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सामाजिक न्याय

दिव्यांगता प्रारंभिक हस्तक्षेप केंद्र

  • 21 Jun 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सुगम्य भारत अभियान, दिव्यांगता

मेन्स के लिये:

दिव्यांगों के लिये की गई पहलें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) ने किसी जोखिम में रहने वाले या दिव्यांग बच्चों और शिशुओं को सहायता प्रदान करने के लिये देश भर में 14 क्रॉस-डिसेबिलिटी अर्ली इंटरवेंशन सेंटर लॉन्च (Cross-Disability Early Intervention Centres) किये हैं।

दिव्यांगता:

  • दिव्यांगता एक व्यापक पद है, जिसमें असमर्थता, बाधित शारीरिक गतिविधियाँ और सामाजिक भागीदारी में असमर्थता शामिल हैं।
    • असमर्थता शारीरिक कार्य करने या संरचना में किसी समस्या से संबंधित है;
    • बाधित शारीरिक गतिविधियों का आशय किसी कार्य या क्रिया को निष्पादित करने में किसी व्यक्ति के समक्ष आने वाली कठिनाइयों से है;
    • सामाजिक भागीदारी में असमर्थता का अर्थ एक व्यक्ति द्वारा जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में शामिल होने में अनुभव की जाने वाली समस्या से है।
  • दिव्यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन दिव्यांग व्यक्तियों के व्यापक वर्गीकरण को अपनाता है और पुष्टि करता है कि सभी प्रकार के  दिव्यांग व्यक्तियों को सभी मानवाधिकारों तथा मौलिक स्वतंत्रता का लाभ मिलना चाहिये।
    • भारत ने इस कन्वेंशन की पुष्टि की है और 'दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016' को अधिनियमित किया है।

प्रमुख बिंदु:

संदर्भ:

  • इन केंद्रों पर दिव्यांगता स्क्रीनिंग व पहचान, पुनर्वास, परामर्श, चिकित्सीय सेवाएँ, माता-पिता की काउंसलिंग और प्रशिक्षण के साथ-साथ सहकर्मी परामर्श आदि सेवाएँ प्रदान की जाएंगी।
  • ये केंद्र स्कूल से संबंधित तैयारी पर भी ध्यान देंगे।

आवश्यकता:

  • 2011 का जनगणना परिदृश्य:
    • 0-6 वर्ष के आयु वर्ग में 20 लाख से अधिक दिव्यांग बच्चे हैं, जो दृष्टिबाधित, श्रवण बाधित, चलन में अक्षमता आदि श्रेणियों से संबंधित हैं।
    • इसका अर्थ है कि इस आयु वर्ग के लगभग 7% बच्चे किसी-न-किसी रूप में दिव्यांगता से पीड़ित हैं।
  • संख्या में अपेक्षित वृद्धि:
    • ऐसे बच्चों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना है क्योंकि दिव्यांगजनों के अधिकार अधिनियम 2016 के अनुसार दिव्यांगों के प्रकारों की संख्या 7 से बढ़कर 21 हो गई है।
  • 0-6 वर्ष एक महत्त्वपूर्ण चरण है:
    • प्रारंभिक बचपन (0-6 वर्ष) मस्तिष्क के विकास का सबसे महत्त्वपूर्ण चरण होता है। ऐसे शिशु और छोटे बच्चे जो किसी जोखिम में हैं या दिव्यांगता या जिनका विकास देरी से हुआ है, उनके परिवारों को उनके विकास, कल्याण तथा पारिवारिक एवं सामुदायिक जीवन में  भागीदारी में मदद करने के लिये प्रारंभिक हस्तक्षेप विशेष सहायता और सेवाएँ प्रदान कर सकता है।
    • यह बेहतर भविष्य के साथ-साथ स्वतंत्र/कम आश्रित जीवन द्वारा आर्थिक बोझ को कम हो सकता है।

दिव्यांगों के लिये अन्य पहलें:

  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016: दिव्यांगता के प्रकारों की संख्या में वृद्धि के अलावा, यह दिव्यांगजन के लिये सरकारी नौकरियों में 3% से 4% और उच्च शिक्षा संस्थानों में 3% से 5% तक आरक्षण सुनिश्चित करता है।
  • सुगम्य भारत अभियान: यह दिव्यांगजनों (PwDs) के लिये बाधा रहित और सुखद/अनुकूल वातावरण तैयार करता है।
  • ऑनलाइन मोड में अद्वितीय अक्षमता पहचान (Unique Disability ID- UDID) पोर्टल: इस परियोजना को राष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांगजनों का डेटाबेस तैयार करने और प्रत्येक दिव्यांग (PwDs) को एक विशिष्ट अद्वितीय अक्षमता पहचान पत्र जारी करने के उद्देश्य से कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • दीनदयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना: इस योजना के तहत NGOs को विशेष स्कूल, व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र, समुदाय-आधारित पुनर्वास, प्री-स्कूल और प्रारंभिक हस्तक्षेप जैसी विभिन्न सेवाएँ प्रदान करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  • सहायक यंत्रों/उपकरणों की खरीद/फिटिंग के लिये विकलांग व्‍यक्तियों हेतु सहायता योजना (ADIP): दिव्यांग व्यक्तियों को उनकी पहुँच के भीतर उपयुक्त, टिकाऊ, वैज्ञानिक रूप से निर्मित, आधुनिक, मानक सहायता और उपकरणों को खरीदने में उनकी सहायता करना है।
  • दिव्यांग छात्रों के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप: दिव्यांग छात्रों के लिये उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अवसरों को बढ़ाने हेतु प्रतिवर्ष 200 फैलोशिप प्रदान की जाती है।
  • सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु-दिव्यांगता से पीड़ित व्यक्तियों के कल्याण के लिये राष्ट्रीय न्यास (National Trust) की योजनाएँ

आगे की राह:

  • विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जोखिम वाले मामलों की पहचान करना एक महत्त्वपूर्ण पहलू है और उनके माता-पिता को समय पर आवश्यक सहायता एवं परामर्श प्रदान करना भी महत्त्वपूर्ण है।
  • एक अनुसंधान के अनुसार, स्वस्थ विकास सुनिश्चित करने के लिये बच्चे के जीवन के शुरुआती 1000 दिन महत्त्वपूर्ण होते हैं, इसलिये कम उम्र में जोखिम के मामलों की पहचान करना बहुत महत्त्वपूर्ण है ताकि उचित उपायों के माध्यम से दिव्यांगता की गंभीरता को कम किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू

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