शासन व्यवस्था
पर्सपेक्टिव: न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करने की आवश्यकता
- 10 Apr 2025
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प्रिलिम्स के लिये:न्यायिक जवाबदेही, न्यायिक सुधार, अधिक पारदर्शिता, वर्द्धित जवाबदेही, कॉलेजियम प्रणाली, संसद, CJI (भारत के मुख्य न्यायाधीश), राष्ट्रपति, अनुच्छेद 143, 99वाँ संविधान संशोधन, 2014, NJAC अधिनियम, 2014, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, भारत के मुख्य न्यायाधीश, केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री, भारत के प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता, लोकतंत्र, विधायिका, अनुच्छेद 111, महाभियोग, अनुच्छेद 124(4), अनुच्छेद 218, न्यायाधीश (जाँच) अधिनियम, 1968 मेन्स के लिये:न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और जवाबदेही के अभाव की चुनौतियाँ, लोक न्यास निर्माण के उपाय |
चर्चा में क्यों?
दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के शासकीय निवास पर कथित तौर पर बड़ी मात्रा में नकदी बरामद होने के बढ़ते विवाद के कारण पुनः न्यायिक सुधार, पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को लेकर चिंता व्यक्त की गई है।
कॉलेजियम प्रणाली क्या है?
- परिचय:
- कॉलेजियम प्रणाली न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रणाली है, जो संसद के किसी अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा स्थापित न होकर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।
- कॉलेजियम प्रणाली का विकास:
- प्रथम न्यायाधीश मामला (1981):
- इसमें यह निर्धारित किया कि न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के सुझाव की "प्रधानता" को "तर्कपूर्ण कारणों" से अस्वीकार किया जा सकता है।
- इस निर्णय ने अगले 12 वर्षों के लिये न्यायिक नियुक्तियों में न्यायपालिका पर कार्यपालिका की प्रधानता स्थापित कर दी है।
- द्वितीय न्यायाधीश मामला (1993):
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट करते हुए कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत की कि "परामर्श" का अर्थ वास्तव में "सहमति" है।
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि यह CJI की व्यक्तिगत राय नहीं होगी, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से ली गई एक संस्थागत राय होगी।
- तृतीय न्यायाधीश मामला (1998):
- राष्ट्रपति के संदर्भ (अनुच्छेद 143) पर सर्वोच्च न्यायालय ने पाँच सदस्यीय निकाय के रूप में कॉलेजियम का विस्तार किया, जिसमें CJI और उनके चार वरिष्ठतम सहयोगी शामिल होंगे।
- प्रथम न्यायाधीश मामला (1981):
नोट:
- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) का गठन 99वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2014 और NJAC अधिनियम, 2014 के माध्यम से किया गया था। NJAC ने न्यायिक नियुक्तियों के लिये कॉलेजियम प्रणाली को बदलने की मांग की।
- हालाँकि, वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यपालिका के हस्तक्षेप और न्यायिक स्वतंत्रता के उल्लंघन का हवाला देते हुए दोनों अधिनियमों को रद्द कर दिया था।
भारत में न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करने में कौन-सी चुनौतियाँ हैं?
- न्यायिक कार्यप्रणाली में पारदर्शिता का अभाव: भारत में न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करने में सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता का अभाव है।
- विधायिका या कार्यपालिका के विपरीत, न्यायिक कार्यप्रणाली, विशेषकर नियुक्तियों, स्थानांतरणों और अनुशासनात्मक कार्रवाइयों के मामलों में, प्रमुख रूप से सार्वजनिक जाँच उन्मुक्त है।
- जवाबदेही के लिये एक मजबूत संस्थागत ढाँचे का अभाव: वर्तमान में, न्यायिक कदाचार के आरोपों को न्यायपालिका के अपने तंत्र (इन-हाउस इन्क्वायरी) के माध्यम से आंतरिक रूप से निपटाया जाता है, जो न तो पारदर्शी है और न ही जनता के प्रति जवाबदेह है।
- यद्यपि न्यायाधीश (जाँच) अधिनियम, 1968 में सिद्ध कदाचार के लिये न्यायाधीशों के महाभियोग का प्रावधान है, लेकिन यह प्रक्रिया अत्यधिक कठिन, दुर्लभ और न्यायिक कदाचार या नैतिक चूक के अधिकांश मामलों को संबोधित करने में व्यावहारिक रूप से अप्रभावी है।
- संविधान में केवल संसद द्वारा महाभियोग चलाने का प्रावधान है, जिसके लिये दोनों सदनों में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है। यह प्रक्रिया न केवल राजनीतिक रूप से संवेदनशील है, बल्कि इसे सफलतापूर्वक क्रियान्वित करना भी अत्यंत कठिन है।
- कॉलेजियम प्रणाली में भाई-भतीजावाद: कॉलेजियम प्रणाली में प्रायः योग्यता के बजाय व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर नियुक्तियाँ की जाती हैं, जिसमें न्यायाधीशों के रिश्तेदारों और निकट सहयोगियों को प्राथमिकता दी जाती है।
- प्रतिकूल खुफिया रिपोर्टों के बावजूद, कॉलेजियम की सिफारिशें राष्ट्रपति के लिये बाध्यकारी हैं, जिससे जवाबदेही और पारदर्शिता में कमी आती है।
- न्यायिक कदाचार और नैतिक चिंताएँ: वर्ष 1997 में अपनाई गई सलाहकारी 'न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्स्थापन' के अलावा न्यायाधीशों के लिये कोई बाध्यकारी या लागू करने योग्य आचार संहिता नहीं है।
- 'न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्स्थापन' सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनाई गई न्यायिक नैतिकता की एक संहिता है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका के लिये मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है तथा न्याय के निष्पक्ष प्रशासन को सुनिश्चित करती है।
आगे की राह
- जवाबदेही के लिये संस्थागत तंत्र: न्यायिक स्वतंत्रता को कम किये बिना न्यायिक कदाचार, भ्रष्टाचार या नैतिक उल्लंघन के आरोपों की जाँच करने के लिये एक स्वतंत्र, वैधानिक निकाय की स्थापना करना।
- कॉलेजियम प्रणाली में सुधार: न्यायाधीशों की नियुक्तियों और स्थानांतरणों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये स्पष्ट पात्रता आवश्यकताएँ स्थापित करना, चयन मानदंडों का दस्तावेज़ीकरण करना तथा चयन प्रक्रिया तक सार्वजनिक पहुँच बढ़ाना।
- न्यायाधीशों के लिये आचार संहिता: न्यायिक आचरण में नैतिक मानकों और सत्यनिष्ठा को सुनिश्चित करने के लिए संपत्ति और देनदारियों की नियमित घोषणा के साथ-साथ न्यायाधीशों के लिये एक बाध्यकारी आचार संहिता तैयार करना और उसे लागू करना।
- समयबद्ध जाँच तंत्र: न्यायाधीशों के विरुद्ध शिकायतों की जाँच के लिये समयबद्ध प्रक्रिया शुरू करना, ताकि मामलों को अनिश्चित काल तक लंबित रहने या त्यागपत्र अथवा विलंब की रणनीति के कारण समाप्त होने से रोका जा सके।
- न्यायिक कार्यप्रणाली में अधिक पारदर्शिता: नियमित रिपोर्टों और प्रकटीकरणों के माध्यम से जनता के लिये प्रासंगिक जानकारी सुलभ बनाकर न्यायालयी कार्यवाही, नियुक्ति प्रक्रियाओं और अनुशासनात्मक कार्यवाहियों में पारदर्शिता को संस्थागत बनाना।
- महाभियोग प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाना: न्यायाधीश (जाँच) अधिनियम, 1968 पर पुनः विचार करना तथा सिद्ध कदाचार के मामलों में महाभियोग प्रक्रिया को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और सुलभ बनाने के लिये इसे सुव्यवस्थित करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 1. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर:(c) मेन्सप्रश्न 1. विविधता, समता और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये उच्चतर न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की वांछनीयता पर चर्चा कीजिये। (2021) प्रश्न 2. भारत में उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017) |