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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    अनियोजित विकास तथा भीड़भाड़ के कारण शहरी क्षेत्र आपदा जोखिमों के प्रति अधिक संवेदनशील होते जा रहे हैं। शहरी बुनियादी ढाँचे एवं समुदायों को आपदाओं के प्रति अधिक अनुकूलित बनाने हेतु रणनीतियाँ बताइये। (250 शब्द)

    26 Jun, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधन

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • शहरीकरण तथा शहरी बुनियादी ढाँचे पर बढ़ते दबाव का उल्लेख करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • इस बात पर प्रकाश डालिये कि किस प्रकार अनियोजित विकास एवं भीड़भाड़ से शहर आपदा के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
    • शहरी बुनियादी ढाँचे एवं समुदायों को आपदाओं के प्रति अधिक अनुकूलित बनाने हेतु रणनीतियाँ बताइये।
    • SDG की प्रासंगिकता का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक वैश्विक आबादी में लगभग 70% की हिस्सेदारी शहरी क्षेत्रों की होने से शहरी बुनियादी ढाँचे एवं प्रणालियों पर काफी दबाव पड़ेगा।

    • शहरीकरण एक वैश्विक घटना है लेकिन इसके असंतुलित होने से यह आपदा का कारण बनता है।

    अनियोजित विकास और भीड़भाड़ के कारण शहर आपदा के केंद्र बन जाते हैं जैसे:

    • बुनियादी ढाँचे की वहनीय क्षमता सीमित होना:
      • अवरुद्ध जल निकासी प्रणालियाँ: अनियोजित निर्माण गतिविधियों से अक्सर प्राकृतिक जल निकासी चैनलों एवं आर्द्रभूमि का अतिक्रमण होता है।
        • इससे शहर में भारी वर्षा के दौरान जल निकासी के प्रभावी न होने से बाढ़ और जलभराव की समस्या हो जाती है।
        • उदाहरण: गुरुग्राम में जलभराव का आंशिक कारण अनियोजित निर्माण तथा नालियों के जल का अवरुद्ध होना है।
      • सतही अपवाह में वृद्धि: अनियंत्रित निर्माण गतिविधियों से प्राकृतिक परिदृश्य, कंक्रीट में रूपांतरित हो रहे हैं।
        • इससे वर्षा जल का भूमि में रिसाव कम होने से सतही अपवाह में वृद्धि होने के साथ जल निकासी प्रणालियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं।
        • उदाहरण: दिल्ली में हीटवेव की लंबी अवधि का संबंध अनियोजित शहरीकरण से है।
      • बुनियादी ढाँचे का प्रभावी न होना: बिजली ग्रिड, जल आपूर्ति प्रणाली एवं परिवहन नेटवर्क जैसे मौजूदा बुनियादी ढाँचे का अनियोजित तरीके से विकास हुआ है।
        • इससे ओवरलोडिंग होने से आपदाओं के दौरान चुनौतियों पर नियंत्रण पाना मुश्किल हो जाता है।
        • उदाहरण: विद्युत ग्रिड पर अधिक भार वाले शहरों में चरम मौसमी घटनाओं के दौरान बिजली की कटौती में वृद्धि हो जाती है।
    • सुविधाओं तक सीमित पहुँच एवं परिवहन संबंधी चुनौतियाँ:
      • संकरी गलियाँ एवं भीड़भाड़: अनियोजित विकास से चौड़ी सड़कों एवं खुली जगहों की अवहेलना की जाती है।
        • इससे संकरी गलियों के साथ भीड़भाड़ की समस्या होने से परिवहन में बाधा आती है।
        • उदाहरण: जापान में वर्ष 2011 की सुनामी के दौरान सीमित निकासी मार्गों एवं भीड़भाड़ वाले तटीय क्षेत्रों में काफी समस्याएँ आईं।
      • अनौपचारिक बस्तियाँ एवं झुग्गियाँ: भीड़भाड़ के कारण अक्सर बाढ़ के मैदानों या पहाड़ी क्षेत्रों में अनौपचारिक बस्तियों का विकास होता है।
        • इन बस्तियों में बुनियादी ढाँचे का अभाव होने के साथ आपदा का प्रबंधन करना मुश्किल हो जाता है।
    • सामाजिक एवं आर्थिक क्षति:
      • आजीविका का नुकसान एवं विस्थापन: आपदाओं से उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में गरीब तथा हाशिये पर रहने वाले लोगों को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
        • घरों, व्यवसायों एवं बुनियादी ढाँचे के नुकसान से आर्थिक कठिनाई होने के साथ विस्थापन को बढ़ावा मिल सकता है।
        • उदाहरण: वर्ष 2015 में चेन्नई में आई बाढ़ से तटीय क्षेत्रों में रहने वाले एवं कम आय वाले समुदाय व्यापक स्तर पर प्रभावित हुए।
      • संसाधनों तक सीमित पहुँच: भीड़भाड़ से स्वास्थ्य सेवा एवं स्वच्छता जैसे संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है।
        • इससे आपदा के बाद की स्थिति से निपटने में समस्या आने के साथ बीमारी के प्रसार के जोखिम को बढ़ावा मिलता है।
        • उदाहरण: कोविड-19 महामारी के दौरान घनी आबादी वाले क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों के प्रबंधन में समस्याएँ आईं।

    शहरी अनुकूलन बढ़ाने की रणनीतियाँ:

    • उचित शहरी नियोजन: भू-उपयोग नियोजन में आपदा जोखिम का आकलन शामिल होना चाहिये।
      • स्थानीय खतरों के अनुरूप बिल्डिंग कोड विकसित और लागू करने के साथ उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में विकास को प्रतिबंधित करना।
      • उदाहरण: टोक्यो के प्रभावी बिल्डिंग कोड से भूकंप का प्रतिरोध सुनिश्चित होता है।
    • बुनियादी ढाँचे को उन्नत बनाना: आपदाओं का प्रबंधन करने के क्रम में मौजूदा इमारतों तथा बुनियादी ढाँचे का पुनरुद्वार करना चाहिये।
      • शहरी बाढ़ को रोकने के लिये जल निकासी प्रणालियों में सुधार करने के साथ बहुउद्देश्यीय अनुकूलित बुनियादी ढाँचा विकसित करना चाहिये।
      • उदाहरण: रॉटरडैम के जल संग्रहण क्षेत्र, जो सार्वजनिक स्थान तथा बाढ़ नियंत्रण के रूप में कार्य करते हैं।
    • हरित बुनियादी ढाँचा और प्रकृति-आधारित समाधान: ऊष्मा द्वीप प्रभाव को कम करने तथा बाढ़ के जल को अवशोषित करने के लिये शहरी हरित स्थानों के संरक्षण के साथ इनको विस्तारित करना चाहिये।
      • बाढ़ से सुरक्षा के क्रम में हरित आवरणों के साथ शहरी आर्द्रभूमि एवं मैंग्रोव क्षेत्रों का विकास करना चाहिये।
      • सिंगापुर का ABC (सक्रिय, सुंदर, स्वच्छ) जल कार्यक्रम इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण है।
    • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली तथा आपातकालीन प्रतिक्रिया: विभिन्न खतरों के लिये एकीकृत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करने एवं समुदाय-आधारित आपदा प्रतिक्रिया दल स्थापित करने के साथ निर्दिष्ट सुरक्षित आश्रय बनाए जाने चाहिये।
    • स्मार्ट सिटी प्रौद्योगिकियाँ: बुनियादी ढाँचे एवं पर्यावरणीय स्थितियों की वास्तविक समय पर निगरानी के लिये IoT सेंसर का उपयोग करना चाहिये।
      • आपदा अलर्ट एवं सूचना प्रसार के क्रम में AI-संचालित प्रणाली लागू करने के साथ मोबाइल एप विकसित करने चाहिये।
      • उदाहरण: रियो डी जेनेरियो में प्रभावी आपदा प्रबंधन के लिये कई एजेंसियों से डेटा एकीकृत किया जाता है।
    • समावेशी अनुकूलन रणनीतियाँ: आपदा नियोजन में हाशिये पर पड़े समुदायों की कमज़ोरियों का समाधान करना चाहिये।
      • सभी समूहों के लिये आपदा सूचना तथा सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करने के साथ समुदाय-आधारित अनुकूलन एवं सामंजस्य को बढ़ावा देना चाहिये।
      • सूरत की समावेशी जलवायु अनुकूलन रणनीति (जो झुग्गी समुदायों पर केंद्रित है) इसका एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।

    निष्कर्ष:

    आपदा की तैयारियों के मामले में अनियोजित विकास तथा भीड़भाड़ काफी विनाशकारी हैं। धारणीय शहरी नियोजन को प्राथमिकता देकर, लचीले बुनियादी ढाँचे में निवेश करके तथा समुदायों को सशक्त बनाकर हम इन जोखिमों को कम कर सकते हैं और भविष्य के लिये सुरक्षित शहरों का निर्माण कर सकते हैं। इस क्रम में हम SDG 11 (धारणीय शहर एवं समुदाय) को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

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