कार्यस्थल पर मौलिक सिद्धांत और अधिकार (FPRW) परियोजना | 19 Aug 2024

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय वस्त्र उद्योग परिसंघ (CITI), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), कार्यस्थल पर मौलिक सिद्धांतों और अधिकारों का संवर्द्धन (FPRW), ILO कन्वेंशन संख्या 138, कन्वेंशन संख्या 182, वाणिज्यिक फसलें, व्हाइट गोल्ड, पिंक बॉलवर्म, पार्किंसंस रोग

मेन्स के लिये:

बाल श्रम से संबंधित मुद्दे, भारतीय अर्थव्यवस्था में कपास और वस्त्र उद्योग का महत्त्व 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारतीय वस्त्र उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Textile Industry- CITI) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation- ILO) ने संयुक्त रूप से कार्यस्थल पर मौलिक सिद्धांत एवं अधिकार (Fundamental Principles and Rights at Work- FPRW) नामक परियोजना शुरू की है।

  • इससे सर्वोत्तम श्रम मानकों के बारे में जागरूकता पैदा करने तथा तकनीकी जानकारी एवं ज्ञान को साझा करने में मदद मिलेगी।

क्या है ILO की FPRW परियोजना?

  • परियोजना के विषय में:
    • यह सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनों द्वारा उन मूलभूत/बुनियादी मानवीय मूल्यों को कायम रखने की प्रतिबद्धता है, जो हमारे सामाजिक एवं आर्थिक जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। 
    • कार्यस्थल पर मौलिक सिद्धांतों और अधिकारों पर ILO घोषणा (FPRW) को वर्ष 1998 में अपनाया गया था और वर्ष 2022 में इसमें संशोधन किया गया था।
    • वैश्वीकरण के सामाजिक प्रभाव को लेकर बढ़ती चिंताओं के कारण ILO के सदस्यों ने श्रम मानकों की चार श्रेणियों को मान्यता दी, जिन्हें आठ कन्वेन्शनों में व्यक्त किया गया
    • वर्ष 2022 में चार श्रेणियों को संशोधित कर पाँच श्रेणियाँ बना दिया गया जिसमें दस कन्वेन्शनों में व्यक्त सुरक्षा और स्वास्थ्य कन्वेन्शन को शामिल किया गया।
  • FPRW परियोजना और संबंधित कन्वेन्शन की पाँच श्रेणियाँ:
    • संगठन बनाने की स्वतंत्रता और सामूहिक सौदेबाज़ी के अधिकार की प्रभावी मान्यता: बाह्य हस्तक्षेप से मुक्त होकर अपने स्वयं के संगठन बनाना तथा उनका प्रबंधन करना श्रमिकों और नियोक्ताओं दोनों का विशेषाधिकार है।
      • सामूहिक सौदेबाजी के माध्यम से नियोक्ता और श्रमिक अपने संबंधों विशेष रूप से कार्य के शर्तों तथा नियमों पर चर्चा एवं विमर्श करते हैं।
      • इसे निम्नलिखित कन्वेंशन द्वारा लागू किया जाता है:
        • संघ बनाने की स्वतंत्रता और संगठन के अधिकार का संरक्षण कन्वेंशन (सं. 87), 1948
        • संगठित होने का अधिकार और सामूहिक सौदेबाजी कन्वेंशन (सं. 98), 1949
    • सभी प्रकार के बलात् या अनिवार्य श्रम का उन्मूलन: 
      • श्रमिकों को स्वतंत्र रूप से ज्वाइन करने तथा उचित अवधि की पूर्व सूचना के अधीन कार्य छोड़ने की स्वतंत्रता होनी चाहिये।
      • इसे निम्नलिखित कन्वेंशन द्वारा लागू किया जाता है:
        • बलात् श्रम कन्वेंशन (सं. 29), 1930
        • बलात् श्रम उन्मूलन कन्वेंशन (सं. 105), 1957
    • बाल श्रम का प्रभावी उन्मूलन: 
      • ILO कन्वेंशन संख्या 138 (कार्य या रोज़गार में संलग्नता हेतु न्यूनतम आयु) और कन्वेंशन संख्या 182 (बाल श्रम के सबसे बुरे रूपों का उन्मूलन) कार्य हेतु न्यूनतम आयु निर्धारित करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह अनिवार्य स्कूली शिक्षा के लिये निर्धारित आयु से कम नहीं है तथा किसी भी मामले में 15 वर्ष से कम नहीं है
      • इसे निम्नलिखित कन्वेंशन द्वारा लागू किया जाता है:
        • न्यूनतम आयु कन्वेंशन (सं. 138), 1973
        • बाल श्रम के सबसे बुरे स्वरूप पर कन्वेंशन (सं. 182), 1999
    • रोज़गार और व्यवसाय के संबंध में भेदभाव का उन्मूलन: 
      • जाति, रंग, लिंग, धर्म, राजनीतिक मत, राष्ट्रीय निष्कर्षण या सामाजिक मूल के आधार पर बहिष्कार या वरीयता नहीं दी जानी चाहिये।
      • इसमें समान महत्त्व के कार्य के लिये पुरुष और महिला श्रमिकों के लिये समान पारिश्रमिक का प्रावधान होना चाहिये।
      • इसे निम्नलिखित कन्वेंशन द्वारा लागू किया जाता है:
        • समान पारिश्रमिक कन्वेंशन (सं. 100), 1951
        • भेदभाव (रोज़गार और व्यवसाय) कन्वेंशन (सं. 111), 1958
    • सुरक्षित एवं स्वस्थ कार्य परिवेश: 
      • ILO कन्वेंशन संख्या 155 का उद्देश्य कार्यस्थल पर दुर्घटनाओं और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर अंकुश लगाना है, जबकि कन्वेंशन संख्या 187 चोटों, बीमारियों और मौतों को रोकने के लिये व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य में निरंतर सुधार को अनिवार्य बनाता है।
      • इसे निम्नलिखित कन्वेंशन द्वारा लागू किया जाता है:
        • व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य कन्वेंशन (सं. 155), 1981
        • व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य कन्वेंशन के लिये प्रचारात्मक रूपरेखा (सं. 187), 2006.
  • भारत के लिये FPRW की आवश्यकता: 
    • व्यापार में नॉन-टैरिफ बाधा: भारत से कपास और हाइब्रिड/संकर कपास के बीज अमेरिकी श्रम विभाग की "बाल श्रम या बलात् श्रम द्वारा उत्पादित वस्तुओं की सूची" में बने हुए हैं। FPRW परियोजना से भारत को व्यापार में इस बाधा को कम करने में मदद मिलेगी।
    • वैश्विक दायित्व: ILO की FPRW परियोजना सभी ILO सदस्य देशों पर लागू होती है, चाहे उन्होंने इसकी पुष्टि की हो या नहीं। यह ILO के संविधान का अभिन्न अंग है। 
      • चूँकि भारत ILO का सदस्य है, इसलिये इसे FPRW परियोजना का अनुपालन करना आवश्यक है।
    • स्थायी कार्यबल: कपास उत्पादक समुदाय सभी श्रमिकों के लिये अधिक न्यायसंगत, स्थायी एवं समृद्ध परिवेश को प्रोत्साहित कर सकते हैं, जिससे व्यक्तियों तथा परिवारों को दीर्घकालिक लाभ मिल सकता है।
    • सामाजिक-आर्थिक उत्थान: यह सहयोग किसानों को उनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान के उद्देश्य से विभिन्न सरकारी योजनाओं और पहलों के बारे में जानकारी प्रदान करेगा
      • लक्षित समुदायों के लिये आउटरीच सर्विसेज़ (पहुँच सेवाएँ), सूचना प्रसार और व्यावसायिक प्रशिक्षण सुविधाओं के साथ संपर्क उनकी स्थिति को बेहतर बनाने में सहायक हो सकती हैं।
      • सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) जैसे SDG 10 (असमानताओं में कमी) , SDG 8 (सभ्य कार्य और आर्थिक विकास) को प्राप्त करना आवश्यक है।

श्रम स्थितियों से संबंधित तथ्य और आँकड़े

  • विश्व की 40% से अधिक जनसंख्या ऐसे देशों में रहती है, जिन्होंने संगठन बनाने की स्वतंत्रता पर ILO कन्वेंशन संख्या 87 या सामूहिक सौदेबाज़ी पर कन्वेंशन संख्या 98 का ​​अनुसमर्थन नहीं किया है।
  • औसतन महिलाओं को उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में 23% कम वेतन दिया जाता है तथा कई देशों में तो उन्हें कुछ व्यवसायों से भी वंचित रखा जाता है।
  • 5-17 वर्ष की आयु के 152 मिलियन बच्चे बाल श्रम में लिप्त हैं, उनमें से 72 मिलियन बच्चे जोखिमपूर्ण कार्य और बाल श्रम के अन्य विकृत रूपों में संलग्न हैं, जबकि 80 मिलियन से अधिक बच्चों की आयु काम करने की न्यूनतम आयु से कम है तथा काम करने के लिये वे बहुत ही छोटे हैं।
  • 25 मिलियन लोग बलात् श्रम के शिकार हैं, जिनमें से 25% बच्चे हैं
  • कम-से-कम 15 मिलियन लोग जिनमें मुख्यतः महिलाएँ और लड़कियाँ शामिल हैं, ज़बरन वैवाहिक जीवन में बंधे हुए हैं, जो कि बलात् श्रम के समान हो सकता है। 

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO)

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की स्थापना वर्ष 1919 में वर्साय की संधि के तहत की गई थी। 
  • यह 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को श्रम मानकों को स्थापित करने, नीतियाँ बनाने तथा ऐसे कार्यक्रम बनाने के लिये एकजुट करता है, जो सभी पुरुषों व महिलाओं के लिये सभ्य/गरिमापूर्ण कार्य को बढ़ावा देते हैं।
  • यह वर्ष 1946 में संयुक्त राष्ट्र की पहली संबद्ध विशेष एजेंसी बना।
    • इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विटज़रलैंड में है
  • इसका संस्थापक मिशन है- “सार्वभौमिक और स्थायी शांति के लिये सामाजिक न्याय  आवश्यक है” (social justice is essential to universal and lasting peace)।
  • विभिन्न वर्गों के बीच शांति स्थापित करने, श्रमिकों के लिये सभ्य कार्य और न्याय सुनिश्चित करने तथा अन्य विकासशील देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिये इसे वर्ष 1969 में नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।

भारत में बाल श्रम की स्थिति क्या है?

  • पूर्व उपलब्ध जनगणना 2011 के अनुसार भारत में 10.1 मिलियन बाल श्रमिक थे
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट,2022 के अनुसार वर्ष 2021 में बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के तहत लगभग 982 मामले दर्ज किये गए, जिनमें सबसे अधिक मामले तेलंगाना में दर्ज किये गए, इसके बाद असम का स्थान है।
  • बाल श्रम की रोकथाम के लिये सरकार द्वारा किये गए प्रयास:
    • बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986: खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और 18 वर्ष से कम उम्र के किशोर के रोज़गार को प्रतिबंधित करता है।
    • फैक्टरी अधिनियम, 1948: किसी भी खतरनाक वातावरण में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के रोज़गार को प्रतिबंधित करता है और किशोरों (14 से 18 वर्ष) के कार्य के घंटों और शर्तों को प्रतिबंधित करता है, जिन्हें केवल गैर-खतरनाक प्रक्रियाओं में काम करने की अनुमति है।
    • बाल श्रम पर राष्ट्रीय नीति,1987: इसका उद्देश्य बाल श्रम को प्रतिबंधित और विनियमित करके उसका उन्मूलन करना एवं बच्चों और उनके परिवारों के लिये कल्याण और विकास कार्यक्रम प्रदान करना और कामकाज़ी बच्चों की शिक्षा और पुनर्वास सुनिश्चित करना है।
    • पेंसिल पोर्टल: इस मंच का उद्देश्य बाल श्रम मुक्त समाज के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये बाल श्रम उन्मूलन में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, ज़िला, नागरिक समाज और जनता को शामिल करना है। इसे श्रम और रोज़गार मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया था।
    • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अभिसमय का अनुसमर्थन: भारत ने वर्ष 2017 में बाल श्रम पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के दो मुख्य अभिसमय यानी न्यूनतम आयु अभिसमय (वर्ष 1973) संख्या 138 और बाल श्रम के सबसे विकृत स्वरूप पर अभिसमय (1999) संख्या 182 का भी अनुसमर्थन किया है।

नोट:

  • भारत ने कई ILO अभिसमयों का अनुसमर्थन किया है,जैसे:
    • बलात श्रम पर अभिसमय (सं. 29),1930, वर्ष 1954 में 
    • समान पारिश्रमिक पर अभिसमय (सं. 100),1951, वर्ष 1958 में 
    • भेदभाव (रोजगार और व्यवसाय) पर अभिसमय (सं. 111),1958, वर्ष 1960 में 
    • बलात् श्रम के उन्मूलन पर अभिसमय (सं. 105),1957,वर्ष 2000 में
    • न्यूनतम आयु पर अभिसमय (सं. 138),1973 और बाल श्रम के सबसे विकृत स्वरूप पर अभिसमय (सं. 182),1999, वर्ष 2017 में।

भारत में कपास की खेती की स्थिति क्या है?

  • परिचय:
    • कपास भारत में खेती की जाने वाली सबसे महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक फसलों में से एक है और वित्तीय वर्ष 2022-23 में कुल वैश्विक कपास उत्पादन का लगभग 23% हिस्सा था। 
      • यह अनुमानित 6 मिलियन कपास की खेती से संबंधित किसानों और कपास प्रसंस्करण और व्यापार जैसी संबंधित गतिविधियों में लगे 40-50 मिलियन लोगों की आजीविका बनाए रखने में प्रमुख भूमिका निभाता है
    • भारत में इसके आर्थिक महत्त्व के कारण इसे "व्हाइट-गोल्ड" भी कहा जाता है।
  • राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य:
    • कपास के अंतर्गत क्षेत्रफल: वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत कपास की खेती के अंतर्गत 130.61 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल के साथ कपास के क्षेत्रफल में विश्व स्तर पर प्रथम स्थान पर है, यानी 324.16 लाख हेक्टेयर के विश्व क्षेत्रफल का लगभग 40%।
      • भारत का लगभग 67% कपास वर्षा आधारित क्षेत्रों में और 33% सिंचित भूमि पर उत्पादित होता है।
    • कपास की उपज: उत्पादकता के मामले में भारत 447 किलोग्राम/हेक्टेयर की उपज के साथ 39वें स्थान पर है।
    • कपास के प्रकार: भारत एकमात्र ऐसा देश है, जो कपास की सभी चार प्रजातियाँ यानी जी. आर्बोरियम एवं  जी. हर्बेशियम (एशियाई कपास), जी.बारबाडेंस (मिस्र कपास) और जी.हिर्सुटुम (अमेरिकी अपलैंड कपास) का उत्पादन करता है। 
      • जी. हिर्सुटुम भारत में 90% संकर कपास उत्पादन का प्रतिनिधित्व करता है और सभी मौजूदा बीटी कपास संकर जी.हिर्सुटुम प्रजाति की हैं
    • उत्पादन: कपास सत्र 2022-23 के दौरान 343.47 लाख गाँठ के अनुमानित उत्पादन के साथ भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है, यानी विश्व कपास उत्पादन का 23.83% है
    • उत्पादन पैटर्न: कपास उत्पादन का अधिकांश हिस्सा 9 प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों से आता है, जिन्हें तीन विविध कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों में बाँटा गया है, जो इस प्रकार हैं:
      • उत्तरी क्षेत्र: पंजाब, हरियाणा और राजस्थान
      • मध्य क्षेत्र: गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश
      • दक्षिणी क्षेत्र: तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक।
    • उपभोक्ता: 311 लाख गाँठ (5.29 मिलियन मीट्रिक टन) की अनुमानित खपत के साथ भारत विश्व में कपास का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है
      • यह विश्व कपास की खपत 1399 लाख गाँठ (23.79 मिलियन मीट्रिक टन) का 22.24% है। 
    • कपास का आयात और निर्यात: भारत कपास के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक है यानी वित्तीय वर्ष 2022-23 में 528 लाख गाँठ (8.98 मिलियन मीट्रिक टन) के साथ विश्व निर्यात का 6% हिस्सा रखता है
      • भारत में कपास की कुल खपत का 10% से भी कम कपड़ा उद्योग द्वारा अपनी विशिष्ट आवश्यकता को पूरा करने के लिये आयात किया जाता है।

भारत के कपास क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियाँ और आगे की राह क्या हैं?

  • कपास क्षेत्र को प्रभावित करने वाली चुनौतियाँ:
    • कीट और रोग संक्रमण: किसानों को नियमित रूप से पिंक बॉलवर्म जैसे कीट के हमले का सामना करना पड़ता है।
      • यह कीट कपास की खेती के लिये प्रमुख चुनौती बन गया है क्योंकि यह बीटी प्रोटीन के प्रति प्रतिरोधी हो गया है, जिससे इसके समाधान हेतु विविध एवं अनुकूली कीट प्रबंधन रणनीतियों की आवश्यकता है।
    • स्वास्थ्य समस्याएँ: कृषि कार्य के दौरान कीटनाशकों के संपर्क में किसानों के आने से इनमें विषाक्तता, श्वसन संबंधी समस्याएँ, त्वचा एवं आँखों में जलन तथा दौरे और यहाँ तक कि इनकी मृत्यु भी हो सकती है।
      • दीर्घकालिक स्तर पर कीटनाशकों के संपर्क में रहने से पार्किंसंस रोग, अस्थमा, मानसिक बीमारी एवं कैंसर हो सकता है।
    • असंगठित क्षेत्र: भारत का 90% से अधिक बुनाई उद्योग असंगठित होने के साथ यहाँ अन्य एशियाई देशों की तुलना में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा है, जिससे इसकी प्रगति में बाधा आती है।
    • मैनुअल श्रम: वस्त्र उद्योग में स्वचालन को अपनाने की गति धीमी होने के साथ यह क्षेत्र श्रम-प्रधान बना हुआ है जिससे अकुशलता के साथ उत्पादकता सीमित रहती है।
      • तकनीक को अपनाने की गति धीमी होने के साथ बुनियादी ढाँचे के अभाव से उद्योग की समग्र दक्षता एवं विकास पर प्रभाव पड़ता है।
    • उद्योग विखंडन: परिधान उद्योग का केवल 5% संगठित है, जिससे इसकी लाभप्रदता एवं दक्षता प्रभावित होती है।
      • इससे संबंधित 70% श्रमिकों के पास औपचारिक शिक्षा का अभाव होने से उद्योग के विकास के अवसर सीमित होते हैं।
    • जल की बर्बादी: भारतीय वस्त्र उद्योग में जल की काफी बर्बादी होती है, इसके दीर्घकालिक परिणामों से बचने के लिये इसके रणनीतिक उपयोग की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • एकीकृत कीट प्रबंधन: एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) रणनीतियों (जिनमें कीटनाशकों के उपयोग को कम करने के क्रम में कीटों के प्राकृतिक नियंत्रण के साथ लाभकारी कीटों को बढ़ावा देना शामिल है) को बढ़ावा देना चाहिये। 
  • त्पाद संवर्द्धन: कपास फाइबर के प्रसंस्करण हेतु स्थानीय कपास प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना करके मूल्य संवर्द्धन को प्रोत्साहित करना चाहिये, जिससे न केवल रोज़गार का सृजन होगा बल्कि कपास आपूर्ति शृंखला के मूल्य में वृद्धि भी होगी। 
  • उद्योग का आधुनिकीकरण: इसके प्रसंस्करण को आधुनिक बनाने, दक्षता में सुधार करने एवं वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने हेतु प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (TUFS) और PM मेगा टेक्सटाइल पार्क (PM-MITRA) जैसी पहलों का लाभ उठाना चाहिये।

भारत में कपास उद्योग में बाल श्रम के क्या कारण और समाधान हैं?

  • कारण:
    • सस्ती और अनुसरित श्रम: बच्चों को प्रायः वयस्कों की तुलना में कम भुगतान किया जाता है (या बिना भुगतान के) साथ ही उनकी सौदाकारी शक्ति कमज़ोर होती है और उन्हें प्रायः आज्ञाकारी कर्मचारी माना जाता है।
    • ‘फुर्तीली उंगलियाँ (Nimble Fingers)’ मिथक: नियोक्ता दावा करते हैं कि क्रॉस-परागण, विपुंसन और हाथ द्वारा परागण के कार्य तरुण लड़कियों द्वारा सबसे अच्छे तरीके से किये जाते हैं।
      • ऐसी धारणा है कि बच्चों के छोटे हाथ और शरीर खरपतवार निकालने जैसे कार्यों के लिये बेहतर होते हैं।
    • अकुशल कार्य: कपास की कृषि बहुत हद तक अकुशल कार्य है जहाँ छोटे कद और चपलता जैसी कुछ शारीरिक विशेषताएँ बाल श्रम की माँग को बढ़ाती हैं।
    • सामाजिक मानदंड: बच्चों से प्रायः अपने माता-पिता के नक्शेकदम पर चलने की उम्मीद की जाती है और उन्हें प्रायः कम उम्र में परिवार के अन्य सदस्यों की ‘मदद’ करने की अपेक्षा की जाती है।
  • समाधान:
    • राष्ट्रीय विधान: सरकारों को स्व-अनुमोदित अंतर्राष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों की विषय-वस्तु को राष्ट्रीय विधान में रूपांतरित करना चाहिये।
      • इसके अतिरिक्त, सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि श्रम कानूनों का क्रियान्वयन और अनुपालन हो।
    • संधारणीय व्यावसायिक व्यवहार: कम्पनियों को आपूर्तिकर्त्ताओं और उप-ठेकेदारों के स्तर सहित अपने सभी व्यावसायिक कार्यों में उचित परिश्रम के साथ कार्य करना चाहिये।
      • इस प्रयास में बाल श्रम को समाप्त करने और रोकने को भी शामिल किया जाना चाहिये।
    • पारदर्शिता और पता लगाने की योग्यता: ब्रांडों और खुदरा विक्रेताओं को अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को अच्छी तरह से समझने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
      • बाल श्रम का अधिकांश हिस्सा फ्रीलांसरों और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वालों द्वारा किया जाता है।
      • आपूर्ति शृंखला के खरीद पक्ष पर सरकारों को बाल श्रम से बने उत्पादों के आयात पर अंकुश लगाना चाहिये।
    • कार्यबल का प्रतिस्थापन: कुशल कामकाज़ के लिये श्रम को मशीनों से प्रतिस्थापित किया जा सकता है। प्रतिस्थापित श्रमशक्ति को अन्य आर्थिक क्षेत्रों में रोज़गार योग्य बनाने हेतु पुनः कुशल बनाया जाना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न

प्रश्न. भारत में वस्त्र उद्योग के विकास हेतु कपास की कृषि के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

प्रश्न. भारत में कपास क्षेत्र में बाल श्रम के प्रचलन के क्या कारण हैं? कपास क्षेत्र के सतत् विकास के लिये बाल श्रम पर किस प्रकार अंकुश लगाया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में काली कपास मृदा की रचना निम्नलिखित में से किसके अपक्षयण से हुई है? (2021)

(a) भूरी वन मृदा
(b) विदरी (फिशर) ज्वालामुखीय चट्टान
(c) ग्रेनाइट और शिस्ट
(d) शेल और चूना-पत्थर

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित विशेषताएँ भारत के एक राज्य की विशिष्टताएँ हैंः (2011)

  1. उसका उत्तरी भाग शुष्क एवं अर्द्धशुष्क है।
  2. उसके मध्य भाग में कपास का उत्पादन होता है।
  3. उस राज्य में खाद्य फसलों की तुलना में नकदी फसलों की खेती अधिक होती है।

उपर्युक्त सभी विशिष्टताएँ निम्नलिखित में से किस एक राज्य में पाई जाती हैं?

(a) आंध्र प्रदेश
(b) गुजरात
(c) कर्नाटक
(d) तमिलनाडु

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में अत्यधिक विकेंद्रीकृत सूती वस्त्र उद्योग के लिये कारकों का विश्लेषण कीजिये। (2013)