शासन व्यवस्था
आधार और सोशल मीडिया
- 24 Oct 2019
- 7 min read
प्रीलिम्स के लिये:
आधार से संबंधित तथ्य, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण
मेन्स के लिये:
सोशल मीडिया को आधार से जोड़ने से संबंधित मुद्दे तथा चर्चाएँ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा पेश करते हुए कहा है कि इंटरनेट लोकतांत्रिक राजव्यवस्था में बाधा पहुँचाने के प्रभावकारी उपकरण के रूप में उभर कर सामने आया है।
मुख्य बिंदु:
- जनवरी 2020 से सर्वोच्च न्यायालय आधार को व्यक्तियों के सोशल मीडिया प्रोफाइल से जोड़ने से संबंधित मामलों की सुनवाई प्रारंभ करेगा।
- आधार को सोशल मीडिया से जोड़ने के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय विधि के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों जैसे- क्या आधार को अनिवार्य रूप से व्यक्तिगत सोशल प्रोफाइल से जोड़ना व्यक्ति के निजता के अधिकारों का उल्लंघन होगा तथा यह मध्यस्थों (फेसबुक, व्हाट्सअप आदि) के दायित्वों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन को कैसे प्रभावित करेगा? आदि पर विचार करेगा।
- वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक ऐतिहासिक फैसले में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने के बाद इस मुद्दे पर एक बार फिर से कानूनी बहस छिड़ी है।
- केंद्र सरकार के अनुसार, सोशल मीडिया पर उपस्थित मध्यस्थों के प्रभावी विनियमन तथा मौजूदा नियमों को संशोधित करने में और समय लगेगा।
- फेसबुक, व्हाट्सअप और गूगल ने मद्रास, मध्य प्रदेश और बॉम्बे उच्च न्यायालय में चल रहे इस विषय से संबंधित लगभग चार मामलों को उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरित करने की बात कही है।
- फेसबुक ने तर्क दिया कि इन मामलों में निजता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों से जुड़े सवालों पर विचार किया जाना आवश्यक है। क्योंकि यदि विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा मामलों की अलग-अलग सुनवाई की जाती है तथा उनके द्वारा दिए जाने वाले फैसले परस्पर विरोधी होते हैं तो यह नागरिकों के मौलिक अधिकार को प्रभावित कर सकता है।
सूचना तकनीक अधिनियम-2000 के अनुसार मध्यस्थ (Intermediaries) की परिभाषा:
- सूचना तकनीक अधिनियम-2000 (Information Technology Act, 2000) द्वारा परिभाषित मध्यस्थों में दूरसंचार सेवा प्रदाता, नेटवर्क सेवा प्रदाता, इंटरनेट सेवा प्रदाता, वेब होस्टिंग, सर्च इंजन, ऑनलाइन भुगतान वेबसाइट, ऑनलाइन नीलामी प्लेटफॉर्म, ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट और साइबर कैफ़े शामिल हैं।
- सूचना तकनीक अधिनियम-2000 की धारा 87 केंद्र सरकार को मध्यस्थों को विनियमित करने के लिये नियम बनाने की शक्ति प्रदान करती है। वर्तमान में वर्ष 2011 में बनाए गए नियमों द्वारा मध्यस्थों का विनियमन होता है।
सोशल मीडिया को आधार से जोड़ने से संबंधित कुछ वर्तमान मामले:
- वर्ष 2018 में मद्रास उच्च न्यायालय में पशु सुरक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले दो कार्यकर्त्ताओं द्वारा दायर की गई रिट याचिकाओं में मांग की गई कि आधार को सोशल मीडिया अकाउंट्स से जोड़ा जाए तथा व्यक्तिगत अकाउंट्स की जानकारी देने के लिये मध्यस्थों को दिशा-निर्देश दिये जाएँ। हालाँकि बाद में इस याचिका को वापस ले लिया गया।
- अक्तूबर 2018 में बॉम्बे उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका के अनुसार, चुनाव से 48 घंटे पहले ऑनलाइन पेड पॉलिटिकल कंटेंट (ऐसी प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक राजनीतिक सामग्री जो मूल्य चुकाने के बदले में ऑनलाइन प्रदर्शित की जाती है) पर प्रतिबंध लगा देना चाहिये।
- जुलाई 2019 में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका में सोशल मीडिया के किसी प्लेटफ़ॉर्म का प्रयोग करने से पहले आधार तथा अन्य पहचान पत्रों की सहायता से अनिवार्य KYC की मांग की गई।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी:
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, सोशल मीडिया पर विभिन्न संदेश तथा सामग्री का प्रसार हो रहा है, जिसमें कुछ सामग्री हानिकारक तथा समाज में हिंसा भड़काने वाली है।
- इन प्रसारित संदेशों में कुछ संदेश देश की संप्रभुता तथा अखंडता के लिये खतरा हो सकते हैं।
- सोशल मीडिया आजकल बड़ी मात्रा में अश्लील सामग्री का स्रोत बन गया है तथा ड्रग्स, हथियार एवं अन्य निषिद्ध सामग्री भी मध्यस्थों द्वारा संचालित ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के जरिये बेची जा रही है।
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण:
(Unique Identification Authority Of India-UIDAI)
- UIDAI की स्थापना एक सांविधिक निकाय के रूप में आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ एवं सेवाओं के लक्षित विवरण) अधिनियम, 2016 के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत 12 जुलाई 2016 को की गई थी।
- UIDAI की स्थापना भारत के सभी नागरिकों को ‘आधार’ नाम से एक विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान करने के लिये की गई थी ताकि दोहरी और फर्जी पहचान समाप्त की जा सके तथा इसे आसानी से एवं किफायती लागत में प्रमाणित किया जा सके।
- भारत का प्रथम UID नंबर महाराष्ट्र निवासी नंदूरबार को 29 सितंबर 2010 को जारी किया गया था।
निष्कर्ष:
किसी भी व्यक्ति की निजता के अधिकार का उल्लंघन विशेष परिस्थिति में ही किया जाना चाहिये परंतु देश की अखंडता और गरिमा तथा किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा प्रभावित होने की स्थिति से निपटने के लिये मध्यस्थों के साथ सांमजस्य बिठाकर नए सिरे से विनियमन की आवश्यकता है।