उत्प्रवासन विधेयक 2021
प्रिलिम्स के लिये:1983 का उत्प्रवासन अधिनियम मेन्स के लिये:उत्प्रवासन विधेयक 2021 के प्रावधान एवं इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विदेश मंत्रालय (MEA) ने उत्प्रवासन विधेयक 2021 के लिये सार्वजनिक सुझाव आमंत्रित किये हैं। यह विधेयक विदेशों में रोज़गार चाहने वाले नागरिकों की भर्ती प्रक्रिया में सुधार हेतु दीर्घावधि से लंबित अवसर प्रदान करता है।
प्रमुख बिंदु:
विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:
- यह विधेयक वर्ष 1983 के उत्प्रवास अधिनियम को बदलने का इरादा रखता है।
- विधेयक में व्यापक उत्प्रवास प्रबंधन की परिकल्पना की गई है, भारतीय नागरिकों के विदेशी रोज़गार को नियंत्रित करने वाले नियामक तंत्र स्थापित किये गए हैं और प्रवासियों के कल्याण के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु एक ढाँचा स्थापित किया गया है।
- इस विधेयक में एक त्रिस्तरीय संस्थागत ढाँचे का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है:
- यह (MEA) में एक नया प्रवासी नीति प्रभाग शुरू करता है जिसे केंद्रीय प्रवास प्रबंधन प्राधिकरण के रूप में संदर्भित किया जाएगा।
- यह एक प्रवासी नीति और योजना ब्यूरो के निर्माण का प्रस्ताव करता है तथा प्रवासी प्रशासन ब्यूरो दिन-प्रतिदिन के परिचालन मामलों को संभालेगा एवं प्रवासियों के कल्याण की देखरेख करेगा।
- यह प्रवासियों के कल्याण और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये एक मुख्य प्रवासी अधिकारी के अधीन नोडल एजेंसियों का प्रस्ताव करता है।
- यह सरकारी अधिकारियों को श्रमिकों द्वारा विधेयक के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन किये जाने पर उनके पासपोर्ट रद्द या निलंबित करने और 50,000 रुपए तक का जुर्माना लगाकर दंडित करने की अनुमति देता है।
- विधेयक को लागू कर इसका उपयोग उन श्रमिकों पर नकेल कसने हेतु एक उपकरण के रूप में किया जा सकता है जो अपंजीकृत दलालों के माध्यम से या पर्यटक वीज़ा जैसे अनियमित व्यवस्था के माध्यम से प्रवास करते हैं।
- प्रस्तावित कानून मानव संसाधन एजेंसियों के पंजीकरण, रख-रखाव, वैधता और नवीनीकरण तथा प्रमाण पत्र को रद्द करने का भी प्रावधान करेगा।
- इसके अलावा अधिकारियों को सिविल कोर्ट की कुछ शक्तियों का अधिकार होगा।
विधेयक की आवश्यकता:
- श्रम प्रवास उत्प्रवास अधिनियम, 1983 द्वारा नियंत्रित होता है जो सरकार द्वारा प्रमाणित भर्ती एजेंटों, सार्वजनिक या निजी एजेंसियों के माध्यम से व्यक्तियों को काम पर रखने के लिये एक तंत्र स्थापित करता है।
- यह संभावित नियोक्ताओं के लिये श्रमिकों की व्यवस्था करने हेतु एजेंटों के दायित्वों की रूपरेखा तैयार करता है, सेवा शुल्क की सीमा निर्धारित करता है और श्रमिकों की यात्रा तथा रोज़गार दस्तावेज़ों की सरकारी समीक्षा की व्यवस्था करता है (जिसे उत्प्रवास मंज़ूरी के रूप में जाना जाता है)।
- उत्प्रवास अधिनियम, 1983 को खाड़ी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर उत्प्रवास के विशिष्ट संदर्भ में अधिनियमित किया गया है, जो वर्तमान में उत्प्रवास के व्यापक भू-आर्थिक, भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक प्रभाव को संबोधित करने में विफल रहा है।
- वर्षों से प्रवासी श्रमिकों की स्थिति की स्वतंत्र जाँच ने गंभीर शोषणकारी प्रथाओं को रेखांकित किया है, जिनमें शामिल हैं:
- अधिक भर्ती शुल्क
- अनुबंध प्रतिस्थापन
- धोखाधड़ी
- पासपोर्ट प्रतिधारण
- मज़दूरी का भुगतान न करना या कम भुगतान
- खराब आवास की स्थिति
- भेदभाव और दुर्व्यवहार के अन्य रूप
- उदाहरण के लिये हाल के महीनों में मीडिया रिपोर्टों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि कैसे अरब खाड़ी राज्यों/पश्चिम एशिया में अधिकांश प्रवासी श्रमिकों की मृत्यु दिल के दौरे और श्वसन विफलताओं की वजह से होती है।
संबद्ध मुद्दे:
- मानवाधिकार फ्रेमवर्क की कमी: प्रवासियों और उनके परिवारों के अधिकारों को सुरक्षित करने के उद्देश्य से एक मानवाधिकार ढाँचे/ फ्रेमवर्क की कमी के कारण विधेयक की आलोचना की जाती है। उदाहरण :
- कानून के तहत दंडात्मक प्रावधान, प्रवासी कामगारों के लिये विकल्पों का अपराधीकरण करते हैं, क्योंकि वे कानून से अनभिज्ञ होते हैं या नियोक्ताओं के प्रभाव में या बस एक अच्छी नौकरी खोजने के लिये तत्पर होते हैं।
- इसके अलावा एक अनियमित स्थिति में प्रवासियों को डर रहता है कि उन पर जुर्माना लगाया जा सकता है या उनका पासपोर्ट रद्द किया जा सकता है, उनसे की जाने वाली दुर्व्यवहार की घटना की शिकायत करने या समाधान करने की संभावना कम होती है।
- अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं: विधेयक जनशक्ति एजेंसियों को श्रमिकों से सेवा शुल्क लेने की अनुमति देता है, और यहाँ तक कि एजेंटों को अपनी सीमा निर्धारित करने की भी अनुमति देता है।
- हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के सामान्य सिद्धांत यह मानते हैं कि भुगतान का वहन नियोक्ता को करना चाहिये न कि श्रमिकों को।
- कामगारों द्वारा भुगतान की जाने वाली भर्ती फीस उनकी बचत को खत्म कर देती है, उन्हें उच्च ब्याज ऋण लेने के लिये मज़बूर करती है, श्रमिकों को बंधुआ श्रमिक के रूप में ऋण बंधन की स्थिति में डाल देती है।
- न्यून लिंग आयाम: यह विधेयक श्रम प्रवास के लिंग आयामों को भी पर्याप्त रूप से प्रतिबिंबित नहीं करता है।
- महिलाओं की भर्ती में उनके समकक्षों की तुलना में सीमित एजेंसियाँ होती हैं तथा हाशिये पर स्थित वर्ग के अनौपचारिक क्षेत्रों और/या अलग-अलग व्यवसायों में नियोजित होने की अधिक संभावना होती है जिसमें श्रम, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और यौन शोषण सामान्य मुद्दे हैं।
आगे की राह
- समावेशी विकास सुनिश्चित करने और संकटपूर्ण प्रवास को कम करने के लिये भारत को प्रवास केंद्रित नीतियों, रणनीतियों और संस्थागत तंत्र तैयार करने की आवश्यकता है।
- इससे गरीबी में कमी और सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की भारत की संभावनाओं में वृद्धि होगी।
स्रोत : द हिंदू
दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन विधेयक), 2021
प्रिलिम्स के लिये:स्विस चैलेंज, कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया, राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण मेन्स के लिये:दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन विधेयक), 2021 के प्रावधान एवं इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने लोकसभा में दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन विधेयक), 2021 पेश किया।
- विधेयक अप्रैल 2021 में प्रख्यापित दिवाला और दिवालियापन संहिता संशोधन अध्यादेश 2021 को प्रतिस्थापित करने के लिये तैयार है।
- इसने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिये 1 करोड़ रुपए तक की चूक के साथ एक वैकल्पिक दिवाला समाधान प्रक्रिया शुरू की, जिसे प्री-पैक इन्सॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस (Pre-pack Insolvency Resolution Process- PIRP) कहा जाता है।
- मार्च 2021 में दिवाला कानून समिति (Insolvency Law Committee- ILC) की एक उप-समिति ने दिवाला और दिवालियापन संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code- IBC), 2016 की मूल संरचना के भीतर एक पूर्व-पैक ढाँचे की सिफारिश की।
दिवाला और दिवालियापन संहिता:
- इसे वर्ष 2016 में अधिनियमित किया गया था। यह व्यावसायिक फर्मों के दिवाला समाधान से संबंधित विभिन्न कानूनों को समाहित करता है।
- यह दिवालियापन की समस्या के समाधान के लिये सभी वर्गों के देनदारों और लेनदारों को एकसमान मंच प्रदान करने के लिये मौजूदा विधायी ढाँचे के प्रावधानों को मज़बूत करता है।
नोट
- इन्सॉल्वेंसी: यह एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें कोई व्यक्ति या कंपनी अपने बकाया ऋण चुकाने में असमर्थ होती है।
- बैंकरप्सी: यह एक ऐसी स्थिति है जब किसी सक्षम न्यायालय द्वारा एक व्यक्ति या संस्था को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और न्यायालय द्वारा इसका समाधान करने तथा लेनदारों के अधिकारों की रक्षा करने के लिये उचित आदेश दिया गया हो। यह किसी कंपनी अथवा व्यक्ति द्वारा ऋणों का भुगतान करने में असमर्थता की कानूनी घोषणा है।
प्रमुख बिंदु
प्रमुख प्रावधान:
- संकटग्रस्त कॉर्पोरेट देनदारों (Distressed Corporate Debtor) को नए तंत्र के अंतर्गत बकाया ऋण की समस्या को हल करने के लिये अपने दो-तिहाई लेनदारों के अनुमोदन के साथ एक PIRP शुरू करने की अनुमति है।
- कॉर्पोरेट देनदार वह व्यक्ति है जो किसी अन्य व्यक्ति को कर्ज़ देता है।
- यदि परिचालक लेनदारों को उनकी बकाया राशि का 100% भुगतान नहीं करता है, तो PIRP संकटग्रस्त कॉर्पोरेट देनदार द्वारा प्रस्तुत समाधान योजना के लिये स्विस चैलेंज (Swiss Challenge) की भी अनुमति देता है।
- स्विस चैलेंज बोली लगाने का एक तरीका है, जिसे अक्सर सार्वजनिक परियोजनाओं में इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें इच्छुक पार्टी अनुबंध के लिये प्रस्ताव या परियोजना हेतु बोली प्रक्रिया शुरू करती है।
PIRP के विषय में:
- यह सार्वजनिक बोली प्रक्रिया के बजाय सुरक्षित लेनदारों और निवेशकों के बीच समझौते के माध्यम से संकटग्रस्त कंपनी के ऋण का समाधान करता है।
- दिवाला कार्यवाही की यह प्रणाली पिछले एक दशक में ब्रिटेन और यूरोप में दिवाला समाधान के लिये तेज़ी से लोकप्रिय तंत्र बन गई है।
- इसका उद्देश्य मुख्य रूप से MSMEs को अपनी देनदारियों के पुनर्गठन का अवसर प्रदान करना और पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करते हुए उन्हें शुरू करना है ताकि लेनदारों को भुगतान करने से बचने के लिये फर्मों द्वारा सिस्टम का दुरुपयोग न किया जाए।
- PIRP के दौरान देनदार कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (Corporate Insolvency Resolution Process) के विपरीत अपनी संकटग्रस्त फर्म के नियंत्रण में रहते हैं।
- PIRP सिस्टम के अंतर्गत वित्तीय लेनदार संभावित निवेशक के साथ शर्तों के लिये सहमत होंगे और राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Tribunal) से समाधान योजना का अनुमोदन प्राप्त करेंगे।
प्री-पैक की आवश्यकता:
- CIRP एक अधिक समय लेने वाला प्रस्ताव है। दिसंबर 2020 के अंत में चल रही 1717 दिवाला समाधान कार्यवाहियों में से 86% से अधिक ने 270 दिन की समयावधि को पार कर लिया था।
- IBC के तहत हितधारकों को दिवाला कार्यवाही शुरू होने के 330 दिनों के भीतर CIRP को पूरा करना आवश्यक है।
- CIRPs में विलंब के प्रमुख कारणों में से एक पूर्ववर्ती प्रमोटरों और संभावित बोली लगाने वालों द्वारा लंबे समय तक मुकदमेबाज़ी करना है।
प्री-पैक की मुख्य विशेषताएंँ:
- दिवाला व्यावसायिक:
- प्री-पैक के तहत आमतौर पर प्रक्रिया के संचालन हेतु हितधारकों की सहायता के लिये एक दिवाला व्यवसायी (Insolvency Practitioner) की सेवाओं की आवश्यकता होती है।
- व्यवसायी के अधिकार की सीमा विभिन्न क्षेत्राधिकार में भिन्न होती है।
- सहमति प्रक्रिया:
- यह एक सहमति प्रक्रिया की परिकल्पना करता है जिसमें प्रक्रिया के औपचारिक भाग को लागू करने से पहले, सहमति प्रक्रिया में तनाव को समाप्त करने हेतु कार्रवाई के दौरान हितधारकों के मध्य पूर्व समझ विकसित करना या अनुमोदन शामिल है।
- न्यायालय के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं:
- इसे लागू करने हेतु हमेशा न्यायालय की मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होती है। जहांँ भी इसे अनुमोदन की आवश्यकता होती है, वहाँ न्यायालय की कार्यवाही अक्सर पार्टियों के व्यावसायिक ज्ञान से निर्देशित होती है।
- न्यायालय द्वारा अनुमोदित प्री-पैक प्रक्रिया का परिणाम सभी हितधारकों के लिये बाध्यकारी है।
प्री-पैक का महत्त्व:
- त्वरित समाधान
- यह अधिकतम 120 दिनों तक सीमित होता है, जिसमें 90 दिन हितधारकों के लिये ‘नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल’ (NCLT) के समक्ष समाधान योजना प्रस्तुत करने के लिये होते हैं।
- MSMEs को अपने ऋणों के पुनर्गठन के लिये मार्ग प्रदान करने के अलावा प्री-पैक योजना सामान्य CIRPs की तुलना में तीव्र समाधान तंत्र प्रदान कर NCLT के बोझ को कम कर सकती है।
- व्यवसाय में कम-से-कम व्यवधान
- समाधान पेशेवरों के बजाय प्री-पैक के मामले में कंपनी का नियंत्रण मौजूदा प्रबंधन के पास ही रहता है, इसलिये व्यवसाय में व्यवधान को कम किया जा सकता है और कर्मचारियों, आपूर्तिकर्त्ताओं, ग्राहकों तथा निवेशकों के विश्वास को बनाए रखा जा सकता है।
- यह संपूर्ण देयता पक्ष को संबोधित करता है:
- PIRP कॉर्पोरेट देनदारों को उधारदाताओं की सहमति से पुनर्गठन करने और कंपनी के संपूर्ण दायित्व को संबोधित करने में मदद करेगा।
PIRP की चुनौतियाँ:
- अतिरिक्त पूंजी जुटाना:
- प्रारंभ में कॉर्पोरेट देनदार (Corporate Debtor) निवेशकों या बैंकों से अतिरिक्त पूंजी या ऋण नहीं जुटा सकती हैं, क्योंकि इन निवेशकों और उधारदाताओं द्वारा प्रदान किये जा रहे धन की वसूली में जोखिम शामिल है।
- लघु समयावधि:
- PIRP के तहत समाधान योजना 90 दिनों की है तथा योजना के समर्थन के लिये निर्णायक प्राधिकरण (AA) को अतिरिक्त 30 दिन दिये गए हैं। लेनदारों की समिति (COC) के सदस्यों के लिये इस छोटी अवधि के भीतर बिना किसी व्यापक पैरामीटर के समाधान योजना पर निर्णय लेना चुनौतीपूर्ण है, जिस पर समाधान योजना को मंज़ूरी दी जाए।
आगे की राह
- जबकि PIRP व्यवहार्य MSMEs की रक्षा के लिये एक सामयिक प्रयास है, यह संभावना जताई जाती है कि अब केवल MSMEs के लिये इसे चालू करना एक अच्छे प्री-पैक की दिशा में पहला कदम हो सकता है जो BC की तरह भविष्य में बहुत व्यापक कवरेज की ओर ले जाएगा तथा इसके समय और न्यायशास्त्र के साथ विकसित होने की अपेक्षा की जाती है।
- सरकार को प्री-पैक समाधान योजनाओं से निपटने के लिये एनसीएलटी की विशिष्ट बेंच स्थापित करने पर विचार करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उन्हें समयबद्ध तरीके से लागू किया गया है।
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
FCRA प्रमाणपत्र का निलंबन
प्रिलिम्स के लिये:वित्तीय कार्रवाई कार्य बल, भारत मूल के कार्डधारक मेन्स के लिये:विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010, विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2020 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल ( Commonwealth Human Rights Initiative- CHRI) ने अपने विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (Foreign Contribution Regulation Act- FCRA) प्रमाणपत्र को 180 दिनों तक निलंबित करने के गृह मंत्रालय के निर्णय को चुनौती दी है।
- गृह मंत्रालय (MHA) ने FCRA अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के उल्लंघन में CHRI’s के प्रमाणपत्र को निलंबित कर दिया था।
प्रमुख बिंदु:
विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010:
- भारत में व्यक्तियों के विदेशी धन को एफसीआरए अधिनियम के तहत विनियमित किया जाता है और गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
- व्यक्तियों को MHA की अनुमति के बिना विदेशी राशि स्वीकार करने की अनुमति है।
- हालांँकि ऐसे विदेशी अंश की स्वीकृति हेतु मौद्रिक सीमा 25,000 रुपए से कम होगी।
- यह अधिनियम इस बात को सुनिश्चित करता है कि विदेशी अंश प्राप्त करने वाले उस निर्दिष्ट उद्देश्य का पालन करते हैं जिसके लिये इसे प्राप्त किया गया है।
- अधिनियम के तहत संगठनों को हर पांँच वर्ष में अपना पंजीकरण कराना आवश्यक है।
विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2020:
- विदेशी अंशदान स्वीकार करने पर रोक: अधिनियम लोक सेवकों को विदेशी अंशदान प्राप्त करने से रोकता है। लोक सेवक में कोई भी व्यक्ति शामिल हो सकता है जो सेवा में है या जिसे सरकार द्वारा भुगतान किया जाता है या किसी सार्वजनिक कर्तव्य के प्रदर्शन हेतु सरकार द्वारा पारिश्रमिक दिया जाता है।
- विदेशी अंशदान का अंतरण: अधिनियम विदेशी अंशदान को स्वीकार करने के लिये पंजीकृत व्यक्ति के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को विदेशी अंशदान के हस्तांतरण पर रोक लगाता है।
- पंजीकरण के लिये आधार: अधिनियम विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले व्यक्ति, सभी पदाधिकारियों, निदेशकों या प्रमुख पदाधिकारियों हेतु एक पहचान दस्तावेज़ के रूप में आधार संख्या को अनिवार्य बनाता है।
- FCRA खाता: अधिनियम में कहा गया है कि विदेशी योगदान केवल भारतीय स्टेट बैंक, नई दिल्ली की ऐसी शाखाओं जो FCRA खाते के रूप में बैंक द्वारा निर्दिष्ट हैं, में प्राप्त किया जाना चाहिये।
- प्रशासनिक उद्देश्यों के लिये विदेशी अंशदान के उपयोग में कमी: अधिनियम प्रस्ताव करता है कि प्राप्त कुल विदेशी धन का 20% से अधिक का खर्च प्रशासनिक कार्यों हेतु नहीं किया जा सकता है। FCRA, 2010 में यह सीमा 50% थी।
- प्रमाण पत्र का समर्पण: अधिनियम केंद्र सरकार को किसी व्यक्ति को अपना पंजीकरण प्रमाण पत्र के समर्पण (Surrender of Certificate) की अनुमति देता है।
- अन्य विनियम:
- विदेशी अंशदान का दायरा बढ़ाना: मौजूदा नियमों के अंतर्गत किसी भी विदेशी/विदेशी स्रोत द्वारा भारतीय रुपए में दिये गए दान, जिसमें भारतीय मूल के विदेशी जैसे- भारत के विदेशी नागरिक या भारतीय मूल के कार्डधारक शामिल हैं, को भी विदेशी योगदानकर्त्ता के रूप में माना जाना चाहिये।
- FATF के मानकों को पूरा करना: दिशानिर्देशों में कहा गया है कि गैर-सरकारी संगठनों द्वारा वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force- FATF) के मानकों के अनुसार अच्छी प्रथाओं का पालन किया जाना चाहिये।
- इसने गैर-सरकारी संगठनों (NGO) से किसी भी दाता या प्राप्तकर्त्ता की "संदिग्ध गतिविधियों" के विषय में मंत्रालय को सूचित करने और "भर्ती के समय अपने कर्मचारियों की उचित जाँच करने" के लिये कहा।
CHRI का तर्क:
- निलंबन आदेश FCRA अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित योजना के ढाँचे के विपरीत है और यहाँ तक कि निलंबन आदेश भी बिना कोई जाँच शुरू किये पारित कर दिया गया था।
- निलंबन आदेश पूरी तरह से गलत तथ्यों पर आधारित था और प्राकृतिक न्याय के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
FCRA से संबंधित मुद्दे:
- दायरा परिभाषित नहीं है: यह राष्ट्रीय हित या राज्य के आर्थिक हित के लिये हानिकारक किसी भी गतिविधि हेतु विदेशी योगदान की प्राप्ति को प्रतिबंधित करता है।
- हालाँकि "सार्वजनिक हित" पर कोई स्पष्ट मार्गदर्शन नहीं है।
- मौलिक अधिकारों को सीमित करता है: FCRA प्रतिबंधों का संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(सी) के अंतर्गत बोलने की स्वतंत्रता तथा संघ बनाने की स्वतंत्रता दोनों अधिकारों पर गंभीर परिणाम देखा गया है।
राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (CHRI)
- ‘राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल’ (CHRI) एक स्वतंत्र, गैर-पक्षपातपूर्ण, अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है, जो राष्ट्रमंडल में मानव अधिकारों के व्यावहारिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये कार्य करता है।
- मुख्यालय: नई दिल्ली
राष्ट्रमंडल
- उत्पत्ति: यह दुनिया के सबसे पुराने राष्ट्रीय राजनीतिक संघों में से एक है। इसकी जड़ें ब्रिटिश साम्राज्य के इतिहास में खोजी जा सकती हैं, जब कुछ देशों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिटेन का शासन था।
- इनमें से कुछ देश ब्रिटेन के सम्राट को राज्य का प्रमुख मानते हुए स्वशासी बन गए। उन्होंने ‘ब्रिटिश कॉमनवेल्थ ऑफ नेशंस’ का गठन किया।
- वर्ष 1949 में राष्ट्रमंडल अस्तित्त्व में आया तब से अफ्रीका, अमेरिका, एशिया और यूरोप स्थित कई स्वतंत्र देश राष्ट्रमंडल में शामिल हो चुके हैं।
- सदस्यता: राष्ट्रमंडल 54 स्वतंत्र और संप्रभु राज्यों का एक स्वैच्छिक संघ है।
- इसकी सदस्यता स्वतंत्र एवं समान स्वैच्छिक सहयोग पर आधारित है। रवांडा और मोज़ाम्बिक का ब्रिटिश साम्राज्य से कोई ऐतिहासिक संबंध नहीं है।
आगे की राह
- विदेशी योगदान पर अत्यधिक विनियमन उन गैर-सरकारी संगठनों के कामकाज़ को प्रभावित कर सकता है, जो ज़मीनी स्तर पर सरकारी योजनाओं को लागू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे उन अंतरालों को कम करने में सहायता करते हैं, जहाँ सरकार अपना काम करने में विफल रहती है।
- आवश्यक है कि ये विनियमन राष्ट्रीय सीमाओं के पार संसाधनों के साझाकरण में बाधा न उत्पन्न करें, क्योंकि सीमा पार संसाधनों का साझाकरण वैश्विक समुदाय के कामकाज़ के लिये काफी आवश्यक है और इसे तब तक हतोत्साहित नहीं किया जाना चाहिये जब तक कि यह मानने का कारण न हो कि धन का उपयोग अवैध गतिविधियों के लिये किया जा रहा है।
स्रोत: द हिंदू
काले धन के खतरे से निपटना
प्रिलिम्स के लिये:लोकसभा, काला धन, दोहरा कराधान अपवंचन समझौता, भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम-2018 मेन्स के लिये:काले धन के खतरे से निपटने के लिये किये गए विभिन्न उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री ने लोकसभा में कहा है कि सरकार के काले धन से संबंधित कानून ने ऐसे कई उदाहरणों का पता लगाने में मदद की है जहाँ भारतीयों को विदेशों में अघोषित आय जमा करते हुए पाया गया है।
प्रमुख बिंदु:
काला धन:
- आर्थिक सिद्धांत में काले धन की कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है, इसके लिये कई अलग-अलग शब्दों जैसे- समानांतर अर्थव्यवस्था, काला धन, काली आय, बेहिसाब अर्थव्यवस्था, अवैध अर्थव्यवस्था और अनियमित अर्थव्यवस्था आदि के रूप से उपयोग किया जा रहा है।
- काले धन की सबसे सरल परिभाषा संभवतः उस धन के रूप में हो सकती है जिसे कर प्राधिकारियों से छिपाया गया हो।
- यह दो व्यापक श्रेणियों से संबंधित हो सकती है:
- अवैध गतिविधि:
- अवैध गतिविधि के माध्यम से अर्जित धन के बारे में स्पष्ट रूप से कर अधिकारियों को सूचित नहीं किया जाता है, अतः इसे ‘काला धन’ कहते हैं।
- कानूनी लेकिन सूचित नहीं की गई गतिविधि:
- दूसरी श्रेणी में कानूनी गतिविधि से संबंधित आय शामिल है जिसके संबंध में कर अधिकारियों को सूचित नहीं किया जाता है।
- अवैध गतिविधि:
प्रभाव:
- राजस्व की हानि:
- काला धन कर के एक हिस्से को समाप्त कर देता है और इस प्रकार सरकार का घाटा बढ़ जाता है।
- सरकार को इस घाटे को करों में वृद्धि, सब्सिडी में कमी और उधार में वृद्धि करके संतुलित करना होता है।
- उधार लेने से ब्याज के बोझ के कारण सरकार के ऋण में और वृद्धि होती है। अगर सरकार घाटे को संतुलित करने में असमर्थ है, तो उसे खर्च कम करना होगा, जो कि विकास को प्रभावित करता है।
- धन संचलन:
- आमतौर पर लोग काले धन को सोने के तौर पर, अचल संपत्ति और अन्य गुप्त तरीकों के रूप में रखते हैं।
- ऐसा पैसा मुख्य अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं बनता है और इसलिये आमतौर पर प्रचलन से बाहर रहता है।
- काला धन अमीरों के बीच संचालित होता रहता है और उनके लिये अधिक अवसर पैदा करता है।
- उच्च मुद्रास्फीति:
- अर्थव्यवस्था में बेहिसाब काला धन होने से मुद्रास्फीति की स्थिति अधिक देखी जाती है, जो गरीबों को सबसे ज़्यादा प्रभावित करती है।
- यह अमीर और गरीब के बीच असमानता को भी बढ़ाता है।
सरकार द्वारा की गई पहलें:
- विधायी प्रयास:
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
- दोहरा कराधान अपवंचन समझौता (DTAAs)
- भारत दोहरे कराधान से बचाव के लिये सूचनाओं के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से दोहरा कराधान अपवंचन समझौते/कर सूचना विनिमय समझौतों/बहुपक्षीय सम्मेलनों के तहत विदेशी सरकारों के साथ सक्रिय रूप से वार्ता कर रहा है।
- सूचना का स्वचालित आदान-प्रदान:
- भारत वित्तीय सूचना के सक्रिय साझाकरण के लिये ‘ऑटोमेटिक एक्सचेंज ऑफ इनफार्मेशन’ नाम से एक बहुपक्षीय व्यवस्था स्थापित करने की दिशा में अग्रणी रहा है,जो कर चोरी से निपटने के वैश्विक प्रयासों में सहायता करेगा।
- सामान्य रिपोर्टिंग मानक पर आधारित ‘ऑटोमेटिक एक्सचेंज ऑफ इनफार्मेशन’ व्यवस्था वर्ष 2017 से शुरू है, जिससे भारत अन्य देशों में भारतीय निवासियों के वित्तीय खाते की जानकारी प्राप्त कर सकता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका का विदेशी खाता कर अनुपालन अधिनियम:
- भारत ने इस अधिनियम के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ सूचना साझा करने हेतु समझौता किया है।
- दोहरा कराधान अपवंचन समझौता (DTAAs)
आगे की राह
चूंकि काले धन की समस्या पर अभी भी काबू नहीं पाया जा सका है,इसलिये इससे निपटने के लिये और भी बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है। कुछ मज़बूत कदम जो उठाए जा सकते हैं वे इस प्रकार हैं:
- संबंधित उपयुक्त विधायी ढाँचा: सार्वजनिक खरीद, विदेशी अधिकारियों द्वारा ली जाने वाली रिश्वत की रोकथाम, नागरिक शिकायत निवारण, सूचना प्रदाता (व्हिसल ब्लोअर) सुरक्षा, यूआईडी आधार।
- अवैध धन से निपटने वाली संस्थाओं की स्थापना और उनका सुदृढ़ीकरण: सूचना के आदान-प्रदान के लिये आपराधिक जाँच प्रकोष्ठ निदेशालय, मॉरीशस और सिंगापुर में आयकर विदेशी इकाइयाँ, ITOU, CBDT के तहत विदेशी कर, कर अनुसंधान और जाँच प्रभाग को मज़बूत करने में बहुत उपयोगी रहे हैं।
- चुनावी सुधार: काले धन के उपयोग के लिये चुनाव सबसे बड़े चैनलों में से एक है। चुनावों में धनबल को कम करने के लिये उचित सुधार।
- प्रभावी कार्रवाई के लिये कर्मियों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना: संबंधित क्षेत्र में घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षण। उदाहरण के लिये वित्तीय आसूचना इकाई-भारत (Financial Intelligence Unit-India) अपने कर्मचारियों को धनशोधन रोधी, आतंकवादी वित्तपोषण और संबंधित आर्थिक मुद्दों पर प्रशिक्षण के अवसर प्रदान कर उनके कौशल को नियमित रूप से उन्नत करने हेतु सक्रिय प्रयास करती है।
स्रोत: पीआईबी
सामरिक पेट्रोलियम भंडार के अंतर्गत नई सुविधाएँ
प्रिलिम्स के लियेसामरिक पेट्रोलियम भंडार, सार्वजनिक-निजी भागीदारी मेन्स के लियेसामरिक पेट्रोलियम भंडार : महत्त्व व चुनौतियाँ, भारत के लिये सामरिक पेट्रोलियम भंडार की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सामरिक पेट्रोलियम भंडार (SPR) कार्यक्रम के तहत सरकार ने दो अतिरिक्त सुविधाएँ स्थापित करने की मंज़ूरी दे दी है।
- वर्ष 2020 में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट को देखते हुए भारत ने अपने सामरिक पेट्रोलियम भंडार को भरना शुरू कर दिया।
प्रमुख बिंदु
नई सुविधाएँ:
- नई सुविधाओं में भूमिगत भंडारण की कुल 6.5 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) भंडारण क्षमता के साथ वाणिज्यिक-सह-सामरिक सुविधाएँ होंगी:
- चंदीखोल (ओडिशा) (4 MMT)
- पाडुर (कर्नाटक) (2.5 MMT)
- इन्हें SPR कार्यक्रम के दूसरे चरण के तहत सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल में बनाया जाएगा।
मौजूदा सुविधाएँ:
- कार्यक्रम के पहले चरण के तहत भारत सरकार ने 3 स्थानों पर 5.33 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) की कुल क्षमता के साथ सामरिक पेट्रोलियम भंडारण (SPR) सुविधाएँ स्थापित की हैं:
- विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश) (1.33 MMT).
- मंगलौर (कर्नाटक) (1.5 MMT).
- पाडुर (कर्नाटक) (2.5 MMT).
- पहले चरण के तहत स्थापित पेट्रोलियम भंडार की प्रकृति सामरिक महत्त्व के लिये है। इन भंडारों में संग्रहीत कच्चे तेल का उपयोग तेल की कमी की स्थिति में किया जाएगा और ऐसा तब होगा जब भारत सरकार की ओर से इसकी घोषणा की जाएगी।
सामरिक पेट्रोलियम भंडार
परिचय:
- सामरिक पेट्रोलियम भंडार कच्चे तेल से संबंधित किसी भी संकट जैसे- प्राकृतिक आपदाओं, युद्ध या अन्य आपदाओं के दौरान आपूर्ति में व्यवधान से निपटने के लिये कच्चे तेल के विशाल भंडार होते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा कार्यक्रम (International Energy Programme- IEP) पर समझौते के अनुसार, कम-से-कम 90 दिनों के लिये शुद्ध तेल आयात के बराबर आपातकालीन तेल का स्टॉक रखना अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency- IEA) के प्रत्येक सदस्य देश का दायित्व है।
- गंभीर तेल आपूर्ति व्यवधान के मामले में IEA सदस्य सामूहिक कार्रवाई के हिस्से के रूप में इन शेयरों को बाज़ार में जारी करने का निर्णय ले सकते हैं।
- भारत वर्ष 2017 में IEA का सहयोगी सदस्य बना।
- ओपेक (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) द्वारा पहली बार तेल के संकट के बाद सामरिक भंडार की इस अवधारणा को वर्ष 1973 में संयुक्त राज्य अमेरिका में लाया गया था।
- भूमिगत भंडारण, पेट्रोलियम उत्पादों के भंडारण की अब तक की सबसे किफायती विधि है, क्योंकि भूमिगत भूमिगत भंडारण व्यवस्था भूमि के बड़े हिस्से की आवश्यकता को समाप्त करती है, निम्न वाष्पीकरण सुनिश्चित करती है और चूँकि गुहा रूप संरचनाएँ समुद्र तल से काफी नीचे बनाई जाती हैं, इसलिये जहाज़ों द्वारा इनमें कच्चे तेल का निर्वहन करना आसान होता है।
- भारत में सामरिक कच्चे तेल की भंडारण सुविधाओं के निर्माण कार्य का प्रबंधन भारतीय सामरिक पेट्रोलियम भंडार लिमिटेड (Indian Strategic Petroleum Reserves Limited- ISPRL) द्वारा किया जा रहा है।
- ISPRL पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत तेल उद्योग विकास बोर्ड (OIDB) की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
- नई सुविधाओं के चालू होने के बाद कुल 22 दिनों (10+12) में खपत किये जा सकने योग्य तेल की मात्रा उपलब्ध कराई जाएगी।
- सामरिक सुविधाओं के साथ भारतीय रिफाइनरीज़ 65 दिनों के कच्चे तेल के भंडारण (औद्योगिक स्टॉक) की सुविधा बनाए रखती हैं।
- इस प्रकार SPR कार्यक्रम के दूसरे चरण के पूरा होने के बाद भारत में कुल 87 दिनों तक (रणनीतिक भंडार द्वारा 22 + भारतीय रिफाइनर द्वारा 65) तक खपत के लिये तेल उपलब्ध कराया जाएगा। यह मात्रा IEA द्वारा 90 दिनों के लिये तेल उपलब्ध कराने के शासनादेश के काफी निकट होगा।
भारत में SPRs की आवश्यकता:
- पर्याप्त क्षमता का निर्माण:
- अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के बाज़ार में होने वाली किसी भी अप्रत्याशित घटना से निपटने के लिये इसकी वर्तमान क्षमता पर्याप्त नहीं है।
- एक दिन में लगभग 5 मिलियन बैरल तेल की खपत के साथ देश का 86% हिस्सा तेल पर निर्भर है।
- ऊर्जा सुरक्षा:
- अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत में उतार-चढ़ाव से भारत को देश की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और मौद्रिक नुकसान से बचने के लिये पेट्रोलियम भंडार बनाने की सख्त ज़रूरत है।
आगे की राह:
- वर्तमान मांग विदेशों में मौजूद ऊर्जा स्रोतों से संबंधित संपत्ति की तलाश करने की है। भारत को मेज़बान देशों में भारतीय संपत्ति के रूप में तेल की खरीद और उसे स्टोर करना चाहिये तथा आवश्यकता पड़ने पर चीन की तरह प्रयोग करना चाहिये।
- भारत को कई देशों के साथ तेल अनुबंध करना चाहिये ताकि किसी एक क्षेत्र के एकाधिकार से बचा जा सके।
- उदाहरण के लिये वर्तमान में भारत खाड़ी क्षेत्र से अधिकांश तेल आयात कर रहा है।
- तेल ऊर्जा का केंद्रीय स्रोत है लेकिन यह सीमित है, इसलिये वैकल्पिक स्रोतों की ओर ध्यान देने की ज़रूरत है।
- विदेशी जहाज़ों में 90% भारतीय तेल का आयात भी एक गंभीर मुद्दा है। भारत को तेल परिवहन के लिये अपने स्वयं के जहाज़ों का अधिग्रहण करने की आवश्यकता है।
स्रोत-पी.आई.बी.
‘कटलैस एक्सप्रेस’ अभ्यास
प्रिलिम्स के लिये‘कटलैस एक्सप्रेस’ अभ्यास, ‘सागर’ पहल मेन्स के लियेपश्चिमी हिंद महासागर का महत्त्व, पश्चिमी हिंद महासागर में भारत की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय नौसेना के जहाज़ ‘तलवार’ ने अफ्रीका के पूर्वी तट पर आयोजित एक बहुराष्ट्रीय प्रशिक्षण अभ्यास ‘कटलैस एक्सप्रेस’ 2021 में भाग लिया।
प्रमुख बिंदु
‘कटलैस एक्सप्रेस’ अभ्यास के विषय में
- यह पूर्वी अफ्रीका और पश्चिमी हिंद महासागर में राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयोजित एक वार्षिक समुद्री अभ्यास है।
- इस अभ्यास के वर्ष 2021 के संस्करण में 12 पूर्वी अफ्रीकी देश, अमेरिका, ब्रिटेन, भारत और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO), ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC), इंटरपोल, यूरोपीय संघ नौसेना बल (EUNAVFOR) तथा क्रिटिकल मैरीटाइम रूट्स इंडियन ओसियन (CRIMARIO) के भागीदार शामिल हैं।
- इस अभ्यास को संयुक्त समुद्री कानून प्रवर्तन क्षमता का आकलन करने और उसमें सुधार करने, राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देने तथा क्षेत्रीय नौसेनाओं के बीच अंतर-संचालन को बढ़ाने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
- भारत का ‘सूचना संलयन केंद्र- हिंद महासागर क्षेत्र’ (IFC-IOR) भी इस अभ्यास में हिस्सा ले रहा है।
- इस अभ्यास में भारत की भागीदारी हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सहयोग हेतु भारत द्वारा घोषित ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region- SAGAR) पहल के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
पश्चिमी हिंद महासागर का महत्त्व:
- पश्चिमी हिंद महासागर का आशय उस क्षेत्र से है जहाँ हिंद महासागर और अरब सागर मिलते हैं। यह उत्तरी अमेरिका, यूरोप तथा एशिया को जोड़ता है, इसलिये रणनीतिक रूप से काफी महत्त्वपूर्ण है।
- पश्चिमी हिंद महासागर (WIO) क्षेत्र में 10 देश शामिल हैं: सोमालिया, केन्या, तंजानिया, मोज़ाम्बिक, दक्षिण अफ्रीका, कोमोरोस, मेडागास्कर, सेशेल्स, मॉरीशस और रीयूनियन द्वीप।
- प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध होने के कारण हाल के वर्षों में विश्व के कई बड़े देशों की रुचि इस क्षेत्र के प्रति काफी बढ़ गई है।
- ऊर्जा सुरक्षा के लिये भारत की मजबूरी और विदेशी संसाधनों पर देश की निर्भरता इसे इस क्षेत्र के करीब लाने में सबसे बड़ा आकर्षण रही है।
WIO क्षेत्र में अंतर-क्षेत्रीय सहयोग की प्रकृति:
- क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने हेतु मेस (MASE) कार्यक्रम: मेस कार्यक्रम को वर्ष 2010 में मॉरीशस में अपनाया गया तथा इसका संचालन संयुक्त रूप से यूरोपीय संघ (EU) और संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) द्वारा किया जाता है।
- कार्यक्रम का प्राथमिक उद्देश्य समुद्री डकैती के खिलाफ क्षेत्रीय रणनीति और कार्ययोजना को लागू करने हेतु पूर्वी एवं दक्षिणी अफ्रीका तथा WIO क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा क्षमता को मज़बूत करना है।
- हिंद महासागर आयोग (IOC) इसका एक हिस्सा है।
- जिबूती आचार संहिता (DCOC): इसे पश्चिमी हिंद महासागर और अदन की खाड़ी में समुद्री चोरी एवं सशस्त्र डकैती को रोकने के विषय से संबंधित एक आचार संहिता एक रूप में जाना जाता है।
- यह पश्चिमी हिंद महासागर के जल पर लागू होने वाली पहली ऐसी आचार संहिता है। इस पर जनवरी 2009 में हस्ताक्षर किये गए थे।
- जिबूती आचार संहिता में जेद्दा संशोधन (DCoC+): इसे वर्ष 2017 में मानव तस्करी और गैर-रिपोर्टेड तथा अनियमित तरीके से मछली पकड़ने सहित अन्य अवैध समुद्री गतिविधियों को कवर करने एवं समुद्री क्षेत्र के सतत् विकास के आधार के रूप में व्यापक समुद्री सुरक्षा मुद्दों को संबोधित करने हेतु राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय क्षमता निर्माण करने के लिये बनाया गया था।
- वर्ष 2017 में सऊदी अरब के जेद्दा में आयोजित ‘जिबूती आचार संहिता’ के लिये हस्ताक्षरकर्त्ताओं की उच्च-स्तरीय बैठक में एक संशोधित आचार संहिता को अपनाया गया, जिसे जिबूती आचार संहिता में जेद्दा संशोधन के रूप में जाना जाता है।
- भारत जिबूती संहिता/जेद्दा संशोधन में शामिल हो गया है।
- हिंद महासागर आयोग: IOC वर्ष 1982 में स्थापित एक अंतर सरकारी संगठन है जिसमें पश्चिमी हिंद महासागर में पांँच छोटे-द्वीप राज्य कोमोरोस, मेडागास्कर, मॉरीशस, रीयूनियन (एक फ्रांँसीसी विभाग) और सेशेल्स शामिल हैं।
- भारत को IOC में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।
- हिंद महासागर रिम एसोसिएशन: हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (Indian Ocean Rim Association- IORA) एक अंतर-सरकारी संगठन है। इसे 7 मार्च, 1997 को स्थापित किया गया था। यह एक क्षेत्रीय मंच है जो सर्वसम्मति-आधारित, विकासवादी और घुसपैठ को रोकने हेतु दृष्टिकोण के माध्यम से समझ और पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग का निर्माण और विस्तार करना चाहता है।
- IORA में 22 सदस्य देश शामिल हैं, जिनमें ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, कोमोरोस, भारत, इंडोनेशिया, ईरान, केन्या, मेडागास्कर, मलेशिया, मालदीव, मॉरीशस, मोज़ाम्बिक, ओमान, सेशेल्स, सिंगापुर, सोमालिया, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, तंजानिया, थाईलैंड, यूएई और यमन शामिल हैं।
INS तलवार
- आईएनएस तलवार भारतीय नौसेना के तलवार-श्रेणी के युद्धपोतों या क्रिवक श्रेणी के स्टील्थ जहाज़ों का प्रमुख पोत/जहाज़है।
- 'मेक इन इंडिया' के तहत गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (GSL) द्वारा रूस से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ क्रिवाक श्रेणी के स्टील्थ जहाज़ों का निर्माण किया जा रहा है। जहाज़ों के लिये इंजन की आपूर्ति यूक्रेन द्वारा की जा रही है।
- अक्तूबर 2016 में भारत और रूस ने चार क्रिवाक या तलवार स्टील्थ फ्रिगेट के लिये एक अंतर-सरकारी समझौते (IGA) पर हस्ताक्षर किये थे।
- पहले दो युद्धपोत रूस के कैलिनिनग्राद में यंतर शिपयार्ड में बनाए जाएंगे, जबकि अन्य दो गोवा शिपयार्ड लिमिटेड में बनाए जाएंगे।
- मौजूदा फ्रिगेट: नौसेना पहले से ही छह क्रिवाक III फ्रिगेट संचालित करती है।
- अप्रैल 2012 और जून 2013 के बीच बेड़े में शामिल हुए नए क्रिवाक युद्धपोत आईएनएस तेग, तरकश तथा त्रिकंद हैं।
- उपयोग: इनका उपयोग मुख्य रूप से दुश्मन पनडुब्बियों एवं बड़े सतह जहाजों को खोजने और नष्ट करने जैसे विभिन्न प्रकार के नौसैनिक मिशनों को पूरा करने हेतु किया जाता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारत का वन आवरण और बंजर भूमि
प्रिलिम्स के लियेभारत वन स्थिति रिपोर्ट 2019 से संबंधित तथ्य, भारतीय वन सर्वेक्षण, बंजर भूमि एटलस, 2019 मेन्स के लियेभारत में बदलते हुए पर्यवारणीय परिदृश्य में वनों की स्थिति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री (MoEFCC) ने देश में वन क्षेत्र के विषय में राज्यसभा (Rajya Sabha) को सूचित किया।
- यह सूचना भारत वन स्थिति रिपोर्ट (India State of Forest Report), 2019 के आधार पर दी गई, जो कि भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India) द्वारा भारत के वनों का 16वाँ द्विवार्षिक मूल्यांकन है।
- बंजर भूमि एटलस (Wasteland Atlas), 2019 के अनुसार देश में बंजर भूमि (Wasteland) के विषय में भी जानकारी प्रदान की गई थी।
प्रमुख बिंदु
वन की परिभाषा:
- 'वन' शब्द को किसी भी केंद्रीय वन अधिनियम, अर्थात् भारतीय वन अधिनियम (1927), या वन संरक्षण अधिनियम (1980) में परिभाषित नहीं किया गया है।
- केंद्र सरकार ने वन को परिभाषित करने के लिये कोई मानदंड निर्धारित नहीं किया है।
- भारतीय वन अधिनियम, 1927 राज्यों को अपने क्षेत्रों में आरक्षित वनों को अधिसूचित करने का अधिकार देता है।
- वनों की परिभाषा को राज्य अपने अनुसार निर्धारित कर सकते हैं। यह विशेषाधिकार राज्यों को सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ (T.N. Godavarman Thirumulpad vs the Union of India), 1996 केस में दिया।
- न्यायालय ने कहा कि"वन" शब्द को उसके "शब्दकोश के अर्थ" के अनुसार समझा जाना चाहिये।
- इस विवरण में सभी वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त वन शामिल हैं, चाहे उन्हें आरक्षित, संरक्षित या अन्यथा के रूप में नामित किया गया हो।
कुल वन क्षेत्र:
- देश में कुल वन क्षेत्र लगभग 7,67,419 वर्ग किलोमीटर है, हालाँकि मंत्रालय ने अभी तक विवादित वन क्षेत्र का निर्धारण नहीं किया है।
श्रेणी-वार वन क्षेत्र:
- आरक्षित वन श्रेणी:
- ये वन क्षेत्र प्रत्यक्ष तौर पर सरकार की निगरानी में होते हैं।
- मवेशी चराने के व्यावसायिक उद्देश्य के लिये इसमें किसी भी सार्वजनिक प्रवेश की अनुमति नहीं होती है।
- इस श्रेणी के अंतर्गत कुल क्षेत्र 4,34,853 वर्ग किलोमीटर है।
- संरक्षित वन श्रेणी:
- इस श्रेणी के वनों की देखभाल सरकार द्वारा की जाती है।
- स्थानीय लोगों को वन में बिना किसी गंभीर क्षति किये वनोपज के उपयोग करने और मवेशी चराने की अनुमति है।
- इस श्रेणी के अंतर्गत कुल क्षेत्र 2,18,924 वर्ग किलोमीटर है।
- असुरक्षित वन श्रेणी
- ये अवर्गीकृत वन होते हैं।
- पेड़ काटने या मवेशियों को चराने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
- इस श्रेणी के अंतर्गत कुल क्षेत्र 1,13,642 वर्ग किलोमीटर है।
बंजर भूमि:
- ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा प्रकाशित बंजर भूमि एटलस, 2019 के अनुसार, देश में कुल बंजर भूमि लगभग 5,57,665.51 वर्ग किलोमीटर है।
- बंजर भूमि को ऐसी भूमि के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसका उपयोग कृषि, व्यावसायिक उपयोग या वन भूमि के रूप में नहीं किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये इसमें उन घास के मैदानों को शामिल किया जा सकता है जिनका उपयोग समुदायों द्वारा पशुओं की चराई के लिये किया जाता है।
सरकार की पहल:
- हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन
- यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत आठ मिशनों में से एक है।
- इसे फरवरी 2014 में देश के जैविक संसाधनों और प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन के खतरे से संबद्ध आजीविका की रक्षा करने एवं पारिस्थितिक स्थिरता, जैव विविधता संरक्षण तथा भोजन- पानी एवं आजीविका- सुरक्षा पर वानिकी के महत्त्वपूर्ण प्रभाव को पहचानने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP):
- इसे निम्नीकृत वन भूमि के वनीकरण के लिये वर्ष 2000 से लागू किया गया है।
- इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (CAMPA Funds):
- इसे 2016 में लॉन्च किया गया था , इसके फंड का 90% राज्यों को दिया जाना है, जबकि 10% केंद्र द्वारा बनाए रखा जाता है।
- धन का उपयोग जलग्रहण क्षेत्रों के उपचार, प्राकृतिक उत्पादन, वन प्रबंधन, वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन, संरक्षित क्षेत्रों व गांवों के पुनर्वास, मानव-वन्यजीव संघर्षो को रोकने, प्रशिक्षण एवं जागरूकता पैदा करने, काष्ठ सुरक्षा वाले उपकरणों की आपूर्ति तथा संबद्ध गतिविधियों के लिये किया जा सकता है।
- नेशनल एक्शन प्रोग्राम टू कॉम्बैट डेज़र्टिफिकेशन
- इसे 2001 में मरुस्थलीकरण से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिये तैयार किया गया था।
- इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना:
- इस योजना को वर्ष 2016 में शुरू किया गया, इसके कुछ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं:
- सूक्ष्म-सिंचाई और अन्य जल बचत प्रौद्योगिकियों (प्रति बूँद अधिक फसल ) को अपनाने हेतु।
- जलभृतों के पुनर्भरण में वृद्धि करना और शहरों के आस-पास के क्षेत्रों में कृषि के लिये उपचारित नगरपालिका आधारित जल के पुन: उपयोग की व्यवहार्यता का पता लगाकर स्थायी जल संरक्षण प्रथाओं की शुरुआत करना तथा परिशुद्ध सिंचाई प्रणाली में अधिक-से-अधिक निजी निवेश को आकर्षित करना।
- इस योजना को वर्ष 2016 में शुरू किया गया, इसके कुछ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं:
वनों के लिये संवैधानिक प्रावधान:
- वनों को भारतीय संविधान की (सातवीं अनुसूची) समवर्ती सूची में शामिल किया गया है।
- 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से वन एवं वन्यजीवों और पक्षियों के संरक्षण को राज्य से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
- संविधान के अनुच्छेद 51 ए (जी) में कहा गया है कि वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा उसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा।
- राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों में अनुच्छेद 48 ए में कहा गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने एवं देश के वनों तथा वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
विधान
- भारत के वन वर्तमान में राष्ट्रीय वन नीति, 1988 द्वारा शासित हैं, जिसका केंद्रीय बिंदु पर्यावरण संतुलन और आजीविका है।
- अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी अधिनियम, 2006 वन में रहने वाले आदिवासी समुदायों तथा अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन संसाधनों पर अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है, जिन पर ये समुदाय आजीविका सहित विभिन्न आवश्यकताओं, आवास और अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक ज़रूरतों हेतु निर्भर हैं।
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
मंकीपॉक्स
प्रिलिम्स के लियेज़ूनोटिक रोग, मंकीपॉक्स मेन्स के लियेज़ूनोटिक रोगों (मंकीपॉक्स) का कारण एवं इन्हें रोकने हेतु उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिका ने नाइजीरिया से यात्रा करने वाले लोगों की निगरानी करना शुरू किया है, क्योंकि उसको डर है कि ये लोग मंकीपॉक्स (Monkeypox) से संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आए हो सकते हैं।
प्रमुख बिंदु
मंकीपॉक्स के विषय में:
- यह एक वायरल ज़ूनोटिक रोग (Zoonotic Disease- जानवरों से मनुष्यों में संचरण होने वाला रोग) है और बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के रूप में पहचाना जाता है, इसलिये इसे मंकीपॉक्स नाम दिया गया है। यह नाइजीरिया की स्थानिक बीमारी है।
- यह रोग मंकीपॉक्स वायरस के कारण होता है, जो पॉक्सविरिडे फैमिली (Poxviridae Family) में ऑर्थोपॉक्सवायरस जीनस (Orthopoxvirus Genus) का सदस्य है।
- वायरस का प्राकृतिक स्रोत अज्ञात है, लेकिन इसे कई जानवरों में पाया गया है।
- मंकीपॉक्स वायरस के स्रोत के रूप में पहचाने जाने वाले जानवरों में बंदर और वानर, विभिन्न प्रकार के कृतंक (चूहों, गिलहरियों और प्रैरी कुत्तों सहित) तथा खरगोश शामिल हैं।
प्रकोप:
- इसे सर्वप्रथम वर्ष 1958 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) में बंदरों में और वर्ष 1970 में मनुष्यों में पाया गया था।
- नाइजीरिया ने वर्ष 2017 में पूर्व में पुष्टि किये गए मामले के 40 वर्ष बाद सबसे बड़े प्रकोप का अनुभव किया है।
- इसके बाद कई पश्चिम और मध्य अफ्रीकी देशों में इस बीमारी की सूचना मिली है।
लक्षण:
- इससे संक्रमित लोगों में चिकन पॉक्स जैसे दिखने वाले दाने निकल आते हैं लेकिन मंकीपॉक्स के कारण होने वाला बुखार, अस्वस्थता और सिरदर्द आमतौर पर चिकन पॉक्स के संक्रमण की तुलना में अधिक गंभीर होते हैं।
- रोग के प्रारंभिक चरण में मंकीपॉक्स को चेचक से अलग किया जा सकता है क्योंकि इसमें लिम्फ ग्रंथि (Lymph Gland) बढ़ जाती है।
संचरण:
- प्राथमिक संक्रमण किसी संक्रमित जानवर के रक्त, शारीरिक तरल पदार्थ या त्वचीय या म्यूकोसल घावों के सीधे संपर्क के माध्यम से होता है। संक्रमित जानवरों का अपर्याप्त पका हुआ माँस खाना भी जोखिम का कारक है।
- मानव-से-मानव संचरण का कारण संक्रमित श्वसन पथ स्राव, संक्रमित व्यक्ति की त्वचा के घावों से या रोगी या घाव से स्रावित तरल पदार्थ द्वारा तथा दूषित वस्तुओं के निकट संपर्क हो सकता है।
- संचरण टीकाकरण या प्लेसेंटा (जन्मजात मंकीपॉक्स) के माध्यम से भी हो सकता है।
संवेदनशीलता:
- यह तेज़ी से फैलता है और संक्रमित होने पर दस में से एक की मौत का कारण बन सकता है।
उपचार और टीका:
- मंकीपॉक्स संक्रमण के लिये कोई विशिष्ट उपचार या टीका उपलब्ध नहीं है। अतीत में मंकीपॉक्स को रोकने में चेचक रोधी टीके को 85% प्रभावी दिखाया गया था।
- वर्ष 1980 में दुनिया को चेचक से मुक्त घोषित कर दिया गया था, इसलिये यह टीका अब व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है।
- वर्तमान में मंकीपॉक्स के प्रसार को रोकने के लिये कोई वैश्विक प्रणाली मौजूद नहीं है।
आगे की राह:
- बेहतर निगरानी और प्रतिक्रिया, बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाना और जंगली जानवरों, विशेष रूप से बंदरों के संपर्क से बचना।
- कोई भी जानवर जो संक्रमित जानवर के संपर्क में आया हो, उसे क्वारंटाइन किया जाना चाहिये, मानक सावधानियों को ध्यान दिया जाना चाहिये और 30 दिनों तक मंकीपॉक्स के लक्षणों का परीक्षण करना चाहिये।
- अन्य बीमारियों पर भी ध्यान देना ज़रूरी है। स्थानिक रोगों से संबंधित रिपोर्ट किये गए मामलों की संख्या में गिरावट आई है क्योंकि लोग कोविड-19 के कारण अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं की देखभाल नहीं कर पा रहे हैं।