भारतीय अर्थव्यवस्था
ग्रीन डे-अहेड मार्केट
प्रिलिम्स के लिये:इंडियन एनर्जी एक्सचेंज, डे-अहेड मार्केट, टर्म-अहेड मार्केट मेन्स के लिये:भारतीय ऊर्जा बाज़ार में ग्रीन डे-अहेड मार्केट की प्रासंगिकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्री (विद्युत, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा) ने ‘इंडियन एनर्जी एक्सचेंज’ के अंतर्गत एक नया बाज़ार खंड ‘ग्रीन डे-अहेड मार्केट’ (GDAM) लॉन्च किया है।
- भारत दुनिया का एकमात्र बड़ा विद्युत बाज़ार है, जिसने विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा हेतु ‘ग्रीन डे अहेड मार्केट’ (जीडीएएम) प्रारंभ किया है।
इंडियन एनर्जी एक्सचेंज:
- इंडियन एनर्जी एक्सचेंज भारत में पहला और सबसे बड़ा ‘एनर्जी एक्सचेंज’ है जो बिजली की भौतिक डिलीवरी, नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र और ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र के लिये एक राष्ट्रव्यापी, स्वचालित ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म प्रदान करता है।
डे-अहेड मार्केट (DAM):
- यह मध्यरात्रि से शुरू होने वाले अगले दिन के 24 घंटों में किसी भी/कुछ/पूर्ण समय के वितरण हेतु एक भौतिक बिजली व्यापार बाज़ार है।
टर्म-अहेड मार्केट (TAM):
- TAM के तहत 11 दिनों की अवधि के लिये बिजली खरीदने/बेचने हेतु अनुबंध किया जाता है।
- यह प्रतिभागियों को ‘इंट्रा-डे’ अनुबंधों के माध्यम से उसी दिन हेतु तथा ‘डे-अहेड कांटिजेंसी’ के माध्यम से अगले दिन के लिये और इसी तरह दैनिक आधार पर दैनिक अनुबंधों के माध्यम से सात दिनों तक बिजली खरीदने में सक्षम बनाता है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह ‘डे-अहेड’ आधार पर नवीकरणीय ऊर्जा के व्यापार हेतु संचालित एक बाज़ार है।
- नोडल एजेंसी के रूप में ‘नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर’ (NLDC), ‘पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड’ (POSOCO) ने GDAM के शुभारंभ के लिये अपेक्षित प्रौद्योगिकियों और बुनियादी ढाँचे की स्थापना की है।
- GDAM के साथ कोई भी नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन कंपनी एक्सचेंज पर नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापना और बिक्री कर सकती है।
- GDAM की कार्यविधि:
- यह पारंपरिक ‘डे-अहेड मार्केट’ के साथ एकीकृत तरीके से कार्य करेगा।
- यह एक्सचेंज अलग-अलग ‘बिडिंग विंडो’ के माध्यम से बाज़ार सहभागियों के लिये पारंपरिक और नवीकरणीय ऊर्जा दोनों हेतु एक साथ बिडिंग का प्रावधान प्रस्तुत करेगा।
- अगर बाज़ार सहभागियों की ‘बिडिंग’ क्षमता हरित बाज़ार में ही समाप्त हो जाती है फिर भी यह तंत्र नवीकरणीय ऊर्जा विक्रेताओं को पारंपरिक खंड के अंतर्गत बिडिंग की अनुमति देगा।
- पारंपरिक और नवीकरणीय दोनों के लिये अलग-अलग मूल्य निर्धारित किये जाएंगे।
- यह पारंपरिक ‘डे-अहेड मार्केट’ के साथ एकीकृत तरीके से कार्य करेगा।
- संभावित लाभ:
- ‘ग्रीन मार्केट’ को मज़बूती:
- यह ‘ग्रीन मार्केट’ को मज़बूती प्रदान करेगा और प्रतिस्पर्द्धी मूल्य सुनिश्चित करेगा, साथ ही यह बाज़ार सहभागियों को सबसे पारदर्शी, लचीले, प्रतिस्पर्द्धी और कुशल तरीके से ‘ग्रीन ऊर्जा’ में व्यापार करने का अवसर प्रदान करेगा।
- नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि में तेज़ी लाना:
- यह नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों को बिजली विक्रय के साथ-साथ एक स्थायी एवं कुशल ऊर्जा अर्थव्यवस्था के रूप में भारत के दृष्टिकोण के प्रति नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि में तेज़ी लाने हेतु एक और विकल्प प्रदान करेगा।
- वितरण कंपनियाँ अपने क्षेत्र में उत्पादित अधिशेष नवीकरणीय ऊर्जा को बेचने में भी सक्षम होंगी।
- PPA आधारित अनुबंध मॉडल से बाज़ार आधारित मॉडल में रूपांतरण:
- यह एक ‘डोमिनो इफेक्ट’ उत्पन्न करेगा, जो धीरे-धीरे बिजली खरीद समझौतों (PPAs) आधारित अनुबंधों से बाज़ार-आधारित मॉडल में रुपांतरण की ओर ले जाएगा।
- यह वर्ष 2030 तक 450 GW हरित ऊर्जा क्षमता के अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने हेतु भारत के लिये मार्ग प्रशस्त करेगा।
- यह एक ‘डोमिनो इफेक्ट’ उत्पन्न करेगा, जो धीरे-धीरे बिजली खरीद समझौतों (PPAs) आधारित अनुबंधों से बाज़ार-आधारित मॉडल में रुपांतरण की ओर ले जाएगा।
- हरित ऊर्जा की कटौती में कमी:
- यह हरित ऊर्जा की कटौती को कम करेगा, अप्रयुक्त नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को अनलॉक करेगा और नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों को तत्काल भुगतान सुनिश्चित करेगा।
- ‘ग्रीन मार्केट’ को मज़बूती:
- भारत में नवीकरणीय ऊर्जा:
- भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा बिजली उपभोक्ता है और नवीकरणीय स्रोतों से वर्ष 2020 में कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता का 38% (373 GW में से 136 GW) के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक भी है।
- वर्ष 2016 में पेरिस समझौते के तहत भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 450 GW या अपनी कुल बिजली का 40% उत्पादन करने की प्रतिबद्धता जताई।
- GDAM को ऐसे समय में प्रस्तुत किया गया है, जब देश कोयले की कमी से जूझ रहा है।
- देश को जीवाश्म ईंधन के आयातित स्रोतों पर अपनी निर्भरता कम करने की ज़रूरत है।
- संबंधित पहलें:
स्रोत: पीआईबी
भारतीय समाज
विकलांगता: चुनौती और अधिकार
प्रिलिम्स के लिये:दिव्यांगजन अधिकार नियम, 2017, विश्व विकलांगता दिवस मेन्स के लिये:विकलांग व्यक्तियों के अधिकार और संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा हवाई अड्डों पर दिव्यांगों के लिये पहुँच सुनिश्चित करने हेतु मसौदा मानदंड जारी किये गए हैं।
- यह मसौदा ‘दिव्यांगजन अधिकार नियम, 2017’ का अनुसरण करता है, जिसके तहत सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को दिव्यांग व्यक्तियों हेतु पहुँच मानकों के लिये सामंजस्यपूर्ण दिशा-निर्देश तैयार करने की आवश्यकता है।
- यह मसौदा उन विभिन्न बुनियादी ढाँचागत आवश्यकताओं का विवरण प्रदान करता है, जो एक हवाई अड्डे को दिव्यांग व्यक्तियों की सुविधा हेतु प्रदान करना चाहिये।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- किसी एक विशिष्ट सीमा के भीतर कोई गतिविधि, जिसे मनुष्य के लिये सामान्य माना जाता है, को करने में अक्षमता को दिव्यांगता कहा जाता है।
- दिव्यांगता भारत जैसे विकासशील देशों में एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है।
- विकलांगता के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने हेतु संयुक्त राष्ट्र द्वारा 3 दिसंबर को ‘विश्व विकलांगता दिवस’ के रूप में चिह्नित किया गया है।
- पिछले वर्ष राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा विकलांगता पर जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की लगभग 2.2% आबादी किसी-न-किसी तरह की शारीरिक या मानसिक अक्षमता से पीड़ित है।
- विकलांग व्यक्तियों से संबंधित मुद्दे:
- भेदभाव:
- निरंतर भेदभाव उन्हें शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य अवसरों तक समान पहुँच से वंचित करता है।
- विकलांग व्यक्तियों से जुड़ी गलत धारणाओं और अधिकारों की समझ के अभाव के कारण उनका दैनिक जीवन काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- विकलांग महिलाएँ और लड़कियाँ यौन एवं अन्य प्रकार की लैंगिक हिंसा के प्रति काफी संवेदनशील होती हैं।
- स्वास्थ्य:
- विकलांगता के अधिकांश मामलों को रोका जा सकता है, जिनमें जन्म के दौरान चिकित्सा संबंधी मुद्दों, मातृ स्थितियों, कुपोषण, साथ ही दुर्घटनाओं और चोटों से उत्पन्न होने वाली विकलांगताएँ शामिल हैं।
- हालाँकि भारत जागरूकता की कमी, देखभाल और बेहतर एवं सुलभ चिकित्सा सुविधाओं की कमी जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। इसके अलावा पुनर्वास सेवाओं तक पहुँच, उपलब्धता और उपयोग की भी कमी है।
- शिक्षा:
- विकलांगों के लिये विशेष स्कूल, स्कूलों तक पहुँच, प्रशिक्षित शिक्षकों एवं शैक्षिक सामग्री की उपलब्धता का अभाव भी एक बड़ी समस्या है।
- रोज़गार:
- भले ही कई वयस्क दिव्यांग उत्पादन कार्य करने में सक्षम हैं, परंतु वयस्क दिव्यांगों की सामान्य आबादी की तुलना में बहुत कम रोज़गार दर है।
- पहुँच:
- भवनों, परिवहन, सेवाओं तक भौतिक पहुँच अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
- अपर्याप्त डेटा और आँकड़े:
- परिशुद्ध और तुलनीय डेटा एवं आँकड़ों की कमी विभिन्न नीतियों में दिव्यांग व्यक्तियों को शामिल करने में बाधा डालती है।
- भेदभाव:
- संवैधानिक प्रावधान:
- राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत के अंतर्गत अनुच्छेद-41 में कहा गया है कि राज्य अपनी आर्थिक क्षमता एवं विकास की सीमा के भीतर कार्य, शिक्षा व बेरोज़गारी, वृद्धावस्था, बीमारी तथा अक्षमता के मामलों में सार्वजनिक सहायता के अधिकार को सुरक्षित करने के लिये प्रभावी प्रावधान करेगा।
- संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में 'दिव्यांगों और बेरोज़गारों को राहत' विषय निर्दिष्ट है।
- संबंधित पहलें:
आगे की राह
- सुलभ और दुर्लभ के बीच की बढ़ती दूरी को समाप्त करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सभी क्षेत्रों में पहुँच स्थापित कर इस अंतराल को खत्म करना होगा।
- इस तरह के प्रयासों में दिव्यांग व्यक्तियों को शामिल करने पर शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये लोगों को शामिल करना; अभिगम्यता कानूनों और विनियमों को लागू करना; भौतिक पहुँच और सार्वभौमिक स्थिति में सुधार करना; वैमनस्य को कम करना तथा विकलांग व्यक्तियों के साथ सार्थक रूप से जुड़ने के लिये व्यक्तियों व समुदायों हेतु उपकरण विकसित करना शामिल है।
- अंततः इस उद्देश्य को प्राप्त करने के प्रमुख तरीकों में से एक है- निर्णय और नीति निर्माण में दिव्यांग व्यक्तियों को शामिल करना तथा उन मामलों में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना जो उनके जीवन को नियंत्रित करते हैं।
स्रोत- द हिंदू
शासन व्यवस्था
कृषि उड़ान 2.0
प्रिलिम्स के लिये:कृषि उड़ान योजना, उड़ान योजना, कृषि संबंधी योजनाएँ मेन्स के लिये:कृषि उड़ान योजना: परिचय एवं लाभ, कृषि-मूल्य शृंखला में स्थिरता व लचीलापन लाने में योजना का योगदान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ने हवाई मार्ग से कृषि उपज की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिये कृषि उड़ान 2.0 (Krishi UDAN 2.0) की शुरुआत की।
- इसका उद्देश्य कृषि-उपज और हवाई परिवहन के बेहतर एकीकरण एवं अनुकूलन के माध्यम से उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त करने तथा विभिन्न व गतिशील परिस्थितियों में कृषि-मूल्य शृंखला में स्थिरता व लचीलापन लाने में योगदान देना है।
- इससे पहले उड़ान दिवस (21 अक्तूबर) से पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने उड़ान योजना के तहत उत्तर-पूर्वी भारत की हवाई कनेक्टिविटी का विस्तार करते हुए 6 नए मार्गों को मंज़ूरी दी थी।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- कृषि उत्पादों के परिवहन में किसानों की सहायता करने के उद्देश्य से अगस्त 2020 में अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय मार्गों पर कृषि उड़ान योजना शुरू की गई थी ताकि कृषि उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त किया जा सके।
- कृषि उड़ान 2.0 पहाड़ी क्षेत्रों, पूर्वोत्तर राज्यों और आदिवासी क्षेत्रों में खराब होने वाले खाद्य उत्पादों (Perishable Food Products) के परिवहन पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- इसे देश भर के 53 हवाई अड्डों पर मुख्य रूप से पूर्वोत्तर और आदिवासी क्षेत्रों पर केंद्रित किया जाएगा तथा इससे किसान, मालवाहकों एवं एयरलाइन कंपनियों को लाभ होने की संभावना है।
- चुने गए हवाई अड्डे न केवल क्षेत्रीय घरेलू बाज़ारों तक पहुँच प्रदान करते हैं बल्कि उन्हें देश के अंतर्राष्ट्रीय गेटवे से भी जोड़ते हैं।
- मुख्य विशेषताएँ:
- शुल्क में छूट:
- लैंडिंग, पार्किंग, टर्मिनल नेविगेशन और मार्ग नविगेशन सुविधा शुल्क (Route Navigation Facilities Charges- RNFC) में पूर्ण छूट प्रदान कर हवाई परिवहन द्वारा कृषि उत्पादों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाना और उसे प्रोत्साहित करना।
- हब एंड स्पोक मॉडल:
- हब एंड स्पोक मॉडल और फ्रेट ग्रिड के विकास को सुगम बनाते हुए हवाई अड्डों के भीतर व बाहर माल ढुलाई से संबंधित बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना।
- हब और स्पोक मॉडल एक वितरण पद्धति को संदर्भित करता है जिसमें एक केंद्रीकृत "हब" मौजूद होता है।
- हब एंड स्पोक मॉडल और फ्रेट ग्रिड के विकास को सुगम बनाते हुए हवाई अड्डों के भीतर व बाहर माल ढुलाई से संबंधित बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना।
- संसाधन पूलिंग:
- कनवर्ज़ेंस तंत्र की स्थापना के माध्यम से संसाधन पूलिंग अर्थात् अन्य सरकारी विभागों और नियामक निकायों के साथ करार करना।
- यह कृषि उत्पादों के हवाई परिवहन को बढ़ाने के लिये मालवाहकों, एयरलाइंस और अन्य हितधारकों को प्रोत्साहन एवं रियायतें प्रदान करेगा।
- कनवर्ज़ेंस तंत्र की स्थापना के माध्यम से संसाधन पूलिंग अर्थात् अन्य सरकारी विभागों और नियामक निकायों के साथ करार करना।
- ई-कौशल:
- कृषि उपज के परिवहन के संबंध में सभी हितधारकों को सूचना प्रसार की सुविधा उपलब्ध कराने के लिये ई-कुशल (सतत् समग्र कृषि-लॉजिस्टिक्स हेतु कृषि उड़ान) नामक एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी विकसित किया जाएगा।
- मंत्रालय ने ई-कुशल को राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) के साथ जोड़ने का भी प्रस्ताव किया है।
- शुल्क में छूट:
- संभावित लाभ:
- कृषि विकास के नए रास्ते:
- यह योजना कृषि क्षेत्र के विकास के लिये नए रास्ते खोलेगी और आपूर्ति शृंखला, रसद एवं कृषि उपज के परिवहन में बाधाओं को दूर कर किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगी।
- खाद्य अपशिष्ट को कम करना:
- यह देश में कृषि खाद्य अपशिष्ट की बर्बादी की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
- कृषि विकास के नए रास्ते:
- किसानों से संबंधित अन्य पहलें:
कृषि और उड्डयन का अभिसरण:
- दो क्षेत्रों (A2A - कृषि से विमानन) के बीच अभिसरण तीन प्राथमिक कारणों से संभव है:
- भविष्य में विमानों के लिये जैव ईंधन का विकासवादी संभावित उपयोग।
- कृषि क्षेत्र में ड्रोन का उपयोग।
- कृषि उड़ान जैसी योजनाओं के माध्यम से कृषि उत्पादों का एकीकरण और अधिक मूल्य प्राप्त करना।
स्रोत: पी.आई.बी.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
CO2 का मीथेन में परिवर्तन
प्रिलिम्स के लिये:मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड, प्रकाश-रासायनिक विधि, उत्प्रेरक मेन्स के लिये:CO2 को मीथेन में परिवर्तित करने की प्रकाश-रासायनिक विधि: आवश्यकता एवं महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों ने कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को मीथेन (CH4) में परिवर्तित करने के लिये एक प्रकाश-रासायनिक विधि (Photochemical Method)/ प्रकाश उत्प्रेरक (Photocatalyst) विकसित किया है।
- एक प्रकाश-रासायनिक विधि प्रकाश के रूप में ऊर्जा के अवशोषण द्वारा शुरू की जाने वाली एक रासायनिक अभिक्रिया है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- वैज्ञानिकों ने एक कार्बनिक पॉलिमर को इस तरह से डिज़ाइन किया है जो दृष्टिगोचर प्रकाश को अवशोषित करने और कार्बन डाइऑक्साइड न्यूनीकरण प्रतिक्रिया को उत्प्रेरित करने में भी सक्षम होगा।
- अधिकांश उत्प्रेरकों में विषैले और महँगे धातु प्रतिरूप उपस्थित होते हैं। इसलिये वैज्ञानिकों ने इस कमी को दूर करने हेतु एक धातु मुक्त तथा संरंध्रयुक्त (Porous) कार्बनिक बहुलक तैयार किया है।
- CO2 के न्यूनीकरण की यह प्रकाश-रासायनिक विधि ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत के रूप में सूर्य के प्रकाश का उपयोग करती है।
- फोटोकेमिकल, इलेक्ट्रोकेमिकल, फोटोइलेक्ट्रोकेमिकल, फोटोथर्मल आदि सहित ऐसी कई विधियाँ हैं जिनमें कार्बन डाइऑक्साइड को कम किया जा सकता है।
- वैज्ञानिकों ने एक कार्बनिक पॉलिमर को इस तरह से डिज़ाइन किया है जो दृष्टिगोचर प्रकाश को अवशोषित करने और कार्बन डाइऑक्साइड न्यूनीकरण प्रतिक्रिया को उत्प्रेरित करने में भी सक्षम होगा।
- प्रक्रिया:
- इस उत्प्रेरक में संयुग्मित माइक्रोपोरस पॉलिमर (Conjugated Microporous Polymer- CMP) नामक एक रसायन होता है।
- कमरे के तापमान पर अपनी उच्च CO2 अवशोषण क्षमता के कारण यह CO2 को अपनी सतह पर अधिग्रहण कर सकता है और इसे एक मूल्यवर्द्धित उत्पाद- मीथेन के रूप में परिवर्तित कर सकता है।
- CO2 को मूल्यवर्द्धित उत्पादों में बदलने के लिये फोटो-उत्प्रेरक की कुछ प्रमुख आवश्यकताएँ हैं, जो निम्नलिखित पर निर्भर करती हैं:
- प्रकाश के अवशोषण का गुण/लाइट हार्वेस्टिंग प्रॉपर्टी।
- आवेश वाहक (इलेक्ट्रॉन-होल पेयर) पृथक्करण दक्षता।
- उचित इलेक्ट्रॉनिक रूप से अनुकूल चालन/कंडक्शन बैंड की उपस्थिति।
- महत्त्व:
- मीथेन के महत्त्वपूर्ण उपयोगों के साथ-साथ यह सबसे स्वच्छ ज्वलनशील जीवाश्म ईंधन के रूप में मूल्यवर्द्धित उत्पादों में से एक हो सकता है और सीधे हाइड्रोजन वाहक के रूप में ईंधन कोशिकाओं में उपयोग किया जा सकता है।
- यह प्राकृतिक गैस का मुख्य घटक भी है और इसमें बिजली उत्पादन के लिये कोयले की जगह लेने और नवीकरणीय उत्पादकता को सुदृढ़ करने की आपूर्ति क्षमता है।
मीथेन:
- परिचय:
- मीथेन एक गैस है जो पृथ्वी के वायुमंडल में कम मात्रा में पाई जाती है।
- यह सबसे सरल हाइड्रोकार्बन है, जिसमें एक कार्बन परमाणु और चार हाइड्रोजन परमाणु (CH4) होते हैं।
- मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। यह ज्वलनशील है और इसका उपयोग दुनिया भर में ईंधन के रूप में किया जाता है।
- मीथेन गैस कार्बनिक पदार्थों के टूटने या क्षय से उत्पन्न होती है और इसे प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा वातावरण में उत्पन्न किया जा सकता है, जैसे कि आर्द्रभूमि में पौधों की सामग्री का क्षय, भूमिगत जमा गैस का रिसाव या मवेशियों द्वारा भोजन का पाचन या मानव गतिविधियाँ जैसे- तेल और गैस उत्पादन, चावल की खेती या अपशिष्ट प्रबंधन।
- मीथेन को ‘मार्श गैस’ भी कहा जाता है क्योंकि यह दलदली जगहों की सतह पर पाई जाती है।
- प्रमुख उपयोग:
- यह हाइड्रोजन और कुछ कार्बनिक रसायनों का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
- यह कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोजन उत्पन्न करने के लिये उच्च तापमान पर भाप के साथ प्रतिक्रिया करती है; बाद में इसका उपयोग उर्वरकों और विस्फोटकों हेतु अमोनिया के निर्माण में किया जाता है।
- मीथेन से प्राप्त अन्य मूल्यवान रसायनों में मेथनॉल, क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड और नाइट्रोमीथेन शामिल हैं।
- मीथेन के अधूरे दहन से कार्बन ब्लैक उत्सर्जित होता है, जिसका प्रयोग ऑटोमोबाइल टायरों के लिये उपयोग किये जाने वाले रबर में एक प्रबलिंग एजेंट के रूप में व्यापक स्तर पर किया जाता है।
- मीथेन का पर्यावरणीय प्रभाव:
- यह कार्बन की तुलना में 84 गुना अधिक शक्तिशाली है और टूटने के बाद वायुमंडल में अधिक समय तक नहीं रहता है।
- यह एक खतरनाक वायु प्रदूषक, ज़मीनी स्तर पर ओज़ोन निर्माण हेतु ज़िम्मेदार है।
भारतीय राजव्यवस्था
पेगासस मामला
प्रिलिम्स के लिये:पेगासस मामला, निजता का अधिकार, के.एस. पुट्टस्वामी मामला 2017 मेन्स के लिये:पेगासस मामला एवं व्यक्तियों की निजता से जुड़े विभिन्न मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने पेगासस मामले में शीर्ष न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश (न्यायमूर्ति रवींद्रन समिति) की देख-रेख में एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की है।
- इस मामले के तहत केंद्र सरकार पर नागरिकों की निजता की निगरानी के लिये स्पाइवेयर का इस्तेमाल करने का आरोप है।
प्रमुख बिंदु:
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत:
- न्यायालय ने स्वयं जाँच करने की सरकार की याचिका को खारिज कर दिया।
- न्यायालय ने कहा कि सरकार द्वारा जाँच पूर्वाग्रह के खिलाफ स्थापित न्यायिक सिद्धांत का उल्लंघन करेगी अर्थात् 'न्याय न केवल किया जाना चाहिये, बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिये।’
- विशेषज्ञ समिति की स्थापना:
- याचिकाकर्ताओं द्वारा लगाए गए आरोपों पर विस्तृत प्रतिक्रिया दर्ज करने में सरकार की निष्क्रियता के कारण न्यायालय ने पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर.वी रवींद्रन की देख-रेख में विशेषज्ञों का एक पैनल गठित किया है।
- सिफारिश की शर्तें:
- न्यायालय ने रवींद्रन समिति से नागरिकों को निगरानी से बचाने और देश की साइबर सुरक्षा बढ़ाने के लिये एक कानूनी और नीतिगत ढाँचे पर सिफारिशें करने को कहा है।
- न्यायालयत ने समिति के लिये सात संदर्भ की शर्तें निर्धारित की हैं, जो अनिवार्य रूप से ऐसे तथ्य हैं जिन्हें इस मुद्दे को तय करने के लिये सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत:
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संबोधित मुद्दे:
- निजता का अधिकार:
- न्यायालय ने दोहराया कि निजता का अधिकार मानव अस्तित्व की तरह ही पवित्र है और मानवीय गरिमा एवं स्वायत्तता के लिये आवश्यक है।
- के.एस. पुट्टस्वामी मामले, 2017 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गोपनीयता के अधिकार को मौलिक अधिकारों के एक भाग के रूप में रखा गया था।
- राज्य या किसी बाहरी एजेंसी द्वारा किसी व्यक्ति की गई कोई भी निगरानी या जासूसी उस व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
- न्यायालय ने दोहराया कि निजता का अधिकार मानव अस्तित्व की तरह ही पवित्र है और मानवीय गरिमा एवं स्वायत्तता के लिये आवश्यक है।
- ‘वाक स्वतंत्रता’ की निगरानी
- न्यायालय ने निगरानी और स्व-सेंसरशिप के बीच संबंध को रेखांकित किया।
- यह ज्ञान कि कोई व्यक्ति जासूसी के खतरे का सामना कर रहा है, ‘स्व-सेंसरशिप’ और 'द्रुतशीतन प्रभाव' का कारण बन सकता है।
- यह ‘द्रुतशीतन प्रभाव’ प्रेस की महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक-प्रहरी की भूमिका पर हमला कर सकता है, जो सटीक और विश्वसनीय जानकारी (‘वाक स्वतंत्रता’) प्रदान करने की प्रेस की क्षमता को कमज़ोर कर सकता है।
- इसने आगे कहा कि इस तरह के अधिकार का एक महत्त्वपूर्ण और आवश्यक परिणाम सूचना के स्रोतों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
- न्यायालय ने निगरानी और स्व-सेंसरशिप के बीच संबंध को रेखांकित किया।
- नागरिकों के अधिकारों को अवरुद्ध करने हेतु ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का उपयोग:
- न्यायालय के निर्णय के मुताबिक, राज्य को हर बार 'राष्ट्रीय सुरक्षा' पर खतरे का हवाला देते हुए नागरिकों के अधिकारों को अवरुद्ध करने का अधिकार प्राप्त नहीं है।
- इसका अर्थ यह भी है कि ‘न्यायिक समीक्षा’ के विरुद्ध कोई सर्वव्यापी निषेध लागू नहीं किया जाएगा।
- इसलिये राज्य द्वारा ‘न्यायिक समीक्षा’ के अधिकार का उल्लंघन राष्ट्रीय हित में केवल कानून द्वारा स्थापित प्रक्रियाओं का पालन करके ही किया जा सकता है।
- इसके अलावा यह आदेश स्पष्ट करता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर असहमति का अपराधीकरण नहीं किया जाना चाहिये।
- निजता का अधिकार:
आगे की राह
- न्यायपालिका की भूमिका: यह आदेश संविधान में निहित व्यक्तिगत अधिकारों के संरक्षक के रूप में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका और दायित्वों का एक स्वागत योग्य कदम है।
- न्यायालय के इस आदेश की मूल भावना का परीक्षण इस बात से होगा कि न्यायमूर्ति रवींद्रन की निगरानी में गठित यह पैनल इस मुद्दे को किस प्रकार संबोधित करता है।
- विधायिका की भूमिका: व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019 के अधिनियमन में तेज़ी लाने की आवश्यकता है।
- कार्यपालिका की भूमिका: इसके अलावा कार्यपालिका के लिये यह आवश्यक है कि वह प्रत्येक स्तर पर सत्ता के मनमाने प्रयोग को रोकने हेतु आवश्यक कदम उठाए।