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डेली न्यूज़

  • 30 Dec, 2021
  • 66 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रूस में तुर्की का रुख- यूक्रेन संकट

प्रिलिम्स के लिये:

नाटो, यूरोपीय संघ, संयुक्त राष्ट्र, तुर्की, यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन, मिन्स्क शांति प्रक्रिया, काला सागर क्षेत्र और इसके आसपास के देश।

मेन्स के लिये:

रूस का वैश्विक प्रभाव- यूक्रेन संकट और भारत पर इसका प्रभाव, ऐसी स्थितियों में भारत जो भूमिका निभा सकता है, रूस-यूक्रेन संकट में अमेरिका की भूमिका।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तुर्की ने रूस से उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) और यूक्रेन के संबंध में अपनी एकतरफा मांगों को छोड़ने का आग्रह किया।

  • तुर्की ने रूस से पश्चिमी गठबंधन (अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों) के साथ अपनी मांगों में एक उदारवादी दृष्टिकोण अपनाने का भी अनुरोध किया।
  • इससे पहले अमेरिकी खुफिया रिपोर्टों में कहा गया था कि रूस-यूक्रेन सीमा पर तनाव क्षेत्र एक बड़ा सुरक्षा संकट है।

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प्रमुख बिंदु 

  • पृष्ठभूमि:
    • इतिहास:
      • यूक्रेन और रूस सैकड़ों वर्षों से सांस्कृतिक, भाषायी और पारिवारिक संबंध साझा करते रहे हैं।
      • रूस और यूक्रेन के जातीय रूप से रूसी भागों में कई लोगों के लिये, देशों की साझा विरासत एक भावनात्मक मुद्दा है जिसका चुनावी और सैन्य उद्देश्यों के लिये प्रयोग किया गया है।
      • सोवियत संघ के हिस्से के रूप में यूक्रेन रूस के बाद दूसरा सबसे शक्तिशाली सोवियत गणराज्य था और रणनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण था।
    • संघर्ष:
      • जब से यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ है, रूस और पश्चिमी देशों ने इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन को अपने पक्ष में बनाए रखने के लिये और यूक्रेन में अधिक प्रभाव हेतु संघर्ष किया है।
      • साथ ही काला सागर क्षेत्र का अद्वितीय भौगोलिक स्थिति रूस को कई भू-राजनीतिक लाभ प्रदान करता है।
      • पूर्वी यूक्रेन का डोनबास क्षेत्र (डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्र) वर्ष 2014 से रूस समर्थक अलगाववादी आंदोलन का सामना कर रहा है।
      • वर्ष 2014 में, रूस ने यूक्रेन से क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया था, जो विश्व युद्ध-2 (1939-1945) के बाद एक यूरोपीय देश द्वारा किसी अन्य देश के क्षेत्र पर सबसे बड़ा कब्जा था।
      • वर्ष 2015 में रूस, यूक्रेन, यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन (ओएससीई) के प्रतिनिधियों और मध्यस्थता के तहत दो रूसी समर्थक अलगाववादी क्षेत्रों के नेताओं द्वारा फ्राँस और जर्मनी की मध्यस्थता से 'मिन्स्क II' शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद एक खुला संघर्ष टल गया था।
      • हाल ही में यूक्रेन ने नाटो से गठबंधन में अपने देश की सदस्यता हेतु तेज़ी लाने का आग्रह किया।
      • रूस ने इस तरह के एक कदम को "रेड लाइन" घोषित कर दिया क्योंकि वह अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधनों के विस्तार के परिणामों से चिंतित था।
  • वर्तमान स्थिति:
    • रूस अमेरिका से आश्वासन मांग रहा है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं किया जाएगा। हालाँकि अमेरिका ऐसा कोई आश्वासन देने को तैयार नहीं है।
    • पश्चिमी देशों से प्रतिबंधों में राहत और अन्य रियायतें प्राप्त करने के लिये रूस यूक्रेन की सीमा पर तनाव बढ़ा रहा है।
    • रूस के खिलाफ अमेरिका या यूरोपीय संघ (ईयू) द्वारा किसी भी प्रकार की सैन्य कार्रवाई पूरी दुनिया के लिये एक बड़ा संकट पैदा करेगी।
    • हालाँकि अमेरिका ने रूस की चिंताओं को कम करने के लिये नाटो गठबंधन और रूस के बीच बातचीत को फिर शुरू करने की पेशकश की है।
      • जनवरी 2022 के लिये नाटो-रूस परिषद की एक बैठक प्रस्तावित की गई है, हालाँकि यूक्रेन सार्वजनिक रूप से सहमत नहीं हुआ है।
  • तुर्की का पक्ष:
    • तुर्की ने यूक्रेन को लड़ाकू ड्रोन की आपूर्ति करके रूस को चिढ़ाया है और रूस को डर है कि यूक्रेन द्वारा पूर्वी क्षेत्रों में अलगाववादियों के साथ संघर्ष में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
    • साथ ही तुर्की ने रूस से एक उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणाली प्राप्त करके अमेरिका और नाटो को भी परेशान किया है जिसके परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका ने उस पर प्रतिबंध लगा दिये थे।
    • तुर्की ने रूस और पश्चिमी रक्षा गठबंधन से नाटो प्रमुख ‘जेन्स स्टोलटेनबर्ग’ द्वारा प्रस्तावित प्रत्यक्ष वार्ता के माध्यम से अपने मतभेदों को दूर करने का आग्रह किया है।
  • भारत का पक्ष
  • भारत, पश्चिमी शक्तियों द्वारा क्रीमिया में रूस के हस्तक्षेप की निंदा में शामिल नहीं हुआ और उसने इस मुद्दे पर एक तटस्थ स्थिति बनाए रखी।
  • नवंबर 2020 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र (UN) में यूक्रेन द्वारा प्रायोजित एक प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, जिसमें क्रीमिया में कथित मानवाधिकार उल्लंघन की निंदा की गई थी। भारत ने इस मुद्दे पर पुराने सहयोगी रूस का समर्थन किया था। 

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन

  • नाटो की स्थापना 4 अप्रैल, 1949 की उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों के ज़रिये सोवियत संघ के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये की गई थी।
  • संधि के एक प्रमुख प्रावधान (अनुच्छेद 5) में कहा गया है कि यदि गठबंधन के एक सदस्य पर हमला किया जाता है, तो इसे सभी सदस्यों पर किये गए हमले के रूप में देखा जाएगा। इसने पश्चिमी यूरोप को अमेरिका के ‘परमाणु छत्र’ के तहत प्रभावी रूप से सुरक्षित किया है।
  • अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 के हमलों के बाद सितंबर 2001 में नाटो ने केवल एक बार अनुच्छेद 5 को लागू किया है।
  • वर्ष 2019 तक इसमें 29 सदस्य राज्य हैं और ‘मोंटेनेग्रो’ वर्ष 2017 में गठबंधन में शामिल होने वाला नवीनतम सदस्य बन गया है।
  • ‘सुरक्षा और यूरोप में सहयोग के लिये संगठन’ (OSCE)
  • इसे वर्ष 1972 में स्थापित किया गया था और इसके पहले सम्मेलन (1973-75) में यूरोप के सभी 33 देशों (अल्बानिया के अपवाद के साथ) और संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाडा ने भाग लिया था।
  • ‘सुरक्षा और यूरोप में सहयोग के लिये संगठन’ (OSCE) विश्व का सबसे बड़ा सुरक्षा-उन्मुख अंतर-सरकारी संगठन है। इसके जनादेश (Mandate) में हथियार नियंत्रण, मानवाधिकारों को बढ़ावा देना, प्रेस की स्वतंत्रता और निष्पक्ष चुनाव जैसे मुद्दे शामिल हैं।
  • भाग लेने वाले सभी सभी 57 राज्यों को समान दर्जा प्राप्त है और निर्णय राजनीतिक रूप से सर्वसम्मति से लिये जाते हैं, लेकिन कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते हैं।
  • भारत इसका भागीदार देश नहीं है।
  • ओपन स्काईज़ कंसल्टेटिव कमीशन की नियमित रूप से वियना में OSCE के सचिवालय में बैठक होती है।
  • यह ओपन स्काईज़ संधि का कार्यान्वयन निकाय है, जिसने वर्ष 2002 में अपने 33 हस्ताक्षरकर्त्ताओं के क्षेत्र में निहत्थे हवाई अवलोकन उड़ानों हेतु एक नियामक शासन स्थापित किया था।

आगे की राह

  • स्थिति का एक व्यावहारिक समाधान ‘मिन्स्क शांति प्रक्रिया’ को पुनर्जीवित करना है। इसलिये पश्चिम देशों (अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों) को दोनों पक्षों को बातचीत फिर से शुरू करने तथा सीमा पर सापेक्ष शांति बहाल करने के लिये मिन्स्क समझौते के अनुसार अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने हेतु प्रेरित करना चाहिये।
  • यूरोपीय सुरक्षा को हो रहे नुकसान और यूक्रेन की संप्रभुता के लिये खतरे को रोकने हेतु अमेरिका को सभी पक्षों से OSCE-मध्यस्थता प्रक्रिया में शामिल होने हेतु समझौता करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत-अमेरिका: प्रौद्योगिकी आधारित ऊर्जा समाधान

प्रिलिम्स के लिये:

नेट ज़ीरो,जलवायु परिवर्तन एवं इसके प्रभाव, क्लीन एनर्जी, यूनाइटेड स्टेट्स-इंडिया साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंडॉमेंट फंड, ,जलवायु परिवर्तन पर विभिन्न साझेदारी।

मेन्स के लिये:

भारत-अमेरिका सहयोग, जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा चुनौतियों से निपटना, स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और अमेरिका ने जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा चुनौतियों से निपटने के लिये 'प्रौद्योगिकी आधारित ऊर्जा समाधान: नेट ज़ीरो के लिये नवाचार' नामक एक कार्यक्रम शुरू किया।

  • यह यूनाइटेड स्टेट्स-इंडिया साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंडॉमेंट फंड (USISTEF) द्वारा इग्निशन ग्रांट के लिये किया गया है।

यूनाइटेड स्टेट्स-इंडिया साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंडॉमेंट फंड (USISTEF)

  • अमेरिकी सरकार (राज्य विभाग के माध्यम से) और भारत (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के माध्यम से) ने यूएस-इंडिया साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंडॉमेंट फंड (USISTEF) की स्थापना की है।
  • यह संयुक्त गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये स्थापित किया गया है जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के माध्यम से नवाचार एवं उद्यमिता को बढ़ावा देगा।
  • इस फंड का उद्देश्य अमेरिका और भारतीय शोधकर्त्ताओं एवं उद्यमियों के बीच निरंतर भागीदारी के माध्यम से विकसित प्रौद्योगिकी के व्यावसायीकरण द्वारा सार्वजनिक भलाई के लिये संयुक्त अनुप्रयुक्त अनुसंधान एवं विकास को समर्थन और बढ़ावा देना है।. 
  • यूएस-इंडिया साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंडॉमेंट फंड गतिविधियों को द्वि-राष्ट्रीय इंडो-यूएस साइंस एंड टेक्नोलॉजी फोरम (आईयूएसएसटीएफ) के माध्यम से कार्यान्वित और प्रशासित किया जाता है।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • इस कार्यक्रम के माध्यम से भारत-अमेरिका विज्ञान और प्रौद्योगिकी-आधारित उद्यमशीलता पहल की मदद तथा समर्थन किया जाएगा है जो अगली पीढ़ी की स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा भंडारण तथा कार्बन पृथक्करण के विकास एवं  कार्यान्वयन को संबोधित करता है।
    • नया कार्यक्रम यूएस-इंडिया स्ट्रैटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप (एससीईपी) के लक्ष्यों के अनुरूप है और इसे द्वि-राष्ट्रीय इंडो-यूएस साइंस एंड टेक्नोलॉजी फोरम (आईयूएसएसटीएफ) द्वारा प्रशासित किया जाएगा।
    • SCEP को वर्ष 2021 की शुरुआत में आयोजित ‘लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट’ में दोनों देशों द्वारा घोषित ‘यूएस-इंडिया क्लाइमेट एंड क्लीन एनर्जी एजेंडा 2030 पार्टनरशिप’ के तहत लॉन्च किया गया था।.
      • आईयूएसएसटीएफ भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) और अमेरिकी राज्य विभाग के तहत एक द्विपक्षीय संगठन है।
      • यह इस क्षेत्र में 'प्रौद्योगिकी शोस्टॉपर्स' या होनहार संयुक्त भारत-अमेरिका एस एंड टी-आधारित उद्यमशीलता पहल की पहचान और समर्थन करेगा।
    • जलवायु परिवर्तन आज हमारी दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है जो इस संकट से निपटने के लिये वैश्विक सहयोग का आह्वान कर रही है।
  • अमेरिका-भारत संबंधों में हाल के घटनाक्रम:
    • मालाबार अभ्यास: क्वाड राष्ट्रों (भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) की नौसेनाओं ने अभ्यास के 25 वें संस्करण में भाग लिया।
    • ALUAV पर भारत-अमेरिका समझौता: भारत और अमेरिका ने एक एयर-लॉन्च मानव रहित हवाई वाहन (ALUAV) या ड्रोन को संयुक्त रूप से विकसित करने हेतु एक प्रोजेक्ट एग्रीमेंट (PA) पर हस्ताक्षर किये हैं जिसे एक विमान से लॉन्च किया जा सकता है।
    • मुक्त व्यापार समझौते के मुद्दे: अमेरिकी प्रशासन ने संकेत दिया है कि अब भारत के साथ द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) करने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है।
    • निसार: नासा और इसरो एक एसयूवी (स्पोर्ट यूटिलिटी व्हीकल) के आकार का उपग्रह विकसित करने में सहयोग कर रहे हैं, जिसे निसार कहा जाता है, जो एक टेनिस कोर्ट के आधे आकार में 0.4 इंच जितना छोटा ग्रह की सतह की गतिविधियों का पता लगाएगा।
  • अन्य राष्ट्रों के साथ जलवायु परिवर्तन पर साझेदारी
    • यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप।
    • भारत-यूरोपीय संघ: पेरिस समझौता, आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे हेतु गठबंधन, पार्टियों का सम्मेलन (सीओपी 26)।
    • वन और भूमि उपयोग पर ग्लासगो नेताओं की घोषणा।
    • जैव विविधता पर कुनमिंग घोषणा।

जलवायु परिवर्तन

  • जलवायु परिवर्तन' शब्द का तात्पर्य प्राकृतिक प्रक्रियाओं या मानव गतिविधि के परिणामस्वरूप सहस्राब्दियों से या हाल ही में वातावरण के व्यवहार के दीर्घकालिक पैटर्न में परिवर्तन से है।
    • जलवायु को मौसम से अलग परिभाषित किया जाता है, जो किसी विशेष समय पर जलवायु का विशिष्ट व्यवहार है। मौसम विशिष्ट घटनाओं से निर्मित होता है, उदाहरण के लिये एक विशेष तूफान, एक विशेष अवधि में वर्षा, एक विशेष समय पर तापमान। 
  • हालांँकि, ऐसे कई संभावित तरीके हैं जिनके द्वारा सीप्रिलिमेट(Cprilimate) का वर्णन किया जा सकता है। ये आमतौर पर तापमान, वर्षा, हवा और बादल में औसत या परिवर्तनशीलता से जुड़े होते हैं।
  • जलवायु स्थानिक रूप से भिन्न होती है, उदाहरण के लिये भूमध्य रेखा या समुद्र से दूरी के आधार पर तथा अस्थायी रूप से मौसमी और दैनिक विविधताओं के आधार पर।

जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने हेतु भारतीय पहलें:

आगे की राह

  • हमें इनोवेशन पाइपलाइन को अभूतपूर्व गति से बढ़ाना है और महत्त्वपूर्ण स्वच्छ प्रौद्योगिकियों पर हरित प्रीमियम को कम करने के लिये भारी निवेश करना है और नेट जीरो में संक्रमण हेतु नए बाज़ार और उद्योग बनाने के लिये उद्यमशीलता को आकर्षित करना है।
  • तेजी से स्केलेबल स्वच्छ ऊर्जा समाधानों को आगे बढ़ाने के लिये आवश्यक वैश्विक पहल और परिवर्तनकारी रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये जैसे कि स्मार्ट ऊर्जा उपयोग, नवीकरणीय प्रौद्योगिकियांँ, परिवहन और भवनों का विद्युतीकरण। 
  • देश के हर शहर, व्यवसाय और वित्तीय संस्थान को नेट-जीरो में संक्रमण के लिये ठोस योजनाओं को अपनाने की तत्काल आवश्यकता है।
  • सरकारों के लिये और भी जरूरी है कि वे इस दीर्घकालिक महत्त्वाकांक्षा को बढ़ाएँ, क्योंकि कोविड-19 महामारी को दूर करने के लिये खरबों डॉलर जुटाए गए हैं। अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करना हमारे भविष्य को फिर से सुधारने का मौका है।

स्रोत: पी.आई.बी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोविड के लिये नए टीके और दवा

प्रिलिम्स के लिये:

टीके और प्रकार, वायरस स्ट्रेन, म्यूटेशन। कॉर्बेवैक्स एवं कोवोवैक्स, मोलनुपिरवीर, स्पाइक प्रोटीन।

मेन्स के लिये:

वायरल संक्रमण के इलाज में वैक्सीन का तंत्र। टीकों के प्रकार।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिये दो टीके कॉर्बेवैक्स और कोवोवैक्स एवं एक दवा मोलनुपिरवीर को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु

  • कॉर्बेवैक्स प्रोटीन सब-यूनिट वैक्सीन:
    • परिचय:
    • यह एक प्रोटीन सब-यूनिट वैक्सीन है, जिसका अर्थ है कि पूरे वायरस के बजाय, यह प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करने के लिये इसके टुकड़ों का उपयोग करती है।
    • इस मामले में सबयूनिट वैक्सीन में एक हानिरहित स्पाइक (एस) प्रोटीन होता है।
      • एस प्रोटीन एक अत्यधिक ग्लाइकोसिलेटेड और बड़े प्रकार का ट्रांसमेम्ब्रेन फ्यूज़न प्रोटीन है जो वायरस के प्रकार के आधार पर 1,160 से 1,400 अमीनो एसिड से बना होता है।
      • एस प्रोटीन मेजबान कोशिकाओं में प्रवेश करने और संक्रमण शुरू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • एक बार जब प्रतिरक्षा प्रणाली प्रोटीन को पहचान लेती है, तो ऐसा होने पर यह वास्तविक संक्रमण से लड़ने के लिये एंटीबॉडी का उत्पादन करती है।
  • दक्षत:
    • यह डेल्टा स्ट्रेन के खिलाफ तटस्थ एंटीबॉडी प्रकाशित अध्ययनों के आधार पर रोगसूचक संक्रमण की रोकथाम के लिये 80% से अधिक की वैक्सीन प्रभावशीलता को इंगित करती है।
    • इम्युनोजेनिक श्रेष्ठता के समापन बिंदु के साथ किये गए निर्णायक चरण III के अध्ययन में यह COVISHIELD वैक्सीन की तुलना में बेहतर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का प्रदर्शन करता है, जब वुहान स्ट्रेन और विश्व स्तर पर प्रमुख डेल्टा संस्करण के खिलाफ एंटीबॉडी जियोमेट्रिक मीन टाइटर्स (जीएमटी) को निष्क्रिय करने के लिये मूल्यांकन किया जाता है।
  • कोवोवैक्स- पुनः संयोजक नैनोपार्टिकल वैक्सीन:
    • परिचय:
      • सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) द्वारा निर्मित यह एक प्रोटीन सबयूनिट वैक्सीन भी है, लेकिन रिकॉम्बिनेंट नैनोपार्टिकल टेक्नोलॉजी (आरएनटी) का उपयोग करती है। इसे अमेरिका स्थित नोवावैक्स ने विकसित किया है।
        • कोविड-19 वायरस के खिलाफ रिकॉम्बिनेंट प्रोटीन वैक्सीन एक और तरीका है। यह तकनीक शरीर को स्पाइक प्रोटीन का उपयोग करके वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा विकसित करने का तरीका सिखाती है।
      • स्पाइक प्रोटीन की हानिरहित प्रतियाँ कीट कोशिकाओं में उगाई जाती हैं; फिर प्रोटीन को निकाला जाता है और वायरस जैसे नैनोकणों में इकट्ठा किया जाता है।
      • नोवावैक्स ने एक प्रतिरक्षा-बढ़ाने वाले यौगिक (सहायक) का उपयोग किया है। एचपीवी और हेपेटाइटिस बी के टीके में एक ही तकनीक का उपयोग किया जाता है।
    • दक्षता:
      • टीके का मूल्यांकन दो चरणों में 3 परीक्षणों के माध्यम से किया गया है: यूके में एक परीक्षण जिसने मूल वायरस स्ट्रेन के खिलाफ 96.4%, अल्फा के खिलाफ 86.3% और समग्र रूप से 89.7% प्रभावकारिता का प्रदर्शन किया।
  • मोलनुपिरवीर - ओरल एंटीवायरल ड्रग:
    • परिचय:
      • यह वायरस के आनुवंशिक कोड में त्रुटियों को पेश करके काम करता है, जो प्रतिकृति को रोकता है।
    • दक्षता:
      • यूके ने मोलनुपिरवीर को "सुरक्षित और प्रभावी" रूप में मंज़ूरी दे दी।
      • अमेरिका ने इसे लगातार पाँच दिनों से अधिक समय तक या 18 वर्ष से कम उम्र के रोगियों में उपयोग के लिये अधिकृत नहीं किया क्योंकि यह हड्डी और उपास्थि के विकास को प्रभावित कर सकता है।
      • भारत में 93% से अधिक ऑक्सीजन स्तर वाले वयस्क कोविड रोगियों के इलाज के लिये सिफारिश की जाती है जिनके रोग के बढ़ने का उच्च जोखिम होता है और यह कि दवा केवल नुस्खे के तहत खुदरा द्वारा बेची जाती है।

टीकों के प्रकार

  • निष्क्रिय टीका: बड़ी संख्या में सक्रिय रोगजनक उत्पन्न किये जाते हैं तत्पश्चात् उन्हें रसायनों अथवा ऊष्मा की सहायता से निष्क्रिय कर दिया जाता है। यद्यपि रोगजनक को निष्क्रिय कर दिया जाता है या इनकी प्रजनन क्षमता को समाप्त कर दिया जाता है, रोगजनक के विभिन्न हिस्से बरकरार रहते हैं जैसे-एंटीजन (रासायनिक संरचना) जिसकी पहचान प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा की जाती है, को अछूता रखा जाता है।
    • क्योंकि रोगजनक मृत होता है, इसलिये न तो यह प्रजनन करने में सक्षम होता है, न ही किसी रोग का कारण बन सकता है। अतः कम प्रतिरक्षा वाले लोगों जैसे कि वृद्ध एवं सहरुग्णता वाले लोगों को इन्हें दिया जाना सुरक्षित होता है।
  • सक्रिय टीका: इनमें किसी रोगाणु के कमज़ोर (अथवा क्षीण) रूप का उपयोग किया जाता है।
    • क्योंकि यह वैक्सीन प्राकृतिक संक्रमण से इतनी मिलती-जुलती होती है कि एक शक्तिशाली एवं दीर्घकालीन प्रतिरक्षा प्रदान कर सकती है।
    • नोट: चूँकि इसमें अल्प मात्रा में कमज़ोर सक्रिय विषाणु होते हैं, इसलिये कमज़ोर प्रतिरक्षा तंत्र वाले लोग, दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं वाले व्यक्ति अथवा जिन व्यक्तियों का अंग प्रत्यारोपण हुआ हो, उन्हें स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के पूर्व परामर्श के बिना यह टीका नहीं लगाया जाता।
  • मैसेंजर (m) RNA टीके:
    • mRNA टीके प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करने के लिये प्रोटीन बनाते हैं। mRNA टीकों के अन्य प्रकार के टीकों की तुलना में कई लाभ होते हैं जिनमें कम निर्माण समय भी शामिल है तथा टीकाकरण कराने वाले व्यक्ति में बीमारी पैदा करने का कोई ज़ोखिम नहीं होता है। क्योकि इसमे एक मृत वायरस प्रयोग होता है, 
    • टीकों का उपयोग कोविड-19 जैसी महामारी से बचाव के लिये किया जाता है।
  • सब-यूनिट, पुनः संयोजक, पॉलीसेकेराइड और संयुग्म टीके:
    • इनमें प्रोटीन, चीनी या कैप्सिड (रोगाणु के चारों ओर एक आवरण) जैसे रोगाणु के विशिष्ट टुकड़ों का उपयोग किया जाता है। यह बहुत मज़बूत प्रतिरक्षा प्रणाली प्रदान करते हैं।
    • इनका उपयोग कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली और दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं वाले लोगों पर भी किया जा सकता है।
    • इन टीकों का उपयोग हिब (हीमोफिलस इन्फ्लुएंज़ा टाइप बी) रोग, हेपेटाइटिस बी, एचपीवी (ह्यूमन पेपिलोमावायरस), न्यूमोकोकल रोग से बचाने के लिये किया जाता है।
  • टॉक्सोइड टीके:
    • इनमें रोग का कारण बनने वाले रोगाणु द्वारा निर्मित विष (हानिकारक उत्पाद) का उपयोग किया जाता है। यह रोगाणु के उन हिस्सों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता पैदा करते हैं जो रोगाणु के बजाय रोग का कारण बनते हैं। इसका मतलब है कि प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पूरे रोगाणु के बजाय विष को लक्षित करती है।
    • डिप्थीरिया, टेटनस से बचाव के लिये टॉक्सोइड टीकों का उपयोग किया जाता है।
  • वायरल वेक्टर टीके:
    • वायरल वेक्टर टीके सुरक्षा प्रदान करने के लिये वेक्टर के रूप में एक अलग वायरस के संशोधित संस्करण का उपयोग करते हैं।
    • कई अलग-अलग वायरस को वैक्टर के रूप में इस्तेमाल किया गया है, जिसमें इन्फ्लूएंज़ा, वेसिकुलर स्टामाटाइटिस वायरस (वीएसवी), खसरा वायरस और एडेनोवायरस शामिल हैं, जो सामान्य सर्दी का कारण बनते हैं।
      • एडिनोवायरस कुछ कोविड-19 टीकों में उपयोग किये जाने वाले वायरल वैक्टर में से एक है जिसका नैदानिक ​​परीक्षणों में अध्ययन किया जा रहा है।
    • टीकों का उपयोग कोविड-19 से बचाव के लिये किया जाता है

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य संबंधी भारत की उपलब्धियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य प्राप्त करने हेतु योजनाएँ और कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ, भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य, चुनौतियाँ और इसे प्राप्त करने हेतु की गई पहलें।

चर्चा में क्यों?

भारत ने नवंबर 2021 में वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से अपनी स्थापित बिजली क्षमता का 40% हासिल करने का लक्ष्य हासिल कर लिया है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत की नवीकरणीय ऊर्जा (RE) क्षमता:
    • 30 नवंबर 2021 को देश की स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा (RE) क्षमता 150.54 गीगावाट (सौर: 48.55 गीगावाट, पवन: 40.03 गीगावाट, लघु जलविद्युत: 4.83, जैव-शक्ति: 10.62, लार्ज हाइड्रो: 46.51 गीगावाट) है, जबकि भारत की परमाणु ऊर्जा आधारित स्थापित बिजली क्षमता 6.78 गीगावाट है।
      • भारत के पास विश्व की चौथी सबसे बड़ी पवन ऊर्जा क्षमता है।
    • इस प्रकार भारत की कुल गैर-जीवाश्म आधारित स्थापित ऊर्जा क्षमता 157.32 गीगावाट है, जो कि 392.01 गीगावाट की कुल स्थापित बिजली क्षमता का 40.1% है।
    • COP26 में भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 500 GW स्थापित बिजली क्षमता प्राप्त करने हेतु प्रतिबद्धता ज़ाहिर की थी।
  • लक्ष्य प्राप्ति संबंधी चुनौतियाँ:
    • आवश्यक वित्त एकत्र करना:
      • बड़े परिनियोजन लक्ष्यों के लिये वित्त की व्यवस्था करने हेतु बैंकिंग क्षेत्र को तैयार करना, दीर्घावधिक अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण और तकनीकी एवं वित्तीय बाधाओं को संबोधित करके जोखिम कम करने या साझा करने के लिये एक उपयुक्त तंत्र का अभाव इस संबंध में एक चुनौती है। 
    • भूमि अधिग्रहण
      • अक्षय ऊर्जा क्षमता के साथ भूमि की पहचान, उसका रूपांतरण (यदि आवश्यक हो), भूमि सीमा अधिनियम के तहत मंज़ूरी, भूमि पट्टा किराए पर निर्णय, राजस्व विभाग से मंज़ूरी और ऐसी अन्य मंज़ूरी में समय लगता है।
      • RE परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण में राज्य सरकारों को प्रमुख भूमिका निभानी होगी। 
    • पारितंत्र बनाना:
      • देश में एक नवाचार और विनिर्माण पारितंत्र बनाना।
    • अन्य:
      • ग्रिड के साथ अक्षय ऊर्जा के बड़े हिस्से को एकीकृत करना।
      • अक्षय ऊर्जा से फर्म और प्रेषण योग्य बिजली की आपूर्ति को सक्षम करना।
      • तथाकथित हार्ड टू डीकार्बोनाइज़ क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा के प्रवेश को सक्षम बनाना।

संबंधित पहलें:

PM-कुसुम:

यह ग्रामीण क्षेत्रों में ऑफ-ग्रिड सौर पंपों की स्थापना का समर्थन करने और ग्रिड से जुड़े क्षेत्रों में ग्रिड पर निर्भरता को कम करने के लिये नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा शुरू किया गया था।

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PIL) योजना:

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना "उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल पर राष्ट्रीय कार्यक्रम" को भारत में सेल, वेफर्स और पॉलीसिलिकॉन जैसे अपस्टेज वर्टिकल घटकों सहित उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल के निर्माण के समर्थन के लिये 4500 करोड़ रूपए के परिव्यय के साथ प्रारंभ किया गया था और यह सौर फोटोवोल्टिक (PV) क्षेत्र में आयात निर्भरता को कम करती है।

सौर पार्क योजना:

बड़े पैमाने पर ग्रिड से जुड़ी सौर ऊर्जा परियोजनाओं की सुविधा के लिये मार्च 2022 तक 40 गीगावाट क्षमता की लक्ष्य क्षमता के साथ "सौर पार्कों और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विकास" की एक योजना लागू की जा रही है।

रूफ टॉप सोलर प्रोग्राम फेज-II:

  • यह आवासीय क्षेत्र को 4 गीगावाट तक की सोलर रूफ टॉप क्षमता की वित्तीय सहायता प्रदान करता है और पिछले वर्ष की तुलना में वृद्धिशील उपलब्धि के लिये बिजली वितरण कंपनियों को प्रोत्साहित करने का प्रावधान है। 
  • केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (CPSU) योजना:
    • केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा घरेलू सेल और मॉड्यूल के साथ 12 गीगावाट ग्रिड-कनेक्टेड सौर पीवी विद्युत परियोजनाओं की स्थापना के लिये एक योजना लागू की जा रही है। इस योजना के तहत व्‍यवहार्यता अंतर वित्त पोषण सहायता प्रदान की जाती है।
  • हाइड्रोजन मिशन:
    • प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन के शुभारंभ की घोषणा की और भारत को हरित हाइड्रोजन उत्पादन एवं निर्यात के लिये एक वैश्विक केंद्र बनाने का लक्ष्य रखा।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन:
    • ISA एक अंतर-सरकारी संधि-आधारित संगठन है, जिसके पास वित्तपोषण और प्रौद्योगिकी की लागत को कम करने में मदद करके सौर विकास को उत्प्रेरित करने का वैश्विक जनादेश है। हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ISA में शामिल होने वाला 101वाँ सदस्य देश बन गया है।
  • OSOWOG:
    • OSOWOG को भारत और यूके द्वारा संयुक्त रूप से ग्लासगो में COP26 क्लाइमेट मीट में जारी किया गया था।
  • राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति: 
    • राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति, 2018 का मुख्य उद्देश्य पवन और सौर संसाधनों, पारेषण बुनियादी ढाँचे और भूमि के इष्टतम तथा कुशल उपयोग के लिये बड़े ग्रिड से जुड़े पवन-सौर पीवी हाइब्रिड सिस्टम को बढ़ावा देने के लिये एक ढाँचा प्रदान करना है।
  • राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति: 
    • राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति को अक्तूबर 2015 में भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में 7600 किलोमीटर की भारतीय तटरेखा के साथ अपतटीय पवन ऊर्जा विकसित करने के उद्देश्य से अधिसूचित किया गया था।
  • विद्युत उत्पादन के लिये अन्य नवीकरणीय वस्तुएँ:
    • शहरी, औद्योगिक और कृषि अपशिष्टों/अवशेषों से ऊर्जा उत्पादन पर कार्यक्रम।
    • चीनी मिलों और अन्य उद्योगों में बायोमास आधारित सह उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये योजना।
    • बायोगैस पावर (ऑफ-ग्रिड) उत्पादन और थर्मल एप्लीकेशन प्रोग्राम (BPGTP)।
    • नया राष्ट्रीय बायोगैस और जैविक खाद कार्यक्रम (NNBOMP)।

आगे की राह:

  • क्षेत्रों की पहचान: नवीनीकरण संसाधन विशेष रूप से पवन ऊर्जा को हर जगह स्थापित नहीं किया जा सकता क्योकि इनके लिये विशिष्ट स्थान की आवश्यकता होती है।
    • इन विशिष्ट स्थानों की पहचान, उन्हें मुख्य ग्रिड के साथ एकीकृत करना और शक्तियों का वितरण जैसे तीनों संयोजन ही भारत को आगे ले जा सकते हैं।
  • अन्वेषण: अधिक संग्रहण समाधान तलाशने की आवश्यकता है।
  • कृषि सब्सिडी: कृषि सब्सिडी में सुधार किया जाना चाहिये ताकि आवश्यक मात्रा में ऊर्जा की खपत को सुनिश्चित किया जा सके।
  • हाइड्रोजन ईंधन सेल आधारित वाहन और इलेक्ट्रिक वाहन: जब ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की ओर बढ़ने की बात आती है तो ये सबसे उपयुक्त विकल्प होते हैं, जहाँ हमें काम करने की आवश्यकता होती है।

स्रोत: पी.आई.बी


भारतीय अर्थव्यवस्था

ऑनलाइन सर्टिफिकेट ऑफ ओरिजन फॉर मर्चेंडाईज एक्सपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

सर्टिफिकेट ऑफ ओरिजिन (CoO), ट्रेड एग्रीमेंट के प्रकार।

मेन्स के लिये:

निर्यात प्रोत्साहन योजनाएँ और भारत द्वारा हस्ताक्षरित व्यापार समझौतों का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

केंद्र ने 31 जनवरी 2022 तक निर्यातकों पर प्रत्येक आउटबाउंड खेप के लिये सर्टिफिकेट ऑफ ओरिजिन (CoO) प्राप्त करने के लिये अनिवार्य दायित्व को निलंबित कर दिया है। .

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • जिन देशों के साथ भारत का अधिमानी व्यापार समझौता (PTA) हुआ था, उन देशों को निर्यात के लिये 2019 के अंत में ऑनलाइन CoO प्रणाली को नवंबर 2021 से सभी व्यापारिक निर्यात को कवर करने के लिये विस्तारित किया गया था।
    • यह मंच सभी निर्यातकों, सभी मुक्त व्यापार समझौतों (FTA)/अधिमान्य व्यापार समझौतों (PTA) और सभी संबंधित एजेंसियों के लिये एकल पहुँच बिंदु के रूप में कार्य करता है।
  • निर्माण:
    • मंच को विदेश व्यापार महानिदेशक (DGFT) तथा क्षेत्रीय और बहुपक्षीय व्यापार संबंध (RMTR) डिवीजन, वाणिज्य विभाग, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा डिज़ाइन एवं विकसित किया गया है।
  • महत्त्व:
    • यह ऑनलाइन सुविधा निर्यातक समुदाय को 'व्यापार करने में आसानी' प्रदान करती है और एक क्यूआर कोड के माध्यम से जारी किये गए CoO की वास्तविकता की पुष्टि करने के लिये भागीदार देशों को एक सत्यापन योग्य प्रमाणीकरण तंत्र प्रदान करती है जो जारी किये गए ई-CoO में विश्वसनीयता को जोड़ती है।
  • मर्चेंडाईज़ एक्सपोर्ट की स्थिति:
    • भारत का मासिक व्यापारिक निर्यात लगातार सात महीनों में 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर  को पार कर गया है और 2021-22 में सरकार के रिकॉर्ड 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य तक पहुँचने के लिये काफी हद तक प्रतिबद्ध है।
      • मर्चेंडाईज़ एक्सपोर्ट एक विदेशी उपभोक्ता बाज़ार में बिक्री के लिये खुदरा सामान की पेशकश करने की एक विधि है।
  • भारत की निर्यात प्रोत्साहन योजनाएँ:
    • मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम:
      • MEIS को विदेश व्यापार नीति (FTP) 2015-20 में पेश किया गया था, MEIS के तहत, सरकार उत्पाद और देश के आधार पर शुल्क लाभ प्रदान करती है।
    • सर्विस एक्सपोर्ट फ्रॉम इंडिया स्कीम:
      • इसके तहत वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा भारत में स्थित सेवा निर्यातकों को भारत से सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहन दिया जाता है।
    • ‘निर्यात उत्पाद पर शुल्क या करों की छूट’ (RoDTEP) योजना:
      • यह भारत में निर्यात बढ़ाने में मदद करने हेतु ‘वस्तु और सेवा कर’ में इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के लिये पूरी तरह से स्वचालित मार्ग है।
      • इसे जनवरी 2021 में MEIS के प्रतिस्थापन के रूप में शुरू किया गया था, जो विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुरूप नहीं था।
    • राज्य और केंद्रीय करों और लेवी की छूट (RoSCTL):
      • RoSCTL को मार्च 2019 में ऐसे राज्य और केंद्रीय एम्बेडेड शुल्क एवं करों हेतु पेश किया गया था, जो वस्तु और सेवा कर (GST) के माध्यम से वापस नहीं किये जाते हैं।
      • यह केवल कपड़ों और मेड-अप्स के लिये उपलब्ध है। इसे कपड़ा मंत्रालय द्वारा पेश किया गया था।
        • इससे पूर्व इसे ‘रिबेट फॉर स्टेट लेवीज़’ (ROSL) के नाम से जाना जाता था।

व्यापार समझौतों के प्रकार

  • मुक्त व्यापार समझौता (FTA):
    • FTA के तहत दो देशों के बीच आयात-निर्यात के तहत उत्पादों पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा आदि को सरल बनाया जाता है।
    • ‘मुक्त व्यापार समझौता’ एक ऐसा समझौता है जिसमें दो या दो से अधिक देश एक दूसरे को सरल व्यापार शर्तें, टैरिफ रियायत आदि प्रदान करने हेतु सहमत होते हैं।
    • भारत ने कई देशों, जैसे- श्रीलंका के साथ-साथ विभिन्न व्यापारिक समूहों यथा- आसियान (ASEAN) से FTA पर बातचीत की है।
  • अधिमान्य व्यापार समझौता (PTA):
    • PTAs या सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP) विभिन्न देशों द्वारा व्यापार के संबंध में अपनाई गई एक विशेष स्थिति है। इस प्रकार के समझौते में, दो या दो से अधिक भागीदार एक निश्चित संख्या में टैरिफ लाइनों पर शुल्क को कम करके कुछ उत्पादों को प्रवेश का अधिमान्य अधिकार देते हैं।
    • अधिमान्य व्यापार समझौते में भी कुछ उत्पादों पर शुल्क घटाकर शून्य किया जा सकता है। भारत ने अफगानिस्तान के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA):
    • ‘व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता’ FTA से अधिक व्यापक होता है।
    • इस समझौते के अंतर्गत सेवाओं, निवेश और आर्थिक साझेदारी के अन्य क्षेत्रों में व्यापार को कवर किया जाता है।
    • भारत ने दक्षिण कोरिया और जापान के साथ व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA):
    • CECA आमतौर पर व्यापार प्रशुल्क और TRQ (टैरिफ दर कोटा) दरों को कवर करता है। यह व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता की तरह व्यापक नहीं है। भारत ने मलेशिया के साथ व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता पर हस्ताक्षर किये हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय इतिहास

कोणार्क सूर्य मंदिर का संरक्षण: उड़ीसा

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआई), कोणार्क सूर्य मंदिर, राजा नरसिंहदेव प्रथम, कलिंग वास्तुकला, यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल

मेन्स के लिये:

कोणार्क सूर्य मंदिर, कलिंग वास्तुकला, गंगा साम्राज्य, भारतीय संस्कृति - कला रूपों के मुख्य पहलू, प्राचीन से आधुनिक काल तक की वास्तुकला।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने खुलासा किया है कि वह कोणार्क सूर्य मंदिर के अंदरूनी हिस्सों से रेत को सुरक्षित रूप से हटाने के लिये एक प्रारंभिक रोडमैप पर कार्य कर रहा है।

  • मंदिर की स्थिरता के लिये सूर्य मंदिर के जगमोहन (असेंबली हॉल) में एक सदी पहले अंग्रेज़ों द्वारा रेत भरी गई थी।

Konark_Sun_Temple

प्रमुख बिंदु

  • संरक्षण प्रक्रिया:
    • वर्ष 1903 में ब्रिटिश प्रशासन ने तेरहवीं शताब्दी के विश्व धरोहर स्थल के स्थायित्व को बनाए रखने के लिये हॉल को रेत से भर दिया था और इसे सील कर दिया था।
      • उन्होंने जगमोहन के ऊपर के हिस्से में छेद कर दिया था और उसके जरिये रेत डाल दी थी।
    • एक अध्ययन के बाद रेत को हटाने की आवश्यकता महसूस की गई थी, जिसमें रेत के रहने से संभावित नुकसान की चेतावनी दी गई थी, इसके परिणामस्वरूप रेत की परत और संरचना के बीच 17 फीट का अंतर आ गया था।
    • बालू हटाने की प्रक्रिया को अंजाम देने के लिये रुड़की में केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) द्वारा एएसआई की सहायता की गई, जिसने वर्ष 2013 और 2018 के बीच मंदिर की संरचनात्मक स्थिरता पर एक वैज्ञानिक अध्ययन किया।
  • कोणार्क सूर्य मंदिर:
    • कोणार्क सूर्य मंदिर पूर्वी ओडिशा के पवित्र शहर पुरी के पास स्थित है।
    • इसका निर्माण राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा 13वीं शताब्दी (1238-1264 ई.) में किया गया था। यह गंग वंश के वैभव, स्थापत्य, मज़बूती और स्थिरता के साथ-साथ ऐतिहासिक परिवेश का प्रतिनिधित्व करता है।
      • पूर्वी गंग राजवंश को रूधि गंग या प्राच्य गंग के नाम से भी जाना जाता है।
      • मध्यकालीन युग में यह विशाल भारतीय शाही राजवंश था जिसने कलिंग से 5वीं शताब्दी की शुरुआत से 15वीं शताब्दी की शुरुआत तक शासन किया था।
      • पूर्वी गंग राजवंश बनने की शुरुआत तब हुई जब इंद्रवर्मा प्रथम ने विष्णुकुंडिन राजा को हराया।
    • मंदिर को एक विशाल रथ के आकार में बनाया गया है।
    • यह सूर्य भगवान को समर्पित है।
    • कोणार्क मंदिर न केवल अपनी स्थापत्य की भव्यता के लिये बल्कि मूर्तिकला कार्य की गहनता और प्रवीणता के लिये भी जाना जाता है।
      • यह कलिंग वास्तुकला की उपलब्धि का सर्वोच्च बिंदु है जो अनुग्रह, खुशी और जीवन की लय को दर्शाता है।
    • इसे वर्ष 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
    • कोणार्क सूर्य मंदिर के दोनों ओर 12 पहियों की दो पंक्तियाँ हैं। कुछ लोगों का मत है कि 24 पहिये दिन के 24 घंटों के प्रतीक हैं, जबकि अन्य का कहना है कि 12-12 अश्वों की दो कतारें वर्ष के 12 माह की प्रतीक हैं।
    • सात घोड़ों को सप्ताह के सातों दिनों का प्रतीक माना जाता है।
    • समुद्री यात्रा करने वाले लोग एक समय में इसे 'ब्लैक पगोडा' कहते थे, क्योंकि ऐसा माना जाता था कि यह जहाज़ों को किनारे की ओर आकर्षित करता है और उनको नष्ट कर देता है।
    • कोणार्क ‘सूर्य पंथ’ के प्रसार के इतिहास की अमूल्य कड़ी है, जिसका उदय 8वीं शताब्दी के दौरान कश्मीर में हुआ, अंततः पूर्वी भारत के तटों पर पहुँच गया।
  • ओडिशा में अन्य महत्त्वपूर्ण स्मारक:
    • जगन्नाथ मंदिर
    • तारा तारिणी मंदिर
    • उदयगिरि और खंडगिरि गुफाएँ
    • लिंगराज मंदिर

कलिंग स्थापत्य कला:

  • परिचय:
    • भारतीय मंदिरों को मोटे तौर पर नागर, वेसर, द्रविड़ और गडग शैली की वास्तुकला में विभाजित किया गया है।
    • हालाँकि ओडिशा की मंदिर वास्तुकला मंदिर वास्तुकला की कलिंग शैली नामक उसके अद्वितीय प्रतिनिधित्व के लिये पूरी तरह से एक अलग श्रेणी से मेल खाती है।
    • यह शैली मोटे तौर पर नागर शैली के अंतर्गत आती है।
  • स्थापत्य:
    • कलिंग वास्तुकला में मूल रूप से एक मंदिर दो भागों में बना होता है, एक मीनार और एक हॉल। टावर को देउला और हॉल को जगमोहन कहा जाता है।
    • देउला और जगमोहन दोनों की दीवारों को भव्य रूप से स्थापत्य रूपांकनों और आकृतियों की प्रचुरता के साथ तराशा गया है।
    • सबसे अधिक दोहराया जाने वाला रूप घोड़े की नाल का आकार है, जो प्राचीन काल से आया है, चैत्य-गृहों की बड़ी खिड़कियों से शुरू होता है।
    • यह देउल है जो कलिंग में तीन अलग-अलग प्रकार के मंदिर बनाता है
    • स्थापत्य:
      • रेखा देउला।
      • पिधा देउला।
      • खाखरा देउला।
    • पहले दो विष्णु, सूर्य और शिव मंदिरों से जुड़े हैं जबकि तीसरा मुख्य रूप से चामुंडा और दुर्गा मंदिरों से जुड़ा है।
    • रेखा देउला और खाखरा देउला में गर्भगृह है, जबकि पिधा देउला बाहरी नृत्य और प्रसाद हॉल का निर्माण करता है।

kalinga-architecture

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

तीसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची

प्रिलिम्स के लिये:

सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची, रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020, रक्षा क्षेत्र से संबंधित पहल।

मेन्स के लिये:

रक्षा और संबंधित चुनौतियों के लिये स्वदेशीकरण का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा मंत्रालय (MoD) ने रक्षा विनिर्माण में स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के लिये तीसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची के एक भाग के रूप में 351 प्रणालियों और घटकों के आयात को प्रतिबंधित कर दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • वसूली:
    • सभी 351 वस्तुओं को अब रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) 2020 में दिये गए प्रावधानों के अनुसार स्वदेशी स्रोतों से खरीदा जाएगा।
      • डीएपी 2020 में निम्नलिखित खरीदारी से संबंधित श्रेणियाँ - खरीद (भारतीय स्वदेशी रूप से विकसित और निर्मित), खरीद (भारतीय), खरीद और बनाना (भारतीय), खरीद (भारत में वैश्विक निर्माण) और खरीद (वैश्विक) शामिल हैं।
  • समय-सीमा:
    • दिसंबर 2022 से 172 प्रणालियों और घटकों के आयात को रोक दिया जाएगा, जबकि 89 वस्तुओं के एक अन्य बैच पर प्रतिबंध दिसंबर 2023 से लागू होगा। तथा 90 वस्तुओं का आयात दिसंबर 2024 से रोक दिया जाएगा।
  • शामिल वस्तुएँ:
    • इस सूची में सेंसर, सिम्युलेटर, हथियार और गोला-बारूद जैसे- हेलीकॉप्टर, नेक्स्ट जेनरेशन कॉर्वेट, एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल (AEW&C) सिस्टम, टैंक इंजन, मीडियम रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल (MRSAM) आदि को शामिल किया गया है।
  • महत्त्व:
    • यह आत्मनिर्भर पहल हर वर्ष लगभग 3,000 करोड़ रुपए के बराबर विदेशी मुद्रा की बचत करेगी।
    • यह आत्मनिर्भरता आत्मनिर्भर भारत की स्थिति प्राप्त करने और रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के दोहरे उद्देश्यों को पूरा करने के लिये सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी के साथ स्वदेशीकरण को बढ़ावा देगी।
    • यह सूची न केवल स्थानीय रक्षा उद्योग की क्षमता को महत्त्व देती है, बल्कि प्रौद्योगिकी और विनिर्माण क्षमताओं में नए निवेश को आकर्षित करके घरेलू अनुसंधान तथा विकास को भी गति प्रदान करेगी।
    • यह सूची 'स्टार्ट-अप' के लिये एक उत्कृष्ट अवसर भी प्रदान करती है, क्योंकि इस पहल से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को अत्यधिक बढ़ावा मिलेगा।

रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण

  • परिचय:
    • स्वदेशीकरण आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और आयात के बोझ को कम करने के दोहरे उद्देश्य के लिये देश के भीतर किसी भी रक्षा उपकरण के विकास और उत्पादन की क्षमता है।
    • रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता रक्षा उत्पादन विभाग के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है।
    • भारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक है और अगले पाँच वर्षों में सशस्त्र बलों द्वारा रक्षा खरीद पर लगभग 130 बिलियन अमेरिकी डाॅलर खर्च करने की उम्मीद है।
  • भूमिका:
    • सोवियत संघ पर अत्यधिक निर्भरता के कारण रक्षा औद्योगीकरण के प्रति भारत के दृष्टिकोण में बदलाव लाया।
    • वर्ष 1980 के दशक के मध्य से सरकार ने अनुसंधान एवं विकास (Research and Development) में संसाधनों का इस्तेमाल किया ताकि डीआरडीओ को हाई प्रोफाइल परियोजनाएँ शुरू करने हेतु सक्षम बनाया जा सके।
    • रक्षा स्वदेशीकरण में एक महत्त्वपूर्ण शुरुआत वर्ष 1983 में हुई थी जब सरकार ने 5 मिसाइल सिस्टम (पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, आकाश, नाग) विकसित करने के लिये एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) को मंज़ूरी दी थी।
    • सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये स्वदेशी प्रयास पर्याप्त नहीं थे, जिसके परिणामस्वरूप विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी में सह-विकास और सह-उत्पादन की ओर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • इसकी शुरुआत वर्ष1998 में हुई थी, जब भारत और रूस ने संयुक्त रूप से ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल का उत्पादन करने के लिये एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
  • आवश्यकता:
    • राजकोषीय घाटा कम करना:
      • भारत दुनिया में (सऊदी अरब के बाद) दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक है।
      • उच्च आयात निर्भरता से राजकोषीय घाटे में वृद्धि होती है।
        • दुनिया में पाँचवाँ सबसे बड़ा रक्षा बजट होने के बावजूद, भारत अपने हथियार प्रणालियों का 60% विदेशी बाज़ारों से खरीदता है।
    • सुरक्षा दृष्टिकोण:
      • रक्षा में स्वदेशीकरण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी महत्त्वपूर्ण है। यह तकनीकी विशेषज्ञता को बरकरार रखता है और स्पिन-ऑफ प्रौद्योगिकियों एवं नवाचार को प्रोत्साहित करता है जो अक्सर इससे उत्पन्न होते हैं।
      • उरी, पठानकोट और पुलवामा हमलों जैसे लगातार संघर्ष विराम उल्लंघन से जुड़े खतरों से बचने के लिये स्वदेशीकरण की आवश्यकता है।
    • रोज़गार सृजन:
      • इससे उपग्रह उद्योगों का निर्माण होगा जो बदले में रोज़गार के अवसरों के सृजन का मार्ग प्रशस्त करेगा।
      • सरकारी अनुमानों के अनुसार, रक्षा संबंधी आयातों में 20-25% की कमी से भारत में सीधे तौर पर अतिरिक्त 100,000 से 120,000 अत्यधिक कुशल रोज़गार सृजन हो सकता है।
    • सामरिक क्षमता:
      • एक आत्मनिर्भर और आत्मनिर्भर रक्षा उद्योग भारत को शीर्ष वैश्विक शक्तियों में स्थान प्रदान करेगा।
    • देशभक्ति की धारणा:
      • राष्ट्रीयता और देशभक्ति रक्षा उपकरणों के स्वदेशी उत्पादन से बढ़ सकती है, जो बदले में न केवल भारतीय बलों के विश्वास को बढ़ावा देगी बल्कि उनमें अखंडता और संप्रभुता की भावना को भी मज़बूत करेगी।
  • चुनौतियाँ:
    • रक्षा के स्वदेशीकरण के उद्देश्य से विभिन्न नीतियों को उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने के लिये एक संस्थागत क्षमता का अभाव।
    • बुनियादी ढाँचे की कमी से भारत की रसद लागत बढ़ जाती है जिससे देश की लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता और दक्षता कम हो जाती है।
    • भूमि अधिग्रहण के मुद्दे रक्षा निर्माण और उत्पादन में नए प्लेयर्स के प्रवेश को प्रतिबंधित करते हैं।
    • DPP (रक्षा खरीद नीति, जिसे अब DAP 2020 से बदल दिया गया है) के तहत नीतिगत दुविधा ऑफसेट आवश्यकताओं के कारण अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद नहीं मिली। (ऑफसेट एक विदेशी आपूर्तिकर्त्ता के साथ अनुबंधित मूल्य का एक हिस्सा है जिसे भारतीय रक्षा क्षेत्र में फिर से निवेश किया जाना चाहिये, या जिसके खिलाफ सरकार प्रौद्योगिकी खरीद सकती है)।
      • केवल सरकार-से-सरकारी समझौते (G2G), एकल विक्रेता अनुबंध या अंतर-सरकारी समझौते (IGA) में अब ऑफसेट क्लॉज़ नहीं होंगे।
      • DAP 2020 के अनुसार, अन्य सभी अंतर्राष्ट्रीय सौदे जो प्रतिस्पर्द्धी हैं और इसके लिये कई विक्रेता हैं, उनके पास 30% ऑफसेट क्लॉज़ जारी रहेगा।
  • संबंधित पहलें:
    • FDI सीमा में वृद्धि: 
      • मई 2020 में रक्षा क्षेत्र में स्वचालित मार्ग के तहत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% कर दिया गया था।
    • आयुध निर्माणी बोर्डों का निगमीकरण: 
      • अक्तूबर 2021 में, सरकार ने चार दशक पुराने आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) को भंग कर दिया और युद्ध सामग्री से लेकर भारी हथियारों और वाहनों तक के रक्षा हार्डवेयर के निर्माण के लिये सात नई राज्य-स्वामित्व वाली कंपनियों के तहत 41 कारखानों को मिला दिया।
    • डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज:
      • DISC का उद्देश्य राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में प्रोटोटाइप बनाने और/या उत्पादों/समाधानों का व्यावसायीकरण करने के लिये स्टार्टअप्स/एमएसएमई/इनोवेटर्स का समर्थन करना है।
      • इसे रक्षा मंत्रालय ने अटल इनोवेशन मिशन के साथ साझेदारी में लॉन्च किया है।
    • सृजन पोर्टल:
      • यह एक वन स्टॉप शॉप ऑनलाइन पोर्टल है जो विक्रेताओं को स्वदेशीकरण के लिये उपकरण लेने की सुविधा प्रदान करता है।
    • ई-बिज पोर्टल:
      • ई-बिज पोर्टल पर औद्योगिक लाइसेंस (IL) और औद्योगिक उद्यमी ज्ञापन (IEM) के लिये आवेदन करने की प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन कर दी गई है। 

आगे की राह 

  • सभी आपत्तियों और विवादों से निपटने के लिये एक स्थायी मध्यस्थता प्रकोष्ठ की स्थापना की जा सकती है।
  • निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना आवश्यक है क्योंकि यह कुशल और प्रभावी प्रौद्योगिकी तथा स्वदेशी रक्षा उद्योग के आधुनिकीकरण के लिये आवश्यक मानव पूंजी का संचार कर सकता है।
  • सॉफ्टवेयर उद्योग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं साइबर सुरक्षा जैसी तकनीकों का उपयोग स्वदेशी रूप से "चिप" के विकास और निर्माण के लिये किया जाना चाहिये।
  • DRDO का विश्वास और अधिकार बढ़ाने के लिये उसे वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान करना।
  • रक्षा उत्पादन विभाग के कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने और निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये लंबे कार्यकाल दिये जाने की आवश्यकता है।
  • तीनों सेवाओं के बीच इन-हाउस डिज़ाइन क्षमता में सुधार किया जाना चाहिये, नौसेना ने स्वदेशीकरण के पथ पर अच्छी तरह से प्रगति की है, मुख्य रूप से इन-हाउस डिज़ाइन क्षमता, नौसेना डिज़ाइन ब्यूरो के कारण।
  • एक रक्षा निर्माता के लिये मज़बूत आपूर्ति शृंखला महत्त्वपूर्ण है जो लागत को अनुकूलित करना चाहती है।

स्रोत: द हिंदू


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