अंतर्राष्ट्रीय संबंध
पैंगोंग त्सो पर चीनी पुल
प्रिलिम्स के लिये:भारत-चीन गतिरोध, पैंगोंग त्सो झील, वास्तविक नियंत्रण रेखा, कैलाश रेंज। मेन्स के लिये:पैंगोंग त्सो झील के पार चीन का पुल निर्माण, भारत के लिये इसके निहितार्थ, भारत-चीन गतिरोध की पृष्ठभूमि। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की है कि चीन पैंगोंग त्सो झील पर दूसरे पुल का निर्माण कर रहा है।
- पुल की अवस्थिति ‘फिंगर 8’ से लगभग 20 किमी. पूर्व में झील के उत्तरी तट पर है- जहाँ से वास्तविक नियंत्रण रेखा गुज़रती है।
- हालाँकि सड़क मार्ग से वास्तविक दूरी पुल की अवस्थिति और ‘फिंगर 8’ के बीच 35 किमी. से अधिक है।
प्रमुख बिंदु
- निर्माण स्थल खुर्नक किले के ठीक पूर्व में है, जहाँ चीन के प्रमुख रक्षा ठिकाने स्थित हैं।
- चीन इसे रूटोंग देश कहता है।
- खुर्नक किले में इसकी एक सीमांत रक्षा कंपनी है और आगे पूर्व में बनमोझांग में एक ‘वाटर स्क्वाड्रन’ तैनात है।
- हालाँकि यह 1958 से चीन के नियंत्रण में आने वाले क्षेत्र में बनाया जा रहा है, लेकिन सटीक बिंदु भारत की दावा रेखा के ठीक पश्चिम में है।
- विदेश मंत्रालय इस क्षेत्र को चीन के अवैध कब्ज़े वाला क्षेत्र मानता है।
ये निर्माण चीन की मदद कैसे करेंगे?
- यह पुल झील के सबसे संकरे बिंदुओं में से एक है, जो LAC के करीब है।
- ये निर्माण झील के दोनों किनारों को जोड़ेंगे, जिससे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के लिये सैनिकों और बख्तरबंद वाहनों को स्थानांतरित करने में लगने वाले समय में काफी कमी आएगी।
- इस पुल के कारण G219 राजमार्ग (चीनी राष्ट्रीय राजमार्ग) से सैनिकों की आवाजाही में 130 किमी. की कमी आएगी।
पैंगोंग त्सो
- पैंगोंग त्सो समुद्र तल से 14,000 फीट यानी 4350 मीटर से अधिक की ऊंँचाई पर स्थित 135 किलोमीटर लंबी एक स्थलरुद्ध झील है।
- भारत और चीन के पास पैंगोंग त्सो झील का क्रमशः लगभग एक-तिहाई और दो-तिहाई हिस्सा है।
- लगभग 45 किमी. पैंगोंग त्सो झील भारत के नियंत्रण में है, जबकि झील का लगभग 60% हिस्सा (लंबाई में) चीन में स्थित है।
- पैंगोंग त्सो का पूर्वी छोर तिब्बत में स्थित है।
- हिमनदों के पिघलने से निर्मित इस झील में चांँग चेन्मो रेंज के पहाड़ नीचे की ओर झुके हुए हैं, जिन्हें उंँगलियों के रूप में संदर्भित किया जाता है।
- यह दुनिया की सबसे अधिक ऊंँचाई पर स्थित झीलों में से एक है जिसका जल खारा हैै।
- हालाँकि यह खारे पानी की झील है, लेकिन पैंगोंग त्सो पूरी तरह से जम जाती है।
- इस क्षेत्र के खारे पानी में सूक्ष्म वनस्पति बहुत कम पाई जाती है।
- सर्दियों के दौरान क्रस्टेशियन को छोड़कर इसमें कोई जलीय जीव या मछली नहीं पाई जाती है।
यह एक प्रकार का एंडोर्फिक (लैंडलॉक) बेसिन है, जिसका अर्थ है कि यह अपने जल को बनाए रखती है और अपने जल का बहिर्वाह अन्य बाहरी जल निकायों, जैसे कि महासागरों और नदियों में नहीं होने देता है।
- पैंगोंग त्सो अपनी बदलती रंग क्षमता के लिये लोकप्रिय है।
- इसका जल नीले से हरे और फिर लाल रंग में बदल जाता है।
चीन द्वारा इस अवस्थिति को चुनने का कारण:
- इसका निर्माण, मई 2020 में शुरू हुए गतिरोध का प्रत्यक्ष परिणाम है।
- यह अगस्त 2020 में भारतीय सेना द्वारा किये गए एक ऑपरेशन का परिणाम है, जहाँ भारतीय सैनिकों ने पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट पर चुशुल उप-क्षेत्र में कैलाश रेंज की चोटियों पर नियंत्रण करने के लिये पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था।
- इस अवस्थिति ने भारत को रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर स्पैंगुर गैप(Pangur Gap) पर नियंत्रण करने में सहायता की , जिसका इस्तेमाल चीन ने वर्ष 1962 में किया था।
- इससे भारत को चीन के मोल्डो गैरीसन (चीन का सैन्य अड्डा) पर प्रत्यक्ष निगरानी करने में सहायता प्राप्त हुई, यह चीन के लिये अत्यधिक चिंता का विषय था।
- इस ऑपरेशन के बाद भारत ने भी चीन की अवस्थिति की तुलना में खुद को ऊपर रखने के लिये झील के उत्तरी तट पर समायोजित किया।
- झील का उत्तरी तट मई 2020 में होने वाले संघर्ष के प्रमुख कारणों में से एक था।
- इस झड़प के दौरान दोनों पक्षों द्वारा चार दशकों में पहली बार चेतावनी के रूप में फायरिंग की गई।
- यह नया पुल चीनी सैनिकों की आवाजाही में लगने वाले समय को 12 घंटे से घटाकर लगभग चार घंटे कर देगा।
गतिरोध की वर्तमान स्थिति:
- भारत और चीन ने घातक झड़पों के बाद जून 2020 में गलवान घाटी में पेट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी)-14 से अपने सैनिकों को वापस बुला लिया।
- फरवरी 2021 में पैंगोंग त्सो के उत्तरी और दक्षिणी किनारे से और अगस्त में गोगरा पोस्ट के पास PP17A से सैनिकों को वापस बुला लिया गया, लेकिन तब से बातचीत की प्रक्रिया रुकी हुई है।
- गतिरोध शुरू होने के बाद से दोनों पक्षों के कोर कमांडरों की लगभग 15 बार मुलाकात हो चुकी है।
भारत की प्रतिक्रिया:
- भारत सभी चीनी गतिविधियों की बारीकी से निगरानी कर रहा है।
- भारत ने अपने क्षेत्र में इस तरह के अवैध कब्जे और अनुचित चीनी दावे या ऐसी निर्माण गतिविधियों को कभी स्वीकार नहीं किया है।
- भारत उत्तरी सीमा पर बुनियादी ढांँचे के उन्नयन और विकास का काम भी कर रहा है।
- सीमा सड़क संगठन (BRO) द्वारा वर्ष 2021 में सीमावर्ती क्षेत्रों में 100 से अधिक परियोजनाएंँ पूरी की गईं, जिनमें से अधिकांश चीन सीमा के करीब थीं।
- भारत LAC पर निगरानी में भी सुधार कर रहा है।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न: सियाचिन ग्लेशियर स्थित है: (2020) (a) अक्साई चिन के पूर्व में उत्तर: (D) व्याख्या:
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत का स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र
प्रिलिम्स के लिये:भारत का स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र, स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम, स्टार्टअप इंडिया पहल, उद्योग 4.0, डिजिटल भारत नवाचार। मेन्स के लिये:स्टार्टअप्स का भारत में विकास, चुनौतियाँ और योजनाएँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत में यूनिकॉर्न की संख्या 100 के आँकड़े तक पहुँच गई है।
- एक यूनिकॉर्न का अर्थ कम-से-कम 7,500 करोड़ रुपए का टर्नओवर वाले स्टार्टअप से है। इन यूनिकॉर्न का कुल मूल्यांकन 330 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो 25 लाख करोड़ रुपए से अधिक है।
- भारतीय यूनिकॉर्न की औसत वार्षिक वृद्धि दर अमेरिका, यूके और कई अन्य देशों की तुलना में अधिक है।
यूनिकॉर्न:
- परिचय:
- एक यूनिकॉर्न किसी भी निजी स्वामित्व वाली फर्म है जिसका बाज़ार पूंजीकरण 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
- यह अन्य उत्पादों/सेवाओं के अलावा रचनात्मक समाधान और नए व्यापार मॉडल पेश करने के लिये समर्पित नई संस्थाओं की उपिस्थिति को दर्शाता है।
- फिनटेक, एडटेक, बिज़नेस-टू-बिज़नेस (B-2-B) कंपनियाँ आदि इसकी कई श्रेणियाँ हैं।
- विशेषताएँ:
- विभाजनकारी नवाचार: अधिकतर सभी यूनिकॉर्न उस क्षेत्र में नवाचार लाए हैं जिससे वे संबंधित हैं, उदाहरण के लिये ‘उबर’ ने आवागमन के स्वरुप को बदल दिया है।
- तकनीक संचालित: यह व्यापार मॉडल नवीनतम तकनीकी नवाचारों और प्रवृत्तियों द्वारा संचालित होता है।
- उपभोक्ता-केंद्रित: इनका लक्ष्य उपभोक्ताओं के लिये कार्यों को सरल बनाना और उनके दैनिक जीवन का हिस्सा बनना है।
- वहनीयता : उत्पादों को वहनीय बनाना इन स्टार्टअप्स की एक प्रमुख विशेषता है।
- निजी स्वामित्व: अधिकांश यूनिकॉर्न निजी स्वामित्व वाले होते हैं, जब एक स्थापित कंपनी इसमें निवेश करती है तो उनका मूल्यांकन और बढ़ जाता है।
- सॉफ्टवेयर आधारित: एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि यूनिकॉर्न के 87% उत्पाद सॉफ्टवेयर हैं, 7% हार्डवेयर हैं और बाकी 6% अन्य उत्पाद एवं सेवाएंँ हैं।
भारत में स्टार्टअप्स और यूनिकॉर्न की स्थिति:
- स्थिति:
- भारत, अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र बन गया है।
- वर्ष 2021 में 44 भारतीय स्टार्टअप ने यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल किया है, जिससे यूनिकॉर्न की कुल संख्या 83 हो गई है, जिनमें से अधिकांँश सेवा क्षेत्र में हैं।
- भारत ने कई रणनीतिक और सशर्त कारणों से यूनिकॉर्न में इतनी तेज़ी से वृद्धि देखी है।
- विकास का चालक:
- सरकारी सहायता:
- भारत सरकार मूल्य शृंखला में विघटनकारी नवप्रवर्तकों के साथ काम करने और सार्वजनिक सेवा वितरण में सुधार के लिये उनके नवाचारों का उपयोग करने के महत्त्व को समझ रही है।
- पशुपालन और डेयरी विभाग ने स्टार्टअप इंडिया के साथ मिलकर 5 श्रेणियों में 10 लाख रुपए के स्टार्टअप को पुरस्कृत करने के लिये एक बड़ी प्रतिस्पर्द्धा का आयोजन किया है।
- डिजिटल सेवाओं को अपनाना:
- महामारी के दौरान स्टार्टअप और नए जमाने के उपक्रमों को ग्राहकों के लिये तकनीकी केंद्रित व्यवसाय बनाने में मदद करने वाले उपभोक्ताओं द्वारा डिजिटल सेवाओं को अपनाने में तेजी देखी गई।
- ऑनलाइन सेवाएंँ और वर्क फ्रॉम होम संस्कृति:
- कई भारतीय खाद्य वितरण और एडु-टेक से लेकर ई-किराने तक सेवा प्रदाता ऑनलाइन सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं।
- वर्क फ्रॉम होम संस्कृति ने स्टार्टअप्स के उपयोगकर्त्ता आधार की संख्या बढ़ाने में मदद की और उनकी व्यवसाय विस्तार योजनाओं में तेज़ी लाकर निवेशकों को आकर्षित किया।
- डिजिटल भुगतान:
- डिजिटल भुगतान की वृद्धि एक और पहलू है जिसने यूनिकॉर्न को सबसे अधिक सहायता दी।
- प्रमुख सार्वजनिक निगमों से खरीद:
- कई स्टार्टअप प्रमुख सार्वजनिक निगमों से खरीद के परिणामस्वरूप यूनिकॉर्न बन जाते हैं जो आंतरिक विकास में निवेश करने के बजाय अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लियेअधिग्रहण पर ध्यान केंद्रित करना पसंद करते हैं।
- सरकारी सहायता:
- संबद्ध चुनौतियाँ:
- निवेश बढ़ाना स्टार्टअप की सफलता सुनिश्चित नहीं करता: कोविड-19 संकट के बीच जब केंद्रीय बैंकों ने वैश्विक स्तर पर अधिकाधिक मात्रा में तरलता जारी की है, तो पैसा जुटाना कोई कठिन काम नहीं है।
- स्टार्टअप्स में निवेश किये जा रहे अरबों डॉलर दूरगामी परिणामों का प्रतिनिधित्त्व करते हैं, न कि राजस्व के माध्यम से मूल्य सृजन।
- साथ ही इस तरह के निवेशों के साथ इन स्टार्टअप्स के गतिमान रहने की उच्च दर की कल्पना नहीं की जा सकती है, क्योंकि इसे मुनाफे से सुनिश्चित किया जा सकता है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत अभी भी एक सीमांत खिलाड़ी: फिनटेक और ई-कॉमर्स क्षेत्र में भारत के स्टार्टअप असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, अंतरिक्ष क्षेत्र अभी भी स्टार्टअप के लिये एक बाहरी क्षेत्र बना हुआ है।
- वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 440 बिलियन डॉलर की हो चुकी है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी 2% से भी कम है।
- यह परिदृश्य इस तथ्य के बावजूद है कि भारत एंड-टू-एंड क्षमता के साथ उपग्रह निर्माण, संवर्द्धित प्रक्षेपण यान के विकास और अंतर-ग्रहीय मिशनों को तैनात करने के मामले में एक अग्रणी अंतरिक्ष-अन्वेषी देश है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र में स्वतंत्र निजी भागीदारी की कमी के कारणों में एक ऐसे ढाँचे का अभाव प्रमुख है जो कानूनों के संबंध में पारदर्शिता और स्पष्टता प्रदान करे।
- वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 440 बिलियन डॉलर की हो चुकी है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी 2% से भी कम है।
- भारतीय निवेशक जोखिम लेने को तैयार नहीं: भारत के स्टार्टअप क्षेत्र के बड़े निवेशक विदेशों से हैं, जैसे जापान का सॉफ्टबैंक, चीन का अलीबाबा और अमेरिका का सिकोइया (Sequoia)।
- ऐसा इसलिये है क्योंकि भारत में एक महत्त्वपूर्ण उद्यम पूंजी उद्योग का अभाव है जो जोखिम लेने को तैयार हो।
- देश के स्थापित कारोबारी समूह का जुड़ाव प्रायः पारंपरिक व्यवसायों से रहा है।
- निवेश बढ़ाना स्टार्टअप की सफलता सुनिश्चित नहीं करता: कोविड-19 संकट के बीच जब केंद्रीय बैंकों ने वैश्विक स्तर पर अधिकाधिक मात्रा में तरलता जारी की है, तो पैसा जुटाना कोई कठिन काम नहीं है।
संबंधित सरकारी पहल:
- स्टार्टअप इनोवेशन चुनौतियांँ: यह किसी भी स्टार्टअप के लिये अपने नेटवर्किंग और फंड जुटाने के प्रयासों का लाभ उठाने का एक शानदार तरीका है।
- राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कार: यह उन उत्कृष्ट स्टार्टअप और पारिस्थितिकी तंत्र को पहचानने और पुरस्कृत करने का प्रयास करता है जो नवाचार एवं प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देकर आर्थिक गतिशीलता में योगदान दे रहे हैं।
- स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के आधार पर राज्यों की रैंकिंग: यह एक विकसित मूल्यांकन उपकरण है जिसका उद्देश्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के समर्थन से अपने स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है।
- SCO स्टार्टअप फोरम: पहली बार शंघाई सहयोग संगठन (SCO) स्टार्टअप फोरम को सामूहिक रूप से स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने और सुधार के लिये अक्तूबर 2020 में लॉन्च किया गया था।
- प्रारंभ (Prarambh): 'प्रारंभ’ शिखर सम्मेलन का उद्देश्य दुनिया भर के स्टार्ट अप और युवांओं को नए विचारों, नवाचारों और आविष्कारो हेतु एक साथ आने के लिये मंच प्रदान करना है।
आगे की राह
- स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के त्वरित विकास के लिये धन की आवश्यकता होती है, इसलिये उद्यम पूंजी और एंजेल निवेशकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
- उद्यमिता को प्रोत्साहित करने वाले नीतिगत निर्णयों के अलावा यह भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र की भी म्मेदारी है कि वह उद्यमिता को बढ़ावा दें और प्रभावशाली प्रौद्योगिकी समाधान और टिकाऊ एवं संसाधन-कुशल विकास के निर्माण के लिये तालमेल बनाए।
- हाल की घटनाओं ने चीन में पूंजी को लेकर अविश्वास की स्थिति उत्पन्न की है, दुनिया का ध्यान भारत में आकर्षक तकनीकी अवसरों एवं सृजित किये जा सकने वाले मूल्य पर केंद्रित हो रहा है। इसके लिये भारत को डिजिटल इंडिया पहल के अलावा निर्णायक नीतिगत उपायों की आवश्यकता है।
शासन व्यवस्था
स्वास्थ्य संवर्द्धन में मीडिया की भूमिका
प्रिलिम्स के लिये:एशिया मीडिया शिखर सम्मेलन, एशिया-प्रशांत इंस्टीट्यूट फॉर ब्रॉडकास्टिंग डेवलपमेंट (AIBD)। मेन्स के लिये:महामारी के दौरान मीडिया की भूमिका, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया। |
चर्चा में क्यों?
17वें एशिया मीडिया शिखर सम्मेलन में केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय मीडिया की भूमिका की सराहना की।
कोविड-19 के दौरान मीडिया की भूमिका:
- सकारात्मक भूमिका:
- इसने सुनिश्चित किया कि कोविड-19 पर जागरूकता संदेश, महत्त्वपूर्ण सरकारी दिशा-निर्देश और डॉक्टरों के साथ मुफ्त परामर्श तक देश के सभी लोगों की पहुँच होे।
- इसने वास्तविक समय के आधार पर फेक न्यूज़ और गलत सूचनाओं के खतरे के खिलाफ ज़ोरदार आवाज़ उठाई।
- मीडिया ने सार्वजनिक सेवा के अपने जनादेश को त्वरित कवरेज, ज़मीनी रिपोर्ट और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के आयोजन के माध्यम से पूरा किया है।
- नकारात्मक भूमिका:
- सार्वजनिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता एवं जानकारी प्रसारित करने मेंं सोशल मीडिया ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, हालांँकि महामारी के दौरान फेक न्यूज़ फैलाने, नफरत फैलाने और नस्लवाद पैदा करने के लिये इसका दुरुपयोग भी किया गया है।
- भारत में COVID-19 का पहला मामला सामने आने से पहले ही सोशल मीडिया पर दहशत फैल गई थी, जिससे बाज़ार में मास्क और सैनिटाइज़र खत्म हो गए थे।
- हवा के माध्यम से वायरस के संचरण और विभिन्न सतहों पर इसके जीवित रहने के झूठे दावों ने दहशत पैदा कर दी।
- यात्रा और दैनिक गतिविधियों के दौरान आम लोगों द्वारा N-95 मास्क के अनुचित उपयोग के परिणामस्वरूप फ्रंटलाइन स्वास्थ्यकर्मियों के लिये इसकी कमी हो गई, जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता थी।
- भारत में मौजूद कई मीडिया हाउसों ने हर्बल और प्रतिरक्षा-बूस्टर दवाओं के उपयोग के बारे में नकली दावों वाले संदेश, रोकथाम और उपचार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक तरीकों को व्यापक रूप से प्रसारित किया, जिसने भ्रम की स्थिति को और बढ़ावा दिया।
- लॉकडाउन को बढ़ाने की संभावना जैसी अफवाहों से और दहशत फैल गई, जिसके परिणामस्वरूप लोग क्वारंटीन तथा आइसोलेसन की प्रक्रिया से दूर भागते रहे और लोगों को अपने घरों की ओर लौटने के लिये लॉकडाउन से पहले या यहाँ तक कि लॉकडाउन के दौरान अनावश्यक यात्राएँ करनी पड़ी।
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया की भूमिका:
- सूचना का स्रोत: लोकतंत्र और उसके विकास के लिये निष्पक्ष जानकारी प्मरदान करना महत्त्वपूर्ण है। मीडिया लोगों को महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने में मदद करता है। उदाहरण के लिये मीडिया अर्थव्यवस्था्, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि जैसे विषयों पर महत्त्वपू्ण डेटा प्रदान करता है।
- शिक्षित करना: समाज के लिये सर्वोपरि महत्त्व के विषयों पर लोगों को शिक्षित करने के लिये मीडिया महत्त्वपूर्ण है। बालात्कार की बढ़ती घटनाएँ समाज के लिये चिंता का विषय हैं। किसी भी मामले की सही जानकारी को उजागर कर समाज में जागरूकता बढ़ाने में मीडिया का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
- जागरूकता: मीडिया समाज के लोगों को उनके लोकतांत्रिक अधिकारों की याद दिलाता है और समाज में नियंत्रण तथा संतुलन बनाए रखने में भी मदद करता है।
- निष्पक्षता सुनिश्चित करना: मीडिया न्याय सुनिश्चित करने और सरकार की नीतियों का लाभ समाज के कमज़ोर वर्गों तक पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- वॉचडॉग: एक स्थिर लोकतंत्र के लिये सार्वजनिक मामलों पर मीडिया रिपोर्टिंग और सार्वजनिक मामलों के प्रशासन में गलत कामों की जांँच करना ज़रूरी है। इसका अर्थ है मीडिया द्वारा धोखाधड़ी या दुर्व्यवहार संबंधी ऐसे मामलों को उजागर करना, जो सीधे राजनेताओं का पक्ष लेता हैं। इससे लोगों को भ्रष्ट और बेईमान सरकार को हराने एवं सर्वश्रेष्ठ सरकार को चुनने में सहायता मिलती है।
- सुशासन: सरकारी नीतियों और खर्च की लेखा परीक्षा में मीडिया एक महत्त्वपूर्ण ण भूमिका निभाता है। एक निष्पक्ष मीडिया पारदर्शी रिपोर्टिंग के लिये आवश्यक है।
- जवाबदेही: तथ्यों और आंँकड़ों के आधार पर एक जानकार व्यक्ति जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये सरकारी नीतियों को चुनौती दे सकता है।
- सरकारी नीतियों का प्रसार: विभिन्न सरकारी नीतियों और पहलों के प्रचार और प्रसार के लिये मीडिया प्रासंगिक है। स्वच्छ भारत तथा बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ आदि के प्रति जागरूकता फैलाने में मीडिया ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
- चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया सही अर्थ में लोकतंत्र की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
एशिया मीडिया सम्मलेन:
एशिया मीडिया समिट, एशिया प्रशांत प्रसारण विकास संस्थान (AIBD) द्वारा अपने भागीदारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से आयोजित वार्षिक सम्मेलन है।
- सम्मेलन में एशिया, प्रशांत, अफ्रीका, यूरोप, मध्य पूर्व और उत्तरी अमेरिका के निर्णय निर्माताओं, मीडिया पेशेवरों, विद्वानों तथा समाचार व प्रोग्रामिंग के हितधारकों ने भाग लिया।
- एशिया मीडिया शिखर सम्मेलन क्षेत्र में प्रसारकों को प्रसारण और सूचना पर अपने विचार साझा करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है तथा सभी क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रसारण संघों द्वारा समर्थित है।
एशिया प्रशांत प्रसारण विकास संस्थान (AIBD):
- परिचय:
- AIBD की स्थापना वर्ष 1977 में यूनेस्को के तत्त्वावधान में की गई थी।
- AIBD एक अद्वितीय क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन है जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विकास के क्षेत्र में UN-ESCAP (United Nations Economic and Social Commission for Asia and the Pacific) के की सेवा उपलब्ध कराता है।
- इसका सचिवालय कुआलालंपुर (Kuala Lumpur) में स्थित है और मलेशिया सरकार द्वारा इसकी मेज़बानी की जाती है।
- नीति और संसाधन विकास के माध्यम से एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक जीवंत व सामंजस्यपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वातावरण प्राप्त करने के लिये AIBD का अनुपालन अनिवार्य है।
- संस्थापक सदस्य:
- अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union-ITU), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme-UNDP), संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific Cultural Organisation-UNESCO) और एशिया-पेसिफिक ब्रॉडकास्टिंग यूनियन (Asia-Pacific Broadcasting Union-ABU) इस संस्थान के संस्थापक संगठन हैं और ये आम सभा के गैर-मतदाता सदस्य भी हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union-ITU), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme-UNDP), संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific Cultural Organisation-UNESCO) और एशिया-पेसिफिक ब्रॉडकास्टिंग यूनियन (Asia-Pacific Broadcasting Union-ABU) इस संस्थान के संस्थापक संगठन हैं और ये आम सभा के गैर-मतदाता सदस्य भी हैं।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में असंगठित अर्थव्यवस्था
प्रिलिम्स के लिये:ई-श्रम पोर्टल, असंगठित क्षेत्र, असंगठित अर्थव्यवस्था मेन्स के लिये :भारत में असंगठित अर्थव्यवस्था की स्थिति, असंगठित अर्थव्यवस्था और संबंधित पहल के साथ चुनौतियांँ |
चर्चा में क्यों?
नवीनतम आंँकड़ों के अनुसार, ई-श्रम पोर्टल पर असंगठित क्षेत्र के 27.69 करोड़ श्रमिक पंजीकृत हैं।
ई-श्रम पोर्टल:
- परिचय:
- वर्ष 2021 में शुरू किये गए ई-श्रम पोर्टल का उद्देश्य देश में असंगठित श्रमिकों (NDUW) के व्यापक राष्ट्रीय डेटाबेस का निर्माण करना है।
- लक्ष्य:
- उद्देश्य: देश भर में कुल 38 करोड़ असंगठित श्रमिकों जैसे- निर्माण मज़दूरों, प्रवासी कार्यबल, रेहड़ी-पटरी वालों और घरेलू कामगारों को पंजीकृत करना।
- इसके तहत श्रमिकों को एक ‘ई-श्रम कार्ड’ जारी किया जाएगा, जिसमें 12 अंकों का एक विशिष्ट नंबर शामिल होगा।
- यदि कोई कर्मचारी ‘ई-श्रम’ पोर्टल पर पंजीकृत है और दुर्घटना का शिकार होता है, तो मृत्यु या स्थायी विकलांगता की स्थिति में 2 लाख रुपए तथा आंशिक विकलांगता की स्थिति में 1 लाख रुपए पाने का पात्र होगा।
- पोर्टल का उद्देश्य देश में असंगठित कामगारों के अंतिम पंक्ति तक कल्याणकारी योजनाओं के वितरण को बढ़ावा देना है।
- उद्देश्य: देश भर में कुल 38 करोड़ असंगठित श्रमिकों जैसे- निर्माण मज़दूरों, प्रवासी कार्यबल, रेहड़ी-पटरी वालों और घरेलू कामगारों को पंजीकृत करना।
- पृष्ठभूमि:
- ई-श्रम पोर्टल का गठन सर्वोच्च न्यायालय के उस निर्णय के बाद किया गया है, जिसमें न्यायालय ने सरकार को जल्द-से-जल्द असंगठित श्रमिकों की पंजीकरण प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया था, ताकि वे विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत दी जाने वाली कल्याणकारी सुविधाओं का लाभ उठा सकें।
- कार्यान्वयन:
- देश भर में असंगठित कामगारों का पंजीकरण संबंधित राज्य/केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों द्वारा किया जाएगा।
भारत में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की स्थिति:
- सामाजिक श्रेणी विश्लेषण:
- ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 27.69 करोड़ असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों में से 94% से अधिक की मासिक आय 10,000 रुपए या उससे कम है और नामांकित कार्यबल का 74% से अधिक अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) तथा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से संबंधित है।
- सामान्य श्रेणी के श्रमिकों का अनुपात 25.56% है।
- आंँकड़ों से पता चला है कि पंजीकृत असंगठित श्रमिकों में से 94.11% की मासिक आय 10,000 रुपए या उससे कम है, जबकि 4.36% की मासिक आय 10,001 रुपए और 15,000 रुपए के बीच है।
- ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 27.69 करोड़ असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों में से 94% से अधिक की मासिक आय 10,000 रुपए या उससे कम है और नामांकित कार्यबल का 74% से अधिक अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) तथा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से संबंधित है।
- आयु-वार विश्लेषण:
- पोर्टल पर पंजीकृत श्रमिकों में से 61.72% 18 वर्ष से 40 वर्ष की आयु के हैं, जबकि 22.12% 40 वर्ष से 50 वर्ष की आयु के हैं।
- 50 वर्ष से अधिक आयु के पंजीकृत श्रमिकों का अनुपात 13.23% है, जबकि 2.93% श्रमिक 16 से 18 वर्ष की आयु के बीच हैं।
- लिंग-वार विश्लेषण:
- पंजीकृत श्रमिकों में 52.81% महिलाएंँ हैं और 47.19% पुरुष हैं।
- पंजीकरण के मामले में शीर्ष 5 राज्य:
- उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और ओडिशा।
- व्यवसाय-वार:
- कृषि क्षेत्र से संबंधित 52.11% नामांकन के साथ कृषि शीर्ष पर है, इसके बाद घरेलू श्रमिकों ने 9.93% और निर्माण श्रमिकों ने 9.13% पर नामांकन किया है।
भारत की असंगठित अर्थव्यवस्था की स्थिति:
- असंगठित अर्थव्यवस्था उन उद्यमों का प्रतिनिधित्व करती है जो पंजीकृत नहीं हैं, जहांँ नियोक्ता कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं।
- भारत सहित कई विकासशील देशों में असंगठित क्षेत्र में धीमी गति से गिरावट आई है, जो शहरी गंदगी, गरीबी और बेरोज़गारी में सबसे अधिक स्पष्ट रूप से प्रकट होती है।
- पिछले दो दशकों में तेज़ी से आर्थिक विकास देखने के बावज़ूद भारत में 90% श्रमिक असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं, जो सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग आधा उत्पादन करते हैं।
- आधिकारिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के आंँकड़ों से पता चलता है कि 75% असंगठित श्रमिक स्व-नियोजित और आकस्मिक वेतनभोगी कर्मचारी हैं जिनकी औसत आय नियमित वेतनभोगी श्रमिकों की तुलना में कम है।
- भारत की आधिकारिक परिभाषा के साथ आईएलओ की व्यापक रूप से सहमत परिभाषा (संगठित नौकरियों के रूप में कम-से-कम एक सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने वाले - जैसे ईपीएफ) को मिलाकर भारत में संगठित श्रमिकों की हिस्सेदारी केवल 9.7% (47.5 मिलियन) थी।
असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों से संबंधित चुनौतियाँ:
- श्रम संबंधी चुनौतियाँ: हालाँकि कार्यबल की बड़ी संख्या ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत है, असंगठित क्षेत्र में नियोजित शहरी कार्यबल एक बड़ी चुनौती है।
- दीर्घावधिक कार्य घंटे, कम वेतन और कठिन कार्य परिस्थिति।
- निम्न रोज़गार सुरक्षा, नौकरी छोड़ने की उच्च दर और निम्न रोज़गार संतुष्टि।
- अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा विनियमन।
- अधिकारों का प्रयोग करने में कठिनाई।
- बाल श्रम एवं बलात श्रम और विभिन्न कारकों के आधार पर भेदभाव।
- असंरक्षित, कम वेतन वाली और कम महत्त्व प्राप्त नौकरियाँ।
- उत्पादकता: असंगठित क्षेत्र में मूल रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSMEs) और घरेलू व्यवसाय शामिल हैं जो रिलायंस जैसी फर्मों जितने बड़े नहीं हैं। वे इन अर्थव्यवस्थाओं का लाभ उठाने में असमर्थ हैं।
- कर राजस्व बढ़ाने में असमर्थता: चूँकि असंगठित अर्थव्यवस्था के कार्यकलाप सीधे विनियमित नहीं होते हैं, वे आमतौर पर नियामक ढाँचे से अपनी आय और व्यय छुपाकर करों के भुगतान से बचने की प्रवृत्ति रखते हैं। यह सरकार के लिये एक चुनौती है क्योंकि अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कर के दायरे से बाहर रह जाता है।
- नियंत्रण और निगरानी की कमी: असंगठित क्षेत्र सरकार की निगरानी से बचा रहता है।
- इसके अलावा अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति का प्रतिनिधित्व करने वाले आधिकारिक आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, जिससे सरकार, विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र के लिये और सामान्य रूप से पूरी अर्थव्यवस्था के संबंध में नीतियों का निर्माण करना कठिन हो जाता है।
- निम्न-गुणवत्ता वाले उत्पाद: यद्यपि असंगठित क्षेत्र भारतीय आबादी के 75% से अधिक को रोज़गार देता है, लेकिन यह मूल्यवर्द्धन प्रति कर्मचारी बहुत कम है। इसका तात्पर्य है कि मानव संसाधन का एक बड़े हिस्से का कम उपयोग किया जा रहा है।
संबंधित पहल:
- प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन (PM-SYM)
- श्रम संहिता
- प्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्साहन योजना (PM RPY)
- पीएम स्वनिधि: फुटपाथ विक्रेताओं के लिये सूक्ष्म ऋण योजना
- आत्मनिर्भर भारत अभियान
- दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन
- पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना (PM-GKAY)
- वन नेशन वन राशन कार्ड
- आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना
- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि
- भारत के असंगठित मज़दूर वर्ग को विश्व बैंक का समर्थन
आगे की राह
- सरल नियामक ढाँचा: असंगठित क्षेत्र का संगठित क्षेत्र में संक्रमण तभी हो सकता है जब असंगठित क्षेत्र को नियामक अनुपालन के बोझ से राहत दी जाए और उसे आधुनिक, डिजिटल संगठित प्रणाली के साथ समायोजित करने के लिये पर्याप्त समय प्रदान किया जाए।
- संगठित क्षेत्र में लाने हेतु वित्तीय सहायता: छोटे पैमाने के उद्योगों को अपने दम पर खड़े होने में मदद करने के लिये वित्तीय सहायता देना उन्हें संगठित क्षेत्र में लाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- मुद्रा ऋण और स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाएँ युवाओं को संगठित क्षेत्र में जगह बनाने में मदद कर रही हैं।
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
भारतीय राजनीति
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता
प्रिलिम्स के लिये:समान नागरिक संहिता, अनुच्छेद 44, अनुच्छेद 25, अनुच्छेद 14 मेन्स के लिये:व्यक्तिगत कानूनों पर समान नागरिक संहिता के निहितार्थ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू करने और उत्तराखंड के निवासियों के व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले सभी प्रासंगिक कानूनों की समीक्षा हेतु सर्वोच्च न्यायालय (SC) के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया।
- कुछ महीने पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी केंद्र सरकार से UCC के क्रियान्वयन की प्रक्रिया शुरू करने को कहा था।
समान नागरिक संहिता (UCC):
परिचय:
- समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान करती है।
- संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।
- अनुच्छेद 44, संविधान में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों में से एक है।
- अनुच्छेद 37 में परिभाषित है कि राज्य के नीति निदेशक तत्त्व संबंधी प्रावधानों को किसी भी न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं किया जा सकता है लेकिन इसमें निहित सिद्धांत शासन व्यवस्था में मौलिक प्रकृति के होंगे।
- भारत में UCC की स्थिति:
- अधिकांश सिविल मामलों में भारत एक समान नागरिक संहिता का अनुसरण करता है, जैसे- भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1972, नागरिक प्रक्रिया संहिता, माल बिक्री अधिनियम, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882, भागीदारी अधिनियम 1932, साक्ष्य अधिनियम 1872 आदि।
- हालाँकि कुछ मामलों में इन नागरिक कानूनों के तहत भी भिन्नता है क्योंकि राज्यों द्वारा इनमें सैकड़ों संशोधन किये गए हैं।
- उदाहरण के लिये कई राज्यों ने एक समान रूप से मोटर वाहन अधिनियम, 2019 को लागू करने से इनकार कर दिया था।
- वर्तमान में गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जिसने UCC को लागू किया है।
- उत्पत्ति:
- UCC की उत्पत्ति ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1835 में प्रस्तुत की गई एक रिपोर्ट में निहित है।
- इस रिपोर्ट में अपराधों, सबूतों और अनुबंधों से संबंधित भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है, विशेष रूप से यह अनुशंसा की गई है कि हिंदुओं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इस तरह के संहिताकरण से बाहर रखा जाए।
- व्यक्तिगत मुद्दों से निपटने वाले कानून में वृद्धि हुई। इसने सरकार को वर्ष 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिये बी.एन. राव समिति बनाने के लिये विवश किया।
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956:
- बी.एन. राव समिति की अनुशंसाओं के आधार पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) को हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के बीच निर्वसीयत या अनिच्छा से उत्तराधिकार से संबंधित कानून में संशोधन और संहिताबद्ध करने के लिये अपनाया गया था।
- हालाँकि मुस्लिम, ईसाई और पारसियों के लिये अलग-अलग व्यक्तिगत कानून थे।
- UCC की उत्पत्ति ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1835 में प्रस्तुत की गई एक रिपोर्ट में निहित है।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
- एकरूपता लाने के लिये न्यायालयों ने अक्सर अपने निर्णय में कहा है कि सरकार को UCC की ओर बढ़ना चाहिये।
- इस संदर्भ में शाह बानो वाद (1985) का निर्णय सर्वविदित है।
- एक अन्य मामला सरला मुद्गल वाद (1995) था, जो विवाह के मामलों पर मौजूद व्यक्तिगत कानूनों के बीच द्विविवाह और संघर्ष के मुद्दे का समाधान करता है।
- शायरा बानो वाद (2017) में सर्वोच्च न्यायालय ने तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की प्रथा को असंवैधानिक घोषित किया था।
- यह तर्क देते हुए कि तीन तलाक और बहुविवाह जैसी प्रथाएँ एक महिला के सम्मान के साथ जीवन जीने के अधिकार को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती हैं, केंद्र ने सवाल उठाया है कि क्या धार्मिक प्रथाओं को दिया गया संवैधानिक संरक्षण उन लोगों तक भी बढ़ाया जाना चाहिये जो मौलिक अधिकारों के अनुपालन में नहीं है।
समान नागरिक संहिता की आवश्यकता (UCC):
- सभी नागरिकों को समान माना जाना चाहिये और सरकारी प्रायोजन/धार्मिक स्थलों/कार्यक्रमों के नियमों को संविधान में वर्जित किया जाना चाहिये।
- UCC को लागू करने से भारत जैसे देश में जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं, धार्मिक विभाजन को कम करने में मदद मिलेगी।
- UCC का प्रवर्तन कमज़ोर वर्गों को सुरक्षा प्रदान करेगा, कानूनों को सरलीकृत करेगा और धर्मनिरपेक्षता के आदर्श का पालन करते हुए लैंगिक न्याय को सुनिश्चित करेगा।
समान नागरिक संहिता को अपनाने में चुनौतियाँ:
- धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा के खिलाफ:
- कई लोगों को यह आशंका है कि UCC को लागू करने का प्रयास करके संसद केवल कानून के पश्चिमी मॉडल की नकल कर रही है जो एकरूपता पर आधारित है लेकिन धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा धर्म और लोगों की विविधता पर आधारित है।
- भारत में लोगों की अलग-अलग धार्मिक आस्थाएँ हैं। विविध धार्मिक प्रथाएँ इसे हर धर्म के लिये बुनियादी मंच पर लागू करने के योग्य बनाती हैं।
- अल्पसंख्यकों यानी मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी लोगों की यह गलत धारणा है कि UCC उनकी धार्मिक प्रथाओं को नष्ट कर देगी और उन्हें बहुसंख्यकों की धार्मिक प्रथा का पालन करने के लिये बाध्य किया जाएगा।
- लोगों में जागरूकता का अभाव:
- सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा UCC के बारे में लोगों की अनभिज्ञता है और इस तरह की अनभिज्ञता का कारण शिक्षा की कमी, गलत समाचार, तर्कहीन धार्मिक विश्वास आदि हैं।
- सांप्रदायिक राजनीति:
- कई विश्लेषकों का मत है कि समान नागरिक संहिता की मांग केवल सांप्रदायिक राजनीति के संदर्भ में की जाती है।
- समाज का एक बड़ा वर्ग सामाजिक सुधार की आड़ में इसे बहुसंख्यकवाद के रूप में देखता है।
- संवैधानिक बाधा:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25, जो किसी भी धर्म को मानने और प्रचार की स्वतंत्रता को संरक्षित करता है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता की अवधारणा के विरुद्ध है।
आगे की राह
- परस्पर विश्वास निर्माण के लिये सरकार और समाज को कड़ी मेहनत करनी होगी, किंतु इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि धार्मिक रूढ़िवादिता के बजाय इसे लोकहित के रूप में स्थापित किया जाए।
- एक सर्वव्यापी दृष्टिकोण के बजाय सरकार विवाह, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे अलग-अलग पहलुओं को चरणबद्ध तरीके से समान नागरिक संहिता में शामिल कर सकती है।
- सभी व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबद्ध किया जाना काफी महत्त्वपूर्ण है, ताकि उनमें से प्रत्येक में पूर्वाग्रह और रुढ़िवादी पहलुओं को रेखांकित कर मौलिक अधिकारों के आधार पर उनका परीक्षण किया जा सके।
- मौलिक अधिकारों के संरक्षण और व्यक्तियों की धार्मिक हठधर्मिता के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिये। यह धार्मिक या राजनीतिक विचारों के संबंध में बिना किसी पूर्वाग्रह के एक कोड होना चाहियेे।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. मौलिक अधिकारों की निम्नलिखित श्रेणियों में से किस एक में भेदभाव के रूप में अस्पृश्यता के विरुद्ध संरक्षण का प्रावधान है? (2020) (A) शोषण के विरुद्ध अधिकार उत्तर: (D) व्याख्या:
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
पदोन्नति में आरक्षण
प्रिलिम्स के लिये:आरक्षण, पदोन्नति, सर्वोच्च न्यायालय, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, इंदिरा साहनी केस, एम नागराज केस मेन्स के लिये:निर्णय और मामले, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित मुद्दे, पदोन्नति में आरक्षण तथा इससे संबंधित विभिन्न मामले। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी / एसटी) के कर्मचारियों की पदोन्नति में आरक्षण को रद्द करने से कर्मचारियों में अशांति उत्पन्न हो सकती है तथा इसके विरोध में विभिन्न मुकदमें दायर किये जा सकते हैं।
- इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिये पदोन्नति में आरक्षण देने हेतु प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता का निर्धारण करने के लिये मापदंड तय करने से इनकार कर दिया था।
आरक्षण के लाभ:
- यह उच्च शिक्षा में विविधता सुनिश्चित करता है, कार्यस्थल पर समानता लाता है और घृणा या द्वेष से पिछड़े वर्गों को सुरक्षा प्रदान करता है।
- यह वंचित व्यक्तियों के उद्धार में मदद करता है और इस प्रकार समानता को बढ़ावा देता है।
- यह जाति, धर्म और जातीयता के संबंध में विद्यमान रूढ़ियों को समाप्त करता है।
- यह सामाजिक गतिशीलता की वृद्धि करता है।
- सदियों के उत्पीड़न एवं भेदभाव की भरपाई करने और समान अवसर प्रदान करने हेतु यह काफी महत्त्वपूर्ण है।
- यह 'वर्गीकृत असमानताओं' को संबोधित कर समाज में समानता लाने का प्रयास करता है।
आरक्षण के नुकसान:
- ऐसी चिंताएँ प्रकट की जाती हैं कि आरक्षण योग्यता के क्षरण की ओर ले जाता है।
- कई जानकार मानते हैं कि आरक्षण व्यवस्था रूढ़ियों को सुदृढ़ बनाती है, क्योंकि आरक्षण के माध्यम से प्राप्त वंचित वर्गों की उपलब्धियों को नीची नज़रों से देखा जाता है।
- आरक्षण के दायरे में आने वाले लोगों की सफलता को उनकी योग्यता और श्रम के बजाय आरक्षण का परिणाम बताया जाता है।
- ऐसी चिंताएँ भी प्रकट की जाती हैं कि आरक्षण ‘प्रतिलोम विभेदन’ (Reverse Discrimination) के एक माध्यम के रूप में कार्य कर सकता है।
- ‘प्रतिलोम विभेदन’ किसी अल्पसंख्यक या ऐतिहासिक रूप से वंचित समूह के सदस्यों के पक्ष में प्रभुत्वशाली या बहुसंख्यक समूह के सदस्यों के साथ भेदभाव का दृष्टिकोण है।
- गुज़रते समय के साथ भेदभावजनक विषयों में कमी आने के बावजूद वोट बैंक की राजनीति के कारण आरक्षण व्यवस्था को समाप्त करना कठिन है।
आरक्षण से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णय:
- मुकेश कुमार और अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य तथा अन्य 2020:
- इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) या अनुच्छेद 16(4A) के तहत आरक्षण या पदोन्नति का कोई मौलिक अधिकार नहीं है, बल्कि वे परिस्थितियों के अनुसार आरक्षण प्रदान करने के प्रावधानों को सक्षम करते हैं।
- हालाँकि ये घोषणाएँ किसी भी तरह से अनुच्छेद-46 के तहत संवैधानिक निर्देश को कम नहीं करती हैं जो यह कहता है कि राज्य लोगों के कमज़ोर वर्गों और विशेष रूप से अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक आर्थिक हितों को विशेष देखभाल के साथ बढ़ावा देगा।
- वास्तव में दशकों से कमज़ोर वर्गों के प्रति कल्याणकारी राज्य की संवेदनशीलता के परिणामस्वरूप अनुच्छेद-16 के तहत बढ़ते वर्गीकरण के रूप में आरक्षण के दायरे का क्रमिक विस्तार हुआ, ऐसे समूह जिन्होंने न्यायालय में अनेक याचिकाएँ दायर कीं परिणामस्वरूप सार्वजनिक रोज़गार में सकारात्मक कार्रवाई का निरंतर विकास हुआ है।
- इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) या अनुच्छेद 16(4A) के तहत आरक्षण या पदोन्नति का कोई मौलिक अधिकार नहीं है, बल्कि वे परिस्थितियों के अनुसार आरक्षण प्रदान करने के प्रावधानों को सक्षम करते हैं।
- इंदिरा साहनी वाद 1992:
- पदोन्नति में आरक्षण की इस नीति को इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ 1992 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक और शून्य माना गया क्योकि सार्वजनिक सेवाओं में भर्ती के समय केवल प्रवेश के स्तर पर अनुच्छेद 16 (4) के तहत राज्य को पिछड़े वर्गों के नागरिकों के पक्ष में आरक्षण की शक्ति प्रदान की गई है।
- 77वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 16(4A) को शामिल किया गया।
- 77वाँ संविधान संशोधन अधिनियम:
- अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति के मामले में आरक्षण देने की व्यवस्था की गई। इस संशोधन से प्रोन्नति के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को निरस्त कर दिया गया।
- बाद में दो और संशोधन लाए गए, एक परिणामी वरिष्ठता सुनिश्चित करने के लिये और दूसरा एक वर्ष की अधूरी रिक्तियों को आगे बढ़ाने के लिये। पहले संशोधन ने अनुच्छेद 16(4A) के अतिरिक्त प्रावधान किये, जबकि दूसरे संशोधन ने 16(4B) को शामिल किया।
- एम नागराज वाद 2006:
- इस मामले में पदोन्नति हेतु अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में क्रीमी लेयर की अवधारणा को लागू करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इंद्रा साहनी मामले (1992) में अपने पूर्व निर्णय को पलट दिया, जिसमें उसने एससी/एसटी (जो ओबीसी पर लागू था) को क्रीमी लेयर की अवधारणा से बाहर कर दिया था।
- SC ने संवैधानिक संशोधनों जिसके द्वारा अनुच्छेद 16 (4A) और 16 (4B) को जोड़ा गया था यह कहते हुए बरकरार रखा कि वे अनुच्छेद 16 (4) से संबंधित हैं तथा ये अनुच्छेद की मूल संरचना को परिवर्तित नहीं करते हैं।
- इसने सार्वजनिक रोज़गार में एससी और एसटी समुदायों के लोगों की संख्या को बढ़ाने हेतु तीन शर्तें भी रखीं:
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय को सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़ा होना चाहिये।
- सार्वजनिक रोज़गार में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व का अभाव हो।
- आरक्षण नीति प्रशासन में समग्र दक्षता को प्रभावित नहीं करेगी।
- न्यायालय ने कहा कि सरकार अपने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों हेतु पदोन्नति में कोटा तब तक लागू नहीं कर सकती जब तक कि यह साबित नहीं हो जाता कि विशेष समुदाय पिछड़ा हुआ है, अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने से लोक प्रशासन की समग्र दक्षता प्रभावित नहीं होगी।
- सरकार की राय मात्रात्मक आंँकड़ों पर आधारित होनी चाहिये।
- जरनैल सिंह वाद 2018:
- जरनैल सिंह मामले (2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने नागराज फैसले को एक उच्च पीठ को संदर्भित करने से इनकार कर दिया, परंतु बाद में यह कहकर अपने निर्णय को बदल दिया कि राज्यों को SC/ST समुदायों के पिछड़ेपन का मात्रात्मक डेटा प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है।
- न्यायालय ने सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के सदस्यों के लिये "परिणामी वरिष्ठता के साथ त्वरित पदोन्नति" प्रदान करने के सरकार के प्रयासों को एक बड़ा प्रोत्साहन दिया था।
- संविधान (103वाँ संशोधन) अधिनियम, 2019:
- आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS), अन्य अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिये सरकारी नौकरियों तथा शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश हेतु 10% आरक्षण वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती के अधीन है, जिसने एक संविधान पीठ को भेज दिया गया है।
- इस संबंध में प्रतीक्षित निर्णय भी आरक्षण के न्यायशास्त्र में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय साबित हो सकता है क्योंकि पिछड़ेपन को पारंपरिक रूप से सामाजिक पिछड़ेपन के बजाय आर्थिक पिछड़ेपन की दृष्टि से देखा जाना चाहिये।
- डॉ. जयश्री लक्ष्मणराव पाटिल बनाम मुख्यमंत्री (2021):
- इंद्रा साहनी वाद के निर्णय के बावजूद कई राज्यों की ओर से आरक्षण के दायरे का विस्तार करके नियमों का उल्लंघन करने का प्रयास किया गया है।
- महाराष्ट्र सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम 2018, (मराठा आरक्षण कानून) सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती के तहत आया, जिसने इसे पाँच न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया और यह पूछा गया कि क्या 1992 के फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने न केवल इंद्रा साहनी मामले में दिये गए निर्णय की पुष्टि की, बल्कि आरक्षण की सीमा के उल्लंघन का हवाला देते हुए अधिनियम की धारा 4(1)(A) और धारा 4(1)(B) को भी रद्द कर दिया, जिसमें मराठों के लिये शैक्षणिक संस्थानों में 12% और सार्वजनिक रोज़गार में 13% आरक्षण का प्रावधान किया गया था।
आरक्षण में पदोन्नति के लिये संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, राज्य सरकारें अपने नागरिकों के उन सभी पिछड़े वर्गों के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण हेतु प्रावधान कर सकती हैं, जिनका राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
- अनुच्छेद 16(4A) के अनुसार, राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के पक्ष में पदोन्नति के मामलों में आरक्षण के लिये कोई भी प्रावधान कर सकती हैं यदि राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
- अनुच्छेद 16 (4B): इसे 81वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा जोड़ा गया, जिसमें एक विशेष वर्ष के रिक्त SC/ST कोटे को अगले वर्ष के लिये स्थानांतरित करना है।
- अनुच्छेद 335: के अनुसार, सेवाओं और पदों को लेकर SC और ST के दावों पर विचार करने हेतु विशेष उपायों को अपनाने की आवश्यकता है, ताकि उन्हें बराबरी के स्तर पर लाया जा सके।
- 82वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2000 ने अनुच्छेद 335 में एक शर्त सम्मिलित की गई जो कि राज्य को किसी भी परीक्षा में अर्हक अंक में छूट प्रदान करने हेतु अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के पक्ष में कोई प्रावधान करने में सक्षम बनाता है।