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बेंगलुरु जल संकट: भारत के लिये चेतावनी

  • 09 Mar 2024
  • 18 min read

यह एडिटोरियल 07/03/2024 को ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित “Bengaluru's worst water crisis leaves country's IT capital high and dry” लेख पर आधारित है। इसमें बेंगलुरु में गंभीर जल संकट के बारे में चर्चा की गई है और इस संकट को कम करने के लिये किये जा रहे सरकारी प्रयासों का मूल्यांकन किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

जल संकट, कावेरी नदी, समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (CWMI), जल संरक्षण के लिये मनरेगा, राष्ट्रीय जल मिशन, अटल भूजल योजना (ABHY), जल जीवन मिशन (JJM), राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG), वन वाटर एप्रोच

मेन्स के लिये:

भारत में भूजल संकट की स्थिति, भारत में जल संकट के समाधान की दिशा में कदम।

बेंगलुरु गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में जल की गंभीर कमी की स्थिति बनी है। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, कर्नाटक के 236 तालुकों में से 223 सूखे से प्रभावित हैं, जिनमें मांड्या और मैसूरु ज़िले भी शामिल हैं जो बेंगलुरु के लिये जल के दो प्रमुख स्रोत हैं।

जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है, आने वाले माहों में कर्नाटक के लगभग 7,082 ग्रामों में पेयजल संकट उत्पन्न हो सकता है।

बेंगलुरु के गंभीर जल संकट के पीछे प्रमुख कारण:

  • वर्षा की कमी और खाली जल भंडार:
    • पिछले कुछ मानसून मौसमों में शहर में अपर्याप्त वर्षा की स्थिति रही है। इससे शहर के लिये जल के प्राथमिक स्रोत कावेरी नदी के जल स्तर पर वृहत प्रभाव पड़ा है। नदी के निम्न जल स्तर से पेयजल और कृषि के लिये जल की कमी उत्पन्न हुई है।
    • कर्नाटक में अक्टूबर-दिसंबर माह के बीच उत्तर-पूर्वी मानसून वर्षा में 38% की कमी दर्ज की गई। इसी प्रकार, राज्य में जून-सितंबर माह के बीच दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा में 25% की कमी दर्ज की गई थी।
    • कर्नाटक राज्य प्राकृतिक आपदा प्रबंधन केंद्र (KSNDMC) की सूचना के अनुसार वर्ष 2024 के आरंभिक माहों में हरंगी, हेमवती और काबिनी जैसे कावेरी बेसिन जलाशयों में जल स्तर उनकी कुल क्षमता का मात्र 39% ही था।
  • भूजल स्रोतों का ह्रास:
    • बेंगलुरु की अत्यंत तेज़ वृद्धि के परिणामस्वरूप क्षेत्र के उन प्राकृतिक भूदृश्यों के कंक्रीटीकरण की स्थिति बनी है जो वर्षा जल को अवशोषित किया करते थे। भूदृश्यों के ऐसे कंक्रीटीकरण से भूजल पुनर्भरण कम हो जाता है और सतही अपवाह बढ़ जाता है, जिससे जल का मृदा के अंदर अंतःश्रवण कम हो जाता है।
    • स्थानीय नागरिक जल की आपूर्ति के लिये बोरवेल पर निर्भर हैं। लेकिन वर्षा की कमी और अत्यधिक दोहन के कारण भूजल स्तर तेज़ी से गिर रहा है, जिससे कई बोरवेल सूख गए हैं।
  • अपर्याप्त अवसंरचना:
    • शहर की आधारभूत संरचना, जल आपूर्ति प्रणालियों और सीवेज नेटवर्क सहित, इसके तीव्र विकास के साथ तालमेल नहीं बिठा सकी है। यह अपर्याप्तता बढ़ती आबादी की मांगों को पूरा करने के लिये जल को कुशलतापूर्वक वितरित कर सकने की चुनौतियों को बढ़ा देती है।
    • 12 लाख लोगों को प्रतिदिन 110 लीटर पेयजल उपलब्ध कराने के लिये डिज़ाइन की गई कावेरी परियोजना के चरण-5 के मई 2024 तक पूरा होने की उम्मीद है।
  • जलवायु परिवर्तन:
    • जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित वर्षा और लंबे समय तक सूखे की स्थिति सहित बदलते मौसम पैटर्न ने बेंगलुरु के जलाशयों और प्राकृतिक जल निकायों में जल की उपलब्धता कम कर दी है।
    • भारतीय मौसम विभाग ने इस भूभाग में कम वर्षा के लिये अल नीनो की परिघटना को ज़िम्मेदार माना है।
  • जल निकायों का प्रदूषण:
    • औद्योगिक बहि:स्राव, अनुपचारित सीवेज और ठोस अपशिष्ट निपटान से उत्पन्न प्रदूषण ने जल स्रोतों को दूषित कर दिया है, जिससे वे उपभोग के लिये अनुपयुक्त हो गए हैं और उपलब्ध जल आपूर्ति में और कमी आई है।
    • पर्यावरण प्रबंधन और नीति अनुसंधान संस्थान (EMPRI) द्वारा आयोजित एक अध्ययन के अनुसार बेंगलुरु के लगभग 85% जल निकाय औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज और ठोस अपशिष्ट निपटान से प्रदूषित हैं।
  • कुप्रबंधन और असमान वितरण:
    • जल संसाधनों की बर्बादी, रिसाव और असमान वितरण सहित अकुशल जल प्रबंधन अभ्यास जल की कमी के संकट की गंभीरता में योगदान करते हैं, जहाँ कुछ क्षेत्रों को अपर्याप्त या अनियमित जल आपूर्ति प्राप्त होती है।
  • कानूनी और राजनीतिक चुनौतियाँ:
    • कर्नाटक और पड़ोसी राज्यों के बीच जल बँटवारे पर जारी विवाद, विशेष रूप से कावेरी जैसी नदियों के संबंध में, बेंगलुरु के निवासियों के लिये जल संसाधनों के प्रबंधन तथा उन्हें सुरक्षित करने के प्रयासों को और जटिल बना देता है।
    • कर्नाटक में सूखे की स्थिति से निपटने के लिये धन के वितरण एवं आवंटन को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच खींचतान जारी है।

भारत में भूजल संकट की वर्तमान स्थिति:

  • जल उपलब्धता का अभाव:
    • विश्व की 17% आबादी के वहन के बावजूद भारत के पास विश्व के मीठे जल संसाधनों का केवल 4% मौजूद है, जिससे इसकी विशाल आबादी की जल आवश्यकताओं को पूरा करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
    • नीति आयोग (NITI Aayog) द्वारा जून 2018 में प्रकाशित ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक’ (CWMI) शीर्षक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि भारत अपने इतिहास में सबसे गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है; इसके लगभग 600 मिलियन लोग चरम जल तनाव का सामना कर रहे हैं; और सुरक्षित जल की अपर्याप्त पहुँच के कारण हर वर्ष लगभग 200,000 लोग मृत्यु का शिकार हो रहे हैं।
  • भूजल का अति उपयोग या अत्यधिक दोहन:
    • भारत विश्व में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता देश है, जिसका अनुमानित उपयोग प्रति वर्ष लगभग 251 BCM है, जो कुल वैश्विक उपयोग के एक चौथाई भाग से अधिक है।
    • 60% से अधिक सिंचित कृषि और 85% पेयजल आपूर्ति भूजल पर निर्भर है तथा बढ़ते औद्योगिक/शहरी उपयोग के साथ यह बेहद महत्त्वपूर्ण संसाधन है।
    • अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2025 में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता लगभग 1400 m3 तक कम हो जाएगी और वर्ष 2050 तक यह 1250 m3 तक कम हो जाएगी।
  • भूजल संदूषण:
    • भूजल संदूषण (Groundwater contamination) घरेलू सीवेज सहित मानवीय गतिविधियों के कारण जल में बैक्टीरिया, फॉस्फेट और भारी धातुओं जैसे प्रदूषकों की उपस्थिति है।
    • नीति आयोग की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों की सूची में 120वें स्थान पर है, जिसका लगभग 70% जल संदूषित है।
    • भारत के कुछ हिस्सों में भूजल में प्राकृतिक रूप से आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट और आयरन का उच्च स्तर भी पाया जाता है, जिनकी सांद्रता में जल स्तर की गिरावट के साथ वृद्धि की संभावना है।
  • सुरक्षित पेयजल तक पहुँच का अभाव:
    • लाखों भारतीयों की सुरक्षित पेयजल और बेहतर स्वच्छता तक पहुँच नहीं है, जिससे जलजनित बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं।
      • भारत में जल संकट विशेष रूप से तेज़ी से बढ़ते मध्यम वर्ग की ओर से स्वच्छ जल की बढ़ती मांग और खुले में शौच के व्यापक अभ्यासों के कारण बढ़ गया है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ पैदा हो रही हैं।
    • विश्व बैंक के कुछ आँकड़े देश की दुर्दशा को उजागर करते हैं:
      • 163 मिलियन भारतीयों की सुरक्षित पेयजल तक पहुँच नहीं है।
      • 210 मिलियन भारतीयों की बेहतर स्वच्छता तक पहुँच नहीं है।
      • 21% संचारी रोग असुरक्षित जल से संबद्ध हैं।
      • भारत में हर दिन पाँच वर्ष से कम आयु के 500 बच्चे डायरिया से मर जाते हैं।
  • भविष्य के अनुमान:
    • नीति आयोग की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2030 तक देश की जल की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी हो जाएगी, जिससे लाखों लोगों के लिये जल की गंभीर कमी उत्पन्न होगी और अंततः देश की जीडीपी को नुकसान होगा।
    • एक नई रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2041-2080 के दौरान भारत में भूजल की कमी की दर ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के साथ वर्तमान दर से तीन गुना अधिक होगी।
    • विभिन्न जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों में, शोधकर्ताओं ने पाया है कि वर्ष 2041 से 2080 तक भूजल स्तर (GWL) में गिरावट का उनका अनुमान वर्तमान गिरावट दर का औसतन 3.26 गुना (1.62-4.45 गुना) होगा जो जलवायु मॉडल और प्रतिनिधि सांद्रता मार्ग (Representative Concentration Pathway- RCP) परिदृश्य पर निर्भर करेगा। 

भारत में भूजल संकट से निपटने के लिये प्रमुख सरकारी योजनाएँ:

भारत में जल संकट से निपटने के लिये आवश्यक कदम:

  • नदियों को जोड़ना:
    • इसमें यह विचार शामिल है कि नदियों को आपस में जोड़ा जाना चाहिये, ताकि जल की कमी के मुद्दे को हल करने के लिये जल अधिशेष वाली नदियों एवं क्षेत्रों से जल को इसकी कमी वाली नदियों एवं क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जा सके।
  • जल संरक्षण को बढ़ावा देना:
    • व्यक्तिगत, सामुदायिक और राष्ट्रीय स्तर पर जल संरक्षण उपायों को लागू करना अत्यंत आवश्यक है।
    • इसमें वर्षा जल संचयन, कुशल सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देना और घरेलू, औद्योगिक एवं कृषि क्षेत्रों में जल की बर्बादी को कम करना शामिल है।
  • अवसंरचना में निवेश करना:
    • जल अवसंरचना विकास, रखरखाव और पुनर्वास के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधन आवंटित किया जाए।
    • जल परियोजनाओं हेतु धन जुटाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी, जल शुल्क और उपयोगकर्ता शुल्क जैसे नवीन वित्तपोषण तंत्र पर विचार किया जाए।
  • सतत कृषि को बढ़ावा देना:
    • किसानों को ड्रिप सिंचाई, परिशुद्ध कृषि, फसल चक्र और कृषि वानिकी जैसी जल-कुशल कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाए।
    • जल-बचत प्रौद्योगिकियों को लागू करने के लिये प्रोत्साहन और सब्सिडी प्रदान करने के माध्यम से इस संक्रमण को सुविधाजनक बनाया जा सकता है।
    • ‘जल की प्रति बूंद अधिक फसल एवं आय’ पर एम.एस. स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट (2006) के अनुसार, ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई से फसल की खेती में लगभग 50% जल की बचत की जा सकती और फसलों की पैदावार 40-60% तक बढ़ सकती है।
  • प्रदूषण को संबोधित करना:
    • औद्योगिक बहि:स्राव, सीवेज उपचार और कृषि अपवाह पर सख्त नियम लागू कर जल प्रदूषण का मुकाबला किया जाए।
    • अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों की स्थापना करने और पर्यावरण-अनुकूल अभ्यासों को अपनाने से नदियों, झीलों एवं भूजल स्रोतों में प्रदूषण के स्तर को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • विधान और शासन:
    • जल-संबंधी विधान, नीतियों और नियामक तंत्रों को अधिनियमित एवं लागू कर जल प्रशासन ढाँचे को सुदृढ़ किया जाए।
    • स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय जल प्रबंधन प्राधिकरणों की स्थापना से जल प्रबंधन रणनीतियों के समन्वित निर्णयन एवं कार्यान्वयन की सुविधा मिल सकती है।
    • कम जल-गहन फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन नीतियाँ (minimum support policies) शुरू करने से कृषि जल के उपयोग पर दबाव कम हो सकता है।
  • सामाजिक सहभागिता:
    • भूजल प्रशासन में सामुदायिक भागीदारी और अधिकारों को सशक्त करने से भूजल प्रबंधन में सुधार हो सकता है।
    • प्रायद्वीपीय भारत में भूजल प्रशासन के लिये विश्व बैंक की परियोजनाएँ सहभागी भूजल प्रबंधन (Participatory Groundwater Management- PGM) दृष्टिकोण लागू करने के माध्यम से कई मोर्चों पर सफल रहीं।
  • ‘वन वाटर एप्रोच’ को अपनाना:
    • वन वाटर एप्रोच (One Water Approach), जिसे एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) भी कहा जाता है, इस बात की मान्यता है कि सभी जल का मूल्य है, चाहे उसका स्रोत कुछ भी हो।
    • इसमें पारिस्थितिक एवं आर्थिक लाभ के लिये समुदाय, व्यापारिक नेताओं, उद्योगों, किसानों, संरक्षणवादियों, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और अन्य लोगों को शामिल करते हुए उस स्रोत को एकीकृत, समावेशी एवं संवहनीय तरीके से प्रबंधित करना शामिल है।

निष्कर्ष:

सभी हितधारकों की समावेशी भागीदारी को बढ़ावा देकर और अल्पकालिक लाभ पर दीर्घकालिक संवहनीयता को प्राथमिकता देने वाली ठोस नीतियों को लागू कर, भारत एक ऐसे भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकता है जहाँ हर भारतीय की सुरक्षित एवं भरोसेमंद भूजल तक पहुँच हो।

अभ्यास प्रश्न: भारत में भूजल संकट की गंभीरता का मूल्यांकन कीजिये और इसके प्रभाव को कम करने के लिये प्रभावी रणनीतियाँ सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

'एकीकृत जलसंभर विकास कार्यक्रम' को कार्यान्वित करने के क्या लाभ हैं? (2014)

  1. मृदा अपवाह की रोकथाम
  2.  देश की बारहमासी नदियों को मौसमी नदियों से जोड़ना
  3.  वर्षा-जल संग्रहण तथा भौम-जलस्तर का पुनर्भरण
  4.  प्राकृतिक वनस्पतियों का पुनर्जनन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. जल तनाव (Water Stress) क्या है? भारत में क्षेत्रीय स्तर पर यह कैसे और क्यों भिन्न है? (2019)

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