नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

संसद टीवी संवाद


जैव विविधता और पर्यावरण

संसद टीवी विशेष: वन सरंक्षण

  • 31 May 2024
  • 25 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम (United Nations Forum on Forests- UNFF), वनों के लिये संयुक्त राष्ट्र रणनीतिक योजनावन प्रबंधन, ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम, संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद, पर्यावरणीय स्थिरता, समावेशी विकास, उत्पादकता, "वन सिद्धांत" और 1992 में एजेंडा 21, सतत् विकास के लिये 2030 एजेंडा, ISFR 2021, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना, (National Action Plan on Climate Change- NAPCC), प्रतिपूरक वनरोपण निधि (Compensatory Afforestation Fund- CAMPA), पश्चिमी घाट, आदिवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006

मेन्स के लिये:

भारत में वनों को सरंक्षित करने से जुड़े मुद्दों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने न्यूयॉर्क में आयोजित वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम (United Nations Forum on Forests- UNFF) के 19वें सत्र में भाग लिया और इस सत्र में विश्व स्तर पर वनों को सरंक्षित करने की तत्काल आवश्यकता पर चर्चा की गई।

वनों पर 19वें संयुक्त राष्ट्र फोरम (United Nations Forum on Forests- UNFF) की मुख्य बातें क्या हैं?

  • फोकस क्षेत्र: 
    • वन प्रबंधन में स्थानीय समुदायों को शामिल करने और वनों के लाभों की दृश्यता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • वन कवरेज: 
    • वन जैवविविधता, पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जो वैश्विक भूमि क्षेत्र के 31% हिस्से को कवर करते हैं।
  • भारत की वन रिपोर्ट: 
    • भारत की वन रिपोर्ट में वन एवं वृक्ष आवरण क्षेत्र, मैंग्रोव क्षेत्र और कार्बन स्टॉक में वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है, जो संरक्षण प्रयासों को दर्शाता है तथा वन क्षेत्र में वृद्धि के मामले में विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है।
  • भारत के प्रयास: 
  • UNFF 19 घोषणा: 

World_Desertification

वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम (United Nations Forum on Forests- UNFF) क्या है और इसके प्रमुख लक्ष्य क्या हैं?

  • परिचय:
    • यह संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (United Nations Economic and Social Council- UNESCO) द्वारा वर्ष 2000 में स्थापित एक अंतर-सरकारी नीति मंच है, UNFF में सार्वभौमिक सदस्यता है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश शामिल हैं।
    • यह "सभी प्रकार के वनों के प्रबंधन, संरक्षण और सतत् विकास" को आगे बढ़ाने तथा इस लक्ष्य के प्रति स्थायी राजनीतिक प्रतिबद्धता को बढ़ावा देने के लिये समर्पित है।
  • प्रमुख उपलब्धियाँ:
    • पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन ने वर्ष 1992 में "वन सिद्धांत" और वर्ष 1992 में एजेंडा 21 को अपनाया।
    • वन सिद्धांतों को वर्ष 1995 से वर्ष 2000 तक लागू करने के लिये वनों पर अंतर-सरकारी पैनल (1995) और वनों पर अंतर-सरकारी फोरम (1997) का गठन किया गया।
    • UNFF की स्थापना वर्ष 2000 में यूनेस्को के एक कार्यात्मक आयोग के रूप में की गई थी।
      • UNFF ने वर्ष 2006 में वनों पर चार वैश्विक उद्देश्यों पर सहमति व्यक्त की और इसका उद्देश्य है:
        • सतत् वन प्रबंधन (SFM) के माध्यम से विश्व भर में वन क्षेत्र की हानि को उलटना।
        • वन-आधारित आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों को बढ़ाना।
        • स्थायी रूप से प्रबंधित वनों के क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि करना।
        • SFM के लिये आधिकारिक विकास सहायता में गिरावट को उलटना और इसके कार्यान्वयन के लिये अधिक वित्तीय संसाधन जुटाना।
    • UNFF ने वर्ष 2007 में सभी प्रकार के वनों पर संयुक्त राष्ट्र के गैर-कानूनी रूप से बाध्यकारी उपकरण (वन उपकरण) को अपनाया, जिसका उद्देश्य सतत् वन प्रबंधन के लिये वित्तपोषण पर निर्णय लेना है, जिससे वन वित्तपोषण में 20 वर्ष की गिरावट को पलटने में देशों की सहायता के लिये एक सुविधाजनक प्रक्रिया का निर्माण किया जा सके।
      • वर्ष 2009 के प्रारंभ में लघु द्वीपीय विकासशील राज्यों (SIDS) और कम वन क्षेत्र वाले देशों (LFCC) पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • संयुक्त राष्ट्र वन मंच (UNFF) को वर्ष 2011 में "फारेस्ट फॉर पीपल" विषय के साथ अंतर्राष्ट्रीय वन वर्ष के रूप में नामित किया गया था।

वनों के लिये संयुक्त राष्ट्र रणनीतिक योजना (वर्ष 2017-2030) क्या है?

  • अनुसमर्थन: जनवरी 2017 में वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम के एक विशेष सत्र के दौरान इसका अनुसमर्थन किया गया, यह ऐतिहासिक समझौता वर्ष 2030 तक वैश्विक वनों के लिये एक महत्त्वाकांक्षी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
    • एक उल्लेखनीय उद्देश्य वर्ष 2030 तक वैश्विक वन क्षेत्र को 3% तक बढ़ाना है, जो 120 मिलियन हेक्टेयर की वृद्धि के बराबर है, जो फ्राँस के आकार से दोगुने से भी अधिक है।
  • छह वैश्विक वन लक्ष्य: 
    • लक्ष्य 1: संरक्षण, पुनर्स्थापन, वनरोपण और पुनःवनरोपण सहित सतत् वन प्रबंधन उपायों के माध्यम से विश्व भर में वन आवरण की हानि को रोकना।
    • लक्ष्य 2: वनों से प्राप्त होने वाले आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों को बढ़ाना तथा वन-आश्रित समुदायों की आजीविका में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करना।
    • लक्ष्य 3: विश्व भर में संरक्षित वनों के क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि करना तथा स्थायी रूप से प्रबंधित वन क्षेत्रों को बढ़ावा देना।
    • उद्देश्य: इसका उद्देश्य सतत् वन प्रबंधन को आगे बढ़ाना तथा सतत् विकास के लिये वर्ष 2030 एजेंडा को प्राप्त करने में वनों और वृक्षों की भूमिका को मज़बूत करना है।
    • लक्ष्य 4: सतत् वन प्रबंधन को समर्थन देने तथा वैज्ञानिक एवं तकनीकी सहयोग और साझेदारी को बढ़ाने के लिये सभी स्रोतों से नए व अतिरिक्त वित्तीय संसाधन जुटाना।
    • लक्ष्य 5: सतत् वन प्रबंधन प्रथाओं को लागू करने के लिये अनुकूल शासन ढाँचे को बढ़ावा देना।
    • लक्ष्य 6: शासन के सभी स्तरों पर वन-संबंधी मुद्दों पर सहयोग, समन्वय, सुसंगति और तालमेल को मज़बूत करना।
  • वर्ष 2030 एजेंडा के सिद्धांत: यह लक्ष्य वर्ष 2030 एजेंडा के सिद्धांतों में निहित है, योजना स्वीकार करती है कि पर्याप्त परिवर्तन के लिये संयुक्त राष्ट्र के ढाँचे के भीतर और बाहर दोनों जगह दृढ़, सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता है।

Global_Forest_Goals

भारत में वन संरक्षण एवं प्रबंधन की विभिन्न पहल क्या हैं? 

  • भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) 2021: देहरादून में भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) वन आवरण का द्विवार्षिक मूल्यांकन करता है।
    • नवीनतम ISFR 2021 के अनुसार भारत का वन एवं वृक्ष आवरण 8,09,537 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 24.62% है, जो ISFR 2019 की तुलना में 2261 वर्ग किलोमीटर की सकारात्मक वृद्धि को दर्शाता है।

वन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये पहल:

  • हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन: 
    • हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन फरवरी 2014 में शुरू किया गया था और यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत आठ मिशनों में से एक है।
    • इसका प्राथमिक उद्देश्य प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न संकटों से राष्ट्र के जैविक संसाधनों और उनसे जुड़ी आजीविका की रक्षा करना है।
    • पिछले पाँच वर्षों में वनरोपण प्रयासों को समर्थन देने के लिये सत्रह राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश को 755.28 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।

  • राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (NAP):
    • राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (National Afforestation Programme - NAP) का उद्देश्य निम्नीकृत वनों और आस-पास के क्षेत्रों का पुनरुद्धार करना है, राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम अब ग्रीन इंडिया मिशन (Green India Mission) का हिस्सा है।
    • इसे वर्ष 2000 से निम्नीकृत वन भूमि पर वनीकरण  के लिये क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम:
    • वर्ष 2001 में तैयार इस कार्यक्रम का उद्देश्य मरुस्थलीकरण की बढ़ती समस्या से निपटना और आवश्यक उपाय लागू करना है।
    • इसकी देखरेख पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा की जाती है।
  • नगर वन योजना (NVY): 
    • यह वर्ष 2020 में शुरू किया गया था, इसका लक्ष्य वर्ष 2024-25 तक शहरी और गैर-शहरी क्षेत्रों में 600 नगर वन तथा 400 नगर वाटिका बनाना है।
    • इस पहल का उद्देश्य हरित आवरण को बढ़ाना, जैवविविधता को संरक्षित करना तथा शहरी निवासियों के जीवन गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • प्रतिपूरक वनीकरण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (CAMPA):
    • इसका उपयोग राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा विकास परियोजनाओं के लिये वन भूमि के उपयोग को संतुलित करने के लिये प्रतिपूरक वनीकरण हेतु किया गया। 
    • प्रतिपूरक वनीकरण निधि (Compensatory Afforestation Fund- CAF) का 90% राज्यों को आवंटित किया जाता है, जबकि केंद्र 10% अपने पास रखता है।
  • वन संरक्षण अधिनियम, 1980:
    • इसमें यह प्रावधान किया गया कि वन क्षेत्रों में स्थायी कृषि वानिकी का अभ्यास करने के लिये केंद्रीय अनुमति आवश्यक है। इसके अलावा उल्लंघन या परमिट की कमी को एक अपराध माना गया। 
    • इसने वनों की कटाई को सीमित करने, जैवविविधता के संरक्षण और वन्यजीवों को बचाने का लक्ष्य रखा।
  • राष्ट्रीय वन नीति, 1988:
    • राष्ट्रीय वन नीति, वन प्रबंधन प्रथाओं में जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन उपायों को एकीकृत करने पर केंद्रित है।
    • यह विशेष रूप से वन-निर्भर समुदायों के बीच जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन पर ज़ोर देता है।
  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकार की मान्यता) अधिनियम, 2006:
    • वन-वासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 वन में रहने वाले जनजातीय समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन संसाधनों पर अधिकारों को मान्यता देता है, जिन पर ये समुदाय आजीविका, आवास तथा अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक ज़रूरतों सहित विभिन्न आवश्यकताओं के लिये निर्भर थे।

वन और इसका वर्गीकरण क्या है?

  • परिभाषा:
    • किसी भी केंद्रीय वन अधिनियम, जैसे कि भारतीय वन अधिनियम (1927) या वन संरक्षण अधिनियम (1980) में 'वन' शब्द की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं दी गई है।
      • केंद्र सरकार ने वन की परिभाषा को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने के लिये कोई मानदंड स्थापित नहीं किया है।
    • भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत राज्यों को अपने क्षेत्रों में आरक्षित वनों को नामित करने का अधिकार है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ 1996 के निर्णय में कहा गया है कि वनों की अपनी परिभाषा निर्धारित करना प्रत्येक राज्य की ज़िम्मेदारी है।
  • वन का वर्गीकरण:
    • आरक्षित वन श्रेणी:
      • यह प्रत्यक्ष सरकारी पर्यवेक्षण के अधीन है, आरक्षित वन मवेशियों को चराने के प्रयोजनों हेतु सार्वजनिक प्रवेश पर प्रतिबंध लगाते हैं और इस श्रेणी के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल 4,34,853 वर्ग किलोमीटर है।
    • संरक्षित वन श्रेणी:
      • इसका प्रबंधन सरकार द्वारा किया जाता है और संरक्षित वन स्थानीय समुदायों को वन उपज एकत्र करने तथा बिना किसी महत्त्वपूर्ण क्षति के मवेशियों को चराने की अनुमति देते हैं, इस श्रेणी के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल 2,18,924 वर्ग किलोमीटर है।
    • असुरक्षित वन श्रेणी:
      • इसे अवर्गीकृत वन माना जाता है, जहाँ वृक्षों की कटाई या वेशियों को चराने पर कोई प्रतिबंध नहीं है और इस श्रेणी के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल 1,13,642 वर्ग किलोमीटर है।
    • बंजर भूमि:
      • ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा प्रकाशित बंजर भूमि एटलस 2019 के अनुसार, देश में कुल बंजर भूमि 5,57,665.51 वर्ग किलोमीटर है।
      • बंजर भूमि से तात्पर्य रेगिस्तानी भूमि से नहीं है, बल्कि उस भूमि से है जो कृषि, वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिये उपयोग में नहीं आती है, या जिसे वन भूमि के रूप में नामित किया गया है।

भारत में वन संरक्षण का क्या महत्त्व है?

  • आर्थिक योगदान: 
    • भारतीय वन, इमारती लकड़ी, गैर-इमारती वन उत्पादों और पर्यटन के माध्यम से अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
    • पूर्वोत्तर क्षेत्र में बाँस के जंगल स्थानीय समुदायों के लिये आजीविका का प्रमुख स्रोत हैं, जबकि राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य प्रतिवर्ष लाखों पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण: 
    • भारतीय वन जल विनियमन, मृदा संरक्षण और कार्बन पृथक्करण जैसी महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी सेवाएँ प्रदान करते हैं।
    • उदाहरण के लिये, पश्चिमी घाट के वन दक्षिणी राज्यों में जल चक्र को विनियमित करने और मृदा अपरदन को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • जैवविविधता हॉटस्पॉट: 
    • भारत में जैवविविधता प्रचुर मात्रा में है तथा यहाँ के वनों में अनेक पादप और पशु प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
    • उदाहरण के लिये, बंगाल की खाड़ी में स्थित सुंदरवन के मैंग्रोव वन प्रतिष्ठित रॉयल बंगाल टाइगर का घर है।
  • सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्य:
    • विभिन्न भारतीय समुदायों के लिये वन अत्यधिक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व रखते हैं तथा उनकी आजीविका एवं सांस्कृतिक परंपराओं का अभिन्न अंग हैं।
    • उदाहरण के लिये, मध्य प्रदेश की गोंड जनजातियों का अपने वन क्षेत्रों से गहरा संबंध है।

वन संरक्षण से संबंधित विभिन्न चुनौतियाँ क्या हैं?

  • क्षेत्र की पहचान और उपलब्धता:
    • निम्नीकृत क्षेत्रों के चयन के लिये निश्चित दिशा-निर्देशों का अभाव और विशेष रूप से विविध कृषि-जलवायु क्षेत्रों में बहाली के लिये उपयुक्त क्षेत्रों की पहचान करने में कठिनाई। 
  • हितधारकों का संघर्ष:
    • ग्रामीणों, सामुदायिक नेताओं और सरकारी/गैर-सरकारी संगठनों सहित हितधारकों के बीच हितों का टकराव।
  • वित्तीय बाधाएँ:
    • पुनर्स्थापना गतिविधियों, हितधारक सहभागिता और आजीविका समर्थन के लिये अपर्याप्त वित्तपोषण तथा पुनर्स्थापना परियोजनाओं की उच्च लागत, मापनीयता एवं दीर्घकालिक सफलता में बाधा उत्पन्न करती है।
  • गरीबी और पारिस्थितिकी क्षरण:
    • गरीबी और वन क्षरण के मध्य अंतर्संबंध लगभग 275 मिलियन लोगों को प्रभावित करता है, जिसमें भारत की 21.9% आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है तथा जीविका के लिये वनों पर निर्भर है।
  • जागरूकता और समझ:
    • वन संरक्षण और सतत् प्रबंधन प्रवृतियों के महत्त्व के संबंध में जागरूकता की कमी तथा वनों के पारिस्थितिकी महत्त्व एवं आजीविका पर उनके प्रभाव की अपर्याप्त समझ।

आगे की राह

  • वन प्रबंधन में स्थानीय समुदायों को शामिल करना:
    • समुदाय द्वारा प्रबंधित वनों का एक नेटवर्क स्थापित करना स्थानीय समुदायों को उनके आस-पास के वनों की सुरक्षा और देखरेख की ज़िम्मेदारी सौंपकर उन्हें सशक्त बनाता है।
    • यह दृष्टिकोण समुदाय के सदस्यों के बीच स्वामित्त्व की भावना को बढ़ावा देता है और वन संरक्षण प्रयासों में उनकी सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
  • संधारणीय वानिकी प्रवृतियों को प्रोत्साहित करना:
    • चयनात्मक कटाई और पुनर्वनीकरण जैसी सतत् वानिकी प्रवृतियों को बढ़ावा देना सुनिश्चित करता है कि वनों का प्रबंधन इस तरह से किया जाता है कि उनकी पारिस्थितिक अखंडता बनी रहे।
    • इन प्रवृतियों को अपनाकर, वनों का उपयोग सतत् रूप से किया जा सकता है जबकि उनकी जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ बनी रहती हैं।
  • संरक्षण के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग:
    • रिमोट सेंसिंग और भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic Information Systems-GIS) जैसी प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने से वन क्षेत्र की निगरानी, ​​वनाग्नि का पता लगाने तथा संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता वाले क्षेत्रों की पहचान करने में सहायता मिलती है।
    • इसके अतिरिक्त अज्ञात वन क्षेत्रों में संभावित संसाधनों का मानचित्रण करने से उनका वैज्ञानिक प्रबंधन और स्थायी संसाधन निष्कर्षण संभव होता है, जिससे वन घनत्व एवं स्वास्थ्य सुनिश्चित होता है।
  • समर्पित वन गलियारे स्थापित करना:
    • समर्पित वन गलियारे बनाने से वन्यजीवों की राज्यों के भीतर और राज्यों के बीच सुरक्षित आवाजाही की सुविधा मिलती है, जिससे उनके आवास बाह्य बाधाओं से सुरक्षित रहते हैं।
    • ये गलियारे जैवविविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र संबद्धतांक (Connectivity) की सुरक्षा करते हुए मनुष्यों व वन्यजीवों के मध्य शांतिपूर्ण सह-अस्तित्त्व को बढ़ावा देते हैं।
  • वन-आधारित उत्पादों का महत्त्व:
    • वन-आधारित उत्पादों के मूल्य को पहचानना समुदायों को साल के बीज, महुआ के फूल या तेंदू के पत्तों जैसे संसाधनों के उचित मूल्यों के बदले में वन संरक्षण हेतु प्रोत्साहित करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय केंद्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) है? (2021)

(a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(b) पंचायती राज मंत्रालय
(c) ग्रामीण विकास मंत्रालय
(d) जनजातीय कार्य मंत्रालय

उत्तर: (d)


प्रश्न. भारत का एक विशेष राज्य निन्नलिखित विशेषताओं से युक्त है: (2012)

  1. यह उसी अक्षांश पर स्थित है, जो उत्तरी राजस्थान से होकर जाता है।
  2. इसका 80% से अधिक क्षेत्र बन आवस्णान्तर्गत है।
  3. 12% से अधिक वनाच्छाित क्षेत्र इस राज्य के रक्षित क्षेत्र नेटवर्क के रूप में है।

निम्नलिखित राज्यों में से कौन-सा एक ऊपर दी गई सभी विशेषताओं से युक्त है?

(a) अरुणाचल प्रदेश
(b) असम
(c) हिमाचल प्रदेश
(d) उत्तराखंड

उत्तर: (a)


मेन्स

प्रश्न. "भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संविधानीकरण है।" सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (2022)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow