सामाजिक न्याय
वन अधिकार अधिनियम, 2006 पर जनजातीय मंत्रालय के निर्देश
- 15 Jan 2025
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प्रिलिम्स के लिये:वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006, बाघ अभयारण्य, वनवासी, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA), लघु वनोपज (MFP), वनमित्र मेन्स के लिये:वन अधिकार अधिनियम, चुनौतियाँ और उपाय। |
स्रोत: इंडियन एक्प्रेस
चर्चा में क्यों?
जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने राज्यों को बाघ अभयारण्यों में वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये संस्थागत तंत्र स्थापित करने का निर्देश दिया है।
जनजातीय मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी निर्देश की मुख्य बिंदु क्या हैं?
- वन अधिकार अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करना: मंत्रालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वन में रहने वाले समुदायों को वन अधिकार अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत उनके अधिकारों की कानूनी मान्यता के बिना बेदखल नहीं किया जा सकता ।
- यह कदम विशेष रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में वनवासी समुदायों से अवैध बेदखली की शिकायतों के बाद उठाया गया है।
- पुनर्वास के लिये सहमति: FRA की धारा 4(2) सुरक्षा उपाय प्रदान करती है, जिसके तहत पुनर्वास के लिये ग्राम सभाओं की लिखित रूप में स्वतंत्र, सूचित सहमति प्राप्त करना अनिवार्य है। कानून में उन क्षेत्रों में बसने के अधिकार भी दिये गए हैं, जहाँ निवास करने का प्रस्ताव है।
- राज्यों को बाघ अभ्यारण्यों में स्थित आदिवासी गाँवों तथा उनके वन अधिकार दावों की स्थिति का विवरण देते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी ।
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने बाघ अभयारण्यों में 591 गाँवों को स्थानांतरित करने के लिये समयसीमा भी मांगी है, जिससे संरक्षण और सामुदायिक अधिकारों के बीच संतुलन बनाने को लेकर बहस तेज़ हो गई है।
- शिकायत निवारण तंत्र: राज्यों को वन क्षेत्रों से बेदखली से संबंधित शिकायतों और शिकायतों को निपटाने के लिये शिकायत निवारण प्रणालियाँ स्थापित करने का निर्देश दिया गया है।
वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 क्या है?
- इसके बारे में: इसे वन में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों (ST) और अन्य पारंपरिक वन निवासियों (OTFD) को आधिकारिक रूप से वन अधिकारों को मान्यता प्रदान करने के लिये अधिनियमित किया गया था, जो अपने अधिकारों के औपचारिक दस्तावेज़ीकरण के बिना पीढ़ियों से इन वनों में रह रहे हैं।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक वन प्रबंधन प्रथाओं के परिणामस्वरूप इन लोगों के साथ हुए अतीत के अन्याय की भरपाई करना है, जिसमें भूमि के साथ उनके घनिष्ठ, पारस्परिक रूप से लाभकारी संबंधों की उपेक्षा की गई थी।
- भूमि तक स्थायी पहुँच और वन संसाधनों के उपयोग को सक्षम करके, जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ावा देकर तथा उन्हें अवैध रूप से बेदखली एवं विस्थापन से बचाकर इन समुदायों को सशक्त बनाना।
- प्रावधान:
- स्वामित्व अधिकार: इसके अंतर्गत लघु वन उपज (MFP) पर स्वामित्व का प्रावधान किया गया है और साथ ही वन उपज के संग्रह, उपयोग और निपटान की भी अनुमति प्रदान की गई है।
- MFP से तात्पर्य वनस्पति मूल के सभी गैर-काष्ठ वन उत्पादों से है, जिसमें बाँस, झाड़-झंखाड़, स्टंप और बेंत शामिल हैं।
- सामुदायिक अधिकार: इसमें निस्तार (सामुदायिक वन संसाधन का एक प्रकार) जैसे पारंपरिक उपयोग अधिकार शामिल हैं।
- पर्यावास अधिकार: आदिम जनजातीय समूहों और पूर्व-कृषि समुदायों के उनके परंपरागत पर्यावासों के अधिकारों की रक्षा करता है।
- सामुदायिक वन संसाधन (CFR): यह समुदायों को परंपरागत रूप से संरक्षित वन संसाधनों की रक्षा, पुनर्जनन और स्थायी प्रबंधन करने में सक्षम बनाता है।
- यह अधिनियम सरकार द्वारा प्रबंधित लोक कल्याण परियोजनाओं के लिये वन भूमि के उपयोग की सुविधा प्रदान करता है, जो ग्राम सभा की स्वीकृति के अधीन है।
- स्वामित्व अधिकार: इसके अंतर्गत लघु वन उपज (MFP) पर स्वामित्व का प्रावधान किया गया है और साथ ही वन उपज के संग्रह, उपयोग और निपटान की भी अनुमति प्रदान की गई है।
वन अधिकार अधिनियम, 2006 के कार्यान्वयन में क्या चुनौतियाँ हैं?
- व्यक्तिगत अधिकारों की मान्यता का अभाव: वन अधिकार अधिनियम के तहत व्यक्तिगत अधिकारों की मान्यता का वन विभाग की ओर से प्रतिरोध किया जाता है, जो वन संसाधनों पर इनके व्यक्तिगत नियंत्रण के समक्ष एक चुनौती है।
- असम में, झूम खेती की प्रथाओं से अधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया जटिल हो जाती है जबकि महाराष्ट्र के गढ़चिरौली ज़िले में अधिकारों की मान्यता में प्रगति के बावजूद सामुदायिक वन भूमि का वनेत्तर उद्देश्यों के लिये प्रयोग किये जाने का खतरा बना हुआ है, जिससे अप्रभावी कार्यान्वयन का पता चलता है।
- तकनीकी मुद्दे: वनमित्र जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म के कार्यान्वयन में अनुपयुक्त इंटरनेट कनेक्टिविटी और जनजातीय क्षेत्रों में कम साक्षरता दर के कारण गंभीर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे अधिकार के दावों के सुचारू प्रसंस्करण को सुविधाजनक बनाना कठिन हो जाता है।
- परस्पर विरोधी कानून: FRA का भारतीय वन अधिनियम, 1927 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 जैसे अधिनियमों से मेल नहीं है। इस विसंगति से अस्पष्टता की स्थिति उत्पन्न होती है, क्योंकि अधिकारी FRA के आदेशों के स्थान पर परंपरागत वन प्रशासन को प्राथमिकता देते हैं।
- उच्च अस्वीकृति दर: प्रायः बिना स्पष्ट स्पष्टीकरण अथवा पुनः अपील का अवसर दिये गए बिना कई दावों का उचित दस्तावेज़ों या साक्ष्यों के अभाव के कारण खारिज़ कर दिया जाता हैं। इससे वैध दावेदारों के पास कोई विकल्प नहीं रह जाता।
- ग्राम सभाओं का निम्न प्रदर्शन: ग्रामसभा में प्रायः अपनी ज़िम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से निभाने की क्षमता, संसाधन और प्रशिक्षण का अभाव होता है।
- वनवासी समुदायों के स्थानीय संभ्रांत वर्ग का सामान्यतः निर्णय लेने की प्रक्रियाओं पर अधिक प्रभाव होता है जिससे लाभों पर उनका एकाधिकार हो जाता है और हाशिए पर स्थित समूह अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं।
- निष्कासन और विकास संघर्ष: वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के बावजूद, खनन, बांध और राजमार्ग जैसी बृहद स्तर की विकास परियोजनाओं के परिणामस्वरूप अक्सर वन में निवास करने वाले समुदायों का निष्कासन हो जाता है।
आगे की राह
- प्रतिरोध का समाधान: सामूहिक रूप से अधिकारों का दावा करने, वन विभागों के साथ संवाद को बढ़ावा देने और संधारणीय प्रबंधन और सशक्तीकरण के लिये FRA उद्देश्यों के साथ संरक्षण को संरेखित करने के लिये किसान उत्पादक संगठनों (FPO) जैसे जनजातीय या वनवासी निकायों का गठन किया जाना चाहिये।
- भारतीय वन अधिनियम, 1927 जैसे मौजूदा कानूनों में संशोधन किया जाना चाहिये, ताकि वन अधिकार अधिनियम के साथ संघर्ष कम हो और स्पष्ट, सहकारी शासन सुनिश्चित हो।
- तकनीकी क्षमताओं में सुधार: जनजातीय क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी बढ़ाने के साथ डिजिटल प्लेटफॉर्म से संबंधित प्रशिक्षण प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- व्यापक क्षमता निर्माण के लिये डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देते हुए प्रक्रिया को अधिक उपयोगकर्त्ता-अनुकूल बनाने के क्रम में दस्तावेज़ीकरण प्रक्रियाओं को सरल बनाना चाहिये।
- विकास और सामुदायिक अधिकारों में संतुलन: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि बड़े पैमाने की विकास परियोजनाएँ सामुदायिक अधिकारों तथा वन समुदायों एवं जैवविविधता की रक्षा के लिये धारणीय प्रथाओं को एकीकृत करने पर केंद्रित हों।
- सह-प्रबंधन मॉडल को बढ़ावा देकर संरक्षण एवं सामुदायिक सशक्तीकरण के बीच संघर्ष को दूर करने के लिये रूपरेखा स्थापित करनी चाहिये।
- समावेशी निर्णय-प्रक्रिया: यह सुनिश्चित करना चाहिये कि ग्राम सभाओं में निर्णय-प्रक्रिया समावेशी हो तथा महिलाओं एवं निम्न जातियों जैसे हाशिये पर स्थित समूहों की लाभों तक समान पहुँच हो।
- जागरूकता बढ़ाना एवं क्षमता निर्माण: वन-निवासी समुदायों को वन अधिकार अधिनियम के तहत उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करने के लिये व्यापक जागरूकता अभियान शुरू करना चाहिये।
- प्रभावी निर्णय निर्माण के साथ हाशिये पर स्थित समूहों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिये इनके प्रशिक्षण के साथ ग्राम सभाओं की क्षमता निर्माण पर ध्यान देना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: वन अधिकार अधिनियम (FRA) को लागू करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। सरकार जैवविविधता संरक्षण एवं वनवासी समुदायों के अधिकारों के बीच संतुलन किस प्रकार सुनिश्चित कर सकती है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन सा मंत्रालय नोडल एजेंसी है? (a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |