शासन व्यवस्था
मुत्थानशक्ति और समावेशिता के लिये भावी शहरों की योजना
- 22 Feb 2025
- 24 min read
यह एडिटोरियल 21/02/2025 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित “Kumbh's transient city raises lessons in urban planning and resilience” पर आधारित है। लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि कुंभ मेला क्षणिक शहरीकरण का उदाहरण है, जो कुंभ मेला अस्थायी शहरीकरण का एक प्रमुख उदाहरण है, जो एक छोटे अस्थायी शहर के लिये त्वरित बुनियादी अवसंरचना के निर्माण को प्रदर्शित करता है तथा शहरी डिज़ाइन में सुरक्षा, संवहनीयता, मानव व्यवहार और सामूहिक जिम्मेदारी के महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठाता है।
प्रिलिम्स के लिये:NITI आयोग, 74वाँ संविधान संशोधन, 15वाँ वित्त आयोग, केंद्रीय बजट 2025-26, अर्बन चैलेंज फण्ड, स्मार्ट सिटीज़ मिशन (वर्ष 2015), AMRUT (अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन) योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY), स्वच्छ भारत मिशन-शहरी, दीन दयाल अंत्योदय योजना - NULM, कौशल विकास, वित्तीय समावेशन, गति शक्ति मास्टर प्लान (2021), MyGov, स्वच्छ सर्वेक्षण मेन्स के लिये:सतत् शहरी परिवर्तन में शहरी नियोजन का महत्त्व। |
कुंभ मेले का अस्थायी शहर तेज़ी से हो रहे शहरीकरण को दर्शाता है, लेकिन संवहनीयता, समुत्थानशक्ति और शासन में चुनौतियों को भी उजागर करता है। भारत की शहरी आबादी वर्ष 2050 तक 50% तक पहुँचने का अनुमान है, अनियोजित विकास आवास, परिवहन और संसाधनों पर दबाव डाल रहा है। अपर्याप्त नियोजन, लापरवाह शासन व शहरी योजनाकारों की कमी से भीड़भाड़ एवं पर्यावरण संबंधी समस्याओं से स्थिति और भी बदतर हो जाती है। भविष्य के लिये तैयार शहरों के लिये शहरी नियोजन, शासन को सुदृढ़ करना और संधारणीय बुनियादी अवसंरचना महत्त्वपूर्ण है।
शहरी नियोजन और परिवर्तन में सुधार की क्या आवश्यकता है?
- तीव्र शहरीकरण: अनुमान है कि वर्ष 2050 तक भारत की शहरी आबादी 50% तक पहुँच जाएगी, जिससे बुनियादी अवसंरचना पर दबाव बढ़ेगा।
- वर्ष 2001 और 2011 के दौरान जनगणना कस्बों की संख्या 1,362 से बढ़कर 3,892 हो गयी, जो अनियोजित वृद्धि को उजागर करती है।
- अपर्याप्त शहरी नियोजन से भीड़भाड़, आवास की कमी, पर्यावरण क्षरण और संसाधन कुप्रबंधन जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि भारत को वर्ष 2030 तक शहरी बुनियादी अवसंरचना में 1.2 ट्रिलियन डॉलर का निवेश करने की आवश्यकता है।
- व्यापक नियोजन तंत्र का अभाव: NITI आयोग के अनुसार, 4,041 वैधानिक शहरों (भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार) में से 52% में वर्तमान में अनुमोदित मास्टर प्लान का अभाव है या वे तैयार नहीं हैं।
- अनियोजित शहरी विस्तार के परिणामस्वरूप अकुशल परिवहन प्रणाली, जल की कमी और स्वच्छता संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- एक बार जब अनियमित विस्तार हो जाता है तो शहरों की पुनर्रचना महंगी और अप्रभावी हो जाती है।
- कुशल शहरी नियोजकों की कमी: NITI आयोग के लिये TCPO और NIUA द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में केवल 17,000 शहरी नियोजक हैं, जबकि 12,000 नगर नियोजकों की कमी है।
- कुशल पेशेवरों के बिना, शहरी शासन खंडित, अकुशल और असंवहनीय बना रहता है।
- खंडित शहरी शासन: 74वें संविधान संशोधन का उद्देश्य शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को सशक्त बनाना था, लेकिन इसका क्रियान्वयन अपर्याप्त रूप से किया गया।
- शहरी नियोजन का कार्य स्वतंत्र रूप से करने वाली अनेक एजेंसियों के कारण अकुशलताएँ और निम्नस्तरीय सेवा वितरण होता है।
- शहरी स्थानीय निकायों में वित्तीय स्वायत्तता का अभाव है, जिसके कारण वे धन के लिये राज्य और केंद्र सरकारों पर निर्भर रहते हैं।
- उदाहरण के लिये, बेंगलुरु और जयपुर शहर संपत्ति कर से संभावित आय का मात्र 5 से 20% ही एकत्र कर रहे हैं।
शहरी नियोजन और परिवर्तन में चुनौतियाँ क्या हैं?
- पुराने नियामक कार्यढाँचे: अधिकांश राज्य स्तरीय नगर एवं ग्राम नियोजन अधिनियम पुराने हो चुके हैं, जो आधुनिक शहरी चुनौतियों का समाधान करने में विफल हैं।
- विनियमों में जलवायु अनुकूलन, स्मार्ट बुनियादी अवसंरचना और सतत् शहरीकरण के प्रावधानों का अभाव है।
- धीमी भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के समय पर कार्यान्वयन में बाधा डालती है।
- अकुशल भूमि उपयोग और झुग्गी-झोपड़ियों की वृद्धि: लापरवाह भू-उपयोग नीतियों के कारण भीड़भाड़, अनियोजित विस्तार और झुग्गी-झोपड़ियों की संख्या में वृद्धि होती है।
- ज़ोनिंग कानूनों के कमज़ोर प्रवर्तन के कारण अतिक्रमण और अनधिकृत कॉलोनियों का विकास जारी है।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश की संयुक्त झुग्गी आबादी 2.20 करोड़ है, जो भारत की कुल झुग्गी आबादी 6.55 करोड़ का लगभग 33.6% है।
- धारावी पुनर्विकास परियोजना का लक्ष्य 10 लाख से अधिक झुग्गीवासियों का पुनर्वास करना है, लेकिन भूमि विवादों के कारण इसमें विलंब हो रहा है।
- सीमित सार्वजनिक भागीदारी और जागरूकता: उच्च साक्षरता दर के बावजूद, शहरी नियोजन में सार्वजनिक भागीदारी न्यूनतम बनी हुई है।
- शहरी प्रशासन के बारे में जागरूकता की कमी के कारण नीति कार्यान्वयन अप्रभावी हो जाता है।
- सहभागी बजट, जिसमें निवासी निर्णय लेने में योगदान करते हैं, भारतीय शहरों में बहुत हद तक अनुपस्थित है।
- शहरी स्थानीय निकायों (ULB) में वित्तीय बाधाएँ: कम संपत्ति कर अनुपालन और अपर्याप्त वित्तीय प्रबंधन के कारण ULB को राजस्व सृजन में संघर्ष करना पड़ता है।
- RBI की रिपोर्ट के अनुसार, कर राजस्व नगर निगमों की आय का केवल 30% है।
- केंद्रीय और राज्य वित्तपोषण पर निर्भरता शहरों की स्वतंत्र विकास योजनाओं को क्रियान्वित करने की क्षमता को सीमित करती है।
- पर्यावरणीय चुनौतियां और जलवायु अनुकूलन: भारत में प्रतिवर्ष 42 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट (नगर-निगम) उत्पन्न होता है, जिसमें से 72% टियर-I शहरों से आता है।
- अनियमित शहरीकरण से प्रदूषण, अपशिष्ट कुप्रबंधन और संसाधनों की कमी बढ़ती है।
- दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों में लापरवाह शहरी नियोजन के कारण वायु की गुणवत्ता लगातार निम्न होती जा रही है।
- लैंसेट प्लैनेट हेल्थ के अध्ययन में पाया गया कि भारत का कोई भी भाग विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करता है, तथा PM2.5 प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष 15 लाख लोगों की मृत्यु होती है।
शहरी नियोजन और परिवर्तन के लिये क्या कदम उठाए गए हैं?
- विधायी एवं नीतिगत सुधार:
- वर्ष 1996 के शहरी विकास योजना निर्माण एवं कार्यान्वयन (UDPFI) दिशानिर्देशों ने नियोजन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया।
- वर्ष 2014 शहरी और क्षेत्रीय विकास योजना निर्माण और कार्यान्वयन (URDPFI) दिशानिर्देशों ने आधुनिक शहरी रणनीतियों की शुरुआत की।
- 15वें वित्त आयोग ने नगरपालिका सुधारों और शहरी प्रशासन के लिये वित्त पोषण बढ़ाने की सिफारिश की।
- मॉडल टेनेंसी एक्ट (2021) का उद्देश्य किराये के बाज़ारों को औपचारिक बनाना और आवास की कमी को रोकना है।
- भारत सरकार ने स्मार्ट सिटी मिशन और AMRUT के तहत शहरी बुनियादी अवसंरचना के वित्तपोषण को बढ़ाने के लिये नगर-निगम बॉण्ड को बढ़ावा दिया।
- पुणे, इंदौर और अहमदाबाद जैसे शहरों ने सफलतापूर्वक बॉण्ड जारी किये, जिससे वित्तीय संवहनीयता सुनिश्चित हुई तथा बाज़ार-संचालित निवेश के माध्यम से शहरी प्रशासन में सुधार हुआ।
- पहल:
- केंद्रीय बजट 2025-26 में, अर्बन चैलेंज फण्ड ने शहरों को विकास केंद्र, शहरों के रचनात्मक पुनर्विकास और जल एवं स्वच्छता के समर्थन के लिये ₹1 लाख करोड़ आवंटित किये हैं, जिसमें सत्र 2025-26 के लिये ₹10,000 करोड़ विशेष रूप से निर्धारित किये गए हैं।
- स्मार्ट सिटीज़ मिशन (वर्ष 2015) प्रौद्योगिकी-संचालित शासन और बुनियादी अवसंरचना में सुधार को बढ़ावा देता है।
- AMRUT (अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन) योजना शहरी बुनियादी अवसंरचना के विकास पर केंद्रित है।
- प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) का उद्देश्य शहरी गरीबों को किफायती आवास उपलब्ध कराना है।
- स्वच्छ भारत मिशन-शहरी एक राष्ट्रव्यापी पहल है जिसका उद्देश्य खुले में शौच को समाप्त करना, अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करना और शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता को बढ़ावा देना है।
- दीन दयाल अंत्योदय योजना - NULM एक मिशन है जो कौशल विकास, स्वरोजगार और वित्तीय समावेशन के माध्यम से शहरी गरीबों को स्थायी आजीविका के अवसरों के लिये सशक्त बनाता है।
- गति शक्ति मास्टर प्लान (2021) विकास को सुव्यवस्थित करने के लिये परिवहन, रसद और शहरी बुनियादी अवसंरचना को एकीकृत करता है।
- डिजिटल और GIS-आधारित योजना का एकीकरण:
- AMRUT के अंतर्गत प्रथम श्रेणी के शहरों के लिये GIS आधारित मास्टर प्लान क्रियान्वित किये जा रहे हैं।
- नागरिक सहभागिता के लिये MyGov जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म शहरी शासन में पारदर्शिता बढ़ाते हैं।
- AI और बिग डेटा एनालिटिक्स को अपनाने से यातायात प्रबंधन एवं सेवा वितरण में सहायता मिलती है।
- उदाहरण के लिये, पुणे एक्सप्रेसवे यातायात उल्लंघनों की निगरानी करने, पैटर्न का पता लगाने तथा सुगम यात्रा अनुभव हेतु सुरक्षा और दक्षता में सुधार करने के लिये इंटेलिजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (ITMS) का उपयोग करता है।
- डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) ने 95% भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण कर दिया है, जिससे शहरी नियोजन में सुधार हुआ है।
भारत में शहरी परिवर्तन के सर्वोत्तम अभ्यास और उदाहरण
- कुंभ मेला: अस्थायी शहरीकरण के लिये एक मॉडल: प्रयागराज में वर्ष 2025 के कुंभ मेले में तेज़ी से बुनियादी अवसंरचना के विकास, AI निगरानी और स्मार्ट सिटी सॉल्यूशन का प्रदर्शन किया जाएगा।
- 30 पांटून पुलों और 92 नवीनीकृत सड़कों से सुचारू यातायात सुनिश्चित हुआ।
- 2,700 CCTV कैमरों और ड्रोन के साथ AI-सक्षम निगरानी ने सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन को बढ़ाया।
- इस आयोजन से 2.7 बिलियन डॉलर की आर्थिक गतिविधि उत्पन्न हुई, जिससे शहरी नियोजन की आर्थिक क्षमता पर प्रकाश पड़ा।
- इंदौर का अपशिष्ट प्रबंधन मॉडल: इंदौर की विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली ने स्रोत पर 100% अपशिष्ट पृथक्करण हासिल किया।
- शहर ने लैंडफिल पर निर्भरता कम करने के लिये सख्त निगरानी, नागरिक सहभागिता और कम्पोस्ट इकाइयाँ स्थापित कीं।
- इंदौर को वर्ष 2017 से लगातार स्वच्छ सर्वेक्षण रैंकिंग में भारत के सबसे स्वच्छ शहर का दर्जा दिया गया है।
- शहरी यातायात प्रबंधन: चंडीगढ़ की AI ट्रैफिक प्रणाली 2,000 से अधिक CCTV कैमरों के साथ उल्लंघन का पता लगाने को स्वचालित करती है, जिससे नियमों का निर्बाध प्रवर्तन सुनिश्चित होता है।
- कोलकाता का रियल-टाइम ट्रैफिक मैनेजमेंट, प्रतीक्षा समय को कम करने और वाहनों की आवागमन में सुधार करने के लिये AI का उपयोग करके सिग्नल को समायोजित करता है।
- बेंगलुरु की सतत् परिवहन पहल: मेट्रो विस्तार परियोजनाओं और इलेक्ट्रिक बस बेड़े का उद्देश्य भीड़भाड़ एवं उत्सर्जन को कम करना है।
- इलेक्ट्रिक वाहनों और साइकिल-शेयरिंग कार्यक्रमों के साथ लास्ट-माइल कनेक्टिविटी का एकीकरण अभिगम को बढ़ाता है।
- नम्मा मेट्रो चरण-2 का विस्तार 72 किमी. तक होगा, जिससे यात्रा का समय 40% कम हो जाएगा।
- चेन्नई के जल प्रबंधन सुधार: अनिवार्य वर्षा जल संचयन को लागू करके, चेन्नई ने अपनी जल गुणवत्ता में सुधार किया है और भूजल स्तर को बहुत हद तक बढ़ाया है।
- शहर अब अपनी जल मांग का 15% पुनर्चक्रण के माध्यम से पूरा करता है तथा 8% उपचारित अपशिष्ट जल उद्योगों को बेचा जाता है।
- अन्य सर्वोत्तम प्रथाएँ:
- विशाखापत्तनम में भारत का पहला पार्क बनाया गया है, जो दिव्यांग बच्चों के लिये बनाया गया है, जिसमें समावेशी शहरी स्थानों को बढ़ावा देने के लिये संवेदी अनुभव, व्हीलचेयर सुलभता और सुरक्षित क्रीड़ा क्षेत्र शामिल हैं।
- जबलपुर का 311 ऐप नागरिकों को नागरिक सेवाओं तक अभिगम, शिकायतों की रिपोर्ट करने और सार्वजनिक बुनियादी अवसंरचना के मुद्दों को ट्रैक करने में सक्षम बनाता है। ऐप सीधे शासन से संपर्क और वास्तविक काल समाधान सुनिश्चित करता है।
- सूरत का शहरी प्रबंधन के लिये एकीकृत कमान एवं नियंत्रण केंद्र शहर की निगरानी, यातायात नियंत्रण और आपातकालीन मोचन के लिये IT प्रणालियों को एकीकृत करता है। यह प्रणाली शहरी शासन, नागरिक सुरक्षा और नगरपालिका दक्षता को बढ़ाती है।
- नासिक ने बहुस्तरीय बाढ़ तैयारी योजना को अपनाया, जिसमें GIS मैपिंग, रियल-टाइम अलर्ट और समन्वित बचाव कार्यों को एकीकृत किया गया, जिससे शहरी बुनियादी अवसंरचना पर आपदा प्रभाव को बहुत हद तक कम किया जा सका।
- चेन्नई ने पॉण्डी बाज़ार को पैदल यात्रियों के अनुकूल सैरगाह में बदल दिया, जिससे पैदल चलने की सुविधा, शहरी सौंदर्य और स्थानीय व्यापारिक सहभागिता में वृद्धि हुई, जिससे शहर अधिक रहने योग्य बन गया।
आगे की राह क्या होना चाहिये?
- शहरी शासन और स्वायत्तता को बढ़ाना: संपत्ति कर और भूमि मूल्य अधिग्रहण का लाभ उठाकर शहरों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिये।
- जर्मनी की नगरपालिका वित्त प्रणाली कुल कर राजस्व का लगभग 15% शहरी सरकारों को आवंटित करती है।
- इसके अलावा, मुंबई नगर निगम ने संपत्ति कर सुधार और भूमि मुद्रीकरण के माध्यम से राजस्व में वृद्धि की, 50,000 झुग्गी-झोपड़ियों के व्यवसायों का 350 करोड़ रुपए का मूल्यांकन करने की योजना बनाई, जो अन्य शहरी निकायों के लिये एक मॉडल के रूप में कार्य करेगा।
- बुनियादी अवसंरचना के विकास के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी का विस्तार: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से विकसित बैंगलोर का केम्पेगौड़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, शहरी बुनियादी अवसंरचना में निजी क्षेत्र की प्रभावी भागीदारी को दर्शाता है।
- ब्रिटेन की टेम्स टाइडवे टनल प्रोजेक्ट, जो एक सफल सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) पहल है, कुशल सीवेज प्रबंधन के माध्यम से यमुना और मूसी जैसी नदियों की सफाई के लिये एक मॉडल के रूप में काम कर सकती है।
- सतत् शहरी विकास: सिंगापुर की ग्रीन प्लान- 2030 सस्टेनेबल ट्रांसपोर्ट, अपशिष्ट प्रबंधन और नेट-ज़ीरो कार्बन विकास पर केंद्रित है।
- कोपेनहेगन ने शहरी बाढ़ से निपटने के लिये ब्लू-ग्रीन अवसंरचना के साथ एक जलवायु अनुकूलन योजना विकसित की है।
- सूरत की जलवायु अनुकूल रणनीति, जिसमें बाढ़ प्रबंधन, शहरी हरियाली और संधारणीय जल प्रथाओं का संयोजन किया गया है, समान पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रहे अन्य शहरों के लिये एक मॉडल के रूप में काम कर सकती है।
- डिजिटल और स्मार्ट शहरी नियोजन को सुदृढ़ बनाना: बार्सिलोना की स्मार्ट सिटी पहल अपशिष्ट प्रबंधन और शहरी गतिशीलता को अनुकूलित करने के लिये IoT प्रौद्योगिकी का उपयोग करती है।
- भारत के स्मार्ट सिटी मिशन ने वास्तविक-काल निगरानी के लिये भोपाल और पुणे जैसे शहरों में एकीकृत कमांड सेंटर स्थापित किये हैं।
- समावेशी और सहभागी शहरी विकास को बढ़ावा देना: ब्राज़ील के पोर्टो एलेग्रे में सहभागी बजट मॉडल, नगरपालिका संबंधी निर्णय लेने में निवासियों को सशक्त बनाता है।
- पुणे का सहभागी बजट मॉडल, शहरी परियोजनाओं के प्रस्ताव और कार्यान्वयन के लिये स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाता है, जो समुदाय-संचालित विकास को बढ़ावा देने वाले अन्य शहरों के लिये एक मूल्यवान उदाहरण के रूप में काम कर सकता है।
निष्कर्ष
भारत के शहरी परिवर्तन को सतत् विकास, कुशल शासन और समावेशी योजना पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। शहरी शासन, डिजिटल एकीकरण और कुशल कार्यबल को मज़बूत करने से संधारणीय, जन-केंद्रित शहर बनेंगे। एक दूरदर्शी दृष्टिकोण रहने योग्य, पर्यावरण की दृष्टि से समुत्थानशील और आर्थिक रूप से जीवंत शहरी स्थान सुनिश्चित करेगा, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिये दीर्घकालिक समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारतीय शहर तीव्र शहरीकरण को समावेशी विकास और संसाधनों तक समान अभिगम के साथ किस प्रकार संतुलित कर सकते हैं? |
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