नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 05 Nov, 2024
  • 27 min read
प्रारंभिक परीक्षा

एशिया-प्रशांत जलवायु रिपोर्ट 2024

स्रोत: बीएस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में एशियाई विकास बैंक (ADB) ने एशिया-प्रशांत (APAC) जलवायु रिपोर्ट, 2024 जारी की, जिसमें एशिया-प्रशांत क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के गंभीर आर्थिक प्रभावों पर प्रकाश डाला गया।

एशिया-प्रशांत जलवायु रिपोर्ट 2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभाव: 

  • उच्च ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के तहत, एशिया प्रशांत क्षेत्र में वर्ष 2070 तक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 17% की कमी देखी जा सकती है।
    • उच्च GHG उत्सर्जन के तहत वर्ष 2100 तक यह आँकड़ा 41% तक बढ़ सकता है।
  • भारत में वर्ष 2070 तक GDP में 24.7% की गिरावट आ सकती है। बांग्लादेश में संभावित 30.5% की गिरावट है, जबकि वियतनाम में 30.2% की कमी और इंडोनेशिया में 26.8% की गिरावट देखी जा सकती है।

आर्थिक घाटे के मुख्य कारण: 

  • समुद्र स्तर में वृद्धि: वर्ष 2070 तक, समुद्र स्तर में वृद्धि के कारण 300 मिलियन लोगों को तटीय बाढ़ से खतरा होगा। वर्ष 2070 तक वार्षिक क्षति 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ सकती है।
  • श्रम उत्पादकता में कमी: श्रम उत्पादकता में कमी के कारण एशिया प्रशांत क्षेत्र में 4.9% GDP का नुकसान होने की उम्मीद है, लेकिन भारत में 11.6% तक नुकसान हो सकता है।
  • शीतलन की मांग: बढ़ते तापमान से क्षेत्रीय GDP में 3.3% की कमी आ सकती है, जबकि भारत के GDP में शीतलन आवश्यकताओं के कारण 5.1% की तीव्र गिरावट आ सकती है।

प्राकृतिक आपदाओं पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: 

  • नदी में बाढ़: वर्ष 2070 तक, वार्षिक नदी बाढ़ से एशिया प्रशांत क्षेत्र में 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो सकता है, जिससे 110 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित होंगे।
    • भारत के अनुमानित नुकसान में 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की आवासीय क्षति और 700 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की वाणिज्यिक क्षति शामिल है।
  • तूफान और वर्षा: उष्णकटिबंधीय तूफानों तथा वर्षा की तीव्रता में वृद्धि से बाढ़ एवं भूस्खलन की स्थिति खराब होने की आशंका है, विशेषकर भारत-चीन सीमा जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में, जहाँ गंभीर गर्मी के कारण भूस्खलन में 30-70% की वृद्धि हो सकती है।
  • वनों और पारिस्थितिकी तंत्रों के लिये निहितार्थ: अनुमान है कि उच्च उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2070 तक एशिया प्रशांत क्षेत्र में वन उत्पादकता में 10-30% की कमी आएगी।
    • भारत को वियतनाम और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ-साथ 25% से अधिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है, जबकि चीन तथा मध्य एशिया जैसे क्षेत्रों में 5% से कम नुकसान हो सकता है।

सुधार के लिये आवश्यक कदम: 

  • नेट-ज़ीरो लक्ष्य और अंतराल: एशिया की 44 अर्थव्यवस्थाओं में से 36 ने नेट-ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य निर्धारित किये हैं। हालाँकि केवल चार देशों ने इन लक्ष्यों को कानूनी रूप से सुनिश्चित किया है और अधिकांश के पास विस्तृत योजनाएँ नहीं हैं।
    • भारत तथा चीन ने वर्ष 2070 और 2060 तक के लक्ष्य निर्धारित किये हैं, जो आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) की कई अर्थव्यवस्थाओं से पीछे है, जिनमें से 38 में से 32 ने नेट-जीरो लक्ष्य निर्धारित किये हैं और 23 कानूनी रूप से प्रतिबद्ध हैं तथा कई देशों ने वर्ष 2050 तक का लक्ष्य निर्धारित किया है।
    • अपनी जलवायु महत्त्वाकांक्षाओं को बढ़ाने के लिये, विकासशील एशिया को स्पष्ट नीतियों और बढ़े हुए वित्तपोषण समर्थन की आवश्यकता है, जिसमें ADB जैसी संस्थाएँ इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करने के लिये तैयार हैं।
  • जलवायु वित्त: इस क्षेत्र को जलवायु अनुकूलन के लिये प्रतिवर्ष 102-431 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है, जो वर्ष 2021 से 2022 तक के 34 बिलियन अमेरिकी डॉलर से काफी ज़्यादा है।
    • इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिये अधिक निजी निवेश और उन्नत नीतियों की आवश्यकता है। जलवायु जोखिमों की बेहतर पहचान तथा विनियामक सुधारों से निजी जलवायु निवेश को आकर्षित करने में सहायता मिल सकती है।
    • रिपोर्ट में अनुकूलन प्रतिक्रियाओं में तेज़ी लाने तथा अनुकूलन-केंद्रित जलवायु वित्त को बढ़ाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: रिपोर्ट में इस क्षेत्र की नवीकरणीय ऊर्जा का लाभ उठाकर शुद्ध-शून्य संक्रमण की क्षमता को रेखांकित किया गया है।
    • घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय कार्बन बाज़ारों को अपनाना जलवायु कार्रवाई के लिये लागत प्रभावी साधन के रूप में रेखांकित किया गया है।

एशियाई विकास बैंक (ADB

  • ADB एक क्षेत्रीय विकास बैंक है जिसकी स्थापना वर्ष 1966 में बुनियादी अवसरंचना, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और जलवायु परिवर्तन से संबंधित परियोजनाओं के लिये ऋण, तकनीकी सहायता एवं अनुदान प्रदान करके एशिया में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और गरीबी को कम करने के लिये की गई थी। 
    • ADB के 69 शेयरधारक सदस्य हैं, जिनमें से 49 एशिया और प्रशांत क्षेत्र से हैं।  भारत ADB का संस्थापक सदस्य और बैंक का चौथा सबसे बड़ा शेयरधारक है तथा वर्ष 2010 से इसका सबसे बड़ा कर्ज़दार है।
  • यह अत्यधिक गरीबी उन्मूलन के अपने प्रयासों को जारी रखते हुए समृद्ध, समावेशी, लचीले और सतत् एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र को प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है। 
  • मुख्यालय: मनीला, फिलीपींस।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. सार्वभौम अवसंरचना सुविधा (ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर फैसिलिटी) (2017) 

(a) एशिया में अवसंरचना के उन्नयन के लिये ASEAN का उपक्रमण है, जो एशियाई विकास बैंक द्वारा दिये गए साख (क्रेडिट) से वित्तपोषित है।
(b) गैर-सरकारी क्षेत्रक और संस्थागत निवेशकों की पूंजी का संग्रहण करने के लिये विश्व बैंक का सहयोग है, जो जटिल अवसंरचना सरकारी-गैर-सरकारी भागीदारियों (PPP) की तैयारी तथा संरचना-निर्माण को सुकर बनाता है।
(c) OECD के साथ कार्य करने वाले विश्व के प्रमुख बैंकों का सहयोग है, जो उन अवसंरचना परियोजनाओं को विस्तारित करने पर केंद्रित है जिनमें गैर-सरकारी विनिवेश संग्रहीत करने की क्षमता है।
(d) UNCTAD द्वारा वित्तपोषित उपक्रमण है जो विश्व में अवसंरचना के विकास को वित्तपोषित करने और सुकर बनाने का प्रयास करता है।

उत्तर: (b)


प्रारंभिक परीक्षा

राज्य स्थापना दिवस

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक और केरल राज्यों को उनके स्थापना दिवस (1 नवंबर) पर शुभकामनाएँ दीं।

  • उन्होंने सांस्कृतिक विरासत, विकास, संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों सहित विभिन्न क्षेत्रों में देश के लिये प्रत्येक राज्य के योगदान पर प्रकाश डाला।

राज्य का नाम

गठन का वर्ष

राज्यों का विभाजन 

राज्य के गठन हेतु विलय किये गए क्षेत्र

मध्य प्रदेश

1956

– 


पूर्व मध्यभारत, विंध्य प्रदेश, भोपाल राज्य, मध्य प्रांत और बरार, संयुक्त प्रांत तथा बॉम्बे राज्य के कुछ हिस्से

कर्नाटक

1956

दक्षिण भारत का कन्नड़ भाषी क्षेत्र (पूर्व में मैसूर के नाम से जाने जाते थे)

केरल

1956

– 

त्रावणकोर-कोचीन को दक्षिण केनरा बैंक के मालाबार और कासरगोड तालुक के साथ एकीकृत किया गया

हरियाणा 

1966

पंजाब

छत्तीसगढ़

2000

मध्य प्रदेश (16 छत्तीसगढ़ी भाषी ज़िलों के साथ)

राज्य के गठन से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • अनुच्छेद 2: यह संसद को 'भारत संघ में किसी क्षेत्र को शामिल करने या ऐसे नियमों और शर्तों पर नए राज्यों की स्थापना करने का अधिकार देता है, जो वह उचित समझती है'
  • अनुच्छेद 3: यह भारत संघ के मौजूदा राज्यों में परिवर्तन से संबंधित है। यह घटक राज्यों के क्षेत्रों के बीच आंतरिक पुनर्समायोजन से संबंधित है। यह संसद को यह अधिकार देता है कि -
    • किसी राज्य से भू-भाग अलग करके या दो या अधिक राज्यों को मिलाकर एक नया राज्य बनाना, उदाहरणार्थ, आंध्र प्रदेश से तेलंगाना और बिहार से झारखंड का गठन।
    • किसी राज्य के क्षेत्र और सीमा या नाम में वृद्धि, कमी, परिवर्तन करना। उदाहरणतःउत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के क्षेत्र और नाम में परिवर्तन।
  • हालाँकि इस संबंध में दो शर्तें हैं:
    • इसके लिये कोई विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व सिफारिश से ही संसद में पेश किया जा सकता है ;
    • राष्ट्रपति को एक निश्चित अवधि के भीतर इसे राज्य विधानमंडल के पास अपने विचार व्यक्त करने के लिये भेजना होता है (हालाँकि राष्ट्रपति या संसद राज्य विधानमंडल के विचारों से बाध्य नहीं हैं)। 
      • केंद्रशासित प्रदेश के मामले में कोई संदर्भ देने की आवश्यकता नहीं है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न: वर्ष 1953 में जब आंध्र प्रदेश को अलग राज्य बनाया गया था तब उसकी राजधानी किसे बनाया गया था? (2008)

(a) गुंटूर
(b) कुर्नूल
(c) नेल्लोर
(d) वारंगल

उत्तर: (b)


रैपिड फायर

सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (CRS) मोबाइल एप्लीकेशन

स्रोत:TH

केंद्रीय गृह मंत्री ने शासन के साथ प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने के लिये सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम(CRS) मोबाइल एप्लिकेशन लॉन्च किया।

  • इसे भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त (RGCCI) द्वारा विकसित किया गया है, जो भारत में दशकीय जनगणना आयोजित करने के लिये ज़िम्मेदार है।
  • यह एप्लिकेशन जन्म एवं मृत्यु के पंजीकरण की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करेगा, जिससे नागरिकों को किसी भी समय, कहीं से भी और अपने राज्य की आधिकारिक भाषा में इन महत्त्वपूर्ण घटनाओं को पंजीकृत करने की अनुमति देकर परेशानी मुक्त अनुभव सुनिश्चित होगा।

सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (CRS):

और पढ़ें: जन्म पंजीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय का नोटिस


प्रारंभिक परीक्षा

IUCN फर्स्ट ग्लोबल ट्री असेसमेंट

स्रोत: डाउन टू अर्थ

हाल ही में संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN रेड लिस्ट के अद्यतन के भाग के रूप में फर्स्ट ग्लोबल ट्री असेसमेंट प्रकाशित किया गया, जिसके निष्कर्षों की घोषणा कोलंबिया के कैली में जैविक विविधता पर कन्वेंशन (CBD COP16) में की गई।

COP16

  • संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (CBD) के पक्षकारों का 2024 संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (COP) हाल ही में कोलंबिया के कैली में आयोजित किया गया था, जिसका उद्देश्य यह आकलन करना था कि देश वर्ष 2030 तक ग्रह के 30% भूमि और समुद्री क्षेत्रों की रक्षा करने की वर्ष 2022 मॉन्ट्रियल प्रतिबद्धता की दिशा में किस प्रकार आगे बढ़ रहे हैं।

ग्लोबल ट्री असेसमेंट रिपोर्ट क्या है?

  • परिचय:
    • उद्देश्य: इसका उद्देश्य आईयूसीएन रेड लिस्ट में शामिल करने के लिये वैश्विक स्तर पर सभी वृक्ष प्रजातियों का मूल्यांकन करना  तथा निर्णय लेने हेतु संरक्षण संबंधी जानकारी में सुधार करना है।
    • लॉन्‍च: वर्ष 2015 में शुरू किया गया GTA, विलुप्त होने के सबसे अधिक खतरे वाली प्रजातियों के लिये संरक्षण कार्रवाई, अनुसंधान और वित्तपोषण को प्राथमिकता देने में मदद करता है ।
    • साझेदारियाँ और सहयोग: यह विश्व भर में 60 से अधिक वनस्पति संगठनों, 25 IUCN समूहों और अनेक वृक्ष विशेषज्ञों के साथ सहयोग करता है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:

  • संकट में प्रजातियाँ:
    • विश्लेषण की गई 47,282 वृक्ष प्रजातियों में से 16,425 विलुप्त होने के खतरे में हैं। मैगनोलिया, ओक, मेपल और एबोनी जैसी प्रतिष्ठित प्रजातियाँ सबसे अधिक संकट में हैं।
      • संकटग्रस्त वृक्ष प्रजातियों की संख्या संकटग्रस्त पक्षियों, स्तनधारियों, सरीसृपों और उभयचरों की संयुक्त संख्या से भी अधिक है तथा 192 देशों में वृक्ष खतरे में हैं।
    • केरल के दक्षिण पश्चिमी घाट में बुकानानिया बारबेरी पाया जाता है, जो एक छोटा वृक्ष है जिसे वर्ष 2018 से IUCN रेड लिस्ट में गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है । 
      • इस प्रजाति को बचाने के लिये तत्काल संरक्षण पहल की गई है, जिसमें अंकुरण परीक्षण भी शामिल है, जिससे बीजों की उच्च व्यवहार्यता का पता चला है।

मुख्य संकट:

  • वनों की कटाई: फसलों और पशुधन उत्पादन के लिये भूमि की सफाई, विशेष रूप से दक्षिण अमेरिका जैसे उष्णकटिबंधीय तथा वन-समृद्ध क्षेत्रों में, वृक्षों के विलुप्त होने का प्रमुख कारण है।
  • कटाई: लकड़ी और अन्य वन उत्पादों के लिये कई वृक्ष प्रजातियों का दोहन किया जाता है, जिससे प्राकृतिक आबादी पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
    • 5,000 से अधिक वृक्ष प्रजातियों का उपयोग इमारती लकड़ी के लिये तथा 2,000 से अधिक प्रजातियों का उपयोग भोजन, दवा और ईंधन हेतु किया जाता है।
  • आक्रामक प्रजातियाँ, कीट और रोग: गैर-देशी प्रजातियाँ और रोगाणु, विशेष रूप से समशीतोष्ण क्षेत्रों में, वृक्षों के स्वास्थ्य को तेज़ी से प्रभावित कर रहे हैं।
  • जलवायु परिवर्तन: तापमान में वृद्धि, समुद्र का बढ़ता स्तरतथा  बार-बार आने वाले और तीव्र तूफान, विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय तथा द्वीपीय पारिस्थितिकी तंत्रों में महत्त्वपूर्ण जोखिम उत्पन्न करते हैं।

संरक्षण के प्रयास:

  • जुआन फर्नांडीज द्वीप समूह (Juan Fernández Islands), क्यूबा, ​​मेडागास्कर और फिजी जैसे क्षेत्रों में की गई पहलों से लुप्तप्राय वृक्ष प्रजातियों को सफलतापूर्वक संरक्षित किया गया है
  • घाना, कोलंबिया, चिली और केन्या जैसे देशों ने वृक्ष संरक्षण पर केंद्रित राष्ट्रीय रणनीतियाँ विकसित की हैं।
  • गैबॉन ने प्रमुख संरक्षण क्षेत्रों को विशेष रूप से वृक्षों के लिये नामित किया है, जो जैव विविधता संरक्षण के प्रति सक्रिय दृष्टिकोण को दर्शाता है।

IUCN रेड लिस्ट क्या है?

  • IUCN रेड लिस्ट जानवरों, कवक और पौधों की प्रजातियों के बीच विलुप्त होने के जोखिम का आकलन करने के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण वैश्विक संसाधन है।
  • IUCN रेड लिस्ट श्रेणियाँ मूल्यांकन की गई प्रजातियों के विलुप्त होने के जोखिम को परिभाषित करती हैं। नौ श्रेणियाँ NE (मूल्यांकित नहीं) से EX (विलुप्त) तक फैली हुई हैं। गंभीर रूप से लुप्तप्राय (CR), लुप्तप्राय (EN) और कमज़ोर (VU) प्रजातियों को विलुप्त होने का खतरा माना जाता है।
  • IUCN रेड लिस्ट में प्रजातियों की IUCN ग्रीन स्टेटस शामिल है, जो प्रजातियों की आबादी की पुनर्प्राप्ति का आकलन करती है और उनके संरक्षण की सफलता को मापती है।
    • ग्रीन स्टेटस ऑफ स्पीशीज़ की आठ श्रेणियाँ हैं जैसे: जंगल में विलुप्त, गंभीर रूप से समाप्त, बड़े पैमाने पर समाप्त, मध्यम रूप से समाप्त, थोड़ा समाप्त, पूरी तरह से पुनः प्राप्त, गैर समाप्त और अनिश्चित।
  • ग्रीन स्टेटस ऑफ स्पीशीज़ यह मूल्यांकन करती हैं कि संरक्षण कार्यों ने वर्तमान रेड लिस्ट स्थिति को कैसे प्रभावित किया है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न: निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2019)

वन्य प्राणी प्राकृतिक रूप से कहाँ पाए जाते हैं

  1. नीले मीनपक्ष वाली महाशीर : कावेरी नदी
  2. इरावदी डॉल्फिन : चंबल नदी
  3. मोरचाभ (रस्टी)-चित्तीदार बिल्ली : पूर्वी घाट

उपर्युक्त में से कौन-से युग्म सही सुमेलित हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सा वनस्पतियों के संरक्षण की इन-सीटू विधि के लिये एक साइट नहीं है? (2011)

(a) बायोस्फीयर रिज़र्व 
(b) बॉटनिकल गार्डन
(c) राष्ट्रीय उद्यान 
(d) वन्यजीव अभयारण्य

उत्तर: (b)


रैपिड फायर

केंद्रीकृत परिसंपत्ति परिसमापन नीलामी मंच

स्रोत: बीएस

भारतीय दिवाला एवं शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) और भारतीय बैंक संघ (IBA) दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) के तहत परिसंपत्तियों की नीलामी हेतु एक केंद्रीकृत मंच तैयार करने की योजना बना रहे हैं।

  • परिसंपत्तियों की नीलामी eBKray प्लेटफॉर्म के माध्यम से की जाएगी, जो पिछले पाँच वर्षों से SARFAESI अधिनियम, 2002 के अंतर्गत बंधक परिसंपत्तियों की नीलामी का संचालन कर रहा है।
    • eBKray प्लेटफॉर्म का प्रबंधन PSB अलायंस प्राइवेट लिमिटेड द्वारा किया जाता है, जो 12 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एक संघ है।
  • यह प्लेटफॉर्म परिसमापन मामलों में सभी परिसंपत्तियों के लिये एकल सूचीकरण बिंदु के रूप में कार्य करेगा, जिसके लिये परिसमापकों से विस्तृत परिसंपत्ति जानकारी की आवश्यकता होगी।
  • IBBI एक वैधानिक निकाय है, जिसकी स्थापना IBC 2016 के तहत भारत में दिवाला और शोधन अक्षमता प्रक्रियाओं की देखरेख तथा विनियमन के लिये की गई है।
  • IBA भारत में बैंकिंग क्षेत्र का एक प्रतिनिधि निकाय है, जिसकी स्थापना वर्ष 1946 में की गई थी
  • IBC भारत में वर्ष 2016 में लागू किया गया एक विधायी ढाँचा है, जिसका उद्देश्य व्यक्तियों, साझेदारी फर्मों तथा कंपनियों के लिये दिवाला और शोधन अक्षमता की प्रक्रिया को सरल बनाना है।

और पढ़ें: दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता के सात वर्ष


रैपिड फायर

विवर्तन सीमा

स्रोत: द हिंदू

प्रकाश का उपयोग करने वाले एक ऑप्टिकल उपकरण की रिज़ॉल्यूशन सीमा विवर्तन सीमा द्वारा बाधित होती है, यह एक मूलभूत सीमा है जो एक निश्चित बिंदु के बाद प्रगति को रोक देती है।

  • विवर्तन सीमा एक ऑप्टिकल प्रणाली की क्षमता पर एक मौलिक भौतिक सीमा है। 
  • विवर्तन सीमा के कारण, वैज्ञानिक प्रकाश सूक्ष्मदर्शी का उपयोग कोशिकाओं को देखने के लिये कर सकते थे, लेकिन उनके अंदर के प्रोटीन या उन पर हमला करने वाले वायरस को नहीं देख सकते थे
  • हालाँकि ऑप्टिकल माइक्रोस्कोप कोशिकाओं के अंदर और परमाणुओं जैसी छोटी चीज़ों को भी देख सकते हैं। इस तकनीक को सुपर-रिज़ॉल्यूशन माइक्रोस्कोपी कहा जाता है और यह विवर्तन सीमा से बंधा नहीं है।
    • माइक्रोस्कोप में कोशिकाओं को प्रकाशित करने के लिये प्रकाश का उपयोग करने के बजाय, फ्लोरोफोर नामक विशेष अणुओं को कोशिकाओं से जोड़ा गया था। 
    • विकिरण के संपर्क में आने पर ये अणु चमकने लगे, जिससे सूक्ष्मदर्शी को अपने आस-पास के वातावरण का भी पता लगाने में मदद मिली
    • किसी सूक्ष्मदर्शी की दूर स्थित दो वस्तुओं के बीच अंतर करने की क्षमता को उसकी विभेदन क्षमता कहते हैं; उच्च विभेदन के साथ बेहतर प्रदर्शन प्राप्त होता है।
  • वर्ष 2014 का रसायन विज्ञान नोबेल पुरस्कार एरिक बेट्ज़िग, स्टीफन डब्ल्यू. हेल और विलियम ई. मोर्नर को सुपर-रिज़ॉल्यूशन फ्लोरोसेंस माइक्रोस्कोपी के विकास के लिये संयुक्त रूप से प्रदान किया गया ।

और पढ़ें: ग्लो स्कोप


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow