संरक्षण बनाम हरियाली | 22 Jan 2025

यह एडिटोरियल 18/01/2025 को इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल वीकली में प्रकाशित “Conservation and Greening” पर आधारित है। इस लेख में भारत के वन विकास के विरोधाभास को सामने लाया गया है, जहाँ 16,630 वर्ग किलोमीटर की निवल वृद्धि पूर्वोत्तर, उच्च-तुंगता वाले क्षेत्रों और मैंग्रोव जैसे महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों में हुए नुकसान पर परदा डालती है। यह गुणवत्ता से अधिक मात्रा पर ध्यान केंद्रित करने पर भी प्रकाश डालता है, जिसे वन संरक्षण नियम- 2022 द्वारा और भी बढ़ा दिया गया है, जो एक गंभीर संरक्षण चुनौती पेश करता है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023, पश्चिमी घाट, वन संरक्षण नियम 2022, पेरिस समझौता, तटीय मैंग्रोव, प्रधानमंत्री वन धन योजना, सतत् विकास लक्ष्य, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, 1996 गोदावर्मन निर्णय, बैगा जनजाति, पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (PESA), 1996, हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन, भौगोलिक सूचना प्रणाली, पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) कार्यढाँचाा 

मेन्स के लिये:

संरक्षण और हरियाली के बीच अंतर, भारत के वन संरक्षण प्रयासों से जुड़े प्रमुख मुद्दे। 

पिछले दशक में, भारत ने वन क्षेत्र में 16,630 वर्ग किलोमीटर की निवल वृद्धि दर्ज की, लेकिन यह पूर्वोत्तर, उच्च तुंगता वाले क्षेत्रों और मैंग्रोव जैसे पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में हुए गंभीर नुकसान पर पर्दा डालता है। यद्यपि कार्बन स्टॉक में 81.5 मिलियन टन की वृद्धि हुई है, फिर भी वनों की गुणवत्ता, विशेष रूप से बहुत घने वनों में गिरावट जारी है। वन संरक्षण नियम- 2022 जनजातीय अधिकारों और वास्तविक संरक्षण पर वाणिज्यिक वानिकी को प्राथमिकता देकर चिंताओं को बढ़ाता है। यह भारत के वनों में मात्रात्मक विस्तार और गुणात्मक गिरावट के बीच एक चिंतनीय द्वंद्व को उजागर करता है। हरियाली प्रयासों को वास्तविक संरक्षण के साथ संतुलित करना एक प्रमुख नीतिगत चुनौती बनी हुई है।

संरक्षण और हरियाली के बीच क्या अंतर है? 

पहलू

संरक्षण

हरित

परिभाषा

संरक्षण से तात्पर्य प्राकृतिक वनों, पारिस्थितिकी तंत्रों और जैवविविधता की सुरक्षा, पुनर्स्थापन और सतत् प्रबंधन से है।

हरियाली से तात्पर्य हरित आवरण में वृद्धि से है, जो प्रायः वृक्षारोपण या वनरोपण कार्यक्रमों के माध्यम से होता है, जिसमें एकल-फसल वृक्षारोपण भी शामिल हो सकता है।

केंद्र

पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन, जैवविविधता और प्राकृतिक वन अखंडता को बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

कभी-कभी पारिस्थितिक प्रभावों पर विचार किये बिना, वृक्ष या वनस्पति आवरण के विस्तार पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

जैवविविधता पर प्रभाव

मूल वनों, वन्यजीव आवासों और पारिस्थितिकी तंत्रों को संरक्षित करके जैवविविधता को बढ़ावा दिया जाता है।

प्रायः एकल-फसलीय वृक्षारोपण (जैसे, नीलगिरी या बबूल) के कारण जैवविविधता का क्षरण हो जाता है।

मृदा एवं जल पर प्रभाव

प्राकृतिक वनों को पुनर्स्थापित करके मृदा उर्वरता और जल धारण क्षमता में सुधार सुनिश्चित होता है।

लंबे समय में मृदा और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँच सकता है, विशेष रूप से एकल-फसल या गैर-स्थानीय प्रजातियों के उद्यानों में।

कार्बन पृथक्करण

मृदा में सघन जैवभार और कार्बन भंडार के कारण प्राकृतिक वन अधिक प्रभावी कार्बन सिंक होते हैं।

व्यावसायिक वृक्षारोपण से कार्बन कम अवशोषित होता है और प्रायः प्राकृतिक वनों की पारिस्थितिक भूमिका को दोहराने में असफल रहते हैं।

उदाहरण

पारिस्थितिकी तंत्र और जैवविविधता को संरक्षित करने के लिये पश्चिमी घाट या सुंदरवन में प्राकृतिक वनों की रक्षा सुनिश्चित होती है।

प्रतिपूरक वनरोपण कार्यक्रम के अंतर्गत नीलगिरी वृक्षारोपण सुनिश्चित होता है।

भारत के भविष्य के लिये वन संरक्षण क्यों महत्त्वपूर्ण है? 

  • जलवायु परिवर्तन शमन और कार्बन पृथक्करण: वन ग्रीनहाउस गैसों को अवशोषित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे भारत को पेरिस समझौते और COP26 लक्ष्यों के तहत अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद मिलती है। 
    • ये कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, वायुमंडलीय CO2 के स्तर को कम करते हैं और ग्लोबल वार्मिंग का मुकाबला करते हैं। 
    • भारत वन स्थिति रिपोर्ट- 2023 का अनुमान है कि भारत का कार्बन स्टॉक 7,285.5 मिलियन टन होगा, जिसमें वार्षिक वृद्धि 40.75 मिलियन टन होगी। 
    • इसके अतिरिक्त, भारत ने 2.29 बिलियन टन अतिरिक्त कार्बन सिंक हासिल कर लिया है, जो वर्ष 2030 तक 2.5-3 बिलियन टन के अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर है।
  • जैवविविधता संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ: भारत एक अत्यंत विविधतापूर्ण देश है, यहाँ सभी दर्ज प्रजातियों का 7-8% हिस्सा पाया जाता है, और इस जैवविविधता को संरक्षित करने के लिये वन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। 
    • ये परागण, प्राकृतिक कीट नियंत्रण और आनुवंशिक विविधता का समर्थन करते हैं जो कृषि एवं खाद्य सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • उदाहरण के लिये, पश्चिमी घाट, जो यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल है, में स्थानिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं तथा यह जलवायु-प्रतिरोधी फसलों के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण आनुवंशिक संसाधन प्रदान करता है।
  • आपदा समुत्थानशीलन और जलवायु विनियमन: वन मृदा स्थिरीकरण करके और अवरोधक के रूप में कार्य करके बाढ़, भूस्खलन और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा प्रदान करते हैं। 
    • उदाहरण के लिये, तटीय मैंग्रोव चक्रवातों और सुनामी के प्रभाव को कम करते हैं, जिससे जान एवं संपत्ति की बचत होती है। 
    • इसके अलावा, हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि मैंग्रोव एवं तटीय आर्द्रभूमि प्रतिवर्ष परिपक्व उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में 10 गुना अधिक दर से कार्बन अवशोषित करते हैं।
  • जल सुरक्षा और जलग्रहण प्रबंधन: जलवायवीय चक्र को बनाए रखने, नदियों और जलभृतों में जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने तथा वर्षा पैटर्न को विनियमित करने के लिये वन महत्त्वपूर्ण हैं।
    • ये मृदा अपरदन को रोकते हैं और भूजल पुनर्भरण में मदद करते हैं, जिससे कृषि और पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित होती है। 
    • उदाहरण के लिये, पश्चिमी घाट के घने वन गोदावरी व कृष्णा जैसी नदियों के लिये जल-विभाजक का कार्य करते हैं, जो प्रायद्वीपीय भारत में लाखों लोगों एवं कृषि गतिविधियों को पोषण प्रदान करते हैं।
  • जनजातीय और ग्रामीण समुदायों के लिये सामाजिक-आर्थिक लाभ: वन भारत में 200 मिलियन से अधिक लोगों, विशेषकर जनजातीय और ग्रामीण समुदायों को बाँस, शहद और औषधीय पौधों जैसी लघु वन उपज के माध्यम से आजीविका प्रदान करते हैं।
  • नगरीय ऊष्मा द्वीप और प्रदूषण से निपटना: शहरी वन नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभाव को कम करने, वायु प्रदूषण को कम करने और मनोरंजक स्थान उपलब्ध कराने में सहायता करते हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है। 
    • उदाहरण के लिये, अरावली पर्वतमाला थार मरुस्थल से दिल्ली-NCR तक रेत के प्रवाह को रोकने का काम करती है।
  • पारिस्थितिक पर्यटन के माध्यम से सतत् आर्थिक विकास: वन पारिस्थितिक पर्यटन को बढ़ावा देकर और जैवविविधता व संस्कृति को संरक्षित करते हुए हरित रोज़गार सृजित करके सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हैं। 
    • अन्नामलाई, बांदीपुर और सिमिलिपाल सहित भारत भर के 10 व्याघ्र अभयारण्यों के अध्ययन से पता चला है कि वे सामूहिक रूप से 5.96 लाख करोड़ रुपए का वार्षिक लाभ प्रदान करते हैं।
  • वैश्विक पर्यावरणीय लक्ष्यों को प्राप्त करना: एक जिम्मेदार वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में, भारत के वन संरक्षण प्रयास सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) जैसे SDG 13 (जलवायु कार्रवाई), SDG 15 (थलीय जीवों की सुरक्षा), और SDG 12 (उत्तरदायित्वपूर्ण खपत और उत्पादन) में योगदान करते हैं।
    • वैश्विक वन संसाधन आकलन- 2020 के अनुसार, भारत 0.38% के निवल सकारात्मक परिवर्तन के साथ वन क्षेत्र लाभ में विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है। 
    • यह राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के अंतर्गत अपने भौगोलिक क्षेत्र के 33% भाग को वन के रूप में संरक्षित करने की भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।

भारत के वन संरक्षण प्रयासों से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • विकास परियोजनाओं के कारण निर्वनीकरण: भारत के महत्त्वाकांक्षी विकास एजेंडे के कारण बुनियादी अवसंरचना, खनन और औद्योगिक परियोजनाओं के लिये बड़े पैमाने पर वनों की कटाई हुई है। 
    • राजमार्ग, रेलवे और विद्युत पारेषण लाइनों जैसी परियोजनाएँ प्रायः घने वन क्षेत्रों से होकर गुजरती हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र खंडित हो जाता है तथा जैवविविधता खतरे में पड़ जाती है। 
    • ‘इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ के लिये किये गए प्रयास ने पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को भी कमज़ोर कर दिया है।
    • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के अंतर्गत पिछले 15 वर्षों में भारत में 3 लाख हेक्टेयर से अधिक वन भूमि को गैर-वानिकी उपयोग के लिये हस्तांतरित किया गया है।
    • वन (संरक्षण) नियम, 2022 अब ग्राम सभा की सहमति के बिना वन मंजूरी की अनुमति देता है, जिससे जनजातीय समुदायों के विस्थापन तथा वन विनाश की स्थिति और बदतर हो रही है।
  • अति सघन वनों का क्षरण और गुणवत्ता की हानि: जबकि वन क्षेत्र मात्रात्मक रूप से बढ़ रहा है, वनों की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। 
    • कार्बन अवशोषण और जैवविविधता के लिये महत्त्वपूर्ण अत्यधिक घने वनों का स्थान वृक्षारोपण या मध्यम घने एवं खुले वनों द्वारा लिया जा रहा है। 
    • वनरोपण के माध्यम से यह ‘हरितीकरण’ प्राकृतिक वनों के क्षरण की गंभीरता को धूमिल कर देती है।
    • वन स्थिति रिपोर्ट- 2023 के अनुसार, घने वनों के लिये प्रसिद्ध पश्चिमी घाटों में पिछले एक दशक में 58.22 वर्ग किमी वन क्षेत्र नष्ट हो गया है।
    • इससे पता चलता है कि वन की गुणवत्ता पर विचार किये बिना, वन क्षेत्र में निवल वृद्धि भ्रामक है।
  • मैंग्रोव क्षरण और तटीय भेद्यता: मैंग्रोव, जो चक्रवातों और समुद्र-स्तर में वृद्धि के विरुद्ध प्राकृतिक अवरोधक के रूप में कार्य करते हैं, जलीय कृषि, कृषि एवं औद्योगिक विस्तार के कारण खतरे में हैं। 
    • मैंग्रोव की क्षति से तटीय समुदायों की जलवायु-जनित आपदाओं के प्रति सुभेद्यता बढ़ जाती है। 
    • उनके विनाश का सीमांत मछुआरा समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • ISFR- 2023 ने बताया कि वर्ष 2021 के आकलन की तुलना में देश के मैंग्रोव कवरेज में 7.43 वर्ग किमी की निवल कमी आई है।
      • वर्ष 2000 से 2016 के दौरान जलीय कृषि और कृषि के कारण 2,193.92 वर्ग किलोमीटर मैंग्रोव नष्ट हो गये।
  • वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 का अपर्याप्त कार्यान्वयन: अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 का कार्यान्वयन धीमि गति से और असंगत तरीके से हो रहा है। 
    • जनजातीय समुदायों और वनवासियों को प्रायः वन्यजीव अभयारण्यों एवं बाघ रिज़र्वों जैसी संरक्षण परियोजनाओं के नाम पर बेदखली का सामना करना पड़ता है।
    • अधोगामी दृष्टिकोण वन प्रशासन में सामुदायिक भागीदारी को कमज़ोर करता है। जनजातीय कार्य मंत्रालय के अनुसार, FRA के केवल 50% दावों को मंज़ूरी दी गई है, और वर्ष 2022 तक भूमि पर सभी दावों में से 38% से अधिक को अस्वीकार कर दिया गया है।
    • मध्य प्रदेश के कान्हा टाइगर रिज़र्व में जनजातीय समूहों का जबरन विस्थापन वन-आश्रित समुदायों के हाशिये पर होने को दर्शाता है। 
  • पर्यावरण विनियमों का कमज़ोर होना: वन (संरक्षण) नियम, 2022 जैसे हालिया नीतिगत संशोधन संरक्षण की तुलना में वनों के वाणिज्यिक एवं औद्योगिक उपयोग को प्राथमिकता देते हैं।
    • ये नीतियाँ वन-आश्रित समुदायों के लिये सुरक्षा उपायों को कमज़ोर करती हैं।
    • वन संरक्षण संशोधन अधिनियम- 2023 में कुछ संशोधन और छूट शामिल की गई हैं तथा कुछ प्रकार की भूमि को अधिनियम के दायरे से हटा दिया गया है।
    • हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को वन भूमि का अभिनिर्धारण और संरक्षण के लिये 1996 गोदावर्मन निर्णय की 'वन' की परिभाषा का पालन करने का निर्देश दिया, तथा वन (संरक्षण) अधिनियम में वर्ष 2023 के संशोधन पर निर्भरता के प्रति आगाह किया।
  • वनाग्नि और जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन और मानव-प्रेरित गतिविधियों जैसे कर्तन एवं दहन कृषि के कारण वनाग्नि की घटना आवृत्ति और तीव्रता बढती जा रही है।
    • वनाग्नि केवल जैवविविधता को नष्ट करती है बल्कि संग्रहित कार्बन को भी मुक्त करती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है। बड़े पैमाने पर वनाग्नि से निपटने के लिये भारत की तैयारी अपर्याप्त है।
    • भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में 54.40% वन यदा-कदा आग की चपेट में आते हैं, 7.49% वन मध्यम स्तर पर आग की चपेट में आते हैं तथा 2.40% वन उच्च स्तर पर आग की चपेट में आते हैं।
    • वन स्थिति रिपोर्ट- 2023 के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में वनाग्नि की घटना में 1,339% और जम्मू और कश्मीर में 2,822% की वृद्धि हुई है, जो बेहतर वनाग्नि प्रबंधन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • प्राकृतिक वनों का व्यावसायिक वृक्षारोपण में रूपांतरण: वनरोपण अभियान में प्रायः प्राकृतिक वनों के पुनर्स्थापन की अपेक्षा व्यावसायिक वृक्षारोपण को प्राथमिकता दी जाती है। 
    • यूकेलिप्टस और बबूल जैसी प्रजातियों के एकल-फसल वृक्षारोपण से मृदा की गुणवत्ता का क्षरण होता है, जैवविविधता घटती है तथा मूल वनों की तुलना में कार्बन अवशोषण में ये कम प्रभावी होते हैं। 
  • अतिक्रमण और अवैध गतिविधियाँ: कृषि, रियल एस्टेट और अवैध निर्वनीकरण द्वारा अतिक्रमण एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। 
    • अवैध शिकार एवं अवैध खनन से वन पारिस्थितिकी तंत्र का और भी क्षरण हो जाता है तथा जैवविविधता बाधित होती है। अतिक्रमण से वन अधिकारियों और स्थानीय समुदायों के बीच संघर्ष भी होता है।
    • उदाहरण के लिये, पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील दिल्ली कटक क्षेत्र के 308 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र पर अतिक्रमण किया गया है तथा अन्य 183 हेक्टेयर क्षेत्र को “गैर-वानिकी उद्देश्यों” के लिये परिवर्तित कर दिया गया है।
      • पूर्वोत्तर में अवैध काष्ठ-तस्करी अनियंत्रित वन दोहन का ज्वलंत उदाहरण है।
  • संरक्षण और आजीविका के बीच संघर्ष: संरक्षण बनाम आजीविका की दुविधा प्रायः पर्यावरणीय लक्ष्यों को स्थानीय समुदायों की आवश्यकताओं के विरुद्ध खड़ा कर देती है।
    • संरक्षित क्षेत्र, जैसे बाघ अभयारण्य, वन-आश्रित समुदायों को विस्थापित करते हैं, जबकि पारिस्थितिक पर्यटन को बढ़ावा देने में प्रायः स्थानीय भागीदारी को बाहर रखा जाता है। 
      • इससे सामाजिक अशांति उत्पन्न होती है और संरक्षण प्रयासों में असहयोग होता है।
    • अचानकमार टाइगर रिज़र्व (छत्तीसगढ़) में बैगा जनजातियों का हालिया विस्थापन यह दर्शाता है कि किस प्रकार स्थायी योजना और परामर्श के बिना संरक्षण प्रयास स्वदेशी समुदायों को हाशिये पर धकेल सकते हैं।

भारत अपने संरक्षण प्रयासों को दृढ़ करने के लिये क्या उपाय कर सकता है? 

  • सामुदायिक भागीदारी के साथ वन प्रशासन को सुदृढ़ बनाना: भागीदारी शासन के माध्यम से वन संरक्षण में स्थानीय समुदायों, विशेष रूप से जनजातीय और वनवासी समूहों को सशक्त बनाने से परिणामों में काफी सुधार हो सकता है। 
    • वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन के साथ-साथ पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (PESA), 1996 के तहत निर्णय लेने में ग्राम सभाओं को एकीकृत करने से स्थायी संरक्षण सुनिश्चित करते हुए सामुदायिक अधिकारों की रक्षा की जा सकती है। 
      • संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) जैसे सह-प्रबंधन मॉडल उत्तरदायित्व को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • हरियाली की अपेक्षा पुनरुद्धार पर ध्यान: भारत को वनरोपण योजनाओं के तहत एकल-फसलीय वृक्षारोपण के विस्तार के बजाय प्राकृतिक वनों के पुनरुद्धार को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • मूल प्रजातियों के साथ क्षीण पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्भरण करने से जैवविविधता बढ़ेगी, मृदा की गुणवत्ता में सुधार होगा तथा वनों की पारिस्थितिकी समुत्थानशक्ति बढ़ेगी।
    • राष्ट्रीय हरित भारत मिशन (GIM) जैसी वनरोपण योजनाओं को संशोधित किया जा सकता है ताकि पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्भरण को प्राथमिकता दी जा सके।
  • निगरानी और संरक्षण के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: भारत वन क्षेत्र की निगरानी, ​​अवैध गतिविधियों को रोकने और निर्वनीकरण की प्रवृत्ति का आकलन करने के लिये उपग्रह इमेजरी, भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और ड्रोन जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर सकता है।
    • वनों के लिये रियल टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम वन कानूनों के प्रवर्तन में सुधार ला सकती हैं तथा महत्त्वपूर्ण जैवविविधता वाले स्थानों की रक्षा कर सकती हैं। 
      • इन प्रौद्योगिकियों को नागरिक सहभागिता ऐप्स के साथ जोड़ने से जवाबदेही भी बढ़ेगी।
    • भारतीय वन सर्वेक्षण का ई-ग्रीन वॉच पोर्टल एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसे और अधिक कवरेज तथा वन अग्नि चेतावनियों के साथ एकीकरण की आवश्यकता है। 
  • भूदृश्य-आधारित संरक्षण मॉडल अपनाएँ: भूदृश्य दृष्टिकोण वन संरक्षण को कृषि, जल प्रबंधन और शहरी नियोजन के साथ एकीकृत करता है।
    • भूदृश्य-स्तरीय रणनीतियों के माध्यम से पश्चिमी घाट, सुंदरवन और हिमालयी जैवविविधता वाले हॉटस्पॉट जैसे समीपवर्ती पारिस्थितिकी तंत्रों की सुरक्षा करके संरक्षण एवं आजीविका सुरक्षा दोनों सुनिश्चित की जा सकती है। 
    • पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) कार्यढाँचे को जलग्रहण विकास कार्यक्रमों के साथ जोड़ने से संरक्षण अधिक व्यापक हो जाएगा।
      • भूदृश्य दृष्टिकोण से इस पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र में जैवविविधता का ह्रास और सतत् विकास दोनों के बीच एक साथ सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है।
  • मैंग्रोव और तटीय वन संरक्षण को सुदृढ़ करना: मैंग्रोव तटीय क्षेत्रों को अपरदन और चक्रवातों से बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, फिर भी वे गंभीर खतरे में हैं। 
    • मैंग्रोव फॉर द फ्यूचर (MFF) जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये तथा उन्हें ब्लू इकॉनमी जैसी नीतियों और सागरमाला परियोजना जैसी राष्ट्रीय पहलों के साथ जोड़ा जाना चाहिये, ताकि तटीय संरक्षण को प्राथमिकता दी जा सके। 
    • इसके अतिरिक्त, मैंग्रोव पुनर्भरण में स्थानीय मछुआरा समुदायों को सशक्त बनाने से परिणामों में सुधार हो सकता है।
    • तटीय अवसंरचना विकास में मैंग्रोव पुनरुद्धार को एकीकृत करने से दीर्घकालिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है।
  • संरक्षण को जलवायु कार्रवाई के साथ एकीकृत करना: भारत को पेरिस समझौते के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के तहत अपने जलवायु लक्ष्यों के साथ वन संरक्षण प्रयासों को जोड़ना चाहिये।
    • राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (NAP) और हरित भारत मिशन (GIM) जैसे कार्यक्रमों को क्षरित वनों के कार्बन स्टॉक को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • मूल प्रजातियों के साथ वनरोपण प्रयासों को बढ़ाने से जैवविविधता की रक्षा करते हुए कार्बन अवशोषण को और भी बढ़ाया जा सकता है।
  • कृषि वानिकी और सतत् आजीविका को बढ़ावा देना: कृषि वानिकी को ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के साथ एकीकृत करने से स्थानीय समुदायों की आजीविका के लिये वनों पर निर्भरता कम हो सकती है। 
    • टोंग्या प्रणाली जैसे कृषि वानिकी मॉडल कृषि उत्पादकता और संरक्षण लक्ष्य दोनों को सुनिश्चित कर सकते हैं। 
    • कृषि वानिकी उप-मिशन (SMAF) कृषि वानिकी पद्धतियों को बढ़ावा देने में सफल रहा है, लेकिन मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे निर्वनीकरण की आशंका वाले क्षेत्रों में इसके कार्यान्वयन को बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
  • जनजातीय और मूल-निवासी अधिकारों की रक्षा: यह सुनिश्चित करना कि जनजातीय और मूल-निवासी समुदायों के पास वन संसाधनों पर सुरक्षित अधिकार हों, दीर्घकालिक संरक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
    • वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 को अधिक पारदर्शिता और दक्षता के साथ लागू किया जाना चाहिये, और वन (संरक्षण) नियम, 2022 जैसी नीतियों को जनजातीय कल्याण के साथ संरेखित करने के लिये संशोधित किया जाना चाहिये। 
      • वन प्रबंधन योजनाओं में जनजातीय ज्ञान को एकीकृत करने से संरक्षण परिणामों को मज़बूती मिल सकती है।
    • महाराष्ट्र के मेंधा लेखा गाँव जैसे क्षेत्रों में जनजातीय सह-प्रबंधन मॉडल ने दर्शाया है कि समुदायों को सशक्त बनाने से संरक्षण को किस प्रकार बढ़ाया जा सकता है।
  • शहरी नियोजन के साथ संरक्षण को एकीकृत करना: भारत को प्रदूषण को कम करने, नगरीय ऊष्मा द्वीपों को कम करने और शहरी जैवविविधता को बढ़ाने के लिये शहरी वनों को संवर्द्धित करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
    • नगर वन योजना जैसी पहलों को स्मार्ट सिटी मिशन के साथ जोड़ा जाना चाहिये ताकि शहरी विकास में हरित स्थानों को प्राथमिकता दी जा सके। 
    • शहरी संरक्षण प्रयासों को क्षरित भूमि के पुनरुद्धार करने और आर्द्रभूमि की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • समुदाय-आधारित इको-टूरिज़्म को बढ़ावा देना: सामूहिक पर्यटन के बजाय, भारत को समुदाय-आधारित इको-टूरिज़्म को बढ़ावा देना चाहिये, तथा वन क्षेत्रों में पर्यटन का प्रबंधन करने के लिये स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना चाहिये। 
    • इससे वनों पर निर्भर आबादी के लिये आय सृजन सुनिश्चित होता है, तथा पर्यावरणीय क्षति न्यूनतम होती है। 
      • संधारणीय पर्यटन प्रथाओं के लिये दिशानिर्देश विकसित किये जाने चाहिये और उनका सख्ती से पालन किया जाना चाहिये।
    • असम में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान जैसे स्थानों में, समुदाय-प्रबंधित पर्यटन मॉडल ने सफलतापूर्वक अवैध शिकार को कम किया है तथा स्थायी आजीविका उत्पन्न की है। 
  • वन संरक्षण के वित्तपोषण हेतु कार्बन बाज़ारों का उपयोग: भारत को वन संरक्षण परियोजनाओं के वित्तपोषण हेतु वैश्विक एवं घरेलू कार्बन बाज़ारों का लाभ उठाना चाहिये। 
    • वनरोपण और प्राकृतिक वन पुनरुद्धार के माध्यम से कार्बन पृथक्करण का मुद्रीकरण करके, भारत निजी और अंतर्राष्ट्रीय दोनों प्रकार के वित्तपोषण को आकर्षित कर सकता है। 
    • वनों से उत्पन्न कार्बन क्रेडिट को स्वैच्छिक कार्बन बाज़ार (VCM) जैसे बाज़ारों में बेचा जा सकता है।
      • वन कार्बन क्रेडिट कार्यक्रमों का विस्तार करने से जलवायु लक्ष्यों को पूरा करते हुए संरक्षण को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाया जा सकेगा।
  • राष्ट्रीय वनाग्नि शमन रणनीति लागू करना: भारत को एक व्यापक वन अग्नि शमन रणनीति की आवश्यकता है जिसमें प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, स्थानीय अग्निशमन दल और वन अग्नि निरोधक उपाय शामिल हों। 
    • वनाग्नि को रोकने और नियंत्रित करने के लिये नियंत्रित दहन, सामुदायिक भागीदारी और उपग्रहों से प्राप्त रियल टाइम डेटा का लाभ उठाया जाना चाहिये।
    • उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे संवेदनशील क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

यद्यपि भारत ने वन क्षेत्र के विस्तार में प्रगति की है, फिर भी इसे वन स्वास्थ्य और जैवविविधता में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। घने वनों का क्षरण, मैंग्रोव का ह्रास और जनजातीय अधिकारों का उल्लंघन एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता को उजागर करता है। वन प्रशासन और सामुदायिक भागीदारी को सुदृढ़ करना आवश्यक है। पारिस्थितिकी तंत्र और संरक्षण कानूनों की प्रभावी पुनर्स्थापना सतत् विकास को प्राप्त करने की कुंजी है। भारत में वास्तविक वन संरक्षण के लिये प्रकृति और निवासियों दोनों के लाभ हेतु पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों को संरेखित करना आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. “वनीकरण और हरियाली पहल की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रयासों के बावजूद, भारत को वनों के संरक्षण एवं महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी प्रणालियों की सुरक्षा में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।” चर्चा कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)   

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. राष्ट्रीय स्तर पर, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय केंद्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) है? (2021) 

(a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(b) पंचायती राज मंत्रालय
(c) ग्रामीण विकास मंत्रालय
(d) जनजातीय कार्य मंत्रालय

उत्तर: (d) 

 प्रश्न 2.  भारत का एक विशेष राज्य निन्नलिखित विशेषताओं से युक्त है:  (2012) 

  1. यह उसी अक्षांश पर स्थित है, जो उत्तरी राजस्थान से होकर जाता है।
  2. इसका 80% से अधिक क्षेत्र वन आवरणान्तर्गत है।
  3. 12% से अधिक वनाच्छादित क्षेत्र इस राज्य के रक्षित क्षेत्र नेटवर्क के रूप में है।

निम्नलिखित राज्यों में से कौन-सा एक ऊपर दी गई सभी विशेषताओं से युक्त है?

(a) अरुणाचल प्रदेश
(b) असम
(c) हिमाचल प्रदेश
(d) उत्तराखण्ड

उत्तर: (a) 

मेन्स

प्रश्न 1. "भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संविधानीकरण है।" सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (2022)