जैव विविधता और पर्यावरण
रिकॉर्ड ग्लोबल वार्मिंग और भारत पर इसका प्रभाव
- 15 Jan 2025
- 16 min read
प्रिलिम्स के लिये:विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO), पेरिस समझौता, भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), आर्कटिक क्षेत्र, अल्बेडो प्रभाव, हिमालय, पार्टिकुलेट मैटर, एयरोसोल, सौर विकिरण, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि, सूखा, हीट वेव्स, कोल्ड वेव्स, वनाग्नि, पारिस्थितिकी तंत्र, मिशन मौसम। मेन्स के लिये:विश्व और भारत में ग्लोबल वार्मिंग की वर्तमान स्थिति, ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के उपाय। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने पुष्टि की है कि वर्ष 2024 सबसे गर्म वर्ष रहा है। पिछला दशक (वर्ष 2015-2024) सबसे गर्म रहा है।
- IMD के अनुसार, भारत में तापमान वृद्धि वैश्विक औसत तापमान वृद्धि से कम है।
- हालांकि, इस बात पर चिंता बनी हुई है कि वैश्विक जलवायु मॉडल भारत में हो रहे परिवर्तनों को सटीक रूप से प्रतिबिंबित नहीं करते हैं जिससे जलवायु अवलोकन एवं प्रभाव आकलन क्षमताओं में सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।
WMO के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- रिकॉर्ड वैश्विक तापमान: वर्ष 2024 में वैश्विक स्तर पर औसत सतही तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों (1850-1900 अवधि) से 1.55°C अधिक रहा है, जो निर्धारित आधार रेखा से 1.5°C अधिक तापमान वाला पहला वर्ष है।
- महासागरीय ऊष्मा: महासागरीय जल के ऊपरी 2000 मीटर द्वारा रिकॉर्ड 16 ज़ेटाजूल ऊष्मा अवशोषित की गई, जो वर्ष 2023 के कुल वैश्विक विद्युत उत्पादन का लगभग 140 गुना है।
- ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न अतिरिक्त ऊष्मा का लगभग 90% भाग महासागर में संग्रहित हो जाता है।
- तापमान आकलन: यद्यपि वर्ष 2024 का तापमान 1.5°C के स्तर से अधिक हो गया फिर भी WMO ने आश्वासन दिया है कि पेरिस समझौते के लक्ष्य बरकरार रहेंगे।
- पेरिस समझौता UNFCCC के तहत एक कानूनी रूप से बाध्यकारी वैश्विक समझौता है जिसका उद्देश्य वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य शामिल है।
- भारत में तापमान वृद्धि: भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार वर्ष 2024 में भारत का तापमान सामान्य से 0.65 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा लेकिन वैश्विक औसत 1.55 डिग्री सेल्सियस से कम है।
- IMD के आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2024 में भारत का तापमान वर्ष 1901-1910 के औसत से लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।
नोट: IPCC की छठी रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व -औद्योगिक काल से भूमि के तापमान में 1.59°C तथा महासागरों के तापमान में 0.88°C की वृद्धि हुई है।
भारत में कम तापमान वृद्धि के पीछे क्या कारण हैं?
- भौगोलिक स्थिति: वैश्विक तापमान में वृद्धि उच्च अक्षांशों पर (विशेष रूप से ध्रुवों के पास) अधिक ध्यान देने योग्य रही है, जिसका कारण वायु परिसंचरण प्रणालियों के माध्यम से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से ऊष्मा का स्थानांतरण है तथा यह तथ्य भी है कि उच्च अक्षांशों पर पहले से ही तापमान कम होता है।
- भारत, भूमध्य रेखा के पास उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में स्थित है, जहाँ इस प्रकार की भौगोलिक घटनाएँ नहीं होती हैं।
- एल्बिडो प्रभाव: आर्कटिक क्षेत्र में, निम्न एल्बिडो प्रभाव के कारण तापमान में वृद्धि होती है, जिससे वहाँ की बर्फ पिघलती है, यह बर्फ से ढकी सतहों की तुलना में अधिक ऊष्मा को रोकती है, जो सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करती हैं।
- भारत में बर्फ पर एल्बिडो प्रभाव हिमालयी क्षेत्रों तक ही सीमित है।
- एरोसोल और प्रदूषण: सौर ऊर्जा को अंतरिक्ष में वापस बिखेरने की अपनी क्षमता के कारण, पार्टिकुलेट मैटर और एरोसोल का शीतलन प्रभाव होता है। इसके अतिरिक्त, एरोसोल बादलों के निर्माण में सहायता करते हैं, जो सूर्य के प्रकाश को अंतरिक्ष में वापस परावर्तित करने में सहायता करते हैं।
- भारत में पार्टिकुलेट मैटर और एरोसोल के कारण वायु प्रदूषण बढ़ने से तापमान में वृद्धि में कमी आने का एक छोटा सा अनपेक्षित परिणाम सामने आया है।
- ऊँचाई में भिन्नताएँ : भारत का भू-भाग एक समान नहीं है, तथा विभिन्न क्षेत्रों में तापमान वृद्धि में स्पष्ट भिन्नताएँ पाई जाती हैं।
- स्थानीय जलवायु और भूगोल के कारण कुछ क्षेत्रों में अधिक तापमान वृद्धि देखी जाती है, लेकिन राष्ट्रीय औसत तापमान वृद्धि कम रहती है।
ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित अन्य निष्कर्ष:
- अत्यधिक गर्मी: भारत, चीन, इंडोनेशिया, नाइजीरिया और बांग्लादेश वर्ष 2020 में अत्यधिक गर्मी के संपर्क में रहने वाले शीर्ष पाँच देश थे।
- वर्ष 1995 से वर्ष 2020 तक, व्यापार के कारण अत्यधिक गर्मी का वैश्विक जोखिम 89% बढ़कर 221.5 बिलियन व्यक्ति-घंटे से 419.0 बिलियन व्यक्ति-घंटे हो गया।
- असंगत जोखिम: निम्न-मध्यम आय और निम्न आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ वैश्विक स्तर पर अधिक गर्मी के जोखिम का क्रमशः 53.7% और 18.3% हिस्सा हैं, जबकि वैश्विक श्रम क्षतिपूर्ति में इनका योगदान केवल 5.7% और 1% है।
- वर्ष 2020 में, जर्मनी में प्रति व्यक्ति केवल 28.1 घंटे अत्यधिक गर्मी रही है, तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में 260.9 घंटे थे, जबकि थाईलैंड और नाइजीरिया जैसे देशों में यह आँकड़ा बहुत अधिक था (क्रमशः प्रति व्यक्ति 1319.5 और 1186.8 घंटे)।
वैश्विक तापमान के परिणाम क्या हैं?
- समुद्र स्तर में वृद्धि: वर्ष 1880 के बाद से वैश्विक समुद्र स्तर में लगभग 8 इंच की वृद्धि हुई है तथा यह अनुमान है कि 2100 तक इसमें कम-से-कम एक फुट की वृद्धि होगी, जिससे तटीय क्षेत्र जलमग्न हो जाएंगे, समुदाय विस्थापित होंगे, तथा पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होगा।
- महासागर महत्त्वपूर्ण मात्रा में CO2 अवशोषित करते हैं, जिससे अम्लता में वृद्धि होती है जिससे समुद्री जीवन प्रभावित होता है।
- सूखा और उष्ण लहरें: सूखा और गर्म लहरें तीव्र होने की संभावना है, जबकि शीत लहरें कमज़ोर पड़ने की संभावना है।
- गर्मी और लम्बे समय तक सूखे के कारण वनाग्नि का समय बढ़ गया।
- जैवविविधता का ह्रास: बढ़ते तापमान और बदलते मौसम के कारण पारिस्थितिकी तंत्र बाधित हो रहा है, जिससे कई प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ रहा है।
- संबंधित प्रभाव: विषम मौसम के कारण खाद्य उत्पादन बाधित होता है, जिससे खाद्यान्नों का अभाव और कीमतों में वृद्धि होती है, जबकि बढ़ते तापमान के कारण वायु की गुणवत्ता प्रभावित होती है, गर्मी से होने वाले रोग बढ़ते हैं और रोगों का संचरण होता है।
भारत ग्लोबल वार्मिंग का बेहतर नियंत्रण कैसे कर सकता है?
- मौसम केंद्रों का विस्तार: भारत को अपने मौसमी संबंधी केंद्रों का विस्तार करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, वर्ष 2047 के लिये विकसित भारत विज़न के तहत प्रत्येक प्रमुख पंचायत में केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है, ताकि सटीक जलवायु आकलन के लिये वास्तविक समय के आँकड़े एकत्र किये जा सकें।
- कंप्यूटिंग क्षमताओं का वर्द्धन: भारत को बेहतर आपदा प्रबंधन, कृषि पूर्वानुमान और जलवायु आघात सहनीय कार्यनीतियों हेतु जलवायु डेटा को संसाधित करने के उद्देश्य से उन्नत कंप्यूटिंग तथा बुनियादी ढाँचे में निवेश करना चाहिये।
- नियमित प्रभाव आकलन: भारत को समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन जैसे उभरते जलवायु जोखिमों पर नज़र रखने के लिये भारत-विशिष्ट जलवायु परिवर्तन प्रभाव आकलन करने की आवश्यकता है।
- मिशन मौसम: मिशन मौसम का सुदृढ़ीकरण किया जाना चाहिये तथा मौसम के बेहतर पूर्वानुमान के लिये, विशेष रूप से तटीय और पर्वतीय क्षेत्रों में, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रणालियों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
- मिशन मौसम का उद्देश्य चरम मौसम की घटनाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का पूर्वानुमान करने और उनका शमन करने की भारत की क्षमता का वर्द्धन करना है।
- स्थानगत प्रभाव अध्ययन: भारत को स्थानगत अध्ययनों में निवेश करने की आवश्यकता है जो लक्षित अनुकूलन रणनीतियों और नीतिगत हस्तक्षेपों के लिये हिमालय, तटीय क्षेत्रों और शहरी केंद्रों जैसे विभिन्न क्षेत्रों द्वारा सामना की जाने वाली विशिष्ट जलवायु चुनौतियों को प्रतिबिंबित करें।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) क्या है?
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) एक अंतर-सरकारी संगठन है जिसमें 192 सदस्य देश शामिल हैं।
- भारत विश्व मौसम विज्ञान संगठन का सदस्य देश है।
- इसकी उत्पत्ति अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (आईएमओ) से हुई, जिसे 1873 के वियना अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान कांग्रेस के बाद स्थापित किया गया था ।
- इसकी उत्पत्ति अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से हुई है, जिसे वर्ष 1873 के वियना अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस के बाद स्थापित किया गया था।
- 23 मार्च 1950 को WMO कन्वेंशन के अनुसमर्थन द्वारा स्थापित WMO, मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), परिचालन जल विज्ञान तथा इससे संबंधित भू-भौतिकीय विज्ञान हेतु संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी बन गई है।
- WMO का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
आगे की राह
- छह-क्षेत्रीय दृष्टिकोण: ऊर्जा, उद्योग, कृषि, वन, परिवहन और निर्माण क्षेत्रों में उत्सर्जन में कमी लाने के लिये संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यनीति का अंगीकरण किया जाना चाहिये।
- पुनर्वनीकरण और वनरोपण: कार्बन सिंक तैयार किये जाने के उद्देश्य से वनरोपण किया जाना चाहिये, जो वायुमंडल से CO₂ को अवशोषित करते हैं।
- जैवविविधता और कार्बन भंडारण क्षमता को बनाए रखने के लिये क्षीण हो चुके वनों का जीर्णोद्धार करना तथा मौजूदा वनों की रक्षा की जानी चाहिये।
- ऊर्जा दक्षता: ऊर्जा कुशल साधनों, भवनों और औद्योगिक प्रक्रियाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- ऊर्जा उपयोग को अनुकूलित करने के लिये कड़े ऊर्जा मानकों का क्रियान्वन किया जाना चाहिये और स्मार्ट प्रौद्योगिकियों को अपनाने की आवश्यकता है।
- संधारणीय कृषि: जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों जैसे संधारणीय सिंचाई तकनीक, सूखा-रोधी फसल किस्में और कृषि वानिकी का अंगीकरण किया जाना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. उन कारकों की विवेचना कीजिये जिनके कारण वैश्विक तापमान बढ़ रहा है और विश्लेषण कीजिये कि वैश्विक औसत की तुलना में भारत के तापमान में अपेक्षाकृत कम बढ़ोतरी क्यों होती है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन से सही हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. “मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” यह पहल किसके द्वारा शुरू की गई थी? (2018) (a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017) |