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भारतीय अर्थव्यवस्था

अनुबंध कृषि (Contract Farming)

  • 30 Jan 2020
  • 10 min read

संदर्भ:

हाल ही में केंद्र सरकार की मॉडल अनुबंध कृषि अधिनियम, 2018 (Model Contract Farming Act, 2018) की तर्ज पर अनुबंध कृषि पर कानून बनाने वाला तमिलनाडु देश का पहला राज्य बन गया है।

अन्य संबंधित तथ्य:

  • हाल ही में तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित कृषि उपज एवं पशुधन अनुबंध कृषि व सेवा (संवर्द्धन और सुविधा) अधिनियम [Agricultural Produce and Livestock Contract Farming and Services (Promotion and Facilitation) Act] नामक कानून को राष्ट्रपति ने स्वीकृति प्रदान की।
  • यह अधिनियम अत्यधिक फसल उपज या बाज़ार की कीमतों में उतार-चढ़ाव के दौरान किसानों के हितों की रक्षा करने वाले पंजीकृत समझौतों के अनुसार किसानों को पूर्व निर्धारित मूल्य पर भुगतान किया जाना सुनिश्चित करता है।
  • इस कानून के अनुसार, किसानों को उत्पादन एवं उत्पादकता में सुधार हेतु निवेश, खाद, चारा, प्रौद्योगिकी आदि के लिये खरीदारों का समर्थन प्राप्त होगा।
  • इस अधिनियम में कृषि, बागवानी, मधुमक्खी पालन, रेशम उत्पादन, पशुपालन या वन संबंधी गतिविधियों के आउटपुट सम्मिलित हैं लेकिन कानून द्वारा प्रतिबंधित या निषिद्ध उत्पादों को इसमें शामिल नहीं किया गया है।
  • इस अधिनियम के समुचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु तमिलनाडु राज्य अनुबंध कृषि एवं सेवा (संवर्द्धन व सुविधा) प्राधिकरण [Tamil Nadu State Contract Farming and Services (Promotion and Facilitation) Authority] नामक छह सदस्यीय निकाय का भी गठन किया जाएगा।

अनुबंध कृषि क्या है?

  • अनुबंध कृषि के अंतर्गत खरीदारों (खाद्य प्रसंस्करण इकाई व निर्यातक) तथा उत्पादकों के मध्य फसल-पूर्व समझौते या अनुबंध किये जाते हैं जिसके आधार पर कृषि उत्पादन (पशुधन व मुर्गीपालन) किया जाता है।
  • अनुबंध कृषि को समवर्ती सूची के तहत शामिल किया गया है, जबकि कृषि राज्य सूची का विषय है।
  • सरकार ने अनुबंध कृषि में संलग्न फर्मों को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के अंतर्गत खाद्य फसलों की भडारण सीमा एवं आवाजाही पर मौजूदा लाइसेंसिंग और प्रतिबंध से छूट दे रखी है।

भारत में अनुबंध कृषि से संबंधित कानून:

  • अनुबंध कृषि के उत्पादकों एवं प्रायोजकों के हितों की रक्षा के लिये कृषि मंत्रालय ने मॉडल कृषि विपणन समिति अधिनियम, 2003 का मसौदा तैयार किया था जिसमें प्रायोजकों के पंजीकरण, समझौते की रिकॉर्डिंग, विवाद निपटान तंत्र आदि के प्रावधान हैं।
    • फलस्वरूप कुछ राज्यों ने इस प्रावधान के अनुसरण में अपने APMC अधिनियमों में संशोधन किया परंतु पंजाब में अनुबंध कृषि पर अलग कानून है।
  • केंद्र सरकार मॉडल अनुबंध कृषि अधिनियम 2018 के माध्यम से राज्य सरकारों को इस मॉडल अधिनियम के अनुरूप स्पष्ट अनुबंध कृषि कानून अधिनियमित करने हेतु प्रोत्साहित कर रही है।
  • इसे एक संवर्द्धनात्मक एवं सुविधाजनक अधिनियम के रूप में तैयार किया गया है तथा यह विनियामक प्रकृति का नहीं है।

अनुबंध कृषि के लाभ:

  • किसानों के हितों की रक्षा: यह किसानों को उनकी उपज के लिये एक आश्वासन वाला बाज़ार मुहैया कराती है तथा बाज़ार की कीमतों में उतार-चढ़ाव से उन्हें सुरक्षित करके उनके जोखिम को कम करती हैं।
    • पूर्व निर्धारित कीमतें, फसल कटाई के बाद होने वाली क्षति के मामले में प्रतिपूर्ति करने का अवसर प्रदान करती है।
  • कृषि में निजी भागीदारी: जैसा कि राष्ट्रीय कृषि नीति द्वारा परिकल्पित है, यह कृषि में निजी क्षेत्रक के निवेश को प्रोत्साहित करती है ताकि नई प्रौद्योगिकी, विकासशील बुनियादी ढाँचे आदि को बढ़ावा दिया जा सके।
  • किसानों की उत्पादकता में सुधार: यह बेहतर आय, वैज्ञानिक पद्धति एवं क्रेडिट सुविधाओं तक पहुँच बढ़ाकर कृषि क्षेत्र की उत्पादकता व दक्षता को बढ़ाती है जिससे किसान की आय में वृद्धि के साथ-साथ रोज़गार के नए अवसर एवं खाद्य सुरक्षा प्राप्त होती है।
  • बेहतर मूल्य की खोज: यह APMC के एकाधिकार को कम करती है एवं कृषि को एक संगठित गतिविधि बनाती है जिससे गुणवत्ता व उत्पादन की मात्रा में सुधार होता है।
  • निर्यात में वृद्धि: यह किसानों को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग द्वारा आवश्यक फसलों को उगाने एवं भारतीय किसानों को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं से विशेष रूप से उच्च मूल्य वाले बागवानी उत्पादन से जोड़ने के लिये प्रोत्साहित करती है तथा खाद्यान्न की बर्बादी को काफी कम करती है।
  • उपभोक्ताओं को लाभ: विपणन दक्षता में वृद्धि, बिचौलियों का उन्मूलन, विनियामक अनुपालन में कमी आदि से उत्पाद के कृत्रिम अभाव को कम किया जा सकता है तथा खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सकता है।

अनुबंध कृषि की चुनौतियाँ:

  • अनुबंध कृषि के मामले में आवश्यक उपजों के प्रकार, स्थितियों आदि के संदर्भ में राज्यों के कानून के मध्य एकरूपता या समरूपता का अभाव है। राजस्व की हानि की आशंका के चलते राज्य सुधारों को आगे बढ़ाने के प्रति अनिच्छुक रहे हैं।
  • क्षेत्रीय असमानता को बढ़ावा: वर्तमान में यह कृषि विकसित राज्यों (पंजाब, तमिलनाडु आदि) में प्रचलित है, जबकि लघु एवं सीमांत किसानों की उच्चतम सघनता वाले राज्य इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
  • भू-जोतों का आकार: उच्च लेन-देन एवं विपणन लागत के कारण खरीदार लघु एवं सीमांत किसानों के साथ अनुबंध कृषि को वरीयता नहीं देते हैं। साथ ही इस हेतु उन्हें कोई विशेष प्रोत्साहन नहीं मिलता है। इससे सामाजिक-आर्थिक विकृतियों को बढ़ावा मिलता है एवं बड़े किसानों के लिये वरीयता की स्थिति पैदा होती है।
    • वर्ष 2015-16 की कृषि संगणना के अनुसार, 86 प्रतिशत भू-जोतों का स्वामित्व लघु एवं सीमांत किसानों के पास था तथा भारत में भू-जोतों का औसत आकार 1.08 हेक्टेयर था।
  • यह निवेश के लिये कॉर्पोरेट जगत पर किसानों की निर्भरता को बढ़ाता है जिससे वे कमज़ोर होते हैं।
  • पूर्व निर्धारित मूल्य, किसानों को उपज के लिये बाज़ार में उच्च मूल्यों के लाभ से वंचित कर सकते हैं।
  • कृषि के लिये पूंजी गहन एवं कम संधारणीय पैटर्न: यह उर्वरकों एवं पीड़कनाशियों के बढ़ते उपयोग को बढ़ावा देता है जो प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण, मनुष्यों व जानवरों पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं।
  • एकल कृषि को प्रोत्साहन: यह न केवल मृदा की सेहत को प्रभावित करता है अपितु खाद्य सुरक्षा के लिये भी खतरा उत्पन्न करता है एवं खाद्यान्नों के आयात को बढ़ावा देता है।

आगे की राह:

  • अनुबंध कृषि में सम्मिलित खाद्य संसाधनों को कर में छूट दी जा सकती है जिसके बदले में उन्हें ग्रामीण अवसंरचना, किसान कल्याण आदि में निवेश करने के लिये प्रेरित किया जा सकता है।
    • अनुबंध कृषि के लिये आयात किये जा रहे कृषि उपकरणों पर लगने वाले शुल्क को हटाया जा सकता है।
  • सरकार को किसानों एवं खरीदारों के मध्य प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देकर और सूचना विषमता को कम करके एक सक्षम वातावरण प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • अंततः सभी राज्यों को किसानों के लिये एक सामान सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु मॉडल अनुबंध कृषि अधिनियम को अपनाना एवं कार्यान्वित करना चाहिये। साथ ही खरीदारों के लिये एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिये।
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