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एडिटोरियल

  • 01 Jan, 2025
  • 34 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत की अंतरिक्ष शक्ति क्रांति

यह एडिटोरियल 01/01/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित Express View on ISRO’s SpaDeX mission: A tryst in space पर आधारित है। इस लेख में SpaDeX मिशन का उल्लेख किया गया है, जिसने भारत के विशिष्ट अंतरिक्ष-डॉकिंग क्लब में प्रवेश को चिह्नित किया है और चंद्रयान-3 एवं आदित्य-1 की सफलताओं के बाद ISRO के वैश्विक अग्रणी के रूप में उभरने पर प्रकाश डाला।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम, SpaDeX, चंद्रयान-3, आदित्य-1, ISRO का NavIC, लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान, विक्रम-S, भारत का एंटी-सैटेलाइट (ASAT) परीक्षण, भारतीय अंतरिक्ष नीति- 2023 

मेन्स के लिये:

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे, भारत किस प्रकार अपनी अंतरिक्ष-आधारित क्षमताओं को प्रबल कर रहा है

ISRO के नवीनतम SpaDeX मिशन— स्पेस डॉकिंग का एक अग्रणी प्रयास जो भारत को अमेरिका, रूस और चीन के साथ राष्ट्रों के एक विशिष्ट समूह में स्थान दिला सकता है, के साथ भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम परिष्कार के एक नए युग में प्रवेश कर चुका है। यह उपलब्धि वर्ष 2023 में चंद्रयान-3 के सफल चंद्र लैंडिंग और आदित्य-1 सौर मिशन के बाद आया है, जो ISRO के उपग्रह प्रक्षेपण एजेंसी से ग्रह अन्वेषण में अग्रणी बनने के लिये तेज़ी से विकास को दर्शाता है। अंतरिक्ष अन्वेषण के सभी पहलुओं में ISRO की बढ़ती विशेषज्ञता एक वैश्विक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभरने की इसकी तत्परता का संकेत देती है, जो ब्रह्मांड के संदर्भ में मानवता की समझ हेतु महत्त्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम है।

भारत अपनी अंतरिक्ष-आधारित क्षमताओं को किस प्रकार प्रबल कर रहा है?

  • इन-ऑर्बिट डॉकिंग और अंतरिक्ष स्टेशन विकास में निपुणता: हाल ही में ISRO द्वारा प्रक्षेपित भारत का SpaDeX मिशन (स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट) उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों की ओर उसके कदम का उदाहरण है। 
    • इस प्रयोग में दो उपग्रह, चेज़र और टार्गेट, शामिल हैं, जो स्वायत्त रूप से डॉकिंग कार्य करते हैं और ऑन-ऑर्बिट उपग्रह सर्विसिंग तथा संभावित भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन को असेंबल करने जैसे भविष्य के मिशनों के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
    • यह ISRO के गगनयान कार्यक्रम का पूरक है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2025 तक मानव को अंतरिक्ष अन्वेषण के लिये भेजना है। 
      • इस तरह की पहल भारत को उन चुनिंदा देशों में शामिल करती है जो स्वायत्त डॉकिंग प्रौद्योगिकियों में महारत हासिल कर रहे हैं, तथा अंतर-ग्रहीय मिशनों के लिये इसके व्यापक निहितार्थ हैं।
  • स्वदेशी उपग्रह तारामंडल को सुदृढ़ करना: भारत ने विदेशी डेटा पर निर्भरता कम करने के लिये घरेलू उपग्रह तारामंडल के निर्माण को प्राथमिकता दी है।
    • 30 भारतीय कंपनियाँ रक्षा, बुनियादी अवसंरचना के प्रबंधन और मानचित्रण के लिये पृथ्वी अवलोकन उपग्रह समूहों के निर्माण एवं संचालन के लिये सहयोग कर रही हैं। 
    • ISRO का NavIC उन्नयन का उद्देश्य भारत की नेविगेशन प्रणाली को उन्नत करना है ताकि वह GPS जैसे वैश्विक समकक्षों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सके। 
    • यह पहल डेटा संप्रभुता को बढ़ावा देती है और महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना में आत्मनिर्भरता के भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है, तथा सार्वजनिक-निजी सहयोग को बढ़ावा देती है। 
  • लघु उपग्रह क्षमताओं और वैश्विक प्रक्षेपण सेवाओं का विस्तार: भारत का लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV), नैनो उपग्रहों के प्रक्षेपण की बढ़ती मांग को पूरा करता है। 
    • वर्ष 2031 तक अनुमानित 14 बिलियन डॉलर के लघु उपग्रह बाज़ार का दोहन करके, भारत एक लागत प्रभावी वैश्विक प्रतियोगी के रूप में उभरा है। 
    • वर्ष 2023 में PSLV-C56 मिशन ने कमर्शियल पेलोड को सफलतापूर्वक तैनात किया, जो अंतरिक्ष प्रक्षेपण क्षेत्र में भारत की विश्वसनीयता को दर्शाता है। 
    • इसके अतिरिक्त, SSLV विश्वविद्यालयों और स्टार्टअप्स को प्रयोगात्मक उपग्रहों को तैनात करने में सक्षम बना रहे हैं, जिससे तकनीकी नवाचार में तेज़ी आ रही है।
  • अंतरिक्ष स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना: वर्ष 2024 में स्वीकृत अंतरिक्ष स्टार्टअप के लिये 10 बिलियन रुपए के फंड ने निजी क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा दिया है। 
    • पिक्सल और स्काईरूट एयरोस्पेस जैसी कंपनियाँ अर्थ इमेजिंग एवं रॉकेट प्रौद्योगिकियों में क्रांति ला रही हैं, पिक्सल ने हाइपरस्पेक्ट्रल उपग्रहों का प्रक्षेपण किया है तथा स्काईरूट के विक्रम-S ने भारत का पहला निजी रॉकेट प्रक्षेपण किया है।
    • यह रणनीति उद्यमशीलता की भागीदारी को बढ़ावा देती है, जिसके तहत 40 से अधिक स्टार्टअप भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं और विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार के अवसरों का सृजन कर रहे हैं।
  • रक्षा और दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों में प्रगति: GSAT-7 जैसे रक्षा-उन्मुख उपग्रहों का प्रक्षेपण भारत की रणनीतिक निगरानी और संचार क्षमताओं को प्रबल करता है। 
    • वर्ष 2019 में भारत के एंटी-सैटेलाइट (ASAT) परीक्षण ने अंतरिक्ष युद्ध के लिये इसकी तत्परता को प्रदर्शित किया, जिसे वर्ष 2020 से संचालित एक समर्पित रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA) द्वारा पूरित किया गया। 
    • इससे उभरती सुरक्षा चुनौतियों, विशेषकर वैश्विक शक्तियों द्वारा अंतरिक्ष के सैन्यीकरण के संदर्भ में, से निपटने में भारत की तैयारी सुनिश्चित होती है।
  • रणनीतिक अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियाँ और पहुँच: भारत अपनी वैश्विक अंतरिक्ष स्थिति को बढ़ाने के लिये रणनीतिक साझेदारियाँ बना रहा है। 
    • अमेरिका स्थित स्टार्टअप एक्ज़िओम स्पेस, अंतरिक्ष स्टेशन मिशनों के लिये भारतीय रॉकेटों का उपयोग करने की योजना बना रहा है, जिससे भारत की लागत-कुशल प्रक्षेपण क्षमताओं का प्रदर्शन होगा।
    • जलवायु और ग्रह विज्ञान मिशनों के अंतर्गत NASA और ESA के साथ सहयोग, जैसे कि NISAR उपग्रह, वैश्विक चुनौतियों से निपटने में भारत की भूमिका को भी बढ़ावा देगा। 
      • ऐसी साझेदारियाँ भारत की अंतरिक्ष महत्त्वाकांक्षाओं को भू-राजनीतिक उद्देश्यों के साथ जोड़ती हैं, तथा सॉफ्ट पावर को बढ़ावा देती हैं।
  • अंतरिक्ष स्थिरता और वैश्विक योगदान को बढ़ाना: भारत स्थायी अंतरिक्ष प्रथाओं का पक्षधर रहा है, जैसा कि सौर अवलोकन के लिये आदित्य-L1 जैसे मिशनों द्वारा प्रदर्शित किया गया है, जिसका उद्देश्य उपग्रहों पर अंतरिक्ष मौसम के प्रभावों को कम करना है। 
    • इसके अतिरिक्त, भारत अंतरिक्ष स्थिति जागरूकता के लिये ISRO के NETRA कार्यक्रम के माध्यम से वैश्विक मलबा प्रबंधन में योगदान दे रहा है।
    • विकास और संवहनीयता के बीच संतुलन बनाकर भारत आर्टेमिस अकॉर्ड्स जैसे अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप कार्य करता है, तथा बाह्य अंतरिक्ष में जिम्मेदार व्यवहार को बढ़ावा देता है।
  • चंद्र और अंतरग्रहीय अन्वेषण की खोज: वर्ष 2023 में भारत के चंद्रयान-3 की सफलता ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव अन्वेषण में भारत के प्रवेश को चिह्नित किया, जो कि बहुत कम देशों द्वारा प्राप्त की गई एक उपलब्धि है। 
    • शुक्रयान-1 द्वारा शुक्र ग्रह अन्वेषण के लिये ISRO की योजनाएँ अंतरग्रहीय अनुसंधान का नेतृत्व करने की इसकी महत्त्वाकांक्षा को दर्शाती हैं। 
    • ये मिशन ग्रह विज्ञान में महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर भारत की शैक्षणिक और अनुसंधान साख को बढ़ावा मिलता है।
  • सामाजिक-आर्थिक लाभ के लिये अंतरिक्ष का उपयोग: अंतरिक्ष-आधारित सेवाएँ कृषि, आपदा प्रबंधन और शहरी नियोजन जैसे क्षेत्रों में परिवर्तन ला रही हैं। 
    • उदाहरण के लिये, ISRO का भुवन जियोपोर्टल आपदा की रियल टाइम मॉनिटरिंग में सहायता करता है, जबकि उपग्रह डेटा PM किसान योजना के तहत फसल निगरानी का समर्थन करता है।
    • भारत की अंतरिक्ष पहल सतत् विकास लक्ष्य के अनुरूप है, जिससे शासन में समुत्थानशीलन और समावेशिता बढ़ेगी।
  • अंतरिक्ष नीति और भविष्य के लिये विज़न: भारतीय अंतरिक्ष नीति- 2023 निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाकर तथा अंतरिक्ष परिसंपत्तियों को राष्ट्रीय सुरक्षा एवं आर्थिक फ्रेमवर्क में एकीकृत करके अंतरिक्ष के लोकतंत्रीकरण पर ज़ोर देती है।

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • सीमित बजट आबंटन और वित्तीय बाधाएँ: भारत की अंतरिक्ष महत्त्वाकांक्षाएँ अपेक्षाकृत मामूली बजट के कारण सीमित हैं, जिससे बड़े पैमाने की परियोजनाएँ और तकनीकी प्रगतियाँ प्रभावित हो रही हैं।
    • यद्यपि भारत अपने निवेश पर उच्च लाभ प्राप्त कर रहा है, फिर भी वैश्विक समकक्षों की तुलना में इसका अंतरिक्ष बजट कम है, जिससे अन्वेषण कार्यक्रम, बुनियादी अवसंरचना और अनुसंधान एवं विकास सीमित हो रहे हैं।
    • भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.04% अंतरिक्ष पर व्यय करता है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी अर्थव्यवस्था का 0.28% अंतरिक्ष पर खर्च करता है।
    • ISRO का सत्र 2024-25 के लिये बजट 13,042.75 करोड़ रुपए (करीब 1.95 अरब डॉलर) है। इसके विपरीत, NASA करीब 25 अरब डॉलर के बहुत बड़े बजट के साथ काम करता है।
  • विदेशी प्रतियोगियों पर तकनीकी निर्भरता: प्रगति के बावजूद, भारत उन्नत सेंसर, प्रणोदन प्रणाली और अर्द्धचालकों जैसे महत्त्वपूर्ण घटकों के लिये विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर बहुत अधिक निर्भर है।
    • स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास वैश्विक मानकों से पीछे है, जिससे भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण और उपग्रह निर्माण जैसे क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता हासिल करने की क्षमता सीमित हो रही है।
    • भारत आयात के साथ-साथ अंतरिक्ष-तकनीक पर भी बहुत हद तक निर्भर है। वित्त वर्ष 2024 में भारत का सौर क्षेत्र का आयात 7 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया। GSLV Mk III के लिये क्रायोजेनिक CE-20 इंजन को विकसित होने में लंबा समय लगा, जिससे स्वदेशी नवाचार में विलंब पर प्रकाश डाला गया।
  • विनियामक और नीतिगत अंतराल: भारत में अपनी अंतरिक्ष गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिये एक सुदृढ़ कानूनी फ्रेमवर्क का अभाव है, जो निजी क्षेत्र की भागीदारी और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी में बाधा उत्पन्न करता है।
    • यद्यपि भारतीय अंतरिक्ष नीति- 2023 एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसमें उत्तरदायित्व, बौद्धिक संपदा अधिकार या विवाद समाधान तंत्र का पर्याप्त रूप से समावेशन नहीं किया गया है।
    • आउटर स्पेस ट्रिटी (वर्ष 1967) अंतरिक्ष गतिविधियों से होने वाले नुकसान के लिये उत्तरदायित्व का प्रावधान करती है, लेकिन भारत के पास ऐसे प्रावधानों को संहिताबद्ध करने के लिये कोई समर्पित अंतरिक्ष अधिनियम नहीं है।
    • स्पष्ट लाइसेंसिंग तंत्र की अनुपस्थिति के कारण निजी उपग्रहों के प्रक्षेपण में विलंब होता है, जिससे पिक्सल और अग्निकुल कॉसमॉस जैसे स्टार्टअप प्रभावित होते हैं।
  • अंतरिक्ष मलबा और स्थायित्व संबंधी चिंताएँ: भारत द्वारा उपग्रह प्रक्षेपण की संख्या में वृद्धि हो रही है और निष्क्रिय उपग्रहों के कारण अंतरिक्ष मलबा बढ़ रहा है, जिससे परिचालन परिसंपत्तियों के लिये खतरा उत्पन्न हो रहा है।
    • ऑर्बिट में ISRO की बढ़ती उपस्थिति के साथ-साथ पर्यावरण संबंधी चिंताएँ भी जुड़ी हैं, तथा इसके समाधान की रणनीतियाँ और मलबा हटाने की व्यवस्थाएँ भी सीमित हैं।
    • वर्ष 2022 तक ऑर्बिट में भारत की 103 सक्रिय या निष्क्रिय अंतरिक्ष यान और 114 वस्तुएँ थीं जिन्हें 'अंतरिक्ष मलबा' के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • सीमित रक्षा एवं सुरक्षा तैयारी: अंतरिक्ष सैन्यीकरण के बढ़ते खतरों के बावजूद, रक्षा के लिये भारत की अंतरिक्ष क्षमताएँ वैश्विक शक्तियों की तुलना में अविकसित हैं।
    • सुदृढ़ उपग्रह रोधी प्रणालियों, अंतरिक्ष आधारित पूर्व चेतावनी प्रणालियों और समेकित सैन्य-अंतरिक्ष नीति के अभाव के कारण भारत असुरक्षित है।
    • भारत ने अपना पहला ASAT परीक्षण वर्ष 2019 में किया था, जबकि अमेरिका और चीन आक्रामक संचालन में सक्षम दोहरे उपयोग वाले उपग्रहों को बनाए हुए हैं।
    • भारत का GSAT-7 नौसेना संचार के लिये डिज़ाइन किया गया है, लेकिन इसमें भूमि-आधारित और अंतरिक्ष-आधारित निगरानी प्रणालियों के साथ एकीकरण का अभाव है।
  • प्रतिभा पलायन और मानव पूंजी की कमी: कुशल पेशेवरों का वैश्विक अंतरिक्ष अग्रणियों की ओर पलायन भारत की घरेलू नवाचार क्षमताओं को कमज़ोर करता है।
    • विदेशों में बेहतर वित्त पोषण, बुनियादी अवसंरचना और करियर के अवसरों के बावजूद, भारत को उन्नत अंतरिक्ष अनुसंधान में प्रतिभा की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
    • विदेश में अध्ययनरत 70% भारतीय छात्र STEM क्षेत्रों का चयन करते हैं, जिससे भारत में शीर्ष वैज्ञानिकों की प्रतिधारण दर कम हो जाती है।
    • भारतीय मूल के वैज्ञानिक NASA और SpaceX की प्रमुख परियोजनाओं में योगदान दे रहे हैं, जिनमें मार्स पर्सिवियरेंस और स्टारशिप विकास शामिल हैं।
  • अपर्याप्त वैश्विक बाज़ार हिस्सेदारी: वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत का योगदान, इसकी लागत-प्रभावी क्षमताओं को देखते हुए, असमान रूप से बहुत कम है।
    • वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 2-3% है। PSLV-C56 जैसे मिशनों ने वाणिज्यिक पेलोड को आकर्षित किया है, लेकिन SpaceX की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों को अधिकतम करने में पीछे रह गए हैं।
  • मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमताओं में पिछड़ना: भारत मानव अंतरिक्ष अन्वेषण में वैश्विक अग्रणियों से पीछे है, तथा उसके पास निरंतर मानव मिशन के लिये कोई परिचालन क्षमता नहीं है।
    • यद्यपि गगनयान मिशन आशाजनक है, लेकिन विकास में विलंब और विदेशी जीवन रक्षक प्रणालियों पर निर्भरता भारत की क्षमताओं में अंतर को उजागर करती है।
    • भारत का पहला मानवयुक्त मिशन वर्ष 2025 में प्रस्तावित है, जो चीन से लगभग 20 वर्ष पीछे और अमेरिका के अपोलो मिशन से 55 वर्ष पीछे है।
  • बढ़ती भू-राजनीतिक और सामरिक चुनौतियाँ: अंतरिक्ष में प्रभुत्व के लिये वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा भारत के लिये भू-राजनीतिक चुनौतियाँ खड़े कर रही है, विशेष रूप से चीन की तीव्र प्रगति के कारण।
    • भारत का नागरिक अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित करने के कारण यह अंतरिक्ष कूटनीति और दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों के मामले में आक्रामक प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में पिछड़ रहा है।
    • चीन का तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन वर्ष 2022 में चालू हो गया। भारत की क्षेत्रीय नेविगेशन प्रणाली, NavIC, को चीन के BeiDou की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सीमित स्वीकृति मिली है।

भारत सतत् अंतरिक्ष अन्वेषण सुनिश्चित करने और अपनी अंतरिक्ष-आधारित क्षमताओं को प्रबल करने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?

  • बजटीय आवंटन में वृद्धि और वित्तपोषण तंत्र में विविधता: मानव अंतरिक्ष उड़ान और गहन अंतरिक्ष अन्वेषण जैसी उच्च प्राथमिकता वाली परियोजनाओं को समर्थन देने के लिये सकल घरेलू उत्पाद में अंतरिक्ष क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने की आवश्यकता है। 
    • दीर्घकालिक निवेश आकर्षित करने के लिये सॉवरेन अंतरिक्ष बॉण्ड और सार्वजनिक-निजी सह-वित्तपोषण मॉडल लागू किया जाना चाहिये।
    • अनुसंधान एवं विकास, स्टार्टअप और विघटनकारी नवाचार को समर्थन देने के लिये IN-SPACe के अंतर्गत एक भारतीय अंतरिक्ष कोष की स्थापना की जानी चाहिये।
  • सार्वजनिक-निजी सहयोग को बढ़ावा: निजी भागीदारों को ISRO के बुनियादी अवसंरचना, जैसे लॉन्चपैड और परीक्षण सुविधाओं तक पहुँच प्रदान करके निर्बाध सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को संचालित करने की आवश्यकता है।
    • उपग्रह तारामंडल, पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहनों और चंद्र मिशनों के लिये संयुक्त उद्यम मॉडल विकसित किया जाना चाहिये।
    • IN-SPACe के अंतर्गत निजी अंतरिक्ष मिशनों के लिये एकल खिड़की अनुमोदन के साथ नियामक पारिस्थितिकी तंत्र को सरल बनाया जाएगा।
  • स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास को प्राथमिकता: प्रणोदन प्रणालियों, उपग्रह संचालन में AI और अंतरिक्ष-ग्रेड अर्द्धचालकों पर ध्यान केंद्रित करते हुए समर्पित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्रों की स्थापना में तेज़ी लाने की आवश्यकता है।
    • पुन: प्रयोज्य रॉकेट और इन-ऑर्बिट डॉकिंग सिस्टम सहित विघटनकारी तकनीकी समाधान बनाने के लिये शैक्षणिक संस्थानों एवं स्टार्टअप्स के साथ सहयोग किया जाना चाहिये।
    • रणनीतिक स्वायत्तता प्राप्त करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण घटकों के लिये आयात प्रतिस्थापन नीतियों को लागू किया जाना चाहिये।
  • प्रतिभा प्रतिधारण और कार्यबल विकास पर ध्यान केंद्रित करना: विश्वविद्यालयों में विशेष अंतरिक्ष शिक्षा कार्यक्रम शुरू करने तथा रोबोटिक्स, खगोल भौतिकी एवं एयरोस्पेस इंजीनियरिंग जैसे विषयों को एकीकृत करने की आवश्यकता है। 
    • गगनयान और शुक्रयान-1 जैसे उन्नत मिशनों के लिये कुशल कार्यबल तैयार करने हेतु राष्ट्रीय स्तर पर अंतरिक्ष प्रशिक्षण अकादमियाँ स्थापित की जानी चाहिये। 
    • अनुसंधान फेलोशिप को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये तथा आकर्षक कैरियर मार्गों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से प्रतिभा को बनाए रखने की भी आवश्यकता है।
  • मॉड्यूलर अंतरिक्ष स्टेशन और उन्नत अंतरिक्ष अवसंरचना का विकास: अंतरिक्ष में दीर्घकालिक मानवीय उपस्थिति को बनाए रखने के लिये मॉड्यूलर अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण के लिये प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता है। 
    • सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र को उन्नत करके तथा हाइपरसोनिक व पुन: प्रयोज्य वाहनों के लिये अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के साथ नए प्रक्षेपण स्थलों की स्थापना करके प्रक्षेपण क्षमता का विस्तार किया जाना चाहिये। 
    • उपग्रह रखरखाव और मिशन क्षमताओं के विस्तार के लिये कक्षा में सर्विसिंग एवं संयोजन प्रणाली विकसित की जानी चाहिये।
  • उपग्रह तारामंडल विकास का सुदृढ़ीकरण: डेटा संप्रभुता को बढ़ाने के लिये NavIC और RISAT जैसे स्वदेशी पृथ्वी अवलोकन, नेविगेशन और संचार तारामंडल की तैनाती में तेज़ी लाने की आवश्यकता है।
    • आपदा प्रबंधन और सैन्य निगरानी जैसे अनुप्रयोगों के लिये नागरिक एवं रक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दोहरे उपयोग वाले उपग्रहों को एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • नीतिगत प्रोत्साहनों के माध्यम से उपग्रह निर्माण में निजी भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • अंतरिक्ष स्थायित्व और मलबे के शमन को बढ़ावा देना: अंतरिक्ष मलबे को ट्रैक करने और प्रबंधित करने तथा टकरावों को रोकने के लिये अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता (SSA) प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण की आवश्यकता है। 
    • D-ऑर्बिटिंग प्रौद्योगिकियों में निवेश किया जाना चाहिये तथा मलबे के शमन पर अंतर्राष्ट्रीय मानकों का पालन किया जाना चाहिये । 
    • भारत द्वारा वैश्विक मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करने तथा सतत् अंतरिक्ष अन्वेषण में नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्थिरता योजना प्रस्तुत की जानी चाहिये।
  • सामरिक अंतरिक्ष-आधारित रक्षा क्षमताओं का सुदृढ़ीकरण: उपग्रह जैमर और उपग्रह-रोधी (ASAT) हथियारों सहित अंतरिक्ष-विरोधी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिये रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA) की भूमिका का विस्तार करने की आवश्यकता है।
    • दोहरे उपयोग वाले प्लेटफॉर्मों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये, जो संचार, सामरिक पर्यवेक्षण और नेविगेशन में भारत के रणनीतिक लाभ को बढ़ाएंगे। 
    • राष्ट्रीय रक्षा फ्रेमवर्क में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने के लिये DRDO के साथ सहयोग किया जाना आवश्यक है।
  • प्रौद्योगिकी साझाकरण के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को आगे बढ़ाना: उन्नत प्रौद्योगिकी और साझा संसाधनों तक पहुँच प्राप्त करने के लिये NASA, ESA और रॉस्कॉस्मोस जैसी वैश्विक एजेंसियों के साथ सहयोग को गहन करने की आवश्यकता है।
    • आर्टेमिस और ग्रहीय रक्षा पहल जैसे अंतर्राष्ट्रीय मिशनों में भाग लेने के लिये द्विपक्षीय समझौतों का लाभ उठाना आवश्यक है। 
    • अंतरिक्ष कूटनीति और क्षमता निर्माण के लिये अफ्रीका एवं दक्षिण पूर्व एशिया में उभरते अंतरिक्ष राष्ट्रों के साथ संबंधों को मज़बूत किया जाना चाहिये।
  • एक व्यापक अंतरिक्ष अधिनियम की स्थापना: अंतरिक्ष गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिये एक सुदृढ़ कानूनी फ्रेमवर्क प्रदान करने, लाइसेंसिंग, बौद्धिक संपदा अधिकारों और विवाद समाधान पर स्पष्टता सुनिश्चित करने के लिये एक समर्पित अंतरिक्ष अधिनियम का मसौदा तैयार करने की आवश्यकता है।
    • बाह्य अंतरिक्ष संधि जैसी अंतर्राष्ट्रीय संधियों के तहत भारत के दायित्व को संहिताबद्ध किया जाना चाहिये तथा अंतरिक्ष उपक्रमों में ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। 
    • विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये निजी क्षेत्र की क्षतिपूर्ति के लिये प्रावधान शामिल किया जाना चाहिये। 
  • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के सामाजिक-आर्थिक अनुप्रयोगों का विस्तार: परिशुद्ध कृषि, जल संसाधन प्रबंधन और शहरी नियोजन के लिये उपग्रह-आधारित भू-स्थानिक डेटा का लाभ उठाने की आवश्यकता है। 
    • भुवन जियोपोर्टल जैसे कार्यक्रमों का दायरा बढ़ाकर इसमें ग्रामीण क्षेत्रों के लिये टेलीमेडिसिन और ई-शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिये। 
    • परिवर्तनकारी प्रभाव के लिये PM-किसान, डिजिटल इंडिया और स्मार्ट सिटी जैसे राष्ट्रीय मिशनों में अंतरिक्ष परिसंपत्तियों को एकीकृत किया जाना चाहिये।
  • पुन: प्रयोज्य और हाइपरसोनिक प्रक्षेपण प्रणालियों का निर्माण: प्रक्षेपण लागत को कम करने और मिशन आवृत्ति को बढ़ाने के लिये पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहनों (RLV) के विकास में तेज़ी लाने की आवश्यकता है।
    • उपग्रहों और अन्वेषण पेलोड की तीव्र तैनाती को समर्थन देने के लिये हाइपरसोनिक प्रणोदन प्रणालियों में निवेश करना आवश्यक है। 
    • नेक्स्ट जनरेशन की प्रक्षेपण क्षमताओं के लिये स्क्रैमजेट और स्पेसप्लेन जैसी प्रौद्योगिकियों को संचालित करने हेतु निजी फर्मों के साथ सहयोग किया जाना चाहिये।
  • अंतरिक्ष आधारित उद्यमिता को बढ़ावा देना: उपग्रह निर्माण, डेटा विश्लेषण और पेलोड विकास जैसे क्षेत्रों में स्टार्टअप और MSME को प्रोत्साहित करने के लिये एक राष्ट्रीय अंतरिक्ष नवाचार फ्रेमवर्क तैयार करने की आवश्यकता है।
    • उद्यमियों के लिये ISRO की सुविधाओं और मेंटरशिप कार्यक्रमों के माध्यम से इन्क्यूबेशन सहायता प्रदान की जानी चाहिये। 
    • युवा-प्रेरित विचारों और समाधानों का लाभ उठाने के लिये हैकथॉन और अंतरिक्ष नवाचार चुनौतियों का शुभारंभ किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष: 

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम एक परिवर्तनकारी मोड़ पर है, जो प्रौद्योगिकी में महत्त्वपूर्ण प्रगति, रणनीतिक सहयोग और सार्वजनिक-निजी तालमेल के बढ़ते पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा चिह्नित है। यद्यपि फंडिंग, विनियामक फ्रेमवर्क और स्वदेशी क्षमता विकास के मामले में चुनौतियाँ बनी हुई हैं, फिर भी भारत के लागत प्रभावी नवाचार एवं महत्त्वाकांक्षी मिशन इसे एक उभरती हुई वैश्विक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में स्थापित करते हैं। 

दृष्ट मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. “अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति में वैश्विक भू-राजनीति और सामाजिक-आर्थिक विकास में इसकी भूमिका को पुनः परिभाषित करने की क्षमता है।” अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता हासिल करने में भारत के लिये चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स  

प्रश्न 1. भारत की अपना स्वयं का अंतरिक्ष केंद्र प्राप्त करने की क्या योजना है और हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को यह किस प्रकार लाभ पहुँचाएगी? (2019)

प्रश्न 2. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016)

प्रश्न 3. भारत के तीसरे चंद्रमा मिशन का मुख्य कार्य क्या है जिसे इसके पहले के मिशन में हासिल नहीं किया जा सका? जिन देशों ने इस कार्य को हासिल कर लिया है उनकी सूची दीजिये। प्रक्षेपित अंतरिक्ष यान की उप-प्रणालियों को प्रस्तुत कीजिये और विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के 'आभासी प्रक्षेपण नियंत्रण केंद्र' की उस भूमिका का वर्णन कीजिये जिसने श्रीहरिकोटा से सफल प्रक्षेपण में योगदान दिया है। (2023)


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