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जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में शहरी बाढ़

  • 10 Sep 2022
  • 15 min read

यह एडिटोरियल 07/09/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Number Theory: Behind the systemic roots of urban flooding in India” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में शहरी बाढ़ की समस्या और संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

चूँकि भारत मुख्यतः ग्रामीण से शहरी समाज में संक्रमण के चरम बिंदु की ओर आगे बढ़ रहा है, शहरीकरण (Urbanisation) विकास के लिये अंतर्निहित तत्त्व हो गया है और प्रायः आर्थिक विकास के प्रमुख चालक के रूप में कार्य करता है। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक देश की 40.76% आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास कर रही होगी।

हालाँकि, शहरी नियोजन तंत्र भी उसी गति से विकसित नहीं हुआ है जिस गति से शहरीकरण और तकनीकी प्रगति का विकास हो रहा है। अनियोजित विकास और जलवायु परिवर्तन शहरी बाढ (Urban Flooding) सहित कई आपदाकारी घटनाओं का कारण बन रहे हैं, जिन पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है।

हैदराबाद में वर्ष 2020 की आई बाढ़ में हाज़ारों घर जलमग्न हो गए थे। वर्ष 2015 की चेन्नई की बाढ़ इस बात की याद दिलाती है कि शहरीकरण किस तेज़ी से शहरों को शहरी बाढ़ के लिये प्रवण बनाता जा रहा है। वर्तमान में बंगलूरु मानसून मौसम में आई ऐसी ही बाढ़ की कई घटनाओं का साक्षी बना है।

शहरी बाढ़ क्या है?

  • शहरी बाढ़ एक निर्मित परिवेश में, विशेष रूप से शहरों जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में, भूमि या संपत्ति के जलमग्न होने की स्थिति है जो प्रायः तब उत्पन्न होती है जब वर्षा के कारण जलजमाव वहाँ की जल निकासी प्रणालियों की क्षमता पर भारी पड़ता है।
  • ग्रामीण बाढ़ (एक समतल या निचले क्षेत्र में भारी बारिश के कारण उत्पन्न) के विपरीत शहरी बाढ़ न केवल उच्च वर्षा के कारण बल्कि ऐसे अनियोजित शहरीकरण के कारण उत्पन्न होती है जो:
    • बाढ़ की चरमता (Flood Peaks) को 1.8 से बढ़ाकर 8 गुना कर देता है,
    • बाढ़ की मात्रा को 6 गुना तक बढ़ा देता है।

भारत में शहरी बाढ़ के प्रमुख कारण

  • निकासी चैनलों का अतिक्रमण: भारतीय शहरों और कस्बों में भूमि के बढ़ते मूल्यों और मुख्य शहर में भूमि की कमी के कारण नए विकास कार्य निचले इलाकों में हो रहे हैं, जिनके लिये आमतौर पर झीलों, आर्द्रभूमि तथा नदी के तटवर्ती इलाकों आदि का अतिक्रमण किया जा रहा है।
    • आदर्शतः होना यह चाहिये था कि प्राकृतिक अपवाहिकाओं को चौड़ा किया जाता (जैसे बढ़ते हुए यातायात के साथ सड़क चौड़ीकरण किया जाता है) ताकि तूफानी जल के उच्च प्रवाह को समायोजित किया जा सके।
      • लेकिन वस्तुस्थिति इसके विपरीत है जहाँ इन प्राकृतिक अपवाह तंत्रों को चौड़ा करने के बजाय बड़े पैमाने पर इनका अतिक्रमण कर लिया गया है। परिणामस्वरूप उनकी अपवाह क्षमता कम हो गई है, जिससे बाढ़ की स्थिति बनती है।
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन ने स्थिति और बिगाड़ दी है जिससे चरम मौसमी घटनाएँ उत्पन्न हो रही हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण निम्न अवधि में भारी वर्षा की आवृत्ति में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च जल अपवाह की स्थिति बनती है।
    • नासा (NASA) के अध्ययनों से संकेत मिलता है कि नगरीय ऊष्मा द्वीप या ‘अर्बन हीट आइलैंड’ के प्रभाव से भी शहरी क्षेत्रों में वर्षा की वृद्धि होती है जो फिर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न करती है।
      • जब भी वर्षा-युक्त बादल अर्बन हीट आइलैंड के ऊपर से गुज़रते हैं तो वहाँ की गर्म हवा उन्हें ऊपर धकेल देती है, जिसके परिणामस्वरूप अत्यधिक स्थानीयकृत वर्षा होती है जो कभी-कभी उच्च तीव्रता की भी हो सकती है।
  • अनियोजित पर्यटन गतिविधियाँ: पर्यटन विकास के लिये जल निकायों का उपयोग एक आकर्षण के रूप में लंबे समय से किया जाता रहा है। अपवाह गति को कम करने में भूमिका निभाने वाले जल निकायों को नदियों और झीलों से अलग किया जा रहा है ताकि पर्यटन गतिविधियों को बनाए रखा जा सके।
    • धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के दौरान नदियों और झीलों में गैर-जैव अपघटनीय पदार्थ फेंके जाने से जल की गुणवत्ता कम हो जाती है। बाढ़ की स्थिति में ये निलंबित कण और प्रदूषक शहरों में स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं।
      • उदाहरण के लिये, केरल के कोल्लम में अष्टमुडी झील नावों से होने वाले तेल रिसाव से प्रदूषित हो गई है।
  • बाँधों से बिना पूर्व चेतावनी के जल छोड़ना: बाँधों और झीलों से अनियोजित तरीके से और अचानक जल छोड़े जाने से भी शहरी क्षेत्र में बाढ़ आती है, जहाँ लोगों को किसी उपाय के लिये पर्याप्त समय भी नहीं दिया जाता है।
    • उदाहरण के लिये, चेंबरमबक्कम झील से जल छोड़े जाने के कारण वर्ष 2015 में चेन्नई में बाढ़ आई थी।
  • अवैध खनन गतिविधियाँ: भवन निर्माण में उपयोग के लिये नदी की रेत और क्वार्टजाइट का अवैध खनन नदियों और झीलों के प्राकृतिक तल को नष्ट कर देता है।
    • यह मृदा कटाव का कारण बनता है और जल निकाय की जलधारण क्षमता को कम कर देता है जिससे जल प्रवाह की गति और पैमाने में वृद्धि होती है।
    • उदाहरण के लिये, जयसमंद झील- जोधपुर, कावेरी नदी- तमिलनाडु।

शहरी बाढ़ के प्रभाव

  • जीवन और संपत्ति की क्षति: शहरी बाढ़ प्रायः जीवन की क्षति और शारीरिक आघात का कारण बनती है। ऐसा बाढ़ के प्रत्यक्ष प्रभाव या बाढ़ की अवधि के दौरान फैलने वाले जलजनित रोगों के संक्रमण से होता है।
    • शहरी बाढ़ से इमारतों, संपत्ति, फसलों की संरचनात्मक क्षति जैसे कई स्थानीय प्रभाव उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा यह जल आपूर्ति, सीवरेज, बिजली एवं पारेषण लाइनों, संचार, यातायात-सड़क और रेलवे तथा अवसंरचनात्मक व्यवधान का कारण बनता है।
  • पारिस्थितिक प्रभाव: बाढ़ की चरम घटनाओं के दौरान तेज़ गति से प्रवाहित बाढ़ जल के कारण पेड़-पौधे बह जाते हैं और तटवर्ती इलाकों का कटाव होता है।
  • पशु और मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: स्थानीय इलाकों में जलजमाव और पेयजल के दूषित होने से विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जिससे महामारी की स्थिति भी बन सकती है।
    • घरों में और उसके आसपास सीवेज और ठोस अपशिष्ट के जमा होने भी कई तरह की बीमारियाँ फैलती हैं।
  • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: घर और सगे-संबंधियों की हानि बाढ़ में फँसे हुए लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है। ऐसी घटनाओं के मामले में रिकवरी की प्रक्रिया एक बोझिल और समय लेने वाली प्रक्रिया होती है जो प्रायः लंबे समय तक बने रहने वाले मनोवैज्ञानिक आघात की ओर ले जाती है।

आगे की राह

  • नील-हरित अवसंरचना का विकास करना: नील-हरित अवसंरचना (Blue Green Infrastructure) शहरी और जलवायु संबंधी चुनौतियों के लिये एक संवहनीय प्राकृतिक समाधान प्रदान करने का एक प्रभावी तरीका है।
    • अधिक सुखद, कम तनावपूर्ण परिवेश के सृजन के लिये जल प्रबंधन और सुदृढ़ बुनियादी ढाँचे के विकास पर एकसमान रूप से बल दिया जाना चाहिये।
    • इसके साथ ही यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि शहर के प्रत्येक भवन में भवन उपयोगिता के अभिन्न अंग के रूप में वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) का प्रबंध हो।
      • नील-हरित अवसंरचना में नील नदी और जलाशय जैसे जल निकायों को इंगित करता है, जबकि हरित वृक्ष, उद्यान और बगीचों को इंगित करता है।
  • बाढ़ संवेदनशीलता मानचित्रण (Flood vulnerability Mapping): शहरी स्तर पर स्थलाकृति और बाढ़ के ऐतिहासिक आँकड़ों के विश्लेषण के माध्यम से संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है।
    • शहर और ग्राम के स्तर पर सभी जल निकायों और आर्द्रभूमि का रिकॉर्ड बनाए रखना बाढ़ से बचने, उसका सामना कर सकने और लचीलापन पाने के लिये समान रूप से महत्त्वपूर्ण होगा।
  • प्रभावी वाटर-शेड प्रबंधन: फ्लड-वाल का निर्माण, बाढ़ प्रवण नदी घाटियों के किनारे ऊँचे प्लेटफॉर्म बनाना, जल निकासी चैनलों की समय-समय पर सफाई और उन्हें गहरा करना आदि कुछ ऐसे उपाय हैं जिन्हें केवल शहरी क्षेत्रों के बजाय समग्र नदी बेसिन में अपनाया जाना चाहिये।
    • सड़कों के किनारे बायोस्वेल (Bioswales) बनाए जा सकते हैं ताकि सड़कों से बारिश का पानी उनकी ओर बहे और नीचे चला जाए।
    • इसके साथ ही, जल निकायों के जलग्रहण क्षेत्रों को अच्छी तरह से बनाए रखा जाना चाहिये और इन्हें अतिक्रमण एवं प्रदूषण से मुक्त होना चाहिये; इस प्रकार जल के मार्ग को अवरोधों से मुक्त रखा जाना चाहिये।
  • आपदा प्रत्यास्थी सार्वजनिक प्रतिष्ठान (Disaster Resilient Public Utility): अस्पतालों और स्कूलों जैसे सार्वजनिक प्रतिष्ठानों तथा भोजन, जल, स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसी बुनियादी सेवाओं को आपदा प्रत्यास्थी बनाया जाना चाहिये।
    • उन्हें इस तरह स्थापित या पुनर्स्थापित किया जाना चाहिये कि वे बाढ़ के दौरान बिना किसी बाधा के कार्य करने में सक्षम बने रहें।
  • संवेदीकरण और पुनर्वास: प्रतिक्रिया अभ्यासों (Response Drills) के साथ ही बाढ़ हेतु पूर्व-तैयारी और शमन उपायों के बारे में जागरूकता पैदा की जानी चाहिये।
    • अपवाहिकाओं और जल निकायों के किनारे अवैध निर्माण से संलग्न जोखिमों के बारे में निवासियों को जागरूक किया जाना आवश्यक है। सरकार को गरीबों को अन्य क्षेत्रों में स्थानांतरित करने पर भी विचार करना चाहिये।
  • संस्थागत व्यवस्थाएँ: शहर स्तर पर एक एकीकृत बाढ़ नियंत्रण कार्यान्वयन एजेंसी का निर्माण करना आवश्यक है, जिसमें शहर के प्रशासनिक अधिकारी, चिकित्सक, पुलिस, अग्निशामक, गैर-सरकारी संगठन और अन्य आपातकालीन सेवा प्रदाता शामिल हों।

अभ्यास प्रश्न: भारत का शहरी नियोजन तंत्र शहरीकरण की दर के अनुरूप विकसित नहीं हुआ है। कथन के समर्थन में उपयुक्त तर्क दीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रारंभिक परीक्षा

प्र. यह संदेह है कि आस्ट्रेलिया में हाल में आयी बाढ़ ‘‘ला-नीना’’ के कारण आयी थी। ‘‘ला-नीना’’ ‘‘एल-नीनो’’ से कैसे भिन्न है? (2011)

  1. ला-नीना विषुवतीय हिंद महासागर में समुद्र के असाधारण रूप से ठंडे तापमान से चरिचित्र होता है, जबकि एल-नीनो विषुवतीय प्रशांत महासागर में समुद्र के असाधारण रूप से गर्म तापमान से चरित्रित होता है।
  2. एल-नीनो का भारत की दक्षिण-पश्चिमी मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, किंतु ला-नीना का मानसूनी जलवायु पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

उपर्युक्त में से कौन-सा/कौन-से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 न और न ही 2

उत्तर: (d)


मुख्य परीक्षा

प्र. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एन.डी.एम.ए.) के दिशा-निर्देशों के संदर्भ में, उत्तराखंड के अनेकों स्थानों पर हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के संघात को कम करने के लिये अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016)

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