नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


जैव विविधता और पर्यावरण

फॉस्फीन एक सुरक्षित और प्रभावी फ्यूमिगेंट

  • 12 Jun 2019
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, कीटों को नष्ट करने के लिये मिथाइल ब्रोमाइड (Methyl Bromide- MB) के स्थान पर फॉस्फीन का प्रयोग भी किया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि मिथाइल ब्रोमाइड एक ओज़ोन क्षयकारी पदार्थ (Ozone-Depleting Substance) है।

विस्तृत अध्ययन

  • राष्ट्रीय एकीकृत कीट प्रबंधन केंद्र (National Centre for Integrated Pest Management-NCIPM) और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) संस्थानों के वैज्ञानिकों ने चार अलग-अलग कृषि-जलवायु क्षेत्रों (Agro-Climatic Locations) में गेहूं और चावल जैसे अनाज पर अध्ययन किया।
  • अध्ययन के अनुसार ‘फॉस्फीन’ कीटों से सुरक्षा करने में 100 प्रतिशत प्रभावी है।
  • फॉस्फीन (गैसीय रूप में एक फ्यूमीगेंट/संगरोधी) को सामान्यतः अधःस्तरA सब्सट्रेट के रूप में एल्यूमीनियम फॉस्फेट (Aluminium Phosphate) से प्राप्त किया जाता है।

कृषि-जलवायु क्षेत्र

संसाधन विकास के लिये देश को कृषि-जलवायु विशेषताओं, विशेष रूप से तापमान और वर्षा सहित मृदा कोटि, जलवायु और जल संसाधन उपलब्धता के आधार पर 15 कृषि जलवायु क्षेत्रों में बाँटा गया है:

1. पश्चिमी हिमालय

2. पूर्वी हिमालय

3. गंगा का निचला मैदानी क्षेत्र

4. गंगा का मध्य मैदानी क्षेत्र

5. गंगा का उपरी मैदानी क्षेत्र

6. गंगा-पार (ट्रांस) मैदानी क्षेत्र

7. पूर्वी पठार तथा पर्वतीय क्षेत्र

8. मध्य पठार तथा पर्वतीय क्षेत्र

9. पश्चिमी पठार तथा पर्वतीय क्षेत्र

10. दक्षिणी पठार तथा पर्वतीय क्षेत्र

11. पूर्वी तटीय मैदानी क्षेत्र और पर्वतीय क्षेत्र

12. पश्चिमी तटीय मैदानी क्षेत्र और पश्चिमी घाट

13. गुजरात का मैदानी क्षेत्र और पर्वतीय क्षेत्र

14. पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (शुष्क प्रदेश) और पर्वतीय क्षेत्र

15. द्वीपीय क्षेत्र

फ्यूमीगेंट/संगरोधी (Fumigant)

  • फ्यूमीगेंट/संगरोधी संक्रामक रोग को रोकने के लिये की गई एक व्यवस्था है।
  • सामान्यतः इसका प्रयोग अनाजों जैसे- गेहूं, चावल की कीटों से रक्षा करने के लिये किया जाता है।

राष्ट्रीय एकीकृत कीट प्रबंधन केंद्र

(National Centre for Integrated Pest Management-NCIPM

  • इसकी स्थापना फरवरी,1988 में हुई। एकीकृत कीट प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र नई दिल्ली में स्थित है।
  • भारत के विभिन्न कृषि पारिस्थिकी क्षेत्रों की सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करना इसका मुख्य उद्देश्य है।
  • यहाँ कीटों (कीटों, रोगों, नेमाटोड, खरपतवार, कृन्तकों, पक्षियों आदि) से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने के लिये फसल उत्पादन और संरक्षण प्रणालियों पर विस्तृत अध्ययन किया जाता है।
  • यह अखिल भारतीय समन्वित फसल सुधार कार्यक्रमों के साथ प्रभावी सहयोग के लिये प्रयासरत है।

मिथाइल ब्रोमाइड

(Methyl Bromide- MB)

  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (Montreal Protocol) का हस्ताक्षरकर्त्ता देश होने के कारण भारत मिथाइल ब्रोमाइड और अन्य ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों (Ozone-Depleting Substances- ODS) का प्रयोग न करने के लिये प्रतिबद्ध है।
  • वर्तमान समय में फ्यूमिगेंट/धूमक (Fumigant) का उपयोग भारतीय बंदरगाहों पर दूसरे देशों से आयातित अनाज और दालों की कीटों से सुरक्षा करने के लिये किया जाता है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, फ्यूमिगेंट में शीतलक/रेफ्रिजरेंट क्लोरोफ्लोरोकार्बन (Refrigerant Chlorofluorocarbons- CFC) की तुलना में ओज़ोन क्षरण की क्षमता 60 गुना अधिक होती है। वैश्विक स्तर पर CFC का उपयोग प्रतिबंधित है।
  • दुनिया के 95% देशों ने मिथाइल ब्रोमाइड के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया है, केवल भारत और कुछ दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में ही इसके उपयोग की अनुमति है।
  • मिथाइल ब्रोमाइड का प्रयोग किये बिना खाद्य उत्पादों का निर्यात करने वाले देशों पर भारत द्वारा आर्थिक दंड अधिरोपित किया जाता है, हालाँकि कई द्विपक्षीय व्यापार समझौतों में यह विवाद का मुद्दा बना हुआ है।

फॉस्फीन का उपयोग

  • भारत ने घरेलू वेयरहाउसेज़ (Domestic Warehouses) में मिथाइल ब्रोमाइड के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया है, ऐसे में इसके स्थान पर फॉस्फीन का उपयोग (एक फ्यूमीगेंट के रूप में) किया जाता है।
  • भारत सरकार द्वारा इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने का मुख्य कारण अनाज में मिथाइल ब्रोमाइड के अवशेषों की उपस्थिति बने रहना है:
    • वेयरहाउसेज में भंडारित अनाज को हर तीन महीने में फ्यूमिगेट करना पड़ता है,
    • फॉस्फीन फ्यूमीगेंट जिसका कोई अवशिष्ट अनाजों में नहीं बचता, को मिथाइल ब्रोमाइड से अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिये।

ओजोन क्षयकारी पदार्थ

  • ये मानव निर्मित ऐसी गैसें हैं जो ओज़ोन परत को क्षति पहुँचाती हैं। ओज़ोन परत समताप मंडल (Stratosphere) में पाई जाती है। यह सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों की मात्रा को कम करती है। पराबैंगनी किरणों का मानव और पर्यावरण दोनों पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है, उदाहरण के लिये त्वचा कैंसर और मोतियाबिंद, पौधों की प्राकृतिक वृद्धि का बाधित होना और समुद्री पर्यावरण को नुकसान पहुँचना।
  • ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों में शामिल हैं:
    • क्लोरोफ्लोरोकार्बन (Chlorofluorocarbons-CFCs)
    • हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (Hydrochlorofluorocarbon-HCFCs)
    • हाइड्रोब्रोमोफ्लोरोकार्बन (Hydrobromoflurocarbons-HBFCs)
    • हैलोंस (Halons)
    • मिथाइल ब्रोमाइड (Methyl Bromide)
    • कार्बन टेट्राक्लोराइड (Carbon Tetrachloride)
    • मिथाइल क्लोरोफॉर्म (Methyl Chloroform)
  • इन पदार्थों का उपयोग वाणिज्यिक, घरेलू, वाहनों आदि में एयर कंडीशनर के रूप में, रेफ्रिजरेटर में शीतलक के रूप में, बिजली के उपकरणों में उनके कल- पुर्जों, औद्योगिक सॉल्वैंट्स, सफाई के लिये सॉल्वैंट्स (ड्राई क्लीनिंग सहित), एरोसोल स्प्रे प्रणोदक, आदि के रूप में किया गया है।

स्रोत- द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow