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एडिटोरियल

  • 29 May, 2024
  • 18 min read
शासन व्यवस्था

सतत् शहरीकरण की ओर

यह एडिटोरियल 28/05/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Fires in Rajkot and Delhi: To get safer cities, we must demand them” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के शहरी परिदृश्य से संबंद्ध चुनौतियों और शहरी परिदृश्य को पुनर्जीवित करने के लिये आवश्यक रणनीतियों की चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

शहरों का विस्तार एवं विकास, नगर निगम, 74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992, विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2023, नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभाव, शहरी आग, शहरी बाढ़, स्मार्ट शहर, AMRUT मिशन, स्वच्छ भारत मिशन-शहरी, प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी, आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

भारत में शहरों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ, भारत में शहरी शासन की रूपरेखा।

भारत का शहरी परिदृश्य (Urban Landscape) परिवर्तनकारी विकास के दौर से गुज़र रहा है। देश भर के शहर आर्थिक गतिशीलता से प्रेरित होकर तेज़ी से विकास कर रहे हैं। हालाँकि, इस तीव्र विस्तार ने शहरी स्थानों (urban spaces) की गुणवत्ता एवं संवहनीयता के बारे में एक महत्त्वपूर्ण विमर्श को जन्म दिया है।

घाटकोपर और पुणे में विशाल होर्डिंग्स का गिरना, डोंबिवली में एक रासायनिक कारखाने के बॉयलर में विस्फोट, राजकोट के गेम ज़ोन में आग लगना तथा नई दिल्ली के एक बाल चिकित्सा अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडर विस्फोट जैसी हाल की घटनाएँ सुरक्षा संबंधी मौजूदा चिंताओं को उजागर करती हैं।

  • इस परिदृश्य में, भारत में शहरी नियोजन के लिये एक ऐसे सूक्ष्म दृष्टिकोण को अपनाना समय की मांग है जो आर्थिक विकास, सुरक्षा और नागरिकों के हित के बीच संतुलन स्थापित करता हो।

भारत में शहरी शासन से संबंधित ढाँचा

  • संस्थाएँ:
    • आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA): यह राष्ट्रीय नीतियाँ तैयार करता है और शहरी विकास से संबंधित केंद्र सरकार की योजनाओं की देखरेख करता है।
    • शहरी विकास से संबंधित राज्य के विभाग: ये केंद्र सरकार की नीतियों को लागू करने और राज्य-विशिष्ट शहरी विकास विनियमनों के निर्माण में भूमिका निभाते हैं।
    • नगर निगम/नगरपालिकाएँ: वे अपने क्षेत्राधिकार में स्थानीय स्तर के योजना-निर्माण, विकास नियंत्रण और सेवा वितरण के लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • शहरी विकास प्राधिकरण (UDAs): ये विशिष्ट शहरी क्षेत्रों या परियोजनाओं के विकास के लिये स्थापित विशेष एजेंसियाँ हैं।
  • संवैधानिक और विधिक ढाँचा:
    • भारतीय संविधान (अनुच्छेद 243Q, 243W): यह स्थानीय सरकारों (नगर निकायों) को उनके क्षेत्राधिकार में शहरी नियोजन और विकास के लिये सशक्त बनाता है।
    • 74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992: इसके माध्यम से शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया और संविधान में भाग IX-A को शामिल किया गया।

भारत में शहरों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ 

  • अपर्याप्त आवास और मलिन बस्तियों का प्रसार: आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2012-27 के बीच भारत में शहरी आवास की कमी लगभग 18.78 मिलियन इकाई थी, जहाँ 65 मिलियन से अधिक लोग झुग्गी-झोपड़ियों या अनौपचारिक बस्तियों में रह रहे थे।
  • वायु प्रदूषण और पर्यावरण क्षरण: भारत के शहरी क्षेत्र गंभीर वायु प्रदूषण स्तर से जूझ रहे हैं, जिसका मुख्य कारण वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन, औद्योगिक गतिविधियाँ और निर्माण परियोजनाएँ हैं।
  • यातायात भीड़ और परिवहन संबंधी चुनौतियाँ: तीव्र शहरीकरण और निजी वाहनों के बढ़ते चलन के कारण यातायात भीड़ बढ़ गई है, यात्रा समय की वृद्धि हुई है और उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
    • उदाहरण: बेंगलुरु में व्यस्त समय के दौरान यातायात की औसत गति लगभग 18 किमी/घंटा आकलित की गई, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादकता में कमी और ईंधन की बर्बादी के कारण महत्त्वपूर्ण आर्थिक हानि होती है।
  • अपर्याप्त ठोस अपशिष्ट प्रबंधन: भारतीय शहर ठोस अपशिष्ट के प्रबंधन के मामले में संघर्ष कर रहे हैं, जिसके कारण कूड़े का ढेर लग जाता है और स्वास्थ्य संबंधी खतरे उत्पन्न होते हैं।
    • उदाहरण: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, भारतीय शहरों में प्रतिवर्ष लगभग 62 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 20% का ही उपयुक्त तरीके से प्रसंस्करण या उपचार किया जाता है।
  • साइबर सुरक्षा और प्रत्यास्थी डिजिटल अवसंरचना संबंधी मुद्दे: प्रमुख शहरी स्थानों में बढ़ते डिजिटलीकरण के साथ डिजिटल खतरे बढ़ रहे हैं और प्रत्यास्थी डिजिटल अवसंरचना का निर्माण एक गंभीर मुद्दा है।
    • AIIMS, दिल्ली पर वर्ष 2022 में हुआ रैनसमवेयर हमला शहरी डिजिटल प्रणालियों की भेद्यता को उजागर करता है।
  • जल की कमी और अपर्याप्त जल प्रबंधन: कई शहरों को तीव्र शहरीकरण, जनसंख्या वृद्धि और घटते भूजल स्तर के कारण जल की गंभीर कमी का सामना करना पड़ रहा है।
    • उदाहरण: चेन्नई को वर्ष 2019 में गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ा, जहाँ निवासियों को जल टैंकरों और विलवणीकरण संयंत्रों पर निर्भर रहना पड़ा। बेंगलुरु में हाल ही में सामने आया जल संकट भी इस मुद्दे की गंभीरता को उजागर करता है।
  • ‘अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट’ और हरित स्थानों की कमी: तीव्र शहरीकरण और हरित स्थानों (Green Spaces) की कमी के कारण ‘अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट’ (Urban Heat Island Effect) उत्पन्न हुआ है, जिससे तापमान और ऊर्जा की मांग में वृद्धि हुई है।
    • उदाहरण: दिल्ली में चरम हीट वेव के कारण शहर की बिजली मांग मई 2024 में 8,000 मेगावाट से अधिक के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई।
  • आग की घटनाओं में वृद्धि: उचित अग्नि सुरक्षा अवसंरचना और जागरूकता की कमी के कारण शहर में आग की घटनाओं में वृद्धि हुई है।
    • शहरी क्षेत्रों का उच्च घनत्व और संकीर्ण पहुँच मार्ग आग संबंधी खतरे को बढ़ा देते हैं, जिससे आपातकालीन सेवाओं के लिये प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देना कठिन हो जाता है।
  • शहरी बाढ़ और जल निकासी अवसंरचना: अपर्याप्त वर्षा जल निकासी प्रणालियों और प्राकृतिक जल निकायों के अतिक्रमण के कारण मानसून मौसम में शहरी क्षेत्रों में प्रायः बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है। 
    • भारत ने हाल के वर्षों में बाढ़ की बड़ी घटनाओं का सामना किया है, विशेष रूप से हैदराबाद (2020 एवं 2021), चेन्नई (नवंबर 2021), बेंगलुरु एवं अहमदाबाद (2022), दिल्ली के कुछ भागों (जुलाई 2023) और नागपुर (सितंबर 2023) में, जहाँ कई निवासियों को क्षेत्र से बाहर निकलने के लिये विवश होना पड़ा।

शहरी क्षेत्रों से संबंधित प्रमुख सरकारी पहलें

भारत के शहरी परिदृश्य को पुनर्जीवित करने के लिये आवश्यक रणनीतियाँ:

  • वितरित अपशिष्ट-से-ऊर्जा प्रणालियाँ (Distributed Waste-to-Energy Systems) और विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियाँ (Decentralised Waste Management Systems): समुदाय-आधारित अपशिष्ट प्रबंधन पहलों को प्रोत्साहित करना और अपशिष्ट संग्रहण, छँटाई एवं प्रसंस्करण के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना।
    • ऐसे छोटे स्तर के अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्रों के विकास को प्रोत्साहन देना जो नगरपालिका ठोस अपशिष्ट को बायोगैस या बिजली जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तित करते हैं।
  • स्मार्ट जल प्रबंधन और पुनर्चक्रण अवसंरचना: लीक का पता लगाने, जल वितरण को इष्टतम करने और कुशल जल उपयोग को बढ़ावा देने के लिये स्मार्ट वाटर मीटरिंग एवं निगरानी प्रणालियों की तैनाती करना।
    • इंडस्ट्रियल कूलिंग, लैंडस्कैपिंग एवं फ्लशिंग जैसे गैर-पेय प्रयोजनों के लिये उपचारित अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण एवं पुनः उपयोग के लिये उन्नत अपशिष्ट जल उपचार और पुनर्चक्रण सुविधाओं में निवेश करना।
  • ‘अर्बन डिजिटल ट्विन्स’ (Urban Digital Twins) और ‘प्रीडिक्टिव मॉडलिंग’ (Predictive Modeling): शहरी क्षेत्रों के डिजिटल ट्विन्स विकसित करना, जो शहरों की वर्चुअल प्रतिकृतियाँ हैं, ताकि विभिन्न परिदृश्यों, अवसंरचना परियोजनाओं और पर्यावरणीय प्रभावों का सिमुलेशन एवं विश्लेषण किया जा सके।
    • रियल-टाइम डेटा और सिमुलेशन पर आधारित शहरी नियोजन, संसाधन आवंटन और अवसंरचना प्रबंधन को इष्टतम करने के लिये प्रीडिक्टिव मॉडलिंग तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का लाभ उठाना।
    • डेटा-संचालित निर्णय-प्रक्रिया, नागरिक सहभागिता और सहभागितापूर्ण शहरी नियोजन प्रक्रियाओं को सक्षम करने के लिये शहरी शासन मंचों के साथ डिजिटल ट्विन्स को एकीकृत करना।
  • ‘स्पंज सिटी’ अवधारणा और पारगम्य शहरी भूदृश्य: ‘स्पंज सिटी’ (Sponge City) अवधारणा को क्रियान्वित करना, जिसमें शहरी परिदृश्य  में पारगम्य फुटपाथ, ग्रीन रूफ, वर्षा जल उद्यान और अन्य जल-अवशोषित सुविधाओं का एकीकरण करना शामिल है।
    • जल प्रतिधारण को बढ़ाने और बाढ़ शमन के लिये शहरी क्षेत्रों में ब्लू-ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर के माध्यम से प्राकृतिक जल निकायों, आर्द्रभूमियों और बाढ़ मैदानों के संरक्षण एवं पुनर्बहाली को प्रोत्साहित करना।
    • शहरी स्थापत्य एवं अवसंरचना में बायोफिलिक डिज़ाइन सिद्धांतों (biophilic design principles) को शामिल करना जहाँ निर्मित वातावरण में प्रकृति को शामिल किया जाता है। सिंगापुर का ज्वेल चांगी हवाई अड्डा बायोफिलिक डिज़ाइन का एक उल्लेखनीय उदाहरण है।
  • स्मार्ट सिटी अवसंरचना: दक्षता में सुधार, कार्बन उत्सर्जन में कमी और नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि के लिये कुशल यातायात प्रबंधन प्रणालियों, स्मार्ट ग्रिडों एवं IoT-सक्षम सार्वजनिक सेवाओं जैसी स्मार्ट सिटी प्रौद्योगिकियों का लोकतंत्रीकरण करना।
  • रियल-टाइम अग्नि जोखिम मूल्यांकन और चेतावनी प्रणाली: उच्च जोखिमपूर्ण क्षेत्रों, विशेष रूप से सार्वजनिक भवनों में वायु की गुणवत्ता, तापमान एवं आर्द्रता की निगरानी के लिये सेंसर की तैनाती, जिन्हें मौसम और स्मार्ट मीटर डेटा के साथ एकीकृत किया जाए।
    • अग्नि जोखिम मूल्यांकन के लिये AI का उपयोग करना जहाँ जोखिम की स्थिति में सार्वजनिक संबोधन प्रणालियों एवं मोबाइल अलर्ट के माध्यम से निवासियों, अग्निशमन कर्मियों और प्राधिकारियों को चेतावनी जारी की जा सकती है।
  • साइबर सुरक्षा और डिजिटल अवसंरचना संबंधी प्रत्यास्थता: महत्त्वपूर्ण शहरी डिजिटल अवसंरचना को साइबर खतरों से बचाने के लिये सुदृढ़ साइबर सुरक्षा उपायों (उन्नत एन्क्रिप्शन, अभिगम नियंत्रण और रियल-टाइम खतरा निगरानी सहित) में निवेश करना।
    • साइबर हमलों या सिस्टम विफलताओं के दौरान आवश्यक सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये डिजिटल अवसंरचना में रिडंडेंसी एवं फेल-ओवर तंत्र (redundancy and failover mechanisms) को लागू करना।

अभ्यास प्रश्न: संवहनीय विकास सुनिश्चित करने और तीव्र शहरीकरण की चुनौतियों का समाधान करने के लिये भारत अपने शहरी परिदृश्य को किस प्रकार पुनर्जीवित कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन सही है? (2019)

(a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग-अलग करने होंगे।
(b) ये नियम केवल अधिसूचित नगरीय स्थानीय निकायों, अधिसूचित नगरों तथा सभी औद्योगिक नगरों पर ही लागू होंगे।
(c) इन नियमों में अपशिष्ट भराव स्थलों तथा अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं के लिये सटीक और ब्यौरेवार मानदंड उपबंधित हैं।
(d) अपशिष्ट उत्पादक के लिये यह आज्ञापक होगा कि किसी एक ज़िले में उत्पादित अपशिष्ट, किसी अन्य ज़िले में न ले जाया जाए।

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न: क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के द्वारा, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती हैं? (2014)

प्रश्न. कई वर्षों से उच्च तीव्रता की वर्षा के कारण शहरों में बाढ़ की बारम्बारता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम कम करने की तैयारियों की क्रियाविधि पर प्रकाश डालिये। (2016)


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