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विश्व पर्यावास दिवस 2023 और भारत का शहरी परिदृश्य

  • 12 Oct 2023
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व पर्यावास दिवस, संयुक्त राष्ट्र, यू.एन.-हैबिटेट स्क्रॉल ऑफ ऑनर अवार्ड, स्मार्ट सिटीज़, AMRUT मिशन, स्वच्छ भारत मिशन-शहरी, HRIDAY योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी, आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

वर्तमान में भारत में शहरी परिदृश्य से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ, आर्थिक सुधार में शहरों की भूमिका

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार के आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने विश्व पर्यावास दिवस के उपलक्ष्य में 9 अक्तूबर, 2023 को विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम का आयोजन कियाशहरी विकास, संधारणीयता और भारत के आर्थिक विकास में शहरों के योगदान पर केंद्रित विश्व पर्यावास दिवस की अवधारणा ने चुनौतियों एवं उपलब्धियों की  एक लंबी यात्रा तय की है।  

विश्व पर्यावास दिवस: 

  • परिचय: संयुक्त राष्ट्र ने प्रत्येक वर्ष अक्तूबर के पहले सोमवार को विश्व पर्यावास दिवस के रूप में नामित किया है जो हमारे आवासों की स्थिति और सभी के लिये पर्याप्त आश्रय के मूल अधिकार को प्रतिबिंबित करता है। 
    • इस दिवस का उद्देश्य विश्व को यह याद दिलाना है कि हम सभी के पास अपने शहरों एवं कस्बों के भविष्य को आकार देने की शक्ति और ज़िम्मेदारी है।
  • शुरुआत: विश्व पर्यावास दिवस पहली बार वर्ष 1986 में केन्या के नैरोबी में मनाया गया था। पहले विश्व पर्यावास दिवस का विषय 'आश्रय मेरा अधिकार है' था, जो शहरों में अपर्याप्त आश्रय की गंभीर समस्या पर केंद्रित था।
  • वर्ष 2023 की थीम: 'लचीली शहरी अर्थव्यवस्ठाएँ, विकास और बहाली के चालक के रूप में शहर' है।
    • वर्ष 2023 शहरी अर्थव्यवस्थाओं के लिये चुनौतीपूर्ण रहा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर घटकर लगभग 2.5% रह गई है और वर्ष 2020 के प्रारंभ में कोविड-19 संकट तथा वर्ष 2009 में वैश्विक वित्तीय संकट के अतिरिक्त यह वर्ष 2001 के बाद सबसे निम्न वृद्धि दर है।

नोट: संयुक्त राष्ट्र मानव अधिवासन कार्यक्रम द्वारा वर्ष 1989 में यू.एन.-हैबिटेट स्क्रॉल ऑफ ऑनर अवार्ड की शुरुआत की गई थी। यह वर्तमान में विश्व का सबसे प्रतिष्ठित मानव अधिवासन पुरस्कार (ह्यूमन सेटलमेंट अवार्ड) है।

आर्थिक सुधार में शहरों की भूमिका: 

  • आर्थिक विकास के वाहक: देश की GDP में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले शहरों को आर्थिक विकास का प्रमुख वाहक माना जाता है।
    • शहरी क्षेत्र अर्थव्यवस्थाओं के उत्पादक केंद्र हैं जो विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का 75% से अधिक उत्पन्न करते हैं, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाले व्यवसायों, प्रतिभाओं और निवेशों को आकर्षित करते हैं
  • रोज़गार के अवसर: शहरों में रोज़गार की विविधता कुशल और अनेक क्षेत्रों से संबंधित कार्यबल को आकर्षित करती है।
    • आर्थिक सुधार की अवधि के दौरान बेरोज़गारी को कम करने और यहाँ रहने वालों का समग्र देखभाल करने में शहरों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
  • नवाचार और प्रौद्योगिकी केंद्र: देश के कई शहर नवाचार व प्रौद्योगिकी का प्रमुख केंद्र हैं।
    • इन शहरों में मौजूद अनुसंधान केंद्र, विश्वविद्यालय और तकनीक कंपनियाँ तकनीकी प्रगति को आगे बढ़ाने के साथ ही नवाचार केंद्रित विकास के माध्यम से आर्थिक सुधार को बढ़ावा देती हैं।
  • बुनियादी ढाँचा विकास: आर्थिक सुधार चरणों के दौरान शहरों को बुनियादी ढाँचा के निर्माण हेतु अक्सर पर्याप्त निवेश प्रदान किया जाता है।
    • परिवहन, उपयोगिता संबंधी और सार्वजनिक सेवाओं में किये जाने वाले इन निवेशों से न केवल तत्काल रोज़गार सृजन को बढ़ावा मिलता है बल्कि इससे दीर्घकालिक उत्पादकता एवं जीवन की गुणवत्ता को भी बढ़ाने में भी मदद मिलती है।
  • सांस्कृतिक और रचनात्मक क्षेत्रों से जुड़े उद्योग: शहरें सांस्कृतिक और रचनात्मक क्षेत्रों से जुड़े उद्योगों के विकास के लिये सबसे उपयुक्त हैं, ये पर्यटन, कला तथा मनोरंजन के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं।
    • ये क्षेत्र न केवल राजस्व उत्पन्न करते हैं बल्कि शहरों को वैश्विक स्तर पर आकर्षक और प्रतिस्पर्द्धी भी बनाते हैं।

भारत में वर्तमान शहरी परिदृश्य:

  • स्थिति: 
    • भारत विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जिसके विकास को यहाँ के शहरों से गति मिलती है।
      • राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में शहरों का योगदान 66% है, वर्ष 2050 तक यह संख्या बढ़कर 80% होने की उम्मीद है।
  • वर्तमान प्रमुख चुनौतियाँ:
    • अधिक जनसंख्या और तीव्र शहरीकरण:
      • भारत विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, जहाँ आबादी का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन/प्रवासन करता है।
        • यह तीव्र शहरीकरण शहरी संसाधनों और बुनियादी ढाँचे पर अत्यधिक दबाव डालता है।
    • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा:
      • आवास: किफायती आवास की कमी के परिणामस्वरूप झुग्गी और अनौपचारिक बस्तियों का विकास होता है, जहाँ रहने की स्थिति प्रायः घटिया होती है।
      • जल आपूर्ति और स्वच्छता: कई भारतीय शहर अपने निवासियों को स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल एवं उचित स्वच्छता सुविधाएँ प्रदान करने के लिये संघर्ष करते हैं।
        • इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ और जल निकायों का प्रदूषण होता है।
      • परिवहन: भीड़भाड़ वाली सड़कें और कुशल सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों की कमी यातायात की भीड़, प्रदूषण एवं यात्रा के समय में वृद्धि में योगदान करती है।
    • पर्यावरण निम्नीकरण:
      • वायु प्रदूषण: कई भारतीय शहर वायु प्रदूषण के उच्च स्तर से पीड़ित हैं जिससे श्वसन संबंधी बीमारियाँ होती हैं और निवासियों के जीवन की गुणवत्ता कम हो जाती है।
      • जल प्रदूषण: औद्योगिक निर्वहन, सीवेज और अनुचित अपशिष्ट निपटान जल निकायों को प्रदूषित करते हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं पर्यावरण प्रभावित होता है।
    • असमानता और सामाजिक विषमताएँ:
      • आर्थिक विषमताएँ: भारत के शहरी क्षेत्रों में आय असमानताएँ देखी जा रही है, जिसमें अमीर और निर्धन के बीच अंतर बढ़ रहा है।
      • सेवाओं तक पहुँच: कई शहरी निवासियों के पास स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुँच नहीं है, जिससे कल्याण एवं जीवन की गुणवत्ता में असमानताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन: अकेले शहरी भारत में प्रतिदिन लगभग 0.15 मिलियन टन नगरीय ठोस अपशिष्ट का उत्सर्जन होता है।
      • भारत सरकार के अनुसार, भारत में उत्पन्न लगभग 78% सीवेज अनुपचारित रह जाता है जिसका निपटान नदियों, झीलों या समुद्र में किया जाता है।
      • यदि मौजूदा नीतियों, कार्यक्रमों और प्रबंधन रणनीतियों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया तो अपशिष्ट की मात्रा वर्ष 2031 तक 165 मिलियन टन तथा वर्ष 2050 तक 436 मिलियन टन तक पहुँच जाने का अनुमान है।
    • जल की कमी: शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण भू-जल का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिससे कई शहरों में विशेषकर शुष्क मौसम के दौरान जल की कमी हो रही है।
    • जलवायु परिवर्तन की संवेदनशीलता: शहरी क्षेत्र विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं, जैसे अत्यधिक तापमान, बाढ़ और तीव्र उष्मा द्वीप, जो पर्यावरण एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को बढ़ा सकते हैं।

आगे की राह 

  • एकीकृत शहरी योजना: व्यापक शहरी योजनाएँ विकसित करने की आवश्यकता है जो दीर्घकालिक स्थिरता, जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रत्यास्थता और संसाधनों के संतुलित उपयोग पर विचार करती हैं।
    • इसके अलावा, मिश्रित भूमि उपयोग, कुशल भूमि प्रबंधन और ज़ोनिंग नियमों को बढ़ावा देना चाहिये जो व्यवस्थित विकास को प्रोत्साहित करते हैं।
  • शहरी विकास के लिये नवोन्मेषी वित्तीयता: शहर संसाधन जुटाने के लिये नगर निगम बॉण्ड जैसे नवोन्मेषी वित्तीयता माध्यमों का पता लगा सकते हैं।
    • कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation- AMRUT) के माध्यम से सरकार ने शहरों को पूंजी निवेश बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया है।
    • वर्तमान में 12 शहरों ने नगर निगम बॉण्ड के माध्यम से 4,384 करोड़ रुपए से अधिक धनराशि एकत्र कर ली है।  
  • शहरी रोज़गार गारंटी: शहरी क्षेत्रों में रहने वाली गरीब आबादी को बुनियादी/मूल जीवन स्तर प्रदान करने के लिये शहरी क्षेत्रों को मनरेगा (MGNREGA) के समान एक योजना की आवश्यकता है।
    • राजस्थान में शुरू की गई इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना इस दिशा में एक अच्छा कदम है।
  • उचित अपशिष्ट प्रबंधन: अपशिष्ट उत्पादन के स्रोत स्थान पर अपशिष्टों का ध्यानपूर्वक पृथक्करण और अपशिष्ट के औपचारिक पुनः चक्रण एवं उससे खाद बनाने की प्रथाओं को बढ़ावा देने पर ज़ोर देने की आवश्यकता है।
    • इसके अतिरिक्त अपशिष्ट निपटान के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये अपशिष्ट-से-ऊर्जा (waste-to-energy) प्रौद्योगिकियों तथा आधुनिक लैंडफिल प्रबंधन में निवेश करना चाहिये।
  • समावेशी विकास: मूलभूत सेवाओं, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा तक पहुँच प्रदान करके हाशिये पर मौजूद लोगों और सुभेद्य (कम हो रही) आबादी की ज़रूरतों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
    • प्रवासी श्रमिकों के हित के लिये प्रवासियों के डेटा को संकलित कर शहरी विकास गतिविधियों में उपयोग करने की आवश्यकता है।
    • साथ ही निवास की स्थिति में सुधार के लिये सामाजिक आवासन और झुग्गी-झोपड़ी/स्लम पुनर्विकास परियोजनाओं को बढ़ावा देना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद की भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. शहरी क्षेत्रों में श्रमिक की उत्पादकता (2004-05 की कीमतों पर प्रति श्रमिक ₹) में वृद्धि हुई जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में इसमें कमी हुई।
  2. कार्यबल में ग्रामीण क्षेत्रों की प्रतिशत हिस्सेदारी में वृद्धि हुई। 
  3. ग्रामीण क्षेत्रों में, गैर कृषि अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई।
  4. ग्रामीण रोज़गार की वृद्धि दर में कमी आई।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 3
(d) केवल 1, 2 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? (2019)

(a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग- अलग करने होंगे।
(b) ये नियम केवल अधिसूचित नगरीय स्थानीय निकायों, अधिसूचित नगरों तथा सभी औद्योगिक नगरों पर ही लागू होंगे।
(c) इन नियमों में अपशिष्ट भराव स्थलों तथा अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं के लिये सटीक और ब्यौरेवार मानदंड उपबंधित हैं।
(d) अपशिष्ट उत्पादक के लिये यह आज्ञापक होगा कि किसी एक ज़िले में उत्पादित अपशिष्ट, किसी अन्य ज़िले में न ले जाया जाए।

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न. कई वर्षों से उच्च तीव्रता की वर्षा के कारण शहरों में बाढ़ की बारम्बारता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए, इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम कम करने के की तैयारियों की क्रियाविधि पर प्रकाश डालिये। (2016)

प्रश्न. क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के दौरान, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती है? (2014)

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