क्यों महत्त्वपूर्ण है सौर ऊर्जा-संचालित कृषि?
संदर्भ:
- उल्लेखनीय है कि भारत समृद्ध सौर ऊर्जा संसाधनों वाला देश है। भारत औसतन 200 मेगावाट/वर्ग किमी. सौर विकिरण प्राप्त करता है।
- भारत ने पिछले कुछ वर्षों में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बेहतर प्रयास किये हैं और उन्ही प्रयासों के तहत कृषि में सौर पंपों का उपयोग किया जा रहा है।
- स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिंचाई के लिये सौर पंपों को बढ़ावा देने की बात करते आ रहे हैं।
- किसानों की सिचाईं ज़रूरतों को पूरा करने हेतु भारत को इस तकनीक का सर्वोत्तम उपयोग करना होगा।
क्यों बेहतर हैं सौर पंप?
- कम लागत:
► डीज़ल पंपों को सौर ऊर्जा आधारित पंपों पर इसलिये वरीयता दी जाती रही है क्योंकि इन्हें स्थापित करने की आरंभिक लागत अत्यंत ही कम होती है।
► लेकिन एक बार डीज़ल पंप के ज़रिये सिंचाई कार्य आरंभ हुआ तो लगातार इसमें ईंधन की ज़रूरत पड़ती है।
► जबकि सौर पंपों को स्थापित करने की आरंभिक लागत तो अधिक है लेकिन बार इन्हें ईंधन की ज़रूरत नहीं पड़ती।
► इस तरह से दीर्घावधि में देखें तो सौर पंप डीज़ल पंप की तुलना में एक कम लागत वाला सिंचाई का साधन है। - प्रदूषण-रहित विकल्प:
► गौरतलब है कि एक कोयला आधारित विद्युत् पावर प्लांट में 1 किलोवाट विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने में 11.2 टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।
► वहीं डीज़ल पंप भी प्रदूषण वृद्धि का काम करते हैं और ऐसे में सौर पंप सिंचाई का एक पर्यावरण अनुकूल साधन है।एक बेहतर और टिकाऊ विकल्प:
► भारत एक ऐसा देश है जहाँ पर्याप्त सौर ऊर्जा के विकास की पर्याप्त संभावनाएँ हैं और गर्म देशों में सौर पंप किसी भी अन्य विकल्प से अधिक विश्वसनीय है - एक बेहतर और टिकाऊ विकल्प:
► भारत एक ऐसा देश है जहाँ पर्याप्त सौर ऊर्जा के विकास की पर्याप्त संभावनाएँ हैं और गर्म देशों में सौर पंप किसी भी अन्य विकल्प से अधिक विश्वसनीय है। - सरकारी खर्च में कटौती:
► विद्युत् वितरण में होने वाली हानियों और बिजली चोरी इत्यादि की बढ़ती समस्याओं को देखते हुए सरकार के लिये बिजली सब्सिडी जारी रखना मुश्किल साबित हो रहा है।
► वहीं यदि डीज़ल सब्सिडी की बात करें तो यह योजना भी उतनी सफल नहीं हो पाई है।
► ऐसे में सौर पंप के इस्तेमाल से सरकारी खर्च में भी कटौती की जा सकेगी। - आय का स्रोत:
► गुजरात के खेड़ा ज़िले में सौर पंप सहकारी उद्यम (स्पाइस) ने मई 2016 में काम करना शुरू किया था।
► यह सहकारी उद्यम आज इतना सफल है कि किसान स्वयं की ज़रूरतों को पूरा करने के साथ-साथ अधिशेष बिजली को बेच भी रहे हैं।
► अतः सौर ऊर्जा का प्रयोग न केवल स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने वाला है बल्कि यह आय अर्जन का भी एक बेहतर ज़रिया साबित हो सकता है।
सौर ऊर्जा उपयोग के क्षेत्र में सरकार के प्रयास:
- राष्ट्रीय सौर मिशन:
► राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के लक्ष्य को 20 गीगावाट से बढ़ाकर वर्ष 2021-22 तक 100 गीगावाट कर दिया गया है।
► वर्ष 2017-18 के लिये 10,000 मेगावाट का लक्ष्य रखा गया है, जिसकी बदौलत 31 मार्च, 2018 तक संचयी क्षमता 20 गीगावाट (जीडब्ल्यू) से अधिक हो जाएगी।
► अब तक 23,656 मेगावाट के लिये निविदा जारी की गई है, जिनमें से 19340 मेगावाट के लिये आशय पत्र (एलओआई) जारी कर दिया गया है। - सोलर पार्क योजना:
► ‘सोलर पार्कों और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विकास’ से जुड़ी योजना की क्षमता 20,000 मेगावाट से बढ़ाकर 40,000 मेगावाट कर दी गई है।
► 21 राज्यों में कुल मिलाकर 20,514 मेगावाट क्षमता के 35 सोलर पार्कों को मंज़ूरी दी गई है।
► आंध्र प्रदेश का कुरनूल सोलर पार्क अब दुनिया के सबसे बड़े सोलर पार्क के रूप में उभर कर सामने आया है।
► राजस्थान में 650 मेगावाट क्षमता के भादला (चरण-II) सोलर पार्क को चालू कर दिया गया है।
► वहीं मध्य प्रदेश में 250 मेगावाट क्षमता के नीमच मंदसौर सोलर पार्क (500 मेगावाट) के चरण-I को चालू कर दिया गया है।
► साथ ही सोलर पार्क योजना के तहत क्षमता को 20,000 मेगावाट से बढ़ाकर 40,000 मेगावाट करने के लिये संबंधित दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं। - रूफटॉप योजना:
► इस कार्यक्रम के तहत सामान्य श्रेणी वाले राज्यों में आवासीय, संस्थागत एवं सामाजिक क्षेत्रों में बेंचमार्क लागत के 30 प्रतिशत तक और विशेष श्रेणी वाले राज्यों में बेंचमार्क लागत के 70 प्रतिशत तक केंद्रीय वित्त सहायता मुहैया कराई जा रही है।
► सरकारी क्षेत्र के लिये उपलब्धि से संबद्ध प्रोत्साहन दिये जा रहे हैं। सब्सिडी/सीएफए निजी क्षेत्र में वाणिज्यिक और औद्योगिक प्रतिष्ठानों के लिये लागू नहीं है।
► अब तक 1767 एमडब्ल्यूपी क्षमता की सोलर रूफटॉप परियोजनाओं के लिये मंज़ूरी दी गई है और लगभग 863.92 एमडब्ल्यूपी क्षमता स्थापित की गई है।
► सभी 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के ईआरसी ने अब रूफटॉप सोलर परियोजनाओं के लिये शुद्ध/सकल मीटरिंग नियमन और /अथवा टैरिफ आदेश अधिसूचित किये हैं।
► विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और नव विकास बैंक की ओर से लगभग 1375 मिलियन अमेरिकी डॉलर के रियायती ऋण सोलर रूफटॉप परियोजनाओं के लिये भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक और केनरा बैंक को उपलब्ध कराए गए हैं।
► एक योग्य तकनीकी श्रमबल तैयार करने के लिये सूर्यमित्र कार्यक्रम शुरू किया गया है और इस कार्यक्रम के तहत 11,000 से भी अधिक व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया गया है।
► परियोजना मंज़ूरी में तेज़ी लाने, रिपोर्ट पेश करने और आरटीएस परियोजनाओं की निगरानी के लिये एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म सृजित किया गया है।
समस्याएँ एवं चुनौतियाँ
- इन सभी प्रयासों के बावजूद 2021 तक दस लाख सौर पंप लगाने के लक्ष्य के मुकाबले आज तक केवल 1,42,000 पंप ही लग पाएँ हैं।
- 132 मिलियन किसानों और 28 मिलियन मौजूदा सिंचाई पंप वाले देश में इस तरह की सीमित मांग, वर्तमान व्यवस्था में सुधार की ज़रूरतों पर प्रकाश डालती है।
- भारत में मौजूदा 19 लाख विद्युतीय पंपों और 9 मिलियन डीज़ल पंपों के बावजूद भारत के शुद्ध बोया क्षेत्र के 53 प्रतिशत हिस्से की सिंचाई नहीं हो पाती है।
आगे की राह
- सीमांत किसानों को लक्षित करने की ज़रूरत:
► सीमांत किसानों को विशेष रूप से अच्छे भूजल विकास क्षमता वाले क्षेत्रों में छोटे सोलर पंपों के प्रयोग हेतु प्रोत्साहित किये जाने की ज़रूरत है।
► विदित हो कि इन सीमांत किसानों को सिंचाई हेतु या तो पानी खरीदना पड़ता है या फिर किराए पर पंप लेना पड़ता है। - वाटर हार्वेस्टिंग जैसे उपायों पर गौर करने की ज़रूरत:
► गौरतलब है कि 30% किसानों को सिंचाई के लिये पानी की सीमित उपलब्धता की चुनौती का सामना करना पड़ता है।
► अतः किसानों को सौर पंपों के उपयोग से साथ वाटर हार्वेस्टिंग जैसे उपायों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना होगा। - किसानों को प्रोत्साहित करने की ज़रूरत:
► देश के प्रत्येक ब्लॉक में कम-से-कम पाँच सौर पंप स्थापित किये जाने चाहियें।
► ऐसे प्रयासों से किसानों को सौर पंपों को अपनाने को प्रोत्साहित किया जा सकता है। - पानी के साझाकरण को बढ़ावा:
► एक खेत से दूसरे खेत में सिंचाई वाले जल का साझाकरण देश के कई हिस्सों में पहले से ही एक प्रचलित प्रथा है, जिससे पानी का इष्टतम उपयोग संभव होता है।
► सौर पंपों के ज़रिये होने वाली सिंचाई में एक बार के बाद पुनः किसी लागत की ज़रूरत नहीं पड़ती ऐसे में जल के साझाकरण को बढ़ावा देना अपेक्षाकृत आसान कार्य होगा।
निष्कर्ष:
- सौर ऊर्जा के उपयोग से होने वाली खेती न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि विश्वसनीय और लागत प्रभावी भी है और साथ में इसके रखरखाव की लागत भी कम है।