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भारतीय राजव्यवस्था

न्यायाधीशों में अनुशासन सुनिश्चित करना

  • 01 Oct 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 121, अनुच्छेद 211, अनुच्छेद 124(4), राष्ट्रपति, उच्च न्यायालय, लोकसभा, राज्यसभा, न्यायालय की अवमानना, एससी कॉलेजियम, राष्ट्रीय न्यायिक परिषद, राष्ट्रीय न्यायिक निरीक्षण समिति

मेन्स के लिये:

न्यायाधीशों में अनुशासन सुनिश्चित करने की आवश्यकता और प्रावधान।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश की टिप्पणी पर गंभीर चिंता व्यक्त की।

  • न्यायाधीश द्वारा माफी मांगने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अपना हस्तक्षेप वापस ले लिया, लेकिन इससे न्यायपालिका द्वारा न्यायाधीशों को अनुशासित करने के संबंध में संवैधानिक सीमाएँ उजागर होती हैं।

भारत में न्यायाधीशों को अनुशासित करने की चुनौतियाँ क्या हैं?

  • संवैधानिक संरक्षण: संविधान का अनुच्छेद 121 सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के आचरण पर संसदीय चर्चा पर प्रतिबंध लगाता है, सिवाय तब जब उनके निष्कासन के लिये प्रस्ताव रखा गया हो।
    • संविधान का अनुच्छेद 211 राज्य विधानसभाओं को सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन में आचरण पर चर्चा करने से रोकता है।
  • महाभियोग की जटिल प्रक्रिया: संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत महाभियोग प्रस्ताव को कुल सदस्यता के बहुमत तथा प्रत्येक सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले कम-से-कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित होना आवश्यक है।
    • उच्च महाभियोग सीमा यह सुनिश्चित करती है कि न्यायाधीशों को तुच्छ कारणों से आसानी से नहीं हटाया जा सकता, लेकिन इससे ऐसे कदाचार से निपटना कठिन हो जाता है जो महाभियोग की प्रक्रिया तक नहीं पहुँचता।
    • उदाहरणार्थ, इतिहास में केवल पाँच बार महाभियोग की कार्यवाही शुरू की गई है तथा सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश पर अभी तक महाभियोग नहीं लाया गया है।
  • संकीर्ण परिभाषा: निष्कासन का आधार सिद्ध कदाचार या अक्षमता है।
    • संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत कदाचार एक उच्च मानक है, जिसमें भ्रष्टाचार, निष्ठा की कमी और नैतिक हीनता शामिल हैं। 
    • न्यायिक कदाचार के कई उदाहरण, जैसे अनुशासनहीनता, पक्षपात या अनुचित आचरण, महाभियोग की सीमा को पूरा नहीं करते, जिससे न्यायपालिका के पास ऐसे कदाचार से निपटने के लिये बहुत कम विकल्प बचते हैं।

न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया क्या है?

  • सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को राष्ट्रपति  के आदेश से उसके पद से हटाया जा सकता है।
  • राष्ट्रपति निष्कासन आदेश तभी जारी कर सकते हैं जब संसद द्वारा उसी सत्र में ऐसे निष्कासन के लिये अभिभाषण प्रस्तुत किया गया हो।
  • अभिभाषण को संसद के प्रत्येक सदन के विशेष बहुमत (अर्थात् उस सदन की कुल सदस्यता का बहुमत तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदन के कम-से-कम दो-तिहाई सदस्यों का बहुमत ) द्वारा समर्थित होना चाहिये। 
  • निष्कासन का आधार सिद्ध कदाचार या अक्षमता है।
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उसी तरीके से और उन्हीं आधारों पर हटाया जा सकता है जिस तरह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
  • न्यायाधीश जाँच अधिनियम, 1968 महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने से संबंधित प्रक्रिया को विनियमित करता है।
    • 100 सदस्यों (लोकसभा के मामले में) या 50 सदस्यों (राज्यसभा के मामले में) द्वारा हस्ताक्षरित निष्कासन प्रस्ताव अध्यक्ष/सभापति को दिया जाना है।
    • अध्यक्ष/सभापति प्रस्ताव को स्वीकार कर सकते हैं अथवा उसे स्वीकार करने से इंकार कर सकते हैं।
    • यदि इसे स्वीकार कर लिया जाता है, तो अध्यक्ष/सभापति को आरोपों की जाँच के लिये तीन सदस्यीय समिति गठित करनी होगी।
    • समिति में निम्नलिखित शामिल होने चाहिये-
      • सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या न्यायाधीश
      • किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश
      • एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता
    • यदि समिति न्यायाधीश को दुर्व्यवहार/कदाचार का दोषी या अक्षमता से ग्रस्त पाती है, तो सदन प्रस्ताव पर विचार कर सकता है।
    • संसद के प्रत्येक सदन द्वारा विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित होने के बाद, न्यायाधीश को हटाने के लिये राष्ट्रपति को एक संबोधन प्रस्तुत किया जाता है।
    • अंततः राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटाने का आदेश जारी करते हैं।

न्यायाधीशों को अनुशासित करने के अन्य प्रावधान क्या हैं?

  • न्यायिक हस्तक्षेप: सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीशों को अनुशासित करने के लिये  न्यायिक कार्रवाई कर सकता है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के सी.एस. कर्णन को न्यायिक अवमानना ​​का दोषी ठहराया और उन्हें छह महीने के कारावास की सजा सुनाई।
  • स्थानांतरण नीति: सर्वोच्च न्यायालय के पाँच वरिष्ठ न्यायाधीशों वाला सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम, जिसमें मुख्य न्यायाधीश भी शामिल होते हैं, द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्थानांतरण की सिफारिश की जाती है।
    • चूँकि कॉलेजियम के निर्णय अपारदर्शी होते हैं, इसलिये इस स्थानांतरण नीति का उपयोग न्यायाधीशों को अनुशासित करने के साधन के रूप में भी किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये, कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी.डी. दिनाकरन पर महाभियोग का मामला लंबित होने के दौरान, कॉलेजियम द्वारा उन्हें सिक्किम उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया।
  • इन-हाउस जाँच प्रक्रिया: वर्ष 1999 की इन-हाउस जाँच प्रक्रिया के तहत, मुख्य न्यायाधीश संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से टिप्पणी का अनुरोध कर सकते हैं, जो फिर संबंधित न्यायाधीश से प्रतिक्रिया मांग सकते हैं।
    • यदि अधिक व्यापक जाँच की आवश्यकता समझी जाती है, तो एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, अन्य उच्च न्यायालयों के दो मुख्य न्यायाधीशों तथा तथ्यान्वेषी जाँच के लिये एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तीन सदस्यीय समिति गठित की जा सकती है।
  • निंदा नीति: संबंधित न्यायाधीश को अपने पद से इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने की सलाह दी जा सकती है।
    • यदि न्यायाधीश इस्तीफा देने या सेवानिवृत्त होने से इनकार करता है, तो मुख्य न्यायाधीश संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को सलाह दे सकते हैं कि वे न्यायाधीश को कोई न्यायिक कार्य न सौंपें।
  • न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्स्थापन,1997: सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1997 में न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्स्थापन नामक एक चार्टर को अपनाया जिसमें 16 बिंदु शामिल थे।
    • यह न्यायिक आचार संहिता है, जो स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका के लिये मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है, साथ ही न्यायाधीशों में अनुशासन बनाए रखने में मदद कर सकती है।

विश्व स्तर पर न्यायिक अनुशासन कैसे बनाए रखा जाता है?

  • लिथुआनिया: लिथुआनिया में न्यायिक अनुशासन से निपटने वाली दो संस्थाएँ न्यायिक नैतिकता और अनुशासन आयोग तथा न्यायिक सम्मान न्यायालय।
  • जर्मनी: न्यायाधीश अधिनियम, 1972 की धारा 77 के अनुसार, संघीय राज्यों के पास सामान्य न्यायालयों के न्यायाधीशों के पर्यवेक्षण के लिये अपने स्वयं के विशेष न्यायाधिकरण हैं।
    • ऐसा न्यायाधिकरण संघीय स्तर पर संघीय न्यायाधीशों के लिये भी मौजूद है, जो जर्मन संघीय न्यायालय के भीतर एक विशेष सीनेट के रूप में है।
  • स्कॉटलैंड: सत्र न्यायालय के लॉर्ड प्रेसिडेंट अनुशासनात्मक प्रक्रियाओं में जाँच हेतु किसी व्यक्ति को नामित कर सकते हैं।
  • बंगलुरू न्यायिक आचरण के सिद्धांत: इसका उद्देश्य न्यायाधीशों के लिये नैतिक मानदंड निर्धारित करना, न्यायिक व्यवहार को विनियमित करने के लिये एक रूपरेखा प्रदान करना तथा न्यायिक नैतिकता बनाए रखने पर मार्गदर्शन प्रदान करना है। 
    • इसे वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC) द्वारा अपनाया गया था।
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर संयुक्त राष्ट्र के मूल सिद्धांत, 1985: इन सिद्धांतों का उद्देश्य आदर्श न्यायिक स्वतंत्रता और वास्तविक विश्व की प्रथाओं के बीच के अंतर को कम करना है साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि न्याय कायम रहे, मानव अधिकारों की रक्षा हो और न्यायपालिका भेदभाव से मुक्त होकर कार्य करे।

न्यायाधीशों में अनुशासन सुनिश्चित करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • राष्ट्रीय न्यायिक परिषद (NJC) की स्थापना: न्यायाधीश (जाँच) विधेयक, 2006 को पुनर्जीवित और पारित करना, जिसका उद्देश्य न्यायाधीशों की अक्षमता या कदाचार के आरोपों की जाँच की निगरानी के लिये NJC का निर्माण करना है।
  • न्यायिक निरीक्षण समिति: न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक, 2010 को पुनर्जीवित और पारित किया जाएगा, जिसमें राष्ट्रीय न्यायिक निरीक्षण समिति, शिकायत जाँच पैनल और एक जाँच समिति की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
  • आचरण के स्पष्ट मानक: न्यायाधीशों के लिये एक आचार संहिता विकसित कर उसे लागू करना, जिसमें अपेक्षित व्यवहार, नैतिक मानकों और उल्लंघनों को संबोधित करने की प्रक्रियाओं की रूपरेखा हो। जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिये यह संहिता सार्वजनिक रूप से सुलभ होनी चाहिये।
  • न्यायिक निष्पादन मूल्यांकन: मामले के निपटान की दर, नैतिक मानकों का पालन, तथा वादियों और साथियों से प्राप्त फीडबैक जैसे मानदंडों के आधार पर न्यायाधीशों के निष्पादन के मूल्यांकन के लिये एक प्रणाली लागू करना।
    • उदाहरण के लिये, ओडिशा में एक न्यायिक अधिकारी से एक वर्ष में 240 कार्य दिवसों के बराबर कार्य निष्पादन की अपेक्षा की जाती है।
  • परिसंपत्तियों की घोषणा और पारदर्शिता: न्यायाधीशों को अपनी परिसंपत्तियों और देनदारियों की घोषणा करने का आदेश देना तथा यह जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना। यह उपाय भ्रष्टाचार को रोकने और न्यायपालिका में जनता का विश्वास बढ़ाने में मदद कर सकता है।
  • अनिवार्य प्रशिक्षण और कार्यशालाएँ: न्यायाधीशों के बीच जवाबदेही की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये न्यायिक नैतिकता, भेदभाव-विरोधी कानूनों और निष्पक्षता के महत्त्व पर नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम और कार्यशालाएँ आयोजित करना।
  • न्यायिक स्वतंत्रता सुरक्षा: जवाबदेही बढ़ाने के साथ-साथ न्यायिक स्वतंत्रता की सुरक्षा करना भी महत्त्वपूर्ण है। किसी भी सुधार में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि न्यायाधीशों को जवाबदेह ठहराने की प्रक्रिया निष्पक्ष निर्णय लेने की उनकी क्षमता को कम न करे।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: न्यायिक अधिकारियों के बीच जवाबदेही और आचरण के उच्च मानकों को बढ़ावा देने के लिये क्या उपाय लागू किये जा सकते हैं?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा भारत के राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से वापस बैठने और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के लिये बुलाया जा सकता है। 
  2. भारत में उच्च न्यायालय के पास अपने निर्णय की समीक्षा करने की शक्ति है जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स: 

प्रश्न. भारत में उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)

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