अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और विश्व व्यापार संगठन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization-WTO) की आलोचना करते हुए कहा था कि वह भारत और चीन जैसे देशों, जो अमेरिका के आर्थिक हितों को प्रभावित करते हैं, को अनुचित व्यापार प्रथाओं में शामिल होने की अनुमति दे रहा है।

  • अमेरिकी राष्ट्रपति के अनुसार, भारत और चीन जैसे देश ‘विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ’ नहीं हैं, बल्कि ये तेज़ी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाएँ हैं। अतः इन्हें WTO की ओर से किसी भी प्रकार का विशेष उपचार नहीं मिलना चाहिये।

विकासशील देश होने के मायने

  • विकासशील देशों का आशय उन देशों से है जो अपने आर्थिक विकास के पहले चरण से गुज़र रहे हैं तथा जहाँ लोगों की प्रति व्यक्ति आय विकसित देशों की अपेक्षा काफी कम है। इन देशों में जनसंख्या काफी अधिक होती है जिसके कारण इन देशों को गरीबी और बेरोज़गारी जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है।
  • WTO के विकासशील सदस्य देशों को WTO द्वारा मंज़ूर विभिन्न बहुपक्षीय व्यापार समझौतों की प्रतिबद्धताओं (Commitments) से अस्थायी अपवाद या छूट प्राप्त करने की अनुमति होती है।
  • WTO ने इसकी शुरुआत अपने प्रारंभिक दौर में इस उद्देश्य से की थी कि इसके माध्यम से गरीब सदस्य देशों को कुछ राहत दी जा सके ताकि वे नए वैश्विक व्यापार परिदृश्य में स्वयं को आसानी से समायोजित कर सकें।
  • हालाँकि WTO औपचारिक रूप से अपने किसी भी सदस्य देश को विकासशील देश या किसी अन्य प्रकार की श्रेणी में वर्गीकृत नहीं करता है, बल्कि इसके स्थान पर सभी सदस्य देशों को इस बात की स्वयं घोषणा करने की अनुमति दी गई है।
  • WTO से मिली इस स्वतंत्रता के कारण ही उसके 164 सदस्य देशों में से दो तिहाई ने स्वयं को विकासशील देशों के रूप में वर्गीकृत किया हुआ है।

विकासशील अर्थव्यवस्था: भारत और चीन

  • विकासशील देश जैसे भारत और चीन को कुछ समझौते के पूर्ण कार्यान्वयन को लेकर छूट प्राप्त है किंतु यह छूट इन्हें आर्थिक रूप से पिछड़े होने के कारण दी गई है।
  • विकसित देश लंबे समय से आर्थिक गतिविधियों के केंद्र रहे हैं जिससे इनके निर्यात कुशल होते हैं तथा विकासशील देशों की तुलना में सस्ते होते हैं। यदि विकासशील देशों में आर्थिक विकास को बल प्रदान करना है एवं विनिर्माण क्षेत्र को विकसित करना है तो इसके लिये आवश्यक है कि उनको संरक्षण दिया जाए। इसी विचार के आधार पर भारत जैसे विकासशील देशों को छूट प्रदान की गई है हालाँकि चीन जैसे देश जो अपेक्षित रूप से कुशल आर्थिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में विकसित हो चुके ,हैं इस प्रकार की छूट का दुरुपयोग करते नज़र आते हैं।
  • विकासशील देशों को दी गई छूट के संदर्भ में ही भारत की कृषि सब्सिडी पर भी अमेरिका द्वारा प्रश्न खड़े किये जाते रहे हैं किंतु भारत में खाद्य सुरक्षा के दृष्टिकोण से ऐसे निर्णय आवश्यक हैं। साथ ही अमेरिका जैसे देश जो अति विकसित हैं, कृषि क्षेत्र में सब्सिडी की भेदभावपूर्ण गणना का भी लाभ उठाते हैं, जिसे रोके जाने की आवश्यकता है।

कितनी तर्कसंगत है WTO की आलोचना

  • कई लोगों का मानना है कि ‘विकासशील देशों’ को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों से छूट देने का उद्देश्य गरीब देशों के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुगम बनाना था, परंतु इस कदम का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
  • चूँकि WTO ने सदस्य देशों को स्वैच्छिक आधार पर स्वयं को ‘विकासशील देश’ घोषित करने की अनुमति दे रखी है इसीलिये कई देशों ने इस कदम का अनुचित उपयोग किया है।
  • उदाहरण के लिये सिंगापुर और हाँगकॉंग जैसे देशों ने स्वयं को ‘विकासशील देश’ के रूप में वर्गीकृत किया हुआ है और ये देश गरीब देशों को मिलने वाले फायदे का लाभ भी उठाते हैं, परंतु यदि इनकी अर्थव्यवस्था की बात करें तो ये किसी विकसित देश से कम नहीं है और इन देशों की प्रति व्यक्ति आय का स्तर अमेरिका जैसे देशों से भी अधिक है।
  • हालाँकि सिंगापुर और हाँगकॉंग की तुलना में भारत जैसे देशों की स्थिति काफी अलग है जिनका आर्थिक ढाँचा उपरोक्त देशों के समान सक्षम नहीं है। अतः इस संदर्भ में विकासशील देशों को मिलने वाली विभिन्न प्रकार की छूट उनके आर्थिक विकास में सहायता देने के लिये आवश्यक है।
  • यहाँ पर इस बात पर भी गौर किये जाने की आवश्यकता है कि WTO के नियम सदैव विकसित देशों को नुकसान नहीं पहुँचाते हैं।
  • अमेरिका जैसे विकसित देशों ने कई बार WTO के माध्यम से पश्चिम में व्यापक रूप से प्रचलित कड़े श्रम सुरक्षा और अन्य नियमों को लागू करने के लिये गरीब देशों को मजबूर करने की कोशिश की है।
  • ये नियम विकासशील देशों में उत्पादन की लागत को बढ़ा सकते हैं और उन्हें वैश्विक स्तर पर व्यापार प्रतिस्पर्द्धा से बाहर कर सकते हैं।

निष्कर्ष

  • अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा की गई आलोचना को अमेरिका-चीन के व्यापार युद्ध की एक कार्यवाही के रूप में भी देखा जा सकता है।
  • कुछ समय पूर्व भी अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह कहते हुए चीन को ‘करेंसी मैनीपुलेटर’ (Currency Manipulator) की संज्ञा दी थी कि वह अपनी मुद्रा युआन के साथ छेड़छाड़ कर रहा है।
  • चीन और अमेरिका ने पिछले साल से ही एक दूसरे पर काफी ज़्यादा आयात शुल्क लगाने की शुरुआत कर दी थी।
  • WTO में चीन का विकासशील देश होना अमेरिका को एक अन्य अवसर देता है कि वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन की आलोचना कर सके।

स्रोत: द हिंदू