अंतर्राष्ट्रीय संबंध
पर्सपेक्टिव: G-20 ब्राज़ील 2024
- 26 Nov 2024
- 19 min read
प्रिलिम्स के लिये:G-20 जलवायु वित्त, UNFCCC COP 30, COP29, जलवायु परिवर्तन, वैश्विक कर, राष्ट्रीय संप्रभुता, बहुपक्षीय विकास बैंक (MDB), नवीकरणीय ऊर्जा, वैश्विक शासन, भूखमरी का मुकाबला, वैश्विक शासन सुधार, मध्य पूर्व, विकासशील राष्ट्र, व्यापार उदारीकरण, रूस-यूक्रेन युद्ध, अफ्रीकी संघ, ग्लोबल साउथ, मध्य पूर्व तनाव। मेन्स के लिये:भारत के सामरिक हितों को सुरक्षित रखने में G-20 का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रियो डी जेनेरियो में G-20 बैठक संपन्न हुई, जिसमें बिलेनियरों पर कराधान, ऊर्जा परिवर्तन और ब्राज़ील में UNFCCC COP 30 सहित वैश्विक जलवायु पहलों के लिये समर्थन जैसी प्रमुख प्रतिबद्धताओं पर प्रकाश डाला गया।
- भारत ने G-20 शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए गरीबी कम करने और वैश्विक खाद्य सुरक्षा को मज़बूत करने के प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
G-20 शिखर सम्मेलन 2024 के प्रमुख परिणाम क्या हैं?
- जलवायु वित्त प्रतिबद्धता: G-20 ने जलवायु वित्त को “बिलियन टू ट्रिलियन तक” बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता को चिन्हित किया, लेकिन इस वित्तपोषण के स्रोतों के लिये कोई ठोस योजना स्थापित नहीं की गई।
- नेताओं ने अज़रबैजान में COP29 का समर्थन किया और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने में मदद के लिये वित्तपोषण बढ़ाने का आह्वान किया, हालाँकि वित्तीय तंत्र पर आम सहमति नहीं बन पाई।
- बिलेनियरों पर कराधान: एक प्रमुख उपलब्धि अत्यधिक संपन्न व्यक्तियों पर कर लगाने के उपायों का समर्थन था।
- ब्राज़ील ने इस अभियान की अगुवाई की, जहाँ अमीरों पर वैश्विक कर लगाने के बारे में चर्चा हुई, हालाँकि राष्ट्रीय संप्रभुता और कर सिद्धांतों से संबंधित चिंताओं का पूरी तरह समाधान नहीं हो सका।
- वैश्विक भूख और गरीबी गठबंधन: भूख और गरीबी के खिलाफ वैश्विक गठबंधन के लिये टास्क फोर्स, जिसका प्रस्ताव ब्राज़ील के G-20 प्रेसीडेंसी द्वारा दिया गया है, का उद्देश्य भूख और गरीबी को कम करने के लिये प्रभावी नीतियों और सामाजिक प्रौद्योगिकियों के लिये संसाधनों और ज्ञान को जुटाने हेतु एक वैश्विक गठबंधन बनाना है।
- इस पहल को 82 देशों से समर्थन मिला और इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 मिलियन लोगों की मदद करना है , जो G-20 एजेंडे के लिये एक महत्त्वपूर्ण सफलता है, क्योंकि यह ठोस सामाजिक कार्यों पर केंद्रित है।
- वित्तीय सुधार और MDB सहयोग: G-20 ने जलवायु परिवर्तन और गरीबी सहित वैश्विक चुनौतियों का बेहतर ढंग से समाधान करने के लिये बहुपक्षीय विकास बैंक (MDB) में सुधार की आवश्यकता की पुष्टि की।
- नेताओं ने उच्च प्रभाव वाली परियोजनाओं के लिये संसाधनों का प्रभावी ढंग से समायोजन सुनिश्चित करने के लिये MDB के भीतर सहयोग को मज़बूत करने पर सहमति व्यक्त की।
- ऊर्जा संक्रमण और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी: शिखर सम्मेलन में नवीकरणीय ऊर्जा और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निरंतर निवेश की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया, लेकिन जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की पिछली COP28 प्रतिबद्धता की पुष्टि नहीं की गई।
- व्यापक जलवायु कार्यवाही के एक भाग के रूप में खाद्य हानि और बर्बादी को कम करने पर ज़ोर दिया गया।
- वैश्विक शासन और सामाजिक समावेशन: G-20 ने वैश्विक असमानताओं को दूर करने के लिये वैश्विक शासन में सुधार का आह्वान किया ।
- G-20 सामाजिक शिखर सम्मेलन का समापन घोषणापत्र के साथ हुआ, जिसमें भूख, गरीबी और असमानता से लड़ने पर ज़ोर दिया गया, स्थिरता, जलवायु परिवर्तन कार्यवाही, न्यायोचित परिवर्तन और वैश्विक शासन सुधार की वकालत की गई, साथ ही कर न्याय और समावेशी निर्णय लेने पर प्रकाश डाला गया।
- सतत् विकास लक्ष्य 18 (SDG 18) का समावेश: जातीय-नस्लीय समानता पर ध्यान केंद्रित करने वाले एक नए SDG को आधिकारिक तौर पर G20 प्राथमिकताओं में एक प्रमुख तत्त्व के रूप में शामिल किया गया।
- इसका लक्ष्य प्रणालीगत भेदभाव को संबोधित करना और हाशिये पर पड़े जातीय समूहों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समावेशन के लिये नीतियों को बढ़ावा देना है। यह सतत् और न्यायसंगत वैश्विक विकास के व्यापक एजेंडे के साथ संरेखित है।
- यूक्रेन और मध्य पूर्व संघर्ष: G-20 ने यूक्रेन में व्यापक, न्यायसंगत और स्थायी शांति के लिये पहल का समर्थन किया, तथा कूटनीतिक प्रयासों पर बल दिया, तथा सदस्यों ने शांति वार्ता की वकालत की।
- मध्य पूर्व के संबंध में, शिखर सम्मेलन में गाज़ा और लेबनान में युद्धविराम का आग्रह किया गया, जिसमें विस्थापित लोगों की सुरक्षित वापसी, गाज़ा में बंदियों की रिहाई और लेबनान में मानवीय सहायता प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
G-20 में भारत का नेतृत्व वैश्विक मुद्दों पर किस प्रकार प्रभाव डालता है?
- खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना: भारत ने खाद्य संकट को कम करने के लिये कृषि और प्रौद्योगिकी में अपनी विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए वैश्विक खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता दी है।
- नई दिल्ली में 2023 G-20 शिखर सम्मेलन के दौरान मिलेट इनिशिएटिव के माध्यम से, भारत ने जलवायु-अनुकूल फसलों के रूप में बाजरा को बढ़ावा दिया, और वैश्विक भूख और कुपोषण को दूर करने की उनकी क्षमता पर प्रकाश डाला।
- भारत ने खाद्य आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ाने वाले कार्यक्रमों का समर्थन किया है तथा अनुकूल कृषि पद्धतियों की वकालत की है।
- बहुपक्षीय मंचों में सुधार: भारत ने संयुक्त राष्ट्र और IMF तथा विश्व बैंक जैसी वित्तीय संस्थाओं सहित वैश्विक बहुपक्षीय मंचों में सुधार का सक्रिय रूप से समर्थन किया है।
- अपनी अध्यक्षता के दौरान, भारत ने अधिक समावेशिता का आह्वान किया तथा निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में विकासशील देशों के प्रतिनिधित्व पर ज़ोर दिया।
- वर्ष 2023 में बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDB) के लिये G-20 रोडमैप को अपनाना भारत के नेतृत्व से प्रभावित एक प्रमुख परिणाम था।
- ग्लोबल साउथ का समर्थन: भारत ग्लोबल साउथ के लिये एक मज़बूत अधिवक्ता के रूप में उभरा है , जो सतत् विकास, जलवायु वित्त और न्यायसंगत वैक्सीन वितरण जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद कर रहा है।
- वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन जैसी पहलों के माध्यम से भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि विकासशील देशों की आवश्यकताएँ और प्राथमिकताएँ G-20 एजेंडे के केंद्र में रहें।
- स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और ऊर्जा में सहयोगात्मक समाधान को आगे बढ़ाने के लिये भारत की नवाचार और प्रौद्योगिकी में विशेषज्ञता को विकासशील देशों के साथ साझा किया गया है।
- द्विपक्षीय वार्ता और रणनीतिक साझेदारी: ब्राज़ील में 2024 G-20 शिखर सम्मेलन के दौरान, भारत ने ऑस्ट्रेलिया, नॉर्वे, इंडोनेशिया, पुर्तगाल, इटली, यूके और फ्राँस जैसे देशों के साथ महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय चर्चा की।
- इन वार्ताओं में साझा चुनौतियों से निपटने तथा व्यापार एवं निवेश के अवसरों का पता लगाने के लिये रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देने में भारत की भूमिका को रेखांकित किया गया।
- उदाहरण के लिये भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (FTA) और प्रत्यर्पण मुद्दों पर भारत और ब्रिटेन के बीच चर्चा हुई, जिससे आर्थिक और न्यायिक सहयोग मज़बूत हुआ।
G-20 समूह के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- वैश्विक भूखमरी, ईंधन और उर्वरक संकट: G-20 के सामने वैश्विक भूखमरी, खाद्य असुरक्षा और ईंधन एवं उर्वरक की बढ़ती कीमतों जैसे अंतर्संबंधित वैश्विक संकटों से निपटने की चुनौती है।
- वर्तमान भू-राजनीतिक संघर्षों, विशेषकर रूस-यूक्रेन युद्ध, ने खाद्यान्न और उर्वरक की कमी को बढ़ा दिया है, जिसका प्रभाव विकासशील देशों पर पड़ रहा है।
- ग्लोबल साउथ में खाद्य सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धताओं को पूरा करने और कमज़ोर आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण अंतर है।
- प्रमुख सदस्यों के बीच भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: राजनीतिक तनाव, जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच या रूस और इजरायल से संबंधित विभिन्न भू-राजनीतिक संघर्ष, आम सहमति बनाने में महत्त्वपूर्ण बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।
- रूस-यूक्रेन युद्ध ने G-20 के भीतर विभाजन को जन्म दे दिया है तथा प्रतिबंधों और तटस्थता पर परस्पर विरोधी विचार सामने आए हैं, जिसका उदाहरण हाल ही में अमेरिका द्वारा यूक्रेन को रूस के अंदर लंबी दूरी के हथियारों का उपयोग करने की अनुमति देने का निर्णय है।
- ये विवाद अक्सर मुख्य वैश्विक मुद्दों पर हावी हो जाते हैं तथा सहयोगात्मक समस्या समाधान से ध्यान भटका देते हैं।
- विविध आर्थिक और राजनीतिक प्राथमिकताएँ: G-20 में व्यापक श्रेणी की अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं, जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका और जर्मनी जैसे अत्यधिक विकसित राष्ट्रों से लेकर भारत और ब्राज़ील जैसे विकासशील देश शामिल हैं।
- विकसित देश उन्नत प्रौद्योगिकी, जलवायु परिवर्तन और भू-राजनीतिक स्थिरता को प्राथमिकता देते हैं, जबकि विकासशील देश गरीबी उन्मूलन, संसाधनों तक पहुँच तथा आर्थिक विकास पर जोर देते हैं।
- ये परस्पर विरोधी प्राथमिकताएँ अक्सर जलवायु वित्तपोषण, व्यापार उदारीकरण और समान संसाधन आवंटन जैसे वैश्विक मुद्दों पर असहमति का कारण बनती हैं।
- कमज़ोर प्रवर्तन तंत्र: G-20, एक अनौपचारिक मंच के रूप में, महत्त्वाकांक्षी योजनाएँ और समझौते तैयार करता है, लेकिन कानूनी रूप से बाध्यकारी संरचना के अभाव के कारण अक्सर प्रतिबद्धताओं और कार्यान्वयन के बीच विसंगति पैदा होती है, जो सदस्य देशों की स्वैच्छिक प्रतिज्ञाओं पर निर्भर करती है।
- जलवायु वित्त या ऋण पुनर्गठन जैसे समझौते प्रायः जवाबदेही ढाँचे के अभाव के कारण क्रियान्वित नहीं हो पाते।
- ग्लोबल साउथ का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व: जबकि G20 में भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं, लेकिन छोटे और कम विकसित देशों का प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व नहीं है।
- यद्यपि अफ्रीकी संघ को सदस्य के रूप में शामिल करने जैसी पहल का उद्देश्य इस अंतर को पाटना है, फिर भी निर्णय लेने की प्रक्रिया में अभी भी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का वर्चस्व है, जिससे ग्लोबल साउथ का प्रभाव सीमित हो रहा है ।
- इस असंतुलन के कारण यह आलोचना होती है कि G-20 गरीब देशों की चिंताओं, जैसे ऋण राहत और समान विकास, को पर्याप्त प्राथमिकता नहीं देता है।
आगे की राह
- वैश्विक भूख, ईंधन और उर्वरक संकट का समाधान: G-20 देशों को विशेष रूप से विकासशील क्षेत्रों में खाद्य, ईंधन और उर्वरक की कमी के प्रति एकजुट प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, ग्लोबल हंगर एंड पॉवर्टी अलायंस और मिलेट इनिशिएटिव, G-20 के प्रयासों के प्रमुख उदाहरण हैं, जिनका उद्देश्य खाद्य असुरक्षा को दूर करना और वैश्विक भुखमरी और गरीबी से निपटने के लिये सतत् कृषि को बढ़ावा देना है।
- G-20 को अस्थिर आपूर्ति शृंखलाओं पर वैश्विक निर्भरता को कम करने के लिये दीर्घकालिक समाधानों, जैसे सतत् खेती और वैकल्पिक उर्वरकों में निवेश करना चाहिये।
- समावेशी वार्ता: G-20 को साझा वैश्विक लक्ष्यों, जलवायु कार्यवाही और आर्थिक विकास में संतुलन पर ध्यान केंद्रित करते हुए समावेशी वार्ता को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- विविध आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये जलवायु वित्त और व्यापार के लिये स्पष्ट रूपरेखा विकसित की जानी चाहिये।
- कूटनीतिक सहभागिता: G-20 को संघर्ष समाधान पर ध्यान केंद्रित करते हुए कूटनीतिक सहभागिता और बहुपक्षीय वार्ता को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- विशेषीकृत कार्य समूह बनाने से रूस-यूक्रेन संघर्ष और मध्य पूर्व तनाव जैसे मुद्दों पर आम सहमति बनाने में मदद मिल सकती है।
- प्रवर्तन तंत्र को मज़बूत करना: G-20 को जलवायु वित्त और ऋण राहत प्रतिज्ञाओं के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये निगरानी निकायों और स्वतंत्र मूल्यांकनों का उपयोग करते हुए जवाबदेही ढाँचे को मज़बूत करना चाहिये।
- बहुपक्षीय संस्थाओं के साथ साझेदारी से प्रवर्तन में सुधार लाने में सहायता मिल सकती है।
- ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधित्व बढ़ाना: G-20 को अपनी सदस्यता का दायरा बढ़ाकर ग्लोबल साउथ के अधिक देशों को शामिल करना चाहिये, ताकि निर्णय लेने में उनका अधिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके।
- अल्पप्रतिनिधित्व वाले राष्ट्रों के लिये विशेष सलाहकार भूमिकाएँ ऋण राहत और जलवायु न्याय पर इनपुट में सुधार कर सकती हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किस समूह के सभी चारों देश G20 के सदस्य हैं ? (2020) (a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका एवं तुर्की उत्तर: (a) प्रश्न. "G20 कॉमन फ्रेमवर्क" के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) |