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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन, चंद्र एवं शुक्र मिशन तथा NGLV

  • 20 Sep 2024
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), चंद्रयान -4, वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM), भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS), नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV), प्रक्षेपण यान Mk III, शुक्र, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन, तियांगोंग, पृथ्वी की निम्न कक्षा (LEO), PSLV, GSLV, SSLV, जियो-सिंक्रोनस ट्राँसफर ऑर्बिट (GTO), गगनयान मिशन

मेन्स के लिये:

इसरो के मिशन और उनकी प्रासंगिकता।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा शुरू की जाने वाली चार अंतरिक्ष परियोजनाओं को मंजूरी दी।

  • नव स्वीकृत अंतरिक्ष परियोजनाओं में चंद्रयान-4, वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM), भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) और नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) शामिल हैं

नव स्वीकृत अंतरिक्ष परियोजनाएँ क्या हैं?

  • चंद्रयान-4: इस मिशन को चंद्र सतह पर उतरने, नमूने एकत्र करने, उन्हें वैक्यूम कंटेनर में संग्रहीत करने और उन्हें पृथ्वी पर वापस लाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • इसमें अंतरिक्ष यान का विकास, दो अलग-अलग प्रक्षेपण यान Mk III का प्रक्षेपण, गहन अंतरिक्ष नेटवर्क समर्थन और विशेष परीक्षण शामिल होंगे।
    • इसमें डॉकिंग और अनडॉकिंग भी होगी- दो अंतरिक्ष यान संरेखित होंगे और कक्षा में एक साथ आएंगे- जिसका भारत ने अब तक प्रयास नहीं किया है। 
      • इससे भारत को मानव मिशन के लिये प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगीभारत की योजना वर्ष 2040 तक चंद्रमा पर मानव भेजने की है।
  • वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM): इसका उद्देश्य शुक्र की परिक्रमा करना है ताकि ग्रह की सतह, उपसतह, वायुमंडलीय प्रक्रियाओं और उसके सघन वायुमंडल की जाँच करके उसके वायुमंडल पर सूर्य के प्रभाव का अध्ययन किया जा सके।
    • शुक्र ग्रह का अध्ययन इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि कभी इस पर भी पृथ्वी की तरह जीवन संभव था। 
    • यह मिशन मार्च 2028 में प्रक्षेपित किया जाएगा जब पृथ्वी और शुक्र सबसे निकट होंगे।
    • यह वर्ष 2014 के मंगल ऑर्बिटर मिशन के बाद भारत का दूसरा अंतरग्रहीय मिशन होगा।
  • भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS): BAS वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन होगा।
    • भारत वर्ष 2028 तक अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन प्रक्षेपित करेगा, भारत वर्ष 2035 तक इसे क्रियाशील करने की योजना बना रहा है तथा वर्ष 2040 तक मानवयुक्त चंद्र मिशन को पूरा करने की योजना बना रहा है
    • वर्तमान में केवल दो ही कार्यशील अंतरिक्ष स्टेशन हैं- अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन और चीन का तियांगोंग
  • नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV): सरकार ने इसके विकास को भी मंजूरी दी है
    • NGLV, LVM3 की वर्तमान पेलोड क्षमता से तीन गुना अधिक क्षमता वाला है तथा इसकी लागत 1.5 गुना अधिक है। 
    • इसे पृथ्वी की निम्न कक्षा (LEO) तक 30 टन तक भार ले जाने के लिये डिज़ाइन किया गया है
    • भारत के मौजूदा प्रक्षेपण यानों (जिनमें SSLV, PSLV, GSLV और LVM3 शामिल हैं), की पेलोड क्षमता LEO के लिये 500 किलोग्राम से 10,000 किलोग्राम तक और जियो-सिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) के लिये 4,000 किलोग्राम तक है।

नोट: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गगनयान मिशन को जारी रखने की भी मंजूरी दी है। 

  • इसमें आठ मिशन (जिनमें से चार अंतरिक्ष स्टेशन बनाने के लिये आवश्यक) होंगे। 
  • यह दो मानवरहित और एक मानवयुक्त मिशन के अतिरिक्त होगा, जिन्हें गगनयान मिशन के तहत प्रथम मानव अंतरिक्ष उड़ान के रूप में पहले ही मंजूरी दी जा चुकी है।

अंतरिक्ष स्टेशन से भारत को क्या लाभ होगा?

  • माइक्रोग्रेविटी एक्सपेरिमेंट: अंतरिक्ष स्टेशन से माइक्रोग्रेविटी में अद्वितीय वैज्ञानिक प्रयोगों के संचालन हेतु एक मंच मिलेगा जिससे पदार्थ विज्ञान, जीव विज्ञान और चिकित्सा में सफलता मिल सकती है।
  • नवप्रवर्तन: अंतरिक्ष स्टेशन के विकास और संचालन से तकनीकी प्रगति को बढ़ावा मिलेगा तथा जीवन सहायक प्रणालियों, रोबोटिक्स एवं अंतरिक्ष आवास जैसे क्षेत्रों में नवप्रवर्तन को बढ़ावा मिलेगा।
    • वेजी ग्रोथ सिस्टम के तहत ISS पर उगाई गई चीन की गोभी के बायोमास में कमी देखी गई।
  • नेतृत्व और प्रतिष्ठा: अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन होने से अंतरिक्ष अन्वेषण में वैश्विक नेतृत्वकर्त्ता के रूप में भारत की स्थिति मज़बूत होगी, इसकी तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन होगा और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी मज़बूत होगी।
    • इससे भारतीय कंपनियों को उपग्रह निर्माण, सर्विसिंग में व्यापक पहुँच मिलेगी तथा एयरोस्पेस क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा
  • मानव अंतरिक्ष उड़ान अनुभव: गगनयान मिशन की सफलता के आधार पर अंतरिक्ष स्टेशन, भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अनुभव प्राप्त कराने और लंबी अवधि के मिशनों में योगदान करने के लिये अधिक अवसर प्रदान करेगा।

अंतरिक्ष स्टेशनों के निर्माण और संचालन में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • डिज़ाइन और इंजीनियरिंग: अंतरिक्ष स्टेशनों को उन्नत इंजीनियरिंग की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे कठोर वातावरण में जीवन का समर्थन कर सकें। इससे संबंधित चुनौतियों में संबंधित ढाँचे को बनाए रखना, विकिरण सुरक्षा सुनिश्चित करना और वैज्ञानिक प्रयोगों के लिये एक स्थिर वातावरण बनाए रखना शामिल है।
  • जीवन रक्षक प्रणाली: वायु, जल और अपशिष्ट प्रबंधन के लिये विश्वसनीय प्रणाली विकसित करना महत्त्वपूर्ण है। इन प्रणालियों को लंबे समय तक स्वायत्त रूप से कार्य करना चाहिये, जिसमें अधिक तकनीकी की आवश्यकता होती है।
  • भारत के लिये वहनीयता: अंतरिक्ष स्टेशन में अधिक वित्तीय निवेश की आवश्यकता होती है। लागत में मॉड्यूल का निर्माण, लॉन्च व्यय और जीवन रक्षक तथा वैज्ञानिक उपकरणों का विकास शामिल है। 
    • उदाहरण के लिये कई देशों द्वारा साझा किये जाने वाले ISS की लागत 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है। एक छोटे राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की लागत 10-30 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बीच हो सकती है।
    • वर्ष 2024-25 के लिये ISRO का बजट लगभग 1.95 बिलियन अमेरिकी डॉलर (जो NASA के लगभग 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर से काफी कम है) है
    • सोवियत संघ ने अपने मीर अंतरिक्ष स्टेशन का रखरखाव बंद कर दिया क्योंकि इसके संचालन और रखरखाव की लागत लगातार बढ़ती जा रही थी।
  • अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा: विशेष रूप से अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों के साथ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से संबंधित प्रतिस्पर्द्धा जटिल हो सकती है
  • चालक दल का स्वास्थ्य और सुरक्षा: अंतरिक्ष यात्रियों का शारीरिक और मानसिक कल्याण सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है। लंबे समय तक माइक्रोग्रेविटी और अलगाव के कारण स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
    • लंबे समय तक माइक्रोग्रेविटी के संपर्क में रहने से अंतरिक्ष यात्रियों की अस्थियों का द्रव्यमान प्रति माह 1% तक कम हो सकता है
    • शरीर के द्रव वितरण में परिवर्तन से अंतःकपालीय स्ट्रेस बढ़ सकता है जिससे दृष्टि संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।
  • आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन: स्टेशन को बनाए रखने के लिये नियमित रूप से पुनः आपूर्ति मिशन आवश्यक हैं जिसमें भोजन, उपकरण और वैज्ञानिक नमूने पहुँचाना शामिल है। इसके लिये उचित योजना और समन्वय की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिये भारत के पास पुन: प्रयोज्य रॉकेटों का बेड़ा नहीं है जिनका उपयोग अंतरिक्ष स्टेशन तक आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन हेतु किया जा सके।

निष्कर्ष

भारत के दूरदर्शी अंतरिक्ष कार्यक्रम में अंतरिक्ष स्टेशन का विकास तथा चंद्रयान-4 और शुक्र अन्वेषण मिशन शामिल हैं। ये पहल वैज्ञानिक अनुसंधान को आगे बढ़ाने के साथ चंद्रमा के बारे में समझ को बढ़ाएंगी और शुक्र की स्थितियों के बारे में जानकारी प्रदान करेंगी। यह महत्त्वाकांक्षी योजना अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की बढ़ती भूमिका को रेखांकित करती है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: ISRO के प्रस्तावित अंतरिक्ष मिशन वैज्ञानिक अनुसंधान, तकनीकी उन्नति और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में किस प्रकार योगदान देंगे?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

इसरो द्वारा प्रक्षेपित मंगलयान

  1. को मंगल ऑर्बिटर मिशन भी कहा जाता है। 
  2. के कारण अमेरिका के बाद मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाला भारत दूसरा देश बना। 
  3. ने भारत को अपने अंतरिक्ष यान को अपने पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह की परिक्रमा करने में सफल होने वाला एकमात्र देश बना दिया।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स

Q. भारत के तीसरे चंद्रमा मिशन का मुख्य कार्य क्या है जिसे इसके पहले के मिशन में हासिल नहीं किया जा सका? जिन देशों ने इस कार्य को हासिल कर लिया है उनकी सूची दीजिये। प्रक्षेपित अंतरिक्ष यान की उपप्रणालियों को प्रस्तुत कीजिये और विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के 'आभासी प्रक्षेपण नियंत्रण केंद्र' की उस भूमिका का वर्णन कीजिये जिसने श्रीहरिकोटा से सफल प्रक्षेपण में योगदान दिया है। (2023)

Q. प्रश्न: भारत की अपना स्वयं का अंतरिक्ष केंद्र प्राप्त करने की क्या योजना है और हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को यह किस प्रकार लाभ पहुँचाएगी? (वर्ष 2019)

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