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जैव विविधता और पर्यावरण

शहरी बाढ़

  • 04 Aug 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

शहरी बाढ़, वर्षा, ग्रामीण बाढ़, जल निकास प्रणाली, आर्द्रभूमि, जलवायु परिवर्तन, सीवेज और ठोस अपशिष्ट, अवैध खनन, नदी तट अपरदन

मेन्स के लिये:

शहरी बाढ़, कारण और नियंत्रण

चर्चा में क्यों?

कम अवधि में उच्च तीव्रता वाली वर्षा की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है, जो प्रमुखतः शहरी बाढ़ का कारण बनती हैं, अनियोजित विकास, प्राकृतिक जल निकायों पर दबाव और खराब जल निकासी प्रणाली के कारण स्थिति और भी जटिल हो गई है।

शहरी बाढ़:

  • परिचय: 
    • शहरी बाढ़ से तात्पर्य जलभराव के कारण एक निर्मित स्थान पर भूमि या संपत्ति के डूबने से है, यह विशेष रूप से अधिक घनी आबादी वाले शहरों में जल निकासी प्रणालियों की क्षमता से अधिक वर्षा का परिणाम है।
    • ग्रामीण बाढ़ (समतल या निचले इलाकों में भारी वर्षा) के विपरीत शहरी बाढ़ की स्थिति न केवल अधिक वर्षा के कारण उत्पन्न होती है, बल्कि इसका कारण अनियोजित शहरीकरण भी है, इसमें: 
      • बाढ़ की चरमता (Flood Peaks) को 1.8 से बढ़ाकर 8 गुना कर देता है।
      • बाढ़ की मात्रा को 6 गुना तक बढ़ा देता है।
  • कारण: 
    • जल निकासी प्रणालियों पर दबाव: भूमि की बढ़ती कीमतों और कम उपलब्धता के कारण निचले शहरी इलाकों में झीलों, आर्द्रभूमि और नदी तलों के दबाव के परिणामस्वरूप इस समस्या में वृद्धि हुई है।
      • इसके लिये सामान्यतः प्राकृतिक अपवाह तंत्र को चौड़ा करना आवश्यक है ताकि तूफानी जल के उच्च प्रवाह को समायोजित किया जा सके।
      • लेकिन वस्तुस्थिति इसके विपरीत है, इन प्राकृतिक अपवाह तंत्रों को चौड़ा करने के बजाय बड़े पैमाने पर इन पर अतिक्रमण कर लिया गया है। परिणामस्वरूप उनकी अपवाह क्षमता कम हो गई है, जिससे बाढ़ की स्थिति बनती है।
    • जलवायु परिवर्तन: इसके कारण निम्न अवधि में भारी वर्षा की आवृत्ति में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च जल अपवाह की स्थिति बनती है।
      • जब भी वर्षा-युक्त बादल अर्बन हीट आइलैंड के ऊपर से गुज़रते हैं तो वहाँ की गर्म हवा उन्हें ऊपर धकेल देती है, जिसके परिणामस्वरूप अत्यधिक स्थानीयकृत वर्षा होती है जो कभी-कभी उच्च तीव्रता के साथ भी हो सकती है।
    • अनियोजित पर्यटन गतिविधियाँ: पर्यटन विकास के लिये आकर्षण के रूप में जल निकायों का उपयोग लंबे समय से किया जाता रहा है। धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के दौरान नदियों तथा झीलों में गैर-जैव अपघटनीय पदार्थ फेंके जाने से जल की गुणवत्ता कम हो जाती है। 
      • बाढ़ की स्थिति में ये निलंबित कण और प्रदूषक शहरों में स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं।
      • उदाहरण के लिये केरल के कोल्लम में अष्टमुडी झील नावों से होने वाले तेल रिसाव से प्रदूषित हो गई है।
    • बिना पूर्व चेतावनी बाँधों से जल छोड़ना: बाँधों और झीलों से अनियोजित तरीके से और अचानक जल छोड़े जाने से भी शहरी क्षेत्र में बाढ़ आती है, जहाँ लोगों को बचाव उपाय के लिये पर्याप्त समय भी नहीं मिल पाता है।
      • उदाहरण के लिये चेंबरमबक्कम झील से जल छोड़े जाने के कारण वर्ष 2015 में चेन्नई में बाढ़ आई थी।
      • हथनीकुंड बैराज से यमुना नदी में छोड़े गए 2 लाख क्यूसेक जल के कारण जुलाई 2023 में दिल्ली में बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई थी।
    • अवैध खनन: भवन निर्माण में उपयोग के लिये नदी की रेत और क्वार्टजाइट के अवैध खनन के कारण नदियों एवं झीलों का प्राकृतिक तल नष्ट हो जाता है।
      • इस कारण मृदा अपरदन होता है और यह जल प्रवाह की गति एवं पैमाने में वृद्धि करते हुए जलाशय की जलधारण क्षमता को कम करता है।
      • उदाहरणत: जयसमंद झील- जोधपुर, कावेरी नदी- तमिलनाडु। 

शहरी बाढ़ के प्रभाव:

  • जीवन और संपत्ति की क्षति: 
    • शहरी बाढ़ प्रायः जीवन की क्षति और शारीरिक आघात का कारण बनती है। यह बाढ़ के प्रत्यक्ष प्रभाव अथवा बाढ़ की अवधि के दौरान फैलने वाले जलजनित रोगों के संक्रमण से होता है।
  • पारिस्थितिक प्रभाव:
    • बाढ़ की चरम घटनाओं के दौरान तेज़ गति से प्रवाहित बाढ़ के जल के कारण पेड़-पौधे बह जाते हैं और तटवर्ती इलाकों का कटाव होता है।
  • पशु और मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: 
    • स्थानीय इलाकों में जलजमाव और पेयजल के दूषित होने से विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जिससे महामारी की स्थिति उत्पन्न होने की संभावना बनी रहती है।
  • घरों में और उसके आसपास सीवेज एवं ठोस अपशिष्ट के जमा होने से भी कई तरह की बीमारियाँ फैलती हैं।
  • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: 
    • घर-बार का नुकसान और सगे-संबंधियों से बिछड़ने के कारण बाढ़ में फँसे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसी घटनाओं से उबरने की प्रक्रिया बोझिल और समय लेने वाली होती है जो प्रायः लंबे समय तक बने रहने वाले मनोवैज्ञानिक आघात की ओर ले जाती है।

नगरीय बाढ़ को कम करने हेतु सरकारी पहल: 

आगे की राह 

  • टिकाऊ नगरीय नियोजन प्रथाओं को लागू किया जाना चाहिये जो झंझाजल (Stormwater) को अवशोषित करने और प्रबंधित करने के लिये हरे-भरे स्थानों, तालाबों और पारगम्य सतहों को प्राथमिकता दें। बाढ़ संभावित क्षेत्रों में निर्माण से बचें और प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को संरक्षित करें।
  • प्राकृतिक नालियों, झंझाजल चैनल्स (Stormwater Channels) और बाढ़-नियंत्रण प्रणालियों सहित जल निकासी बुनियादी ढाँचे के उन्नयन तथा विस्तार में निवेश करना चाहिये। प्रभावी जल प्रवाह सुनिश्चित करने के लिये नालियों का नियमित रखरखाव तथा सफाई आवश्यक है।
  • बाढ़-प्रवण क्षेत्रों की पहचान कर उनके मानचित्रण के साथ ही उचित बाढ़ प्रबंधन रणनीतियाँ विकसित करनी चाहिये। बाढ़ के खतरे को कम करने के लिये इन संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण एवं विकास को प्रतिबंधित करना चाहिये।
  • आसन्न बाढ़ के बारे में निवासियों को सचेत करने के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली की स्थापना और उसमें सुधार करना चाहिये। लोगों को स्थान खाली करने और आवश्यक सावधानी बरतने के लिये समय पर चेतावनियाँ जारी की जानी चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी.

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