भारतीय अर्थव्यवस्था
अमेरिका-चीन व्यापार समझौता
- 18 May 2020
- 6 min read
प्रीलिम्स के लिये:अधिमानी व्यापार व्यवस्था, सामान्यीकृत अधिमानी प्रणाली मेन्स के लिये:व्यापार युद्ध का भारत पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
अमेरिका तथा चीन के मध्य वर्ष 2020 के शुरूआत में व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, जिससे दोनों देशों के मध्य चल रहे व्यापार युद्ध पर विराम लगाता है परंतु इस सौदे से अन्य व्यापारिक साझेदारों की चिंता बढ़ा दी है क्योंकि यह समझौता अमेरिका को चीनी बाज़ारों तक पहुँच में वरीयता देता है।
प्रमुख बिंदु:
- एक अध्ययन के अनुसार, अमेरिका-चीन व्यापार समझौता 'व्यापार युद्ध' की तुलना में बेहतर है, हालाँकि यह समझौता दुनिया के बाकी देशों को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।
- एक अध्ययन में अमेरिका-चीन व्यापार समझौते तथा अमेरिका का चीन के अलावा अन्य देशों के साथ किये गए 'अधिमानी व्यापार समझौतों' (Preferential Trade Agreements- PTAs) का कैरोलिन फ्रायंड और उनके सह-लेखक (Caroline Freund and her co-authors) द्वारा तुलनात्मक अध्ययन किया गया।
अधिमानी व्यापार व्यवस्था (Preferential Trade Arrangements):
- ‘विश्व व्यापार संगठन में' अधिमानी व्यापार व्यवस्था' एकतरफा प्रदान की जाने वाली व्यापार प्राथमिकताएँ हैं। उनमें 'सामान्यीकृत अधिमानी प्रणाली' (Generalized System of Preferences) (जिसके तहत विकसित देश विकासशील देशों से आयात को प्राथमिकता देते हैं), साथ ही अन्य गैर-पारस्परिक अधिमान्य योजनाओं को ‘विश्व व्यापार संगठन’ की ‘सामान्य परिषद’ द्वारा छूट प्रदान की गई है।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:
- अध्ययन में अमेरिकी बाज़ार तक पहुँच में मदद करने वाली व्यापारिक संधियों तथा इन संधियों की अनुपस्थिति में बाज़ार तक पहुँच संबंधी विषयों का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया।
- यदि चीन, अमेरिका के ‘अधिमान्य व्यापार व्यवस्था’ के माध्यम से अपने आयात लक्ष्य को पूरा करता है, तो दोनों देशों पर सकारात्मक प्रभाव होगा।
- परंतु यदि चीन टैरिफ में कमी या आयात सब्सिडी जैसे भेदभावपूर्ण उपायों का समर्थन करता है, तो इससे चीन तथा अमेरिका आयात करने वाले अन्य देशों को नुकसान हो सकता है।
क्या है मामला?
- अमेरिका और चीन के मध्य लंबे समय से चल रहा व्यापार युद्ध के बाद वर्ष 2020 के प्रारंभिक महीनों में, दोनों देशों द्वारा व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया गया था।
- इस क्रम में पहला सुव्यवस्थित प्रयास तब दिखाई दिया जब अमेरिका ने चीन के 160 अरब डॉलर के सामानों पर शुल्क लगाने के विचार को कुछ समय के लिये टाल दिया।
- हालाँकि मौजूदा समय में दोनों देशों के मध्य प्रतिद्वंद्विता व्यापार से कहीं आगे बढ़ चुकी है। ऐसे में यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि विश्व की दो बड़ी शक्तियों के मध्य संघर्ष का विश्व के विभिन्न देशों पर किस प्रकार का प्रभाव होगा और विशेष तौर पर भारत के लिये इसके क्या मायने हैं?
व्यापार समझौते के संभावित परिणाम:
- व्यापार समझौता विश्व स्तर पर फायदेमंद होगा या नहीं यह इस पर निर्भर करता है कि चीन इसे कैसे लागू करता है। वर्ष 2019 के 'ग्लोबल ट्रेड एनालिसिस डेटाबेस' के आँकड़ों के आधार पर किये गए विश्लेषण के अनुसार, तीन संभावित परिणाम देखने को मिल सकते हैं:
- यदि टैरिफ और आयात सब्सिडी अपरिवर्तित रहे:
- ऐसी स्थिति में केवल अमेरिका लाभ की स्थिति में होगा तथा अमेरिका के निर्यात में, वर्ष 2021 में 3% की वृद्धि देखी जा सकती है।
- ऐसे में चीन तथा दुनिया के बाकी देशों के निर्यात में क्रमश: 0.4% एवं 0.16% की कमी देखी जा सकती है।
- यदि टैरिफ में वृद्धि की जाती है:
- ऐसी स्थिति में अमेरिकी निर्यात में 5% की वृद्धि जबकि चीन के निर्यात में 4% की वृद्धि होती है। जबकि शेष दुनिया के वास्तविक आय में 0.2% कमी देखी जा सकती है।
- यदि चीन सभी देशों के लिये टैरिफ में कमी करता है:
- ऐसी स्थिति में वैश्विक आय में 0.6% तथा चीन की आय में .5% की वृद्धि देखी जा सकती है।
निष्कर्ष:
- संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध से भारतीय अर्थव्यवस्था को फायदा हो सकता है क्योंकि इससे देश के निर्यात में लगभग 3.5% की तेज़ी आ सकती है।
- अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध का लाभ कई देशों को मिल रहा है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, भारत, फिलीपींस, पाकिस्तान और वियतनाम प्रमुख हैं। इस लाभों के होते हुए भी ‘आत्मनिर्भर भारत’ के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ना चाहिये।