भारतीय समाज
अंतरधार्मिक विवाह और व्यक्तिगत स्वतंत्रता
- 20 Nov 2020
- 18 min read
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में देश में लव जिहाद और अंतरधार्मिक विवाह के विरुद्ध कानूनों के निर्माण और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर इसके प्रभावों व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ:
पिछले कई दशकों के दौरान समाज सुधार के बड़े प्रयासों के बावजूद आज भारत में धर्म और जाति के नाम पर होने वाले विवादों की कमी नहीं है। एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के बाद भी कई बार अलग-अलग धर्मों के हितों की रक्षा हेतु किये जाने वाले प्रयास उनके बीच विभाजन की रेखा को और अधिक स्पष्ट कर देते हैं। हाल ही में देश के कई राज्यों (जैसे-मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश) द्वारा ऐसे विवाहों को रोकने के लिये कानूनों के निर्माण की बात कही गई है जिन्हें उनके द्वारा ‘लव जिहाद’ की संज्ञा दी गई है। गौरतलब है कि ‘लव जिहाद’ के निर्धारण का न तो कोई कानूनी आधार है और न ही संवैधानिक। इसके साथ ही बिना किसी मज़बूत आधार के कानूनों के माध्यम से अंतरधार्मिक विवाह को रोकना लोगों को संविधान से प्राप्त अधिकारों का भी उल्लंघन होगा।
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय के हादिया मामले के बाद पिछले दिनों इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अंतरधार्मिक विवाह के कई मामले सामने आए, जहाँ अलग-अलग मामलों में जन्म से हिंदू या मुस्लिम महिलाओं ने धर्मांतरण के माध्यम से दूसरे धर्म से संबंधित व्यक्ति से विवाह किया था।
- हाल ही में मध्य प्रदेश राज्य सरकार द्वारा ‘लव जिहाद’ की घटनाओं पर रोक लगाने के लिये ‘धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक, 2020’ नामक एक विधेयक लाने की बात कही गई है।
- इसके तहत किसी से झूठ बोलकर या दबाव बनाकर उसे विवाह के लिये विवश करना पाँच वर्ष के सश्रम कारावास के रूप में दंडनीय होगा। हालाँकि यदि कोई व्यक्ति विवाह के लिये स्वेच्छा से धर्मांतरण करना चाहता है, तो उसे एक माह पहले ही इसके लिये आवेदन देना होगा।
- इसी प्रकार हरियाणा, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों की सरकारों द्वारा भी ‘लव जिहाद’ के विरुद्ध ऐसे ही कानूनों को लाने की बात कही गई है।
भारत में लागू प्रमुख विवाह कानून:
भारत में ब्रिटिश शासन के समय समान नागरिक संहिता को लागू करने का प्रयास किया गया परंतु कई समाज सुधारकों और सरकारों के प्रयासों के बाद भी कानूनों में व्याप्त धार्मिक अंतर को दूर नहीं न किया जा सका है। इसके परिणामस्वरूप देश में अलग-अलग धर्मों से जुड़े लोगों के विवाह का पंजीकरण अलग-अलग कानूनों के तहत किया जाता है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
- हिंदू विवाह अधिनियम 1955
- मुस्लिम पर्सनल लॉ, 1937
- भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872
- पारसी विवाह और विवाह विच्छेद अधिनियम, 1936
धर्मांतरण और अंतरधार्मिक विवाह:
- भारत में यदि दो अलग-अलग धर्मों के लोग विवाह करना चाहते हैं तो वे या तो ‘विशेष विवाह अधिनियम, 1954’ के तहत विवाह कर सकते हैं अथवा उनमें से कोई एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के धर्म को अपना ले और संबंधित धर्म के रीति-रिवाज़ों के तहत विवाह कर वे अपने विवाह का पंजीकरण करा सकते हैं।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद-25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है। यह अनुच्छेद किसी भी व्यक्ति को भारत में किसी भी धर्म को मानने, उसके नियमों का पालन करने और उसका प्रचार करने का अधिकार प्रदान करता है।
- ऐसे में भारत में कोई भी व्यक्ति इस अनुच्छेद में प्राप्त अधिकार के तहत यदि अपनी स्वेच्छा से किसी व्यक्ति से विवाह करने के लिये अपना धर्म परिवर्तन करता है तो वह पूर्णतयः उसके अधिकारों के अधीन होगा।
विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act- SMA), 1954:
- भारत में सामाजिक और धार्मिक रूढ़िवादिता के कारण अंतरजातीय तथा अंतरधार्मिक विवाहों के लिये उत्पन्न होने वाली चुनौतियों को दूर करने के लिये वर्ष 1954 में ‘विशेष विवाह अधिनियम को लागू किया गया था।
- यह अधिनियम वर्ष 1873 के विशेष विवाह अधिनियम को प्रतिस्थापित करता है।
- यह अधिनियम देश में अलग-अलग धर्मों से संबंधित लोगों को बगैर अपने धर्म में परिवर्तन किये ही विवाह पंजीकरण का अधिकार प्रदान करता है।
- यह अधिनियम विदेशों में रह रहे भारतीय नागरिकों पर भी लागू होता है।
- इस अधिनियम के तहत विवाह के पंजीकरण के लिये अधिनियम की धारा-4 में कुछ अनिवार्यताओं का निर्धारण किया गया है, जो निम्नलिखित हैं:
- अधिनियम के तहत विवाह पंजीकरण के समय किसी भी पक्षकार का पति या पत्नी जीवित न हो।
- कोई भी पक्ष मानसिक विकार के परिणामस्वरूप विधिमान्य सहमति देने में असमर्थ न हो।
- या विवाह की सहमति तो दे सकता हो परंतु इस हद तक मानसिक विकार से पीड़ित न हो कि वह विवाह अथवा संतानोत्पत्ति के अयोग्य हो।
- पुरुष की आयु 21 वर्ष (न्यूनतम) और महिला की आयु 18 वर्ष हो आदि।
विवाह के लिये धर्मांतरण का कारण:
- धर्मांतरण सामान्य स्थितियों और विवाह के मामलों में भी किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है परंतु कई कानूनी और सामाजिक बाध्यताओं के कारण अंतरधार्मिक विवाह के मामलों में लोग विवाह के लिये धर्मांतरण को अधिक प्राथमिकता देते हैं।
विशेष विवाह अधिनियम की चुनौतियाँ:
- इस अधिनियम की धारा-5 के तहत विवाह के लिये ज़िले के विवाह अधिकारी को नोटिस देना अनिवार्य है, जिसके बाद विवाह अधिकारी (Marriage Officer) द्वारा धारा-5 के तहत प्राप्त सभी नोटिसों को विवाह सूचना पुस्तक में दर्ज करने के साथ एक नोटिस बोर्ड पर चस्पा किया जाएगा जहाँ इसे किसी भी व्यक्ति द्वारा निशुल्क देखा जा सकता है। साथ ही यदि कोई भी पक्ष उस ज़िले का निवासी नहीं है तो इस नोटिस को संबंधित ज़िले के विवाह अधिकारी को भेजा जाएगा।
- इस नोटिस के जारी होने के 30 दिनों के अंदर कोई भी व्यक्ति धारा-4 के तहत निर्धारित शर्तों के उल्लंघन के आधार पर इस विवाह को लेकर अपना आक्षेप व्यक्त कर सकता है।
- आक्षेप की लिखित जानकारी मिलने के बाद विवाह अधिकारी को 30 दिनों के अंदर जाँच कर अपना निर्णय देना होता है। साथ ही विवाह अधिकारी के निर्णय से असंतुष्ट रहने पर व्यक्ति ज़िला न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है।
- हालाँकि इस प्रक्रिया में लगने वाले समय के दौरान अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह के मामलों में लोगों पर परिवार अथवा समाज से अनावश्यक दबाव बढ़ जाता है।
- कई मामलों में लड़के या लड़की को इस प्रकार के विवाह से रोकने के लिये उन पर जानलेवा हमला भी कर दिया जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ मामलों में कई असामाजिक तत्त्व लोगों की सार्वजनिक जानकारी का गलत फायदा उठाकर उन्हें या उनके परिवार को परेशान करने का प्रयास करते हैं।
- हाल ही में केरल में विशेष विवाह अधिनियम के तहत अंतरधार्मिक जोड़ों की तस्वीरों और अन्य जानकारियों के दुरुपयोग के मामले सामने आने के बाद सरकार ने इस अधिनियम के तहत विवाह के नोटिस के ऑनलाइन प्रकाशन पर रोक लगा दी थी।
- इन सब चुनौतियों से बचने के लिये अधिकांशतः लोग धर्म परिवर्तन का विकल्प अपनाते हैं।
- हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका में SMA के तहत 30 दिन के नोटिस की अनिवार्यता को समाप्त करने की मांग की गई, इसके लिये तर्क दिया गया कि SMA की धारा-4 की शर्तों को शपथ पत्र और चिकित्सीय जाँच के माध्यम से भी पूरा किया जा सकता है।
अंतरधार्मिक विवाह का विरोध:
- कुछ संगठनों का आरोप है कि अंतरधार्मिक विवाहों के माध्यम से ज़बरन धर्म परिवर्तन कराने का प्रयास किया जाता है।
- ‘हिंदू विवाह अधिनियम, 1955’ या अन्य कुछ धर्मों के कानूनों के तहत किसी भी व्यक्ति को एक ही विवाह की अनुमति दी गई है, ऐसे में कुछ मामलों में लोगों ने दूसरा विवाह करने के लिये धर्मांतरण (विशेषकर इस्लाम जहाँ 4 विवाह तक की अनुमति है) का रास्ता अपनाया।
- गौरतलब है कि इस्लाम धर्म के रीति रिवाज़ों के तहत एक से अधिक विवाह के मामले में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-494 के प्रावधान लागू नहीं होते हैं।
पूर्व के मामले:
- सरला मुद्गल (1995): वर्ष 1995 में कल्याणी नामक एक संस्था की संचालक सरला मुद्गल द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि कोई भी हिंदू बिना अपने पहले विवाह से तलाक की कार्रवाई को पूरा किये इस्लाम में धर्मांतरण के माध्यम से दूसरा विवाह नहीं कर सकता है और ऐसा करना IPC की धारा 494 के तहत दंडनीय होगा।
राज्य सरकारों द्वारा धर्मांतरण विरोधी कानूनों का प्रस्ताव:
- हाल में हरियाणा राज्य के गृहमंत्री द्वारा धर्मांतरण के विरुद्ध कानून के निर्माण की घोषणा के साथ हिमाचल प्रदेश में इस मामले पर पहले से सक्रिय एक कानून की जानकारी मांगी गई है। गौरतलब है कि वर्ष 2019 में हिमाचल विधानसभा द्वारा ‘धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक, 2019’ पारित किया गया था।
- हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2007 से ही एक कानून लागू था जिसके तहत बलपूर्वक या धोखाधड़ी से होने वाले धर्मांतरण पर रोक लगाई गई थी, हालाँकि वर्ष 2019 के विधेयक में इसके प्रावधानों को और अधिक कठोर कर दिया गया है।
- वर्ष 2019 के विधेयक के अनुसार, कोई भी व्यक्ति बल, अनुचित प्रभाव, प्रलोभन, धोखे या विवाह के माध्यम से किसी दूसरे व्यक्ति का धर्मांतरण कराने का प्रयास तथा ऐसे कार्यों में सहयोग नहीं करेगा।
- इस विधेयक के अनुसार, सिर्फ धर्मांतरण के उद्देश्य से किये गए विवाह को किसी भी पक्ष के आवेदन पर न्यायालय द्वारा अमान्य घोषित किया जा सकता है।
- यदि कोई व्यक्ति विवाह के लिये स्वेच्छा से धर्मांतरण करना चाहता है, तो उसे एक माह पहले ही इसके लिये आवेदन देना होगा, साथ ही धर्मांतरण में शामिल धर्मगुरु को भी इसकी सूचना एक माह पहले ही ज़िला प्रशासन को देनी होगी।
- इसके तहत अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होंगे और इसके प्रावधानों का उल्लंघन करने वालों को जुर्माने के साथ 5 वर्ष तक के कारावास का दंड दिया जा सकता है, यदि पीड़ित एक नाबालिग, महिला या अनुसूचित जाति या जनजाति का सदस्य है तो उस स्थिति में कारावास के दंड को 7 वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है।
चुनौतियाँ:
- किन्हीं दो सहमत वयस्कों के बीच वैवाहिक संबंधों को विनियमित करने के लिये अनावश्यक कानूनी हस्तक्षेप न केवल संवैधानिक अधिकारों की गारंटी के खिलाफ होगा, बल्कि यह व्यक्तिगत (अनुच्छेद 21) और बुनियादी स्वतंत्रता की अवधारणा को भी क्षति पहुँचाता है।
- बहुविवाह, बहुपत्नी प्रथा, अपहरण या बल प्रयोग आदि को पहले से ही अपराध माना गया गई और ऐसे अपराधों से IPC या अन्य कानूनों की विभिन्न धाराओं के तहत निपटा जा सकता है।
- असामाजिक तत्त्वों द्वारा लोगों का शोषण करने या अराजकता फैलाने के लिये ऐसे कानूनों का दुरुपयोग किया जा सकता है।
आगे की राह:
- 21वीं सदी में भी देश में धर्म और जाति के नाम पर होने वाला भेदभाव एक बड़ी चिंता का विषय है, ऐसे में वर्तमान में समाज में लोगों में निजता तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता (विवाह, धर्म का चुनाव या अन्य मामलों में भी) के संदर्भ में व्यापक जागरूकता लाने की आवश्यकता है।
- विवाह अधिनियम से जुड़े कानूनों में अपेक्षित बदलाव के साथ और उन्हें लागू करने में होने वाली अनावश्यक देरी को दूर करने के विकल्पों पर विचार किया जाना चाहिये।
- कानूनों या धार्मिक रीति-रिवाज़ों के दुरुपयोग के माध्यम से लोगों के शोषण को रोकने के लिये युवाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिये।
- भारत में विवाह से जुड़े कानूनों में व्याप्त जटिलता को दूर करने के लिये ‘समान नागरिक संहिता’ को अपनाया जाना बहुत ही आवश्यक है।
अभ्यास प्रश्न: ‘दो सहमत वयस्कों के बीच वैवाहिक संबंधों को विनियमित करने के लिये अनावश्यक कानूनी हस्तक्षेप न केवल संवैधानिक अधिकारों की गारंटी के खिलाफ होगा, बल्कि यह व्यक्तिगत और बुनियादी स्वतंत्रता की अवधारणा को भी क्षति पहुँचाता है।’ इस कथन के संदर्भ में भारत में अंतरधार्मिक विवाह से जुड़ी कानूनी और सामाजिक चुनौतियों की समीक्षा कीजिये।