जैव विविधता और पर्यावरण
यूक्रेन युद्ध में वन विनाश
- 16 Oct 2024
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प्रिलिम्स के लिये:स्वियाती होरी राष्ट्रीय उद्यान , देवदार के जंगल , प्रजेवालस्की घोड़े , कार्बन कैप्चर , विश्व बैंक , मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड , सल्फर डाइऑक्साइड , क्लोरोफ्लोरोकार्बन , मृदा अपरदन , पोषक चक्र , ओरांगुटान , पर्यावरण संशोधन सम्मेलन (ENMOD) , जैवविविधता , संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) , वन प्रबंधन परिषद (FSC) , अमेज़न के मुंडुरुकु लोग , लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन (CITES) , जैविविविधता पर सम्मेलन , जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन , बॉन चैलेंज , पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक (2021-2030) । मेन्स के लिये:वनों और पर्यावरण पर युद्ध का प्रभाव। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, पूर्वी यूक्रेन के स्वियाती होरी राष्ट्रीय उद्यान में विस्फोट के कारण लगी आग से 80 वर्ष पुराने तीन हेक्टेयर देवदार के वृक्ष नष्ट हो गए।
यूक्रेन युद्ध से वन विनाश कैसे हुआ?
- व्यापक वन विनाश: पूर्वी यूक्रेन के चीड़ के जंगलों , जिनमें दुर्लभ चाक चीड़ भी शामिल है, को भारी क्षति पहुँची है,लुहांस्क (रूस के द्वारा अधिग्रहित क्षेत्र) क्षेत्र के लगभग 80% चीड़ के जंगल नष्ट हो गए हैं।
- यूक्रेन में लगभग 425,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र खदानों और अप्रयुक्त आयुध से प्रदूषित हो गया है ।
- वन्य जीवन पर प्रभाव: इस संघर्ष के कारण विशाल क्षेत्र में वन्यजीव पर्यावास नष्ट हो गए हैं , जिससे हिरण,बोअर, कठफोड़वा और लुप्तप्राय प्रेज़वाल्स्की घोड़े जैसी प्रजातियाँ प्रभावित हुई हैं ।
- पर्यावरणीय क्षति : युद्ध के कारण लगी वनाग्नि से 6.75 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ , जो आर्मेनिया के वार्षिक उत्सर्जन के बराबर है ।
- वृक्षों के विनाश के कारण वनों की कार्बन अवशोषण क्षमता नष्ट हो गई है, जिससे पर्यावरणीय क्षति में और वृद्धि हुई।
- मृदा और जल प्रदूषण: युद्ध ने यूक्रेन में मृदा और नदियों को जहरीला बना दिया है , जिससे दीर्घकालिक पर्यावरणीय संकट उत्पन्न हुए हैं।
- इससे भूमि निवास और पुनर्जनन के लिये अनुपयुक्त हो गई है।
- दीर्घकालिक परिणाम: विशेषज्ञों का अनुमान है कि बारूदी सुरंगों को हटाने के प्रयासों में 70 वर्ष लग सकते हैं , तथा इसके बाद वनों के पुनर्जनन में और भी अधिक समय लग सकता है।
- आर्थिक लागत : विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि वनों और प्राकृतिक संरक्षित क्षेत्रों (जिसमें आर्द्रभूमि भी शामिल है) को कुल क्षति 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है ।
- इसमें 3.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रत्यक्ष क्षति, 26.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की व्यापक आर्थिक और पर्यावरणीय लागत तथा 2.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का पुनर्वनीकरण लागत शामिल है।
वन विनाश के परिणाम क्या हैं?
- वैश्विक तापन : वनों की कटाई वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 11% के लिये ज़िम्मेदार है , जिसमें CO2 ,CH4 (मीथेन) , N2O (नाइट्रस ऑक्साइड) , SO2 (सल्फर डाइऑक्साइड) और क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) जैसी गैसें शामिल हैं।
- वर्ष 1990 के बाद से, बढ़ती वैश्विक जनसंख्या के भरण-पोषण हेतु कृषि, औद्योगिक उपयोग आदि के लिये परिवर्तन के कारण 420 मिलियन हेक्टेयर वन नष्ट हो चुके हैं ।
- जलवायु और वर्षा पर प्रभाव : वृक्ष वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से वायुमंडल में जल उत्सर्जित करते हैं, जिससे वर्षण होता है।
- वनों की कटाई से यह प्रक्रिया कम हो जाती है, जिससे वर्षा कम होती है और जल चक्र में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे जलवायु और कृषि पर दोहरे प्रभाव में वृद्धि होती है।
- स्वच्छ जल स्रोतों का ह्रास : विशेषज्ञों के अनुसार, वनों की कटाई में 1% की वृद्धि के परिणामस्वरूप कुओं और बहती जल धाराओं पर निर्भर ग्रामीण समुदायों में स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता में 0.93% की कमी आती है।
- संक्रामक रोगों में वृद्धि : वनों की कटाई से मलेरिया और डेंगू जैसी संक्रामक बीमारियों में वृद्धि होती है , क्योंकि यह पारिस्थितिक तंत्र को बाधित करती है और रोग पैदा करने वाले कीटाणुओं के प्रसार को बढ़ावा देती है।
- मृदा क्षरण: वनों के विनाश से मृदा क्षरण होता है, जिससे कृषि और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को और अधिक नुकसान पहुँचता है।
- वन मृदा अपरदन को रोकने, पोषक चक्र को बनाए रखने और जल संसाधनों के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं .
- जैवविविधता की हानि : वनों की कटाई लाखों वन्यजीवों, पादपों और की कीटों के आवास को नष्ट करने के लिये ज़िम्मेदार है , जिससे प्रजातियाँ सामूहिक विलुप्ति की कगार पर हैं ।
- अमेज़न में लगभग 10,000 प्रजातियाँ संकट में हैं, जिनमें 2,800 पशु प्रजातियाँ शामिल हैं ।
- विशेषकर पाम ऑयल उत्पादन ने ओरांगुटान जैसी प्रजातियों को विलुप्ति के कगार पर पहुँचा दिया है।
वन संरक्षण के लिये क्या पहल की जा सकती है?
- अंतर्राष्ट्रीय संधियों को सुदृढ़ बनाना: पर्यावरण संशोधन सम्मेलन (ENMOD) जैसी पहलों का समर्थन करना , जो पर्यावरणीय क्षरण को युद्ध की एक विधि के रूप में उपयोग करने पर प्रतिबंध लगाता है ।
- युद्ध अपराधों की तरह, शत्रुता के दौरान वृक्षों को जानबूझकर नष्ट करने पर भी अंतर्राष्ट्रीय कानून का विस्तार करके रोक लगायी जानी चाहिये।
- युद्ध-मुक्त संरक्षण क्षेत्र : संघर्ष क्षेत्रों में शांति पार्क या संरक्षण क्षेत्र स्थापित करना, जहाँ वनों और जैवविविधता को युद्ध के प्रत्यक्ष प्रभावों से संरक्षित किया जा सके।
- युद्धोत्तर वनरोपण: युद्ध के कारण वनों की क्षति वाले क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वनरोपण परियोजनाएँ क्रियान्वित करना।
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन इन प्रयासों के समन्वय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- युद्ध के दौरान संसाधनों के दोहन को सीमित करना : पर्यावरणीय क्षरण के माध्यम से युद्ध को वित्तपोषित होने से रोकने के लिये, कॉन्फ्लिक्ट डायमंड के व्यापार की तरह ही संघर्षरत लकड़ी के व्यापार पर भी निगरानी रखी जानी चाहिये तथा उसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिये।
- शून्य वनोन्मूलन नीतियाँ : "शून्य वनोन्मूलन" नीतियों को लागू करके, कंपनियाँ अपनी आपूर्ति शृंखलाओं को साफ कर सकती हैं , यह सुनिश्चित करते हुए कि लकड़ी, गोमांस, सोया, ताड़ के तेल और कागज जैसी वस्तुओं का उत्पादन ऐसे तरीकों से किया जाता है जो वनोन्मूलन को बढ़ावा न दें।
- तृतीय-पक्ष प्रमाणन: फॉरेस्ट स्टीवर्डशिप काउंसिल (FSC), एक तृतीय-पक्ष प्रमाणन निकाय, यह गारंटी देने में सहायक साधन हो सकता है कि उपयोग किया जाने वाला कोई भी शुद्ध फाइबर कानूनी, जिम्मेदारीपूर्ण और सामाजिक रूप से प्राप्त किया गया हो।
- फॉरेस्ट स्टीवर्डशिप काउंसिल (FSC) एक अंतर्राष्ट्रीय, गैर-सरकारी संगठन है जो लकड़ी प्रमाणन के माध्यम से विश्व के वनों के उत्तरदायित्वपूर्ण प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये समर्पित है ।
- स्थानीय निवासियों का समर्थन : वनों के संरक्षण में स्थानीय निवासियों का सहयोग महत्त्वपूर्ण है।
- उदाहरण के लिये, अमेज़न के मुंडुरुकु लोग स्थानीय वनों को कटाई और बांध निर्माण जैसी विनाशकारी परियोजनाओं से बचाने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
- सतत उपभोग विकल्प : दैनिक रूप से सोचे-समझे विकल्प, जैसे एकल-उपयोग पैकेजिंग से बचना तथा उत्तरदायित्वपूर्वक उत्पादित लकड़ी के उत्पाद का चयन करना, वनों की कटाई को कम करने में सहायता कर सकता है।
- वनों के संरक्षण के लिये पौधों पर आधारित आहार को कम करने या अपनाने को भी प्रोत्साहित किया जाता है।
- सरकारी नीतियाँ : लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन (CITES) , जैविविविधता पर अभिसमय औरजलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन जैसी संधियाँ विश्व स्तर पर वनों के संरक्षण में सहायता कर सकती हैं।
विभिन्न वैश्विक वनरोपण पहल क्या हैं?
- बॉन चैलेंज
- द ट्रिलियन ट्री
- पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक (2021-2030)
- ग्रेट ग्रीन वॉल
- वैश्विक वन वित्तपोषण सुविधा नेटवर्क
निष्कर्ष
यूक्रेन युद्ध ने वनों, वन्यजीवों और पर्यावरण के लिये संकट उत्पन्न किया है, जिससे वैश्विक तापन, पर्यावास और मृदा का क्षरण में वृद्धि हुई है । वनों केविनाश को संबोधित करने के लिये मजबूत अंतर्राष्ट्रीय संधियों, युद्ध के बाद वनीकरण, युद्ध-मुक्त संरक्षण क्षेत्र, शून्य वनोन्मूलन नीतियों, टिकाऊ उपभोग और वैश्विक स्तर पर वनों के संरक्षण करने के लिये स्थानीय समुदायों के समर्थन की आवश्यकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: वन पारिस्थितिकी तंत्र पर युद्धों के प्रभाव पर चर्चा कीजिये। ऐसे वनों के विनाश के दीर्घकालिक पर्यावरणीय परिणाम क्या हैं? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न: निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? UN-REDD+ प्रोग्राम की समुचित अभिकल्पना और प्रभावी कार्यान्वयन महत्त्वपूर्ण रूप से योगदान दे सकते हैं
नीचे दिये गए क्रूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न: 'वन कार्बन भागीदारी सुविधा (फॉरेस्ट कार्बन पार्टनरशिप फेसिलिटि)' के सन्दर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. बायोकार्बन फंड इनिशिएटिव फॉर सस्टेनेबल फॉरेस्ट लैंडस्केप्स (BioCarbon Fund Initiative for Sustainable Forest Landscapes)' का प्रबंधन निम्नलिखित में से कौन करता है? (a) एशिया विकास बैंक उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न: मरुस्थलीकरण के प्रक्रम की जलवायविक सीमाएँ नहीं होती हैं। उदाहरणों सहित औचित्य सिद्ध कीजिये। (2020) प्रश्न: पर्यटन की प्रोन्नति के कारण जम्मू और काश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के राज्य अपनी पारिस्थितिक वहन क्षमता की सीमाओं तक पहुँच रहे हैं ? समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2015) |