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भारतीय अर्थव्यवस्था

निगमित दिवालियापन प्रक्रिया को रोकने हेतु नया अध्यादेश

  • 21 Apr 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये

दिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड

मेन्स के लिये

बड़ी कंपनियों और MSMEs पर महामारी का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs-MCA) ने कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रकोप के कारण लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन के मद्देनज़र कंपनियों के विरुद्ध निगमित दिवालियापन (Corporate Insolvency) की प्रक्रिया को शुरु करने के समय को 6 महीने की अवधि के लिये स्थगित करने का अध्यादेश तैयार किया है।

प्रमुख बिंदु

  • कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के इस निर्णय से कंपनियों को लॉकडाउन की अवधि में दिवालिया होने से बचाया जा सकेगा।
  • ध्यातव्य है कि इससे पूर्व वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि सरकार दिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड (Insolvency and Bankruptcy Code-IBC) की धारा 7, 9 और 10 को निलंबित करेगी।
    • IBC की धारा 7 किसी कंपनी के विरुद्ध दिवालिया प्रक्रिया की शुरुआत से संबंधित है अर्थात् जब कोई कर्ज़ देने वाला व्यक्ति, संस्था या कंपनी, कर्ज़ नहीं चुकाने वाली कंपनी के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के लिये न्यायालय में अपील दायर करता/करती है।
    • IBC की धारा 9 के अनुसार, यदि प्रचालन लेनदार (Operational Creditors) को कॉर्पोरेट देनदार से एक निश्चित अवधि में भुगतान प्राप्त नहीं होता है, तो प्रचालन लेनदार कॉर्पोरेट देनदार के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के लिये न्यायालय में अपील दायर करता है।
    • IBC की धारा 10 एक कंपनी को स्वयं के विरुद्ध दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने हेतु नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (National Company Law Tribunal-NCLT) के समक्ष प्रस्ताव रखने का प्रावधान करती है।
  • कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) ने मार्च माह में COVID-19 के प्रकोप और लॉकडाउन से प्रभावित सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) को राहत प्रदान करने के लिये दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने की सीमा को 1 लाख रुपए से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपए कर दिया था।

IBC और निगमित दिवालियापन 

  • दिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड, 2016 मौजूदा समय की मांग है, क्योंकि यह व्यक्तियों और निगमों, दोनों के लिये दिवालिया प्रक्रिया को व्यापक और सरल बनाता है।
  • इसकी सीमा के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के लोग आते हैं, जिसमें किसानों से लेकर अरबपति व्यवसायी और स्टार्टअप से लेकर बड़े कॉर्पोरेट घराने शामिल हैं। 
  • दिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड समयबद्ध दिवाला और शोधन समाधान (लगभग 180 दिनों के भीतर, जैसी भी परिस्थिति हो) प्रदान करता है। 
  • यदि कोई कंपनी कर्ज़ वापस नहीं चुकाती तो IBC के तहत कर्ज़ वसूलने के लिये उस कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है।
  • इसके लिये NCLT की विशेष टीम कंपनी से बात करती है और कंपनी के प्रबंधन के राजी होने पर कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है।
  • इसके बाद उसकी पूरी संपत्ति पर बैंक का कब्ज़ा हो जाता है और बैंक उस संपत्ति को किसी अन्य कंपनी को बेचकर अपना कर्ज़ वसूल सकता है।
  • IBC में बाज़ार आधारित और समय-सीमा के तहत इन्सॉल्वेंसी समाधान प्रक्रिया का प्रावधान है।
  • IBC की धारा 29 में यह प्रावधान किया गया है कि कोई बाहरी व्यक्ति (थर्ड पार्टी) ही कंपनी को खरीद सकता है।

आगे की राह

  • विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार को प्रस्तावित अध्यादेश में निलंबन की अवधि को 12 माह तक बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ऋण अदायगी पर लगाई गई 3 माह की रोक 31 मई को समाप्त हो रही है, जिसके पश्चात् कंपनियों पर महामारी और लॉकडाउन का प्रभाव दिख सकता है।
  • आवश्यक है कि अध्यादेश को पूर्ण रूप से लागू करने से पूर्व विशेषज्ञों द्वारा दिये जा रहे सुझावों पर गौर किया जाए, ताकि इस अध्यादेश को यथासंभव सुधारों के साथ लागू किया जा सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

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