संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आपूर्ति शृंखला फोरम | 10 Jun 2024

प्रिलिम्स के लिये:

व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development- UNCTAD), ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन, कोविड-19, शून्य-उत्सर्जन ईंधन, ब्लॉकचेन-सक्षम ट्रेसिबिलिटी, विश्व बैंक, सक्रिय दवा सामग्री, सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव (SCRI), समृद्धि के लिये इंडो-पैसिफिक आर्थिक ढाँचा (IPEF), G-7 शिखर सम्मेलन, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, मुक्त व्यापार समझौता (FTA), व्यापार और आर्थिक भागीदारी समझौता (TEPA), महत्त्वपूर्ण खनिज, प्रधानमंत्री गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (2022), आत्मनिर्भर भारत पहल, PLI योजनाएँ, उदारीकृत FDI नीति, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग

मेन्स के लिये:

वैश्विक आपूर्ति शृंखला में चुनौतियाँ, वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को मज़बूत करने की पहल

स्रोत: द प्रिंट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development- UNCTAD) और बारबाडोस सरकार द्वारा आयोजित संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आपूर्ति शृंखला फोरम (United Nations Global Supply Chain Forum- UNGSCF) के उद्घाटन में वैश्विक आपूर्ति शृंखला में बढ़ती बाधाओं से निपटने के लिये कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों और पहलों पर प्रकाश डाला गया।

UNGSCF में किन प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डाला गया?

  • इसमें वैश्विक व्यापार में अस्थिरता तथा आपूर्ति शृंखलाओं को अधिक समावेशी, सतत् और लचीला बनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
    • वैश्विक व्यवधानों के कारण जहाज़ों के समुद्री परिचालन समय में वृद्धि देखी जा रही है तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भी बढ़ रहा है।
  • इसमें जलवायु परिवर्तन, भू-राजनीतिक तनाव और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर कोविड-19 महामारी के संयुक्त प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • प्रौद्योगिकी और सतत् प्रवृत्तियों के माध्यम से वैश्विक मूल्य शृंखलाओं को बनाए रखने के लिये बंदरगाहों को महत्त्वपूर्ण बताया गया।
  • फोरम ने वैश्विक शिपिंग में कार्बन उत्सर्जन को निम्न करने की चुनौतियों पर विचार किया, विशेष रूप से उन विकासशील देशों में जिनके पास नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन हैं।
    • "इंटरमॉडल, निम्न-कार्बन, कुशल और समुत्थानशील माल परिवहन और लॉजिस्टिक्स के लिये घोषणापत्र (Manifesto for Intermodal, Low-Carbon, Efficient and Resilient Freight Transport and Logistics)" का शुभारंभ किया गया, जिसमें ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये शून्य-उत्सर्जन ईंधन, अनुकूलित लॉजिस्टिक्स और सतत् मूल्य शृंखलाओं की वकालत की गई।
  • SIDS को परिवहन अवसंरचना पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बढ़ते जोखिम का सामना करना पड़ रहा है। मल्टीमॉडल परिवहन नेटवर्क और सीमा शुल्क प्रक्रियाओं में सुधार को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • SIDS के मंत्रियों ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं और दाता देशों से अपने परिवहन और लॉजिस्टिक्स क्षेत्रों में समुत्थानशीलता तथा स्थिरता को बढ़ावा देने वाली परियोजनाओं को वित्तपोषित करने का आह्वान किया।
  • ब्लॉकचेन-सक्षम ट्रेसेबिलिटी और उन्नत सीमा शुल्क स्वचालन को व्यापार सुविधा को अनुकूलित करने तथा पारदर्शिता बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण माना गया।
    • संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास ने व्यापार प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिये इलेक्ट्रॉनिक एकल खिड़की हेतु दिशा-निर्देश प्रस्तुत किये।
    • विश्व बैंक के साथ मिलकर विकसित एक नया व्यापार और परिवहन डेटासेट लॉन्च किया गया, जिसमें 100 से अधिक वस्तुओं तथा विभिन्न परिवहन साधनों पर डेटा शामिल है। इस निशुल्क व्यापक डेटासेट का उद्देश्य वैश्विक व्यापार प्रवाह की समझ एवं अनुकूलन को बढ़ाना है।

व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD):

  • व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development- UNCTAD) संयुक्त राष्ट्र का एक स्थायी अंतर-सरकारी निकाय है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1964 में हुई थी और इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
  • इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, निवेश, वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से, विशेष रूप से विकासशील देशों में सतत् विकास को बढ़ावा देना है।
  • UNCTAD का कार्य चार मुख्य क्षेत्रों पर केंद्रित है:
    • व्यापार एवं विकास 
    • निवेश एवं उद्यमिता 
    • तकनीक एवं नवाचार 
    • समष्टि अर्थशास्त्र और विकास नीतियाँ 

भारत के लिये लचीली आपूर्ति शृंखला की क्या आवश्यकता है?

  • परिचय:
    • लचीली आपूर्ति शृंखला: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में आपूर्ति शृंखला में लचीलापन किसी देश को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि इसने केवल एक या कुछ आपूर्तिकर्त्ता देशों पर निर्भर रहने के बजाय आपूर्तिकर्त्ता देशों के समूह में अपने आपूर्ति जोखिम को विविधतापूर्ण बना दिया है।
      • अप्रत्याशित घटनाएँ, चाहे ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी, भूकंप या महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाएँ हों या सशस्त्र संघर्ष जैसे मानव-कारक मुद्दे, किसी विशिष्ट देश से व्यापार को बाधित या रोक सकते हैं। यह उस देश की अर्थव्यवस्था को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है जो उन आपूर्तियों पर निर्भर करता है।
  • आवश्यकता:
    • कोविड-19: वैश्विक स्तर पर कोविड-19 के प्रसार ने यह एहसास कराया है कि किसी एक राष्ट्र पर निर्भरता वैश्विक अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था दोनों के लिये उचित नहीं है।
      • असेंबली लाइंस (Assembly Lines) के मामले में एक देश (चीन) से होने वाली आपूर्ति पर बहुत अधिक निर्भरता  है।
      • यदि स्रोत अनैच्छिक कारणों से या यहाँ तक ​​कि आर्थिक दबाव में जान-बूझकर उत्पादन बंद कर देता है, तो आयातक देशों पर इसका प्रभाव विनाशकारी हो सकता है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका-चीन व्यापार तनाव: वैश्विक आपूर्ति शृंखला के लिये समस्याएँ तब बढ़ सकती हैं जब संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन दोनों व्यापार विवादों के कारण एक-दूसरे पर टैरिफ प्रतिबंध लगाते हैं।
    • उभरते आपूर्ति केंद्र के रूप में भारत: व्यवसायों ने भारत को "आपूर्ति शृंखलाओं के केंद्र" के रूप में देखना शुरू कर दिया है, इसलिये मज़बूत आपूर्ति शृंखला की आवश्यकता है।
    • भारत में चीन से किया गया आयात:
      • भारतीय उद्योग परिसंघ के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत में चीन द्वारा किये गए आयात की हिस्सेदारी (चीन द्वारा आपूर्ति की जाने वाली शीर्ष 20 वस्तुओं के संदर्भ में) 14.5% थी।
      • पैरासिटामोल जैसी दवाओं के लिये सक्रिय औषधीय अवयवों जैसे क्षेत्रों में भारत काफी हद तक चीन पर निर्भर है।
      • इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में भारत के आयात का 45% हिस्सा चीन से प्राप्त होता है।
  • पहल:

आपूर्ति शृंखला में लचीलापन में सुधार हेतु भारत के लिये क्या सुझाव हैं?

  • आपूर्तिकर्त्ताओं और विनिर्माण आधार का विविधीकरण: कच्चे माल, घटकों या तैयार माल के लिये एक ही स्रोत पर अत्यधिक निर्भरता को कम किया जाना चाहिये। उदाहरण के लिये 60% से अधिक इलेक्ट्रॉनिक घटक मुख्य रूप से पूर्वी एशिया से आयात किये जाते हैं।
    • भू-राजनीतिक तनावों या प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले जोखिमों को कम करने के लिये घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करना और विभिन्न देशों में आयात स्रोतों में विविधता लाया जाना चाहिये। यह आत्मनिर्भर भारत पहल के साथ संरेखित है।
  • GVC में MSME का एकीकरण: क्षेत्रीय नवाचार प्रणालियों का निर्माण और सुदृढ़ीकरण करके तथा SME समूहों में बहुउद्देशीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आयोग की स्थापना कर भारतीय MSME को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (Global Value Chains- GVC) के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
  • भारतीय बेड़े की हिस्सेदारी बढ़ाएँ: क्षमता के मामले में भारतीय बेड़ा विश्व के बेड़े का सिर्फ 1.2% है और भारत के EXIM व्यापार का सिर्फ 7.8% (2018-19 के लिए) वहन करता है (आर्थिक सर्वेक्षण 2021-2022)। भारतीय बेड़े को बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिये।
  • वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी: OECD के अनुसार, वस्तुओं और सेवाओं के विश्व निर्यात में भारत की हिस्सेदारी वर्ष 1990 के दशक की शुरुआत की 0.5% से बढ़कर 2018 में 2.1% हो गई। हालाँकि वैश्विक आपूर्ति शृंखला का हिस्सा बनने के लिये भारत को अपनी हिस्सेदारी धीरे-धीरे बढ़ाने की ज़रूरत है।
  • लॉजिस्टिक्स अवसंरचना में निवेश: भारत की लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 13-14% होने का अनुमान है, जबकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह 8-11% है। 
    • इसलिये सड़क, रेलवे, जलमार्ग और बंदरगाहों सहित परिवहन नेटवर्क को उन्नत किये जाने की आवश्यकता है।
  • महत्त्वपूर्ण इनपुट के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना: वर्तमान में भारी मात्रा में आयात किये जाने वाले महत्त्वपूर्ण कच्चे माल और घटकों जैसे API की पहचान करना तथा उन्हें प्राथमिकता दिया जाना चाहिये। 
    • PLI योजना जैसे तंत्रों के माध्यम से बाहरी व्यवधानों के प्रति संवेदनशीलता को कम करने के लिये इन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के लिये प्रोत्साहन और सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
  • डिजिटल एकीकरण को मज़बूत करना:  पारदर्शिता, दृश्यता और जोखिम प्रबंधन में सुधार के लिये आपूर्ति शृंखला में डिजिटलीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • इसमें मज़बूत साइबर सुरक्षा उपायों को लागू करना और साझा डेटा प्लेटफॉर्मों के माध्यम से सहयोग को बढ़ावा देना शामिल है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. वैश्विक व्यापार के संदर्भ में आपूर्ति शृंखला में लचीलापन सुनिश्चित करने में भारत के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। भारत एक विश्वसनीय आपूर्ति शृंखला केंद्र के रूप में उभरने के लिये इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकता है? (250 शब्द)

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न.निम्नलिखित में से किस समूह के सभी चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020)

(a) अर्जेंटीना, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका एवं तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया एवं न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब एवं वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर एवं दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)


प्रश्न. हाल में तत्त्वों के एक वर्ग, जिसे 'दुर्लभ मृदा धातु' कहते हैं, की कम आपूर्ति पर चिंता जताई गई। क्यों? (2012)

  1. चीन, जो इन तत्चों का सबसे बड़ा उत्पादक है, द्वारा इनके निर्यात पर कुछ प्रतिबंध लगा दिये गए हैं।
  2. चीन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और चिली को छोड़कर अन्य किसी भी देश में ये तत्त्व नहीं पाए जाते हैं।
  3. दुर्लभ मृदा धातु विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक सामानों के निर्माण में आवश्यक हैं और इन तत्त्वों की मांग बढ़ती जा रही है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) कैवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. 'चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड)' वर्तमान समय में स्वयं को सैनिक गठबंधन से एक व्यापारिक गुट में रूपांतरित कर रहा है - विवेचना कीजिये। (2020)