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सामाजिक न्याय

वर्ष 2025 में बच्चों के लिये संभावनाएँ:यूनिसेफ रिपोर्ट

  • 18 Jan 2025
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष , विश्व बैंक , डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना , एकीकृत बाल विकास सेवा , मिशन वात्सल्य , बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ , पीएम केयर्स फंड , ज्ञान साझा करने के लिये  डिजिटल अवसंरचना

मेन्स के लिये:

वैश्विक एवं राष्ट्रीय बाल संरक्षण चुनौतियाँ, भारत में बाल कल्याण

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों? 

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की रिपोर्ट "वर्ष 2025 में बच्चों के लिये संभावनाएँ: बच्चों के भविष्य के लिये लचीली प्रणालियों का निर्माण" में बढ़ते वैश्विक संकटों एवं बच्चों पर उनके संभावित प्रभाव की चेतावनी दी गई है। 

  • इसमें बच्चों की सुरक्षा एवं आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय प्रणालियों को मज़बूत करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

बच्चों की चुनौतियों पर यूनिसेफ रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?

  • बच्चों पर संघर्ष का प्रभाव: वर्ष 2023 में, 473 मिलियन से अधिक बच्चे, या वैश्विक स्तर पर छह में से एक से अधिक, संघर्ष क्षेत्रों में रहते थे। संघर्ष से प्रभावित बच्चों का अनुपात वर्ष 1990 के दशक के 10% से लगभग दोगुना होकर 19% हो गया है।
  • बच्चों को विस्थापन, भुखमरी, रोग और मनोवैज्ञानिक आघात जैसे संकटों का सामना करना पड़ता है ।
  • ऋण संकट और बच्चों पर इसका प्रभाव: लगभग 400 मिलियन बच्चे ऋणग्रस्त देशों में रहते हैं, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सेवाओं में निवेश सीमित हो जाता है।

    • विश्व बैंक का अनुमान है कि निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों के लिये बाह्य ऋण में 5% की वृद्धि से शिक्षा पर होने वाले खर्च में 12.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी आ सकती है। 15 अफ्रीकी देशों में, ऋण सेवा एवं शिक्षा पर होने वाले खर्च से अधिक है, जबकि 40 से अधिक निम्न आय वाले देश स्वास्थ्य की तुलना में ऋण पर अधिक खर्च करते हैं।  
      • ऋण भुगतान अब सामाजिक सुरक्षा से 11 गुना अधिक हो गया है, जिससे 1.8 अरब बच्चे आर्थिक संकटों एवं  बढ़ती गरीबी के प्रति असुरक्षित हो गए हैं।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: वैश्विक जलवायु वित्त का केवल 2.4% ही बाल-संवेदनशील पहलों हेतु आवंटित किया जाता है, जिससे बच्चों के लिये महत्त्वपूर्ण सामाजिक सेवाएँ कमज़ोर हुई हैं।
  • डिजिटल असमानता: डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) के तहत सरकारों द्वारा बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा जैसी आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने के तरीकों में परिवर्तन लाया जा रहा है।
  • हालाँकि, डिजिटल डिवाइड की व्यापकता बनी हुई है, जहाँ उच्च आय वाले देशों में युवा (15-24 वर्ष) अधिक इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं जबकि अफ्रीका में केवल 53% युवाओं के पास इंटरनेट की सुविधा (विशेष रूप से निम्न आय वाले देशों में) है।

  • किशोर लड़कियाँ और विकलांग बच्चे इससे विशेष रूप से प्रभावित हैं, निम्न आय वाले देशों में 10 में से 9 किशोर लड़कियों की इंटरनेट तक पहुँच नहीं है।

  • कार्रवाई हेतु सिफारिशें: इस रिपोर्ट में जलवायु सुधार प्रयासों के लिये अतिरिक्त वित्तपोषण की मांग की गई है, जिसमें जलवायु आपदाओं के दौरान बच्चों की स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और मनोवैज्ञानिक कल्याण हेतु सहायता शामिल है।

    • ऐसी समावेशी, निष्पक्ष और ज़िम्मेदार प्रणालियाँ सुनिश्चित हों जिससे बच्चों के अधिकारों एवं आवश्यकताओं को प्राथमिकता मिले।

    • असमानता के अंतराल को कम करने के लिये डिजिटल पहलों में बाल अधिकारों का बेहतर एकीकरण सुनिश्चित करना आवश्यक है।

UNICEF के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: UNICEF एक अग्रणी वैश्विक संगठन है जो यह सुनिश्चित करने के लिये कार्य करता है कि हर बच्चा जीवित रहे, फले-फूले और अपनी क्षमता को पूरा करे, चाहे उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो या वे कहीं भी रहते हों।
    • UNICEF का कार्य निष्पक्ष, गैर-राजनीतिक और तटस्थ है। यह 190 से अधिक देशों और क्षेत्रों में कार्य करता है।
  • स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1946 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उन बच्चों की सहायता करने के लिये की गई थी, जिनका जीवन और भविष्य खतरे में था, चाहे उनके देश ने युद्ध में कोई भी भूमिका निभाई हो।
  • मुख्य गतिविधियाँ: शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पोषण, बाल संरक्षण, स्वच्छ जल और स्वच्छता, जलवायु परिवर्तन तथा रोग।
    • UNICEF बाल अधिकार कन्वेंशन, 1989 द्वारा निर्देशित है।
  • मान्यता: वर्ष 1965 में “राष्ट्रों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देने” के लिये शांति के लिये नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • UNICEF और भारत: UNICEF ने भारत में अपना कार्य वर्ष 1949 में शुरू किया। वर्तमान में यूनिसेफ का 17 राज्यों तक विस्तार है जिससे भारत की 90% बाल आबादी कवर होती है।
  • यूनिसेफ-भारत की प्रमुख पहल:
    • ICDS  (1975): यूनिसेफ ने एकीकृत बाल विकास सेवाओं (ICDS) में प्रमुख भूमिका निभाई है।
    • पोलियो अभियान (2012): इसने पोलियो उन्मूलन में भारत की सफलता में योगदान दिया।
    • मातृ एवं बाल पोषण (2013): इसके तहत राष्ट्रव्यापी अभियान के माध्यम से पोषण जागरूकता को बढ़ावा दिया गया है।
    • इंडिया न्यूबॉर्न एक्शन प्लान (2014): नवजात मृत्यु दर और मृत बच्चों के जन्म को कम करने के लिये इसने इंडिया न्यूबॉर्न एक्शन प्लान में सहायता की है।
  • मार्गदर्शक रूपरेखा: यूनिसेफ द्वारा बाल अधिकार सम्मेलन, 1989 (भारत ने वर्ष 1992 में इस सम्मेलन की पुष्टि की) का अनुसरण किया जाता है, जिसका उद्देश्य बच्चों के अधिकारों को सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों एवं बच्चों के प्रति व्यवहार के वैश्विक मानकों के रूप में स्थापित करना है।

समकालीन भारत में बच्चों के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं?

  • जलवायु और पर्यावरणीय खतरे: जलवायु से बच्चों के जोखिम सूचकांक में भारत 163 देशों में से 26 वें स्थान पर है, जहाँ बच्चों को अत्यधिक उष्णता, बाढ़ और वायु प्रदूषण से बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ रहा है। 
    • 2000 के दशक की तुलना में हीटवेव के उद्भासन में आठ गुना वृद्धि होने की उम्मीद है। इस जलवायु संकट से बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर और अधिक दबाव बढ़ेगा, विशेषकर ग्रामीण और निम्न आय वाले क्षेत्रों में जहाँ स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा का अभिगम पहले से ही सीमित है।
  • बाल तस्करी: भारत में बृहद स्तर पर बाल तस्करी होती है, जहाँ बच्चों का श्रम, भीख माँगने, लैंगिक प्रयोजनों और चाइल्ड पोर्नोग्राफी के लिये शोषण किया जाता है।
  • बाल श्रम: 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 259.6 मिलियन बच्चे (5-14 वर्ष) हैं, जिनमें से 10.1 मिलियन बच्चे अधिकतर कृषि, घरेलू काम और छोटे उद्योगों में कार्य करते हैं।
    • बालक श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम (1986) जैसे कानूनों के बावजूद, जिसमें बालक श्रम को प्रतिबंधित करने के बजाय इसका विनियमन किया गया है, हाल के संशोधनों में बच्चों को पारिवारिक उद्यमों में कार्य करने की अनुमति प्रदान की गई है, जिससे विशेषकर ग्रामीण और अनौपचारिक अर्थव्यवस्थाओं में उनके संभावित शोषण को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • किशोर अपराध: भारत में वर्ष 2022 में नाबालिगों द्वारा कुल 30,555 अपराध कारित किये गए। इनके मूल कारणों में गरीबी और शिक्षा का अभाव जैसे कारक शामिल हैं।
  • बाल विवाह: बाल विवाह के मामले में भारत दक्षिण एशिया में बांग्लादेश, नेपाल और अफगानिस्तान के बाद चौथे स्थान पर है।
    • अल्प आयु में विवाह से न केवल कन्याओं के लिये शिक्षा और स्वास्थ्य के अवसर सीमित हो जाते हैं, बल्कि गरीबी और असमानता का चक्र भी बना रहता है।
  • लैंगिक असमानता: भारत में कन्याओं, विशेष रूप से निम्न आय या ग्रामीण पृष्ठभूमि की कन्याओं को स्कूल छोड़ने, अल्प आयु में विवाह होने और अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल का अधिक जोखिम रहता है।
  • सुविधावंचित बालक: ग्रामीण क्षेत्रों, मलिन बस्तियों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों तथा शहरी क्षेत्रों के गरीब परिवारों के बच्चे गरीबी, कुपोषण, स्कूल में कम उपस्थिति, अपर्याप्त स्वच्छता और स्वच्छ जल की अपर्याप्त पहुँच जैसे गंभीर अभाव का सामना करते हैं।
  • जनसंख्या वृद्धि: वर्ष 2050 तक अनुमानित रूप से भारत में बच्चों की संख्या 350 मिलियन होगी, जो वैश्विक बाल जनसंख्या का 15% होगा। शहरीकरण के साथ, भारत की लगभग आधी जनसंख्या का निवास शहरों में होगा, जिसके लिये जलवायु-सहनीय, बाल-अनुकूल शहरी नियोजन की आवश्यकता होगी।

आगे की राह:

  • बच्चों के लिये सतत् भविष्य: जनसांख्यिकीय परिवर्तनों को संबोधित करने के लिये स्वास्थ्य सेवा और परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना। हाशिये पर पड़े बच्चों के लिये समावेशी स्थानों और बुनियादी ढाँचे के साथ बाल-अनुकूल शहरों का विकास करना।
    • जलवायु रणनीतियों में बच्चों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता देना तथा स्थानीय नियोजन में अनुकूलता को एकीकृत करना।
    • डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना और उभरती प्रौद्योगिकियों के लिये अधिकार-आधारित शासन को लागू करना।
  • गरीबी उन्मूलन: बाल कुपोषण को दूर करने और परिवारों को आय सुरक्षा प्रदान करने के लिये पीएम पोषण और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) जैसी योजनाओं को मज़बूत करना।
    • ग्रामीण और शहरी गरीब समुदायों में किफायती स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता तक पहुँच सुनिश्चित करना।
  • तस्करी के विरुद्ध सख्त प्रवर्तन: समुदाय-आधारित सतर्कता प्रणालियों के साथ तस्करी विरोधी कानूनों के कार्यान्वयन को मज़बूत करना।
    • मानव तस्करी नेटवर्क को रोकने के लिये दंड में वृद्धि की जानी चाहिये तथा प्रणालीगत भ्रष्टाचार को दूर किया जाना चाहिये।
    • बच्चों को खतरनाक व्यवसायों से निकालने और उन्हें शिक्षा प्रदान करने हेतु NCLP के प्रयासों का विस्तार करना।
  • शिक्षा सुधार: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और दीक्षा मंच के माध्यम से विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों के बुनियादी ढाँचे और गुणवत्ता में सुधार करना।
    • निजी स्कूलों की फीस संरचनाओं को विनियमित और नियंत्रित करना, वहनीयता सुनिश्चित करना तथा शोषण को रोकना। 
  • कानून से संघर्षरत किशोर: दंडात्मक उपायों के बजाय पुनर्वास कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना। बाल संरक्षण और पुनः एकीकरण सेवाओं के लिये अधिक संसाधन आवंटित करना।
  • बाल विवाह उन्मूलन: बाल विवाह के खतरे से जूझ रही लड़कियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं उद्यमिता के अवसर प्रदान करना तथा बाल विवाह के दबाव को कम करने के लिये परिवारों को लघु ऋण उपलब्ध कराना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: संघर्ष और जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक संकटों का बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा कीजिये। भारत समेत अन्य देश इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकते हैं? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक

 बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. विकास का अधिकार
  2.  अभिव्यक्ति का अधिकार
  3.  मनोरंजन का अधिकार

उपर्युक्त में से कौन-सा/से बच्चे का अधिकार है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: D


मेन्स:

Q. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके कार्यान्वयन की स्थिति पर प्रकाश डालिये। (वर्ष 2016)

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