भारत का आर्थिक पर्यावरण: मुक्त व्यापार और इसके जोखिम

संदर्भ

भारत ने 1990 के दशक में अपनी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया और इसने उन क्षेत्रों को खोला जो अब तक केवल सार्वजनिक क्षेत्र के लिये संरक्षित माने जाते थे। दुनियाभर के निवेशकों को भारत में निवेश करने के लिये आमंत्रित किया गया और इससे अर्थव्यवस्था का समग्र आर्थिक वातावरण उदार बना। हालाँकि यह आकलन करना मुश्किल है कि हम अपने प्रयासों में कितनी दूरी तय कर पाए हैं, लेकिन निश्चित रूप से भारत ने एक सही दिशा में एक छलाँग लगाई है।

पृष्ठभूमि

हालांकि भारत ने अपने व्यापार परिदृश्य को काफी हद तक खोल दिया है, लेकिन घरेलू उत्पादकों और व्यापारियों के पक्ष में हमारी नीतियाँ अक्सर मुक्त व्यापार की राह में बाधक बन जाती हैं। भारत के साथ हालिया अमेरिकी व्यापार तनाव इसका एक उदाहरण है। अमेरिका ने भारत द्वारा इलेक्ट्रॉनिक सामानों पर आयात शुल्क बढ़ाने पर आपत्ति जताई है और वह चाहता है कि भारत अमेरिका-निर्मित मोटर-साइकिलों पर शुल्क कम करे।

क्या है मुक्त व्यापार?

सीधे सरल शब्दों में कहें तो आयात-निर्यात में भेदभाव को खत्म करने की नीति को मुक्त व्यापार कहते हैं। इसके तहत विभिन्न अर्थव्यवस्था वाले देशों के खरीदार और विक्रेता स्वेच्छा से सरकार, वस्तुओं और सेवाओं पर टैरिफ, कोटा, सब्सिडी या किसी अन्य प्रतिबंध की चिंता किये बिना व्यापार कर सकते हैं। कह सकते हैं कि मुक्त व्यापार किसी भी प्रकार की व्यापार नीतियों का निषेध है और इसके लिये किसी सरकार को कोई विशेष कार्रवाई करने की आवश्यकता नहीं है। इसे व्यापार उदारीकरण (Laissez-faire Trade) के रूप में जाना जाता है।

  • दो ब्रिटिश अर्थशास्त्रियों एडम स्मिथ तथा डेविड रिकार्डो ने तुलनात्मक लाभ की आर्थिक अवधारणा के माध्यम से मुक्त व्यापार के विचार को आगे बढ़ाया था।
  • तुलनात्मक लाभ तब होता है जब कोई देश किसी अन्य देश से बेहतर गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उत्पादन करता है।
  • ऐसे देश जिनके पास इन उत्पादों की सीमित मात्रा होती है, वे अन्य देशों से इनका आयात कर सकते हैं।
  • मुक्त व्यापार उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन करने के लिये आर्थिक संसाधनों के उपयोग को भी प्रभावित करता है।

मुक्त व्यापार के लाभ

  • टैरिफ और कुछ गैर-टैरिफ बाधाओं को खत्म करने से मुक्त व्यापार भागीदारों की एक-दूसरे के बाज़ारों में पहुँच आसान होती है।
  • निर्यातक बहुपक्षीय व्यापार उदारीकरण के लिये मुक्त व्यापार समझौते को पसंद करते हैं क्योंकि इससे उन्हें अपने प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में वरीयता मिलती है।
  • मुक्त व्यापार समझौते विदेशी निवेश के प्रवाह को बढ़ावा देते हैं तथा व्यापार, उत्पादकता और नवाचार को प्रोत्साहित करते हैं। इससे क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा मिलता है। 
  • मुक्त व्यापार समझौते विकासशील देशों की मदद कर सकते हैं तथा इससे व्यापार का माहौल गतिशील होता है।
  • मुक्त व्यापार के समर्थक यह मानते हैं कि अन्य देशों के उत्पादों के सरल आयात से उपभोक्ता को निश्चित ही लाभ होता है।
  • प्रत्येक देश में उपभोक्ता आयात बाधाओं को कम करने के पक्ष में होते हैं क्योंकि ऐसा होने पर बेहद प्रतिस्पर्द्धी मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण उत्पाद उन्हें सहज-सुलभ हो जाते हैं।

मुक्त व्यापार की चुनौतियाँ

  • मुक्त व्यापार में कोई भी प्रतिबंध केवल कुछ पूंजीपतियों के हित में काम करता है और बड़े पैमाने पर यह जनता के हित में नहीं होता।
  • वैश्विक व्यापार व्यवस्था में गिरावट देखी जा रही है, क्योंकि मुक्त व्यापार तथा व्यापार का उदारीकरण जिस रफ्तार से होना चाहिये था वह नहीं हो पाया है।
  • अमेरिका, फ्राँस, जर्मनी, जापान तथा यूरोपीय संघ के विकसित देश अपना बाज़ार खोलने के लिये विकासशील देशों पर दबाव बनाते हैं, लेकिन जब इन विकसित देशों से ऐसा करने को कहा जाता है तो वे ऐसा करने से इनकार कर देते हैं।
  • कभी विकसित देश विकासशील देशों को सेवाएँ प्रदान करने के लिये मुक्त व्यापार व्यवस्था की बात करते थे, लेकिन अब विकसित देश इससे पीछे हट रहे हैं और यही बात अब विकासशील देश कहने लगे हैं।
  • सभी बड़े देशों में राष्ट्रवाद की हवा चल रही है। अमेरिका फर्स्ट की नीति की तरह फ्राँस, जर्मनी, जापान आदि विकसित देश भी नेशन फर्स्ट की नीति पर चल रहे हैं तथा ये देश अन्य देशों के लिये सबकुछ मुक्त नहीं करना चाहते।
  • पहले मुक्त व्यापार के लिये विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को काफी सुविधाएँ दी जाती थीं, लेकिन अब दोनों ही अपने-अपने दरवाज़े बंद कर रहे हैं।

रोज़गार उपलब्ध करा पाना सबसे बड़ी चुनौती

इसमें कोई दो राय नहीं है कि अर्थव्यवस्था के उदारीकरण से भारत को काफी फायदा हुआ है। इससे भारतीय उपभोक्ताओं की पहुँच दुनियाभर के विभिन्न प्रकार के उत्पादों तक हो गई है, लेकिन यह भी किसी से छिपा नहीं है कि भारतीय विनिर्माण क्षेत्र अभी भी पिछड़ा हुआ है और यह अपनी क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाता।

भारतीय परिप्रेक्ष्य में मुक्त आयात से उपभोक्ताओं के लाभान्वित होने वाला तर्क पूरी तरह सच नहीं है, क्योंकि लोगों को उन उत्पादों को खरीदने के लिये पैसे की आवश्यकता होती है। इसके लिये रोज़गार का होना ज़रूरी है जिससे उन्हें आय प्राप्त होगी। अपने नागरिकों के कल्याण के लिये ज़िम्मेदार किसी भी सरकार को देश में रोज़गार के अवसर बढ़ाने की चिंता बराबर बनी रहती है।

भारत की प्रभावशाली विकास दर देश की बड़ी युवा आबादी के लिये पर्याप्त रोज़गार के अवसर उपलब्ध नहीं करा पाती है, जबकि भारत की अर्थव्यवस्था में रोज़गार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने की क्षमता है, लेकिन रोज़गार वृद्धि दर दुनिया में सबसे कम बनी हुई है। तमाम आर्थिक सर्वेक्षणों से यह स्पष्ट हो चुका है कि भारतीय नागरिकों के लिये रोज़गार सबसे अधिक दबाव वाला मुद्दा है।

विकल्प क्या हैं?

  • मुक्त व्यापार के पीछे सबसे बड़ी सोच थी विदेशी निवेश की। माना यह जा रहा था कि मुक्त व्यापार के साथ बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारत में निवेश करेंगी तथा नई कंपनियाँ लगाएंगी, जिससे भारत में उच्च तकनीक के साथ विदेशी निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा।
  • मुक्त व्यापार से पीछे हटकर संरक्षणवाद की नीति अपनाना आज के समय में ज़्यादा प्रासंगिक है। विदेशी निवेश के स्थान पर घरेलू निवेश को प्रोत्साहन दिया जाना अधिक ज़रूरी है।
  • देशी निवेश के माध्यम से नई तकनीकों को हासिल करने के स्थान पर भारत को अब स्वयं नई तकनीकों के आविष्कार हेतु प्रयास करना चाहिये।
  • अपने विश्वविद्यालयों और अन्य संस्थानों में अनुसंधान कार्यक्रमों में तेज़ी लाना चाहिये। ऐसा करने से हम घरेलू निवेश एवं घरेलू तकनीकों के आधार पर आगे बढ़ सकेंगे।
  • अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में उलझन और समस्याएँ बढ़ती ही जा रही हैं। जाहिर है कि मुक्त व्यापार के साथ दुनिया के जुड़ने और समृद्ध होने के दौर पर फिलहाल विराम सा लग गया है।
  • वर्तमान परिस्थितियों में भारत को मुक्त व्यापार व्यवस्था से कहीं अधिक ज़रूरत अपने घरेलू उत्पादन में तेजी लाने के लिये एक बेहतर 'औद्योगिक नीति' की है। अपनी इन क्षमताओं को विकसित करके भारत उन देशों के उत्पादकों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकता है जो पहले से विकसित हैं।

आर्थिक पर्यावरण क्या है?

आर्थिक पर्यावरण उन सभी आर्थिक कारकों को संदर्भित करता है जो वाणिज्यिक और उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करते हैं। ये कारक किसी व्यवसाय को प्रभावित कर सकते हैं अर्थात् यह कैसे संचालित होता है और कितना सफल हो सकता है। कह सकते हैं कि आर्थिक पर्यावरण विभिन्न आर्थिक कारकों का एक संयोजन है जो व्यवसाय पर अपना प्रभाव डालता है। ये कारक उपभोक्ताओं और संस्थानों के खरीद व्यवहार और खर्च करने के तरीकों को प्रभावित करते हैं।

  • अर्थव्यवस्था का समग्र स्वास्थ्य इस बात पर निर्भर करता है कि उपभोक्ता कितना खर्च करते हैं और वे क्या खरीदते हैं। उपभोक्ता की खरीदारी अर्थव्यवस्था को मज़बूती देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • चूँकि सभी विपणन गतिविधियाँ उपभोक्ताओं की इच्छा और ज़रूरतों के मद्देनज़र तैयार की जाती हैं, इसलिये बाज़ार को निर्देशित करने वालों को यह समझना चाहिये कि आर्थिक स्थिति खरीदारी के फैसले को कैसे प्रभावित करती है।
  • किसी भी देश की अर्थव्यवस्था चक्रीय पैटर्न का अनुसरण करती है जिसमें चार चरण होते हैं- समृद्धि, मंदी, अवसाद और वसूली। व्यवसाय चक्र के प्रत्येक चरण में उपभोक्ता खरीद भिन्न होती है और बाज़ार को निर्देशित करने वालों को अपनी रणनीतियों को तदनुसार समायोजित करना चाहिये।

वैश्विक दौर की आर्थिक ज़रूरत

समग्र रूप में देखा जाए तो विभिन्न देशों के बीच मुक्त व्यापार आज के वैश्विक दौर की आर्थिक ज़रूरत है और इसीलिये मुक्त व्यापार की राह में आने वाली बाधाओं को खत्म किया जाना चाहिये ताकि आर्थिक विकास का लाभ सभी देशों को मिल सके। लेकिन टैरिफ वॉर को लेकर बढ़ती चिंता और दुनियाभर में अपने उद्योगों के हितों की रक्षा के लिये अन्य देशों के सामने खड़ी की जा रही बाधाओं से वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान होने की आशंका है। सभी देशों के व्यापक हितों के लिये यह आवश्यक है कि व्यापार की राह में आने वाली बाधाओं को कम किया जाए। कोई भी देश सभी वस्तुएँ नहीं बना सकता या कम-से-कम कीमत पर बेहतरीन गुणवत्ता चाहने वाले उपभोक्ताओं के लिये सभी सेवाएँ मुहैया नहीं करा सकता। इसे देखते हुए मुक्त व्यापार (Free Trade) व्यवस्था की ज़रूरत है। मुक्त व्यापार बढ़ने से न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी, बल्कि सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं को फायदा होगा।

अभ्यास प्रश्न: “मुक्त व्यापार व्यवस्था अपनाने के बजाय भारत को अपनी विनिर्माण क्षमता बढ़ाकर वैश्विक बाज़ार को मज़बूत बनाने पर ज़ोर देना चाहिये।” कथन का परीक्षण कीजिये।