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हिंद महासागर द्विध्रुव
प्रिलिम्स के लिये:हिंद महासागर द्विध्रुव, अल नीनो, IMD, मानसून, ENSO, प्रशांत महासागर, हिंद महासागर मेन्स के लिये:हिंद महासागर द्विध्रुव और अल नीनो पर इसका प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2023 में भारतीय मानसून पर अल नीनो का प्रभाव पड़ने की संभावना जताई जा रही है, परंतु साथ ही एक सकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव (Indian Ocean Dipole- IOD) विकसित होने की भी आशंका है और इससे अल नीनो का प्रभाव कम हो सकता है।
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, जून-अगस्त 2023 के दौरान सकारात्मक/पॉज़िटिव IOD स्थितियों की लगभग 80% और तटस्थ IOD की 15% संभावना है।
- वैसे तो हिंद महासागर द्विध्रुव अभी भी अपने तटस्थ/न्यूट्रल चरण में है और आने वाले महीनों में विकसित हो सकता है, किंतु वर्ष 2023 में प्रशांत महासागर में अल नीनो की स्थिति पहले से ही अच्छी बनी हुई है।
हिंद महासागर द्विध्रुव:
- IOD और भारतीय नीनो:
- IOD, जिसे भारतीय नीनो भी कहा जाता है, एल नीनो के समान ही एक घटना है जो पूर्व में इंडोनेशियाई और मलेशियाई तटरेखा तथा पश्चिम में सोमालिया के पास अफ्रीकी तटरेखा के बीच हिंद महासागर के अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र में घटित होती है।
- अल नीनो दक्षिणी दोलन (El Nino Southern Oscillation- ENSO) घटना की तुलना में अल नीनो एक सामान्य से अधिक गर्म चरण है, जिसक दौरान भारत सहित विश्व के कई क्षेत्रों में आमतौर पर तापमान गर्म और वर्षा सामान्य से कम होती है।
- ऐसे में भूमध्य रेखा के साथ समुद्र का एक किनारा दूसरे की तुलना में गर्म हो जाता है।
- जब हिंद महासागर का पश्चिमी भाग, विशेषकर सोमालिया तट के करीब पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में गर्म हो जाता है, तब इसे सकारात्मक IOD कहा जाता है।
- जब पश्चिमी हिंद महासागर ठंडा होता है तब इसे नकारात्मक IOD कहते हैं।
- IOD, जिसे भारतीय नीनो भी कहा जाता है, एल नीनो के समान ही एक घटना है जो पूर्व में इंडोनेशियाई और मलेशियाई तटरेखा तथा पश्चिम में सोमालिया के पास अफ्रीकी तटरेखा के बीच हिंद महासागर के अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र में घटित होती है।
क्रियाविधि:
- नकारात्मक IOD:
- हिंद महासागर बेसिन में वायु का संचार पश्चिम से पूर्व की ओर होता है, अर्थात् सतह के निकट अफ्रीकी तट से इंडोनेशियाई द्वीपों की ओर तथा ऊपरी स्तर पर विपरीत दिशा में। इसका मतलब है कि हिंद महासागर में सतही जल पश्चिम से पूर्व की ओर विस्थापित हो जाता है।
- एक सामान्य वर्ष में इंडोनेशिया के पास पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में गर्म जल हिंद महासागर को पार करता है तथा हिंद महासागर के उस भाग को थोड़ा गर्म कर देता है। इस कारण वायु ऊपर उठती है और प्रचलित वायु परिसंचरण में सहायता करती है।
- जिस वर्ष वायु परिसंचरण मज़बूत हो जाता है, अफ्रीकी तट से अधिक गर्म सतही जल इंडोनेशियाई द्वीपों की ओर विस्थापित होता है, जिस कारण वह क्षेत्र सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है। इससे गर्म वायु ऊपर उठती है और चक्र स्वयं को मज़बूत करता है।
- यह नकारात्मक IOD की स्थिति को दर्शता है।
- हिंद महासागर बेसिन में वायु का संचार पश्चिम से पूर्व की ओर होता है, अर्थात् सतह के निकट अफ्रीकी तट से इंडोनेशियाई द्वीपों की ओर तथा ऊपरी स्तर पर विपरीत दिशा में। इसका मतलब है कि हिंद महासागर में सतही जल पश्चिम से पूर्व की ओर विस्थापित हो जाता है।
- सकारात्मक IOD:
- वायु संचार सामान्य से थोड़ा कमज़ोर हो जाता है। कुछ दुर्लभ मामलों में वायु परिसंचरण की दिशा भी विपरीत हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि अफ्रीकी तट गर्म हो जाता है, जबकि इंडोनेशियाई तट ठंडा हो जाता है।
- सकारात्मक IOD को अक्सर अल नीनो के समय विकसित होते देखा जाता है, जबकि नकारात्मक IOD कभी-कभी ला नीना से संबंधित होता है।
- अल नीनो के दौरान इंडोनेशिया का प्रशांत क्षेत्र सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता है जिसके कारण हिंद महासागर का क्षेत्र भी ठंडा हो जाता है। इससे सकारात्मक IOD को विकसित होने में सहायता मिलती है।
- वायु संचार सामान्य से थोड़ा कमज़ोर हो जाता है। कुछ दुर्लभ मामलों में वायु परिसंचरण की दिशा भी विपरीत हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि अफ्रीकी तट गर्म हो जाता है, जबकि इंडोनेशियाई तट ठंडा हो जाता है।
- IOD का प्रभाव:
- हिंद महासागर में IOD एक महासागर-वायुमंडलीय संपर्क प्रदर्शित करता है जो प्रशांत महासागर में अल नीनो घटनाओं के दौरान देखे गए उतार-चढ़ाव से काफी मिलता-जुलता है। हालाँकि अल नीनो की तुलना में IOD कम शक्तिशाली है, जिसके परिणामस्वरूप अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ता है।
- एक सकारात्मक IOD पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और अफ्रीकी तट पर वर्षा को प्रोत्साहित करता है, जबकि इंडोनेशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा ऑस्ट्रेलिया में वर्षा की मात्रा को कम करता है। जब IOD नकारात्मक होता है, तो विपरीत प्रभाव होते हैं।
- अतीत की घटनाएँ:
- वर्ष 2019 में IOD घटना का विकास मानसून के दौरान हुआ था लेकिन यह इतना मज़बूत था कि मानसून के पहले माह (उस वर्ष जून माह में वर्षा की मात्रा में 30% की कमी थी) के दौरान वर्षा की भरपाई हो गई थी।
- उस वर्ष के जून माह में वर्षा में कमी का एक कारण विकासशील अल नीनो भी था, लेकिन बाद में यह असफल हो गया।
- वर्ष 2019 में IOD घटना का विकास मानसून के दौरान हुआ था लेकिन यह इतना मज़बूत था कि मानसून के पहले माह (उस वर्ष जून माह में वर्षा की मात्रा में 30% की कमी थी) के दौरान वर्षा की भरपाई हो गई थी।
ENSO:
- एक सामान्य वर्ष में दक्षिण अमेरिका के उत्तर-पश्चिमी तट के पास प्रशांत महासागर का पूर्वी क्षेत्र, फिलीपींस और इंडोनेशिया के द्वीपों के पास पश्चिमी क्षेत्र की तुलना में ठंडा है।
- ऐसा इसलिये होता है क्योंकि पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली वायु प्रणालियाँ गर्म सतही जल को इंडोनेशियाई तट की ओर ले जाती हैं।
- विस्थापित जल का स्थान नीचे से उठने वाले अपेक्षाकृत ठंडे जल द्वारा ले लिया जाता है।
- अल नीनो घटना वायु प्रणालियों के क्षीण होने का परिणाम है जिससे गर्म जल का विस्थापन कम होता है।
- इसके परिणामस्वरूप प्रशांत महासागर का पूर्वी भाग सामान्य से अधिक उष्ण हो गया है। ला-नीना की अवधि में इसके विपरीत होता है।
- ये दोनों स्थितियाँ, जिन्हें एक साथ अल-नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO) कहा जाता है, विश्व में मानसून की घटनाओं को प्रभावित करती हैं।
- भारत में अल नीनो का प्रभाव मानसूनी वर्षा को अवरोधित करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित ‘इंडियन ओशन डाइपोल (IOD) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न: आप कहाँ तक सहमत हैं कि भारतीय मानसून का व्यवहार मानवीय परिदृश्य के कारण बदल रहा है? चर्चा कीजिये। (2015) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
नीतिशास्त्र
जैविक बुद्धिजीवी और पूंजीवादी आधिपत्य
प्रिलिम्स के लिये:जैविक बुद्धिजीवी, पूंजीवादी आधिपत्य, मार्क्सवादी विचारधारा मेन्स के लिये:ग्राम्शी का फिलॉसफी ऑफ प्रैक्सिस |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पूंजीवादी आधिपत्य का विरोध करने वाले जैविक बुद्धिजीवियों के एक शक्तिशाली समूह के उदय ने सामाजिक और आर्थिक विश्लेषकों का ध्यान आकर्षित किया है।
- इतालवी मार्क्सवादी एंटोनियो ग्राम्शी ने अपनी प्रिज़न नोटबुक में "जैविक बुद्धिजीवी" की अवधारणा पेश की, जिसमें उनके अमल के दर्शन को समझने में उनके महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।
- ग्राम्शी ने पूंजीवादी समाज में वर्ग शक्ति, विचारधारा, जैविक बुद्धिजीवियों, आधिपत्य और राज्य के बीच जटिल संबंधों पर बल दिया।
ग्राम्शी का अमल का दर्शन/फिलॉसफी ऑफ प्रैक्सिस:
- ग्राम्शी का अमल का दर्शन मार्क्सवाद के पुनर्निरुपण का एक तरीका है जो ऐतिहासिक परिवर्तन लाने में संस्कृति, विचारों और लोगों के निर्णयों के महत्त्व पर केंद्रित है।
- आर्थिक कारकों को इतिहास के एकमात्र प्रेरक शक्ति के रूप में देखने के बजाय ग्राम्शी का मानना था कि व्यक्ति अपनी परिस्थितियों का शिकार होने के बजाय अपने भाग्य को आकार देने में सक्रिय भागीदारी कर सकता है।
- ग्राम्शी के अनुसार, आधुनिक पूंजीवादी समाजों में अलग-अलग रुचियों और जागरूकता के स्तर वाले अलग-अलग सामाजिक समूह होते हैं।
- प्रभुत्वशाली वर्ग न केवल आर्थिक माध्यमों से बल्कि संस्कृति और नैतिकता को प्रभावित करते हुए सत्ता पर अधिकार रखता है।
- ग्राम्शी का प्रैक्सिस दर्शन यह समझाने का प्रयास करता है कि शासक वर्ग सांस्कृतिक तथा नैतिक नेतृत्व के माध्यम से निम्न वर्गों पर अपना नियंत्रण कैसे बनाए रखता है।
- इसका उद्देश्य यह समझना भी है कि कैसे प्रमुख वर्ग अधीनस्थ वर्गों पर अपना आधिपत्य या सांस्कृतिक तथा नैतिक नेतृत्व बनाए रखता है, इसके साथ ही कैसे अधीनस्थ वर्ग एक प्रति-आधिपत्य विकसित कर सकता है जो वर्तमान व्यवस्था को चुनौती देता है।
जैविक बुद्धिजीवी:
- ग्राम्शी के अनुसार, बुद्धिजीवी उन लोगों की एक अलग श्रेणी नहीं है जिनके पास बुद्धि की एक विशेष गुणवत्ता या शिक्षा का उच्च स्तर है। बल्कि बुद्धिजीवियों की पहचान समाज में उनके कार्य और भूमिका से होती है
- ग्राम्शी ने दो प्रकार के बुद्धिजीवियों के मध्य अंतर किया है: पारंपरिक और जैविक।
- पारंपरिक बुद्धिजीवी वे हैं जो किसी भी वर्ग या सामाजिक समूह से स्वतंत्र और स्वायत्त होने का दावा करते हैं।
- वे स्वयं को सार्वभौमिक मूल्यों और ज्ञान के वाहक के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जैसे पुजारी, शिक्षक, कलाकार, वैज्ञानिक आदि।
- हालाँकि ग्राम्शी ने तर्क दिया कि पारंपरिक बुद्धिजीवी वास्तव में प्रमुख वर्ग के साथ जुड़े हुए हैं, साथ ही उनके वैश्विक दृष्टिकोण तथा मूल्यों को वैध बनाकर उनके हितों की रक्षा करते हैं।
- जैविक बुद्धिजीवी वे होते हैं जो एक विशिष्ट वर्ग या सामाजिक समूह के भीतर से उभरते हैं और उसके हितों और आकांक्षाओं को स्पष्ट करते हैं।
- वे आम जनता की सामान्य समझ और प्रमुख विचारधारा के बीच एक सेतु का कार्य करते हैं क्योंकि स्वाभाविक रूप से वे उनसे जुड़े होते हैं। इसके अतिरिक्त वे राजनीतिक कार्रवाई के लिये अपने वर्ग या समूह को संगठित और सक्रिय करने में सहायता करते हैं।
- ग्राम्शी ने तर्क दिया है कि प्रत्येक वर्ग या सामाजिक समूह अपने स्वयं के जैविक बुद्धिजीवी व्यक्तित्व का निर्माण करता है, लेकिन उनमें से सभी समान रूप से विकसित या प्रभावी नहीं हैं।
- वह पूंजीवादी आधिपत्य को चुनौती देने और एक प्रति-आधिपत्य गुट के निर्माण में जैविक बुद्धिजीवियों की भूमिका पर विशेष ध्यान देते हैं।
जैविक बुद्धिजीवी पूंजीवादी आधिपत्य को कैसे चुनौती देते हैं?
- पूंजीवादी आधिपत्य सहमति एवं अनुनय पर आधारित है, न कि दबाव और हिंसा पर।
- प्रभुत्वशाली वर्ग शिक्षा, मीडिया, धर्म और संस्कृति सहित विभिन्न संस्थानों तथा प्रथाओं का उपयोग करके अपनी विचारधारा एवं मूल्यों को वैश्विक दृष्टि में शामिल करता है।
- हालाँकि आधिपत्य कभी भी पूर्ण या स्थिर नहीं होता है। इसका हमेशा चेतना और संस्कृति के वैकल्पिक रूपों द्वारा विरोध व प्रतिरोध किया जाता है जो उत्पीड़ित वर्गों एवं समूहों की जरूरतों तथा मांगों को व्यक्त करते हैं।
- यहाँ पर जैविक बुद्धिजीवी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे चेतना एवं संस्कृति के वैकल्पिक रूपों को एक सुसंगत और व्यापक वैश्विक दृष्टि में व्यक्त करने में सहायता करते हैं जो प्रमुख वर्गों को चुनौती देता है।
- वे समान हितों एवं लक्ष्यों को साझा करने वाले विभिन्न वर्गों और समूहों को एक ऐतिहासिक ब्लॉक में जोड़ने में भी सहायता करते हैं जो ऐतिहासिक परिवर्तन के सामूहिक एजेंट के रूप में कार्य कर सकते हैं।
- जैविक बुद्धिजीवी अपने विचारों को जनता पर नहीं थोपते बल्कि उनके साथ संवाद प्रक्रिया में संलग्न होते हैं।
- वे अपने सामान्य ज्ञान का सम्मान करते हैं लेकिन इसकी सीमाओं एवं विरोधाभासों की भी आलोचना करते हैं। वे उन्हें शिक्षित करते हैं लेकिन उनसे सीखते भी हैं। वे उन्हें प्रेरित तो करते ही हैं तथा उनका अनुसरण भी करते हैं।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
उद्यमी भारत-MSME दिवस 2023
प्रिलिम्स के लिये:सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, अंतर्राष्ट्रीय MSME दिवस, 'चैंपियंस 2.0 पोर्टल, उद्यम पोर्टल मेन्स के लिये:भारत की आर्थिक वृद्धि के लिये MSME क्षेत्र का महत्त्व, MSME में डिजिटलीकरण और प्रौद्योगिकी की भूमिका, ग्रामीण विकास में MSME की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय MSME दिवस के अवसर पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने भारत में MSME क्षेत्र के विकास और प्रगति का जश्न मनाने और इस क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 'उद्यमी भारत-MSME दिवस' मनाया।
- इस कार्यक्रम में MSME मंत्रालय द्वारा MSME के विकास को समर्पित विभिन्न पहलों का शुभारंभ किया गया। जैसे- 'चैंपियंस 2.0 पोर्टल' एवं 'क्लस्टर परियोजनाओं और प्रौद्योगिकी केंद्रों की जियो-टैगिंग हेतु मोबाइल एप'। इसके अतिरिक्त 'MSME आइडिया हैकथॉन 2.0' के परिणाम घोषित किये गए तथा महिला उद्यमियों के लिये 'MSME आइडिया हैकथॉन 3.0' लॉन्च किया गया।
अंतर्राष्ट्रीय MSME दिवस:
- परिचय:
- MSME के महत्त्व और अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को चिह्नित करने के लिये प्रतिवर्ष 27 जून को अंतर्राष्ट्रीय MSME दिवस मनाया जाता है।
- MSME को देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी माना जाता है।
- MSME दिवस 2023 की थीम:
- "इंडिया@100 हेतु भविष्य के लिये तैयार MSME”।
- ग्लोबल काउंसिल फॉर द प्रमोशन ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड ने "एकजुट होकर एक मज़बूत भविष्य का निर्माण" थीम के साथ जश्न मनाया और #Brand10000MSMEs नेटवर्क लॉन्च किया।
- ग्लोबल काउंसिल फॉर द प्रमोशन ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड एक वैश्विक संगठन है जिसके कार्यालय भारत, दक्षिण अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम में हैं।
- इतिहास और महत्त्व:
- अप्रैल 2017 में संयुक्त राष्ट्र ने 27 जून को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम दिवस के रूप में नामित किया।
- इसका उद्देश्य धारणीय विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में MSME की - क्षमता को अधिकतम करने के लिये राष्ट्रीय क्षमताओं में वृद्धि करना है।
कार्यक्रम के प्रमुख बिंदु:
- शुरू की गई पहलें:
- चैंपियन 2.0 पोर्टल:
- MSME को समर्थन और बढ़ावा देने के उद्देश्य से संबद्ध मंत्रालय ने 'चैंपियंस 2.0 पोर्टल' लॉन्च किया।
- इसकी सहायता से MSME को आवश्यक सलाह, क्षमता निर्माण, बाज़ारों तक पहुँच और शिकायत निवारण जैसी विभिन्न सेवाएँ प्रदान की जाएंगी।
- क्लस्टर परियोजनाओं और प्रौद्योगिकी केंद्रों की जियो-टैगिंग के लिये मोबाइल एप:
- दक्षता बढ़ाने और क्लस्टर परियोजनाओं तथा प्रौद्योगिकी केंद्रों की प्रगति के बारे में सूचित रहने के लिये मंत्रालय ने जियो-टैगिंग हेतु एक मोबाइल एप लॉन्च किया।
- यह एप मौजूदा परियोजनाओं की प्रभावी निगरानी, मूल्यांकन और रिपोर्टिंग की सुविधा प्रदान करेगा।
- महिला उद्यमियों के लिये MSME आइडिया हैकथॉन 3.0:
- पूर्व आइडिया हैकथॉन की सफलता के आधार पर मंत्रालय ने विशेष रूप से महिला उद्यमियों पर केंद्रित 'MSME आइडिया हैकथॉन 3.0' लॉन्च किया।
- इस योजना का उद्देश्य नवाचार को बढ़ावा देना, उद्यमशीलता के विचारों को प्रोत्साहित करना और महिलाओं को अपनी प्रतिभा दर्शाने तथा MSME क्षेत्र में योगदान देने के लिये एक मंच प्रदान करना है।
- चैंपियन 2.0 पोर्टल:
- समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर:
- MSME मंत्रालय और भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI):
- सिडबी (SIDBI) द्वारा 'पीएम विश्वकर्मा कौशल सम्मान' (PMVIKAS) के लिये एक पोर्टल तैयार करना।
- उन स्थानीय पारंपरिक कारीगरों और शिल्पकारों की पहचान करना जो अब तक किसी भी लक्षित हस्तक्षेप का हिस्सा नहीं थे।
- MSME और GeM मंत्रालय:
- सार्वजनिक खरीद इको-सिस्टम में MSME के अंतिम पंजीकरण के लिये गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GeM) के साथ उद्यम पंजीकरण डेटा साझा करना।
- MSME मंत्रालय और उद्योग विभाग, त्रिपुरा सरकार:
- एपीआई के माध्यम से उद्यम पंजीकरण डेटा साझा करना, नीति निर्माण को आसान बनाना और योजना के लाभों का लक्षित वितरण करना।
- MSME मंत्रालय और सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (Credit Guarantee Fund Trust for Micro and Small Enterprises- CGTMSE)।
- MSME क्षेत्र के लाभार्थियों को गारंटी कवरेज प्रदान करना। (सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट CGTMSE)।
- राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (NSIC) तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त और विकास निगम (NSFDC) एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त और विकास निगम (NSTFDC):
- राष्ट्रीय एससी-एसटी हब और विभिन्न योजनाओं के तहत एससी/एसटी उद्यमियों को समर्थन देने के लिये आपसी सहयोग को बढ़ावा देना।
- MSME मंत्रालय और भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI):
MSME
- परिचय:
- MSME भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, जो रोज़गार सृजन, औद्योगिक उत्पादन और समग्र आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। ये उद्यम वस्तुओं के उत्पादन, विनिर्माण, प्रसंस्करण एवं संरक्षण में संलग्न हैं।
- MSME का वर्गीकरण:
- भारत में MSME को उनके वार्षिक राजस्व के साथ-साथ संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में उनके निवेश के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। वर्तमान वर्गीकरण इस प्रकार है:
- सूक्ष्म उद्यम: 1 करोड़ रुपए तक का निवेश और 5 करोड़ रुपए तक का टर्नओवर।
- लघु उद्यम: 1 करोड़ से 10 करोड़ रुपए के बीच निवेश और 5 करोड़ से 50 करोड़ रुपए तक का टर्नओवर।
- मध्यम उद्यम: 10 करोड़ से 50 करोड़ रुपए के बीच निवेश और 50 करोड़ से 250 करोड़ रुपए तक का टर्नओवर।
- भारत में MSME को उनके वार्षिक राजस्व के साथ-साथ संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में उनके निवेश के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। वर्तमान वर्गीकरण इस प्रकार है:
MSME क्षेत्र का महत्त्व:
- वैश्विक:
- संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार, MSME का योगदान वैश्विक व्यवसायों में 90%, नौकरियों में 60% से 70% से अधिक तथा वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में आधा हिस्सा है।
- भारत:
- ग्रामीण विकास के लिये वरदान: बड़े स्तर की कंपनियों की तुलना में MSME ने न्यूनतम पूंजी लागत के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में औद्योगीकरण में अहम भूमिका निभाई है। इस क्षेत्र ने देश के ग्रामीण सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है तथा प्रमुख उद्योगों को भी पूरक बनाया है।
- रोज़गार: MSME लगभग 63 मिलियन उद्यमों में 110 मिलियन से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान करता है।
- मेक इन इंडिया मिशन में अग्रणी: भारत का लक्ष्य 'मेक इन इंडिया' उत्पादों को गुणवत्ता के वैश्विक मानकों का पालन करते हुए 'मेड फॉर द वर्ल्ड' बनाना है। इस मिशन में MSME का योगदान सबसे महत्त्वपूर्ण होगा।
- यह क्षेत्र भारत के 45% विनिर्मित सामानों का उत्पादन करता है तथा कुल निर्यात में 50% से अधिक का योगदान देता है। पारंपरिक से लेकर उन्नत तकनीकी वस्तुओं के उत्पादन के अतिरिक्त 8,000 से अधिक मूल्यवान उत्पादों का निर्माण भी करता है।
- उद्यमों के लिये सरल प्रबंधन संरचना: भारत की मध्यमवर्गीय अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए MSME एक सरल विकल्प प्रदान करता है। इसे उद्योग स्वामी के नियंत्रण में सीमित संसाधनों के साथ शुरू किया जा सकता है। इससे निर्णय लेना आसान एवं कुशल हो जाता है।
- इसके विपरीत जटिल संगठनात्मक संरचना के कारण एक बड़े निगम को प्रत्येक विभागीय कामकाज़ के लिये एक विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है।
- आर्थिक विकास और निर्यात में लाभ: यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 30% योगदान देने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण चालक है।
MSME से संबंधित सरकारी पहल:
- MSME के प्रदर्शन को बेहतर और तेज़ करना
- सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी ट्रस्ट फंड (CGTMSE)
- इंटरेस्ट सब्सिडी पात्रता सर्टिफिकेट (ISEC)
- नवाचार, ग्रामीण उद्योग और उद्यमिता को बढ़ावा देने हेतु योजना (ASPIRE)
- प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिये क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी (CLCSS)
- ज़ीरो डिफेक्ट एवं ज़ीरो इफेक्ट (ZED)
MSME के समक्ष चुनौतियाँ:
- औपचारिक वित्त और ऋण सुविधाओं तक सीमित पहुँच।
- तकनीकी प्रगति का अभाव और सीमित डिजिटल बुनियादी ढाँचा।
- जटिल विनियामक और नौकरशाही प्रक्रियाओं के अनुपालन में कठिनाई।
- सीमित बाज़ार पहुँच तथा बड़े स्तर के उद्यमों से प्रतिस्पर्द्धा।
- कुशल श्रम की कमी और प्रतिभा अधिग्रहण में चुनौतियाँ।
- आर्थिक मंदी तथा बाज़ार में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशीलता।
- सरकारी योजनाओं और सहायता कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता की कमी।
आगे की राह:
- वित्तीय समावेशन को सुदृढ़ बनाना तथा MSMEs के लिये औपचारिक ऋण तक पहुँच में सुधार करना।
- डिजिटलीकरण को बढ़ावा देना तथा प्रौद्योगिकी अपनाने के लिये तकनीकी सहायता प्रदान करना।
- नियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाना तथा नौकरशाही संबंधी बाधाओं को कम करना।
- बाज़ार संपर्क को सुगम बनाना तथा ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देना।
- कौशल विकास पहल को बढ़ाने के साथ उद्यमिता शिक्षा को भी बढ़ावा देना।
- बुनियादी ढाँचे के विकास तथा कनेक्टिविटी में सुधार में निवेश करना।
- जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियाँ विकसित करना तथा उत्पादों के साथ बाज़ारों के विविधीकरण को बढ़ावा देना।
- जागरूकता अभियान संचालित करना तथा सरकारी योजनाओं और सहायता कार्यक्रमों के बारे में मार्गदर्शन प्रदान करना।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. विनिर्माण क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने कौन-सी नई नीतिगत पहल की है/हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. सरकार के समावेशित वृद्धि लक्ष्य को आगे ले जाने में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कार्य सहायक साबित हो सकता/सकते है/हैं? (2011)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) |
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय विरासत और संस्कृति
चार धाम यात्रा में तीर्थयात्रियों की सुरक्षा चुनौतियाँ
प्रिलिम्स के लिये:चार धाम परियोजना, चार धाम यात्रा, फ्लैश फ्लड, भूस्खलन मेन्स के लिये:आपदा प्रबंधन चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हिमालय क्षेत्र में स्थित चार पवित्र हिंदू तीर्थस्थलों की यात्रा अर्थात् चार धाम यात्रा के दौरान इस वर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की मृत्यु हुई।
- आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2023 में यात्रा शुरू होने के बाद से 149 तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो गई है जिनमें से अधिकतर मौतों का कारण हृदय गति रुकना और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ हैं। यह यात्रा जो कि प्रत्येक वर्ष लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है, सड़क दुर्घटनाओं और भूस्खलन के कारण भी प्रभावित हुई है।
चार धाम यात्रा:
- परिचय:
- भारत के उत्तराखंड राज्य में चार धाम यात्रा एक पवित्र तीर्थयात्रा है।
- इस यात्रा में हिमालय में स्थित चार पवित्र हिंदू तीर्थस्थलों का भ्रमण शामिल है।
- इस यात्रा में शामिल चार पवित्र धाम- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री शामिल हैं।
- ऐसा माना जाता है कि चार धाम यात्रा को दक्षिणावर्त दिशा में पूरा करना चाहिये- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ।
- धार्मिक महत्त्व:
- इनमें से प्रत्येक तीर्थस्थल हिंदू धर्म में धार्मिक और पौराणिक महत्त्व रखता है।
- ऐसा माना जाता है कि चार धाम यात्रा करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं तथा आध्यात्मिक मुक्ति मिल जाती है।
- तीर्थयात्रा का समय:
- आमतौर पर यात्रा अप्रैल या मई माह में शुरू होती है तथा मौसम की स्थिति के आधार पर नवंबर तक जारी रहती है।
- यात्रा में चुनौतीपूर्ण उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में ट्रैकिंग शामिल है।
- आर्थिक महत्त्व:
- यह न केवल एक धार्मिक यात्रा है, बल्कि उत्तराखंड के लिये एक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक और पर्यटन कार्यक्रम भी है, जो पूरे भारत और दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करती है।
- यह स्थानीय समुदायों के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है, जो रोज़गार के अवसर प्रदान करती है और क्षेत्र में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देती है।
- टिप्पणी:
- यमुनोत्री धाम:
- स्थान: ज़िला उत्तरकाशी
- समर्पित: देवी यमुना
- गंगा नदी के बाद यमुना नदी भारत की दूसरी सबसे पवित्र नदी है।
- गंगोत्री धाम:
- स्थान: ज़िला उत्तरकाशी
- समर्पित: देवी गंगा
- गंगा नदी सभी भारतीय नदियों में सबसे पवित्र मानी जाती है।
- केदारनाथ धाम:
- स्थान: ज़िला रुद्रप्रयाग
- समर्पित: भगवान शिव
- मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है।
- भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों (भगवान शिव के दिव्य प्रतिनिधित्व) में से एक।
- बद्रीनाथ धाम:
- स्थान: ज़िला चमोली
- पवित्र बद्रीनारायण मंदिर
- समर्पित: भगवान विष्णु
- वैष्णवों के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक।
- यमुनोत्री धाम:
- चार धाम परियोजना:
- चार धाम परियोजना भारतीय राज्य उत्तराखंड में एक प्रमुख बुनियादी ढाँचा योजना है।
- इसका उद्देश्य चार पवित्र हिंदू स्थलों, जिन्हें चार धाम के नाम से जाना जाता है, तक कनेक्टिविटी और तीर्थ पर्यटन में सुधार करना है।
- इससे उत्तराखंड में पर्यटन, व्यापार, परिवहन और रोज़गार के अवसरों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- तीर्थयात्रियों की सुरक्षा बढ़ाना और सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य अभियानों को मज़बूत करना।
- आपात स्थिति में आपदा प्रबंधन और राहत कार्यों को सुविधाजनक बनाना।
चार धाम यात्रा की आपदा प्रबंधन चुनौतियाँ:
- आपदा प्रबंधन चुनौतियाँ:
- कठोर मौसम की स्थितियाँ:
- अत्यधिक तापमान: ठंडे तापमान के संपर्क में आने से हाइपोथर्मिया और अन्य स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ हो सकती हैं
- हिमपात: यह तीर्थयात्रा मार्गों पर फिसलन के साथ परिवहन संचालन को कठिन बना देता है।
- संवेदनशील भू-भाग:
- पर्वतीय क्षेत्र: खड़ी ढलानें तथा ऊबड़-खाबड़ भू-भाग आधारभूत ढाँचे के विकास एवं रखरखाव के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
- दूरस्थ स्थान: चिकित्सा सुविधाओं, आपातकालीन सेवाओं तथा संचार नेटवर्क तक सीमित पहुँच।
- सीमित निकासी मार्ग: किसी आपदा या आपातकालीन चिकित्सा की स्थिति में दूरदराज़ के क्षेत्रों से तीर्थयात्रियों को निकालना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- स्वास्थ्य संबंधी खतरे:
- ऊँचाई वाले क्षेत्रों में स्वास्थ्य समस्या: तीर्थयात्रियों को ऊँचाई वाले क्षेत्रों में चक्कर आना, मतली तथा साँस लेने में कठिनाई आदि समस्याएँ हो सकती हैं।
- कठिन ट्रेक: लंबी एवं कठिन पैदल यात्रा, विशेष रूप से अधिक ऊँचाई शारीरिक थकावट तथा चोटों का कारण बन सकती है।
- अनुकूलन का अभाव: तीर्थयात्रियों के लिये उच्च ऊँचाई तथा कठोर मौसम की स्थिति में समायोजित होने के लिये अपर्याप्त समय।
- प्राकृतिक आपदाएँ:
- भूस्खलन: अस्थिर ढलानों तथा भारी वर्षा से भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है, जिससे तीर्थयात्रा मार्ग बाधित हो जाता है।
- आकस्मिक बाढ़: अचानक एवं तीव्र वर्षा के परिणामस्वरूप अचानक बाढ़ आ सकती है, जिससे नदियों तथा नालों के समीप तीर्थयात्रियों के लिये खतरा उत्पन्न होता है।
- जून 2013 में केदारनाथ में अचानक आई बाढ़ के कारण हज़ारों तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो गई, साथ ही कई लोग यहाँ फँसे रह गए।
- भूकंप: उत्तराखंड भूकंपीय क्षेत्र की दृष्टि से एक संवेदनशील क्षेत्र है, जिसके कारण भूस्खलन तथा आधारभूत ढांँचे को हानि होती है।
- कठोर मौसम की स्थितियाँ:
- निवारक उपाय और न्यूनीकरण रणनीतियाँ:
- मौसम निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणाली:
- मौसम में परिवर्तन पर दृष्टि रखने तथा गंभीर मौसम की घटनाओं के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली लागू करने हेतु तीर्थयात्रा मार्ग पर मौसम निगरानी स्टेशन स्थापित करना।
- अवसंरचना विकास और रख-रखाव:
- इसके अंतर्गत सड़कों के बुनियादी ढाँचे में सुधार (सड़कों को चौड़ा करना और मज़बूत करना) भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में सुरक्षात्मक अवरोधों का निर्माण करना तथा आसान व सुरक्षित यात्रा के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना शामिल है।
- मृदा अपरदन और भूस्खलन को रोकना:
- मिट्टी के कटाव और भूस्खलन को रोकने के लिये ढलान स्थिरीकरण तकनीक/स्लोप स्टेबिलाइज़ेशन टेक्नीक का इस्तेमाल तथा वनीकरण कार्यक्रम लागू करना।
- आपातकालीन और चिकित्सा सुविधाएँ:
- इसमें मार्गों पर चिकित्सा सुविधाएँ और आपातकालीन प्रतिक्रिया केंद्र की स्थापना, संचार नेटवर्क में सुधार तथा चिकित्सा कर्मचारियों व आपात काल में सेवा प्रदान करने वालों को प्रशिक्षण प्रदान करना शामिल है।
- तीर्थयात्री सुरक्षा और जागरूकता:
- यात्रा-पूर्व अभिविन्यास कार्यक्रम का आयोजन कर मार्ग की विस्तृत जानकारी प्रदान करना और तीर्थयात्रियों के लिये चिकित्सा जाँच की अनिवार्यता को प्रोत्साहित करना।
- आपदा प्रतिक्रिया और निकासी योजनाएँ:
- व्यापक आपदा प्रतिक्रिया योजनाएँ विकसित करना, सुरक्षित असेंबली पॉइंट और अस्थायी आश्रयों को नामित करना तथा आपदा से बचाव की तैयारी सुनिश्चित करने के लिये नियमित मॉक ड्रिल/अभ्यास का आयोजन करना।
- मौसम निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणाली:
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
भारत चिल्ड्रेन एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट रिपोर्ट से बाहर
प्रिलिम्स के लिये:रिपोर्ट ऑन चिल्ड्रेन एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट, संयुक्त राष्ट्र महासभा, किशोर न्याय अधिनियम, 2015, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम मेन्स के लिये:बच्चों की सुरक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम, चिल्ड्रेन एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट से संबंधित वैश्विक अभिसमय, बच्चों पर आर्म्ड कनफ्लिक्ट का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2010 के बाद पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने बच्चों की सुरक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को ध्यान में रखते हुए भारत को रिपोर्ट ऑन चिल्ड्रेन एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट 2023 से बाहर रखा है।
- भारत पर जम्मू-कश्मीर (J&K) में सशस्त्र समूहों में लड़कों की भर्ती और उनके इस्तेमाल का आरोप लगाया गया था। वर्ष 2022 में जम्मू-कश्मीर में बच्चों के खिलाफ अधिक संख्या में उल्लंघन की पुष्टि हुई।
रिपोर्ट ऑन चिल्ड्रेन एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट:
- पृष्ठभूमि:
- 25 वर्ष पूर्व दिसंबर 1996 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बच्चों को शोषण से मुक्त करने और उनका दुरुपयोग रोकने के लिये एक जनादेश तैयार करने का अभूतपूर्व निर्णय लिया था तथा संकल्प 51/77 की सहायता से चिल्ड्रेन एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट (CAAC) जनादेश का निर्माण किया।
- 51/77 प्रस्ताव में सिफारिश की गई कि बच्चों के सशस्त्र समूहों में भर्ती होने से उन पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने के लिये महासचिव द्वारा तीन वर्ष की अवधि के लिये एक विशेष प्रतिनिधि की नियुक्ति की जानी चाहिये।
- 25 वर्ष पूर्व दिसंबर 1996 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बच्चों को शोषण से मुक्त करने और उनका दुरुपयोग रोकने के लिये एक जनादेश तैयार करने का अभूतपूर्व निर्णय लिया था तथा संकल्प 51/77 की सहायता से चिल्ड्रेन एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट (CAAC) जनादेश का निर्माण किया।
- उद्देश्य:
- सशस्त्र संघर्ष से प्रभावित बच्चों के सुरक्षा तंत्र को मज़बूत करना, जागरूकता बढ़ाना, युद्ध से प्रभावित बच्चों की दुर्दशा के बारे में सूचना संग्रह को बढ़ावा देना तथा उनकी सुरक्षा में सुधार के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
- इस रिपोर्ट में विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा बच्चों को हिरासत में लेने, हत्या करने आदि का भी जिक्र किया गया है।
- हालिया अवलोकन:
- बच्चों के प्रति होने वाले विभिन्न प्रकार के उल्लंघनों के बारे में प्राप्त सूचना के अनुसार, 2,985 बच्चों की हत्या और 5,655 बच्चों के अपंग/घायल होने की सूचना मिली, यह कुल (8,631) मिलाकर प्रभावित होने वाले बच्चों की सबसे अधिक संख्या है।
- इसके बाद 7,622 बच्चों की भर्ती और उपयोग तथा 3,985 बच्चों के अपहरण की भी जानकारी मिली है। इसके अतिरिक्त 2,496 बच्चों को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कारणों अथवा संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादी संगठनों के रूप में वर्गीकृत समूहों सहित सशस्त्र समूहों के साथ उनके वास्तविक या कथित संबंधों के कारण गिरफ्तार किया गया था।
- सबसे अधिक संख्या में उल्लंघन करने वाले देशों में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इज़रायल, फिलिस्तीन राज्य, सोमालिया, सीरिया, यूक्रेन, अफगानिस्तान और यमन शामिल थे।
- बच्चों के प्रति होने वाले विभिन्न प्रकार के उल्लंघनों के बारे में प्राप्त सूचना के अनुसार, 2,985 बच्चों की हत्या और 5,655 बच्चों के अपंग/घायल होने की सूचना मिली, यह कुल (8,631) मिलाकर प्रभावित होने वाले बच्चों की सबसे अधिक संख्या है।
बच्चों की सुरक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- जम्मू-कश्मीर में बीते समय में उचित कार्य प्रणालियों में कमी देखी गई, क्योंकि यहाँ किशोर न्याय अधिनियम, 2015 लागू नहीं किया गया था और भारत में किशोरगृह प्रभावी ढंग से काम भी नहीं कर रहे थे।
- हालाँकि इन मुद्दों के समाधान के लिये उपाय किये गए हैं, जिनमें जेजे अधिनियम, 2015 के अंतर्गत बाल कल्याण समितियों, किशोर न्याय बोर्ड और बाल देखभाल गृह जैसे बुनियादी ढाँचे की स्थापना करना शामिल है।
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनुशंसित कई उपाय भारत में पूर्व में ही लागू किये जा चुके हैं एवं वर्तमान में उनका संचालन हो रहा हैं। बच्चों की सुरक्षा के लिये सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये गए हैं और पैलेट गन का उपयोग निलंबित कर दिया गया है।
- इसके अतिरिक्त किशोर न्याय अधिनियम और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 को सक्रिय रूप से लागू किया जा रहा है।
- बच्चों की सुरक्षा के लिये कानूनी और प्रशासनिक ढाँचे के कार्यान्वयन तथा छत्तीसगढ़, असम, झारखंड, ओडिशा एवं जम्मू-कश्मीर में बाल संरक्षण सेवाओं तक बेहतर पहुँच की भी UNGA द्वारा सराहना की गई।
- इसके अलावा बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिये जम्मू-कश्मीर आयोग की स्थापना में प्रगति को स्वीकार किया गया।
संबंधित वैश्विक सम्मेलन:
- सैनिकों के रूप में 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों की भर्ती या उपयोग को संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते (CRC) और जेनेवा सम्मेलनों के अतिरिक्त प्रोटोकॉल द्वारा प्रतिबंधित किया गया है।
- CRC का कहना है कि बचपन की स्थिति वयस्कता से अलग है और यह 18 वर्ष की आयु तक रहती है; यह एक विशेष, संरक्षित समय है, जिसमें बच्चों को सम्मान के साथ बढ़ने, सीखने, खेलने, विकसित होने और फलने-फूलने की अनुमति दी जानी चाहिये।
- जिनेवा कन्वेंशन और उसके अतिरिक्त प्रोटोकॉल अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून का मूल हैं, जो सशस्त्र संघर्ष के स्थिति को नियंत्रित करता है और इसके प्रभावों को सीमित करने का प्रयास करता है। ये४ उन लोगों की रक्षा करते हैं जो युद्ध में हिस्सा नहीं लेते या जो अब ऐसा नहीं कर रहे होते हैं।
- सशस्त्र संघर्ष में बच्चों की भागीदारी पर CRC का वैकल्पिक प्रोटोकॉल 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को अनिवार्य रूप से राज्य या गैर-राज्य सशस्त्र बलों में भर्ती होने या सीधे युद्ध में शामिल होने से रोकता है।
- मानवाधिकार संधियों की वैकल्पिक प्रोटोकॉल संधियाँ हैं, साथ ही यह उन देशों के लिये हस्ताक्षर, परिग्रहण या अनुसमर्थन हेतु खुले हैं जो मुख्य संधि के पक्षकार हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के रोम कानून के अंतर्गत बाल सैनिकों की भर्ती को भी युद्ध अपराध माना जाता है।
- इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र ने बाल सैनिकों की भर्ती तथा प्रयोग को छह "गंभीर उल्लंघनों" के रूप में पहचाना है:
नोट:
- भारत, CRC का एक पक्षकार है, साथ ही नवंबर 2005 में वैकल्पिक प्रोटोकॉल में शामिल हुआ। संविधान के CRC में शामिल अधिकांश अधिकारों को मौलिक अधिकारों तथा राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) के रूप में शामिल किया गया है।
- अनुच्छेद 39 (f) में कहा गया है कि बच्चों को स्वास्थ्य,स्वतंत्रता तथा सम्मानजनक स्थितियों में विकसित होने के अवसर तथा सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं, इसके साथ ही बचपन तथा युवावस्था के शोषण, नैतिक तथा भौतिक परित्याग के विरुद्ध संरक्षण प्रदान किया जाता है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC), राज्य सशस्त्र बलों या गैर-राज्य सशस्त्र समूहों द्वारा 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों की सेना में भर्ती या प्रयोग को अपराध घोषित करता है।
- केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) में 18 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों की भर्ती की जाती है।
बच्चों पर सशस्त्र संघर्ष का प्रभाव:
हत्या तथा अपंगता: संघर्षों में आमतौर पर बच्चों को प्रत्यक्ष रूप से निशाना बनाया जाता है, जिसके कारण उनकी मृत्यु हो जाती है या उन्हें गंभीर चोटें आती हैं। इसमें सोच-समझकर की गई हत्या की घटनाओं के साथ हिंसा के कृत्य शामिल हैं जो शारीरिक हानि या विकलांगता का कारण बनते हैं।
- भर्ती तथा उपयोग: सशस्त्र समूहों द्वारा बच्चों को बलपूर्वक भर्ती कर या युद्ध में भाग लेने के लिये बाध्य कर उनका शोषण किया जाता है। बच्चों का उपयोग लड़ाकू, संदेशवाहक, जासूस या अन्य सहायक भूमिकाओं के लिये किया जा सकता है।
- अपहरण और जबरन विस्थापन: बच्चों को अक्सर अपहरण का शिकार होना पड़ता है तथा उन्हें जबरदस्ती उनके परिवार से दूर ले जाया जाता है। आर्म्ड कनफ्लिक्ट के कारण व्यापक स्तर पर विस्थापन भी होता है जिससे बच्चों को अपने घरों, स्कूलों और समुदायों से भागने के लिये विवश होना पड़ता है। इस कारण उन्हें अक्सर आघात तथा अपने परिवारों से अलगाव का सामना करना पड़ता है।
- यौन हिंसा और शोषण: संघर्ष की स्थितियों के कारण बच्चों के शोषण और यौन हिंसा का खतरा बढ़ जाता है। वे बलात्कार, जबरन वेश्यावृत्ति, तस्करी तथा अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
- मनोसामाजिक प्रभाव: आर्म्ड कनफ्लिक्ट से प्रभावित बच्चे अक्सर गंभीर मनोवैज्ञानिक संकट का सामना करते हैं जिसमें हिंसा के संपर्क में आना, प्रियजनों को खो देना तथा इसके अतिरिक्त उनके जीवन में व्यवधान के कारण पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), चिंता, अवसाद एवं भावनात्मक आघात शामिल हैं।
- मानवीय सहायता में बाधा: अनेक संघर्ष-प्रभावित क्षेत्रों में बच्चों को भोजन, स्वच्छ पेयजल, स्वास्थ्य देखभाल तथा आश्रय सहित जीवन-रक्षक सहायता तक सीमित या कोई पहुँच नहीं मिलती है।
- मानवीय सहायता में बाधा से बच्चों की असुरक्षा और बढ़ जाती है। यह बच्चों के कल्याण एवं विकास के लिये आवश्यक सेवाएँ और सहायता प्रदान करने के प्रयासों में भी बाधा उत्पन्न करता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजव्यवस्था
भारत में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता
प्रिलिम्स के लिये:समान नागरिक संहिता, संविधान का अनुच्छेद 44, सातवीं अनुसूची, वर्ष 1954 का विशेष विवाह अधिनियम, भारत का 22वाँ विधि आयोग मेन्स के लिये:समान नागरिक संहिता के पक्ष और विपक्ष में तर्क, भारत में समान नागरिक संहिता के लिये प्रयास, समान नागरिक संहिता को लागू करने में चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में भारत में समान नागरिक संहिता (UCC) के कार्यान्वयन के लिये अपना समर्थन व्यक्त किया, जिसमें कहा गया कि भारत "विभिन्न समुदायों के लिये अलग कानूनों" की प्रणाली के साथ कुशलतापूर्वक कार्य नहीं कर सकता है।
समान नागरिक संहिता (UCC):
- उत्पत्ति और इतिहास:
- औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश सरकार की वर्ष 1835 की रिपोर्ट में अपराध, साक्ष्य और अनुबंध सहित भारतीय कानून में एक समान संहिताकरण का आह्वान किया गया था।
- हालाँकि, अक्तूबर 1840 की लेक्स लोकी रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि हिंदुओं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को संहिताकरण से बाहर रखा जाना चाहिये।
- जैसे-जैसे ब्रिटिश शासन आगे बढ़ा हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिये वर्ष 1941 में बी.एन. राऊ समिति का गठन किया गया। इस गठन के परिणामस्वरूप वर्ष 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू हुआ।
- औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश सरकार की वर्ष 1835 की रिपोर्ट में अपराध, साक्ष्य और अनुबंध सहित भारतीय कानून में एक समान संहिताकरण का आह्वान किया गया था।
- समान नागरिक संहिता पर संविधान सभा के विचार:
- संविधान सभा में बहस के दौरान समान नागरिक संहिता को शामिल करने पर महत्त्वपूर्ण चर्चा हुई।
- जहाँ सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में मतदान हुआ और 5:4 के अनुपात में बहुमत मिला जिसके परिमाणस्वरूप मौलिक अधिकारों पर उप-समिति ने निर्णय लिया कि समान नागरिक संहिता को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल नहीं किया जाएगा।
- डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने संविधान का मसौदा तैयार करते समय कहा था कि समान नागरिक संहिता वांछनीय है लेकिन इसे तब तक स्वैच्छिक रहना चाहिये जब तक कि राष्ट्र इसे स्वीकार करने के लिये सामाजिक रूप से तैयार न हो जाए।
- जिसके परिणामस्वरूप समान नागरिक संहिता को राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) (अनुच्छेद 44) में रखा गया।
- संविधान सभा में बहस के दौरान समान नागरिक संहिता को शामिल करने पर महत्त्वपूर्ण चर्चा हुई।
नोट: भारत में विवाह, तलाक, विरासत जैसे पर्सनल लॉ के विषय समवर्ती सूची (7वीं अनुसूची) के अंतर्गत आते हैं।
समान नागरिक संहिता के पक्ष में तर्क:
- विविधता में एकता का जश्न मनाना: यह व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों के आधार पर भेदभाव और विरोधाभासों को दूर करके तथा सभी नागरिकों के लिये एक समान पहचान स्थापित कर राष्ट्रीय एकता एवं धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देगी।
- यह विविध समुदायों के बीच एकता और सद्भाव की भावना को भी बढ़ावा देगी।
- उदाहरण स्वरूप UCC बिना किसी कानूनी बाधा या सामाजिक दुष्प्रभाव के अंतर-धार्मिक विवाह और संबंधों को सक्षम बनाएगा।
- महिलाओं को सशक्त बनाना: यह विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों, जैसे- बहुविवाह, असमान विरासत आदि में महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण और दमनकारी प्रथाओं को समाप्त करके लैंगिक न्याय और समानता सुनिश्चित करेगा।
- कानूनी दक्षता के लिये इसे सरल बनाना: भारत की वर्तमान कानूनी प्रणाली जटिल और अतिव्यापी व्यक्तिगत कानूनों की अधिकता है, जिससे भ्रम और कानूनी विवाद पैदा होते हैं।
- एक UCC विभिन्न कानूनों को एक ही कोड में समेकित और सुसंगत बनाकर कानूनी ढाँचे को सरल बनाएगा।
- इससे स्पष्टता बढ़ेगी, कार्यान्वयन में आसानी होगी और न्यायपालिका पर बोझ कम होगा, जिससे अधिक कुशल कानूनी प्रणाली सुनिश्चित होगी।
- सफलता की वैश्विक कहानियों से प्रेरणा लेना: फ्राँस जैसे दुनिया भर के कई देशों ने समान नागरिक संहिता लागू की है।
- UCC एक आधुनिक प्रगतिशील राष्ट्र का संकेत है जिसका अर्थ है कि इससे जातिगत और धार्मिक राजनीति को रोका जा सकेगा।
UCC के विरोध में तर्क:
- अल्पसंख्यकों के अधिकारों को खतरा: भारत की शक्ति उसके विविध समाज में निहित है और इन विविधताओं को समायोजित करने के लिये व्यक्तिगत कानून विकसित किये गए हैं।
- आलोचकों का तर्क है कि एकल संहिता लागू करने से अल्पसंख्यक समुदायों की सांस्कृतिक और धार्मिक स्वायत्तता कमज़ोर हो सकती है, जिससे अलगाव एवं हाशिये की स्थिति की भावना पैदा हो सकती है।
- न्यायिक बैकलॉग: भारत पहले से ही न्यायिक मामलों के एक महत्त्वपूर्ण बैकलॉग का सामना कर रहा है तथा UCC को लागू करने से स्थिति और खराब हो सकती है।
- व्यक्तिगत कानूनों को एक कोड में सुसंगत बनाने के लिये आवश्यक व्यापक महत्त्वपूर्ण कानूनी सुधारों हेतु समय और प्रयास की आवश्यकता होगी।
- परिणामस्वरूप इस संक्रमणकालीन अवधि के दौरान UCC की संवैधानिकता को चुनौती देने वाले नए मामलों के उभरने के कारण कानूनी प्रणाली पर बोझ बढ़ सकता है।
- गोवा में UCC को लेकर जटिलताएँ: गोवा में UCC के कार्यान्वयन की वर्ष 2019 में सर्वोच्य न्यायालय ने सराहना की है। हालाँकि ज़मीनी हकीकत राज्य के UCC के भीतर जटिलताओं और कानूनी बहुलताओं को उजागर करती है।
- गोवा में UCC हिंदुओं को एक विशिष्ट प्रकार के बहुविवाह की अनुमति देता है और मुसलमानों हेतु शरीयत अधिनियम का विस्तार नहीं करता है (यह पुर्तगाली और शास्त्री हिंदू कानून पर आधारित हैं)।
- इसके अतिरिक्त कैथोलिक को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं, जैसे- विवाह पंजीकरण से छूट तथा कैथोलिक पादरियों की विवाह को विघटित करने की शक्ति।
- यह भारत में व्यक्तिगत कानूनों की जटिलता को उजागर करता है, यहाँ तक कि उस राज्य में भी जो UCC लागू करने के लिये जाना जाता है।
भारत में UCC की दिशा में प्रयास:
- सांविधिक प्रावधान:
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954: इस अधिनियम के अंतर्गत किसी भी धर्म के भारतीय नागरिक को धार्मिक रीति-रिवाज़ से बाहर विवाह करने की अनुमति है।
- UCC की आवश्यकता की सिफारिश करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
- शाहबानो केस, 1985
- सरला मुदगल केस, 1995
- पाउलो कॉटिन्हो बनाम मारिया लुइज़ा वेलेंटीना परेरा (2019)
- UCC से विधि आयोग तक का रुख:
- भारतीय विधि आयोग (2018): इसमें कहा गया है कि UCC, इस स्तर पर न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है, क्योंकि यह राष्ट्र की सद्भावना के लिये प्रतिकूल होगा।
- इसने यह भी सुझाव दिया कि व्यक्तिगत कानूनों में सुधार संशोधनों द्वारा किया जाना चाहिये, न कि प्रतिस्थापन द्वारा।
- हाल ही में भारत के 22वें विधि आयोग ने UCC के संबंध में सामान्य जनता के साथ-साथ मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों की राय और सुझाव लेने का निर्णय किया है।
UCC को लागू करने में चुनौतियाँ:
- राजनीतिक जड़ता: किसी भी राजनीतिक दल ने इस संहिता को अधिनियमित करने की ईमानदारी पूर्वक और नियमित तौर पर प्रतिबद्धता नहीं दिखाई है क्योंकि इसे हमेशा से ही एक संवेदनशील और विभाजनकारी मुद्दे के रूप में देखा जाता है जिसका उनके वोट बैंक पर प्रभाव पड़ सकता है।
- इसके अतिरिक्त विभिन्न समूहों के व्यक्तिगत मुद्दों और विविध दृष्टिकोण होने के कारण इस संहिता के दायरे, इसकी विषयवस्तु तथा स्वरूप को लेकर राजनीतिक दलों और हितधारकों के बीच कोई सहमति नहीं है।
- जागरूकता और शिक्षा का अभाव: भारत में बहुत से लोग अपने व्यक्तिगत कानूनों या सामान्य कानूनों के अंतर्गत अपने कानूनी अधिकारों और दायित्वों के बारे में भी नहीं जानते हैं।
- उन्हें UCC के लाभों और कमियों के बारे में या UCC को अपनाने या अस्वीकार करने वाले अन्य देशों के अनुभवों के बारे में भी शिक्षित नहीं किया गया है।
- वे अक्सर निहित स्वार्थी तत्त्वों या सांप्रदायिक शक्तियों द्वारा फैलाई गई गलत सूचना या प्रचार से प्रभावित होते हैं।
आगे की राह
- तुलनात्मक विश्लेषण: भारत में विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों का व्यापक तुलनात्मक विश्लेषण करने की आवश्यकता है। इससे समानताओं और विवाद के क्षेत्रों को समझने में मदद मिलेगी।
- सामान्य सिद्धांतों का अधिनियमन: तुलनात्मक विश्लेषण के आधार पर हम व्यक्तिगत प्रस्थिति/दर्जे का एक कानून बना सकते हैं जिसमें विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों द्वारा साझा किये गए सिद्धांतों को शामिल किया गया हो।
- विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों से निकटता से संरेखित होने वाले इन सामान्य सिद्धांतों को एक समान कानूनी ढाँचा स्थापित करने के लिये तुरंत ही लागू किया जा सकता है।
- फैमिली लॉ बोर्ड: पारिवारिक मामलों से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों का अध्ययन करने और उनमें बदलाव की सिफारिश करने के लिये केंद्रीय कानून मंत्रालय के भीतर एक फैमिली लॉ बोर्ड स्थापित करने की आवश्यकता है।
- ब्रिक बाय ब्रिक दृष्टिकोण: वर्तमान में एक समान संहिता की तुलना में एक न्यायसंगत संहिता कहीं अधिक आवश्यक है; समान नागरिक संहिता की व्यवहार्यता, स्वीकृति और व्यावहारिकता के बारे में जानकारी देने के लिये चुनिंदा क्षेत्रों अथवा समुदायों में पायलट परियोजनाएँ शुरू की जा सकती हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय संविधान में प्रतिष्ठापित राज्य की नीति निदेशक तत्त्वों के अंतर्गत निम्नलिखित प्रावधानों पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त में से कौन-से गांधीवादी सिद्धांत राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों में परिलक्षित होते हैं? (a) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. चर्चा कीजिये कि वे कौन से संभावित कारक हैं जो भारत को राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व में प्रदत्त के अनुसार अपने नागरिकों के लिये समान सिविल संहिता को अभिनियामित करने से रोकते हैं। (2015) |