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चर्चा में मनरेगा

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में है। चर्चा का पहला कारण यह है कि हाल ही में प्रस्तुत किये गए केंद्रीय बजट 2023-24 में केंद्र सरकार ने मनरेगा के लिये 60 हजार करोड़ रूपए आवंटित किये हैं जो कि विगत वर्ष आवंटित किये गए 89 हजार 400 करोड़ रूपयों से काफी कम है। विगत कई वर्षों से इस योजना के लिये आवंटित किये जा रहे बजट में लगातार कटौती की जा रही है जिसका विरोध आरंभ हो चुका है।

इस योजना के चर्चा में आने का दूसरा कारण काम कर रहे श्रमिकों की ऑनलाइन हाजिरी से संबंधित है। इसमें नेशनल मोबाइल माॅनिटरिंग साॅफ्टवेयर (एनएमएमएस) ऐप से दिन में दो बार श्रमिकों की ऑनलाइन अटेंडेंस लगाने का प्रावधान किया गया है। यह प्रक्रिया जियो टैगिंग के माध्यम से रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर द्वारा ही की जा सकती है। माना जा रहा है कि इससे इस योजना में पारदर्शिता आएगी और मशीनों का उपयोग बंद होकर वास्तविक लोगों को ही रोजगार मिलेगा। हालाँकि इस व्यवस्था के विरोधियों का तर्क यह है कि गाँवों में बेहद कमजोर मोबाइल नेटवर्क/ नेटवर्क के अभाव के कारण इस तरीके से हाजिरी लगाने में बहुत समस्याएँ आती हैं अत: इसे वापस लिया जाना चाहिये।

मनरेगा क्या है?

मनरेगा का पूरा नाम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम है। इसे भारत सरकार द्वारा 2005 में लागू किया गया था तथा तब इसका नाम नरेगा (NREGA) था। 2010 में इसका नाम बदलकर मनरेगा (MNREGA) कर दिया गया था। इस योजना को लागू करने का उद्देश्य यह था कि ग्रामीण क्षेत्रों के ऐसे सदस्यों को वर्ष में 100 दिन का गारंटीयुक्त रोजगार उपलब्ध करवाया जा सके जो अकुशल श्रम करने के इच्छुक हों। ऐसे क्षेत्र जो सूखाग्रस्त हैं अथवा जहाँ जनजातीय आबादी अधिक है वहाँ 150 दिनों के रोजगार का प्रबंध किया गया है। मनरेगा को कानूनी स्तर पर रोजगार की गारंटी देने वाला विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक कल्याणकारी कार्यक्रम भी माना जाता है।

मनरेगा की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या रही हैं?

वर्ष 2022-23 के आंकड़ों के अनुसार मनरेगा के माध्यम से 15 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है। एक अध्ययन के अनुसार मनरेगा ने कोविड लाॅकडाउन के समय हुए आय के नुकसान के 20-80% तक हिस्से को भरने का काम किया था। अर्थात कोविड के समय जब शहरों में रोजगार में संलग्न लोग जब गाँवों की तरफ लौटे तो मनरेगा ने उनके जीविकोपार्जन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मनरेगा योजना के द्वारा महिला सशक्तिकरण को भी बल मिला है। ग्रामीण महिलाओं के पास आय के स्रोत न होने के कारण कई बार वे अपनी बुनियादी जरूरतें भी नहीं पूरी कर पाती और लगभग पूरी तरह से अपनी आवश्यकताओं के लिये घर के पुरुषों पर निर्भर रहती हैं। मनरेगा द्वारा उन्हें बड़े पैमाने पर रोजगार प्राप्त हो रहा है जिससे वे आत्मनिर्भर बन रही हैं।

मनरेगा लोगों को चरम गरीबी की स्थिति से निपटने में भी सहायता प्रदान कर रहा है क्योंकि इसमें वर्ष में न्यूनतम 100 दिन रोजगार का प्रावधान है तथा रोजगार के न मिलने की स्थिति में बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान किया गया है। इस प्रकार मनरेगा ने सफलतापूर्वक लाखों की संख्या में लोगों को चरम गरीबी से बाहर निकालकर एक सम्मानित जीवन जीने में सहायता प्रदान की है।

मनरेगा में प्राप्त रोजगार के अवसरों के माध्यम से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। मनरेगा के माध्यम से इनका रोजगार के लिये शहरों की ओर होने वाला पलायन कम हुआ है।

मनरेगा के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों की आधारभूत संरचना में पर्याप्त सुधार देखने को मिले हैं। इसके द्वारा तालाबों के निर्माण और संरक्षण द्वारा जल संरक्षण को बढ़ावा मिला है, ग्रामीण सड़कों के निर्माण से संपर्कों को गति मिली है। इसी प्रकार अन्य विकास कार्यों में भी इससे अत्यंत सहायता प्राप्त हुई है।

इस योजना के माध्यम से लोकतंत्र को अत्यंत मजबूती प्राप्त हुई है क्योंकि इससे पंचायती राज संस्थाओं को शक्तियाँ प्राप्त हुई हैं और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को बढ़ावा मिला है।

मनरेगा की प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

मनरेगा की प्रमुख चुनौतियों में भ्रष्टाचार को पहले स्थान पर रखा जा सकता है। कई राज्यों में लाखों की संख्या में फर्जी मनरेगा जाॅब कार्ड्स पाए गए। कई मामलों में देखा जाता है कि बड़ी मात्रा में फर्जी हाजिरी लगा दी जाती है। इससे सरकार द्वारा आवंटित धन उन लोगों के पास न जाकर जो कि पात्र हैं उन लोगों के पास चला जाता है जो कि अपात्र हैं।

मनरेगा की दूसरी समस्या अपर्याप्त बजट आवंटन भी है। विगत कई बार से मनरेगा के बजट में हो रही कमी को चिंता के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि अधिकांश अकुशल ग्रामीण गरीबों का जीवन इस योजना से सीधे प्रभावित होता है। हालाँकि इस विषय पर केंद्र सरकार का तर्क यह है कि मनरेगा एक माँग आधारित योजना है और जैसे-जैसे माँग आएगी वैसे ही आवंटन बढ़ा दिया जाएगा इसलिये कम बजट का इसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

मनरेगा की तीसरी समस्या है मजदूरी का समय से न मिलना। एक सर्वे के अनुसार लगभग 78 प्रतिशत भुगतान समय पर नहीं हो पाते हैं। इससे कई बार मनरेगा के प्रति श्रमिकों में निराशा का भी भाव दिखाई देता है क्योंकि भुगतान समय पर न मिलने के कारण श्रमिक अपनी तात्कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते। साथ ही महंगाई की दर को देखते हुए वर्तमान मजदूरी दर को भी पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। इसे वर्तमान मानकों पर निर्धारित करने की आवश्यकता है।

मनरेगा की चौथी समस्या है काम का समय से न पूरा हो पाना तथा कार्यों की गुणवत्ता का बेहद खराब होना। इन्हें भी हम भ्रष्टाचार से ही जोड़कर देख सकते हैं। कई बार जल्दी समाप्त हो जाने वाले कामों को केवल इसलिये काफी लंबे समय तक धीमी गति से जारी रखा जाता है ताकि भुगतान अधिक मिल सके जिसका अधिकांश हिस्सा फर्जी जाॅब कार्ड वालों के पास जाता है। साथ ही घटिया सामग्रियों के प्रयोग से निर्मित होनी वाली योजनाओं की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है और वे लंबे समय तक उपयोग के लायक नहीं रह पातीं।

निष्कर्ष

कई तरह की चुनौतियों के बावजूद यह कहा जा सकता है कि मनरेगा के माध्यम से ग्रामीण रोजगार, गरीबी उन्मूलन, महिला सशक्तिकरण, पलायन में कमी, सामाजिक न्याय, ग्रामीण आधारभूत ढाँचे के निर्माण जैसे क्षेत्रों में प्रभावी तरीके से काम किया गया है। अब आवश्यकता इस बात की है कि इस योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार और विभिन्न चुनौतियों को प्रभावी तरीके से समाप्त किया जाए और इसके दायरे में ग्रामीण विकास से जुड़े अन्य कारकों को भी शामिल किया जाए ताकि यह उन उद्देश्यों को और प्रभावी तरीके से पूरा कर पाए जिनके लिये इस योजना की परिकल्पना की गई थी।

  अमित सिंह  

अमित सिंह उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले से हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की है। वर्तमान में वे दिल्ली में रहकर सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे हैं।


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