रॉयल बंगाल टाइगर के जीनोम का अनुक्रमण किया गया
चर्चा में क्यों ?
उच्च गुणवत्ता वाले ड्राफ्ट जीनोम अनुक्रम उत्पन्न करने की योजनाओं के भाग के रूप में हाल ही में पहली बार रॉयल बंगाल टाइगर के जीनोम का अनुक्रमण किया गया। विलुप्त होने के विभिन्न खतरों का सामना करने के बावजूद बाघ की यह उप-प्रजाति सर्वाधिक आनुवंशिक विविधता लिये हुए, सबसे अधिक आबादी वाली उप-प्रजाति है।
प्रमुख बिंदु
- जीनोम अनुक्रमण और जीनोम रूपांतरों (variants) की पहचान संबंधी यह कार्य ‘कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र’ (CSIR-CCMB) के वैज्ञानिकों एवं हैदराबाद स्थित एक निजी कंपनी द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
- इस अध्ययन का विस्तृत विवरण बायोरेक्सिव (BioRxiv) में ऑनलाइन प्रकाशित किया गया।
- इस जीनोम की तुलना अमूर या साइबेरियाई बाघ के जीनोम से की गई। ये दोनों उप-प्रजातियाँ भिन्न-भिन्न वातावरण में पाई जाती हैं। नए अध्ययन में भी इन दोनों के मध्य बड़ी भिन्नताएँ प्रकट हुई हैं।
- जहाँ अमूर टाइगर केवल उप-समशीतोष्ण और बर्फ से ढँके हुए आवासों में रहते हैं, वहीं बंगाल टाइगर हिमालयी तलहटी से लेकर मध्य भारतीय पठार और पश्चिमी घाट तक के विस्तृत उष्णकटिबंधीय आवासों में पाए जाते हैं।
- जीनोम डाटा द्वारा आनुवंशिक अंतरों के बारे में गहन जानकारी प्राप्त हुई है, जिसके अंतर्गत एकल न्यूक्लियोटाइड भिन्नताओं से लेकर बड़े संरचनात्मक अंतर शामिल हैं।
- इसके माध्यम से इस बारे में भी बेहतर जानकारी प्राप्त होती है कि कैसे जीनों के विभिन्न प्रकार पर्यावरण के अनुकूलन और बीमारी की संवेदनशीलता के संदर्भ में भूमिका निभाते हैं।
- अध्ययन में कहा गया है कि “बहुत लंबे समय तक ऐसा माना जाता था कि एकल न्यूक्लियोटाइड वेरिएंट (एसएनवी) व्यक्तिगत जीनोमिक बदलावों में से अधिकांश में योगदान देते हैं। अब यह पहचाना जा चुका है कि जीनोम में संरचनात्मक रूपों और प्रति संख्या प्रकारों (copy number variants) जैसे बहुत अधिक परिवर्तन भी रोग की संवेदनशीलता, प्ररूपी भिन्नताओं और प्रतिरक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।“
- शोधकर्त्ताओं का दावा है कि यह जंगली, लुप्तप्राय प्रजातियों के जीनोम में प्रति संख्या प्रकारों और बड़े संरचनात्मक रूपांतरों की खोज पर पहली रिपोर्ट है।
- बंगाल टाइगर और अमूर बाघ जीनोम अनुक्रमों का व्यापक डाटा, जीनोमिक परिवर्तनों और प्रजातियों की अनुकूल आवास अपनाने की क्षमता के बारे में हमारी समझ को बढ़ाएगा।
- कई सरल अनुक्रम पुनरावृत्तियों (Simple Sequence Repeats-SSR) की पहचान, जनसंख्या आनुवंशिकी और जीन प्रवाह में बेहतर अंतर्दृष्टि प्राप्त करने में मदद करेगी।
- शोधकर्त्ताओं का मानना है कि जीनोम में पहचाने गए बहुत से एसएसआर और एसएनवी का इस्तेमाल बाघ शिकार मामलों में फोरेंसिक साक्ष्य को मजबूत करने के लिए किया जा सकता है।
- इस तरह के अध्ययन संरक्षण प्रबंधन में सुधार करने में भी मदद करेंगे, क्योंकि इससे एक लुप्तप्राय जानवर को स्थानांतरित करने का प्रयास करने वाले अधिकारियों को नए पर्यावरण की अनुकूलता की बेहतर समझ मिल पाएगी।
- जीनोम अनुक्रमण से जीव के विकासवादी संबंध की सटीक समझ प्राप्त करने में मदद मिल पाएगी।