जेनेटिक मार्कर और प्रीटर्म बर्थ
हाल ही में गर्भ-इनी कार्यक्रम (Garbh-Ini program) पर शोध कर रहे भारतीय वैज्ञानिकों ने समय से पहले जन्म (प्रीटर्म बर्थ) से जुड़े 19 जेनेटिक/आनुवंशिक मार्करों की पहचान की है जो नवजात शिशु मृत्यु (जन्म के बाद पहले 28 दिनों में जीवित नवजात शिशुओं की मृत्यु) और विश्व स्तर पर जटिलताओं का एक प्रमुख कारण है।
- प्रीटर्म बर्थ/अपरिपक्व जन्म से जुड़े आनुवंशिक मार्करों की पहचान उच्च ज़ोखिम वाले गर्भधारण की भविष्यवाणी करने और उनकी बारीकी से निगरानी करने में मदद कर सकती है, जिससे मातृ और नवजात संबंधी परिणामों में सुधार किया जा सकता है।
प्रीटर्म बर्थ
- परिचय:
- सामान्य गर्भावधि से पहले होने वाले शिशु जन्म, प्रीटर्म बर्थ कहा जाता है, गर्भधारण के 37 सप्ताह पूरे होने से पहले बच्चे के जन्म को संदर्भित करता है। गर्भकालीन आयु के आधार पर अपरिपक्व जन्म की उप-श्रेणियाँ हैं:
- अत्यधिक अपरिपक्व (28 सप्ताह से कम)
- बहुत अपरिपक्व (28 से 32 सप्ताह)
- मध्यम से देर से अपरिपक्व (32 से 37 सप्ताह)।
- यह एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है, विशेष रूप से भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में, और शिशुओं में देरी से मानसिक तथा शारीरिक विकास एवं वयस्कता में बीमारियों के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है।
- विश्व स्तर पर, प्रत्येक 10 जन्मों में से प्रीटर्म होता है।
- इसके अलावा, भारत में प्रतिवर्ष जन्म लेने वाले सभी बच्चों में से लगभग 13% प्रीटर्म होते हैं। विश्व स्तर पर, भारत में प्रीटर्म का प्रतिशत 23.4 है।
- सामान्य गर्भावधि से पहले होने वाले शिशु जन्म, प्रीटर्म बर्थ कहा जाता है, गर्भधारण के 37 सप्ताह पूरे होने से पहले बच्चे के जन्म को संदर्भित करता है। गर्भकालीन आयु के आधार पर अपरिपक्व जन्म की उप-श्रेणियाँ हैं:
- मृत्यु:
- गर्भावस्था के 37 सप्ताह के बाद जन्म लेने वालों की तुलना में समय पूर्व जन्म लेने वाले बच्चों में जन्म के बाद मृत्यु का खतरा दो से चार गुना अधिक होता है।
- जब ये बच्चे वयस्क हो जाते हैं, तो उन्हें टाइप-2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप और कैंसर जैसी बीमारियों का भी अधिक खतरा होता है।
जेनेटिक मार्कर (Genetic Markers):
- परिचय:
- आनुवंशिक संकेतक/जेनेटिक मार्कर, जिन्हें DNA संकेतक या आनुवंशिक प्रकार के रूप में भी जाना जाता है, DNA के विशिष्ट खंड हैं जो विशेष लक्षणों, विशेषताओं या स्थितियों से जुड़े होते हैं।
- जेनेटिक मार्कर या तो DNA अनुक्रम या DNA अनुक्रम में विशिष्ट भिन्नताएँ हो सकते हैं, जैसे एकल न्यूक्लियोटाइड बहुरूपता (Single Nucleotide Polymorphisms- SNP), जो आनुवंशिक मार्कर का सबसे सामान्य प्रकार है।
- महत्त्व:
- उनका उपयोग आनुवांशिकी अनुसंधान और नैदानिक अभ्यास में आनुवंशिक विविधताओं की पहचान एवं अध्ययन करने हेतु किया जाता है जो कि बीमारियों, विकारों या अन्य जैविक लक्षणों से जुड़ी हो सकती हैं।
- ये SNP महत्त्वपूर्ण जैविक प्रक्रियाओं जैसे, कि सूजन, एपोप्टोसिस, गर्भाशय ग्रीवा परिपक्वता, टेलोमेयर रख-रखाव, सेलेनोसिस्टीन जैव-संश्लेषण, मायोमेट्रियल संकुचन एवं जन्मजात प्रतिरक्षा को विनियमित करने हेतु जाने जाते हैं।
गर्भ-इनि:
- इंटरडिसिप्लिनरी ग्रुप फॉर एडवांस्ड रिसर्च ऑन बर्थ आउटकम्स-डीबीटी इंडिया इनिशिएटिव (गर्भ-इनि) को जैवप्रोद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology- DBT) द्वारा वर्ष 2014 में एक सहयोगी अंतःविषय कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया था।
- इस कार्यक्रम का नेतृत्व ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (THSTI), NCR बायोटेक क्लस्टर, फरीदाबाद कर रहा है।
- इसका उद्देश्य प्रीटर्म के जैविक और गैर-जैविक जोखिमों को स्पष्ट करना है ताकि महत्त्वपूर्ण ज्ञान-संचालित हस्तक्षेप और प्रौद्योगिकियाँ बनाई जा सकें जिन्हें इस बीमारी के लिये नैदानिक अभ्यास तथा समुदाय में स्थायी रूप से लागू किया जा सके।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)' के उद्देश्य हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भूदान-ग्रामदान आंदोलन
प्रिलिम्स के लिये:विनोबा भावे, महात्मा गांधी, स्वतंत्रता संग्राम, अहिंसा का दर्शन, स्वशासन। मेन्स के लिये:भूदान-ग्रामदान आंदोलन और स्वतंत्रता के बाद इसका प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महाराष्ट्र के एक गाँव ने ग्रामदान अधिनियम को लागू करने की मांग को लेकर बंबई उच्च न्यायालय का रुख किया।
ग्रामदान:
- भूदान आंदोलन:
- पृष्ठभूमि:
- यह भारत में वर्ष 1951 में विनोबा भावे द्वारा शुरू किया गया एक सामाजिक- राजनीतिक आंदोलन था।
- विनोबा भावे, महात्मा गांधी के शिष्य थे, जिन्हें गांधीजी ने पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही के रूप में चुना और उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया।
- स्वतंत्रता के बाद उन्होंने महसूस किया कि भूमिहीन का मुद्दा ग्रामीण भारत के सामने एक बड़ी समस्या है और वर्ष 1951 में उन्होंने भूदान आंदोलन या भूमि उपहार आंदोलन शुरू किया।
- उद्देश्य:
- उनका उद्देश्य धनी ज़मींदारों को भूमिहीन किसानों को अपनी भूमि का एक हिस्सा दान करने के लिये राजी करना था।
- जब भावे ने गाँव-गाँव घूमकर ज़मींदारों से अपनी ज़मीन दान करने का अनुरोध किया तो आंदोलन को गति मिली।
- भावे का दृष्टिकोण अहिंसा के दर्शन में निहित था तथा उनका यह विचार था कि भू-स्वामियों को गरीबों हेतु करुणा एवं सहानुभूति के साथ अपनी भूमि दान करनी चाहिये।
- पृष्ठभूमि:
- ग्रामदान आंदोलन:
- भूदान आंदोलन का अगला चरण ग्रामदान आंदोलन या ग्राम उपहार आंदोलन था।
- इसका उद्देश्य भूमि के सामूहिक स्वामित्त्व के माध्यम से आत्मनिर्भर गाँव बनाना था।
- ग्रामदान आंदोलन के तहत ग्रामीणों से आग्रह किया गया कि वे अपनी भूमि एक ग्राम परिषद को दान करें, जो ग्रामीणों को भूमि का प्रबंधन एवं वितरण करेगी।
- इस आंदोलन को कई राजनीतिक नेताओं का समर्थन मिला तथा इसे ग्रामीण भारत में भूमि के असमान वितरण की समस्या के समाधान के रूप में देखा गया।
- आंदोलन का महत्त्व:
- यह आंदोलन भारत के कई हिस्सों में सफल रहा, हज़ारों एकड़ भूमि ज़मींदारों द्वारा दान की गई।
- भूदान-ग्रामदान आंदोलन का भारतीय समाज एवं राजनीति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, इसने भूमिहीनता की स्थिति को कम करने, भूमि का अधिक समान वितरण करने तथा आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के साथ-साथ ग्रामीण समुदायों के सशक्तीकरण में मदद की।
- इसने समुदाय में सभी को समान अधिकार एवं ज़िम्मेदारियाँ देकर तथा समुदायों को स्वशासन की ओर बढ़ने हेतु सशक्त बनाकर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया।
- कमियाँ:
- यह दान की गई भूमि या तो अनुपजाऊ या मुकदमेबाज़ी के अधीन होती थी।
- साथ ही भूमि के बड़े क्षेत्रों को दान किया गया था, जबकि भूमिहीनों के बीच बहुत कम वितरित किया गया था।
- यह उन क्षेत्रों में सफल नहीं हुआ जहाँ भूमि जोत में असमानता थी।
- साथ ही यह आंदोलन अपनी क्रांतिकारी क्षमता को उजागर करने में भी विफल रहा।
- यह दान की गई भूमि या तो अनुपजाऊ या मुकदमेबाज़ी के अधीन होती थी।
ग्रामदान अधिनियम का वर्तमान परिदृश्य:
- विभिन्न राज्यों में ग्रामदान अधिनियम:
- वर्तमान में भारत के सात राज्यों में 3,660 ग्रामदान गाँव हैं, जिनमें से सबसे अधिक ओडिशा (1309) में हैं।
- अन्य छह राज्य आंध्र प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश हैं।
- सितंबर 2022 में असम सरकार ने राज्य में दान की गई भूमि पर अतिक्रमण का सामना करने हेतु असम भूमि एवं राजस्व विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित करके असम ग्रामदान अधिनियम, 1961 तथा असम भूदान अधिनियम, 1965 को निरस्त कर दिया।
- उस समय तक असम में 312 ग्रामदान गाँव थे।
- वर्तमान में भारत के सात राज्यों में 3,660 ग्रामदान गाँव हैं, जिनमें से सबसे अधिक ओडिशा (1309) में हैं।
- ग्रामदान अधिनियम की कुछ सामान्य विशेषताएँ:
- गाँव के कम-से-कम 75% भूस्वामियों को ग्राम समुदाय को भूमि का स्वामित्त्व प्रदान करना देना चाहिये। ऐसी भूमि गाँव की कुल भूमि का कम-से-कम 60% होनी चाहिये।
- दान की गई भूमि का 5% खेती के लिये गाँव में भूमिहीनों में वितरित कर दिया जाता है।
- ऐसी भूमि प्राप्तकर्त्ता समुदाय की अनुमति के बिना उसे हस्तांतरित नहीं कर सकते।
- शेष भूमि दाताओं के पास रहती है; वे और उनके वंशज इसका उपयोग कर सकते हैं।
- हालाँकि वे इसे गाँव के बाहर अथवा गाँव में किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं बेच सकते हैं जो ग्रामदान में शामिल नहीं हुआ है।
- ग्रामदान में शामिल सभी काश्तकारों को अपनी आय का 2.5% हिस्सा समुदाय हेतु देना अपेक्षित है।
- चिंताएँ:
- मुख्य रूप से कानून के खराब कार्यान्वयन के कारण कई गाँवों में इस अधिनियम की प्रासंगिकता खत्म हो गई है।
- ग्रामदान के तहत कुछ गाँवों में अपनी ज़मीन देने वालों के वंशज निराश हैं कि वे गाँव के बाहर अपनी ज़मीन नहीं बेच सकते हैं और उनके अनुसार यह अधिनियम 'विकास विरोधी' है।
वन संरक्षण में इस अधिनियम का महत्त्व:
- ग्रामदान अधिनियम स्थानीय समुदायों को वनों सहित उनके प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण करने के लिये सशक्त बनाकर सामुदायिक वन अधिकार सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है।
- ग्रामदान अधिनियम के तहत भूमि और अन्य संसाधन समुदाय में निहित हैं, जिसका अर्थ है कि समुदाय के पास यह निर्णय लेने की शक्ति है कि इन संसाधनों का उपयोग और प्रबंधन कैसे किया जाता है और इस प्रकार उन्हें वन प्रबंधन तथा उनके सतत उपयोग से लाभ मिलता है।
- सामुदायिक वन अधिकारों के संदर्भ में ग्रामदान अधिनियम समुदायों को वन भूमि और संसाधनों पर अधिकारों का दावा करने के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान कर सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' में विनोबा भावे को पहले सत्याग्रही के रूप में चुना गया था। दूसरा कौन था? (2009) (a) डॉ. राजेंद्र प्रसाद उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. आचार्य विनोबा भावे के भूदान और ग्रामदान आंदोलनों के उद्देश्यों की समालोचनात्मक विवेचना कीजिये और उनकी सफलता का आकलन कीजिये। (2013) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
हाथियों का स्थानांतरण
प्रिलिम्स के लिये:एशियाई हाथी, प्राकृतिक विरासत, प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण हेतु सम्मेलन (CMS), वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, प्रोजेक्ट एलीफेंट, हाथी रिज़र्व। मेन्स के लिये:भारत में वन्य पशुओं के पुनर्वास से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में केरल उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ केरल सरकार की अपील को खारिज कर दिया, जिसमें मुन्नार के "राइस टस्कर" अरिकोम्बन (जंगली हाथी) को परम्बिकुलम टाइगर रिज़र्व में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया गया था।
हाथी स्थानांतरण के पक्ष में तर्क:
- केरल उच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पुनर्वास स्थल में प्राकृतिक भोजन एवं जल संसाधनों की उपलब्धता हाथी को मानव बस्तियों में भोजन की तलाश में जाने से रोकेगी।
- न्यायालय ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि हाथी को रेडियो कॉलर लगाया जाएगा तथा वन/वन्यजीव अधिकारियों द्वारा उनकी गतिविधियों की निगरानी की जाएगी, जो किसी भी संघर्ष की स्थिति के कारण अचानक आने वाले संकट को प्रभावी ढंग से दूर करेगा।
हाथी के स्थानांतरण के विरोध में तर्क:
- भारत का पहला रेडियो-टेलीमेट्री अध्ययन वर्ष 2006 में दक्षिण बंगाल के पश्चिम मिदनापुर की फसल वाली भूमि से दार्जिलिंग ज़िले के महानंदा वन्यजीव अभयारण्य में स्थानांतरित एक बड़े नर हाथी पर किया गया था।
- लगभग तुरंत ही हाथी ने गाँवों एवं सेना क्षेत्रों में घरों पर हमला तथा फसलों को क्षति पहुँचाना शुरू कर दिया था।
- वर्ष 2012 में एशियाई हाथियों के स्थानांतरण समस्या पर एक अध्ययन किया गया था, जिसमें जीव-विज्ञानियों की एक टीम ने श्रीलंका के विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों में 16 बार स्थानांतरित किये गए 12 नर हाथियों की निगरानी की थी।
- अध्ययन में पाया गया कि स्थानांतरण के कारण मानव-हाथी संघर्ष की व्यापक स्थिति और इसमें तीव्रता हुई, जिसके कारण हाथियों की मृत्यु दर में वृद्धि हुई।
- दिसंबर 2018 में विनायगा बैल जिसे फसलों की व्यापक क्षति करने हेतु जाना जाता है, को कोयंबटूर से मुदुमलाई-बांदीपुर क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया गया था।
- यह फसलों को क्षति पहुँचाने हेतु हाथियों से सुरक्षित रहने के लिये बनाई गई खाई को भी पार कर जाता था।
हाथी:
- परिचय:
- हाथी भारत का प्राकृतिक धरोहर पशु है।
- हाथियों को "कीस्टोन प्रजाति" माना जाता है क्योंकि वे वन पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन और स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- वे अपनी असाधारण बुद्धिमत्ता हेतु जाने जाते हैं, जिनका स्थलीय जानवरों में सबसे बड़ा मस्तिष्क होता है।
- पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्व:
- हाथी बहुत महत्त्वपूर्ण चरने वाले और ब्राउज़र (ऐसा जानवर जो पत्तियों, ऊँचे उगने वाले पौधों के फल, मुलायम अंकुर झाड़ियों को खाने में माहिर होता है) हैं, क्योंकि वे प्रत्येक दिन भ्रमण करते हुए बड़ी मात्रा में वनस्पतियों को खा जाते हैं और साथ ही इन वनस्पतियों के बीजों को चारों ओर फैलाते हैं।
- वे एशियाई परिदृश्य की प्रायः सघन वनस्पति को आकार देने में भी मदद करते हैं।
- हाथी बहुत महत्त्वपूर्ण चरने वाले और ब्राउज़र (ऐसा जानवर जो पत्तियों, ऊँचे उगने वाले पौधों के फल, मुलायम अंकुर झाड़ियों को खाने में माहिर होता है) हैं, क्योंकि वे प्रत्येक दिन भ्रमण करते हुए बड़ी मात्रा में वनस्पतियों को खा जाते हैं और साथ ही इन वनस्पतियों के बीजों को चारों ओर फैलाते हैं।
- उदाहरण के लिये वनों में सूरज की रोशनी को नए अंकुरों तक पहुँचने में हाथी काफी मदद करते हैं, वे पौधों को बढ़ने में मदद करते हैं तथा वनों को प्राकृतिक रूप से पुन: उत्पन्न होने में मदद करते हैं।
- सतही जल नहीं होने की स्थिति में हाथी जल के लिये खुदाई में भी मदद करते हैं जिससे अन्य प्राणियों के साथ-साथ स्वयं के लिये भी जल तक पहुँच सुनिश्चित करने में मदद प्राप्त हो सकती है।
- भारत में हाथियों की स्थिति:
- प्रोजेक्ट एलीफेंट के तहत वर्ष 2017 की जनगणना के अनुसार, भारत में जंगली एशियाई हाथियों की संख्या सबसे अधिक है, इनकी अनुमानित संख्या 29,964 है।
- यह इन प्रजातियों की वैश्विक आबादी का लगभग 60% है।
- कर्नाटक में हाथियों की संख्या सबसे अधिक है, इसके बाद असम और केरल का स्थान है।
- प्रोजेक्ट एलीफेंट के तहत वर्ष 2017 की जनगणना के अनुसार, भारत में जंगली एशियाई हाथियों की संख्या सबसे अधिक है, इनकी अनुमानित संख्या 29,964 है।
- संरक्षण की स्थिति:
- प्रवासी प्रजातियों का अभिसमय (CMS): परिशिष्ट I
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची I
- IUCN रेड लिस्ट में सूचीबद्ध प्रजातियाँ:
- एशियाई हाथी- लुप्तप्राय
- अफ्रीकी वन हाथी- गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- अफ्रीकी सवाना हाथी- लुप्तप्राय
- संरक्षण हेतु किये गए अन्य प्रयास:
- भारत:
- भारत सरकार ने 1992 में भारत में हाथियों और उनके प्राकृतिक आवास की सुरक्षा के लिये प्रोजेक्ट एलीफेंट की शुरुआत की थी।
- हाथियों के संरक्षण के लिये प्रतिबद्ध भारत में हाथी रिज़र्व की संख्या 33 है।
- वैश्विक स्तर पर:
- विश्व हाथी दिवस: हाथियों की रक्षा और संरक्षण की तत्काल आवश्यकता के संबंध में जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रतिवर्ष 12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस मनाया जाता है।
- एशियाई और अफ्रीकी दोनों हाथियों की गंभीर स्थिति को उजागर करने के लिये वर्ष 2012 में इस दिवस की स्थापना की गई थी।
- हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी (माइक) कार्यक्रम: यह एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग है जो हाथियों की मृत्यु दर के स्तर, प्रवृत्तियों और कारणों को मापता है, जिससे एशिया और अफ्रीका में हाथियों के संरक्षण से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय निर्णय लेने व समर्थन करने के लिये एक सूचना आधार प्रदान करता है।
- भारत:
आगे की राह
- स्थानांतरण प्रभाव आकलन:
- हाथियों की प्रत्येक समस्या और उनके संभावित स्थानांतरण स्थल की विशिष्ट परिस्थितियों एवं विशेषताओं पर सावधानीपूर्वक विचार करना आवश्यक है।
- प्राकृतिक भोजन और जल संसाधनों की उपलब्धता, आवास उपयुक्तता और संभावित जोखिमों एवं स्थानांतरण की चुनौतियों का आकलन करने के लिये गहन शोध तथा विश्लेषण किया जाना चाहिये।
- हाथियों की प्रत्येक समस्या और उनके संभावित स्थानांतरण स्थल की विशिष्ट परिस्थितियों एवं विशेषताओं पर सावधानीपूर्वक विचार करना आवश्यक है।
- निगरानी और प्रबंधन:
- स्थानांतरण के बाद की निगरानी और किसी भी संभावित संघर्ष को कम करने के उपायों सहित उचित निगरानी एवं प्रबंधन योजनाएँ भी होनी चाहिये।
- जबकि हाथियों की स्थानांतरण समस्या को मानव-हाथी संघर्ष को कम करने की रणनीति के रूप में माना जा सकता है, इसे सावधानी से किया जाना चाहिये और ध्वनि वैज्ञानिक अनुसंधान, सामुदायिक जुड़ाव तथा व्यापक प्रबंधन आधारित योजना दोनों की भलाई सुनिश्चित करने, हाथियों और स्थानीय समुदायों के बीच संभावित जोखिम को कम करने के लिये होनी चाहिये।
- हाथियों के स्थानांतरण का विकल्प:
- जंगली हाथियों को 'कुंकी' (एक प्रशिक्षित हाथी जो जंगली हाथियों को पकड़ने के लिये इस्तेमाल किया जाता है) की मदद से पकड़ना और स्थानांतरण करना एक आशाजनक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
- यह विधि कई लाभ प्रदान कर सकती है, जिसमें प्रशिक्षित 'कुंकियों' के साथ परिचित होने के कारण पकड़े जाने के दौरान अधिक सुरक्षा, स्थानांतरित हाथियों पर कम तनाव और स्थानांतरण प्रयासों की सफलता दर में सुधार शामिल है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारतीय हाथियों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हृदय रोग हेतु स्क्रीनिंग टेस्ट
प्रिलिम्स के लिये:हृदय रोग, कार्डियोवास्कुलर रोग, रक्तचाप, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन। मेन्स के लिये:हृदय रोग हेतु स्क्रीनिंग टेस्ट। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कुछ विशेषज्ञों ने हृदय रोग को रोकने हेतु बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग टेस्ट का सुझाव दिया है।
स्क्रीनिंग टेस्ट:
- परिचय:
- स्क्रीनिंग या शुरुआती पहचान का मुख्य लक्ष्य ऐसे व्यक्तियों की पहचान करना है जिन्हें कोई बीमारी हो सकती है, साथ ही अतिरिक्त परीक्षण द्वारा इसकी पुष्टि करना है।
- स्क्रीनिंग टेस्ट सामान्यतः सस्ते होते हैं और इन्हें बड़े पैमाने पर संचालित करना आसान होता है, जबकि पुष्टि परीक्षण संसाधन गहन होते हैं।
- स्क्रीनिंग का व्यापक लक्ष्य लक्षणों के प्रकट होने से पहले प्रारंभिक चरण में ही हृदय रोगों का पता लगाना है, ताकि भविष्य में दिल के दौरे या अचानक हृदय आघात के कारण मृत्यु के जोखिम को कम करने के लिये निवारक उपाय किये जा सकें।
- हृदय रोगों के लिये स्क्रीनिंग टेस्ट में रक्तचाप मापन, कोलेस्ट्रॉल और लिपिड प्रोफाइल टेस्ट, ECG (इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम) आदि शामिल हैं।
- ये परीक्षण हृदय रोग, अनियमित हृदय स्पंदन, हृदय की संरचना या कार्य संबंधी अनियमितताओं के जोखिम की पहचान करने में मदद कर सकते हैं।
- स्क्रीनिंग या शुरुआती पहचान का मुख्य लक्ष्य ऐसे व्यक्तियों की पहचान करना है जिन्हें कोई बीमारी हो सकती है, साथ ही अतिरिक्त परीक्षण द्वारा इसकी पुष्टि करना है।
- आवश्यकता:
- इससे पहले कि हृदय रोग जीवन के लिये खतरा बन जाए इसके अंतर्निहित जोखिम कारकों या हृदय रोग के लक्षणों का पता लगाने के लिये स्क्रीनिंग टेस्ट आवश्यक है।
- हृदय को ऑक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति करने वाली कोरोनरी धमनी के अचानक अवरुद्ध होने से दिल का दौरा पड़ सकता है, जो घातक भी हो सकता है।
- स्क्रीनिंग टेस्ट की सहायता से उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल स्तर, अनियमित धड़कन गति जैसे जोखिम कारकों की पहचान की जा सकती है, इससे हृदय रोग को अधिक गंभीर रूपों में विकसित होने से पहले ही जीवनशैली में बदलाव, दवा या अन्य सुरक्षात्मक उपायों की मदद से प्रबंधित किया जा सकता है।
- इससे पहले कि हृदय रोग जीवन के लिये खतरा बन जाए इसके अंतर्निहित जोखिम कारकों या हृदय रोग के लक्षणों का पता लगाने के लिये स्क्रीनिंग टेस्ट आवश्यक है।
बड़े स्तर पर स्क्रीनिंग से संबंधित चुनौतियाँ:
- प्रक्रियात्मक जोखिम की संभावना:
- स्क्रीनिंग टेस्ट जोखिमों के अंतर्गत प्रक्रियात्मक त्रुटियाँ (परीक्षण कैसे किये जाते हैं) और गलत लेबलिंग शामिल हैं।
- उदाहरण के लिये जब बिना लक्षण वाले युवा रोगियों में स्क्रीनिंग टेस्ट के रूप में स्ट्रेस ECG का उपयोग किया जाता है तब इससे प्राप्त कई परिणाम गलत होते हैं।
- यह अनावश्यक चिंता का कारण बनता है और इसके निष्कर्षों/परिणामों की पुष्टि करने अथवा अस्वीकार करने के लिये और भी कई जाँच/ परीक्षण कराने पड़ सकते हैं।
- स्क्रीनिंग टेस्ट जोखिमों के अंतर्गत प्रक्रियात्मक त्रुटियाँ (परीक्षण कैसे किये जाते हैं) और गलत लेबलिंग शामिल हैं।
- अतिरिक्त जोखिम और लागत:
- स्ट्रेस इकोकार्डियोग्राफी/रेडियोन्यूक्लाइड टेस्ट और सीटी एंज़ियोग्राफी जैसे परीक्षण ईसीजी की तुलना में हृदयघात के उच्च जोखिम वाले लोगों का सटीक पता लगा सकते हैं लेकिन गलत परिणामों से जुड़े जोखिम भी हो सकते हैं, जिसमें अनावश्यक परीक्षण और अतिरिक्त लागत शामिल हैं।
- वर्ष 2022 में प्रकाशित एक डेनिश अध्ययन से पता चला है कि हृदयघात के उच्च जोखिम वाले लोगों को सीटी स्कैन सहित अतिरिक्त परीक्षणों से कोई लाभ नहीं हुआ।
- स्ट्रेस इकोकार्डियोग्राफी/रेडियोन्यूक्लाइड टेस्ट और सीटी एंज़ियोग्राफी जैसे परीक्षण ईसीजी की तुलना में हृदयघात के उच्च जोखिम वाले लोगों का सटीक पता लगा सकते हैं लेकिन गलत परिणामों से जुड़े जोखिम भी हो सकते हैं, जिसमें अनावश्यक परीक्षण और अतिरिक्त लागत शामिल हैं।
- परीक्षण तक पहुँच का अभाव:
- भारत में जनसंख्या का एक महत्त्वपूर्ण भाग (लगभग 25-30%) 40 वर्ष से अधिक आयु वर्ग का है। हालाँकि भारत के अधिकांश ज़िला अस्पतालों और कुछ मेडिकल कॉलेजों में स्ट्रेस इकोकार्डियोग्राफी, रेडियोन्यूक्लाइड टेस्ट और सीटी एंज़ियोग्राफी जैसे इमेजिंग परीक्षणों तक पहुँच नहीं है।
- इसके अतिरिक्त ये परीक्षण अपेक्षाकृत महँगे हैं, सार्वजनिक या निजी क्षेत्र में इनकी लागत 6,000 रुपए से लेकर 15,000 रुपए तक होती है।
- जनता के लिये इन परीक्षणों की पहुँच को ध्यान में रखना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी ढाँचा ही सकारात्मक परीक्षण परिणाम प्राप्त कर व्यक्तियों के इलाज में सक्षम है।
- भारत में जनसंख्या का एक महत्त्वपूर्ण भाग (लगभग 25-30%) 40 वर्ष से अधिक आयु वर्ग का है। हालाँकि भारत के अधिकांश ज़िला अस्पतालों और कुछ मेडिकल कॉलेजों में स्ट्रेस इकोकार्डियोग्राफी, रेडियोन्यूक्लाइड टेस्ट और सीटी एंज़ियोग्राफी जैसे इमेजिंग परीक्षणों तक पहुँच नहीं है।
हृदय रोग से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य:
- विषय:
- हृदय रोग (CVDs) हृदय और रक्त वाहिकाओं के विकारों का एक समूह है तथा इसमें कोरोनरी हृदय रोग, प्रमस्तिष्कीय वाहिकी रोग, आमवाती हृदय रोग एवं अन्य स्थितियाँ शामिल हैं।
- CVDs विश्व स्तर पर मौत का प्रमुख कारण है, WHO के अनुसार, वर्ष 2019 में अनुमानित 17.9 मिलियन लोगों की जान गई।
- प्रति पाँच में से चार से अधिक मौतें दिल के दौरे और स्ट्रोक के कारण होती हैं तथा इनमें से एक-तिहाई मौतें 70 वर्ष से कम उम्र के मामले में लोगों में देखी जाती हैं।
- भारत में हृदय रोग (CVD) संबंधी कुल वार्षिक आर्थिक व्यय लगभग 6 ट्रिलियन रुपए है।
- भारतीय पहल:
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक (NPCDCS) की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम लागू किया जा रहा है।
- रोगियों को रियायती कीमतों पर कैंसर और हृदय रोग की दवाएँ तथा प्रत्यारोपण सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 159 संस्थानों/अस्पतालों में सस्ती दवाएँ एवं उपचार के लिये विश्वसनीय प्रत्यारोपण (अमृत) दीनदयाल आउटलेट खोले गए हैं।
- जन औषधि स्टोर की स्थापना फार्मास्यूटिकल विभाग द्वारा सस्ती कीमतों पर जेनेरिक दवाएँ उपलब्ध कराने हेतु की जाती है।
- एसटी-एलिवेशन मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन (STEMI) परियोजना: महाराष्ट्र सरकार ने हृदय रोग के तेज़ी से निदान को सक्षम बनाने हेतु वर्ष 2021 में NHM द्वारा मान्यता प्राप्त STEMI कार्यक्रम की शुरुआत की।
- एसटी-एलिवेशन मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन (STEMI) एक ऐसी स्थिति है जिसमें हृदय की मांसपेशियों में ऑक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति करने वाली हृदय की प्रमुख धमनियों में से एक पूरी तरह से अवरुद्ध हो जाती है।
आगे की राह
- स्ट्रेस इकोकार्डियोग्राफी, रेडियोन्यूक्लाइड टेस्ट और सीटी एंज़ियोग्राफी जैसे आधुनिक चिकित्सा उपकरणों का उपयोग उन लोगों के एक छोटे समूह तक सीमित होना चाहिये जिन्हें इस्केमिक हृदय रोग का अधिक खतरा है।
- उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों में तंबाकू के उपयोग, मोटापे, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया और प्रारंभिक हृदय रोग के पारिवारिक इतिहास जैसे ज्ञात जोखिम कारकों हेतु स्क्रीनिंग द्वारा पहचाना जा सकता है।
- हालाँकि हृदय संबंधी मौतों को रोकने के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण सभी उम्र की आबादी के बीच स्वस्थ आदतों को बढ़ावा देना है।
- ज्ञात जोखिम कारकों हेतु सरल परीक्षण सस्ते व व्यापक रूप से उपलब्ध हैं और ज़िला अस्पतालों में मानक कार्यकारी जाँच के दौरान किये जा सकते हैं।
भारत-थाईलैंड संबंध
प्रिलिम्स के लिये:8वाँ भारत-थाईलैंड रक्षा संवाद, ASEAN, BIMSTEC, अभ्यास MAITREE, अभ्यास SIAM BHARAT, भारत-थाईलैंड समन्वित गश्त। मेन्स के लिये:भारत-थाईलैंड संबंध। |
चर्चा में क्यों?
8वीं भारत-थाईलैंड रक्षा वार्ता का आयोजन बैंकॉक, थाईलैंड में हुआ जिसके दौरान दोनों पक्षों ने अपने द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर संतोष व्यक्त किया।
वार्ता के प्रमुख बिंदु:
- इसमें विभिन्न द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पहलों की प्रगति की समीक्षा की गई।
- रक्षा, समुद्री सुरक्षा और बहुराष्ट्रीय सहयोग के क्षेत्र में समन्वय को बढ़ावा देने पर बल दिया गया।
- थाईलैंड ने भारतीय रक्षा उद्योग की क्षमता में विश्वास व्यक्त किया।
- इस दौरान सहयोग के उभरते क्षेत्रों और वैश्विक मुद्दों के समाधान की दिशा में उठाए जाने वाले कदमों को भी स्पष्ट किया गया।
थाईलैंड के साथ भारत के संबंध:
- राजनयिक संबंध:
- थाईलैंड और भारत के बीच राजनयिक संबंध 1947 से है।
- ये संबंध आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों की नींव पर निर्मित हैं जो 2000 से अधिक वर्षों से मौजूद हैं।
- भारत की 'लुक ईस्ट' नीति (वर्ष 1993 से) और थाईलैंड की 'लुक वेस्ट' नीति (वर्ष 1996 से), जो अब भारत की 'एक्ट ईस्ट' और थाईलैंड की 'एक्ट वेस्ट' में बदल गई है, आर्थिक एवं वाणिज्यिक संबंधों सहित द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने में दृढ़ता से योगदान दे रही हैं।
- आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:
- वर्ष 2019 में द्विपक्षीय व्यापार 12.12 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था और महामारी की स्थिति के बावजूद वर्ष 2020 में यह 9.76 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- वर्ष 2018 में भारत को थाईलैंड द्वारा लगभग 7.60 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया गया था, जबकि थाईलैंड को भारत द्वारा लगभग 4.86 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया गया था।
- भारत और थाईलैंड के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2021-22 में लगभग 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया।
- आसियान क्षेत्र में सिंगापुर, वियतनाम, इंडोनेशिया और मलेशिया के बाद थाईलैंड भारत का 5वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
- वर्तमान में थाई सामानों को आसियान-भारत FTA के तहत कर कटौती से लाभ हुआ है, जो जनवरी 2010 में लागू हुआ था।
- वर्ष 2019 में द्विपक्षीय व्यापार 12.12 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था और महामारी की स्थिति के बावजूद वर्ष 2020 में यह 9.76 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- रक्षा सहयोग:
- समय के साथ द्विपक्षीय रक्षा संबंधों का विस्तार हुआ है और इसमें रक्षा संवाद बैठकें, सेनाओं के बीच आदान-प्रदान, उच्च-स्तरीय दौरे, क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम तथा वार्षिक संयुक्त सैन्य अभ्यास शामिल हैं।
- रक्षा अभ्यास:
- अभ्यास मैत्री (सेना)।
- सियाम भारत अभ्यास (वायु सेना)।
- भारत-थाईलैंड समन्वित गश्ती (नौसेना)।
- कनेक्टिविटी:
- वर्ष 2019 में लगभग 1.9 मिलियन भारतीय पर्यटकों ने थाईलैंड का दौरा किया, जबकि लगभग 160,000 थाई पर्यटकों ने मुख्य रूप से बौद्ध तीर्थ स्थलों के लिये भारत का दौरा किया।
- भारत और थाईलैंड बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (BIMSTEC) ढाँचे के लिये बंगाल की खाड़ी पहल के तहत भी क्षेत्रीय संपर्क में सुधार के लिये मिलकर काम कर रहे हैं।
- बहुप्रतीक्षित भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग से पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के माध्यम से भूमि संपर्क का विस्तार होने की उम्मीद है, जो दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच पहला सीमा पार सुविधा समझौता बन गया है।
- सांस्कृतिक सहयोग:
- भारत और थाईलैंड में भारतीय सांस्कृतिक मंडलों, त्योहारों और कार्यक्रमों के लिये नियमित यात्राओं के साथ एक मज़बूत सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम है।
- एक भारतीय सांस्कृतिक केंद्र, जिसे अब स्वामी विवेकानंद संस्कृति केंद्र के रूप में जाना जाता है, बैंकॉक में वर्ष 2009 में स्थापित किया गया था।
- श्री गुरुनानक देव जी की 550वीं जयंती थाईलैंड में भी विभिन्न कार्यक्रमों और बैंकॉक में एक भव्य नगर कीर्तन जुलूस के साथ मनाई गई।
- भारत के संविधान का थाई भाषा में अनुवाद थाईलैंड में शुरू किया गया था।
आगे की राह
- दोनों देशों को व्यापार बाधाओं से संबंधित मुद्दों का समाधान करना चाहिये और व्यापार एवं निवेश का विस्तार करने के लिये द्विपक्षीय अनुबंधों के माध्यम से आयात शुल्क को कम करना चाहिये।
- भारत के स्टार्ट-अप पारितंत्र और थाईलैंड के बीच सहयोग के अवसरों का भी पता लगाया जाना चाहिये।
- दोनों देश एक-दूसरे के बाज़ारों में निवेश कर आपूर्ति शृंखला के अंतराल को कम करने के लिये मिलकर काम कर सकते हैं।
- रक्षा अनुबंधों, सैन्य आदान-प्रदान और संयुक्त अभ्यासों के माध्यम से रणनीतिक एवं सुरक्षा संबंधी सहयोग को मज़बूत करना भी आवश्यक है।
असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच सीमा विवाद का समाधान
प्रिलिम्स के लिये:सर्वे ऑफ इंडिया, बेलागवी, राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956, महाजन आयोग, लुशाई हिल्स, खासी और जयंतिया हिल्स, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 131 मेन्स के लिये:भारत में राज्यों के बीच सीमा विवाद, अंतर्राज्यीय परिषद |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच वर्ष 1972 से चले आ रहे सीमा विवाद का स्थायी समाधान हो गया है।
- असम और अरुणाचल प्रदेश 804 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं।
समझौते के प्रमुख बिंदु:
- इस समझौते से ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, जनसांख्यिकीय प्रोफाइल, प्रशासनिक सुविधा, सीमा की निकटता और निवासियों की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए दोनों राज्यों के बीच 700 किलोमीटर से अधिक की सीमा को कवर करने वाले 123 गाँवों से संबंधित विवाद का समाधान होने की उम्मीद है।
- यह अंतिम समझौता होगा जिसके अंतर्गत कोई भी राज्य भविष्य में किसी भी क्षेत्र या गाँव से संबंधित कोई नया दावा नहीं करेगा
- समझौते के बाद सीमाओं का निर्धारण करने के लिये दोनों राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा एक विस्तृत सर्वेक्षण किया जाएगा।
भारत में राज्यों के बीच अन्य सीमा विवाद:
- कर्नाटक-महाराष्ट्र:
- उत्तरी कर्नाटक में बेलगावी, कारवार और निपानी को लेकर सीमा विवाद काफी पुराना है। 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार, जब राज्य की सीमाओं को भाषायी आधार पर पुनः तैयार किया गया, तो बेलगावी पूर्ववर्ती मैसूर राज्य का हिस्सा बन गया।
- यह अधिनियम न्यायमूर्ति फज़ल अली आयोग के निष्कर्षों पर आधारित था जिसे 1953 में नियुक्त किया गया था और इसने दो वर्ष बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- महाराष्ट्र का दावा है कि बेलगावी के कुछ हिस्से, जहाँ मराठी प्रमुख भाषा है, को महाराष्ट्र में ही रहना चाहिये।
- अक्तूबर 1966 में केंद्र ने महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल में सीमा विवाद को हल करने के लिये महाजन आयोग की स्थापना की।
- आयोग ने सिफारिश की कि बेलगाम और 247 गाँव कर्नाटक में ही रहेंगे। महाराष्ट्र ने रिपोर्ट को खारिज़ कर दिया और वर्ष 2004 में सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया
- आयोग ने सिफारिश की कि बेलगाम और 247 गाँव कर्नाटक में ही रहेंगे। महाराष्ट्र ने रिपोर्ट को खारिज़ कर दिया और वर्ष 2004 में सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया
- उत्तरी कर्नाटक में बेलगावी, कारवार और निपानी को लेकर सीमा विवाद काफी पुराना है। 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार, जब राज्य की सीमाओं को भाषायी आधार पर पुनः तैयार किया गया, तो बेलगावी पूर्ववर्ती मैसूर राज्य का हिस्सा बन गया।
- असम-मिज़ोरम:
- असम और मिज़ोरम के बीच सीमा विवाद वर्ष 1875 और वर्ष 1933 की ब्रिटिश काल की दो अधिसूचनाओं की विरासत है, जब मिज़ोरम को असम का एक ज़िला लुशाई हिल्स कहा जाता था।
- वर्ष 1875 की अधिसूचना ने लुशाई हिल्स को कछार के मैदानों से तथा लुशाई हिल्स और मणिपुर के बीच अन्य सीमांकित सीमा से अलग कर दिया।
- जबकि मिज़ोरम विद्रोह के वर्षों के बाद वर्ष 1987 में ही एक राज्य बन गया था, यह अभी भी वर्ष 1875 में तय की गई सीमा पर ज़ोर देता है।
- दूसरी ओर असम वर्ष 1986 में (1933 की अधिसूचना के आधार पर) सीमा का सीमांकन चाहता था
- दूसरी ओर असम वर्ष 1986 में (1933 की अधिसूचना के आधार पर) सीमा का सीमांकन चाहता था
- असम और मिज़ोरम के बीच सीमा विवाद वर्ष 1875 और वर्ष 1933 की ब्रिटिश काल की दो अधिसूचनाओं की विरासत है, जब मिज़ोरम को असम का एक ज़िला लुशाई हिल्स कहा जाता था।
- हरियाणा-हिमाचल प्रदेश:
- दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद को लेकर परवाणू क्षेत्र सुर्खियों में रहा है।
- यह हरियाणा के पंचकुला ज़िले के निकट है और हरियाणा ने हिमाचल प्रदेश में भूमि के कुछ हिस्सों पर अपना दावा जताया है।
- हिमाचल प्रदेश-लद्दाख:
- हिमाचल और लद्दाख लेह तथा मनाली के बीच के मार्ग के एक क्षेत्र सरचू पर दावा करते हैं।
- यह एक प्रमुख बिंदु है जहाँ यात्रीगण इन दो शहरों के बीच यात्रा के दौरान रुकते हैं।
- सरचू हिमाचल के लाहुल तथा स्पीति ज़िले और लद्दाख के लेह ज़िले के बीच में है।
- मेघालय-असम:
- असम और मेघालय के बीच सीमा को लेकर समस्या तब शुरू हुई जब मेघालय ने पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम, 1971 को चुनौती दी जिसके तहत मिकिर हिल्स अथवा वर्तमान के कार्बी आंगलोंग ज़िले के खंड I और II असम को सौंप दिये गए थे।
- मेघालय का तर्क है कि जब वर्ष 1835 में दोनों खंडों को अधिसूचित किया गया था, तब ये दोनों खंड तत्कालीन संयुक्त खासी और जयंतिया हिल्स ज़िले का हिस्सा थे।
- असम-नगालैंड:
- वर्ष 1963 में नगालैंड राज्य के रूप में स्थापित होने के तुरंत बाद सीमा संबंधी विवाद की शुरुआत हो गई।
- नगालैंड राज्य अधिनियम, 1962 के तहत वर्ष 1925 की एक अधिसूचना के अनुसार, राज्य की सीमाओं को परिभाषित किया गया था जब नगा हिल्स और तुएनसांग क्षेत्र (NHTA) को एक नई प्रशासनिक इकाई में एकीकृत किया गया था।
- हालाँकि नगालैंड सीमा रेखांकन को स्वीकार नहीं करता है और उसने मांग की है कि नए राज्य में उत्तरी कछार और नागाँव ज़िलों में सभी नगा बहुल क्षेत्र शामिल होने चाहिये।
- राज्य के तुरंत बाद असम और नगालैंड के बीच तनाव बढ़ गया, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1965 में पहला सीमा संघर्ष हुआ।
- इसके बाद क्रमशः वर्ष 1968, 1979, 1985, 2007 और 2014 में सीमा पर दोनों राज्यों के बीच बड़ी झड़पें हुईं।
भारत में सीमा विवादों के समाधान के अन्य तरीके:
- अनुसूचित जाति के विशेष मूल अधिकार क्षेत्र के माध्यम से:
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 131 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के पास अनन्य मूल क्षेत्राधिकार है, जिसका अर्थ है कि कोई अन्य न्यायालय इन मामलों की सुनवाई नहीं कर सकता है:
- यह भारत सरकार और एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवादों को सुनवाई कर सकता है।
- यह एक तरफ भारत सरकार और किसी भी राज्य (राज्यों) और दूसरी तरफ एक या अधिक अन्य राज्यों के बीच विवादों की सुनवाई कर सकता है।
- यह दो या दो से अधिक राज्यों के बीच विवादों को सुनवाई कर सकता है यदि विवाद में कानून या तथ्य का प्रश्न शामिल है जिस पर कानूनी अधिकार का अस्तित्त्व या सीमा निर्भर करती है।
- क्षेत्राधिकार से संबंधित सीमाएँ: सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार उन संधियों, समझौतों, प्रसंविदाओं, अनुबंधों या इसी तरह के अन्य आयामों से उत्पन्न होने वाले ऐसे विवादों तक नहीं है जो संविधान के प्रारंभ से पहले दर्ज किये गए थे या इनके द्वारा ऐसा प्रावधान किया गया है कि इसका क्षेत्राधिकार ऐसे विवादों तक विस्तारित नहीं होगा।
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 131 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के पास अनन्य मूल क्षेत्राधिकार है, जिसका अर्थ है कि कोई अन्य न्यायालय इन मामलों की सुनवाई नहीं कर सकता है:
- अंतर्राज्यीय परिषद द्वारा:
- संविधान का अनुच्छेद 263 राष्ट्रपति को अंतर्राज्यीय परिषद स्थापित करने का अधिकार देता है।
- यह राज्यों के बीच चर्चा और विवादों के समाधान के साथ-साथ राज्यों या संघ एवं एक या अधिक राज्यों के बीच सामान्य हितों से संबंधित विषयों पर चर्चा हेतु एक मंच के रूप में कार्य करती है।
- वर्ष 1990 में राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से अंतर्राज्यीय परिषद की स्थापना की गई थी।
- वर्ष 2021 में इस परिषद का पुनर्गठन किया गया था।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. अंतर्राज्यीय जल विवादों को हल करने हेतु उपलब्ध संवैधानिक तंत्र संबंधित समस्याओं को हल करने में विफल रहा है। क्या यह विफलता संरचनात्मक या प्रक्रियात्मक अपर्याप्तता या दोनों कारणों से है? चर्चा कीजिये। (2013) |
स्रोत: पी.आई.बी.
वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन 2023
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन 2023, IBC, बौद्ध धर्म, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, आष्टांगिक मार्ग, परम सत्य, ICCR मेन्स के लिये:भारत की सॉफ्ट पॉवर सामरिक नीति में बौद्ध धर्म की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC) के साथ साझेदारी में संस्कृति मंत्रालय ने प्रथम वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन 2023 का आयोजन किया है, जिसका उद्देश्य अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक और राजनयिक संबंधों को बढ़ाना है।
अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC):
- IBC सबसे बड़ा धार्मिक बौद्ध परिसंघ है।
- इसका उद्देश्य वैश्विक मंच पर बौद्ध धर्म के लिये एक भूमिका बनाना है ताकि विरासत को संरक्षित करने, ज्ञान साझा करने और मूल्यों को बढ़ावा देने में मदद मिल सके तथा वैश्विक संवाद में सार्थक भागीदारी का आनंद लेने हेतु बौद्ध धर्म के लिये संयुक्त मंचों का प्रतिनिधित्त्व किया जा सके।
- नवंबर 2011 में वैश्विक बौद्ध मंडली (GBC) का आयोजन नई दिल्ली में किया गया था, जहाँ उपस्थित लोगों ने सर्वसम्मति से एक अंतर्राष्ट्रीय निकाय - अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC) के निर्माण का संकल्प लिया।
- मुख्यालय: दिल्ली, भारत
वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन 2023:
- परिचय:
- दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में विभिन्न देशों के बौद्ध भिक्षुओं ने भाग लिया।
- सम्मेलन में विश्व भर के प्रतिष्ठित विद्वानों, परिसंघ के नेताओं और बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने भाग लिया।
- इसमें 173 अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागी शामिल हैं जिनमें 84 संघ सदस्य और 151 भारतीय प्रतिनिधि शामिल हैं इनमें 46 संघ सदस्य, 40 भिक्षुणी और दिल्ली के बाहर के 65 लोकधर्मी शामिल हैं।
- विषय: समकालीन चुनौतियों के प्रति प्रतिक्रिया: दर्शनशास्त्र से अमल तक।
- उप विषय:
- बुद्ध धम्म और शांति
- बुद्ध धम्म: पर्यावरणीय संकट, स्वास्थ्य और स्थिरता
- नालंदा बौद्ध परंपरा का संरक्षण
- बुद्ध धम्म तीर्थयात्रा, लिविंग हेरिटेज और बुद्ध अवशेष: दक्षिणी, दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया के देशों के लिये भारत के सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंधों हेतु एक सुनम्य आधार।
- उप विषय:
- उद्देश्य:
- इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य प्रासंगिक वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करना और सार्वभौमिक मूल्यों पर आधारित बुद्ध धम्म में इसका हल तलाशना है।
- इसका उद्देश्य बौद्ध विद्वानों और धर्म गुरुओं के लिये एक मंच प्रदान करना है।
- धर्म के मूल सिद्धांतों के अनुसार सार्वभौमिक शांति और सद्भाव की दिशा में काम करने के लिये इसका उद्देश्य बुद्ध के शांति, करुणा और सद्भाव के संदेश का विश्लेषण करना है। साथ ही वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के संचालन के लिये एक उपकरण के रूप में उपयोग हेतु इसकी व्यवहार्यता की परख के लिये आने वाले समय में अकादमिक शोध हेतु एक दस्तावेज़ तैयार करना है।
- भारत के लिये महत्त्व:
- यह वैश्विक शिखर सम्मेलन बौद्ध धर्म के विकास और विस्तार में भारत के महत्त्व को चिह्नित करेगा क्योंकि बौद्ध धर्म का उदय भारत में हुआ था।
- यह शिखर सम्मेलन अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक और राजनयिक संबंधों को बेहतर बनाने का एक माध्यम होगा, विशेषकर उन देशों के साथ जो बौद्ध लोकाचार को अपनाते हैं।
बुद्ध की शिक्षाओं की प्रासंगिकता:
- बुद्ध की प्रमुख शिक्षाओं में चार आर्य सत्य और आर्य आष्टांगिक मार्ग शामिल हैं।
- चार आर्य सत्य:
- दुख (दुक्ख) संसार का सार है।
- हर दुख का कारण होता है- समुद्य।
- दुखों का नाश हो सकता है- निरोध।
- इसे अथंगा मग्गा (अष्टांगिक मार्ग) का पालन करके प्राप्त किया जा सकता है।
- आर्य अष्टांगिक मार्ग:
- चार आर्य सत्य:
- दुनिया युद्ध, आर्थिक संकट, आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन के कारण सदी के सबसे चुनौतीपूर्ण समय का सामना कर रही है और इन सभी समकालीन वैश्विक चुनौतियों का समाधान भगवान बुद्ध की शिक्षाओं के माध्यम से किया जा सकता है।
- बुद्ध की ये शिक्षाएँ कई तरह से वैश्विक समस्याओं का समाधान प्रदान कर सकती हैं। उदाहरण के लिये करुणा, अहिंसा और अन्योन्याश्रितता पर शिक्षा संघर्षों को उज़ागर करने एवं शांतिपूर्ण सह-अस्तित्त्व को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है।
- नैतिक आचरण, सामाजिक ज़िम्मेदारी और उदारता पर शिक्षा असमानता के मुद्दों का निराकरण करने एवं सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है।
- सचेतनता, सरलता और किसी को हानि न पहुँचाने की शिक्षाएँ पर्यावरण क्षरण को दूर करने और स्थायी जीवन को बढ़ावा देने में मदद कर सकती हैं।
भारत की सॉफ्ट पावर रणनीति में बौद्ध धर्म की भूमिका:
- सांस्कृतिक कूटनीति:
- भारत की सॉफ्ट पॉवर रणनीति में बौद्ध धर्म का उपयोग सांस्कृतिक कूटनीति के माध्यम से किया गया है।
- इसमें कला, संगीत, फिल्म, साहित्य और त्योहारों जैसे विभिन्न चैनलों के माध्यम से बौद्ध धर्म सहित भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देना शामिल है।
- उदाहरण के लिये भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद ( Indian Council for Cultural Relations- ICCR) ने भारत की सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करने एवं सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत करने हेतु श्रीलंका, म्याँमार, थाईलैंड तथा भूटान जैसे बौद्ध देशों में कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया है।
- भारत की सॉफ्ट पॉवर रणनीति में बौद्ध धर्म का उपयोग सांस्कृतिक कूटनीति के माध्यम से किया गया है।
- शिक्षा और क्षमता निर्माण:
- शिक्षा और क्षमता निर्माण के माध्यम से भारत की सॉफ्ट पावर रणनीति में बौद्ध धर्म का उपयोग किया जा सकता है।
- भारत ने बौद्ध अध्ययन और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय और केंद्रीय उच्च तिब्बती अध्ययन संस्थान जैसे कई बौद्ध संस्थानों एवं उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना की है।
- वर्ष 2022 में त्रिपुरा में धम्म दीपा अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध विश्वविद्यालय (DDIBU) की आधारशिला रखी गई।
- DDIBU भारत का पहला बौद्ध-संचालित विश्वविद्यालय है जो बौद्ध शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा के अन्य विषयों में भी कोर्स प्रदान करता है।
- यह भारत भूटान, श्रीलंका, म्याँमार और नेपाल जैसे अन्य देशों के बौद्ध छात्रों व भिक्षुओं को उनके ज्ञान एवं कौशल को बढ़ाने हेतु छात्रवृत्ति और प्रशिक्षण कार्यक्रम भी प्रदान करता है।
- द्विपक्षीय आदान-प्रदान और पहल:
- द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में भारत ने विभिन्न पहलों के माध्यम से श्रीलंका, म्याँमार , थाईलैंड, कंबोडिया और भूटान जैसे बौद्ध देशों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने की कोशिश की है।
- भारत ने आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये श्रीलंका के साथ द्विपक्षीय निवेश संवर्द्धन और संरक्षण समझौते (BIPA) जैसे कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
- भारत ने बौद्ध देशों को उनके सांस्कृतिक विरासत स्थलों जैसे म्याँमार में बागान मंदिर और नेपाल में स्तूप के जीर्णोद्धार और संरक्षण के लिये भी सहायता प्रदान की है।
- भारत और मंगोलिया ने वर्ष 2023 तक सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम को भी नवीनीकृत किया है जिसके तहत मंगोलियाई लोगों को CIBS, लेह और CUTS, वाराणसी के विशेष संस्थानों में 'तिब्बती बौद्ध धर्म' का अध्ययन करने हेतु 10 समर्पित ICCR छात्रवृत्तियाँ आवंटित करने का प्रावधान किया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
(a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत की धार्मिक प्रथाओं के संदर्भ में “स्थानकवासी” संप्रदाय किससे संबंधित है? (2018) (a) बौद्ध मत उत्तर: (b) प्रश्न. भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं: (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत में बौद्ध धर्म के इतिहास में पाल काल सबसे महत्त्वपूर्ण चरण है। विश्लेषण कीजिये: (मुख्य परीक्षा- 2020) |
स्रोत: पी.आई.बी.
कोयला खनन को लेकर छत्तीसगढ़ में विरोध प्रदर्शन
प्रिलिम्स के लिये:कोयला खदान, कोयला भंडार, कोयले का वर्गीकरण। मेन्स के लिये:कोयला खनन और पर्यावरण एवं स्थानीय समुदायों पर इसका प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में छत्तीसगढ़ में अडानी एंटरप्राइज़ लिमिटेड (AEL) की कोयला खनन परियोजना द्वारा पर्यावरण और स्थानीय समुदायों पर इसके प्रभाव के कारण विवाद उत्पन हो गया है।
- AEL, छत्तीसगढ़ के सरगुजा ज़िले के परसा ईस्ट और कांटा बसन कोयला ब्लॉकों में पिछले एक दशक से भी अधिक समय से कोयले का खनन कर रहा है। इसका अनुबंध 30 वर्षों में प्रति वर्ष 15 मिलियन टन कोयला निकालने और आपूर्ति करने के लिये संचालन की अनुमति देता है।
- छत्तीसगढ़ के हरिहरपुर, घाटबर्रा और फतेहपुर गाँवों में ज़्यादातर गोंड जनजाति के स्थानीय लोग एक वर्ष से भी अधिक समय से खनन के खिलाफ हरिहरपुर के प्रवेश द्वार पर धरना दे रहे हैं।
खनन कार्यों के प्रभाव:
- पर्यावरण पर प्रभाव:
- इस क्षेत्र में खनन से हसदेव बेसिन में साल वनों के लगभग 8 लाख वृक्ष नष्ट हो जाएंगे। इससे हसदेव नदी का जलग्रहण क्षेत्र भी प्रभावित होगा।
- जिस समय खनन शुरू हो रहा था, उस समय वृक्षों को बचाने का प्रयास किया गया था। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) ने वर्ष 2014 में खनन के पर्यावरणीय प्रभाव पर अध्ययन का आदेश देते हुए खनन लाइसेंस पर रोक लगा दी थी। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने NGT के आदेश को खारिज कर दिया और खनन कार्य शुरू हो गया।
- स्थानीय लोगों पर प्रभाव:
- खनन परियोजना ने स्थानीय लोगों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। चूँकि खदान ने वन भूमि को कम कर दिया है।
- हसदेव के वनों को बचाने के लिये 'हसदेव बचाओ अभियान' भी चलाया जा रहा है।
- खदानों से मवेशियों के चरागाह नष्ट हो गए हैं, भूजल स्तर प्रभावित हुआ है और विस्फोटों से बोरवेलों के आसपास की मृदा को ढीली हो गई है तथा लोग नलकूपों का उपयोग छोटे क्षेत्रों में खेती करने के लिये कर रहे हैं।
- खुदाई के बाद हरिहरपुर के पास बहने वाली नदी, जिसमें कभी वर्ष भर जल और मछलियाँ पाई जाती थीं, का जलग्रहण क्षेत्र प्रभावित हुआ है जिससे यह पंकिल धारा में परिवर्तित हो गई है।
- खनन परियोजना ने स्थानीय लोगों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। चूँकि खदान ने वन भूमि को कम कर दिया है।
कोयला:
- परिचय:
- यह एक प्रकार का जीवाश्म ईंधन है जो अवसादी शैलों के रूप में पाया जाता है और अक्सर इसे 'ब्लैक गोल्ड' के रूप में जाना जाता है।
- यह ऊर्जा का एक पारंपरिक स्रोत है और व्यापक रूप से उपलब्ध है। इसका उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में, लोहा और इस्पात, भाप इंजन जैसे उद्योगों में तथा विद्युत उत्पन्न करने के लिये किया जाता है। कोयले से निकलने वाली विद्युत् को ताप विद्युत् कहा जाता है। विश्व के प्रमुख कोयला उत्पादकों में चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, भारत शामिल हैं।
- भारत में कोयले का वितरण:
- गोंडवाना कोयला क्षेत्र (250 मिलियन वर्ष पुराना):
- भारत में गोंडवाना कोयले का कुल भंडार में 98% और उत्पादन में 99% की हिस्सेदारी है।
- यहाँ भारत के मेटलर्जिकल ग्रेड के साथ-साथ बेहतर गुणवत्ता वाला कोयला मिलता है।
- यह दामोदर (झारखंड-पश्चिम बंगाल), महानदी (छत्तीसगढ़-ओडिशा), गोदावरी (महाराष्ट्र) और नर्मदा घाटियों में विस्तृत है।
- टर्शियरी कोयला क्षेत्र (15-60 मिलियन वर्ष पुराना):
- इसमें कार्बन की मात्रा बहुत कम और नमी तथा सल्फर की मात्रा अधिक होती है।
- टर्शियरी कोयला क्षेत्र मुख्य रूप से बाह्य-प्रायद्वीपीय क्षेत्रों तक ही सीमित है।
- इसके महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में असम, मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग क्षेत्र की हिमालय तलहटी, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व केरल शामिल हैं।
- गोंडवाना कोयला क्षेत्र (250 मिलियन वर्ष पुराना):
- वर्गीकरण:
- एन्थ्रेसाइट (80-95% कार्बन सामग्री) सीमित मात्रा में जम्मू-कश्मीर में पाया जाता है।
- बिटुमिनस (60-80% कार्बन सामग्री) झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश में पाया जाता है।
- लिग्नाइट (40-55% कार्बन सामग्री, उच्च नमी सामग्री) राजस्थान, लखीमपुर (असम) एवं तमिलनाडु में पाया जाता है।
- पीट [इसमें 40% से कम कार्बन सामग्री और कार्बनिक पदार्थ (लकड़ी) से कोयले में परिवर्तन के पहले चरण में प्राप्त होता है]।
- कोयला भंडार:
- भारत में कुल कोयला भंडार के मामले में शीर्ष राज्य झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. कोयले के वृहत् सुरक्षित भंडार होते हुए भी भारत क्यों मिलियन टन कोयले का आयात करता है? (2012)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, गोंडवाना चट्टानों को भारत की रॉक प्रणालियों में सबसे महत्त्वपूर्ण मानने का उपयुक्त कारण है? (2010) (a) भारत के 90% से अधिक चूना पत्थर के भंडार इन्हीं में पाए जाते हैं। उत्तर: (b) dमेन्सप्रश्न.प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद कोयला खनन विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है"। विवेचना कीजिये। (2017) |