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भारत में अवर्गीकृत वन

  • 01 May 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अवर्गीकृत वन, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA) 2023, वन अधिकार अधिनियम, 2006 

मेन्स के लिये:

FCCA (2023) के निहितार्थ, अवर्गीकृत वनों की सुरक्षा में प्रवर्तन तंत्र

स्रोत: द हिंदू   

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने विभिन्न राज्य विशेषज्ञ समिति (State Expert Committee- SEC) की रिपोर्ट अपनी वेबसाइट पर अपलोड की है।

  • यह अंतरिम आदेश एक जनहित याचिका का प्रत्युत्तर था जिसमें वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA), 2023 की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी।
  • दायर की गई याचिका अवर्गीकृत वनों की स्थिति का ज्ञात न होने अथवा उनकी पहचान की पुष्टि से संबंधित प्रश्नों पर आधारित थी, जिनकी पहचान राज्य SEC रिपोर्टों द्वारा की जानी थी।

SEC की रिपोर्ट द्वारा ज्ञात तथ्य:

  • प्रमुख बिंदु:
    • किसी भी राज्य ने अवर्गीकृत वनों की पहचान, स्थिति और स्थान पर सत्यापन योग्य डेटा प्रदान नहीं किया।
      • सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (गोवा, हरियाणा, जम्मू व कश्मीर, लद्दाख, लक्षद्वीप, तमिलनाडु एवं पश्चिम बंगाल) ने SEC का गठन भी नहीं किया
    • 23 में से केवल 17 राज्यों ने उच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप रिपोर्ट प्रस्तुत की।
    • अधिकांश राज्य क्षेत्रीय स्तर पर या भौतिक सर्वेक्षण किये बिना वन और राजस्व विभागों के मौजूदा आंकड़ों पर विश्वास करते हैं तथा अधिकांश में अवर्गीकृत वन भूमि का सीमांकन नहीं किया गया है।
      • इन वनों की भौगोलिक स्थिति और वर्गीकरण पर स्पष्टता का अभाव है।
    • कई राज्यों की रिपोर्टों में भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India- FSI) के आँकड़ों के साथ महत्त्वपूर्ण विसंगतियाँ की गईं।
      • उदाहरण के लिये, गुजरात की राज्य विशेषज्ञ समिति रिपोर्ट में 192.24 वर्ग किमी के अवर्गीकृत वनों का उल्लेख किया, जबकि FSI ने 4,577 वर्ग किमी. की सूचना दी।
      • इसी प्रकार असम, जहाँ SEC रिपोर्ट में अवर्गीकृत वन क्षेत्र की सीमा 5,893.99 वर्ग किमी. बताई गई है, जबकि FSI ने 8,532 वर्ग किमी बताई है।
    • केवल नौ राज्यों ने अवर्गीकृत वनों की सूचना प्रदान की, जबकि अन्य राज्यों ने विभिन्न प्रकार के वन क्षेत्रों पर स्पष्ट डेटा साझा नहीं किया है।
      • कुछ राज्यों ने नष्ट हुये, साफ किये गये तथा अतिक्रमित वनों का विवरण दिया है, परंतु भिन्न-भिन्न रिपोर्टों में यह विवरण भिन्न-भिन्न है।
    • उपलब्ध रिकॉर्ड से डेटा निकालने और वनों की भौगोलिक स्थिति के संबंध में स्पष्टता की कमी है, तथा इनके पास कोई टोपो शीट पहचान मानचित्र (किसी क्षेत्र की प्राकृतिक और मानव निर्मित विशेषताओं को दर्शाने वाला मानचित्र) उपलब्ध नहीं है।
  • परिणाम:
    • SEC रिपोर्ट की शीघ्र एवं अपूर्ण प्रकृति के कारण अवर्गीकृत वनों का बड़े स्तर पर विनाश होने की संभावना है।
      • उदाहरण के लिये, केरल के SEC में मुन्नार में पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र, पल्लीवासल अनारक्षित क्षेत्र सम्मिलित नहीं था, जो 2018 की बाढ़ के कारण नष्ट हो गया था।
      • यह रिपोर्ट, मुन्नार के एक प्रसिद्द हाथी गलियारे, चिन्नाकनाल का उल्लेख करने में भी असफल रही, जो अब अति वाणिज्यिक पर्यटन के कारण समाप्त हो गया है, जिससे मानव-हाथी संघर्ष के कई उदाहरण सामने आए हैं।
    • इन वनों की व्यापक रूप से पहचान करने और उनकी सुरक्षा करने में विफलता 1996 के गोदावर्मन फैसले तथा भारतीय वन नीति के मैदानी इलाकों में 33.3% एवं पहाड़ियों में 66.6% वन क्षेत्र प्राप्त करने के लक्ष्य को कमज़ोर करती है।
      • भारतीय वन सर्वेक्षण की 2021 की रिपोर्ट देश में कुल मिलाकर 21% वन क्षेत्र (जिस पर विशेषज्ञों ने विवाद किया है) और पहाड़ियों में 40% दर्शाती है। सर्वेक्षण की समीक्षा के अंतिम चक्र में लगभग 900 वर्ग किमी. का नुकसान हुआ है।

अवर्गीकृत वन क्या हैं?

  • विधिक संरक्षण:
    • अवर्गीकृत वन, जिन्हें ‘मानित वन’ के रूप में भी जाना जाता है, को टी.एन.गोदावर्मन थिरुमुल्कपाद बनाम भारत संघ एवं अन्य, (1996) ऐतिहासिक मामले के अंतर्गत कानूनी सुरक्षा प्राप्त है। 
  • परिभाषा:
    • इनमें विभिन्न प्रकार की भूमि सम्मिलित है, जिनमें वन, राजस्व, रेलवे, सरकारी संस्थाएँ, सामुदायिक वन या निजी स्वामित्व वाली भूमि शामिल है।
    • इनके विविध स्वामित्व के बावजूद, इन वनों को आधिकारिक तौर पर भारतीय वन अधिनियम के तहत अधिसूचित नहीं किया गया है, हालाँकि, इस क्षेत्र में वन प्रकार की वनस्पति मौजूद है।
  • अभिनिर्धारण प्रक्रिया :
    • राज्य विशेषज्ञ समितियों (SECs) को देश भर में अवर्गीकृत वनों का निर्धारण करने का कार्य सौंपा गया था।
      • इस निर्धारण में वन कार्य योजनाओं तथा राजस्व भूमि रिकॉर्ड जैसे उपलब्ध आँकड़ों की जाँच करना, साथ ही वन जैसी विशेषताओं वाले भूमि क्षेत्र की भौतिक पहचान करना शमिल था।
  • FCAA के निहितार्थ:
    • वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023, जो दिसंबर, 2023 में लागू हुआ, ने वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 (FCA) में महत्त्वपूर्ण बदलाव प्रस्तुत किये।
    • इस संशोधन ने FCA के कवरेज को दो प्रकार की भूमि तक सीमित कर दिया:
      • भारतीय वन अधिनियम, 1927 या अन्य प्रासंगिक कानून के तहत आधिकारिक तौर पर वन के रूप में घोषित या अधिसूचित क्षेत्र।
      • 25 अक्तूबर, 1980 से सरकारी अभिलेखों में वन क्षेत्र के रूप में दर्ज़ की गई भूमि।
    • FCAA, 2023 ने अवर्गीकृत वनों के लिये कानूनी सुरक्षा के नुकसान के बारे में चिंता व्यक्त की, जिससे संभावित रूप से उन्हें गैर-वन उपयोग के लिये परिवर्तित किया गया।
    • FCAA के तहत, अवर्गीकृत वनों को किसी भी परिवर्तन के लिये केंद्र सरकार की मंज़ूरी की आवश्यकता होगी, भले ही आधिकारिक तौर पर अधिसूचित न किया गया हो।
  • चुनौतियाँ:
    • कानूनी संरक्षण:
      • वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम के अधिनियमन के साथ, अवर्गीकृत वनों को अपनी कानूनी सुरक्षा खोने का जोखिम है, जिससे उन्हें गैर-वन उपयोग के लिये परिवर्तित कर दिया जाएगा।
    • वन में निवास करने वाले समुदायों पर प्रभाव:
      • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के प्रावधानों के अधीन 'मानित वनों' को मान्यता देने में संशोधन अधिनियम की विफलता वन-निवास समुदायों के अधिकारों को कमज़ोर करती है।
      • 'मानित वन' के रूप में वर्गीकृत वन भूमि को ग्राम सभाओं की सहमति के बिना स्थानांतरित किया जा सकता है, जो वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत मान्यता प्राप्त उनके अधिकारों का उल्लंघन है।
    • पर्यावरण और पारिस्थितिक चिंताएँ:
      • कानूनी स्थिति पर आधारित अधिनियमों में उल्लिखित वनों की सीमित परिभाषा इसके पारिस्थितिक महत्त्व को नज़रअंदाज़ करती है, जिससे अवर्गीकृत वन क्षेत्रों में संभावित रूप से कमी और जैवविविधता की हानि होती है।

टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ एवं अन्य मामला, 1996

  • वर्ष 1995 में टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद ने नीलगिरी वन भूमि को अवैध वनों की कटाई से बचाने के लिये भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की।
  • न्यायालय ने वनों के सतत् उपयोग के लिये विस्तृत निर्देश जारी किये और इस बात पर ज़ोर दिया कि स्वामित्व की परवाह किये बिना, वन के रूप में परिभाषित कोई भी क्षेत्र, वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के अधीन होगा। 
    • इस नई व्याख्या ने राज्यों को बिना अनुमति के संरक्षित वनों को गैर-वानिकी उपयोग के लिये आरक्षित करने से रोक दिया। 
  • मुख्य निर्देशों में से एक यह था कि पूरे देश में सभी वन गतिविधियाँ केंद्र सरकार की विशिष्ट मंज़ूरी के बिना भी बंद की जानी चाहिये।

आगे की राह

  • अवर्गीकृत वनों सहित सभी प्रकार के वनों की रक्षा के लिये टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुल्कपाद बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस, 1996 के निर्णय का सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करें।
  • अवर्गीकृत वनों की सटीक पहचान एवं मानचित्रण के लिये भौतिक सर्वेक्षण और ज़मीनी सच्चाई को अनिवार्य करने की आवश्यकता है।
    • क्रॉस सत्यापन और अद्यतन रिकॉर्ड के माध्यम से SEC रिपोर्ट एवं FSI डेटा के बीच विसंगतियों को दूर करना।
  • उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिये दंड लागू अकरने की आवश्यकता है जो SEC का गठन करने या अवर्गीकृत वनों पर सटीक डेटा प्रदान करने में विफल रहते हैं।
  • इन लक्ष्यों की दिशा में प्रगति पर नज़र रखने और आवश्यकतानुसार रणनीतियों को समायोजित करने के लिये एक मज़बूत निगरानी तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में अवर्गीकृत वनों की सुरक्षा और प्रबंधन पर वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 के निहितार्थों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

और पढ़ें: भारत का सर्वोच्च न्यायालय, वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA) 2023, वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023, ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच

  UPSC सिवल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय वन अधिनियम, 1927 में हाल में हुए संशोधन के अनुसार, वन निवासियों को वनक्षेत्रों में उगाने वाले बाँस को काट गिराने का अधिकार है। 
  2. अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के अनुसार, बाँस एक गौण वनोपज है। 
  3. अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 वन निवासियों को गौण वनोपज के स्वामित्व की अनुमति देता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय केंद्रक अभिकरण है? (2021) 

(a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(b) पंचायती राज मंत्रालय
(c) ग्रामीण विकास मंत्रालय
(d) जनजातीय कार्य मंत्रालय

उत्तर: (d)


प्रश्न. भारत का एक विशेष राज्य निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त है: (2012)

  1. यह उसी अक्षांश पर स्थित है जो उत्तरी राजस्थान से होकर जाता है। 
  2. इसका 80% से अधिक क्षेत्र वनाच्छादित है।
  3.  12% से अधिक वन क्षेत्र इस राज्य के संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क के रूप में है। 

निम्नलिखित राज्यों में से कौन-सा एक उपर्युक्त दी गईं विशेषताओं से युक्त है?

(a) अरुणाचल प्रदेश
(b) असम
(c) हिमाचल प्रदेश
(d) उत्तराखंड

उत्तर: (a)


मेन्स: 

प्रश्न. "भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संवैधानिकीकरण है।" सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (2022)

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