागीदारी को सशक्त बनाना
- 31 Dec 2024
- 27 min read
प्रिलिम्स के लिये:नीति आयोग, इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र, आर्थिक विकास, औद्योगिकीकरण, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना, इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन, वैश्विक मूल्य शृंखला (GVC), अनुसंधान एवं विकास निवेश, IoT डिवाइस, इलेक्ट्रिक वाहन, औद्योगिक क्लस्टर, मेक इन इंडिया मेन्स के लिये:वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में भारत की भागीदारी, PLI योजनाओं के तहत निवेश |
चर्चा में क्यों?
नीति आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करते हुए " वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में भारत की भागीदारी को सशक्त बनाना" शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।
- यह पहल ऐसे समय पर की गई है जब भारत वैश्विक विनिर्माण परिदृश्य में अपनी हिस्सेदारी (जो वर्तमान में वैश्विक उत्पादन की मात्र 3.3% है) बढ़ाने की दिशा में प्रयास कर रहा है।
रिपोर्ट की मुख्य बाते क्या हैं?
- परिचय:
- GVC अंतर्राष्ट्रीय उत्पादन साझाकरण प्रणाली है, जहाँ किसी उत्पाद को उससे संबंधित अवधारणा से लेकर अंतिम उपयोग और उससे आगे तक ले जाने के लिये गतिविधियों की पूरी शृंखला (अर्थात डिज़ाइन, उत्पादन, विपणन, वितरण एवं अंतिम उपभोक्ता को सहायता आदि) को भौगोलिक स्थानों में कई फर्मों तथा श्रमिकों के बीच विभाजित किया जाता है।
- GVC की भूमिका:
- इसके घटक कई देशों से आते हैं (उदाहरण के लिये, डिज़ाइन के लिये अमेरिका, दुर्लभ खनिजों के लिये चीन, LCD पैनलों के लिये जापान/कोरिया, जाइरोस्कोप के लिये यूरोप)।
- अंतिम रूप से इसकी असेम्बलिंग भारत, चीन एवं वियतनाम जैसे देशों में होती है।
- GVC फर्मों को विशिष्ट उत्पादन कार्यों में विशेषज्ञता प्राप्त करके वैश्विक बाज़ारों में एकीकृत होने में सक्षम बनाती है।
- इससे देश उत्पादन प्रक्रिया के कुछ हिस्सों में भाग ले सकते हैं (न कि संपूर्ण मूल्य शृंखलाओं में), जिससे दक्षता और विशेषज्ञता को अधिकतम किया जा सके।
- GVC से भागीदारी औद्योगीकरण, आर्थिक विकास और निर्यात को गति मिलती है।
- इससे रोज़गार सृजन, आय सृजन, ज्ञान हस्तांतरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र विकास को बढ़ावा मिलता है।
- उदाहरण - आईफोन:
- डेविड रिकार्डो का सिद्धांत: लागत लाभ पर आधारित विशेषज्ञता से व्यापार को लाभ होता है।
- हेक्शर-ओहलिन सिद्धांत: व्यापार पैटर्न श्रम या पूंजी जैसे कारक संपदा पर निर्भर करते हैं।
- पॉल क्रुगमैन का नया व्यापार सिद्धांत: व्यापार लाभ विशेषज्ञता, पैमाने की अर्थव्यवस्था और औद्योगिक समूहों से उत्पन्न होते हैं।
- सैद्धांतिक विकास: वैश्विक मूल्य शृंखलाओं की अवधारणा समय के साथ प्रमुख रूप से विकसित हुई है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धांत का बदलते परिदृश्य प्रतिबिंबित होता है।
वैश्विक विनिर्माण परिदृश्य:
- वैश्विक स्तर पर विनिर्माण 24 वर्षों में 2.5 गुना बढ़कर वर्ष 2022 में 1619 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- वैश्विक उत्पादन में 28.4% की हिस्सेदारी के साथ चीन सबसे आगे है, उसके बाद अमेरिका (16.6%) और जापान (7.2%) का स्थान है। भारत इसमें 457 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान देता है, जो वैश्विक हिस्सेदारी का 3.3% है, जो प्रमुख भागीदारों से काफी कम है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र का महत्त्व:
- आर्थिक योगदान: इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र की भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 13-17.7% की भागीदारी है।
- कोविड के बाद के अवसर: आपूर्ति शृंखला में बदलाव और भू-राजनीतिक कारक भारत को विनिर्माण केंद्र के रूप में बढ़ावा देते हैं।
- बढ़ती निर्यात संभावना: मोबाइल फोन निर्यात में वृद्धि से भारत की वैश्विक स्थिति मज़बूत हुई है।
- जनसांख्यिकीय लाभ: युवा, आकांक्षी आबादी से उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स की मांग में वृद्धि होती है।
- नवप्रवर्तन चालक: यह क्षेत्र अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी में अग्रणी है जो अनेक उद्योगों को प्रभावित कर रहा है।
- वैश्विक एकीकरण: वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में संबंधों को मज़बूत करने से आगे विकास की संभावनाएँ बढ़ेंगी।
- इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में वैश्विक मूल्य शृंखला (GVC):
- वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स बाज़ार: इसका मूल्य 4.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है तथा यह स्मार्टफोन से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों तक विविध क्षेत्रों से संबंधित है।
- प्रमुख खिलाड़ी: चीन, ताइवान, संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, जापान, मैक्सिको और मलेशिया जैसे देश वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन के 90% से अधिक को नियंत्रित करते हैं।
- चीन 60% वैश्विक उत्पादन के साथ अग्रणी बना हुआ है।
- इसके उभरते केंद्रों में वियतनाम, मलेशिया और भारत शामिल हैं।
- व्यापार गतिशीलता: वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स व्यापार 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का है।
- निर्यात में चीन की हिस्सेदारी 30% है, उसके बाद ताइवान (9%) और अमेरिका (7%) का स्थान है।
- भारत का हिस्सा 1% से कम है, तथा उसका वार्षिक निर्यात 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
- तैयार वस्तु: इसका मूल्य 2.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है, तथा वर्ष 2030 तक इसके 3.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है, जिसमें मोबाइल, ऑटो इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार इलेक्ट्रॉनिक्स का योगदान होगा।
- घटक बाज़ार: 1.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक घटकों और मॉड्यूलों का प्रभुत्व है।
- आउटलुक:
- बाज़ार में वृद्धि: वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स तैयार वस्तु बाज़ार में 5% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से वृद्धि होने का अनुमान है, जो वित्तीय वर्ष 2030 तक 3.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा, जो बढ़ती खपत, प्रीमियमीकरण और नई उत्पाद श्रेणियों से प्रेरित है।
- आपूर्ति शृंखला में बदलाव: भू-राजनीतिक तनाव, कोविड-19 महामारी और चीन में श्रम लागत में कमी के कारण उत्पादक वियतनाम, मैक्सिको और मलेशिया जैसे देशों में आपूर्ति शृंखला में विविधता लाने के लिये प्रेरित हो रहे हैं।
- भारत की संभावनाएँ: अनुकूल जनसांख्यिकी, सरकारी योजनाएँ और बढ़ती घरेलू क्षमताएँ भारत को इस बदलाव से लाभान्वित होने की स्थिति में रखती हैं।
- वियतनाम, मैक्सिको और मलेशिया से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा के कारण भारत के लिये 2030 तक वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में 4-5% की हिस्सेदारी हासिल करने हेतु तत्काल कार्रवाई करना महत्त्वपूर्ण हो गया है।
भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण की स्थिति क्या है?
- भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र का विकास:
- तीव्र वृद्धि: भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र 13% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ा, जिसमें उत्पादन वित्त वर्ष 17 में 48 बिलियन अमेरिकी डॉलर से दोगुना होकर वित्त वर्ष 23 में 101 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो मुख्य रूप से मोबाइल फोन (उत्पादन का 43%) द्वारा संचालित था।
- मोबाइल विनिर्माण की उपलब्धियाँ: भारत ने 80% स्मार्टफोन आयात करने से 99% घरेलू उत्पादन करने की ओर कदम बढ़ाया।
- सरकारी पहल: मेक इन इंडिया, उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना (PIL) और भारत सेमीकंडक्टर मिशन जैसी नीतियों ने, विशेष रूप से मोबाइल और ऑटो इलेक्ट्रॉनिक्स में घरेलू विनिर्माण और विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया है।
- मिश्रित सफलता: जबकि बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स के लिये PLI ने महत्त्वपूर्ण निवेश आकर्षित किया है, आईटी हार्डवेयर और दूरसंचार के लिये योजनाएँ अभी तक समान प्रभाव प्राप्त नहीं कर पाई हैं।
- घरेलू मांग और निर्यात: इलेक्ट्रॉनिक्स की मांग 15% CAGR से बढ़ रही है, जो वित्त वर्ष 23 में 155 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गई है, लेकिन भारत वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स बाज़ार में केवल 4% और वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में 1% से भी कम का योगदान देता है।
- भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन मुख्य रूप से अंतिम असेंबली पर केंद्रित है, जबकि डिजाइन एवं घटक निर्माण में सीमित प्रगति हुई है। वैश्विक स्तर पर विस्तार करने के लिये, भारत को निर्यात-संचालित विकास की ओर बढ़ना चाहिये और अपने पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना चाहिये।
- भारत का विनिर्माण परिदृश्य:
- भारत का विनिर्माण विविध उद्योगों तक फैला हुआ है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में उभर रहा है।
- 155 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में वर्ष 2017 और 2022 के बीच दोगुना वृद्धि हुई है, जो बढ़ती मांग, तकनीकी प्रगति तथा सहायक नीतियों के कारण 13% CAGR की दर से बढ़ रहा है।
- भारत के शीर्ष निर्यात क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 9वें स्थान से बढ़कर 6वें स्थान पर पहुँच गया, जिसने वित्त वर्ष 2023 में 235 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया।
- यह वृद्धि भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को उजागर करती है, विदेशी मुद्रा को बढ़ावा देती है तथा अंतर्राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स बाज़ार में इसकी स्थिति को मज़बूत करती है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स मूल्य शृंखला में भारत की उपस्थिति:
- इलेक्ट्रॉनिक्स मूल्य शृंखला अवलोकन:
- डिज़ाइन प्लेयर्स/ओरिजिनल डिज़ाइन मैन्युफैक्चरर्स (ODMs): उत्पाद डिज़ाइन और प्रोटोटाइप में विशेषज्ञता।
- घटक निर्माता: इसमें बिल्ड-टू-प्रिंट (मूल उपकरण निर्माता (OEM) विनिर्देश) और बिल्ड-टू-स्पेसिफिकेशन (ODMs के साथ सह-डिजाइन निर्माण) शामिल हैं।
- असेंबलर/इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण सेवाएँ (EMS): अनुबंध निर्माता जो असेंबली, परीक्षण और पैकेजिंग का कार्य संभालते हैं।
- मूल उपकरण निर्माता: उत्पाद नवाचार, विपणन और आईपी स्वामित्व पर ध्यान केंद्रित करना।
- भारत की उपस्थिति:
- असेंबलिंग और OEM में सुदृढ़ स्थिति (जैसे, फॉक्सकॉन, डिक्सन, सैमसंग)।
- घटक विनिर्माण में भागीदारी सीमित है तथा अधिकांश उच्च-तकनीकी भाग आयातित हैं।
- विभिन्न क्षेत्रों में डिजाइन संबंधी क्षमताएँ न्यूनतम।
- खंड अंतर्दृष्टि:
- मोबाइल फोन: असेंबली और सब-असेंबली (बैटरी, चार्जर) में सुदृढ़ स्थिति, लेकिन कैमरा मॉड्यूल और डिस्प्ले के लिये आयात पर उच्च निर्भरता। डिज़ाइन कार्य में न्यूनतम योगदान।
- उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स: रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर और टेलीविज़न की स्थानीयकृत असेंबली औसत स्तर की है और ओपन सेल जैसे आयातित घटकों पर निर्भरता अत्यधिक है।
- आईटी हार्डवेयर: लैपटॉप और सर्वर के लिये 80% से अधिक आयात निर्भरता। असेंबली और डिज़ाइन में कमज़ोर स्थिति।
- दूरसंचार उत्पाद: उपकरणों के लिये 40% आयात चीन से होता है; स्थानीय विनिर्माण न्यूनतम और डिज़ाइन पहलों में वृद्धि।
- ऑटोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक्स: 65% उप-असेंबली के लिये आयात पर निर्भर; वायर हार्नेस जैसे कम तकनीक वाले घटकों का उत्पादन स्थानीय स्तर पर होता है। सीमित इलेक्ट्रॉनिक डिज़ाइन क्षमताएँ।
- धारणीय एवं सुनने योग्य वस्तुएँ: नगण्य डिज़ाइन क्षमता और घटक विनिर्माण के साथ मुख्यतः असेंबली पर केंद्रित।
- इलेक्ट्रॉनिक्स मूल्य शृंखला अवलोकन:
इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में नीतिगत पहलें कौन-सी हैं?
- इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में 500 बिलियन अमरीकी डॉलर और निर्यात में 200-225 बिलियन अमरीकी डॉलर प्राप्त करने के लिये, भारत को तैयार माल से 350 बिलियन अमरीकी डॉलर और घटकों से 150 बिलियन अमरीकी डॉलर अर्जित करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा, जिसमें प्रोत्साहन, व्यापार नीतियों, कर सुधारों, बुनियादी ढाँचे के विकास और एक सुदृढ़ अनुसंधान एवं विकास तथा प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र की भूमिका अहम है।
- नीतिगत पहलों और सुधारों को मुख्यतः दो प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
- घटकों के विनिर्माण, अनुसंधान एवं विकास, तथा औद्योगिक बुनियादी ढाँचे के लिये राजकोषीय हस्तक्षेप; तथा
- समग्र इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिये गैर-राजकोषीय हस्तक्षेप।
वर्ग |
हस्तक्षेप |
विवरण |
राजकोषीय हस्तक्षेप |
राजकोषीय प्रोत्साहन |
|
|
उत्पाद/प्रणाली डिज़ाइन इकोसिस्टम |
|
|
औद्योगिक बुनियादी ढाँचे का आमाप वर्द्धन |
|
गैर-राजकोषीय हस्तक्षेप |
टैरिफ सरलीकरण और कर युक्तिकरण |
|
|
सॉफ्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर/स्किलिंग |
|
|
प्रौद्योगिकी अंतरण और EoDB |
|
भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण इकोसिस्टम के निर्माण में क्या चुनौतियाँ हैं?
- अपेक्षाकृत उच्च आयात प्रशुल्क: भारत की उच्च और जटिल टैरिफ संरचना, जिसमें सर्वाधिक अनुकूल राष्ट्र (MFN) का औसत टैरिफ 7.5% है (चीन के 4%, मलेशिया के 3.5% और मैक्सिको के 2.7% की तुलना में), और आयातित घटकों पर अत्यधिक निर्भरता के साथ, लागत में वृद्धि होती है तथा वैश्विक प्रतिप्सर्द्धात्मकता प्रभावित होती है, विशेष रूप से सब-असेंबलियों और घटकों में।
- सुदृढ़ इलेक्ट्रॉनिक्स घटक इकोसिस्टम का अभाव: भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स घटक उत्पादन में मंद CAGR (वित्त वर्ष 23 में 15 बिलियन अमरीकी डॉलर) के साथ 7% की वृद्धि हुई, जिसमें कम जटिलता वाले घटकों का प्रभुत्व रहा, जबकि उच्च-जटिलता विनिर्माण उच्च पूंजीगत व्यय आवश्यकताओं, अनाकर्षक प्रोत्साहनों और उन्नत प्रौद्योगिकियों तक सीमित पहुँच के कारण अविकसित रहा।
- पूंजी की उच्च लागत: भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को उच्च वित्तपोषण लागत (9-13%) के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जबकि चीन और वियतनाम जैसे देशों में यह 2 से 7% है, तथा मौजूदा सहायता योजनाएँ उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हैं।
- प्रौद्योगिकी अंतरण संबंधी चुनौतियाँ: भारतीय विनिर्माताओं को उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी और कौशल अभाव का सामना करना पड़ रहा है, जो प्रतिबंधात्मक निवेश नीतियों और वीज़ा अनुमोदनों के कारण संयुक्त उद्यमों और प्रौद्योगिकी अंतरण में देरी के कारण और भी जटिल हो गया है, जिससे विशेषज्ञता और नवाचारों तक पहुँच सीमित हो गई है।
- अपर्याप्त प्रतिभा और कौशल: भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र को सभी स्तरों पर महत्त्वपूर्ण कौशल अंतराल का सामना करना पड़ रहा है, जो पुराने प्रशिक्षण कार्यक्रमों, अपर्याप्त व्यावहारिक अनुभव और विशिष्ट संस्थानों की कमी के कारण है, जिसके परिणामस्वरूप प्रशिक्षण लागत अधिक है, कार्यबल की तैयारी कम है और नवाचार क्षमता सीमित है, जो उद्योग के विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में बाधा डालती है।
आगे की राह
- उत्पादन परिदृश्य @ 2030: नीति आयोग की रिपोर्ट में तीन संभावित परिदृश्यों पर प्रकाश डाला गया है, जिनमें से परिदृश्य 2, 2030 के लिये उत्कृष्ट विजन है।
- विज़न @ 2030:
- परिदृश्य 2 में संसाधनों का कुशलतापूर्वक आवंटन, विकास को अनुकूलित करने और लक्षित परिणामों को प्रभावी ढंग से प्राप्त करने के लिये चुनिंदा खंडों और घटकों के केंद्रित स्केलिंग पर ज़ोर दिया गया है।
- भारत का वर्ष 2030 तक 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन लक्ष्य, जिसमें निर्मित वस्तुओं से 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर और घटकों से 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर शामिल हैं, का लक्ष्य घरेलू मूल्य संवर्द्धन को 35% से अधिक बढ़ाना, वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात का 4-5% सुरक्षित करना और 5.5-6 मिलियन नौकरियाँ सृजित करना है, जिससे आर्थिक विकास और स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा।
- निर्मित वस्तुओं से 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर का उत्पादन प्राप्त करना:
- 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन का लक्ष्य: भारत ने स्थापित खंडों पर ध्यान केंद्रित करके, नए उत्पादों में विविधता लाकर, और कैमरा मॉड्यूल और डिस्प्ले जैसे उप-असेंबली के साथ मूल्य शृंखला को आगे बढ़ाकर निर्मित वस्तुओं से 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लक्ष्य रखा है।
- स्थापित क्षेत्र: घरेलू और वैश्विक दोनों बाज़ारों के लिये मोबाइल उपकरणों और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उच्च मांग वाले क्षेत्रों में असेंबली परिचालन का विस्तार करना।
- उभरते हुए उत्पाद: इलेक्ट्रॉनिक्स पोर्टफोलियो को व्यापक बनाने के लिये लैपटॉप, दूरसंचार हार्डवेयर, पहनने योग्य उपकरण और IoT उपकरणों जैसी गतिशील श्रेणियों में प्रवेश करना।
- प्राथमिकता वाले खंड: मौजूदा बुनियादी ढाँचे और अनुकूल नीतियों का लाभ उठाते हुए, महत्त्वपूर्ण विकास क्षमता वाले जन-बाज़ार (Mass Market) चालकों के रूप में मोबाइल, IT हार्डवेयर और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स पर ध्यान केंद्रित करना।
- ऑटो इलेक्ट्रॉनिक्स विकास: इलेक्ट्रॉनिक वाहनों को अपनाने और सतत् परिवहन की वैश्विक मांग से प्रेरित ऑटो इलेक्ट्रॉनिक्स में तेज़ी से विकास का लाभ उठाना।
- 5G और उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स: दूरसंचार और रणनीतिक इलेक्ट्रॉनिक्स की वैश्विक मांग को पूरा करने के लिये उत्पादन और निर्यात को बढ़ाने के लिये स्वदेशी 5G क्षमताओं का लाभ उठाना।
- घटक उत्पादन में 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लक्ष्य प्राप्त करना:
- मूल्य शृंखला स्थानीयकरण: भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने और घरेलू मूल्य संवर्द्धन में वृद्धि करने के लिये असेंबली से हटकर घटक विनिर्माण को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- लक्षित घटक वृद्धि: इलेक्ट्रॉनिक घटक उत्पादन को वित्त वर्ष 30 तक 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर करने का लक्ष्य रखा गया है, जिससे निर्यात, रोज़गार सृजन और घरेलू मूल्य संवर्द्धन में योगदान मिलेगा।
- श्रेणी A (उच्च पूंजीगत व्यय, IP-स्वामित्व वाले घटक): माइक्रोप्रोसेसर और पावर इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सेमीकंडक्टर, जिन्हें 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर के भारत सेमीकंडक्टर मिशन द्वारा समर्थन प्राप्त है, का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान करना है।
- श्रेणी B (टेक-ट्रांसफर घटक): SMT-ग्रेड पैसिव्स, बैटरी सेल और सेंसर जैसे घटकों के लिये प्रौद्योगिकी पहुँच और मध्यम पूंजीगत व्यय की आवश्यकता होती है, वर्ष 2030 तक 55-60 बिलियन अमेरिकी डॉलर के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
- श्रेणी C (न्यूनतम जटिलता, स्केलेबल घटक): कनेक्टर और वायर हार्नेस जैसी आसानी से स्केलेबल वस्तुओं से 70-75 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान मिलने की उम्मीद है, जिसे घरेलू अभिकर्त्ताओं द्वारा समर्थन प्राप्त होगा।
- डिजाइन पारिस्थितिकी तंत्र विकास: स्थानीयकृत डिजाइन से नवीन घटकों की प्राप्ति संभव होगी तथा भारत वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में और अधिक एकीकृत हो सकेगा।