भारतीय राजनीति
दिव्यांगता और लिपिक की सुविधा: SC
- 13 Feb 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने केंद्र सरकार को लिखित परीक्षाओं में दिव्यांग व्यक्तियों को लिपिक (Scribe) की सुविधा प्रदान करने से संबंधित विनियमन और दिशा-निर्देश तैयार करने का आदेश दिया है।
- इससे पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि दिव्यांग व्यक्ति भी सामाजिक रूप से पिछड़े हैं और उन्हें सार्वजनिक रोज़गार एवं शिक्षा में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के समान लाभ दिया जाना चाहिये।
- लिपिक (Scribe) वह व्यक्ति होता है, जो लिखित परीक्षा के दौरान दिव्यांग छात्र द्वारा दिये जाने वाले जवाबों को लिखता है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि
- सर्वप्रथम ‘राइटर्स कैंप’ नामक बीमारी से पीड़ित एक छात्र ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की थी, ज्ञात हो कि यह एक ऐसी पुरानी न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, जिसके कारण लिखने में अत्यधिक कठिनाई होती है।
- संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा सिविल सेवा परीक्षा-2018 में उस छात्र को इस आधार पर ‘लिपिक’ की सुविधा उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया गया था कि वह बेंचमार्क ‘विकलांगता’ की परिभाषा में नहीं आता।
न्यायालय का निर्णय
- लिपिक की सुविधा
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत निर्धारित ‘बेंचमार्क विकलांगता’ के अलावा अन्य तरह की विकलांगताओं से प्रभावित लोगों को भी ‘लिपिक’ की सुविधा दी जानी चाहिये।
- बेंचमार्क विकलांगता का अर्थ है दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत मान्यता प्राप्त किसी भी प्रकार की विकलांगता के कारण कम-से-कम 40 प्रतिशत प्रभावित होने से है।
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत निर्धारित ‘बेंचमार्क विकलांगता’ के अलावा अन्य तरह की विकलांगताओं से प्रभावित लोगों को भी ‘लिपिक’ की सुविधा दी जानी चाहिये।
- सरकार को निर्देश
- न्यायालय ने सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (MoSJE) को व्यापक दिशा-निर्देश जारी करते हुए दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 2(s) के तहत निर्धारित परिभाषा के अधीन यह सुनिश्चित करने को कहा है कि किसी भी प्रकार की विकलांगता से प्रभावित उम्मीदवार को ‘लिपिक’ की सुविधा प्रदान करने संबंधी नीतिगत ढाँचे को जल्द-से-जल्द विकसित किया जाए, ताकि दिव्यांग उम्मीदवारों को किसी भी प्रकार की चुनौती का सामना न करना पड़े।
- मंत्रालय को निर्देश दिया गया है कि इस संबंध में प्रकिया निर्धारित करते समय यह सुनिश्चित करने के लिये उपयुक्त मानदंड निर्धारित किये जाएँ कि सभी उम्मीदवार सक्षम चिकित्सा प्राधिकार द्वारा विधिवत प्रमाणित हों, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ‘लिपिक’ सुविधा का लाभ केवल योग्य लाभार्थी ही प्राप्त कर सकें।
- अधिनियम के धारा 2(s) के तहत ‘दिव्यांग व्यक्तियों’ को परिभाषित किया गया है। इसका आशय लंबे समय तक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक अक्षमता से प्रभावित व्यक्ति से है, यह अक्षमता उसे समाज में पूर्ण और प्रभावी भागीदारी करने से रोकती हो।
- न्यायालय ने सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (MoSJE) को व्यापक दिशा-निर्देश जारी करते हुए दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 2(s) के तहत निर्धारित परिभाषा के अधीन यह सुनिश्चित करने को कहा है कि किसी भी प्रकार की विकलांगता से प्रभावित उम्मीदवार को ‘लिपिक’ की सुविधा प्रदान करने संबंधी नीतिगत ढाँचे को जल्द-से-जल्द विकसित किया जाए, ताकि दिव्यांग उम्मीदवारों को किसी भी प्रकार की चुनौती का सामना न करना पड़े।
- अधिनियम में सन्निहित ‘तर्कसंगत भागीदारी’ का सिद्धांत राज्य और निजी पक्षों को एक प्रकार का सकारात्मक दायित्व प्रदान करता है, ताकि वे विकलांग व्यक्तियों को समाज में उनकी पूर्ण और प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये अतिरिक्त सहायता प्रदान करें।
- वर्ष 2016 के अधिनियम के तहत ‘विकलांग व्यक्तियों’ की एक अधिक समावेशी परिभाषा प्रस्तुत की गई है, जो कि विकलांगता के चिकित्सा मॉडल से विकलांगता के सामाजिक मॉडल की ओर परिवर्तन का प्रतीक है।
राइटर्स कैंप
- ‘राइटर्स कैंप’ एक विशिष्ट प्रकार का फोकल डिस्टोनिया है, जो किसी की उँगलियों, हाथ या बाँह की कलाई को प्रभावित करता है।
- फोकल डिस्टोनिया एक न्यूरोलॉजिकल विकार है। इसके तहत मस्तिष्क मांसपेशियों को गलत सूचना भेजता है, जिससे मांसपेशियों में अनैच्छिक और अत्यधिक संकुचन होता है। मस्तिष्क द्वारा भेजे जाने वाले ये सिग्नल हाथों को विषम मुद्राओं में मोड़ सकते हैं।
- राइटर्स कैंप को एक कार्य-विशिष्ट डिस्टोनिया के रूप में जाना जाता है। यह एक व्यक्ति को केवल तभी प्रभावित करता है, जब वह लेखन या टाइपिंग जैसी विशेष गतिविधि करता है।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016
परिभाषा
- इस अधिनियम के तहत विकलांगता को एक विकसित और गतिशील अवधारणा के आधार पर परिभाषित किया गया है।
- बेंचमार्क विकलांगता, अधिनियम के तहत मान्यता प्राप्त किसी भी प्रकार की विकलांगता से कम-से-कम 40 प्रतिशत प्रभावित होने से है।
प्रकार
- अधिनियम के तहत विकलांगों के प्रकार 7 से बढ़ाकर 21 कर दिये गए हैं।
- इस अधिनियम के दायरे में मानसिक बीमारी; ऑटिज़्म; स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर; सेरेब्रल पाल्सी; मस्कुलर डिस्ट्रॉफी; क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल विकार; भाषा संबंधी विकार; थैलेसीमिया; हीमोफिलिया; सिकल सेल डिज़ीज़; मल्टीपल डिसएबिलिटी जैसे- डेथ ब्लाइंडनेस; एसिड अटैक पीड़ित और पार्किंसन्स रोग आदि शामिल हैं। ये सभी पूर्व के अधिनियम में शामिल नहीं थे।
- इसके अलावा सरकार को किसी अन्य श्रेणी की विकलांगता को सूचित करने का अधिकार दिया गया है।
आरक्षण
- इसके तहत सरकारी नौकरियों में विकलांग लोगों के लिये आरक्षण को 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 4 प्रतिशत और उच्च शिक्षा संस्थानों में 3 प्रतिशत से 5 प्रतिशत कर दिया गया है।
शिक्षा
- बेंचमार्क विकलांगता से पीड़ित 6 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिये निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई है। सरकार द्वारा वित्तपोषित शिक्षण संस्थानों के साथ-साथ सरकारी मान्यता प्राप्त संस्थानों को दिव्यांग बच्चों को समावेशी शिक्षा प्रदान करनी होगी।
अभिगम्यता
- सुगम्य भारत अभियान के तहत निर्धारित समयसीमा में सार्वजनिक भवनों में दिव्यांगजनों की पहुँच सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया गया है।
नियामक निकाय
- विकलांग व्यक्तियों के लिये मुख्य आयुक्त और राज्य आयुक्त नियामक निकायों और शिकायत निवारण एजेंसियों के रूप में कार्य करेंगे, साथ ही वे अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी पर भी ध्यान देंगे।
विशेष निधि
- विकलांग व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये एक अलग राष्ट्रीय और राज्य कोष बनाया जाएगा।