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शासन व्यवस्था

आदर्श किरायेदारी अधिनियम

  • 06 Aug 2022
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मॉडल टेनेंसी एक्ट।

मेन्स के लिये:

मॉडल टेनेंसी अधिनियम और उसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) के अनुसार, आदर्श किराएदार अधिनियम (मॉडल टेनेंसी एक्ट) को अभी तक केवल चार राज्यों, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और असम द्वारा ही संशोधित किया गया है।

मॉडल टेनेंसी अधिनियम की आवश्यकता:

  • मौजूदा किराया नियंत्रण कानून किराये के आवास के विकास में बाधा डाल रहा है और यह मकान-मालिक को अपने खाली मकानों पर फिर से कब्ज़ा किये जाने के डर से उन्हें किराये पर देने से हतोत्साहित करता है।
  • खाली घर को किराये पर देने के संभावित उपायों में किरायेदारी की मौजूदा प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना तथा संपत्ति के मालिक एवं किरायेदार दोनों के हितों को विवेकपूर्ण तरीके से संतुलित करना है।
    • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में 1 करोड़ से अधिक घर खाली पड़े हैं।
  • इससे पहले सभी भारतीयों में से लगभग एक-तिहाई शहरी क्षेत्रों में रह रहे थे, जिनका अनुपात 2001 में 27.82 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2011 में 31.16 प्रतिशत हो गया था। वर्ष 2050 तक भारत के आधे से ज़्यादा लोग मुख्य रूप से प्रवास के कारण शहरों या कस्बों में रह रहे होंगे।

मॉडल टेनेंसी एक्ट:

  • परिचय:
    • मॉडल टेनेंसी एक्ट, 2021 का उद्देश्य परिसर के किराये को विनियमित करने और ज़मींदारों तथा किरायेदारों के हितों की रक्षा करने के लिये एवं विवादों तथा उससे जुड़े मामलों या संबंधित मामलों के समाधान हेतु त्वरित न्यायनिर्णयन तंत्र प्रदान करने के लिये किराया प्राधिकरण की स्थापना करना है।
    • इसका उद्देश्य देश में एक जीवंत, टिकाऊ और समावेशी रेंटल हाउसिंग मार्केट बनाना है।
    • यह सभी आय समूहों के लिये पर्याप्त किराये के आवासों के निर्माण को सक्षम करेगा जिससे बेघरों की समस्या का समाधान होगा।
    • यह धीरे-धीरे औपचारिक बाज़ार की ओर स्थानांतरित होकर किराये के आवास के संस्थागतकरण को सक्षम करेगा।
  • प्रमुख प्रावधान:
    • लिखित समझौता अनिवार्य:
      • इसके लिये संपत्ति के मालिक और किरायेदार के बीच लिखित समझौता होना अनिवार्य है।
    • स्वतंत्र प्राधिकरण और रेंट कोर्ट की स्थापना:
      • यह अधिनियम किरायेदारी समझौतों के पंजीकरण के लिये हर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में एक स्वतंत्र प्राधिकरण स्थापित करता है तथा यहाँ तक कि किरायेदारी संबंधी विवादों को सुलझाने हेतु एक अलग अदालत भी स्थापित करता है।
    • सिक्योरिटी डिपॉज़िट के लिये अधिकतम सीमा:
      • इस अधिनियम में किरायेदार की एडवांस सिक्योरिटी डिपॉज़िट (Advance Security Deposit) को आवासीय उद्देश्यों के लिये अधिकतम दो महीने के किराये और गैर-आवासीय उद्देश्यों हेतु अधिकतम छह महीने तक सीमित किया गया है।
    • मकान मालिक और किरायेदार के अधिकारों तथा दायित्वों का वर्णन करता है:
      • मकान मालिक संरचनात्मक मरम्मत (किरायेदार की वजह से हुई क्षति को नहीं) जैसे- दीवारों की सफेदी, दरवाज़ों और खिड़कियों की पेंटिंग आदि जैसी गतिविधियों के लिये ज़िम्मेदार होगा।
      • किरायेदार नाली की सफाई, स्विच और सॉकेट की मरम्मत, खिड़कियों में काँच के पैनल को बदलने, दरवाज़ों एवं बगीचों तथा खुले स्थानों के रखरखाव आदि के लिये ज़िम्मेदार होगा।
    • मकान मालिक द्वारा 24 घंटे पूर्व सूचना:
      • मकान मालिक को मरम्मत या प्रतिस्थापन करने के लिये किराये के परिसर में प्रवेश करने से पहले 24 घंटे पूर्व सूचना देनी होगी।
    • परिसर खाली करने के लिये तंत्र:
      • यदि किसी मकान मालिक ने रेंट एग्रीमेंट में बताई गई सभी शर्तों को पूरा किया है जैसे- नोटिस देना आदि और किरायेदार किराये की अवधि या समाप्ति पर परिसर को खाली करने में विफल रहता है, तो मकान मालिक मासिक किराये को दोगुना करने का हकदार है।
  • महत्त्व:
    • इस अधिनियम के अंतर्गत स्थापित प्राधिकरण विवादों और अन्य संबंधित मामलों को सुलझाने हेतु एक त्वरित तंत्र प्रदान करेगा।
    • यह अधिनियम पूरे देश में किराये के आवास के संबंध में कानूनी ढाँचे का कायापलट करने में मदद करेगा।
    • इससे आवास की भारी कमी को दूर करने के लिये एक व्यवसाय मॉडल के रूप में किराये के आवास में निजी भागीदारी को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
  • चुनौतियाँ:
    • यह अधिनियम राज्यों के लिये बाध्यकारी नहीं है क्योंकि भूमि और शहरी विकास राज्य के विषय हैं।

स्रोत: द हिंदू

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