शासन व्यवस्था
विदेशी अंशदान संबंधी नए दिशा-निर्देश
- 03 Feb 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में गृह मंत्रालय ने विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत बैंकों के लिये नए विनियमन दिशा-निर्देश जारी किये हैं, जिसके तहत गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) द्वारा किसी भी विदेशी स्रोत (संगठन) से भारतीय रुपए में प्राप्त दान (भले ही वह स्रोत ऐसे दान के समय भारत में स्थित हो) को विदेशी अंशदान ही माना जाएगा।
प्रमुख बिंदु
नए दिशा-निर्देश
- विदेशी योगदान के दायरे का विस्तार: नए नियमों के मुताबिक, किसी भी विदेशी/विदेशी स्रोत, जिसमें विदेशी मूल के भारतीय स्रोतों जैसे- ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया (OCI) और पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन (PIO) कार्डधारक आदि द्वारा भारतीय रुपए में प्राप्त दान को विदेशी अंशदान माना जाएगा।
- FATF के मानकों को पूरा करना: दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) द्वारा वैश्विक वित्तीय प्रहरी- वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) के मानकों के अनुसार प्रथाओं का पालन किया जाना चाहिये।
मौजूदा कानून
- बैंकों द्वारा अनिवार्य रिपोर्टिंग
- सभी बैंकों के लिये 48 घंटे के भीतर केंद्र सरकार को गैर-सरकारी संगठन, संघ या व्यक्ति द्वारा किसी भी विदेशी योगदान की प्राप्ति या उपयोग के संबंध में सूचित करना अनिवार्य है, चाहे वे पंजीकृत हों या नहीं अथवा उन्हें विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत पूर्व अनुमति दी गई है या नहीं।
- निर्धारित बैंकिंग चैनल
- संसद द्वारा सितंबर 2020 में विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम (FCRA), 2020 पारित किया गया था।
- इसके तहत एक नया प्रावधान शामिल किया गया था, जिसके मुताबिक सभी गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के लिये भारतीय स्टेट बैंक की नई दिल्ली शाखा में विदेशी अंशदान प्राप्त करना अनिवार्य है।
- विदेशी अंशदान प्राप्त करने वाले सभी गैर-सरकारी संगठनों को भारतीय स्टेट बैंक की नई दिल्ली शाखा में एक निर्दिष्ट FCRA खाता खोलना होगा या अपने मौजूदा खाते को इससे जोड़ना होगा।
FCRA विनियमन का कारण
- वर्ष 2010 से 2019 के बीच विदेशी अंशदान का वार्षिक अंतर्वाह लगभग दोगुना हो गया है, लेकिन कई विदेशी अंशदान प्राप्तकर्त्ताओं द्वारा अंशदान का उपयोग उस उद्देश्य के लिये नहीं किया जा रहा है जिसके लिये उन्हें पंजीकृत किया गया था अथवा FCRA विनियमन के संशोधित प्रावधानों के तहत पूर्व अनुमति दी गई थी।
- हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ऐसे छह गैर-सरकारी संगठनों का लाइसेंस निलंबित कर दिया था, जिन पर कथित रूप से धार्मिक रूपांतरण के लिये विदेशी योगदान का प्रयोग करने का आरोप था।
- अतः यह सुनिश्चित करने के लिये कि ऐसे अंशदान का देश की आंतरिक सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े, इन्हें सही ढंग से विनियमित करना आवश्यक है।
- हाल ही में राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी (NIA) ने एक विदेशी समूह के विरुद्ध मामला दर्ज किया है, जो भारत में अलगाववादी गतिविधियों के लिये धन मुहैया कराती है।
- इसके माध्यम से विदेशी अंशदान की प्राप्ति और उपयोग में पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकती है।
FCRA से संबंधित विवाद
- अपरिभाषित दायरा: यह अधिनियम देश के ‘राष्ट्रीय और आर्थिक हित’ को ध्यान में रखते हुए हानिकारक गतिविधियों हेतु विदेशी योगदान की प्राप्ति पर प्रतिबंध लगाता है।
- हालाँकि यहाँ इस अधिनियम में ‘राष्ट्रीय हित’ आदि को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है।
- मौलिक अधिकारों को सीमित करता है: FCRA द्वारा लागू प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) और 19(1)(C) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संघ बनाने की स्वतंत्रता के अधिकारों को सीमित करता है।
विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010
- भारत में व्यक्तियों के विदेशी धन को एफसीआरए अधिनियम के तहत विनियमित किया जाता है और गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
- व्यक्ति गृह मंत्रालय की अनुमति के बिना 25,000 रुपए तक के विदेशी योगदान स्वीकार कर सकते हैं।
- विदेशी अंशदान प्राप्तकर्त्ता को अपने उस उद्देश्य को बताना पड़ेगा जिसके लिये वह विदेशी योगदान ले रहा है।
- इस अधिनियम के तहत संगठनों का पंजीकरण पाँच वर्ष के लिये वैध होता है, लेकिन सभी मानदंडों का पालन करने के बाद इसे नवीनीकृत किया जा सकता है।
विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2020
- संशोधन के माध्यम से गैर-सरकारी संगठन (NGOs) या विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले लोगों और संगठनों के सभी पदाधिकारियों, निदेशकों एवं अन्य प्रमुख अधिकारियों के लिये आधार (Aadhaar) को एक अनिवार्य पहचान दस्तावेज़ बना दिया गया था।
- संशोधन के बाद अब कोई भी व्यक्ति, संगठन या रजिस्टर्ड कंपनी विदेशी अंशदान प्राप्त करने के पश्चात् किसी अन्य संगठन को उस विदेशी अंशदान को ट्रांसफर नहीं कर सकती है।
- विदेशी अंशदान केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), नई दिल्ली की उस शाखा में ही प्राप्त किया जाएगा, जिसे केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी।
- अब कोई भी गैर-सरकारी संगठन (NGO) विदेशी अंशदान की 20 प्रतिशत से अधिक राशि का इस्तेमाल प्रशासनिक खर्च पर नहीं कर सकता है।
- ध्यातव्य है कि सरकार द्वारा किये गए इन संशोधनों की राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी आलोचना की गई थी।
आगे की राह
- विदेशी योगदान पर अत्यधिक नियमन गैर-सरकारी संगठनों के काम को प्रभावित कर सकता है हालाँकि ये सरकारी योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर लागू करने में सहायक हैं तथा उस अंतराल को भरते हैं, जहाँ सरकार काम करने में विफल रहती है।
- आवश्यक है कि ये विनियमन वैश्विक समुदाय को अपने कामकाज को सुचारु रूप से करने के लिये महत्त्वपूर्ण संसाधनों के आदान-प्रदान में बाधा उत्पन्न न करें और इस प्रक्रिया को तब तक प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिये जब तक इस तथ्य के स्पष्ट सबूत न हों कि उस धन का उपयोग अवैध गतिविधियों में किया जा रहा है।