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डेली न्यूज़

  • 24 Aug, 2023
  • 34 min read
शासन व्यवस्था

विश्व जल सप्ताह एवं जल जीवन मिशन

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व जल सप्ताह, जल जीवन मिशन, त्वरित ग्रामीण जल आपूर्ति योजना, पंचायती राज संस्थान, हर घर जल कार्यक्रम, कावेरी नदी विवाद, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

मेन्स के लिये:

जल जीवन मिशन की वर्तमान स्थिति, भारत में जल संसाधन प्रबंधन से संबंधित वर्तमान चुनौतियाँ

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

20 से 24 अगस्त, 2023 तक चलने वाला विश्व जल सप्ताह स्टॉकहोम अंतर्राष्ट्रीय जल संस्थान द्वारा आयोजित वार्षिक वैश्विक जल मंच है। इस वर्ष की थीम- "सीड्स ऑफ चेंज: इनोवेटिव साॅल्यूशन फॉर अ वाटर-वाइज़ वर्ल्ड" है, यह वर्तमान जल चुनौतियों से निपटने में नवाचार के महत्त्व पर प्रकाश डालती है।

  • इसी क्रम में वर्ष 2019 में शुरू किये गए जल जीवन मिशन का उद्देश्य वर्ष 2024 तक ग्रामीण भारत के सभी घरों में व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित व पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना है।
  • इस महत्त्वाकांक्षी पहल का उद्देश्य विगत कार्यक्रमों की कमियों से सीखना तथा उनकी विफलताओं को सुधारना है।

ग्रामीण जलापूर्ति हेतु जल जीवन मिशन को आकार देने के प्रयास और चुनौतियाँ:

  • पूर्व में किये गए प्रयास और कमियाँ: 
    • प्रारंभिक प्रयास (वर्ष 1950-1960): भारत की पहली पंचवर्षीय योजना (वर्ष 1951-56) के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में जल की आपूर्ति को प्राथमिकता दी गई थी। हालाँकि शुरू में इसके केंद्र में वे ही गाँव थे जहाँ इसकी सुविधा आसानी से उपलब्ध कराई जा सके।
    • राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल आपूर्ति कार्यक्रम (1969): संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) के तकनीकी सहयोग से बोरवेल की खुदाई और पाइप के माध्यम से जल के कनेक्शन प्रदान करने का काम शुरू हुआ, लेकिन कार्यक्रम का कवरेज़ असमान रहा।
    • दृष्टिकोण में बदलाव (1970-1980): इस दौरान त्वरित ग्रामीण जल आपूर्ति योजना (Accelerated Rural Water Supply Scheme- ARWS) और न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम जैसी विभिन्न पहलें शुरू की गईं लेकिन इनके कार्यान्वयन तथा कवरेज़ में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
    • मिशन संबंधी दृष्टिकोण का विकास (1986-1996): ARWS को बदलकर राष्ट्रीय पेयजल मिशन किया गया, फिर बाद में इसे राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन (1991) कर दिया गया।
    • भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2002 और 2007 के बीच मौजूदा योजनाएँ लक्षित बस्तियों का लगभग 50% हिस्सा ही कवर कर सकीं।
    • वर्ष 2017 में हर घर जल कार्यक्रम को सरकार द्वारा सुरक्षित पेयजल के लिये हर घर में पाइप से पानी की आपूर्ति प्रदान करने के लिये शुरू किया गया था।
      • हालाँकि पेयजल और स्वच्छता विभाग के आँकड़ों के अनुसार,  1 अप्रैल, 2018 तक केवल 20% ग्रामीण घरों को पाइप का पेयजल सफलतापूर्वक मिल पाया था।
  • पिछली योजनाओं की प्रमुख कमियाँ:
    • अस्थिर जल स्रोत: भूजल पर निर्भरता के कारण यह कमी देखी गई, जिससे शुरू में कवर किये गए कुछ गाँवों की समय के साथ जल तक पहुँच में कमी आई।
    • सामुदायिक स्वामित्व का अभाव: समुदायों के बीच अपर्याप्त स्वामित्व की भावना के परिणामस्वरूप उन्हें खराब संरक्षण एवं निष्क्रिय मूलभूत सुविधाओं का सामना करना पड़ा।
    • पारदर्शिता का अभाव: अपर्याप्त सार्वजनिक जागरूकता और भागीदारी ने प्रगति एवं संवेदीकरण प्रयासों में बाधा उत्पन्न की।
    • धन का कुप्रबंधन: पर्याप्त निवेश के बावजूद धन आवंटन और उपयोग में अक्षमताओं के कारण जल आपूर्ति की समस्या बनी रही।
  • जल जीवन मिशन: अतीत से सीख:
    • विविध जल स्रोत: मिशन पुनर्भरण और संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए सतही जल एवं भूजल दोनों के दोहन की अनुमति देता है।
    • सामुदायिक सहभागिता: मिशन सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करते हुए समुदायों को संवेदनशील बनाने और सभी स्तरों पर अधिकारियों को उत्तरदायी बनाने पर ज़ोर देता है।
    • सूचना साझा करना: एक केंद्रीय डैशबोर्ड सार्वजनिक रूप से प्रगति का डेटा साझा करता है, स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देता है और कार्रवाई को प्रोत्साहित करता है।
    • समग्र दृष्टिकोण: इस कार्यक्रम में आपदा संबंधी तैयारी, पर्याप्त जल हस्तांतरण, तकनीकी हस्तक्षेप और गंदे पानी का प्रबंधन शामिल है।

जल जीवन मिशन की वर्तमान स्थिति: 

  • उद्देश्य:
    • जल जीवन मिशन (ग्रामीण): इस मिशन का लक्ष्य वर्ष 2024 तक कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (Functional Household Tap Connections FHTC) के माध्यम से प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति व्यक्ति 55 लीटर पानी उपलब्ध कराना है।
      • यह जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत आता है।

नोट: भारत सरकार ने जल जीवन मिशन (शहरी) भी लॉन्च किया है जो JJM(R) का पूरक है और इसे भारत के सभी 4,378 वैधानिक शहरों में कार्यात्मक नल के माध्यम से जल आपूर्ति की सार्वभौमिक कवरेज के लिये डिज़ाइन किया गया है।

  • वर्तमान स्थिति:
    • 3 जनवरी, 2023 तक नल के पानी के कनेक्शन तक पहुँच रखने वाले ग्रामीण परिवारों की संख्या बढ़कर 108.7 मिलियन हो गई, जो 56.14% के बराबर है।
      • नतीजतन, मिशन को आगामी दो वर्षों के भीतर अतिरिक्त 76.3 मिलियन ग्रामीण परिवारों (47.3%) तक कवरेज को बढ़ाना पड़ सकता है।
    • जैसा कि कार्यक्रम के डैशबोर्ड द्वारा बताया गया है कि अब तक हर घर जल मिशन की स्थिति, जिसमें सभी ग्रामीण घरों में नल के पानी की आपूर्ति का प्रावधान शामिल है, 9 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों तक पहुँच गया है जो कि हरियाणा, गोवा, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पुद्दुचेरी, दमन और दीव तथा दादर नागर हवेली, तेलंगाना, गुजरात, पंजाब और हिमाचल प्रदेश हैं।

भारत में जल संसाधन प्रबंधन से संबंधित वर्तमान चुनौतियाँ:

  • भूजल की कमी और शहरीकरण: हमारा ध्यान अक्सर सतही जल स्रोतों पर होता है, जबकि भूजल की कमी भी एक गंभीर चुनौती है।
    • द्रुत शहरीकरण के कारण पानी की मांग बढ़ती है, जिससे भूजल का अत्यधिक दोहन होता है।
    • जैसे-जैसे शहरों का विस्तार होता है, मिट्टी की सतह अभेद्य चीज़ों से ढक जाती है, जिससे भूजल पुनर्भरण कम हो जाता है।
  • अंतर-राज्यीय जल विवाद और संघवाद: जल-बँटवारे समझौतों पर अंतर-राज्यीय संघर्ष, जैसे कि कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी विवाद, राज्य की स्वायत्तता एवं राष्ट्रीय हित के बीच तनाव को उजागर करते हैं।
  • जल की गुणवत्ता और स्वास्थ्य: मात्रा से परे जल की गुणवत्ता एक गंभीर मुद्दा है। औद्योगिक निर्वहन, कृषि अपवाह और अपर्याप्त स्वच्छता के कारण प्रदूषण से जलजनित बीमारियों का प्रसार होता है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है, खासकर ग्रामीण क्षेत्र प्रभावित होते हैं।
  • लिंग गतिशीलता और जल संग्रहण: कई ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ और लड़कियाँ पानी लाने की ज़िम्मेदारी उठाती हैं।
    • यह न केवल उनके शैक्षिक और आर्थिक अवसरों को सीमित करता है, बल्कि दूर के जल स्रोतों तक लंबी पैदल यात्रा के दौरान उन्हें उत्पीड़न और हिंसा के खतरे में भी डालता है।
  • जलवायु परिवर्तन और हिमनदों का पीछे हटना: हिमालय के ग्लेशियर, जो कई भारतीय नदियों के लिये एक प्रमुख जल स्रोत के रूप में काम करते हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण घट रहे हैं।
    • इससे दीर्घावधि में पानी की कमी हो सकती है, जिससे लाखों लोग प्रभावित होंगे जो सिंचाई और पीने के पानी के लिए इन नदियों पर निर्भर हैं।
  • कुशल अपशिष्ट जल प्रबंधन का अभाव: भारत में जल संसाधनों की घटती आपूर्ति के साथ, अकुशल अपशिष्ट जल प्रबंधन देश की क्षमता को कमजोर कर रहा है जिससे वह इसका अत्यधिक लाभकर उपयोग नहीं कर पा रहा है।

आगे की राह

  • स्थानीय जल संसाधन प्रबंधन: जल जीवन मिशन की भूमिका को दोहरे दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिये, जिसमें जल संसाधनों की आपूर्ति प्रबंधन तथा स्थिरता दोनों पर ज़ोर दिया जाना चाहिये, क्योंकि जल जीवन (Jal Jeevan) स्वयं जल के जीवन (Life of Water) का प्रतीक है। मानव जाति के स्वस्थ जीवन की कल्पना तभी की जा सकती है जब वह जल के स्वस्थ जीवन के साथ सामंजस्य स्थापित करे।
    • इसलिये शहर स्तर पर प्रभावी वाटरशेड प्रबंधन योजनाओं को तैनात करने की आवश्यकता है तथा सभी घरों के लिये वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।
  • वाटर फुटप्रिंट लेबलिंग: वस्तुओं के उत्पादन में उपयोग किये जाने वाले जल के बारे में उपभोक्ता जागरूकता बढ़ाने हेतु कार्बन फुटप्रिंट लेबल के समान उत्पादों के लिये वाटर फुटप्रिंट लेबलिंग सिस्टम (Water Footprint Labeling System) को लागू करना। इससे जल-कुशल उत्पादों की मांग बढ़ सकती है।
  • जल-ऊर्जा एकीकरण प्रबंधन: संसाधनों के उपयोग को अनुकूलित करने के लिये जल और ऊर्जा प्रबंधन रणनीतियों को एकीकृत करना।
    • उदाहरण के लिये विद्युत संयंत्रों में शीतलन के लिये उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग करना तथा जल शुद्धिकरण के लिये औद्योगिक प्रक्रियाओं से अतिरिक्त ऊष्मा का उपयोग करना।
  • हाइड्रो-रेस्पॉन्सिव अर्बन प्लानिंग: जल की उपलब्धता के अनुकूल शहरों को डिज़ाइन करके हाइड्रो-रेस्पॉन्सिव अर्बन प्लानिंग (जलीय रूप से उत्तरदायी शहरी नियोजन) लागू करना।
    • गतिशील बाढ़ अवरोधक (Movable Flood Barriers), अनुकूलनीय जल निकासी प्रणाली और मॉड्यूलर इमारतों जैसे लचीले बुनियादी ढाँचे को शामिल करना जिन्हें बदलते जल स्तर के आधार पर समायोजित किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. ‘वाटरक्रेडिट’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. यह जल एवं स्वच्छता क्षेत्र में कार्य के लिये सूक्ष्म वित्त साधनों (माइक्रोफाइनेंस टूल्स) को लागू करता है।
  2.  यह एक वैश्विक पहल है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक के तत्त्वावधान में प्रारंभ किया गया है।
  3.  इसका उद्देश्य निर्धन व्यक्तियों को सहायिकी के बिना अपनी जल-संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये समर्थ बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b)  केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. जल संरक्षण एवं जल सुरक्षा हेतु भारत सरकार द्वारा प्रवर्तित जल शक्ति अभियान की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? (2020)

प्रश्न. रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइये। (2020)


जैव विविधता और पर्यावरण

मीथेन उत्सर्जन को कम करने में जीवाणुओं की प्रजाति का योगदान

प्रिलिम्स के लिये:

मीथेन उत्सर्जन को कम करने में जीवाणुओं की प्रजाति का योगदान, ग्रीनहाउस गैस, ग्लोबल वार्मिंग, जलीय कृषि

मेन्स के लिये:

मीथेन उत्सर्जन को कम करने में जीवाणुओं की प्रजाति का योगदान

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज़ में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि जीवाणु का एक प्रकार, जिसे मिथाइलोटुविमाइक्रोबियम ब्यूरेटेंस 5GB1C के नाम से जाना जाता है, लैंडफिल, धान के खेतों और तेल तथा गैस के कुओं जैसे प्रमुख उत्सर्जन स्थलों से मीथेन को कम करने में मदद कर सकता है।

  • जीवाणुओं की इस प्रजाति में मीथेन, जो कि  कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में काफी अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, को उपभोग के माध्यम से कम करने की क्षमता का पता चला है। इससे ग्लोबल वार्मिंग को भी काफी हद तक कम करने में मदद मिल सकती है।

प्रमुख बिंदु:

  • मीथेन उत्सर्जन को कम करने में जीवाणुओं की प्रजाति की भूमिका:
    • अध्ययन में पाया गया है कि मिथाइलोटुविमाइक्रोबियम ब्यूरेटेंस 5GB1C प्रजाति मीथेन का सेवन करती है।
      • मीथेन, जिसे ग्रीनहाउस गैस के रूप में जाना जाता है, का कुल ग्लोबल वार्मिंग में योगदान लगभग 30% है और यदि 20 वर्ष की अवधि में देखें तो हम पाएँगे कि यह कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 85 गुना अधिक शक्तिशाली है।
    • बैक्टीरिया की 200 PPM जैसी कम सांद्रता पर मीथेन का उपभोग करने की क्षमता, इसे मीथेन हटाने की तकनीक के लिये सहायक बनाती है।
    • अन्य मीथेन खाने वाले बैक्टीरिया (मीथेनोट्रॉफ) सबसे अधिक तब उत्पन्न होते हैं जब मीथेन की सांद्रता लगभग 5,000-10,000 भाग प्रति मिलियन (PPM) होती है।
  • वैश्विक तापमान पर संभावित प्रभाव:
    • इस जीवाणु प्रजाति/स्ट्रेन को नियोजित करके वर्ष 2050 तक लगभग 240 मिलियन टन मीथेन उत्सर्जन को वायुमंडल में प्रवेश करने से रोका जा सकता है।
      • मीथेन उत्सर्जन में इस कमी से वैश्विक औसत तापमान में 0.21-0.22 डिग्री सेल्सियस की कमी हो सकती है।
      • यह कमी जलवायु परिवर्तन को कम करने और तापमान वृद्धि को सीमित करने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है।
  • बैक्टीरियल बायोमास का उपयोग:
    • जैसे ही बैक्टीरिया मीथेन का उपभोग करते हैं, वे बायोमास उत्पन्न करते हैं जिसका उपयोग एक्वाकल्चर में फीड के रूप में किया जा सकता है। 
    • प्रत्येक टन मीथेन की खपत के लिए, बैक्टीरिया शुष्क भार (Dry Weight) के साथ 0.78 टन बायोमास का उत्पादन कर सकता है।
      • इस बायोमास का आर्थिक मूल्य लगभग 1,600 अमेरिकी डॉलर प्रति टन होने का अनुमान है, जो मीथेन कटौती प्रक्रिया से अतिरिक्त लाभ प्रदान करता है।

चुनौतियाँ और प्रमुख कारक: 

  • इस तकनीक को बढ़ाने से बैक्टीरिया के इष्टतम विकास के लिये तापमान को नियंत्रित करने जैसी चुनौतियाँ सामने आती हैं।
  • बैक्टीरिया 25-30 डिग्री सेल्सियस के तापमान रेंज में विकसित होते हैं, इसलिये सावधानीपूर्वक तापमान प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
  • विशेष रूप से विभिन्न जलवायु वाले क्षेत्रों, जैसे समशीतोष्ण, उष्णकटिबंधीय और आर्कटिक क्षेत्रों में, इसकी आर्थिक व्यवहार्यता और ऊर्जा दक्षता महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
  • शोधकर्ता इस तकनीक को बड़े पैमाने पर उपयोग करने की व्यवहार्यता का आकलन करने के लिये इसके लिये क्षेत्रीय अध्ययन की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।
  • प्रौद्योगिकी के पर्यावरणीय जीवन चक्र तथा तकनीकी-आर्थिक विश्लेषण कर इसकी आर्थिक व्यवहार्यता और पर्यावरणीय लाभ दोनों को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के बारे में निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं?  (2019)

1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मीथेन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।
2. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के विशाल निक्षेप उत्तरी ध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं।
3. वायुमंडल के अंदर मीथेन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या: 

  • अशांत समुद्र के नीचे मीथेन हाइड्रेट्स के निक्षेप एक बड़े पारिस्थितिक खतरे को उत्पन्न कर सकते हैं। यहाँ तक कि अगर इन मीथेन हाइड्रेट्स निक्षेपों का एक छोटा सा हिस्सा भी प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से विघटित हो जाता है, तो भूमंडलीय तापन के कारण यह मीथेन गैस को बड़ी मात्रा में निर्मुक्त होने के लिये प्रेरित कर सकता है। अतः कथन 1 सही है ।
  • मीथेन हाइड्रेट्स महाद्वीपीय ढलानों के निचले सीमांत क्षेत्रों के साथ निर्मित होते हैं, जहाँ समुद्र अधस्तल अपेक्षाकृत उथले शेल्फ से नीचे रहता है, आमतौर पर समुद्र की सतह से लगभग 150 मीटर नीचे। जलवायु के लिये गैस हाइड्रेट्स की संवेदनशीलता, तापन घटना की अवधि, समुद्र अधस्तल या टुंड्रा सतह के नीचे गैस हाइड्रेट्स की गहराई तथा गैस हाइड्रेट्स को पृथक करने हेतु तलछट को गर्म करने के लिये आवश्यक तापन की मात्रा आदि पर निर्भर करती है। अतः कथन 2 सही है।
  • मीथेन के साथ समस्या यह है कि यह बिना अपने अवशेष छोड़े नष्ट नहीं होती है, भले ही यह कम अवधि के लिये वातावरण में रहती हो जो कि औसतन 10 वर्ष है। मुक्त ऑक्सीजन की उपस्थिति में कार्बन का एक मीथेन अणु अपने चार हाइड्रोजन परमाणुओं से कार्बन डाइऑक्साइड बनने के लिये अलग हो जाता है। अतः कथन 3 सही है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग

प्रिलिम्स के लिये:

चंद्रयान- 3, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर, चंद्र दिवस, रहने योग्य ग्रह पृथ्वी की स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री (SHAPE), LUPEX, आदित्य L1, NISAR, गगनयान, शुक्रयान 1, XPoSat

मेन्स के लिये:

चंद्रयान- 3 मिशन के उद्देश्य, अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट-लैंडिंग करने वाला पहला मिशन बनकर चंद्रयान-3 ने इतिहास रच दिया है, दक्षिणी ध्रुव एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी पहले कभी खोज नहीं की गई थी। इस मिशन का उद्देश्य सुरक्षित और सहज चंद्र लैंडिंग, रोवर गतिशीलता और अंतःस्थाने वैज्ञानिक प्रयोगों का प्रदर्शन करना था।

  • भारत अब संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के साथ चंद्रमा पर सफलतापूर्वक लैंडिंग करने वाले कुछ देशों में शामिल हो गया है।

पिछले मिशन में उत्पन्न बाधाएँ और चंद्रयान-3:

  • वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 मिशन की लैंडिंग में विफलता के बाद अब चंद्रयान-3 ने सफल लैंडिंग की है
    • चंद्रमा पर उतरते समय नियंत्रण और संचार खो देने के कारण चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह पर क्षतिग्रस्त हो गया था।
  • चंद्रयान-3 में भविष्य की समस्याओं का पूर्वानुमान लगाने और उनका समाधान करने के लिये चंद्रयान-2 मिशन से सीखे गए सबक से "विफलता-आधारित" डिज़ाइन रणनीति का उपयोग किया गया।
    • महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों में लैंडर के पैरों को मज़बूत करना, ईंधन भंडार बढ़ाना और लैंडिंग साइट के लचीलेपन को बढ़ाना शामिल था।

चंद्रयान-3 की लैंडिंग के लिये चंद्रमा के निकटतम भाग को चुनने का कारण:

  • चंद्रयान-3 का उद्देश्य चंद्रमा पर संभावित पानी-बर्फ और संसाधनों के लिये उसके दक्षिणी ध्रुव के पास "स्थायी रूप से छाया वाले क्षेत्रों" की जाँच करना है।
    • विक्रम लैंडर का नियंत्रित अवरोह (नीचे उतरने की प्रक्रिया) चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के सबसे निकट पहुँचने के रूप में परिणत हुआ।
  • चीन के चांग'ई 4 चंद्र मिशन के दूरस्थ भाग के विपरीत चंद्रमा के निकटतम भाग पर विक्रम की लैंडिंग एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।
    • तुल्यकालिक घूर्णन (Synchronous Rotation) के कारण पृथ्वी से दिखाई देने वाला नज़दीकी भाग चंद्रमा के 60% हिस्से को कवर करता है।
    • वर्ष 1959 में सोवियत अंतरिक्ष यान लूना 3 द्वारा तस्वीरें लिये जाने तक इसका दूर का हिस्सा अदृश्य था।
      • वर्ष 1968 में अपोलो 8 मिशन के अंतरिक्ष यात्री इसके दूरस्थ भाग को देखने वाले पहले इंसान थे।
  • इसके नज़दीकी भाग में चिकनी सतह और असंख्य 'मारिया' (बड़े ज्वालामुखीय मैदान) हैं, जबकि दूर के भाग में क्षुद्रग्रह के टकराव से बने विशाल गड्ढे हैं।
    • चंद्रमा के नज़दीकी भाग की परत पतली है, जिससे ज्वालामुखीय लावा बहता है और समय के साथ गड्ढों को भर देता है, जिससे समतल भू-भाग का निर्माण होता है।
  • लैंडिंग के लिये चंद्रमा के निकटतम भाग को चुनने का मिशन का प्राथमिक उद्देश्य नियंत्रित सॉफ्ट लैंडिंग था।
    • यदि चंद्रयान पृथ्वी के साथ सीधी दृष्टि रेखा (Direct Line-of-sight with Earth) से दूर होता तो ऐसे में उसकी लैंडिंग हेतु संचार के लिये एक मध्यवर्ती बिंदु की आवश्यकता होती।

चंद्रयान-3 की लैंडिंग के बाद के अपेक्षित कदम:

  • चंद्रयान-3 के चंद्रमा की सतह पर कम-से-कम एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के 14 दिन) तक संचालित होने की अपेक्षा है।
    • प्रज्ञान रोवर लैंडिंग स्थल के चारों ओर 500 मीटर के दायरे में घूमेगा, परीक्षण करेगा और लैंडर को डेटा एवं छवियाँ भेजेगा।
    • विक्रम लैंडर डेटा और छवियों को ऑर्बिटर तक प्रसारित करेगा, जो फिर उन्हें पृथ्वी पर भेज देगा।
    • लैंडर और रोवर मॉड्यूल सामूहिक रूप से उन्नत वैज्ञानिक पेलोड से सुसज्जित हैं।
      • इन उपकरणों को चंद्रमा की  विशेषताओं के विभिन्न पहलुओं की व्यापक जाँच करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जिसमें उस क्षेत्र का विश्लेषण, खनिज संरचना, सतह रसायन विज्ञान, वायुमंडलीय गुण और महत्त्वपूर्ण रूप से पानी एवं संभावित संसाधन जलाशयों की खोज शामिल है।मेट्र
      • प्रणोदन मॉड्यूल जो लैंडर और रोवर कॉन्फिगरेशन को 100 किमी. चंद्रमा की कक्षा तक ले गया, उसमें चंद्रमा की कक्षा से पृथ्वी के वर्णक्रमीय और पोलरिमेट्री माप का अध्ययन करने के लिये स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (SHAPE) पेलोड भी है।

भविष्य के ISRO के अभियान:

  • चंद्रयान-4: चंद्रमा के विकास के पथ पर आगे बढ़ना।
    • पिछले मिशनों के आधार पर आने वाले समय में नमूना वापसी मिशन के लिये चंद्रयान-4 को भी भेजा जा सकता है।
      • सफल होने पर यह चंद्रयान-2 और 3 के बाद अगला तार्किक कदम हो सकता है, जो चंद्र सतह के नमूनों को पुनः प्राप्त करने की क्षमता प्रदान करेगा।
    • यह मिशन चंद्रमा की संरचना और इतिहास के बारे में हमारी समझ को विस्तृत करने में मदद करेगा।
  • LUPEX: लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन (Lunar Polar Exploration mission-LUPEX) मिशन, ISRO और JAXA (जापान) के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है जो चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों का पता लगाने में मदद करेगा।
    • इसे विशेष रूप से ऐसे क्षेत्रों को ढूँढने के लिये डिज़ाइन किया जाएगा जो स्थायी रूप से छायांकित क्षेत्र हैं।
    • पानी की उपस्थिति की खोज करना और एक स्थायी दीर्घकालिक स्टेशन की क्षमता का आकलन करना LUPEX के उद्देश्यों में से एक है।
  • आदित्य एल1:  यह सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित भारतीय मिशन होगा।
    • अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लाग्रांज बिंदु 1 (Lagrange point 1, L1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा, जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी. दूर है।
    • सूर्य के कोरोना, उत्सर्जन, सौर हवाओं, ज्वालाओं और कोरोनल द्रव्यमान उत्सर्जन का अवलोकन करना आदित्य-एल1 का प्राथमिक उद्देश्य है।
  • एक्स-रे ध्रुवणमापी उपग्रह (X-ray Polarimeter Satellite- XPoSat): यह चरम स्थितियों में उज्ज्वल खगोलीय एक्स-रे स्रोतों की विभिन्न गतिशीलता का अध्ययन करने वाला भारत का पहला समर्पित ध्रुवणमापी मिशन होगा।
    • अंतरिक्ष यान पृथ्वी की निचली कक्षा में दो वैज्ञानिक पेलोड ले जाएगा।
  • NISAR:  NASA-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR) एक निम्न पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit- LEO) वेधशाला है जिसे NASA और ISRO द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया जा रहा है।
    • NISAR 12 दिनों में पूरे विश्व का मानचित्रण करेगा तथा पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र, आइस मास (Ice Mass), वनस्पति बायोमास, समुद्र स्तर में वृद्धि, भूजल और भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी एवं भूस्खलन सहित प्राकृतिक खतरों में परिवर्तन को समझने के लिये स्थानिक तथा अस्थायी रूप से सुसंगत डेटा प्रदान करेगा।
  • गगनयान: गगनयान मिशन का उद्देश्य मनुष्यों को अंतरिक्ष में भेजना और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाना है। इस मिशन में दो मानवरहित उड़ानें और एक मानवयुक्त उड़ान शामिल होगी, जिसमें GSLV Mk III लॉन्च व्हीकल और एक ह्यूमन-रेटेड ऑर्बिटल मॉड्यूल का उपयोग किया जाएगा।
    • मानवयुक्त उड़ान एक महिला सहित तीन अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा में सात दिनों के लिये ले जाएगी।
  • शुक्रयान 1: यह सूर्य से दूसरे ग्रह शुक्र पर एक ऑर्बिटर भेजने हेतु नियोजित मिशन है। इसमें शुक्र की भू-वैज्ञानिक तथा ज्वालामुखीय गतिविधि, ज़मीन पर उत्सर्जन, वायु की गति, मेघ आवरण तथा ग्रह संबंधी अन्य विशेषताओं का अध्ययन किये जाने की अपेक्षा है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016)


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