भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में कोयले की कमी
- 08 Oct 2021
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प्रिलिम्स के लिये:भारत में कोयले की कमी, ताप विद्युत संयंत्र मेन्स के लिये:कोयले का उपयोग एवं महत्त्व, कोयले की कमी का कारण और निवारण |
चर्चा में क्यों?
भारत के ताप विद्युत संयंत्र (Thermal Power Plant) कोयले की भारी कमी का सामना कर रहे हैं क्योंकि थर्मल स्टेशनों की बढ़ती संख्या के कारण कोयले का स्टॉक औसतन चार दिनों के लिये बचा है।
प्रमुख बिंदु
- कारण:
- बिजली की मांग में वृद्धि:
- आपूर्ति संबंधी मुद्दों के साथ युग्मित कोविड-19 महामारी से उबरने वाली अर्थव्यवस्था ने मौजूदा कोयले की कमी को जन्म दिया है।
- भारत बिजली की मांग में तेज़ उछाल, घरेलू खदान उत्पादन पर दबाव और समुद्री कोयले की बढ़ती कीमतों के प्रभावों से परेशान है।
- ताप विद्युत संयंत्रों का बढ़ा हुआ हिस्सा:
- कोयले से चलने वाले थर्मल पावर प्लांटों ने भी मांग में वृद्धि के उच्च अनुपात की आपूर्ति की है, जिससे भारत के उर्जा मिश्रण में थर्मल पावर की हिस्सेदारी वर्ष 2019 के 61.9% से बढ़कर 66.4% हो गई है।
- बाढ़ और वर्षा:
- अप्रैल-जून की अवधि में ताप विद्युत संयंत्रों द्वारा सामान्य से कम स्टॉक संचयन और अगस्त-सितंबर में कोयला संबंधी क्षेत्रों में लगातार बारिश के कारण उत्पादन कम हुआ जिसकी वजह से कोयला खदानों से कोयले का कम प्रेषण हुआ।
- आयात कम करना:
- कोयले की उच्च अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के साथ-साथ आयात कम करने के लिये उठाए गए कदमों के कारण भी संयंत्रों ने आयात में कटौती की है।
- बिजली की मांग में वृद्धि:
- प्रभाव:
- यदि उद्योगों को बिजली की कमी का सामना करना पड़ता है, तो इससे भारत के आर्थिक क्षेत्र की बहाली में देरी हो सकती है।
- कुछ व्यवसाय उत्पादन को कम कर सकते हैं।
- भारत की आबादी और अविकसित ऊर्जा बुनियादी ढाँचे के कारण लंबी अवधि तक गंभीर बिजली संकट की स्थिति रह सकती है।
- उठाए जा सकने वाले कदम:
- खनन को बढ़ावा देना:
- सरकार स्टॉक की बारीकी से निगरानी का कार्य कर रही है और राज्य द्वारा संचालित कोल इंडिया एवं NTPC भी आपूर्ति बढ़ाने हेतु खदानों से उत्पादन में वृद्धि के लिये कार्य कर रहे हैं।
- आपूर्ति नियंत्रण:
- भारत में घरेलू बिजली आपूर्ति की राशनिंग, विशेष रूप से ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों हेतु सबसे आसान समाधानों में से एक के रूप में उभर सकती है।
- भारतीय बिजली वितरक आमतौर पर कुछ क्षेत्रों में तब आपूर्ति में कटौती करते हैं जब उत्पादन, मांग से कम होता है और यदि आगे भी यही स्थिति रहती है तो बिजली की कटौती में विस्तार पर विचार किया जाएगा।
- आयात बढ़ाना:
- भारत को वित्तीय लागत के बावजूद अपने आयात को बढ़ाना होगा। उदाहरण के लिये इंडोनेशिया से, जहाँ कीमत मार्च के 60 डॉलर प्रति टन से बढ़कर सितंबर में 200 प्रति टन हो गई।
- जलविद्युत उत्पादन:
- वहीं मानसून की बारिश से कोयला खदानों में बाढ़ आ गई है, जिससे जलविद्युत उत्पादन (Hydro-Power Generation) को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
- बाँधों पर बड़ी जलविद्युत परियोजनाएँ कोयले के बाद भारत के प्रमुख बिजली स्रोत हैं और यह क्षेत्र बारिश के मौसम में अपने चरम पर होता है जो आमतौर पर जून से अक्तूबर तक होता है।
- प्राकृतिक गैस चालित जनरेटर की तरफ रुख:
- वर्तमान में वैश्विक कीमतों में वृद्धि के बावजूद प्राकृतिक गैस की बड़ी भूमिका हो सकती है।
- एक निराशाजनक स्थिति में गैस से चलने वाला बेड़ा किसी भी व्यापक बिजली आउटेज को रोकने में मदद कर सकता है। उदाहरण के लिये राज्य द्वारा संचालित जनरेटर NTPC लिमिटेड, जिसे आवश्यकता पड़ने पर लगभग 30 मिनट में चालू किया जा सकता है और यह गैस ग्रिड से जुड़ा होता है।
- खनन को बढ़ावा देना:
कोयला
- यह सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। इसका उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में, लोहा, इस्पात, भाप इंजन जैसे उद्योगों में और बिजली पैदा करने के लिये किया जाता है। कोयले से से उत्पन्न बिजली को ‘थर्मल पावर’ कहते हैं।
- आज हम जिस कोयले का उपयोग कर रहे हैं वह लाखों साल पहले बना था, जब विशाल फर्न और दलदल पृथ्वी की परतों के नीचे दब गए थे। इसलिये कोयले को बरीड सनशाइन (Buried Sunshine) कहा जाता है।
- दुनिया के प्रमुख कोयला उत्पादकों में चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और भारत शामिल हैं।
- भारत के कोयला उत्पादक क्षेत्रों में झारखंड में रानीगंज, झरिया, धनबाद और बोकारो शामिल हैं।
- कोयले को भी चार रैंकों में वर्गीकृत किया गया है: एन्थ्रेसाइट, बिटुमिनस, सबबिटुमिनस और लिग्नाइट। यह रैंकिंग कोयले में मौजूद कार्बन के प्रकार व मात्रा और कोयले की उष्मा ऊर्जा की मात्रा पर निर्भर करती है।