गोंड जाति के फर्जी प्रमाणपत्रों के सन्दर्भ में केंद्रीय जनजाति आयोग ने मांगी रिपोर्ट
समाचारों में क्यों ?
केंद्रीय जनजाति आयोग ने गोंड जनजाति के फर्जी प्रमाणपत्र बनाए जाने पर उत्तर प्रदेश सरकार से रिपोर्ट तलब की है। केंद्रीय जनजाति आयोग के सचिव ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को लिखे पत्र में कहा है कि आयोग के संज्ञान में आया है कि उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में नायक ब्राह्मण एवं ब्राह्मण ओझा समुदाय के लोगों ने नौकरी प्राप्त करने के लिये गोंड जाति के फर्जी प्रमाणपत्र बनवा लिये हैं।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से पूछा गया है कि उत्तर प्रदेश में जनजातियों की संख्या एवं प्रतिशत क्या है। साथ ही गोंड जाति की जनसंख्या एवं उसके प्रतिशत के बारे में जानकारी मांगी गयी है।
आयोग की ओर से यह भी पूछा गया है कि नायक ब्राह्मण एवं ब्राह्मण ओझा समुदाय के कितने लोगों को गोंड जाति का प्रमाणपत्र जारी किया गया है।
फर्जी प्रमाणपत्र प्राप्त करने वाले लोगों के खिलाफ प्रशासनिक कार्यवाही के संबंध में भी आयोग ने रिपोर्ट मांगी है। आयोग ने एक गैर-सरकारी संगठन की ओर से दिये गए प्रतिवेदन के बाद इस प्रकरण पर संज्ञान लिया है।
गोंड जनजाति
गोंड मध्य प्रदेश की सबसे महत्त्वपूर्ण जनजाति है, यह जनजाति प्राचीन काल के गोंड राजाओं को अपना वंशज मानती है। यह एक स्वतंत्र जनजाति थी, जिसका अपना राज्य था लेकिन मुग़ल और मराठा शासकों ने इन पर आक्रमण कर इनके क्षेत्र पर अधिकार कर लिया और इन्हें घने जंगलों तथा पहाड़ी क्षेत्रों में शरण लेने को बाध्य होना पड़ा।
गोंडों की लगभग 60 प्रतिशत आबादी मध्य प्रदेश में निवास करती है। शेष आबादी का अधिकांश भाग आन्ध्र प्रदेश एवं उड़ीसा में बसा हुआ है। गोंड प्रकृति प्रदत्त भोजन सामग्री एवं कृषि से प्राप्त वस्तुओं पर अधिक निर्भर रहते हैं। इनका मुख्य भोजन कोदों, ज्वार और कुटकी जैसे मोटे अनाज हैं।
आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में इन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के केवल कुछ ही ज़िलों में रह रहे गोंड जनजाति के लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया है। मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ में इनके द्वारा मांदरी नृत्य किया जाता है।